मंगलवार, 31 अगस्त 2010

निजी कंपनियों को जमीन देने की साजिश

- भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन प्रस्ताव पर मेधा पाटकर का आरोप
- कहा बिल पास होने से कंपनियों को जमीन देने बन जाएगा किसानों की मजबूरी

मेधा पाटकर 


रेल लाइन बिछाने, सड़कें बनाने, सरकारी इमारतें खड़ी करने के लिए अंग्रेजों ने 1884 में जो भूमि अधिग्रहण कानून बनाया था, उसमें केंद्र सरकार द्वारा की जा रही संशोधन की बात एक साजिश है। संशोधन के मुताबिक किसी भी निजी कंपनी या सरकारी प्रोजेक्ट को जमीन तभी मुहय्या करवाई जाएगी, जबकि वह 70 फीसदी खरीद लेगा। कुछ राजनेता मानते हैं कि इससे किसानों की बार्गेनिंग पॉवर (मोलभाव की शक्ति) बढ़ेगी, परंतु वास्तव में ऐसी स्थिति नहीं बनेगी। दरअसल, कंपनी जमीन मालिक पर उसकी शर्तों पर जमीन देने का दबाव डालेगी और कहेगी कि जमीन दे दो नहीं, तो सरकार जबरदस्ती अधिग्रहित करके हमें सौंप देगी।

भूअधिकार, पुनर्वास और विकास के मौजूदा ढांचे पर लंबे अरसे से जमीनी लड़ाई लड़ रही मेधा पाटकर यह कहते हुए उस प्रारूप पर केंद्रित हो जाती हैं, जो राष्टï्रीय सलाहकार समिति ने वर्ष 2006 में मंजूर किया था। तब समिति की अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं। मेधा ने पत्रकारों को बताया उस प्रारूप में व्यापक विकास नियोजन की नीति थी, जिसे  देश के जनआंदोलनों ने मिलकर तैयार किया था। भूअधिग्रहण कानून में संशोधन के बजाए सरकार को चाहिए कि उस प्रारूप को नीति का रूप दें। इससे देशभर में जारी अंधाधुंध विकास पर नियंत्रण होगा और गांव-शहर में सामंजस्य बना रहेगा। इससे खेत और किसान दोनों ही महफूज रहेंगे।

पैसा फेंको, तमाशा देखो

मेधा के मुताबिक कानून से सिर्फ पूंजीपतियों को फायदा होगा। वे पैसा फेंकेंगे और जमीनें खरीद लेंगे। कुछ राजनेता कानून को लागू करवाने की जल्दी में हैं, ताकि ताबड़तोड़ उन्हें 'राजनैतिक फायदाÓ मिल सके। जनआंदोलन चाहते हैं कि इस विषय पर राष्टï्रीय बहस हो। 

60 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि समाप्त

मेधा का कहना है कि यह मसला सिर्फ जमीन देने-लेने का ही नहीं है। इसका खाद्य सुरक्षा से भी नाता है। वर्ष 1990 से 2005 तक देशभर में 60 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को अधिग्रहित किया गया और इतनी जमीन पर खेती बंद हो गई।

अधिग्रहण करके पटक देते हैं जमीन
अधिग्रहण के नाम पर धोखे भी बहुत होते हैं। विकास योजनाओं के नाम पर जमीन ली जाती है और बाद में योजनाएं ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। मेधा का कहना है इंदौर, भोपाल जैसे शहरों में भी यह हो रहा है। कई बार जिस कार्य के लिए जमीन ली जाती है, वह उस पर किया ही नहीं जाता। 

राहुल गांधी के बयान के बाद चर्चा में आया मुद्दा

  • अंग्रेजों ने 1884 में बनाया था भूमि अधिग्रहण कानून। वर्ष 1994 में इस कानून में संशोधन किया गया, लेकिन खामियों के चलते अधिग्रहण में मनमानी जारी रही।
  • सिंगूर और नंदीग्राम में हिंसक टकराव के बाद भूमि अधिग्रहण कानून (संशोधन) विधेयक 2007 तैयार किया लेकिन खासतौर पर ममता बनर्जी के विरोध की वजह से यह रखा ही रह गया।
  • वर्तमान में उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के कारण यह विषय देश के सामने आया।
  • बुधवार को कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा 'भूमि अधिग्रहण एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। अलीगढ़ में जो हुआ वह अनुचित था। हमें उस पर गौर करने की जरूरत है।Ó
  • राहुल के बयान के बाद ही इस मुद्दे को व्यापक रूप से देखा गया और प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने कहा कि अगले सत्र में कानून में संशोधन विधेयक रखा जाएगा।  
  • विधेयक में जन उद्देश्य की रक्षा, बुनियादी संरचना या आम जनता के लिये उपयोगी किसी परियोजना के लिए अधिग्रहित होने वाली भूमि के रूप में पुनर्परिभाषित करने का प्रस्ताव है। विधेयक कहता है कि जिस अधिग्रहण में व्यापक पैमाने पर विस्थापन होने वाला हो, ऐसे मामले में उसके सामाजिक प्रभाव का आकलन किया जाना चाहिए।

 पत्रिका : २८ अगस्त २०१०

स्वाइन फ्लू संदिग्ध दो महिलाओं की मौत

- एक राजगढ़ निवासी, दूसरी इंदौर
- अधिकृत तौर पर हो चुकी सात मौतें 
 

स्वाइन फ्लू (एच-1 एन-1) के लक्षणों से पीडि़त दो महिलाओं की रविवार को मौत हो गई। दोनों के नाक के द्रव (स्वाब) के नमूने जांच के लिए जबलपुर भेजे गए हैं और रिपोर्ट आना शेष है। मृतक जमीला (30) इंदौर की निवासी है, जबकि कौशल्या बाई (35) रागगढ़ की। दोनों क्रमश: एमवाय अस्पताल और बांबे अस्पताल में भर्ती थीं। एमवायएच में ही भर्ती इंदौर के एक अन्य युवक में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। अगस्त में अब तक इंदौर में 17 रोगियों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई व इनमें से सात की मृत्यु हो गई।

मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. शरद पंडित ने बताया जिन महिलाओं की मौत हुई है, उनमें स्वाइन फ्लू के लक्षण थे। शनिवार को भेजे चार नमूनों में से एक की पॉजिटिव रिपोर्ट आई है, शेष तीन की रिपोर्ट अभी बाकी है। दो नए रोगियों के सेंपल भी जांच के लिए भेजे गए हैं। सूत्रों ने बताया जमीला को रविवार दोपहर ही एमवायएच में भर्ती किया गया था और शाम को उसकी मृत्यु हो गई।

आज से एमवायएच में ओपीडी
सोमवार से एमवायएच के केज्यूलिटी भवन में स्वाइन फ्लू के लिए प्रात: 8 से दोपहर 3 बजे तक विशेष ओपीडी शुरू हो जाएगी। मेडिसिन विभाग के डॉ. धमेंद्र झंवर ने बताया वर्तमान में मेडिसिन के रोगियों के साथ ही फ्लू के संदिग्ध मरीजों को देखा जा रहा है। फिलहाल अस्पताल की पांचवी मंजिल के वार्ड 26 में दो संदिग्ध मरीजों का उपचार जारी है।



 पत्रिका : ३० अगस्त २०१०

दायर बढ़ा रहा स्वाइन फ्लू
- सावधानी ही बचने का सबसे आसान रास्ता
- 29 दिन में मप्र में 18 मौतें
- चार महीने में देशभर में गईं 2024 जानें


हवा के जरिए फैलने वाले एच-1 एन-1 वायरस से होने वाले फ्लू (स्वाइन फ्लू) का दायरा पूरे देश में बहुत तेजी से बढ़ रहा है। चार महीने में देश में इससे 2024 लोगों की मौत हो चुकी है। अगस्त में मप्र में भी इसने पांव पसारे और 29 दिन में ही 18 रोगियों की मृत्यु का कारण बना। मोटे तौर पर रोगियों में से पांच फीसदी की मौत हो रही है।

 चौंकाते आंकड़े
- मई से 22 अगस्त तक देशभर में स्वाइन फ्लू के 38 हजार 730 मरीज सामने आए। इनमें से 2024 की मौत हो गई।
- सबसे अधिक 717 मौतें महाराष्टï्र में हुई। 340 मौतों के कारण गुजरात दूसरे क्रम पर है। मप्र में 45 मौतें हुईं।

अगस्त में मप्र के हाल
जिला             पॉजिटिव       मौत    भर्ती          गंभीर
इंदौर                      17            07        10            04
भोपाल                   21            05        23            15
जबलपुर                 29            05        13            00
रतलाम                   00            00        01            00
उज्जैन                    03            00        02            00ï
ग्वालियर                 01            01        01            00
दमोह                      01            00        01            00
कुल                        72            18        51            19
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डरने से नहीं सावधानी से चलेगी जिंदगी

डॉक्टरों का कहना है फ्लू का वायरस हवा में है और इससे डरने के बजाए सावधानी बरतने की आवश्यकता है। बाजार में कुछ टीके आए हैं, लेकिन हर व्यक्ति के लिए इन्हें लगा पाना संभव नहीं है।

सामान्य सर्दी-खाँसी एवं फ्लू में फक्र
सामान्यत: प्रतिवर्ष ठंड के मौसम में या उसके आसपास फ्लू होता है। सामान्य सर्दी-खाँसी के अलावा फ्लू में बुखार, हाथ-पैरों कमर में दर्द, सिर दर्द, थकावट आदि तेज लक्षण साथ में होते हैं। लक्षणों के आधार पर दोनों में अंतर करना संभव नहीं है, लेकिन स्वाइन फ्लू से पीडि़त व्यक्ति के संपर्क में आने से आशंका बढ़ जाती है।

सूअर (स्वाइन) से नहीं ताल्लुक
वायरस के संक्रमण के शुरुआती दौर से ही यह भ्रम है कि यह वही फ्लू है जो सूअरों में होता है। लेकिन असल में यह नया वायरस है। अत: सूअर के संपर्क में आने से या उसका मांस खाने से यह नहीं फैलता है।

ऐसे फैलता है स्वाइन फ्लू
1. संक्रमित व्यक्ति के खाँसने या छींकने से।
2. उन वस्तुओं को हाथ लगाने से जिसे संक्रमित व्यक्ति ने छुआ हो। संक्रमित व्यक्ति स्वयं के लक्षण आने के एक दिन पहले से सात दिन बाद तक इसे फैला सकता है।

खुद को बचाने के दस तरीके

1. जितना संभव हो हाथ साबुन से धोएँ।
2. यदि साबुन उपलब्ध न हो तो अल्कोहल आधारित क्लिनर से हाथ धोएँ।
3. संक्रमित व्यक्ति या ऐसा व्यक्ति जिसे स्वाइन फ्लू की आशंका हो, उससे दूरी रखें (कम से कम 6 फुट)।
4. यदि आपको स्वयं को स्वाइन फ्लू जैसे लक्षण हैं, तो घर में रहिए।
5. यदि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना भी पड़ता है, तो फेस मास्क या रेस्पिरेटर पहनें।
6. स्तनपान कराने वाली माताएँ स्वयं के संक्रमित होने पर ब'चे को दूध न पिलाएँ।
7. खाँसी या छींक आने पर टिशु पेपर का इस्तेमाल करें एवं उसे तुरंत डस्टबीन में फेंकें।
8. भीड़ वाली जगह पर न जाएँ।
9. पानी अधिक मात्रा में पिएँ।
10. भरपूर नींद लें, इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

स्वाइन फ्लू से एक और मौत

- शाजापुर से इलाज के लिए दो दिन पहले आए थे इंदौर
- मौत का आंकड़ा हो गया सात


स्वाइन फ्लू (एच1 एन1) से शनिवार को 35 वर्षीय एक युवक की मौत हो गई। वे शाजापुर निवासी थे और दो दिन पहले उन्हें इंदौर के बांबे अस्पताल में भर्ती हुए थे। इस मौत के बाद स्वाइन फ्लू से इंदौर में मृतकों की संख्या बढ़कर सात हो गई है। उधर, इसी रोग के पीडि़त चार नए लोग सामने आए हैं। विभिन्न अस्पतालों में उपचार जारी है।  

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. शरद पंडित ने बताया शाजापुर के सत्येंद्र को दो दिन पहले बांबे अस्पताल में भर्ती किया गया था। शनिवार को उनकी मौत हो गई। इसी अस्पताल में स्वाइन फ्लू के लक्षणों वाले तीन नए मरीज आए हैं। उनके नाम के द्रव (स्वाब) के सेंपल जबलपुर भेजे गए हैं। संदिग्धों में दो महिलाएं हैं। एक राजगढ़ की हैं, जिनकी उम्र 35 है, जबकि दूसरी 24 वर्षीय हैं व धार जिले से हैं। एक अन्य युवक की उम्र 30 है और वे इंदौर के सुखलिया में रहते हैं। अस्पताल प्रबंधक राहुल पाराशर ने बताया सत्येंद्र के शव को शाजापुर भेज दिया गया है। दूसरे मरीजों का ïतय प्रोटोकॉल के अनुसार उपचार जारी है।

अब तक 16 पॉजिटिव
शनिवार को आई रिपोर्ट के बाद स्वाइन फ्लू के रोगियों की अधिकृत संख्या 16 हो गई है। स्वास्थ्य विभाग अब तक 25 मरीजों के नाक से द्रव (स्वाब) के नमूने जबलपुर की लेब में भेज चुका है। पॉजिटिव मरीजों में से सात की मौत हुई है। इनमें से एक इंदौर, जबकि शेष आसपास के जिलों से है।

एमवायएच में सोमवार से ओपीडी 
स्वाइन फ्लू के बढ़ते मरीजों को देखते हुए एमवाय अस्पताल में स्वाइन फ्लू की स्क्रीनिंग के लिए सोमवार से ओपीडी शुरू होगी। अगर किसी को स्वाइन फ्लू की जरा भी आशंका हो तो वह एमवायएच में जांच करवा सकता है। सूत्रों का कहना है कि ड्यूटी के लिए पैरामेडिकल स्टाफ का बंदोबस्त नहीं हो सका है। 


 
पत्रिका : २९ अगस्त २०१०

निगम सभापति शंकर यादव केस में 6 सितंबर को सुनवाई

गुल्टू हत्याकांड में नगर निगम सभापति शंकर यादव व उनके दोनों भाइयों राजू व दीपक को आरोपी बनाए जाने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट इंदौर में अब 6 सितंबर को सुनवाई होगी। जस्टिस पीके जायसवाल की एकल पीठ के समक्ष शुक्रवार को परिवादी ने कुछ समय मांगा था।
 यादव की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट आनंद मोहन माथुर व अभिनव धानोदकर उपस्थित हुए, जबकि परिवादी मृतक की मां बसंतीबाई की ओर से एडवोकेट एम. सक्सेना मौजूद थे। उल्लेखनीय है कि गुल्टू हत्याकांड में बसंतीबाई के आवेदन पर सेशन कोर्ट ने शंकर यादव सहित तीनों भाइयों को आरोपी बनाते हुए दो बार गिरफ्तारी वारंट जारी किए किंतु पुलिस उन्हें ढूंढ नहीं सकी। अदालत ने तीसरी बार वारंट जारी करते हुए एक सितंबर तक पेश करने के आदेश दिए हैं।

उधर हाईकोर्ट के फैसले पर ही सभापति का भविष्य निर्भर है। महापौर कृष्णमुरारी मोघे के साथ ही भाजपा को भी इस फैसले का बेसब्री से इंतजार है। फैसला के आधार पर यादव को लेकर पार्टी अगली कार्रवाई करेगी। हालांकि पार्टी के यादातर नेता उन्हें हटाए जाने के पक्ष में है। 


