गुरुवार, 26 अगस्त 2010

पुलिस को दो हिस्सों में बांट दें

- जनहित याचिका पर मप्र हाईकोर्ट का अहम फैसला
- एक हिस्सा करे अनुसंधान, दूसरा देखे कानून-व्यवस्था


हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक अहम फैसले में सरकार को आदेश दिया है कि राज्य की पुलिस को दो हिस्सों में बांट दिया जाए। एक हिस्सा अपराधों का अनुसंधान करे और दूसरा कानून व्यवस्था संभाले। कानूनविद् मानते हैं, इससे अपराधों पर नियंत्रण होगा और कमजोर चार्जशीट का फायदा उठाकर कानून से छूट नहीं पाएंगे।

जस्टिस एसएल कोचर और शुभदा वाघमारे की युगलपीठ ने यह फैसला एडवोकेट संजय मेहरा की जनहित याचिका पर दिया। अनुसंधान करने वाले हिस्से की जिम्मेदारी तय करते हुए कहा है कि वह थानों में दर्ज होने वाले अपराधोंं का गहराई से विश्लेषण करे और कोर्ट में उपस्थित होकर अपराधी को अंजाम तक पहुंचाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह भी कहा है कि पुलिस सुधार और अपराध नियंत्रण के संबंध में वे सुप्रीम कोर्ट में लंबित प्रकाशसिंह एवं अन्य की याचिका में पक्षकार बन सकते हैं। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट सुनील जैन ने भी पैरवी की। बढ़ते अपराध और बिगड़ेल ट्रैफिक इंतजाम के मुद्दे पर 16 अप्रैल 2008 को दायर इस याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस आरएस गर्ग और एएम सप्रे की युगलपीठ नाराजगी जता चुके हैं। 

सुप्रीम कोर्ट के भी हैं आदेश
एक लंबित याचिका में सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को निर्देश दे चुका है कि पहले चरण में 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में पुलिस को दो हिस्सों में बांटकर कार्य किया जाए, ताकि अपराध काबू में रहें।

पुलिस बल की कमी का शपथ पत्र
जनहित याचिका में सुनवाई के दौरान 2008 में तत्कालीन इंदौर पुलिस महानिरीक्षण अनिल कुमार ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र दिया था कि राज्य में पुलिस बल की भारी कमी है और कई थानों में बेहद कम पुलिसकर्मियों के साथ कार्य किया जा रहा है।

इंदौर में हो चुकी प्रयोग की घोषणा
इंदौर में प्रयोग के बतौर पुलिस के विभाजन के संबंध में दो माह पहले ही घोषणा हो चुकी है। गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने इंदौर में कहा था कि सेंट्रल कोतवाली, एमजी रोड और तुकोगंज थानों में यह व्यवस्था शुरू की जाएगी। इसके बाद दूसरे थानों में भी इसे अमल में लाएंगे।

पत्रिका : २४ अगस्त २०१०

आवाज बंद करने का सरकारी इंतजाम

निगम का गर्वनेंस ?
पड़ोसी के अतिक्रमण की लोकायुक्त में शिकायत की तो मामला रफादफा करने की मांग से साथ खड़ी की अड़चनें 
मोती तबेला की अवैध इमारत

शहरी विकास की योजनाओं के लिए केंद्रीय स्तर पर गठित एडवायजरी कमेटी की अध्यक्ष ईशा जज आहलुवालिया ने दो दिन पहले इंदौर नगरनिगम को सीख दी थी कि गुड गर्वनेंस (सुशासन) के बगैर न तो बड़े प्रोजेक्ट मिलेंगे और न ही लोगों की जिंदगी आसान होगी। हम आपको बता रहे हैं एक उदाहरण जो निगम गर्वनेंस का आलम बयां करता है। यह व्हिसल ब्लोअर को परेशान करने का मामला भी है.

खबर के पात्र का नाम मोहम्मद इस्हाक खान है। वे 9/2, मोतीतबेला में रहते हैं। उन्होंने कुछ वर्ष पहले अपने पड़ोसी इज्जत नूर पिता एहमद नूर (10/2, मोती तबेला) द्वारा नगरनिगम और सार्वजनिक रास्ते की भूमि पर अतिक्रमण करने पर आपत्ति ली थी। मामले को वे लोकायुक्त तक ले गए हैं। अब खुद परेशान हैं, क्योंकि निगम के अफसरों ने साफ शब्दों में कह दिया है हमारे तंत्र के खिलाफ की शिकायतों को वापस लो तभी आपको 'चैनÓ देंगे। वे निराश होने लगे हैं क्योंकि उनके साथ ही उनके भाई के मकान का नक्शा भी निगम के अफसरान ने रोक दिया है।

