सोमवार, 27 दिसंबर 2010

गुजरात-राजस्थान से बेकार मप्र के फोरलेन

- जनहित याचिका पर हाईकोर्ट की कमेटी की राय

इंदौर हाईकोर्ट की एक कमेटी ने खुलासा किया है कि मध्यप्रदेश के फोरलेन रोड गुजरात और राजस्थान से बेकार हैं। मध्यप्रदेश से गुजरने वाले एबी रोड के करीब 180 किमी हिस्से का मुआयना करने पर कमेटी को पता चला कि इंदौर से ग्वालियर तक का हिस्सा पूरी तरह खराब है। इसी प्रकार इंदौर से अहमदाबाद और बैतूल की सड़कें भी बदहाल हैं। इंदौर-अहमदाबाद राष्टï्रीय राजमार्ग के बीस किमी के एक हिस्से को पार करने में कई घंटे लगते हैं।

सेंधवा के बीएल जैन की जनहित याचिका पर इंदौर हाईकोर्ट की फुल बेंच जस्टिस एसएन कोचर, शांतनु केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव ने 8 अक्टूबर को वरिष्ठ अधिवक्ता चंपालाल यादव, एडवोकेट रमेश छाजेड़ एवं अब्दुल सलीम की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी को राष्टरीय राजमार्ग क्रमांक-3 के इंदौर से खलघाट एवं खलघाट से बिजासन घाट तक का निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करना था। बुधवार को कमेटी ने 19 फोटोग्राफ एवं 9 पेज की रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी। शुक्रवार को इस पर बहस होगी।

राजमार्ग कहने में शर्म
कमेटी ने राजमार्र्गों की हालत पर टिप्पणी की है कि इन्हें राष्टï्रीय राजमार्ग कहना शर्म की बात है। क्योंकि कई स्थानों पर सामान्य सड़क भी नहीं मिली। इंदौर से कन्नौद की ऐसी ही स्थिति है।

पेचवर्क कर भर दिए गड्ढे

कमेटी का मानना है कि कोर्ट के आदेश के तत्काल बाद संबंधित सड़क के गड्ढों को पेचवर्क करके भर दिया गया है। अपने तर्क को आधार देने के लिए कमेटी ने कुछ ऐसे फोटो पेश किए हैं जिनमें ताजा डामर स्पष्टï दिखाई देता है।

हाईकोर्ट से संज्ञान की अपील
कमेटी ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया है कि इंदौर से ग्वालियर, अहमदाबाद और बैतूल तक के राष्टï्रीय राजमार्र्गों की बदहाली पर जरूरी निर्देश जारी किए जाएं। यदि कोर्ट इस पर संज्ञान लेती है तो जनहित में यह एक बड़ा कार्य होगा।

लोक परिवहन का इंतजाम नहीं

सेंधवा में सवारी जीप एवं ट्राले की टक्कर में 21 लोगों की मौत पर कमेटी ने टिप्पणी करते हुए लिखा है कि मध्य प्रदेश में लोक परिवहन की उचित व्यवस्था नहीं है। इस कारण अवैध परिवहन होता है और मुसाफिरों की जान हमेशा जोखिम में रहती है। प्रदेश सरकार को चाहिए कि तत्काल लोक परिवहन का इंतजाम हो।

रोड पर पत्थरों का खतरा
मानपुर से बीकानेर घाट के दोनों ओर पक्की नालियों की कोई व्यवस्था नहीं है। घाट क्षेत्र में समय-समय पर पहाड़ से पत्थर गिरते रहते हैं। पत्थरों को रोकने का इंतजाम नहीं किया गया तो कभी भी गंभीर दुर्घटना हो सकती है।

ये खामियां भी मिलीं

- राजमार्ग के दोनों ओर सर्विस रोड पूरी नहीं बनाई गई है।
- रास्ते में अ'छे यात्री प्रतीक्षालय और चौराहों की कमी है।
- डिवाइडर पर गाजर घास उगी है जबकि वहां सुंदर पौधे होना चाहिए।
- इंदौर से सेंधवा के बीच नर्मदा पुल की हालत नहीं सुधारी तो दुर्घटना का खतरा है।
- खलघाट से सेंधवा के रास्ते पर डेब नदी पुल पर रेलिंग नहीं है।
- जिन किसानों से राजमार्ग के लिए जमीन ली गई उन्हें अब तक मुआवजा नहीं मिला।