मोघे के चुनाव का मामला हाईकोर्ट पहुंचा

महापौर कृष्णमुरारी मोघे के चुनाव को चुनौती देने का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। हाईकोर्ट ने जिला निर्वाचन अधिकारी और सेशन कोर्ट में केस दायर करने वाले अजय सेंगर को नोटिस जारी किया है। सेंगर ने सेशन कोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी थी और वहां उनकी अर्जी ग्राह्य हो गई थी। हाईकोर्ट में मोघे की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट शेखर भार्गव और एडवोकेट अमित उपाध्याय ने पैरवी की। एडवोकेट उपाध्याय ने बताया मूल अर्जी के बाद कुछ ओर बातें जोड़ दी गई, इसी को लेकर याचिका दायर की गई है। सेंगर के मुताबिक मतपत्रों की गणना में गड़बड़ी हुई, इसलिए मोघे निर्वाचित हुए।

पत्रिका: २८ अगस्त २०१० 

राजस्थान के फैसले से मध्यप्रदेश को रोजगार

 - वहां लगा प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध, यहां उपजा कागज की थैलियों का धंधा
- राजस्थान से उठी मांग, जितना माल तैयार हो, सब भेज दो



राजस्थान के एक फैसले से मध्यप्रदेश के हजारों हाथों को काम मिल गया। हाथों से कागज की थैली बनाने में माहिर मप्र के बाशिंदों के पास इन दिनों फुर्सत नहीं है, क्योंकि उन्हें कई सौ क्विंटल माल बनाकर पड़ोसी राज्य को भेजना है। वहां इसी महीने की पहली तारीख से प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगा दी गई है।

राजस्थान के फैसले से मप्र की औद्योगिक नगरी इंदौर में मृत हो चुके कागज की थैली के कारोबार को एक तरह से नई जान मिल गई है। आजाद नगर निवासी मुमताज बी कहती हैं करीब 15 बरस पहले थैलियां बनाते थे, तब हमें एक या डेढ़ रुपए मिलता था, अब पांच से सात रुपए किलो मिल रहा है। मांग का इतना दबाव है कि फुर्सत ही नहीं मिल रही है।

एक ही मशीन, कितना लोड सहे 
इंदौर में थैलियां बनाने की एक ही मशीन है। यह इन्वोफ्रेंडली पेपर बैग कंपनी में लगी है। इसके सुपरवाइजर सीएच विश्वकर्मा ने बताया उदयपुर, चित्तौढ़, कोटा, बांसवाड़ा सारे शहरों से खाकी थैलियों की इतनी मांग आ रही है कि काम करने वाले कम पड़ रहे हैं। करीब 20 टन का आर्डर पेंडिंग है। मशीन एक ही है और इसकी भी सीमित क्षमता है। फिलहाल करीब तीन क्विंटल थैलियां रोज बना रहे हैं। उन्होंने बताया मशीन पर केवल कागज रोल से ही थैलियां बन सकती हैं।

घर ही नहीं दुकानों पर शुरू हो गया निर्माण 
आमतौर पर थैलियां महिलाओं और ब'चों द्वारा घरों पर बनाई जाती हैं, लेकिन मांग को देखते हुए रद्दी के कुछ व्यापारियों यह काम दुकानों पर ही शुरू कर दिया है। सिंधी कॉलोनी के अग्रसेन वेस्ट पेपर के संचालक अशोक अग्रवाल ने बताया नब्बे के दशक में भी मैं थैलियां बनाया करता था। मैग्जीन, शेयर पेपर और चिकने कागजों की थैलियों की विशेष मांग है। एक व्यक्ति एक दिन में 10 से 12 किलो थैलियां बना लेता है। 






घोषणा तो यहां भी हुई, पर अमल नहीं
नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने पिछले दिनों इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में प्लास्टिक की थैलियों के पूर्ण प्रतिबंध की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक इसे अमल में नहीं लाया जा सका है।


दुकानदारों के लिए फायदेमंद हैं ये थैलियां


प्लास्टिक की थैलियां सामान के साथ तोलने में चली जाती हैं, लेकिन उसका वजन नाममात्र का ही रहता है। कागज की थैली में सामान देने पर दुकानदार को फायदा होता है, क्योंकि जिस भाव में थैली मिलती है उससे ज्यादा में वह तुल जाती है।
- नारायण कालरा, संचालक, जेके वेस्ट पेपर

मप्र में तो कागज की थैलियों मांग नहीं है। यहां तो सूखी चाय और कचोरी समोसे वाले ही इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि इंदौर में खाकी कागज की थैली बनाने वाली एकमात्र यूनिट भी ऑक्सीजन पर थी। अब उसे ताकत मिलेगी।
- अशोक गोयल, संचालक, अशोक ट्रेडर्स

कागज की थैली का काम शुरू करने वाले लोग डावांडोल हैं। उन्हें डर है कि कहीं राजस्थान सरकार फैसला वापस न ले ले। ऐसा हुआ तो वे बेरोजगार हो जाएंगे।
- राजेश इरानी, मैनेजर, न्यू गुरुनानक ट्रेडर्स 


पुराने कारोबार का नया उदय
'जबरदस्त मांग के कारण भावों में पांच रुपए तक बढ़ोतरी हो गई है। अखबार की रद्दी के दाम भी बढ़ा दिए हैं। दरअसल, राजस्थान में थैली का उद्योग नहीं है, इसलिए यहां से माल जा रहा है। भीलवाड़ा, चित्तौढ़, उदयपुर, कोटा, बांसवाड़ा, जयपुर तक से थैलियों के लिए फोन आ रहे हैं। वहां की सरकार के निर्णय से मप्र में बंद हो चुके कारोबार का नए सिरे से उदय हो रहा है। इससे हजारों लोगों का रोजगार का अवसर मिल गया है।Ó
- प्रवीण पाटनी, अध्यक्ष, इंदौर प्लास्टिक पैकिंग मटेरियल निर्माता एवं विक्रेता संघ


 
पत्रिका : २८ अगस्त २०१०

टेलीग्राम को माना जनहित याचिका

- जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के खिलाफ मप्र के चीफ जस्टिस को इंदौर से भेजा था तार

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सयैय्द रफत आलम ने गुरुवार को एक टेलीग्राम को जनहित याचिका माना है। उन्हें यह टेलीग्राम इंदौर के न्यायिक कार्यकर्ता सत्यपाल आनंद ने पूरे राज्य में जारी जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के बारे में भेजा था। आनंद ने कोर्ट से हड़ताली डॉक्टरों के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस दायर करने की मांग की है। टेलीग्राम को याचिका मानने का मध्यप्रदेश में संभवत: यह पहला मामला है।

 बुधवार प्रात: 9.15 बजे आनंद ने चीफ जस्टिस को एक तार भेजा था। इसमें उन्होंने मांग की थी डॉक्टरों की हड़ताल से आम जनता को संविधान में प्रदत्त जीवन सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार खतरे में आ गया है। डॉक्टरों को तत्काल सेवा में बुलाया जाए और अस्पतालों की सेवाएं बहाल की जाए। गुरुवार दोपहर 4 बजे आनंद को हाईकोर्ट से सूचना मिली कि उनके तार को लेटर पीटिशन (पत्र याचिका) माना गया है। इस पर शुक्रवार को जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई होगी।

जा नहीं पाएंगे आंनद
आनंद ने 'पत्रिकाÓ को बताया आंखों की बीमारी के कारण मैं जबलपुर नहीं जा सकूंगा। मैंने कोर्ट से आग्रह किया है मेरी ही जनहित याचिका (8340/09) में 18 नवंबर 2009 को हुए आदेश के मुताबिक राज्य सरकार और डॉक्टर को नोटिस जारी किए जाएं। उन्होंने अगली सुनवाई इंदौर हाईकोर्ट में ही रखने का निवेदन भी कोर्ट से किया है।

लोगों के लिए खुला रास्ता
हाईकोर्ट के इस कदम से लोगों के लिए याचिका दायर करने का एक ओर रास्ता खुल गया है। अखबार, पोस्टकार्ड और किसी पत्र के जरिए तो पहले भी पत्र याचिकाएं मंजूर होती रही हैं। आनंद ने बताया मुझे हाईकोर्ट के इस फैसले की खुशी है, क्योंकि इससे न्यायिक क्षेत्र में एक नई शुरुआत होगी। किसी के मौलिक अधिकार का हनन होता है, तो उसे हाईकोर्ट में टेलीग्राम के जरिए सूचना भेजना चाहिए, ताकि न्यायपालिका उस दिशा में कदम उठा सके।

पत्रिका : २७ अगस्त २०१० 



जूडॉ हड़ताल पर कोर्ट ने सरकार से शपथपत्र पर मांगा जवाब
- टेलीग्राम पर मंजूर हुई जनहित याचिका पर जबलपुर में सुनवाई


सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हुई जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के विरोध में टेलीग्राम के जरिए मंजूर हुई जनहित याचिका पर जबलपुर हाईकोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने हड़ताल पर राज्य सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। सरकार को यह जवाब शपथपत्र पर देना होगा।

हड़ताल से लोगों की जीवन सुरक्षा के अधिकार के खतरे में पडऩे को आधार बनाकर आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने बुधवार को मप्र के चीफ जस्टिस को टेलीग्राम भेजकर सरकार को निर्देश देकर तत्काल डॉक्टरों को बुलाने का आग्रह किया था। टेलीग्राम को गुरुवार को याचिका माना गया और शुक्रवार को चीफ जस्टिस सयैय्द रफत आलम और आलोक अराधे की युगलपीठ में सुनवाई हुई।

केस की जानकारी देरी से मिलने और बीमारी के कारण आनंद केस के दौरान उपस्थित नहीं हो सके। कोर्ट ने भी यह बात रिकॉर्ड पर ली कि आनंद को सूचना देरी से मिली। आनंद ने 'पत्रिकाÓ को बताया उन्हें खुशी है कि हड़ताल समाप्त होने के बाद भी कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की और सरकार को नोटिस दिया। अब सरकार को यह बताना होगा कि किन कारणों से हड़ताल हुई और लोगों के मौलिक अधिकारों का किन परिस्थितियों में उल्लंघन हुआ।

पत्रिका : २८ अगस्त २०१०

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

पुलिस को दो हिस्सों में बांट दें

- जनहित याचिका पर मप्र हाईकोर्ट का अहम फैसला
- एक हिस्सा करे अनुसंधान, दूसरा देखे कानून-व्यवस्था


हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक अहम फैसले में सरकार को आदेश दिया है कि राज्य की पुलिस को दो हिस्सों में बांट दिया जाए। एक हिस्सा अपराधों का अनुसंधान करे और दूसरा कानून व्यवस्था संभाले। कानूनविद् मानते हैं, इससे अपराधों पर नियंत्रण होगा और कमजोर चार्जशीट का फायदा उठाकर कानून से छूट नहीं पाएंगे।

जस्टिस एसएल कोचर और शुभदा वाघमारे की युगलपीठ ने यह फैसला एडवोकेट संजय मेहरा की जनहित याचिका पर दिया। अनुसंधान करने वाले हिस्से की जिम्मेदारी तय करते हुए कहा है कि वह थानों में दर्ज होने वाले अपराधोंं का गहराई से विश्लेषण करे और कोर्ट में उपस्थित होकर अपराधी को अंजाम तक पहुंचाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह भी कहा है कि पुलिस सुधार और अपराध नियंत्रण के संबंध में वे सुप्रीम कोर्ट में लंबित प्रकाशसिंह एवं अन्य की याचिका में पक्षकार बन सकते हैं। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट सुनील जैन ने भी पैरवी की। बढ़ते अपराध और बिगड़ेल ट्रैफिक इंतजाम के मुद्दे पर 16 अप्रैल 2008 को दायर इस याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस आरएस गर्ग और एएम सप्रे की युगलपीठ नाराजगी जता चुके हैं। 

सुप्रीम कोर्ट के भी हैं आदेश
एक लंबित याचिका में सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को निर्देश दे चुका है कि पहले चरण में 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में पुलिस को दो हिस्सों में बांटकर कार्य किया जाए, ताकि अपराध काबू में रहें।

पुलिस बल की कमी का शपथ पत्र
जनहित याचिका में सुनवाई के दौरान 2008 में तत्कालीन इंदौर पुलिस महानिरीक्षण अनिल कुमार ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र दिया था कि राज्य में पुलिस बल की भारी कमी है और कई थानों में बेहद कम पुलिसकर्मियों के साथ कार्य किया जा रहा है।

इंदौर में हो चुकी प्रयोग की घोषणा
इंदौर में प्रयोग के बतौर पुलिस के विभाजन के संबंध में दो माह पहले ही घोषणा हो चुकी है। गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने इंदौर में कहा था कि सेंट्रल कोतवाली, एमजी रोड और तुकोगंज थानों में यह व्यवस्था शुरू की जाएगी। इसके बाद दूसरे थानों में भी इसे अमल में लाएंगे।

पत्रिका : २४ अगस्त २०१०

आवाज बंद करने का सरकारी इंतजाम

निगम का गर्वनेंस ?
पड़ोसी के अतिक्रमण की लोकायुक्त में शिकायत की तो मामला रफादफा करने की मांग से साथ खड़ी की अड़चनें 
मोती तबेला की अवैध इमारत

शहरी विकास की योजनाओं के लिए केंद्रीय स्तर पर गठित एडवायजरी कमेटी की अध्यक्ष ईशा जज आहलुवालिया ने दो दिन पहले इंदौर नगरनिगम को सीख दी थी कि गुड गर्वनेंस (सुशासन) के बगैर न तो बड़े प्रोजेक्ट मिलेंगे और न ही लोगों की जिंदगी आसान होगी। हम आपको बता रहे हैं एक उदाहरण जो निगम गर्वनेंस का आलम बयां करता है। यह व्हिसल ब्लोअर को परेशान करने का मामला भी है.