आधारहीन नहीं थी आवाज
इस्हाक खान के पास शिकायत के कई मजबूत आधार हैं। उन्होंने 'पत्रिकाÓ को बताया इज्जतनूर ने 16 सितंबर 2003 को सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने के इरादे से निगम के अफसरों से सांठगांठ करके नक्शा पास करवाया और मकान व दुकान बना लिए। जिस जमीन पर निर्माण हुआ है, उसे स्वयं इज्जतनूर पूर्व में मंजूर अपने तीन नक्शों में (23 मार्च 1977, 5 अगस्त 1977 और 2 जून 1995 को) सार्वजनिक रास्ते की बता चुके हैं। अफसरों ने नक्शा पास करके सरकार को राजस्व की चपत लगाई है। लोकायुक्त ने तीन बिंदुओं पर जांच की और यह पाया कि झूठे दस्तावेजों के आधार पर इज्जतनूर ने नक्शा पास करवाया।

शिकायत होते ही गुम हो गई फाइल
निगम के अधिकारियों ने लोकायुक्त के समक्ष बयान में कहा कि रिकार्ड 30 वर्ष पुराना है, इसलिए बहुत खोजने के बाद भी उपलब्ध नहीं हो रहा है। दूसरी ओर शिकायत के ठीक पहले इस्हाक खान ने सूचना का अधिकार में पूरी फाइल की प्रमाणित प्रतिलिपि हासिल कर ली थी। खान कहते हैं यूं ही सरकारी रिकॉर्ड गायब होता रहा तो करोड़ों की सरकारी जमीन निजी लोगों के हाथों में जाने से कोई नहीं रोक सकता।


फाइल पर लिखा है 'मिंदोलाजीÓ 
सूचना का अधिकार में प्राप्त एक प्रमाणित दस्तावेज में अतिक्रमण करने वाले इज्जतनूर के नक्शे की फाइल के सबसे ऊपर वाले पेज पर 'मिंदोलाजीÓ लिखा है। लोकायुक्त को दी शिकायत में इस्हाक खान ने इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि संभवत: यह विधायक रमेश मेंदाला की ओर इशारा करता है और हो सकता है, उनके प्रभाव में ही मेरे साथ निगम द्वारा यह व्यवहार किया जा रहा है।



यूं कर रहे शिकायतकर्ता को परेशान
इस्हाक खान
  • इस्हाक खान के 70 वर्षीय भाई मोहम्मद नूर ने 9/2 मोती तबेला में मकान निर्माण के लिए नक्शा मंजूर करवाने की निगम में अर्जी दी, जिसे मंौखिक रूप से यह कहकर रोक दिया गया कि आपके छोटे भाई इस्हाक ने निगम के खिलाफ शिकायतें की है। नूर ने 22 जुलाई को न्यायिक शपथ पत्र पेश कर निगम को कहा कि जमीन पर मेरा एकमात्र स्वामित्व है और मेरा कोई न्यायिक प्रकरण भी नहीं चल रहा है, इसलिए नक्शा मंजूर किया जाए। फिर भी सुनवाई नहीं हुई तो अब नूर ने चेतावनी दी है कि सुनवाई नहीं होने पर गांधी प्रतिमा पर नंगे बदन धरना दूंगा।
  • इस्हाक खान ने जमीन नामांतरण की एक अर्जी 2006 में निगम में दाखिल की थी। उन्हें भी कहा गया कि शिकायतें वापस लो, तो ही दाखिला मंजूर होगा। खान ने इस बात की शिकायत मानवाधिकार आयोग को भी कर दी है।
  • इस्हाक खान ने सूचना का अधिकार में 1 जुलाई 2010 को इज्जतनूर के खिलाफ की शिकायतों पर की गई कार्रवाइयों की जानकारी मांगी तो उन्हें पत्र भेजा गया कि आपके मकान 9/2, मोती तबेला की फाइल आकर देख लें। खान का कहना है यह तो मैंने मांगा ही नहीं था। 


इज्जतनूर और इस्हाक खान का मामला कॉफी पुराना है। मेरी जानकारी में भी हाल ही यह केस आया है। विधिक राय लेकर इस पर शीघ्र ही उचित कार्रवाई की जाएगी।
- अवधेश जैन, भवन निरीक्षक, हरसिद्धी जोन 


पत्रिका : २४ अगस्त २०१०