पत्रिका २७ अक्टूबर २०१० 
सड़क 

कैलाश को नहीं मिला कवच

- सुगनीदेवी मामले में लोकायुक्त पुलिस की कोशिश नाकाम
- अंतिम चालान के लिए विशेष कोर्ट ने तय की चार महीने की सीमा
- लोकायुक्त के सारे दावे सिरे से खारिज


लोकायुक्त पुलिस 100 करोड के सुगनीदेवी जमीन घोटाले में आरोपी क्रमांक दो यानी कैलाश विजयवर्गीय को समय कवच पहनाने में नाकामयाब हो गई है। विशेष कोर्ट ने लोकायुक्त पुलिस के उस दावे को खारिज कर दिया है जिसमें जांच के लिए समय सीमा की आड़ ली गई थी। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया है कि सुगनीदेवी जमीन मामले में अंतिम चालान 21 फरवरी 2011 तक कोर्ट में पेश किया जाए।
विशेष न्यायाधीश एसके रघवुंशी बुधवार को एक अहम फैसले में कहा कि लोकायुक्त पुलिस को एक नियत समय सीमा में काम करने का आदेश देना कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में है। सीकरी वासु विरुद्ध उप्र सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2008 में दिए फैसले का दृष्टांत देते हुए कोर्ट ने लिखा है कि यदि पुलिस ठीक ढंग से जांच नहीं करे तो समय सीमा तय करने के साथ ही कोर्ट जांच की निगरानी भी कर सकता है।

मामले में लोकायुक्त के विशेष अभियोजक एलएस कदम ने 21 सितंबर को तर्क दिया था कि जांच की समय सीमा तय करना विशेष न्यायाधीश के अधिकार में नहीं आता है। इसी पर परिवादी सुरेश सेठ ने 6 अक्टूबर को करीब 300 पेज का जवाब कोर्ट के पटल पर रखा था। उन्होंने लोकायुक्त पुलिस की अर्जी के छहों न्यायिक दृष्टांतों की भी तार्किक तरीके से धज्जियां उड़ाई थीं।

सुरेश सेठ को न्यायिक कवच

विशेष कोर्ट ने बुधवार को फैसले में यह भी स्पष्ट कर दिया कि एफआईआर दर्ज होने और चालान पेश होने के बीच फरियादी सुरेश सेठ को अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है। लोकायुक्त पुलिस ने कहा था कि एफआईआर के बाद मामला जांच एजेंसी व कोर्ट के बीच सिमट जाता है इसलिए फरियादी को कोर्ट में आने का अधिकार नहीं है।

जांच एजेंसियों के लिए ऐतिहासिक सबक
कानूनी जानकारों का मानना है कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की पड़ताल करने वाली ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, सीआईडी जैसी जांच एजेंसियों के लिए विशेष कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक सबक जैसा है। अब तक जांच एजेंसियां एफआईआर दर्ज करके मामले को ठंडे बस्ते में डालने की आदी रही है। यही वजह है कि कई केस 15-15 सालों तक चालान के मुकाम तक नहीं पहुंच सके। हर बार जांच एजेंसियां यही तर्क देती है कि अनुसंधान की समय सीमा तय करने का कोर्ट को कोई अधिकार नहीं है। यही वजह है कि जांच एजेंसि

'नहीं बचेगा कैलाश' 
फैसले पर सुरेश सेठ ने प्रतिक्रिया दी है कि अब लोकायुक्त पुलिस मामले में तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय को नहीं बचा सकती। अंतिम चालान में कैलाश का नाम नहीं आया तो कोर्ट स्वयं भी नाम सम्मिलित करवा सकती है।

मेंदोला सहित फंस चुके सत्रह
इस केस में लोकायुक्त पुलिस 5 अगस्त को 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और अपराधिक षड्यंत्र रचने का केस दर्ज कर चुकी है। इसमें कैलाश विजयवर्गीय के अतिरिक्त तीनों आरोपियों (विधायक रमेश मेंदोला, व्यवसायी मनीष संघवी व विजय कोठारी) की घेराबंदी की गई है। इसमें निगम अफसर सहित 14 अन्य आरोपी हैं।