खबर के पात्र का नाम मोहम्मद इस्हाक खान है। वे 9/2, मोतीतबेला में रहते हैं। उन्होंने कुछ वर्ष पहले अपने पड़ोसी इज्जत नूर पिता एहमद नूर (10/2, मोती तबेला) द्वारा नगरनिगम और सार्वजनिक रास्ते की भूमि पर अतिक्रमण करने पर आपत्ति ली थी। मामले को वे लोकायुक्त तक ले गए हैं। अब खुद परेशान हैं, क्योंकि निगम के अफसरों ने साफ शब्दों में कह दिया है हमारे तंत्र के खिलाफ की शिकायतों को वापस लो तभी आपको 'चैनÓ देंगे। वे निराश होने लगे हैं क्योंकि उनके साथ ही उनके भाई के मकान का नक्शा भी निगम के अफसरान ने रोक दिया है।

आधारहीन नहीं थी आवाज
इस्हाक खान के पास शिकायत के कई मजबूत आधार हैं। उन्होंने 'पत्रिकाÓ को बताया इज्जतनूर ने 16 सितंबर 2003 को सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने के इरादे से निगम के अफसरों से सांठगांठ करके नक्शा पास करवाया और मकान व दुकान बना लिए। जिस जमीन पर निर्माण हुआ है, उसे स्वयं इज्जतनूर पूर्व में मंजूर अपने तीन नक्शों में (23 मार्च 1977, 5 अगस्त 1977 और 2 जून 1995 को) सार्वजनिक रास्ते की बता चुके हैं। अफसरों ने नक्शा पास करके सरकार को राजस्व की चपत लगाई है। लोकायुक्त ने तीन बिंदुओं पर जांच की और यह पाया कि झूठे दस्तावेजों के आधार पर इज्जतनूर ने नक्शा पास करवाया।

शिकायत होते ही गुम हो गई फाइल
निगम के अधिकारियों ने लोकायुक्त के समक्ष बयान में कहा कि रिकार्ड 30 वर्ष पुराना है, इसलिए बहुत खोजने के बाद भी उपलब्ध नहीं हो रहा है। दूसरी ओर शिकायत के ठीक पहले इस्हाक खान ने सूचना का अधिकार में पूरी फाइल की प्रमाणित प्रतिलिपि हासिल कर ली थी। खान कहते हैं यूं ही सरकारी रिकॉर्ड गायब होता रहा तो करोड़ों की सरकारी जमीन निजी लोगों के हाथों में जाने से कोई नहीं रोक सकता।


फाइल पर लिखा है 'मिंदोलाजीÓ 
सूचना का अधिकार में प्राप्त एक प्रमाणित दस्तावेज में अतिक्रमण करने वाले इज्जतनूर के नक्शे की फाइल के सबसे ऊपर वाले पेज पर 'मिंदोलाजीÓ लिखा है। लोकायुक्त को दी शिकायत में इस्हाक खान ने इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि संभवत: यह विधायक रमेश मेंदाला की ओर इशारा करता है और हो सकता है, उनके प्रभाव में ही मेरे साथ निगम द्वारा यह व्यवहार किया जा रहा है।



यूं कर रहे शिकायतकर्ता को परेशान
इस्हाक खान
  • इस्हाक खान के 70 वर्षीय भाई मोहम्मद नूर ने 9/2 मोती तबेला में मकान निर्माण के लिए नक्शा मंजूर करवाने की निगम में अर्जी दी, जिसे मंौखिक रूप से यह कहकर रोक दिया गया कि आपके छोटे भाई इस्हाक ने निगम के खिलाफ शिकायतें की है। नूर ने 22 जुलाई को न्यायिक शपथ पत्र पेश कर निगम को कहा कि जमीन पर मेरा एकमात्र स्वामित्व है और मेरा कोई न्यायिक प्रकरण भी नहीं चल रहा है, इसलिए नक्शा मंजूर किया जाए। फिर भी सुनवाई नहीं हुई तो अब नूर ने चेतावनी दी है कि सुनवाई नहीं होने पर गांधी प्रतिमा पर नंगे बदन धरना दूंगा।
  • इस्हाक खान ने जमीन नामांतरण की एक अर्जी 2006 में निगम में दाखिल की थी। उन्हें भी कहा गया कि शिकायतें वापस लो, तो ही दाखिला मंजूर होगा। खान ने इस बात की शिकायत मानवाधिकार आयोग को भी कर दी है।
  • इस्हाक खान ने सूचना का अधिकार में 1 जुलाई 2010 को इज्जतनूर के खिलाफ की शिकायतों पर की गई कार्रवाइयों की जानकारी मांगी तो उन्हें पत्र भेजा गया कि आपके मकान 9/2, मोती तबेला की फाइल आकर देख लें। खान का कहना है यह तो मैंने मांगा ही नहीं था। 


इज्जतनूर और इस्हाक खान का मामला कॉफी पुराना है। मेरी जानकारी में भी हाल ही यह केस आया है। विधिक राय लेकर इस पर शीघ्र ही उचित कार्रवाई की जाएगी।
- अवधेश जैन, भवन निरीक्षक, हरसिद्धी जोन 


पत्रिका : २४ अगस्त २०१०
 

बुधवार, 25 अगस्त 2010

मध्यप्रदेश में व्हीसल ब्लोअर पर सरकारी तंत्र का हमला


Dr. Aanad Rai


व्हीसल ब्लोअर यानी भ्रष्टाचार या गड़बडिय़ों को देखकर सरकार को सचेत करने वाला बंदा। लुप्त होती जा रही 'व्हीसल ब्लोअरÓ की इस प्रजाति को बचाने के लिए भारत सरकार संजिदा दिखती है और यही वजह है कि एक ऐसे कानून का मसौदा तैयार किया जा चुका है जिससे यह 'कौमÓ संरक्षित रहेगी। परंतु, मध्यप्रदेश में यह कौम खतरे में है। 'बीमारूÓ की श्रेणी से उबर नहीं पा रहा मध्यप्रदेश 'संगठित और सरकारी भ्रष्टाचारÓ की गिरफ्त में है। ब्यूरोक्रेट जोशी दंपत्ति के पास से मिली अरबों की चल-अचल संपत्ति से इस धारणा पर मुहर भी लगी है। बावजूद इसके राज्य में 'सचेतकÓ को सुरक्षित रखने की कोई कोशिश नजर नहीं आती।

ताजा उदाहरण, एक सरकारी डॉक्टर का है, जिसका नाम आनंद राय है। वे 21 अगस्त की रात तक इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में सिनीयर रेसीडेंट थे। उस रात एक बजे तक चिकित्सा शिक्षा विभाग भोपाल और कॉलेज डीन के कक्ष में समानांतर बैठकें होती रहीं। आखिर में हुआ कि राज्य में जारी जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल को उकसाने के आरोप में डॉ. राय को बर्खास्त कर दिया जाए। आरोप का आधार एक खबर को बनाया गया, जिसमें डॉ. राय ने इंदौर जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन का संरक्षक होने के नाते कहा था 'मैं जूडॉ की मांगों का नैतिक समर्थन करता हूं।Ó 

सवाल है, फिर डॉ. राय को बगैर नोटिस दिए, देर रात तक बैठक करके ताबड़तोड़ बाहर क्यों किया गया? क्या  चिकित्सा शिक्षा विभाग या कॉलेज प्रबंधन की डॉ. राय से जाति दुश्मनी है? क्या डॉ. राय के कहने भर से राज्यभर के जूनियर डॉक्टर हड़ताल कर रहे हैं? क्या डॉ. राय का एक बयान ही उनकी बर्खास्तगी का कारण है या बर्खास्तगी की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार थी ? क्या डॉ. राय व्हिसल ब्लोअर हैं, इसलिए उन्हें सिस्टम से बाहर कर दिया गया?

सवालों का जवाब तलाशने के लिए फ्लैश बैक में जाना होगा। 15 अक्टूबर 2007 को मप्र हाईकोर्ट जस्टिस आरएस झा ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को अंतरिम आदेश दिया कि एमजीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में सिनीयर रेसीडेंट के पद पर भर्ती के लिए डॉ. आनंद राय की अर्जी भी मंजूर की जाए। इसके बाद ही उन्हें राहत मिली। पहले विभाग का तर्क था कि डॉ. राय ने पीजी डिप्लोमा किया है, इसलिए उन्हें पात्रता नहीं है। डॉ. राय ने भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट में केस दायर किया था। बहरहाल, साक्षात्कार में योग्यता के आधार पर उन्हें चयनित कर लिया गया। इसके बाद यह कहकर नियुक्ति को रोक दिया गया कि याचिका हाईकोर्ट में खत्म नहीं हुई है। डॉ. राय फिर से जबलपुर हाईकोर्ट की शरण में गए। जस्टिस दीपक मिश्रा व आरके गुप्ता की युगलपीठ ने आदेश दिया कि डॉ. राय की याचिका समाप्त हो गई है। मजबूरन, विभाग को 'मुंह बिगाड़करÓ डॉ. राय को नौकरी पर रखा।

डॉ. राय वर्ष 2005 से 07 तक पीजी छात्र थे और तब जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन इंदौर के अध्यक्ष, प्रदेश के महासचिव और प्रवक्ता रहे। उनके दौर में भी हड़तालें हुई और वे सरकार के निशाने पर आए गए। सीनियर रेसीडेंट बनने के बाद उन्हें सिस्टम की खामियां महसूस हुई। उन्हें लगा कि मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में हड़ताल के दौरान भी व्यवस्थाएं माकूल रखने के लिए एमसीआई मापदंड के मुताबिक हर कॉलेज में सीनियर व जूनियर रेसीडेंट की पर्याप्त भर्ती की जाना चाहिए। इसे लेकर उन्होंने 'सूचना का अधिकारÓ का हथियार अपनाया और केंद्र व राज्य सरकार से हजारों जानकारियां बटौरी। इस दौरान ही उनकी विभाग के संचालक, प्रमुख सचिव और मंत्री से वैचारिक टकराहट शुरू हुई। उनके तर्कों को कोई मानने को तैयार नहीं हुआ तो वे जबलपुर हाईकोर्ट पहुंच गए। वहां 6302/2010 नंबर से एक याचिका दायर की, जिसमें रेसीडेंट डॉक्टरों की संख्या, अधिकारों और नियमित नियुक्ति के मामले उठाए गए हैं। याचिका में हाईकोर्ट से दो बार विभागीय अधिकारियों को दो बार नोटिस भी हो भी हो चुके हैं। यह और बात है कि सरकार ने अब तक जवाब नहीं दिया है।

तीन वर्ष में ही डॉ. राय एक व्हिसल ब्लोअर के रूप में उभरे हैं। वे अब तक चिकित्सा शिक्षा विभाग के डॉक्टरों की चल-अचल संपत्ति, राज्य के मेडिकल कॉलेजों की एमसीआई मान्यता, राज्य में स्वास्थ्य नीति की कमी, मेडिकल यूनिवर्सिटी की गैरमौजूदगी के साथ ही सीनियर डॉक्टरों की प्रायवेट प्रेक्टिस, ड्यूटी ओवर्स में डॉक्टरों का ड्यूटी से गायब रहना, सरकारी अस्पतालों में गरीब मरीजों की अनदेखी, मरीजों को प्रायवेट लेबोरेटरी व अस्पतालों में रैफर करना, ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में पसरा भ्रष्टाचार जैसे कई मसले उठा चुके हैं। उनका हथियार सूचना का अधिकार रहा है।

जुलाई 2010 में डॉ. आनंद राय ने बहुराष्टï्रीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर परीक्षण (ड्रग ट्रायल) का खुलासा किया। इसके लिए उन्होंने मीडिया और विधायकों को जरिया बनाया। मीडिया ने खबरें प्रकाशित की और विधायकों ने विधानसभा में सरकार से सवाल पूछे। करोड़ों अरबों के ड्रग ट्रायल के खेल की पोल खुलने से पूरे राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं और डॉक्टरों के 'नोबलÓ चरित्र पर प्रश्नचिह्न उठ खड़ा हुआ। सरकार अनुत्तरित रही और राज्य के आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो व लोकायुक्त ने ट्रायल में लिप्त कुछ नामचीन डॉक्टरों की जांच शुरू कर दी। जैसा कि राज्य में होता आया है, सरकार ने लीपापोती शुरू कर दी। मरीजों और सरकार की आंखों में साफ-साफ धूल छोंकने वाले डॉक्टरों को 'शोधार्थीÓ (रिसर्चर) बताया गया। हालांकि, सरकार का यह कृत्य जनता को हजम नहीं हो रहा है। डॉ. राय स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति नाम के एक संगठन से भी जुड़े हैं। इसी संगठन के जरिए उन्होंने 'ट्रायलÓ मुद्दे को उठाया है।

ड्रग ट्रायल के बाद से ही पूरा सरकारी तंत्र डॉ. राय को 'निपटानेÓ की जोड़तोड़ में था। अगस्त में शुरू हुई जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल में तंत्र कामयाब हो गया। डॉ. राय इंदौर जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के संरक्षक हैं और इसी नाते हड़ताल के दौरान उन्होंने एक-दो बार मीडिया में कहा था 'मैं जूडॉ की मांगों का नैतिक समर्थन करता हूं।Ó बस फिर क्या था, इस बयान को आधार बनाकर उन्हें 'बाहरÓ का रास्ता दिखा दिया। हद तो यह हो गई कि उनकी बर्खास्तगी को एक विज्ञापन के जरिए प्रमुख अखबारों में प्रकाशित करवाया गया, जिसमें संभवत: कुछ लाख रुपए खर्च हुए होंगे। 

 प्राकृतिक न्याय के तहत डॉ. राय ने फिलहाल कॉलेज को एक नोटिस दिया है, निश्चत तौर पर इसका उन्हें इसका नकारात्मक जवाब मिलेगा। इसके बाद ही वे कोर्ट की दहलीज पर जाकर न्याय मांग सकते हैं। खुशी इस बात की है कि डॉ. राय निराश नहीं हुए हैं। उनका कहना है मुझे सिर्फ और सिर्फ ड्रग ट्रायल खुलासे के कारण हटाया गया है। सरकार संदेश देना चाहती है कि सरकारी तंत्र के भीतर जो व्यक्ति 'आवाजÓ उठाऐगा, उसे इसी तरह दबा दिया जाएगा। मैं इससे घबराने वाला नहीं हूं, न्याय पाकर ही दम लूंगा।  

इस जिंदा उदाहरण से साबित होता है ...
मध्यप्रदेश में व्हीसल ब्लोअर सरकारी तंत्र के निशाने पर हैं।

सोमवार, 23 अगस्त 2010

व्हिसल ब्लोअर की सफाई ?

चिन्मय मिश्र 

ये  किस तरह का समय है, जब पेड़ों के बारे में बात करना लगभग अपराध है।

मध्यप्रदेश में चल रही जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल की आड़ में डॉ. आनंद राय की बर्खास्तगी उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए चेतावनी है, जो प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। डॉ. राय ने इंदौर के महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय व महाराजा यशवन्त राव अस्पताल में बिना अनुमति के बहुराष्ट्रीय दवाई कंपनियों के लिए किए जा रहे 'ड्रग ट्रायलÓ का पर्दाफाश किया था। उनकी बर्खास्तगी के आदेश को मीडिया के लिए भी एक चेतावनी माना जा सकता है। क्योंकि डॉ. राय द्वारा किए गए रहस्योद्घाटन को अंतत: मीडिया ने ही व्यापक समाज तक पहुंचाया था। इसलिए यह आदेश मीडिया को भी उसकी हैसियत बताने का तरीका है कि वे भले ही समाज हित के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दें, लेकिन प्रशासन वही करेगा जो कि उसके स्वयं के हित में है।

इस आदेश का अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि हड़ताल की वजह से जहां अन्य जूनियर डॉक्टर्स को 15 दिनों के लिए निलंबित किया गया है, वहीं डॉ. राय के अनुसार उन्होंने हड़ताल की अवधि में भी ओपीडी और इमरजेंसी विभाग में अपनी सेवाएं दी थी। इसके बावजूद सूत्रों का कहना है कि उन्हें 'बेहतरीÓ के लिए बर्खास्त किया गया है। सवाल उठता है कि यह किसकी बेहतरी के लिए किया गया है? हड़ताल के दौरान भी अपना काम करना क्या 'बेहतरीÓ की श्रेणी में नहीं आता? दरअसल बात बहुत दूर तक जा रही है। एक ओर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली तो चर्चा में थी ही, वहीं दूसरी ओर मई में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा चार बहुराष्ट्रीय दवाई कंपनियों  नोवारिटस, बीएमएस, इलिलिली और फाइजर के सर्वोच्च अधिकारियों के साथ बैठक में भारतीय दवाई निर्माताओं का मानना है कि देश में निर्मित 'जेनेरिकÓ दवाइयों के कारण भारत व तीसरी दुनिया के देशों और कुछ हद तक विकसित देशों में भी दवाई की कीमतें काबू में रहती हैं। यदि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बात मान ली जाती है, तो आम आदमी को जीवनरक्षक दवाइयों के लिए काफी अधिक मूल्य देना होगा।

इसी दौरान मंदसौर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के लिए सरकारी तौर पर चंदा इक_ा करना भी गंभीर मामला है। कहा जा रहा है कि पिछले वर्ष तत्कालीन कलेक्टर ने 'मनोकामना अभिषेक योजनाÓ के माध्यम से 4.5 करोड़ रुपये इक_े किए थे और इस बार तो जिलेभर में 'मनोकामना अभिषेक वर्ष 2010Ó समारोहित कर पांच करोड़ रुपये इक_े करने की योजना है। इस हेतु सरकारी अधिकारियों को नोडल ऑफिसर नियुक्त कर दिया गया है और रसीद कट्टे छपवाकर 'टारगेटÓ तय कर वितरित कर दिए गए हैं।

सरसरी तौर पर देखने में उक्त दोनों मामलों में कोई समानता नजर नहीं आएगी, परन्तु गहराई से देखने पर समझ में आता है कि दोनों मामलों में शासन-प्रशासन अपनी तरह से मूल्य व मानक तय कर रहा है। 'व्हिसल ब्लोअरÓ बिल को अभी कैबिनेट से ही सहमति मिली है, अतएव प्रशासन में रहकर भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की अभी खैर नहीं है। इस अधिनियम के अभाव में सूचना का अधिकार कानून को लेकर अमित जेठवा जैसे भ्रष्टाचार उजागर करने वालों का हश्र हम देख चुके हैं।

सरकारें भी चाहती हैं कि व्हिसल ब्लोअर अधिनियम पारित होने से पहले जितनी 'सफाईÓ संभव हो कर ली जाए परन्तु यह विध्वंसकारी परिपाटी है जिससे सार्वजनिक क्षेत्र को बचाया जाना चाहिए। दहशत फैलाने की कोशिशों के समक्ष चुप बैठना भी समझदारी नहीं है।


चिन्मय मिश्र  सामाजिक कार्यकर्ता  हैं.
पत्रिका : २३ अगस्त २०१०

अफसर की सनक

भुवनेश जैन

मध्यप्रदेश के मंदसौर शहर में एक अजीब खेल चल रहा है। यहां सरकारी अफसर बाकायदा 'लक्ष्यÓ तय कर एक मंदिर के लिए चंदा उगाही कर रहे हैं। सरकार के किसी भी दफ्तर में कलेक्टर कार्यालय से लेकर ग्राम पंचायत में किसी को कोई भी काम करवाना हो तो पहले चंदे की रसीद कटवाए, फिर फाइल आगे चलेगी। हर सरकारी दफ्तर को उसके स्तर के अनुरूप लक्ष्य दिए गए हैं।
यूं तो पूरे देश में समाजकंटक चंदे के नाम पर अवैध उगाही करते मिल जाएंगे, पर मध्यप्रदेश इस बीमारी से ज्यादा ही ग्रस्त है। कभी कलश यात्रा के नाम पर, कभी भंडारे के नाम पर तो कभी भजन-कीर्तन के नाम पर आए दिन चंदेबाजों के गिरोह रसीदें लेकर वसूली के लिए पहुंच जाते हैं, लेकिन जब सरकारी अफसर चंदा वसूली में जुट जाएं तो औरों को कौन रोकेगा?

मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर के कलेक्टर प्रशासक हैं और एसडीएम सचिव। मंदिर में मनोकामना अभिषेक के नाम पर चंदा उगाही हो रही है। बाकायदा ११०० व २१०० रुपए की रसीदें छपवाई गई हैं। हद तो यह है कि पांच करोड़ रुपए इकटï्ठा करने का लक्ष्य पूरा हो, इसके लिए चार विकासखंडों में नोडल अफसर बनाए गए हैं। एक तरह से उन्हें यह भी सुनिश्चित करना है कि कहीं किसी का काम बिना चंदा दिए न हो जाए। सवाल यह उठता है कि अगर सरकारी अफसर मंदिर के नवनिर्माण के लिए चंदा उगाह रहे हैं तो क्या उन्होंने राज्य सरकार को प्रस्ताव भेज इसकी अनुमति ली है? पूरे प्रदेश में यदि इसी तरह अफसरों को चंदा वसूली की छूट दे दी गई तो कैसी अराजकता होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। सरकारी दफ्तरों में तो आदमी अपनी तकलीफें लेकर ही जाता है, चाहे वह ब्लॉक का ऑफिस हो या कलेक्टर का। ऐसे पीडि़त से जबरन चंदा वसूली करना अमानवीय ही है।

धर्मस्थलों के निर्माण के लिए श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से योगदान देते हैं। जबरन वसूली जहां होती है, वहां श्रद्धा तो हो ही नहीं सकती। यह तो धर्मस्थल है, यदि किसी अधिकारी को सनक चढ़े कि वह शहर में होटल या मॉल बनवाने के लिए चंदा उगाहेगा, तो क्या उसे छूट दी जाएगी। इस चंदा वसूली में एक तरफ जनता की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ उस पर जबरन ऐसे 'करÓ का भार डाल दिया गया है, जिसका एक धेला भी सरकारी खजाने में जमा नहीं होगा।

आश्चर्य की बात यह है कि इस चंदा वसूली को लेकर जनप्रतिनिधि भी मौन हैं। अब तक ढाई करोड़ रुपए इकट्ठा किए जा चुके हैं। क्या जनता की नब्ज पर हाथ रखने वालों को उसकी चीख नहीं सुनाई देती? तो क्या फिर यह माना जाए कि इस चंदा वसूली के पीछे उनके भी स्वार्थ हैं। भ्रष्टाचार का यह एक अनूठा उदाहरण है, जिसमें सरकारी अफसरों की छत्रछाया में जनता से ऐसी वसूली की जा रही है, जिसका हिसाब पूछने वाला कोई नहीं है। अवैध वसूली में राजनीतिज्ञों और अफसरों के गठजोड़ का यह नया उदाहरण है। राज्य सरकार भी चुप है तो यह या तो उसके सूचना तंत्र की कमजोरी है या उसकी मौन स्वीकृति से यह उगाही हो रही है।




भुवनेशजी जैन पत्रिका के समूह संपादक हैं.
पत्रिका : २३ अगस्त २०१०

कैलाश को धूल चटाई

ज्योतिरादित्य सिंधिया
कैलाश विजयवर्गीय
क्रिकेट का क,ख,ग भी नहीं जानने वाले मप्र के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को केंद्रीय उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद के सीधे मुकाबले में करारी शिकस्त देते हुए लगभग धूल चटा दी। सिंधिया को 142 वोट मिले, जबकि शुरू दिन से 'अहंकारÓ में डूबे कैलाश को 70 से ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस और भाजपा के लिए भी यह चुनाव बेहद प्रतिष्ठा का बन चुका था। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक घोटालों के आरोपों से घिरे कैलाश के लिए यह हार बहुत बड़ा अवरोध साबित होगी।

सिंधिया ने मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के कप्तान (अध्यक्ष) बनकर लंबी पारी के इरादे से मैदान में जम गए हैं। इसी चुनावी मैच को लेकर रविवार सुबह से ही इंदौर समेत पूरे राज्य और देशभर के नेता और क्रिकेटर निगाहें जमाए थे। इंदौर के उषाराजे स्टेडियम में प्रात: 10.30 बजे मैनेजिंग कमेटी की बैठक हुई और 12.30 बजे साधारण सभा की बैठक। सभा में सिंधिया ने समझौते के लिए डाली गई कैलाश समर्थकों की गेंद को वाइड करार देते हुए कहा चुनाव होकर रहेंगे। मैं वॉकओवर देने के मूड में नहीं हूं। ïदोपहर 2.45 बजे चुनावी मैच शुरू हुआ, जो रात 12.30 बजे तक चला। पूरे समय सिंधिया हावी रहे और एक बार तो ऐसी नौबत भी आ गई कि कैलाश को 'बॉल टेम्परिंगÓ जैसी बचकानी हरकत के लिए माफी तक मांगना पड़ी। मैच शुरू होने के पहले सिंधिया ने अपनी टीम के सबसे मजबूत खिलाड़ी (सचिव) संजय जगदाले को बाहर कर लिया क्योंकि उनके आसानी से आउट होने की प्रबल संभावना बन चुकी थी। मैच एंपायर (चुनाव अधिकारी) दिलीप चुडकर को घोषित किया गया था। देर रात घोषित किया गया कि सिंधिया मैन ऑफ द डे, मैच एंड एमपीसीए हैं। 217 में से उन्हें 142 सदस्यों ने समर्थन दिया है और कैलाश टीम 'क्लीन बोल्डÓ हो चुकी है।

जीत-हार के राजनैतिक मायने 
सिंधिया की जीत और कैलाश की हार के गहरे राजनैतिक मायने भी हैं। कैलाश 100 करोड़ रुपए के सुगनीदेवी जमीन घोटाले में जांच से गुजर रहे हैं और चाहते थे कि इस चुनाव के जरिए ताकत दिखाकर 'बचÓ जाएं। हार से उनके धुर विरोधियों को ताकत मिलेगी। कैलाश की यह पहली हार है। उधर, सिंधिया की जीत से इंदौर में कांग्रेस के 'ध्रुवीकरणÓ का दौर शुरू होने की संभावना है।

कार्यकारिणी, संस्थाओं पर सिंधिया का कब्जा

पद/संस्था                          जीते                                   हारे
अध्यक्ष                           ज्योतिरादित्य सिंधिया (१४३)    कैलाश विजयवर्गीय (७२)
चेयरमैन                          एमके भार्गव (१४१)                  अशोक जगदाले (७०)
उपाध्यक्ष एक                    विजय नायडू (१२९)                रमेश भाटिया (५९)   
उपाध्यक्ष दो                      भगवानदास सुतार (१४७)       विजय बडज़ात्या (५३)
उपाध्यक्ष तीन                  श्रवण गुप्ता (११९)                    अनुराग सुरेका (६१)
सचिव                            नरेंद्र मेनन (१३३)                    अमिताभ विजयवर्गीय (६१)
कोषाध्यक्ष                      वासु गंगवानी (१४९)                चंद्रशेखर भाटी (३१)
सहसचिव एक                 अल्पेश शाह (१२४)                  अमरदीप पठानिया (५३)
सहसचिव दो                   नरेंद्र दुआ (१३७)                     संजय लुणावत (४०)
मैनेजिंग कमेटी एक        गुलरेज अली (151)                  गोपालदास मोहता (66)
मैनेजिंग कमेटी दो          भोलू मेहता (158)                    डॉ. अपूर्व वोरा (67)
मैनेजिंग कमेटी तीन       मिलिंद कनमड़ीकर (144)         मानवेंद्रसिंह बैस (55)
मैनेजिंग कमेटी चार        अनिल जोशी (129)                  ————-
क्लब संस्था एक             स्टार क्लब (121)                   वैष्णव हायर सेकंडरी (53)
क्लब संस्था दो               सीसीआई (147)                     डीएवीवी (50)
क्लब संस्था तीन            वायएमसीए (140)                 एसजीएसआईटीएस (35)
क्लब संस्था चार            सिंधिया स्कूल (151)              जहांगीराबाद क्लब जब. (28)
(कोष्टक में वोट संख्या। कुल वोट 215। तृतीय मोर्चे के कुछ को नाममात्र वोट)


साधारण सभा में कैलाश को मांगना पड़ी माफी
- सिंधिया के भाषण में रुकावट डालने का भुगता खामियाजा

मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) की वार्षिक साधारण सभा में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को खुद के बरताव के कारण शर्मिंदा होना पड़ा। वे एमपीसीए अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाषण में व्यवधान पैदा कर रहे थे। बाद में कैलाश को गलती का अहसास हो गया और उन्होंने माफी भी मांगी।

दरअसल, साधारण सभा में रीवा डिवीजन की क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव कमल श्रीवास्तव अंतरराष्टï्रीय मैच में टैक्स से जुड़े एक मुद्दे पर कुछ प्रश्न पूछ रहे थे। सिंधिया ने उन्हें यह कहते हुए समझाइश दी कि अभी बात पूरी हो जाने दीजिए। इस पर कैलाश अचानक खड़े हो गए। उन्होंने कहा यह अलोकतांत्रिक है, सभी को बोलने का मौका दिया जाना चाहिए। शुरू से अंग्रेजी में भाषण दे रहे सिंधिया ने इस पर हिंदी में कहा कैलाशजी, यह इंदौर डिवीजन क्रिकेट एसोसिएशन (आईडीसीए) नहीं है, एमपीसीए है। यहां कुछ नियम कायदे हैं, उन्हीं के तहत मैं बात कर रहा हूं। जब आपका मौका आएगा, तब बोलिएगा। गरिमा बनाकर रखें। इस पर कैलाश मौन हो गए। कुछ ही देर में उन्हें गलती का अहसास भी हो गया और 'समझदारीÓ दिखाते हुए उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने व्यवहार पर माफी मांगी।

'लोकतंत्र के लिए किया यह सबकुछÓ
बाहर आने के बाद माफी मांगने के सवाल पर कैलाश ने मीडिया को बताया पहली बार एमपीसीए की साधारण सभा लोकतांत्रिक तरीके से हुई। मैंने इसी के लिए प्रयास किया और मैं उसमें कामयाब भी रहा।

सिंधिया को देखने उमड़े कांग्रेसियों पर बरसी लाठियां
करीब 9.30 बजे सिंधिया बाहर आए और कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंचे। उन्होंने पुलिस के एक वाहन पर खड़े होकर सभी का अभिवादन किया। कार्यकर्ता उन्हें देखने उमड़े, जिससे अनियंत्रण की स्थिति बनी। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, नहीं माने तो लाठियां बरसाई। बाद में कांग्रेस नेताओं ने कार्यकर्ताओं को काबू किया। सिंधिया के साथ सांसद सज्जन वर्मा और विधायक अश्विन जोशीï, तुलसी सिलावट, सत्यनारायरण पटेल भी मौजूद थे।


सिंधिया ने ठुकराई समझौते की पेशकश

केंद्रीय उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मप्र के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की दावेदारी के कारण देशभर में चर्चित हो चुके मप्र क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के चुनाव की प्रक्रिया रविवार को इंदौर के उषाराजे स्टेडियम में शुरू हुई। साधारण सभा के दौरान चुनाव टालने के लिए सिंधिया से कई सदस्यों ने आग्रह किया, लेकिन उन्होंने समझौते की पेशकश को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने साफ कहा, चुनाव लड़कर ही अध्यक्ष बनूंगा। किसी से किसी पद के लिए कोई समझौता नहीं होगा। उधर, एमपीसीए की साधारण सभा के दौरान कैलाश को अपने ही व्यवहार के कारण माफी मांगना पड़ी।

स्टेडियम में प्रात: 10.30 बजे एमपीसीए की मैनेजिंग कमेटी की बैठक होना थी, लेकिन 8 बजे से ही यहां गहमागहमी शुरू हो गई थी। सिंधिया के समर्थन में वरिष्ठ कांग्रेस नेता महेश जोशी की अगुवाई में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता जुट गए थे। विजयवर्गीय समर्थक स्टेडियम के बाहर नहीं फटके। प्रात: 10.45 बजे मैनेजिंग कमेटी की बैठक हुई। इसमें कुछ प्रस्ताव पास किए गए और दोपहर 12.30 बजे साधारण सभा शुरू हो गई। राज परिवार की उषाराजे और संतोष मल्होत्रा समेत कई वरिष्ठ सदस्यों ने एमपीसीए के मौजूदा अध्यक्ष सिंधिया से आग्रह किया कि आज तक कभी एमपीसीए के चुनाव नहीं हुए। इसी परंपरा को आगे भी निभाया जाए। इस दौरान कैलाश के चेहरे के हावभाव बता रहे थे कि वे भी चुनाव के पक्ष में नहीं है। बैठक में हिस्सा लेने जाने के पहले ही कैलाश ने मीडिया को कहा भी था हम शुरू दिन से चुनाव के पक्ष में नहीं हैं। हमने सारे विकल्प खुले रखे हैं। सिंधिया ने परंपरा निभाने के प्रस्ताव को नकारते हुए कहा, पंद्रह दिन से जो बातें हो रही हैं, उसे देखते हुए चुनाव अनिवार्य है और बगैर चुनाव के मैं अध्यक्ष नहीं बनना चाहता। आखिर दोपहर 2.40 बजे चुनाव की घोषणा हो गई। दिलीप चुडकर को रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त कर दिया गया और दोपहर 3.15 बजे तक नामांकन भरने का समय निर्धारित किया गया। 3.45 बजे तक नाम वापसी का समय तय किया गया। शाम 5.45 से मतदान शुरू हुआ।