हाईकोर्ट में भी मुंह की खाई
विशेष कोर्ट द्वारा लोकायुक्त पुलिस को जांच के निर्देश को विधायक रमेश मेंदोला और व्यवसायी मनीष संघवी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस एसएल कोचर व शुभदा वाघमारे ने दोनों की याचिकाओं को सिरे से खारिज कर दिया था।

पांच पेज के फैसले के निहितार्थ
1. लोकायुक्त पुलिस ठीक से नहीं कर रही है जांच
(पेज 4 पर लिखा गया जांच एजेंसी अनावश्यक रूप से जांच में विलंब न करें)
2. सुरेश सेठ से बचना चाहती है लोकायुक्त पुलिस।
(पेज 4 व 5 पर लिखा गया है परिवादी सुरेश सेठ को कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है)
3. कोर्ट को मंजूर नहीं राजनीतिक हस्तक्षेप
(फैसले के पेज 2 पर सुरेश सेठ के तर्क को प्रमुखता देते हुए लिखा है कि प्रभावशील राजनीतिक व्यक्ति के हितों को बचाने के लिए जांच में देरी हो रही है)
                                          
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यूं निकाली लोकायुक्त पुलिस की हवा
सेठ ने कोर्ट में करीब 300 पेज का जो जवाब पेश किया है, उसमें उन छहों न्यायिक दृष्टांतों को खारिज किया गया है, जो लोकायुक्त पुलिस ने दिए थे।
एक-
निर्मलजीतसिंह हून बनाम पश्चिम बंगला सरकार केस में कोर्ट ने अनुसंधान अधिकारी को अनुसंधान की दिशा या सीमाओं के संबंध में कोई दिशा नहीं दी थी।
दो-
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा केस में फैसला आरोपी के संबंध में विचार तय करने से जुड़ा है, जबकि मौजूदा केस में विशेष न्यायालय ने कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कोई विचार धारणा प्रकट नहीं की है।
तीन-
पश्चिम बंगाल बनाम एसएन बासक केस में कोर्ट के दिशा निर्देश अंतिम जांच प्रतिवेदन के संबंध में है, जबकि सुगनीदेवी केस में अब तक लोकायुक्त पुलिस ने अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया है।
चार -
बिहार बनाम जेएसी सल्धाना केस भी समर्थन नहीं करता है, क्योंकि विशेष कोर्ट द्वारा अंतिम जांच रिपोर्ट के लिए तारीख तय करना अनुसंधान कार्य में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।
पांच -
टीटी ऐथोनी बनाम केरल केस सक्सेसिव एफआईआर से जुड़ा है, इसलिए यहां प्रासंगिक नहीं है।
छह -
एसएन शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी, मेसर्स जयंत विटामिन्स बनाम चैतन्य कुमार एंड अदर्स, हरियाणा बनाम भजनलाल केस में एफआईआर और उसके बाद अनुसंधान की स्थिति की व्याख्या की गई है।
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जनता के सामने खड़े कई सवाल

सुरेश सेठ ने कोर्ट में प्रस्तुत जवाब में कई सवाल उठाए थे। उन्होंने कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त पुलिस के वकील के तर्कों से जनता के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं, न्यायहित में इनका समाधान बेहद आवश्यक है। उन्होंने लिखा था -
1. प्रथम दृष्टया दोषी होने के बावजूद कैलाश के खिलाफ पहली एफआईआर में नाम नहीं जोड़ा जाना कितना न्यायसंगत है?
2. क्या लोक अभियोजक ने 6 अगस्त की पेशी पर जो जवाब पेश किया, वह राज्य सरकार के दबाव में आकर दिया गया है?
3. क्या विशेष लोक अभियोजक दुर्भावनापूर्ण तरीके से विजयवर्गीय के राजनैतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
4. हाईकोर्ट में 19 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेठ ने लोकायुक्त संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तब लोकायुक्त के वकील ने कोई कोई आपत्ति नहीं ली थी, इसका अर्थ क्या है?
5. क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस केस में विशेष लोक अभियोजक को बतौर लोकस स्टेंडी (पक्ष रखने का अधिकार) प्राप्त है? 