जगदाले के लिए बदली रणनीति
चुनाव की घोषणा के बाद सिंधिया पैनल ने तत्काल रणनीति बदलते हुए सचिव पद के लिए पहले से घोषित उम्मीदवार संजय जगदाले को हटा लिया। उनके स्थान पर नरेंद्र मेनन को उतारा गया। दरअसल, जगदाले लगातार दो बार से सचिव पद पर पदस्थ हैं और इस बार फिर से सचिव बनने के लिए उन्हें दो तिहाई वोट हासिल करना अनिवार्य है। चुनाव में किसी किस्म का चौखिम मोल नहीं लेने की रणनीति के तहत सिंधिया ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया।

उषाराजे स्टेडियम का नया नाम होल्कर स्टेडियम
करीब पौने दो घंटे चली मैनेजिंग कमेटी की बैठक में तय किया गया कि उषाराजे स्टेडियम का नाम होल्कर स्टेडियम कर दिया जाएगा। पूर्व क्रिकेटर एसपी चतुर्वेदी की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बनाई गई, जो स्टेडियम में मौजूद बॉक्सों के नामकरण के लिए क्रिकेटरों के नाम सुझाएगी। यह भी तय हो गया कि इंदौर और ग्वालियर में स्टेडियम के लिए 25-25 एकड़ जमीन का इंतजाम एमपीसीए द्वारा किया जाएगा। 


वेशभूषा में स्मार्ट दिखे सिंधिया

सिंधिया फारमल पेंट शर्ट के साथ ही गहरे नीले रंग का कोट पहनकर आए थे, जबकि कैलाश पारंपरिक अंदाज में सफेद कुर्ते पायजामे पर केशरिया दुपट्टा डालकर। दोनों की वेशभूषा भी चुनावी चर्चा में शामिल रही। लोगों का कहना था एमपीसीए की गरिमा के अनुसार तो जेंटलमेन और स्मार्ट सिंधिया को ही ज्यादा अंक मिलेंगे।

'चुनाव होना ही चाहिए नहीं तो मैं चलाÓ
खेल प्रशाल और आईडीए बिल्डिंग के मेनगेट पर जैसे ही सिंधिया पहुंचे, महेश जोशी से उनकी मुलाकात हुई। जोशी ने सिंधिया को कहा चुनाव होना ही चाहिए, नहीं तो मैं चला जाऊंगा। किसी भी स्थिति में समझौता नहीं करना है। सिंधिया ने भी उन्हें आश्वस्त किया कि आप जैसा चाहते हैं, वैसा ही होगा।


सुबह से चलते रहे बयानों के बाउंसर

प्रात: 10.10 बजे : कैलाश विजयवर्गीय
उपाध्यक्ष पद के दावेदार रमेश भाटिया के साथ गाड़ी से उतरे और बोले हम तो शुरू दिन से ही चुनाव नहीं चाहते हैं। इंदौर को मिला स्टेडियम, एकेडेमी और जिम सबकुछ बीसीसीआई ने दिया है, एमपीसीए ने कुछ नहीं दिया। निर्वाचित होने पर पांच वर्ष में पांच अंतरराष्टï्रीय क्रिकेटर तैयार करूंगा। गरीब खिलाडिय़ों के लिए फंड बनाऊंगा।

प्रात: 10.35 बजे: ज्योतिरादित्य सिंधिया
दूसरे बैरिकेट्स के यहां से पैदल चलकर मेनगेट तक पहुंचे। मीडिया से अनौपचारिक चर्चा में बोले अब तो चुनाव हो ही जाए। कुछ ही घंटों में सबके सामने दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। वे आत्मविश्वास से भरे थे और अपने पीए पाराशर के साथ स्टेडियम में प्रविष्ठ हुए। 

प्रात: 11 बजे: सज्जन वर्मा
देवास क्रिकेट एसोसिएशन की नुमाइंदगी की। पैदल आने का कारण पूछा तो बोले कुछ लोगों को सड़क पर लाना है। कहा यह कांग्रेस-भाजपा की लड़ाई नहीं है, क्रिकेटर और गैर क्रिकेटर की जंग है। विजयवर्गीय बताएं कि डेढ़ वर्ष से इंदौर डिवीजन में होने के बावजूद उन्होंने मैदान के लिए जमीन का इंतजाम क्यों नहीं किया?

प्रात: 11.10 बजे: महेश जोशी
मेनगेट पर करीब तीन घंटे तक तैनात रहे। मीडिया से कहा पहले चूक गया था, तो ओलंपिक संघ में गंदगी घूस गई, अब यहां नहीं घुसने दूंगा। कुछ उठाईगिरे किस्म के लोग क्रिकेट की फिजा बिगाडऩा चाहते हैं, उन्हें कामयाब नहीं होने दिया जाएगा।

प्रात: 11.15 बजे: अशोक जगदाले
कैलाश पैनल से चेयरमैन पद के दावेदार बनकर आए और कहा चुनाव लड़कर ही लौटूंगा। इंदौर के खिलाडिय़ों के साथ भेदभाव हुआ और यह सहन नहीं किया जा सकता।

दोपहर 12 बजे : अश्विन जोशी
वोटर ने नाते भीतर गए। हाथ में 'पत्रिकाÓ अखबार की वे खबरें थी, जिनमें कैलाश के घोटाले प्रकाशित हुए। साफगोई से बोले नेताओं को खेल से दूर हो जाना चाहिए। मैं खुद भी इसके लिए तैयार हूं। सिंधिया जेंटलमेन और क्रिकेटर हैं, इसलिए एमपीसीए का अध्यक्ष पद उनका हक है।

दोपहर 2.45 बजे : श्रवण गुप्ता
एमपीसीए के पूर्व अध्यक्ष ने बताया साधारण सभा सद्भावना पूर्ण तरीके से पूरी हुई। विजयवर्गीय कुछ उखड़े थे, लेकिन बाद में गलती मानकर शांत हो गए। 85 प्रतिशत वोटर आ चुके हैं।  


कांग्रेस एकजुट, कैलाश के कारण बिखरी भाजपा
गुटों में बंटी कांग्रेस को भी चुनाव के नाम एकजुटता दिखाने का मौका मिल गया। दिग्गी, पचौरी गुट ने सिंधिया से साथ कंधे से कंधा मिलाकर मैदान संभाला। प्रमोद टंडन, विपीन खुजनेरी, नरेंद्र सलूजा, रघु ठाकुर, संजय शुक्ला, कृपाशंकर शुक्ला, अंतरसिंह दरबार, पंकज संघवी, नरेंद्र सलूजा, अभय दुबे, भल्लू यादव, अभय वर्मा, छोटे यादव के साथ ही विधायक सत्यनारायण पटेल भी मौजूद थे। उधर, भाजपा में बिखराव दिखा। सुमित्रा महाजन, भवंरसिंह शेखावत, सुदर्शन गुप्ता जैसे नेता कैलाश विजयवर्गीय के कारण क्रिकेट के इस मैदान से दूर हो गए। इतना ही नहीं भाजपा ने अंदरूनी तौर पर यह भी तय कर लिया था कि शहर हित में कैलाश को सबक सिखाने का यह सही मौका है।

सिलावट ने संभाली कमान
सिंधिया के कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट ने कमान संभाल रखी थी। वे वोटरों को एक-एक करके बुलाते रहे और उन्हें ससम्मान भीतर भेजते रहे। हालांकि, बीच में उनकी एक-दो बार पुलिस से बहस भी हो गई। उनके गनमैन को जब पुलिस ने बेरिकेट्स के बाहर करना चाहा तो सिलावट ने कहा मेरा गनमेन मेरे साथ नहीं रहेगा, तो कहां जाएगा।

सागर, बदनावर, महिदपुर के विधायक भी पहुंचे
सिंधिया के समर्थन में सागर के विधायक गोविंदसिंह राजपूत, बदनावर धार के राजवद्र्धनसिंह दत्तेगांव और महिदपुर की कल्पना पैरूलकर भी पहुंची। उज्जैन के पूर्व विधायक राजेंद्र भारती भी मौजूद थे।


तीन स्थानों पर पुलिस चेकिंग 
स्टेडियम में जाने वाले हर सदस्य की चेकिंग के लिए तीन चरण तय किए गए थे। एक रेसकोर्ट रोड मुहाने पर, दूसरा खेल प्रशाल के मेनगेट के पास में और तीसरा उषाराजे स्टेडियम का मेनगेट। बगैर पहचान पत्र बताए किसी भी पहले गेट से ही अंदर नहीं जाने दिया गया। मीडिया सदस्यों को दूसरे चरण तक की अनुमति थी, जबकि एमपीसीए के वोटर ही तीसरे चरण के पार जा सके।

बार-बार जाम हुआ ट्रैफिक
रेसकोर्स रोड पर प्रात: 11 बजे से ही ट्रैफिक का हाल बिगडऩे लगा था। पुलिस ने कई बंदोबस्त किए, लेकिन वे भी नाकाफी साबित हुए। दोपहर 12 बजे बाद बैरिकेडिंग की गई और इसके बाद कुछ देर के लिए हालात काबू रहे, किंतु बाद में फिर से स्थिति बिगड़ गई।

बारिश से मची अफरातफरी
दोपहर 2.15 बजे हल्की बारिश शुरू होते ही कुछ देर के लिए अफरातफरी मच गई। कांग्रेसी आसपास के शापिंग कॉम्प्लेक्सों की ओर दौड़े और खुद को भीगने से बचाया। हालांकि, बारिश कुछ मिनिटों में ही बंद हो गई और फिर से लोग सड़के आसपास जुट गए।

95 वर्षीय दुबे भी पहुंचे
टसल में तबदील हो चुनाव में वोट देने के लिए 95 वर्षीय एमएम दुबे भी स्टेडियम पहुंचे। उन्होंने कहा क्रिकेट को जिंदा रखने के लिए मैं यहां आया हूं।


कैलाश बोले, मैं हार-जीत के लिए चुनाव नहीं लड़ा

वोटिंग समाप्त होने के तत्काल बाद कैलाश विजयवर्गीय स्टेडियम से बाहर आए और मीडिया से मुखातिब हुए। पराजित योद्धा की मुद्रा में उन्होंने कहा मैं हार-जीत के लिए चुनाव नहीं लड़ा था। मैं तो उसी दिन जीत गया था, जब सिंधिया जैसे 'महाराजाÓ को सड़क पर उतर कर वोट मांगना पड़े। खुद की मर्जी से नहीं, मैं तो क्रिकेटरों के लिए मैदान में उतरा। साधारण सभा में उनके द्वारा माफी मांगने की घटना पर वे बोले पहली बार साधारण सभा में लोकतांत्रिक तरीके से चर्चा हुई।

कैलाश को नहीं मिला उम्मीदवार
कैलाश पैनल की बुरी हालत का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें मैनेजिंग कमेटी के लिए पूरे चार उम्मीदवार भी नहीं मिले। उन्होंने गोपालदास मेहता, डॉ. अपूर्व वोरा व मानवेंद्रसिंह बैस को ही मैदान में उतारा, जबकि सिंधिया पैनल की ओर से हर पोस्ट के लिए उम्मीदवार मैदान में था।


 
 
 
पत्रिका : २३ अगस्त २०१०
साथ में विकास मिश्रा 

हड़ताली 30 जूनियर डॉक्टर निलंबित

- पांच दिन से कर रखी सेवाएं ठप, सरकार का कड़ा फैसला


पांच दिन से 20 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल कर रहे एमजीएम मेडिकल कॉलेज के 30 जूनियर डॉक्टरों को शनिवार रात सरकार ने निलंबित कर दिया है। ये सभी जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी है। इनसे होस्टल भी खाली करवाए जाएंगे। हड़तालियों को उकसाने का आरोप मढ़ कर सिनीयर रेसीडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष को भी निष्काषित किया गया है।  

हड़ताल के कारण मरीजों की दुर्दशा देखते हुए शासन ने यह कड़ा निर्णय लिया है। एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत ने बताया शासन के निर्देश के आधार पर देर रात कॉलेज काउंसिल की बैठक बुलाई गई। इसमें निलंबन और बर्खास्तगी का फैसला किया गया। ज्ञात रहे शुक्रवार को चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य राज्यमंत्री महेन्द्र हार्डिया चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव आईएस दाणी और स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव एसआर मोहंती के साथ जूडॉ की बैठक बेनतीजा रहने और जूडा के हड़ताल खत्म नहीं करने को शासन ने गंभीर लापरवाही माना है। डीन ने बताया जो जूडॉ काम पर लौटेंगे, उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाएगी। मेडिसिन विभाग में पदस्थ एक लेडी डॉक्टर को भी नोटिस दिया जा रहा है, क्योंकि वे पंद्रह दिन से सेवा पर नहीं आई हैं।


व्हिसल ब्लोअर पर सरकारी तंत्र का हमला  
हड़ताल करने वालों के साथ ही सिनीयर रेसीडेंट एसोसिएशन अध्यक्ष डॉ. आनंद राय को भी बर्खास्त कर दिया गया है। राय पर आरोप है कि उन्होंने हड़तालियों को उकसाया। डॉ. राय व्हिसल ब्लोअर (भ्रष्टाचार सचेतक) हैं, जो सरकारी तंत्र की बुराइयों को उजागर करते रहते हैं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में जारी ड्रग ट्रायल के गोरखधंधे के खुलासे में भी डॉ. राय की अग्रणी भूमिका रही है। विभाग के कई डॉक्टरों ने हड़ताल को एक मौके के रूप में लिया और अनावश्यक आरोप लगाकर बर्खास्त करवा दिया। डॉ. राय ने 'पत्रिकाÓ को बताया हड़ताल के दौरान में मैं लगातार ड्यूटी दे रहा हूं। ओपीडी और इमरजेंसी सेवा दे रहा हूं, फिर भी मुझे बर्खास्त कर दिया।

इन्हें किया निलंबित
जेडीए अध्यक्ष डॉ. विक्रांत भूरिया, उपाध्यक्ष जितेंद्र चौहान, सचिव मुकेश शर्मा, कोषाध्यक्ष विजय शंकर, अपूर्व गर्ग, सहायक सचिव पल्लवी चौधरी, अक्षय गुप्ता, गिरीश चतुर्वेदी, लक्ष्मण अहिरवार, संयुक्त सचिव अनिता सिंह, संक ल्प जोशी, भूपेंद्र चौहान, अफसर खान, सलाहकार अंकित वर्मा, कीर्तिमानसिंह, हिमांशु अग्रवाल, विनय वर्मा, दीपक कुमार, कमेटी कार्डिनेटर अमित यादव, निकेत राय, शिवानी पांडे, यश श्रीवास्तव, एक्जीक्यूटिव सदस्य गौरी राय, विद्या शर्मा, श्रद्धा दक्षा, विभूति तोमर, किशोर जैशी, दीपक शर्मा, मनोज गुप्ता, मनीष करोठिया।

' जितनी कड़ी कार्रवाई करेंगे, उतनी ही मजबूती से हम लड़ेंगे। हमारी मांगे जायज हैं। दरअसल, सरकार बातचीत से मसलों का हल निकालना नहीं चाहती है। मांगे पूरी नहीं होने तक हड़ताल पूरे राज्य में जारी रहेगी।Ó
- डॉ. विक्रांत भूरिया, प्रदेश अध्यक्ष, जेडीए


 पत्रिका: २२ अगस्त २०१०

इंदौर के मास्टर प्लान पर नवंबर में होगी सुनवाई

- सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद सरकार ने तय की रणनीति
- शहर के विकास में असमंजस्य के हालात


एक जनवरी 2008 को लागू हुई इंदौर विकास योजना 2021 (मास्टर प्लान) पर आई करीब 800 आपत्तियों पर नवंबर में सुनवाई होगी। यह काम इंदौर कलेक्टर की अगुवाई वाली करीब 85 सदस्यों की कमेटी द्वारा किया जाएगा। कमेटी की सिफारिशों पर आवास एवं पर्यावरण विभाग अंतिम निर्णय लेगा और फिर से मास्टर प्लान का गजट नोटिफिकेशन होगा। 

मास्टर प्लान पर मप्र हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज होने के बाद राज्य सरकार के आवास एवं पर्यावरण विभाग ने यह सैद्धांतिक फैसला कर लिया है। विभाग शीघ्र ही नई कमेटी की घोषणा भी करेगा। विभाग के मंत्री जयंत मलैय्या ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक ही अगली कार्रवाई करने के निर्णय की पुष्टि की है।

2000 एकड़ जमीन पर ही असर
विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने 'पत्रिकाÓ को बताया जो अनुमतियां दी जा चुकी हैं, वे रद्द नहीं होंगी। मोटे तौर पर करीब एक लाख एकड़ निवेश क्षेत्र पर मास्टर प्लॉन लागू किया गया है और जो आपत्तियां हैं, वे 2000 एकड़ पर ही हैं, यानी महज दो फीसदी क्षेत्र में। 



शहर के विकास में पांच अड़चनें

अड़चन एक : हरियाली
ज्यादातर आपत्तियों आमोद प्रमोद क्षेत्र (ग्रीन बेल्ट) को लेकर है। आपत्तिकर्ता चाहते हैं कि जमीनों को आवासीय या वाणिज्यिक कर दिया जाए। ऐसा होता है तो शहर के पर्यावरण की संतुलन बिगड़ेगा।

अड़चन दो : आईडीए की योजनाएं 
मास्टर प्लान के हिसाब से आईडीए के मेडिकल हब, ट्रांसपोर्ट हब, स्कीम-168, सुपर कॉरिडोर के आसपास लगने वाली स्कीम 169-ए पर भी प्रभाव पर पड़ सकता है। 

अड़चन तीन : जोनल प्लान
 नगर निगम ने जोन प्लान का मसौदा तैयार कर लिया है। 12 यूनिट को लेकर कुछ निजी कंपनियों से करार भी कर लिया है। अब जोन प्लान पर भी रोक लग जाएगी। मास्टर प्लान में संशोधन होते हैं तो  मसौदों में बदलाव करना पड़ेगा।

अड़चन चार: हाईराइज इमारतें
 प्लान लागू हुए ढाई वर्ष हो चुके हैं। इस दौरान नगर निगम और टीएंडसीपी से हाईराइज इमारतें और टाउनशिप के नक्शे पास हुए हैं। उन पर भी असर पड़ सकता है। फिर से सुनवाई होने की दशा में भू-उपयोग बदल सकता है। ऐसे में कुछ प्रोजेक्ट अटक सकते हैं। 

अड़चन पांच : विकास प्रोजेक्ट
विभिन्न योजनाओं के तहत शासकीय निर्माण एजेंसियों ने जो प्रस्ताव राज्य व केंद्र सरकार से स्वीकृत कराए या भेजे हैं उन पर पुनर्विचार हो सकता है।


'सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी खारिज होने और हाईकोर्ट की युगलपीठ का फैसला देखने के बाद ही तय होगा कि निगम के किन कामों पर असर पड़ेगा।Ó
- सीबी सिंह, निगमायुक्त इंदौर 
'मास्टर प्लान के लैंडयूज के हिसाब से ही हम योजनाएं घोषित करते हैं। सुनवाई के बाद भू उपयोग बदला तो योजना बदल देंगे, लेकिन फिलहाल ऐसा कोई आसार नजर नहीं आ रहा।Ó
- चंद्रमौली शुक्ला, सीईओ, आईडीए

' सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिरोधार्य है। उसके मुताबिक ही सरकार आगे की कार्रवाई करेगी।Ó
- जयंत मल्लैया, मंत्री, आवास एवं पर्यावरण विभाग


अफसरों गलतियों का खामियाजा भुगतेगा शहर
- प्रशासनिक अनदेखी के कारण ढाई वर्ष पहले लागू मास्टर प्लान के कुछ हिस्से पर फिर से होगी सुनवाई


आवास एवं पर्यावरण विभाग के अफसरों की गलतियों का खामियाजा इंदौर को भुगतना पड़ेगा। साढ़े तीन वर्ष से अफसर नियमों की अनदेखी करते रहे और अब मास्टर प्लान की सुनवाई की नौबत आ गई। इससे शहर के विकास कार्यों पर असर होगा और आशंका है कि कुछ कार्य रूक भी जाएंगे।
दरअसल, मास्टर प्लान का प्रारूप तैयार करने वाले अफसरों ने वर्ष 2007 में ही गलती करना शुरू कर दी थी। कुछ जानकार इसे गलती के बजाए 'जमीनों का खेलÓ भी कहते हैं। यह गलती आगे बढ़ती गई। मास्टर प्लान पर जनसुनवाई, आपत्तियां, इसके बाद फिर से कमेटी का गठन, हाईकोर्ट की एकल पीठ में फिर से सुनवाई का सुझाव, युगल पीठ में फिर से नया जवाब जैसे कई चरणों पर गलतियां हुई।

चार चूकों से उलझा मास्टर प्लान

चूक एक : धारा 19(2) का पालन नहीं किया

 टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के रिटायर इंजीनियर जयवंत होलकर ने बताया मप्र ग्राम एवं नगर निवेश अधिनियम की धारा 19(2) के तहत शासन द्वारा सुनवाई के उपरांत ही मास्टर प्लान की अधिनियम की धारा 19(5) के तहत अंतिम रूप से मंजूर किया जा सकता है। इसके बाद मास्टर प्लान के प्रावधानानुसार विकास अनुज्ञा जारी होती है। इस प्रक्रिया का पालन नहीं करने के कारण ही यह स्थिति निर्मित हुई है।

चूक दो : कोर्ट के सामने कमजोर साबित

महानगर विकास परिषद के मानद सचिव राजेश अग्रवाल ने बताया जो आपत्तियां लगी हैं, उन्होंने उस ड्राफ्ट को आधार बनाया है, जो महज प्रस्ताव ही था। इसमें 1991 में के प्लान के कुछ आमोद-प्रमोद के स्थानों ग्रीन लैंड को आवासीय दर्शाया गया। सुनवाई प्रक्रिया के बाद इन भू उपयोगों को पुन: आमोद प्रमोद कर दिया गया, क्योंकि पुराने प्लान में इनमें फेरबदल नहीं किया जा सकता था। वैसे भी इनके उपयोग पर 1975 के पहले ही सुनवाई प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ऐसे में आपत्तियों का आधार ही गलत है। सरकार की ओर से यह बात कोर्ट में रखी जाती है, तो संभवत: स्थिति कुछ और बनती। 

चूक तीन : हाईकोर्ट में दी सुनवाई पर सहमति

वरिष्ठ एडवोकेट मनोहर दलाल बताते हैं 20 याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सरकारी वकील ने जवाब दिया कि सुनवाई की जाएगी। इस पर 17 जून 2008 को जस्टिस विनय मित्तल की एकल पीठ ने अधिनियम की धारा 19(2) में सुनवाई करने को कहा था। आपत्तियां दर्ज कराने का अंतिम दिन 4 जुलाई 2008 तय किया गया था और 30 सितंबर तक इस पर सुनवाई होना थी। सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए युगल पीठ में 11 अपीलें दर्ज की। वहां सरकारी वकील ने कहा दिया धारा 18(2) में सुनवाई करेंगे। दोनों बार सरकार ने सुनवाई को मंजूरी दी, इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने केस खारिज कर दिया।


चूक चार: तीन सदस्यी कमेटी का गठन

एक आपत्तिकर्ता ने बताया मास्टर प्लान पर सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने की तारीख 5 फरवरी 2007 की समय सीमा के बाद कई लोगों ने सरकार को शिकायत की। इस पर सरकार ने 24 मई 2007 को अपर संचालक डीके शर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यी कमेटी का गठन किया। याचिकाकर्ताओं ने इस कमेटी को आधार बनाकर ही कोर्ट में मास्टर प्लान को चुनौती दी। तर्क था कि 7 जुलाई 2007 को प्रस्तावित और 01 जनवरी 2008 को जारी किए गए मास्टर प्लान में उन स्थानों के भू उपयोग बदल दिए गए, जिनको लेकर आपत्ति दर्ज ही नहीं की गई।



 पत्रिका: २२ अगस्त २०१०

शनिवार, 21 अगस्त 2010

हाईकोर्ट से जुड़ी तीन छोटी खबरें

सिविल जज प्री का रिजल्ट घोषित

मप्र हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सिविल जज वर्ग (दो) के 57 पदों की भर्ती की प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित कर दिया। परीक्षा रजिस्ट्रार बीएस भदौरिया ने बताया 8 अगस्त 2010 को हुई परीक्षा में 630 उम्मीदवारों को मुख्य परीक्षा के लिए योग्य पाया गया है। उम्मीदवारों की सूची हाईकोर्ट की वेबसाइट और सूचना पटल पर उपलब्ध है।


कमल पटेल केस पर आगे बढ़ी सुनवाई

दुर्गेश जाट हत्याकांड में जेल में बंद भाजपा विधायक कमल पटेल की जमानत की एक याचिका पर शुक्रवार हाईकोर्ट में सुनवाई आगे बढ़ गई। वरिष्ठ एडवोकेट जयसिंह के जरिए दायर इस याचिका पर कोर्ट ने सीबीआई से केस डायरी मांगी है। जस्टिस शुभदा वाघमारे की कोर्ट में केस रखा गया था।


स्टॉफ नर्स नियुक्ति में पुरुषों को अंतरिम राहत

स्वास्थ्य विभाग में स्टॉफ नर्स के पदों के लिए जारी भर्ती प्रक्रिया में हाईकोर्ट ने पुरुष उम्मीदवारों को अंतरिम राहत दी है। भर्ती में केवल महिला उम्मीदवारों को योग्य माना जा रहा था। जस्टिस एससी शर्मा की कोर्ट ने आदेश दिया है कि भर्ती प्रक्रिया में पुरुषों को भी शामिल किया जाए, लेकिन कोर्ट का अंतिम फैसला आने तक उन्हें नियुक्त न दी जाए। कोर्ट ने 25 अक्टूबर के सप्ताह में अगली सुनवाई रखी है।

पत्रिका : २१ अगस्त २०१०

चंदे जुटाने के लिए तैनात किए नोडल अधिकारी

- मंदसौर में मंदिर नवनिर्माण के नाम पर प्रशासनिक जबरदस्ती


मंदसौर जिले के सरकारी दफ्तरों से चल रहे चंदे के धंधे को कामयाब बनाने के लिए मंदसौर, मल्हारगढ़, सीतामऊ और गरोठ में बकायदा नोडल अधिकारी नियुक्ति किए गए हैं। ये नोडल अधिकारी किसी विभाग के सरकारी अधिकारी हैं। इनका काम विभिन्न सरकारी दफ्तरों में रसीद कट्टे पहुंचाना और वहां से रुपए इकठ्ठे करके जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली श्रीपशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध समिति को भेजना है।

'पत्रिकाÓ ने शुक्रवार को ही खुलासा किया था कि पशुपतिनाथ मंदिर के नवनिर्माण के लिए सावन माह में मनोकामना अभिषेक का कार्यक्रम शुरू किया गया है। एक अभिषेक के 2100 या 1100 रुपए तक लिए जा रहे हैं और चंदे का सारा कार्य जिले के सरकारी दफ्तरों से ही संचालित हो रहा है। अब जानकारी मिली है कि कलेक्टर के मौखिक आदेश से बकायदा सभी ब्लॉकों में एक अफसर को नोडल अधिकारी बनाकर चंदा जुटाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह अधिकारी सात-सात दिन में चंदे का हिसाब जिला मुख्यालय पहुंचाता है।

दो आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को एक रसीद
सभी कर्मचारियों को रसीद कटवाना अनिवार्य किया गया है। यहां तक कि मामूली मानदेय पाने वाले आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को भी रुपए देना जरूरी है। नोडल अधिकारियों ने फार्मूला निकाला लिया है कि दो मिलकर एक रसीद कटवा लो।


रात-दिन इसी काम में लगे हैं
प्रश्न: क्या आप मनोकामना अभिषेक के लिए रुपए जुटा रहे हैं?
उत्तर: हां, गरोठ, भानपुरा, शामगढ़ के लिए मैं ही नोडल अधिकारी हूं। वैसे, मेरा पद पंचायत विभाग में समन्वयक अधिकारी का है।
प्रश्न: आपको नोडल अधिकारी किसने बनाया?
उत्तर: एसडीएम एएस ओहरिया और जनपद पंचायत सीईओ धर्मपाल मशराम ने।
प्रश्न: अब तक कितने रुपए जुटा लिए हैं?
उत्तर: 40 लाख रुपए इकठ्ठे हो गए हैं। अब तक 2100 जोड़ों को अभिषेक के लिए मंदसौर भेज चुके हैं।
प्रश्न: रुपए इकठ्ठे करने का काम कैसा चल रहा है?
उत्तर: सरपंच, सचिव से लेकर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं तक से रुपए ले रहे हैं। सभी काम में लगे हैं।
प्रश्न : इन दिनों आप तो बहुत व्यस्त होंगे ?
उत्तर : रात-दिन काम कर रहा हूं। यही काम चल रहा है। ï
(नोडल अधिकारी ओपी राठौर से चर्चा) 


पत्रिका: २१ अगस्त २०१० 

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

मनोकामना के लिए सरकारी चंदाखोरी

- मंदसौर जिले के हर सरकारी दफ्तर में काटी जा रही चंदे की रसीदें
- आस्था और श्रद्धा के नाम पर प्रशासनिक जबरदस्ती


एक नजर
सोसाइटी : श्री पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी, मंदसौर
पदाधिकारी : कलेक्टर (अध्यक्ष) और एसडीएम मंदसौर (सचिव)
इतने की रसीद : 1100 और 2100 रुपए
इस नाम पर : मंदिर में मनोकामना अभिषेक (25 जुलाई से 27 अगस्त तक)
यह है लक्ष्य : पांच करोड़ रुपए
चंदे का उद्देश्य: पशुपतिनाथ मंदिर के मास्टर प्लॉन को पूरा करना।
यहां से : भानपुरा, गरोठ, शामगढ़, सुवासरा, सीतामऊ, मल्हारगढ़ और मंदसौर के गांव-गांव से।
चंदे का जरिया:  सभी सरकारी दफ्तरों और सरपंच।
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मंदसौर जिले में इन दिनों सरकारी चंदे का धंधा जोरों पर हैं। चंदा धर्म के नाम पर किया जा रहा है और जुटाने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन ने ही ले रखी है। चंदे के लिए जिले के हर सरकारी दफ्तर में 'पूरी उगाहीÓ की हिदायत के साथ रसीद कट्टे पहुंचाए गए हैं। सावन मास की समाप्ति तक का लक्ष्य पांच करोड़ है और अब तक सवा दो करोड़ रुपए एकत्रित भी हो चुके हैं। चंदा देने वालों में ज्यादातर वे लोग शामिल हैं, जिन्हें बीते एक महीने में किसी काम के सिलसिले में सरकारी दफ्तर जाना पड़ा। चंदा दिए बगैर फिलहाल कोई भी सरकारी काम अघोषित रूप से 'असंभवÓ है।

चंदा जुटाने का काम मंदसौर की श्री पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी कर रही है। इसके अध्यक्ष जिला कलेक्टर और सचिव मंदसौर के अनुविभागीय अधिकारी हैं। सोसाइटी ने मंदिर का नया मास्टर प्लॉन बनाया है, जिसके लिए करोड़ों रुपए की जरूरत है। चूंकि हिंदु धर्मावलंबी सावन माह में  पशुपतिनाथ की भक्ति को मनोकामना पूरी करने का जरिया मानते हैं, इसलिए सोसाइटी ने भी इसका फायदा उठाने का 'षडय़ंत्रÓ रचा। ïजून-जुलाई से ही चंदे की रूपरेखा तैयार हो गई। रसीद कट्टे छापकर तैयार किए गए। कम से कम 1100 और अधिकतम 2100 रुपए का दाम रखा गया और पूरे जिले में 'मनोकामना अभिषेक वर्ष 2010Ó का ऐलान कर दिया गया। कट्टे सरकारी दफ्तरों से लेकर ग्राम पंचायतों तक में भेज दिए गए और शुरू हो गया 'सरकारी चंदाÓ। 