पत्रिका २० अक्टूबर २०१०

कैलाश पर फैसला आज

- सुगनीदेवी जमीन मामले में विशेष न्यायालय देगा 'समय कवच' पर निर्णय


100 करोड के सुगनीदेवी जमीन घोटाले की शिकायत के आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की जांच की समय सीमा पर विशेष न्यायालय बुधवार को फैसला सुनाएगा। लोकायुक्त पुलिस का तर्क है कोर्ट को समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं, जबकि फरियादी सुरेश सेठ ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक दृष्टांतों के आधार पर साबित किया है कि लोकायुक्त जैसी जांच संस्थाओं के लिए भी समय की बाध्यता होती है। 

केस में पिछली सुनवाई 6 अक्टूबर को हुई थी। तब विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने दोनों पक्षों के तर्क सुनकर फैसला 20 अक्टूबर तक के लिए सुरक्षित रखा था। पिछली सुनवाई में शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पुलिस के तर्कों की सिलसिलेवार धज्जियां उड़ाते हुए कोर्ट को बताया विजयवर्गीय को बचाने के लिए ही लोकायुक्त पुलिस ने 21 सितंबर को कोर्ट में अर्जी दी थी कि जांच की समय सीमा तय नहीं की जाए। वैसे 21 सितंबर को लोकायुक्त पुलिस को कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश करना थी। परंतु ïविशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने कोर्ट को बताया था कि मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और चालान पेश करने का लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है। 

'लोकायुक्त पुलिस की भूमिका संदिग्ध'
सुरेश सेठ ने कोर्ट को लिखित में दिया है लोकायुक्त पुलिस मप्र के मंत्री (कैलाश विजयवर्गीय) के दबाव में आकर संदिग्ध भूमिका निभा रही है। विजयवर्गीय इस प्रकरण में न केवल संलिप्त हैं, बल्कि सार्वजनिक घोषणाओं में भी वे यह मंजूर कर चुके हैं। पद का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने 28 अगस्त 2010 को नंदानगर साख संस्था की विशेष साधारण सभा में विवादित जमीन पर कॉलेज बनाने की घोषणा भी कर दी है।

'हाईकोर्ट ने भी तो तय की समय सीमा'   
सेठ ने बताया अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक आरएन सक्सेना के खिलाफ हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को छह माह में जांच करने के निर्देश दिए हैं। उस केस में और मेरे केस में कोई मौलिक अंतर नहीं है। वहां याचिकाककर्ता ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी, यहां विशेष न्यायालय में लगाई गई।                                                   
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यूं निकाली लोकायुक्त पुलिस की हवा
सेठ ने कोर्ट में करीब 300 पेज का जो जवाब पेश किया है, उसमें उन छहों न्यायिक दृष्टांतों को खारिज किया गया है, जो लोकायुक्त पुलिस ने दिए थे।
एक-
निर्मलजीतसिंह हून बनाम पश्चिम बंगला सरकार केस में कोर्ट ने अनुसंधान अधिकारी को अनुसंधान की दिशा या सीमाओं के संबंध में कोई दिशा नहीं दी थी।
दो-
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा केस में फैसला आरोपी के संबंध में विचार तय करने से जुड़ा है, जबकि मौजूदा केस में विशेष न्यायालय ने कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कोई विचार धारणा प्रकट नहीं की है।
तीन-
पश्चिम बंगाल बनाम एसएन बासक केस में कोर्ट के दिशा निर्देश अंतिम जांच प्रतिवेदन के संबंध में है, जबकि सुगनीदेवी केस में अब तक लोकायुक्त पुलिस ने अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया है।
चार -
बिहार बनाम जेएसी सल्धाना केस भी समर्थन नहीं करता है, क्योंकि विशेष कोर्ट द्वारा अंतिम जांच रिपोर्ट के लिए तारीख तय करना अनुसंधान कार्य में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।
पांच -
टीटी ऐथोनी बनाम केरल केस सक्सेसिव एफआईआर से जुड़ा है, इसलिए यहां प्रासंगिक नहीं है।
छह -
एसएन शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी, मेसर्स जयंत विटामिन्स बनाम चैतन्य कुमार एंड अदर्स, हरियाणा बनाम भजनलाल केस में एफआईआर और उसके बाद अनुसंधान की स्थिति की व्याख्या की गई है।
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जनता के सामने खड़े कई सवाल