प्रशासन और धर्म से बंधे लोग
चंदा देने वाले मौन हैं, क्योंकि मुंह पर प्रशासन के डर का ताला डला है। कुछ लोग धर्म से जुड़ा मसला होने के कारण भी चुप हैं। सीतामऊ तहसील के एक सरपंच ने बताया मुझे 20 हजार रुपए इकठ्ठे करके देना है और मैं विरोध करूंगा तो मेरे सारे सरकारी काम रोक दिए जाएंगे। गरोठ तहसील की खजूरी पंचायत के एक पंच ने बताया दो रसीदें कटवाई हैं, लेकिन कुछ बोल नहीं सकता हूं। ऐसा किया तो गांव के लोग मेरे खिलाफ होकर कहेंगे, धर्म के काम में रोढ़ा बन रहे हो। 

पूर्व कलेक्टर ने जुटाए थे साढ़े चार करोड़
मनोकामना अभिषेक की योजना पूर्व कलेक्टर डॉ. जीके सारस्वत ने तैयार की थी। उनके कार्यकाल में पिछले वर्ष मनोकामना अभिषेक के नाम से साढ़े चार करोड़ रुपए जुटाए गए थे। सूत्रों का कहना है, इसी आंकड़े को पीछे छोडऩे के लिए इस वर्ष पांच करोड़ रुपए का लक्ष्य तय किया गया।

तहसील कार्यालयों पर लगती बसें
मनोकामना अभिषेक करवाने वालों को मंदसौर लाने- ले जाने के लिए भानपुरा, गरोठ, सीतामऊ और मल्हारगढ़ तहसील मुख्यालयों पर एक-दो दिन के अंतराल से बसें लगती हैं। इनका प्रबंध भी सरकारी महकमों द्वारा ही किया जाता है।



हम तो बस प्रेरित कर रहे हैं
देखिए यह धर्म का काम है और हम लोग केवल प्रेरक का काम कर रहे हैं। कोई विरोध करता है, तो उसकी रसीद नहीं काटी जाती है। विरोध होना था, तो हो जाता। अब तक 11 हजार जोड़े मनोकामना अभिषेक करने आ चुके हैं। वैसे भी यह मामला जिले के पूरे मीडिया और जनप्रतिनिधियों की जानकारी में है।
- एके रावल, सचिव, श्रीपशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी एवं एसडीएम मंदसौर

रसीद कट्टे आए हैं। यह सब श्रद्धा का मामला है। कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की जा रही ह। वैसे भी इस रुपए से पशुपतिनाथ मंदिर का नवनिर्माण किया जाना है। अधिकारी, कर्मचारी, जनप्रतिनिधि, व्यापारी सभी से रुपए लिए जा रहे हैं।
- अभयसिंह ओहरिया, एसडीएम, गरोठ

सावन साल में एक बार आता है और इस दौरान राशि जुटाई जा रही है। यह स्वेच्छा का काम है। पूरे जिले से ही रसीदें काटी जा रही हैं। रुपए आएंगे, तभी तो पशुपतिनाथ मंदिर का मास्टर प्लॉन पूरा हो सकेगा। ज्यादा जानकारी के लिए कलेक्टर से बात कर लें।
- एलपी बौरासी, एसडीएम, सीतामऊ

समिति के लोगों ने रसीद कट्टे भेजे हैं और यहां के लोग भी मनोकामना अभिषेक करने जा रहे हैं। रसीद कटवाने का किसी पर कोई दबाव नहीं डाला जा रहा है।
- एनएस राजावत, एसडीएम, मल्हारगढ़ 


'सभी की सहमति से शुरू कियाÓ
मुझे तो यहां आए अभी चार महीने ही हुए हैं। पूर्व कलेक्टर ने यह काम शुरू किया था। इसके लिए मैंने भी कुछ बैठकें बुलाई और सोसाइटी के सभी सदस्यों ने जब मंजूरी दी तो मनोकामना अभिषेक की रसीदों का कार्य शुरू किया गया। जो रुपया आएगा, उसे मंदिर में लगाया जाएगा और इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। सभी लोगों से कहा गया है कि वे किसी पर किसी किस्म का दबाव न डाले। मर्जी से जो देना चाहे, उसी से लें।
- महेंद्र ज्ञानी, अध्यक्ष, श्रीपशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी एवं कलेक्टर मंदसौर


ये कैसे हो रहा है?
मुझे इस मसले की फिलहाल जानकारी नहीं है। दिखवाता हूं कि सरकारी दफ्तरों में यह काम कैसे चल रहा है। ऐसा होना नहीं चाहिए।
- टी. धर्माराव, संभागायुक्त, उज्जैन 


ऑफिस-ऑफिस चंदे की कहानी

दृश्य एक : रजिस्ट्रार ऑफिस
किसान: साहब, जमीन की रजिस्ट्री के ये कागज हैं, कृपा करें।
डिप्टी रजिस्ट्रार: सब काम हो जाएगा, पहले 2100 रुपए जमा करके रसीद लो।
किसान: यह किस बात की रसीद है, साहब। 
डिप्टी रजिस्ट्रार: पशुपतिनाथ मंदिर में मनोकामना अभिषेक की। यह जरूरी है।

दृश्य दो  : ग्राम पंचायत
ग्रामीण : सरपंच साहब, कूपन बना दो, ताकि परिवार को गेहूं, शक्कर आदि मिल सके।
सरपंच: वो, तो अभी बना देंगे। सचिव को कहने भर की देर है। परंतु, इसके बदले में पहले मनोकामना अभिषेक की रसीद कटवाना होगी।
ग्रामीण: मुझे मालूम था कि यह जरूरी है, इसलिए रुपए साथ में लेकर आया था।

दृश्य तीन : शिक्षा विभाग
शिक्षक: मेरा मेडिकल बिल अटका है, कृपया मंजूर कर दें। तीन बार अर्जी दे चुका हूं।
बीईओ: सही समय पर आए हो। अभी हो जाएगा। अकेले अर्जी से काम नहीं चलेगा। पहले 'मनोकामनाÓ तो पूरी कर लो।
शिक्षक: वह कैसे होगी?
बीईओ: बहुत आसान है। कलेक्टर साहब के यहां से यह रसीद कट्टा आया है। पशुपतिनाथ मंदिर में मनोकामना पूरी करने के लिए 2100 रुपए लगेंगे।
शिक्षक: यह तो बहुत ज्यादा है, करीब इतना ही तो मेरा बिल है।
बीईओ: ठीक है, 1100 रुपए वाली कटवा लो।

(सभी के नाम गोपनीय रखे हैं, ताकि उन पर प्रशासनिक दबाव न आए।) 

पत्रिका : २० अगस्त २०१०

सुरेश सेठ ने कहा - सीबीआई से करा लो जांच

- सुगनीदेवी जमीन मामले में हाईकोर्ट में उठी मांग
- मेंदोला, संघवी की याचिका पर पूरे दिन चली बहस, फैसला सुरक्षित



परदेशीपुरा चौराहा के पास स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ मूल्य की तीन एकड़ जमीन मामले में लोकायुक्त जांच को चुनौती देने से जुड़ी दो याचिकाओं पर गुरुवार को इंदौर हाईकोर्ट में पूरे दिन (प्रात: 10.40 से शाम 4.20 बजे तक) बहस चली। याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलों पर शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने कोर्ट के समक्ष एक नई मांग रख दी कि इस केस की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से करवा ली जाए, क्योंकि लोकायुक्त पुलिस के पास भ्रष्टाचार से जुड़े ऐसे कई प्रकरण लंबित हैं, जिनकी जांच आठ-आठ वर्ष से चल रही है। सेठ ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के मामले उठाने वाले व्यक्ति को हतोत्साहित करने के लिए ये याचिकाएं दायर की गई हैं। मामले में कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। 

विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने 6 अप्रैल 2010 को लोकायुक्त पुलिस को मामले में जांच के आदेश दिए थे। नंदानगर साख संस्था के अध्यक्ष व विधायक रमेश मेंदोला और धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी ने दो अलग-अलग याचिकाओं में इस आदेश को चुनौती दी थी। जस्टिस एसएल कोचर और जस्टिस शुभधा वाघमारे की युगलपीठ ने इन्हीं पर सुनवाई की। याचिकाओं में मूल शिकायतकर्ता सुरेश सेठ समेत लोकायुक्त, लोकायुक्त एसपी, पुलिस महानिरीक्षक को प्रतिवादी बनाया गया है। ज्ञात रहे मामले में 5 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस ने मेंदोला व संघवी समेत 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस दर्ज किया है। तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका की जांच अभी जारी है। 21 सितंबर को विशेष न्यायालय में अंतिम जांच प्रतिवेदन पेश होगा।

284 पेज में 21 न्यायिक दृष्टांत
सेठ ने कोर्ट में 284 पेज का एक जवाब प्रस्तुत किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के 21 न्यायिक दृष्टांत पेश किए गए हैं। ये सभी दृष्टांत मेंदोला और संघवी की याचिकाओं के तर्कों को चुनौती देते हैं।

 अपराध को खत्म तो नहीं किया जा सकता
बहस के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि अपराध तो हुआ है और केवल प्रक्रिया का हवाला देकर अपराध को खत्म तो नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने जीरो कायमी का हवाला देते हुए कहा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत कोई भी व्यक्ति थाने में जाकर एफआईआर दर्ज कर सकता है। पहले वह जीरो नंबर पर कायम होती है और बाद में जिस क्षेत्र से संबंध होती है, वहां उसे भेजा जा सकता है। इस केस में लोकायुक्त पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। अब उसे शिफ्ट किया जा सकता है, खत्म तो नहीं किया जा सकता। 


मैं तो हर दर पर गया था,
किसी ने सुना ही नहीं
- सुगनीदेवी कॉलेज परिसर मामले में हाईकोर्ट के समक्ष सुरेश सेठ ने रखा तर्क
- मेंदोला और संघवी की वकीलों ने भी पूरी तैयारी के साथ रखा पक्ष



जमीन के इस मामले में मैंने तो हर दर पर शिकायत करके न्याय मांगा था, लेकिन किसी ने सुना ही नहीं। यहां तक कि मुख्यमंत्री तक के यहां से आज तक जवाब नहीं आया। वर्ष 2007 से मैं जिम्मेदार अफसरों और जनप्रतिनिधियों को पत्र लिख रहा हूं। सरकार से तीन वर्ष से लड़ रहा हूं। कहां जाऊं... क्या मैं गटर में चला जाऊं। जो वकील यहां पैरवी कर रहे हैं, वे बताएं कि जो जमीन का मालिक ही नहीं था, उसने जमीन कैसे बेच दी। ये लोग तभी हाईकोर्ट के सामने आए, जब इन्हें पता चल गया कि अब लोकायुक्त जांच से बच नहीं सकते। मुझे तो ऐसा लग रहा है, जैसे आजादी की लड़ाई चल रही हो। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्यक्ति की आवाज दबाने की कोशिश हो रही है। ऐसा ही चलता रहा तो मेरे मरने के बाद तक इस मामले में कोई निर्णय नहीं होगा।

यह बात कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने गुरुवार को हाईकोर्ट में जस्टिस एसएल कोचर और जस्टिस शुभदा वाघमाले की युगलपीठ के समक्ष कही। वे परदेशीपुरा चौराहा के पास स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ मूल्य की तीन एकड़ जमीन मामले में लोकायुक्त जांच को चुनौती देने से जुड़ी दो याचिकाओं पर जारी बहस में हिस्सा ले रहे थे। नंदानगर साख संस्था के अध्यक्ष व विधायक रमेश मेंदोला और धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी ने ये याचिकाएं लगाई हैं। मेंदोला की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट एके सेठी और एडवोकेट राहुल सेठी ने जबकि संघवी की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट रमेश आर्या और एडवोकेट अमित अग्रवाल ने पैरवी की। लोकायुक्त की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट एलएन सोनी ने पक्ष रखा।

एडवोकेट देसाई को बनाया एमिकस क्यूरी
बहस के दौरान ही कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीश देसाई को एमिकस क्यूरी (केस में कोर्ट के सलाहकार) घोषित किया। कोर्ट ने करीब एक घंटे तक उनसे विभिन्न पहलूओं पर विमर्श किया।

खचाखचा भरी रही कोर्ट 
उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला के कारण बहुचर्चित हुए इस मामले को सुनने के लिए हाईकोर्ट के रूम नंबर 09 में पूरे दिन वकीलों की भीड़ जुटी रही। कई वरिष्ठ से लेकर कनिष्ठ एडवोकेट्स तक बहस को सुनने के लिए मौजूद थे। लोकायुक्त जांच की सीमाएं, विशेष न्यायाधीश के आदेश और भ्रष्टाचार से जुड़े मसलों पर जांच एजेंसियों के लिए तय मापदंडों से जुड़े विभिन्न कानूनी पहलू बहस के दौरान उजागर भी हुए।

टीआई से सीएम तक की सेठ ने शिकायत

17 मई 2007         : इंदौर निगमायुक्त
1 मई 2008           : इंदौर निगमायुक्त
6 अक्टूबर 2008     : इंदौर निगमायुक्त
12 फरवरी 2009     : इंदौर निगमायुक्त
27 फरवरी 2009     : आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)
2 मार्च 2009           : मुख्य सचिव मप्र, गृह सचिव, आईजी पुलिस, आईजी ईओडब्ल्यू, डीआईजी इंदौर, एसपी इंदौर, कलेक्टर इंदौर, एसपी ईओडब्ल्यू और टीआई परदेशीपुरा।
17 जून 2009          : मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान
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कोर्ट में कानूनी तर्कों की नींव

विधायक रमेश मेंदोला की याचिका के आधार

1. दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 153(3) की शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट कर सकता है, विशेष न्यायाधीश नहीं।
2. विशेष न्यायाधीश मप्र विशेष पुलिस स्थापना (एसपीई) कानून 1947 एवं मप्र लोकायुक्त कानून के अधीन है। वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1947, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत मजिस्ट्रेट नहीं है।
3. विशेष न्यायाधीश द्वारा सीआरपीसी की धारा 190 के तहत कार्रवाई नहीं की।
4. मप्र विशेष पुलिस स्थापना कानून की धारा 4 के तहत कोई भी अनुसंधान कार्य पर सुपरइनटेंडेंस लोकायुक्त की रहती है, न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
5. शिकायतकर्ता ने कभी भी लोकायुक्त अथवा एसपीई लेाकायुक्त को शिकायत दर्ज नहीं करवाई, इसलिए विशेष न्यायाधीश द्वारा धारा 153(3) के तहत जांच के आदेश देना त्रूटिपूर्ण है।
6. विशेष न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 200 के तहत निजी फौजदारी परिवाद के तहत परिवादी के बयान दर्ज नहीं किए और न ही धारा 202 के तहत कोई कार्रवाई की।
7. आरोपी की सुनवाई का अवसर दिए बगैर सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
8. सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत आदेश पुलिस स्टेशन के ऑफिसर इंनचार्ज को ही दिया जा सकता है। एसपीई लोकायुक्त इंदौर इस श्रेणी में नहीं आते।
9. सीआरपीसी की धारा 153(3) की शक्तियों का उपयोग तभी किया जा सकता है, जबकि संबंधित मामले में एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दिया गया हो।
10. विशेष न्यायाधीश का आदेश मप्र विशेष पुलिस स्थापना कानून के प्रावधानों के विपरीत है, क्योंकि इस अधिनियम में राज्य सरकार की पूर्व अनुमति जरूरी है।


मनीष संघवी की याचिका के आधार
1. याचिकाकर्ता लोक सेवक नहीं है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत एसपीई लोकायुक्त को जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
2. मप्र लोकायुक्त और उपलोकायुक्त नियम 1981 की धारा 8 (सी) के तहत पांच वर्ष से पुराने मामलों पर जांच का प्रतिबंध लगाया गया है।
3. विशेष न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत याचिकाकर्ता को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया।
4. विशेष न्यायाधीश का आदेश मप्र लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम 1981 की धारा 7 के प्रावधानों का उल्लंघन है।


सुरेश सेठ के जवाब
1. तत्कालीन एमआईसी सदस्य रमेश मेंदोला ने महापौर कैलाश विजयवर्गीय की मौन सहमति के साथ पद का दुरुपयोग करते हुए धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी व विजय कोठारी से आपराधिक षडय़ंत्र रचकर सरकारी जमीन की खरीदी-बिक्री की। इससे निगम और सरकार को करोड़ों की राजस्व हानि हुई।
2. वर्तमान में पुलिस अनुसंधान जारी है, इसलिए दोनों याचिकाएं अपरिपक्व हैं।
3. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (ई) के तहत एसपी स्तर के अधिकारी को जांच का आदेश देने का अधिकार है।
4. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश को संज्ञान लेने का पूर्ण अधिकार है और इससे सेशन न्यायालय के साथ मजिस्ट्रेट की शक्तियों का समावेश हो गया है। 
5. सीआरपीसी की धारा 153 (3) के तहत जांच के आदेश जारी करने से पहले अभियुक्त को सुनवाई को अवसर देने का कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है।

पत्रिका : २० अगस्त २०१० 

तीन डॉक्टरों समेत नौ पर गैरइरादतन हत्या का केस

- निजी शिकायत पर कोर्ट का आदेश
- हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में डॉक्टरों की लापरवाही से गर्भस्थ शिशु मौत का मामला


14 महीने पहले हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले में कोर्ट ने तीन डॉक्टरों समेत नौ लोगों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज करने के आदेश दिए हैं। यह आदेश शिशु की मां द्वारा कोर्ट में लगाई निजी शिकायत पर किया गया है। 

प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी आरती शर्मा की कोर्ट ने माना कि 17 जून की रात 9.30 बजे से 18 जून 2009 की प्रात: 11.30 बजे तक तीन लेडी डॉक्टरों समेत नौ कर्मचारियों ने गर्भवती प्रभावति गिरधारीलाल प्रजापति के इलाज में लापरवाही बरती और इससे गर्भस्थ शिशु की मौत हो गई। लिहाजा यह गैरइरादतन हत्या का मामला है। कोर्ट ने 8 सितंबर को सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं।

इनके खिलाफ हुआ केस
डॉ. कीर्ति चतुर्वेदी, डॉ. मुक्ता जैन, डॉ. कुसुम मारू, नर्स किरण नाइक, शैफाली चौहान, तिलोत्मा सिंह, जया पांडे, स्वीपर हेमलता और आया हेमलता।


ऐसी लापरवाही
- 17 जून की रात में डॉ. कीर्ति चतुर्वेदी, नर्स शैफाली, किरण, शारदा, जया, मनोरमा व हेमलता ड्यूटी पर थीं, लेकिन सभी ने गर्भवती की उपेक्षा की।

- 18 जून की प्रात: डॉ. मुक्ता जैन व डॉ. कुसुम मारू अस्पताल पहुंची, लेकिन इलाज के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया। यहां तक कि मेडिकल रिकॉर्ड में भी गर्भवती के बारे में सही जानकारी नहीं लिखी।



पुलिस पर सांठ-गांठ का आरोप
परिवादी के एडवोकेट बीएन राजपूत ने बताया केस की जांच तत्कालीन अपर कलेक्टर रेणु पंत ने करके स्वास्थ्य विभाग को नौ लोगों के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का केस दर्ज करने के निर्देश दिए थे। विभाग ने पुलिस को ऐसा करने के लिए कहा भी था, लेकिन सांठ-गांठ के चलते केस दर्ज नहीं हो सका। यही वजह है कि निजी शिकायत दर्ज करना पड़ी।


ऐसे किया स्वास्थ्य विभाग ने न्याय ?
स्वास्थ्य विभाग ने भी तीनों डॉक्टरों को दोषी माना था, लेकिन सजा महज दो-दो वेतनवृद्धि रोकने की दी थी। यह भी केवल दो वर्ष तक के लिए यानी इसके बाद उन्हें वेतनवृद्धि का फायदा मिलने लगेगा। इतना ही नहीं, जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट को कमजोर करने के लिए तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा ने तो डॉक्टरों को बचाने के लिए एक पत्र जारी कर दिया था। उन्होंने लिखा था डॉक्टरों पर केस करने से विभाग की बदनामी होगी।


'पेट दबा-दबाकर मेरे बच्चे को मार डालाÓ
दर्द शुरू होने के बाद मुझे मकान मालकिन ललिता कश्यप 17 जून को हुकमचंद पॉलीक्लिनिक ले गई। वहां भर्ती कर दिया। रात 11 बजे जब दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ तो मकान मालकिन ने मौजूद नर्स किरण नाइक से देखने को कहा। उसने यह कहकर भगा दिया कि सोने दो। रात दो बजे फिर उससे कहा तो उसने पेट दबा दिया। फिर 2000 रुपए ले लिए और कहा सुबह ऑपरेशन करेंगे। सुबह सात बजे फिर उससे देखने को कहा तो वह सात से आठ बजे तक पेट दबाती रही। आठ बजे यह कहकर चली गई कि मेरी डयूटी पूरी हो गई। सुबह 10.30 बजे डॉ. कुसुम मारू आई तो उन्होंने ऑपरेशन किया। इन लोगों ने मेरे बच्चे को दबा-दबा कर मार डाला।
(गर्भवती प्रभावती द्वारा घटना के संबंध में जिला प्रशासन को दिया गया बयान)


पत्रिका : १९ अगस्त २०१० 
30 जुलाई को प्रकाशित खबर

नवजात की मौत पर दो वेतनवृद्धि रोकने की सजा
- स्वास्थ्य विभाग का न्याय (?), जिला प्रशासन ने माना था गैरइरादतन हत्या का मामला
- हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में तीन महिला डॉक्टरों की लापरवाही से गई थी जान


गर्भस्थ शिशु की मौत के जिस मामले पर इंदौर जिला प्रशासन ने गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज करने की सिफारिश की थी, उसमें स्वास्थ्य विभाग ने आरोपी डॉक्टरों की दो-दो वेतनवृद्धि रोकने के आदेश जारी किए हैं। विभाग ने घटना के दौरान हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में पदस्थ रही डॉ. कुसुमलता मारू, डॉ. मुक्ता जैन और डॉ. कीर्ति चतुर्वेदी को यह सजा सुनाई है। यह सजा भी दो वर्ष में समाप्त हो जाएगी, यानी इसके बाद उन्हें वेतनवृद्धि का फायदा मिलने लगेगा।

स्वास्थ्य विभाग के आदेश की पुष्टि करते हुए सीएमएचओ डॉ. शरद पंडित ने बताया जिला प्रशासन की सिफारिश पर विभागीय जांच की गई थी। इसमें तीनों डॉक्टरों पर आरोप सिद्ध हुआ है। शेष सात कर्मचारियों पर पहले ही कार्रवाई की जा चुकी है। विभाग में इसे बड़ा आर्थिक दंड माना जाता है। जिला प्रशासन के कहने पर सभी आरोपियों के खिलाफ सेंट्रल कोतवाली थाने पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करने की अर्जी दी थी, लेकिन पुलिस ने ऐसा किया ही नहीं।

अपर कलेक्टर रेणु पंत ने की थी जांच
तत्कालीन अपर कलेक्टर रेणु पंत ने इस मामले की जांच करके 100 से अधिक पेज की रिपोर्ट बनाई थी। इसी के आधार पर मामला पुलिस में गया था। बाद तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा ने एक पत्र जारी करके डॉक्टरों को लगभग बचा लिया था। उन्होंने लिखा था डॉक्टरों पर केस करने से विभाग की बदनाम

बुधवार, 18 अगस्त 2010

प्रभात झा केस पर हाईकोर्ट में सुनवाई

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा द्वारा न्यायपालिका पर की टिप्पणी को लेकर दायर अवमानना याचिका की मंगलवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता इंदर प्रजापत के एडवोकेट मनोहर दलाल ने बताया जस्टिस एसएल कोचर और जस्टिस शुभदा वाघमारे की युगलपीठ में सुनवाई हो चुकी है। ज्ञात रहे पिछले माह इंदौर में बगैर अनुमति भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष जीतू जिराती के स्वागत में रैली निकाली थी। रैली प्रतिबंधित मार्गों पर निकाली गई। मामले में मीडिया ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष झा से प्रश्न पूछा था कि हाईकोर्ट द्वारा प्रतिबंधित मार्गों पर रैली निकालना क्या उचित था। इस पर उन्होंने कहा था कि कोर्ट के कारण क्या उत्सव मनाना छोड़ दें। कोर्ट से समाज नहीं चलता बल्कि समाज से कोर्ट चलता है। 

पत्रिका : १८ अगस्त २०१०

सीबीआई को भी बनाएं पार्टी


मालेगांव ब्लॉस्ट 
- दिलीप पाटीदार बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट का निर्देश


मालेगांव ब्लॉस्ट मामले में करीब पौने दो वर्ष से रहस्यमय तरीके से लापता दिलीप पाटीदार को लेकर चल रही बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को भी पार्टी बनाने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने सहायक सोलिसिटर जनरल से कहा केस की फाइल सीबीआई को भेजें और 9 सितंबर तक बताएं कि क्या इस केस की जांच सीबीआई करेगा?  

11 नवंबर 2008 को मुंबई एटीएस का दल खजराना क्षेत्र की शांतिविहार कॉलोनी से दिलीप पाटीदार को मालेगांव ब्लास्ट मामले में ले गया था। एटीएस कहती है कि उसे 18 नवंबर को छोड़ दिया गया, लेकिन इसके बाद से वह आज तक लापता है। दिलीप के भाई रामस्वरूप ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई, जिस पर लगातार सुनवाई चल रही है। पाटीदार की एडवोकेट रितु भार्गव और भुवन देशमुख और एटीएस एडवोकेट वी. वगाड़े मंगलवार को जस्टिस शांतनु केमकर और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ के समक्ष उपस्थित हुए।

एडवोकेट रितु भार्गव ने बताया हमने कोर्ट से सीबीआई जांच की मांग की थी, क्योंकि राज्य सरकार और मुंबई एटीएस इस मामले में अब तक कोई परिणाम नहीं दे सकी है। इसी पर कोर्ट ने सहायक सोलिसिटर जनरल विवेक शरण को बुलाकर इस संबंध में निर्देश दिए। शरण ने 'पत्रिकाÓ को बताया सीबीआई को केस की फाइल भेजी जाएगी। अगली तारीख तक इस पर जवाब पेश कर दिया जाएगा।


पत्रिका : १८ अगस्त २०१०

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

सिंधिया ने विजयवर्गीय को दिखा दी ताकत

- 80 से अधिक वरिष्ठ-कनिष्ठ क्रिकेटर ने मिलकर जताया भरोसा
- एमपीसीए का चुनावी रंग

मप्र क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव के पहले ही केंद्रीय उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शनिवार को अपनी ताकत का अहसास मप्र के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को करवा दिया। वे सायाजी होटल की सातवीं मंजिल के कमरा नंबर 712 में रूके थे और वहां उनसे मिलने के लिए करीब 80 से अधिक वरिष्ठ और कनिष्ठ क्रिकेटर मौजूद थे। ये सभी एसोसिएशन के सदस्य हैं। सिंधिया ने 10-10 के ग्रुप में इन सभी से चाय की चुस्कियों के बीच इत्मिननान से मुलाकात की। सिलसिला रात 11.30 बजे तक चला। बुधवार को विजयवर्गीय ने भी श्रीमाया सेलिब्रिटी होटल में डीनर पार्टी दी थी, लेकिन उसमें महज 14 सदस्य ही पहुंचे थे।



कमरा नंबर 712 में बिछी एमपीसीए की फिल्डिंग


मप्र क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के चुनाव के पहले शनिवार को होटल सायाजी के कमरा नंबर 712 में मौजूदा अध्यक्ष सिंधिया की फिल्डिंग जमी। वे यहां पहुंचे और मिलने वाले सदस्यों की होड़ सी लग गई। हर कोई उनसे पहले मिलना चाहता था। उन्होंने सभी से सिलसिलेवार सबसे मुलाकात की।

एसोसिएशन के सचिव संजय जगदाले के साथ ही वहां गुलरेज अली, जितेंद्र जैन, श्रीराम अत्रे, अशोक कुमुट सुमन कामानी, भरत पलोड़, विनोद कुमुट, श्रवण गुप्ता, मोनी नारंग, कन्नू पंवार, भोलू मेहता, मुन्ना कादिर, अनिता अत्रे, नरेंद्र मेनन, महेंद्र सेठिया, डॉ. ऐके भार्गव, भगवानदास सुतार, वासु मंगवानी, नरेंद्र भगतरिया, एसके बायस आदि मौजूद थे। युवा क्रिकेटर अमय खुरासिया, अनिल वाघ, मुकेश साहनी, अमित भट्ट, नितिन कुलकर्णी, सुधीर अस्मानी भी थे। आगंतुकों का स्वागत करने के लिए होटल के मेनगेट पर जावरा विधायक महेंद्रसिंह कालूखेड़ा मौजूद थे, जबकि सातवीं मंजिल पर विधायक तुलसी सिलावट और शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रमोद टंडन ने मोर्चा संभाल रखा था। पहले सीनियर सदस्यों की भेंट करवाई गई और बाद में नौजवानों की।

14 लोगों से अलग मुलाकात
होटल पहुंचने से पहले सिंधिया ने इमली बाजार निवासी विमल जैन के घर पर भी कुछ सदस्यों से भेंट की। वहां वे 14 सदस्यों से मिले।

किसी से समझौता नहीं होगा
सिंधिया के सामने कुछ लोगों ने पूछा कि विजयवर्गीय गुट समझौता टेबल पर आकर किसी 'पदÓ की मांग कर सकता है, ऐसे में क्या किया जाएगा। सिंधिया ने कहा किसी से समझौता नहीं होगा, क्योंकि एसोसिएशन आप लोगों का समूह चला रहा है।

व्यक्तिगत मुलाकात भी करेंगे
सिंधिया के नजदीकी लोगों ने बताया सिंधिया रविवार प्रात: इंदौर से रवाना हो जाएंगे और 20 अगस्त को फिर से लौटेंगे। बाद में वे कुछ वरिष्ठ सदस्यों के घर जाकर भी मुलाकात करेंगे। चुनाव 22 अगस्त को होंगे।

पद की गरिमा का सवाल है
एक बुजुर्ग सदस्य ने सिंधिया को भरोसा जताते हुए कहा यह पद की गरिमा का सवाल है और इस पर किसी कीमत पर ऐसे व्यक्ति को नहीं आने दिया जाएगा, जो गरिमा के अनुकूल न हो।

आपने ही इंदौर में मजबूत किया क्रिकेट
सिंधिया को लोगों ने भरोसा दिलाया कि हम आपकी शक्ति को पहचानते हैं और यह भी जानते हैं कि आपके कारण ही इंदौर में क्रिकेट को मजबूती मिली है। यह क्रम आगे भी जारी रहेगा। सिंधिया वर्तमान में एमपीसीए के चेयरमैन हैं। 22 जुलाई को होने वाले चुनाव में विजयवर्गीय ने भी दावेदारी जताई है।


पत्रिका: १५ अगस्त २०१०