सुरेश सेठ ने कोर्ट में प्रस्तुत जवाब में कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि लोकायुक्त पुलिस के वकील के तर्कों से जनता के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं, न्यायहित में इनका समाधान बेहद आवश्यक है। उन्होंने लिखा है-
1. प्रथम दृष्टया दोषी होने के बावजूद कैलाश के खिलाफ पहली एफआईआर में नाम नहीं जोड़ा जाना कितना न्यायसंगत है?
2. क्या लोक अभियोजक ने 6 अगस्त की पेशी पर जो जवाब पेश किया, वह राज्य सरकार के दबाव में आकर दिया गया है?
3. क्या विशेष लोक अभियोजक दुर्भावनापूर्ण तरीके से विजयवर्गीय के राजनैतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
4. हाईकोर्ट में 19 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेठ ने लोकायुक्त संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तब लोकायुक्त के वकील ने कोई कोई आपत्ति नहीं ली थी, इसका अर्थ क्या है?
5. क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस केस में विशेष लोक अभियोजक को बतौर लोकस स्टेंडी (पक्ष रखने का अधिकार) प्राप्त है?

पत्रिका १९ अक्टूबर २०१०

पेनजॉन ने मुबंई को दी तीन करोड़ की कड़वी दवा

- वसूली के लिए मनोज-अंजु कोठरी को खोज रही ग्लोबल ट्रेड फाईनेंस कंपनी
- इंदौर के निवेशकों से साढ़े तीन करोड़ लेकर फरार है दोनों


धोखे का धंधा

इंदौर पुलिस को लगातार चकमा देने में कामयाब रहे पेनजॉन फार्मा के संचालक मनोज नगीन कोठारी और अंजु मनोज कोठारी ने मुंबई की ग्लोबल ट्रेड फाईनेंस कंपनी को 2.90 करोड़ रुपए की चपत लगा दी है। कोठारी दंपत्ति से वसूली के लिए कंपनी ने मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।

पेनजॉन फार्मा ने व्यापार के लिए ग्लोबल ट्रेड  फाईनेंस से कर्जा लिया था। जब चुकाने की बारी आई तो कोठारी दंपत्ति गायब हो गए। कंपनी ने अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हाल ही में मुंबई हाईकोर्ट ने समन्स जारी किए हैं।

पते पर ताला
कोठारी दंपत्ति ने कर्जा लेते वक्त जो पता दर्ज किया था, फिलहाल वे वहां नहीं रहते। प्राप्त जानकारी के मुताबिक पेनजॉन ने स्कीम नं. 54 स्थित मान हाउस का पता दिया था। पेनजॉन ने यह ऑफिस किराए पर लिया था। फिलहाल वहां ताला लगा है।

प्रशासन का संरक्षण 
पेनजॉन के खिलाफ इंदौर के 500 से अधिक निवेशकों की लड़ाई जारी है। इन निवेशकों के साढ़े तीन करोड़ रुपए लेकर गायब है। पुलिस ने मनोज-अंजु कोठारी और कीर्तिकुमार शाह पर पांच-पांच हजार रुपए का ईनाम घोषित किया है। निवेशकों का मानना है कि पेनजॉन कंपनी संचालकों को जिला और पुलिस प्रशासन की सुस्ती का फायदा मिल रहा है, अन्यथा कोठारी दंपत्ति को पकडऩा मुश्किल काम नहीं है।

मुंबई में ही कट रही फरारी
सूत्रों के मुताबिक कोठारी दंपत्ति की फरारी मुंबई में ही कट रही है। वहीं रहकर मनोज कोठारी न्यूट्रीचार्ज नाम की दवा का कारोबार कर रहा है। इंदौर में भाजपा नेता अशोक डागा की भतीजी प्राची डागा पेनजॉन फार्मा की सुपर स्टाकिस्ट है।

पत्रिका १७ oct २०१०