रविवार, 7 मार्च 2010

पुलिस के क्वार्टर पर किसका कब्जा?

 जेल में बंद गुंडा, 15 वीं बटालियन का जवान या किसी अनजान व्यक्ति के दोस्त
 मामला 15 वीं बटालियन के डी 12/13 क्वार्टर का 
पुलिस महकमे के एक क्वार्टर पर अज्ञात लोगों ने कब्जा कर रखा है। सरकारी रिकॉर्ड में भी इसकी जानकारी नहीं है कि ये क्वार्टर किसके नाम अलॉट है। दरअसल, इस मकान में एक हिस्ट्रीशीटर बदमाश रहता था, जो फिलहाल जेल में है। उसी के खौफ से पुलिस लाचार है।
15 वीं बटालियन परिसर का क्वार्टर नंबर डी-12/13 पर किसका कब्जा है, यह सवाल एक गुत्थी बन गया है। पुलिस और पीडब्ल्यूडी के रिकॉर्ड में इसकी कोई जानकारी नहीं है, परंतु दोनों ही महकमों को पता है कि इसमें एक हिस्ट्रीशीटर गुंडे के साथी रह रहे हैं। वे पुलिस के बटालियन के ही एक जवान का नाम बताकर खुद को उसका रिश्तेदार बताते हैं, जबकि हकीकत यह है कि जिस जवान का नाम बताया जा रहा है, वह इंदौर में नियुक्त है ही नहीं।
पड़ोसियों की शिकायत पर नैनो टीम ने मौका मुआयना किया। दरवाजा खटखटाने पर आशु नाम का एक लड़का बाहर आया। मकान किसका है, पूछने पर वह घबराते हुए बोला शर्माजी का। कौन शर्मा? सतीश शर्मा, 15 वीं बटालियन में ही हैं। आप कौन हैं? मैं तो उनके रिश्तेदार का लड़का हूं। यहीं रहकर पढ़ाई करता हूं। ये पछने पर कि यहां तो कोई गुंडा रहता था उसका कहना था नहीं मैं तो किसी को नहीं जानता। अभी तो मैं ही रहता हूं।
आशु के जवाबों की सच्चाई जानने 15 वीं बटालियन के कार्यालय में तस्दीक करने पर पता चला कि सतीश शर्मा नाम का जवान इंदौर में पोस्टेड नहीं है। बहुत पहले हुआ करता था, उसका तबादला हो गया है।

सरकारी रिकॉर्ड में ट्वन्टी का नाम
मल्हारगंज थाने के रिकॉर्ड में इस क्वार्टर को ट्वन्टी नाम के गुंडे का निवास बताया गया है। फिलहाल वह उज्जैन जेल में बंद है। उसके पिता हरबख्शसिंह 15 वीं बटालियन में पदस्थ थे। करीब चार वर्ष पहले उनके निधन के बाद से ही ट्वन्टी यहां रह रहा था। उसकी गुंडागर्दी की दबिश के चलते किसी का साहस नहीं हुआ कि उसके अवैध कब्जे को हटाया जा सके।

शातिर बदमाश है ट्वन्टी
ट्वन्टी का नाम जयसिंह उर्फ भोला उर्फ विजयसिंह भी है। इंदौर के सात थानों के साथ ही उसके विरूद्ध महिदपुर थाने में 1997 से दो दर्जन से अधिक गंभीर अपराध दर्ज हैं। हत्या और हत्या की साजिश के साथ-साथ एनडीपीएस जैसे केस भी उसके खिलाफ हैं।

ट्वन्टी के मुकदमों की फेहरिस्त
मल्हारगंज थाना        
आम्र्स एक्ट के साथ ही आईपीसी की धारा 323,294, 506, 324, 294, 324, 382, 392, 394, 341, 452, 307 एवं 34 में नौ केस।
सदर बाजार थाना
आईपीसी की धारा 234, 324 एवं 307 में दो केस।
बाणगंगा थाना
आईपीसी की धारा 572, 481, 307, 386, 556, 530 एवं 363 में पांच केस।
जूनी इंदौर थाना
आईपीसी की धारा 477, 365, 366 एवं 120 में एक केस।
हीरानगर थाना
आईपीसी की धारा 153, 324, 284 में एक केस।
एरोड्रम थाना
आईपीसी की धारा 343 के साथ ही रासुका में दो केस।
तुकोगंज थाना
आईपीसी की धारा 427, 452, 394, 428 के साथ ही एनडीपीएस एक्ट के तहत दो केस।
महिदपुर उज्जैन थाना
आईपीसी की धारा 394, 397, 302 एवं 347 में एक केस।

पेशी पर आकर लोगों को धमकाता
ट्वन्टी पर दर्ज कई केस के सिलसिले में उसका इंदौर जिला कोर्ट आने का सिलसिला बना रहता है। हाल ही में पुलिस को एक शिकायत दी गई है, जिसमें इंदौर कोर्ट से दोस्त के मोबाइल से धमकाने का जिक्र है।

हमारे पास मकान का रिकॉर्ड नहीं
मैंने सारा रिकॉर्ड देख लिया है। पूर्व में इसमें हरबक्श सिंह रहते थे। उसके बाद इसे स्पेशल ब्रांच में पदस्थ संजयसिंह के नाम अलॉट किया, जिससे खाली करवाया गया। मकान संभागायुक्त पूल का है और इसके अलॉटमेंट का काम पीडब्ल्यूडी करता है। अब कौन रहता है, पीडब्ल्यूडी ने यह जानकारी नहीं दी है। वहां रहने वालों से परेशानी के संबंध में अब तक किसी पड़ोसी ने लिखित में शिकायत नहीं की है।
आरएस भदौरिया, क्वार्टर मास्टर, 15 वीं बटालियन

मिलते ही नहीं पीडब्ल्यूडी के साहब
संभागायुक्त कार्यालय से क्वार्टर की जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो बताया गया कि किला मैदान पीडब्ल्यूडी ऑफिस में पता चलेगा। करीब एक सप्ताह तक वहां जाकर रिकॉर्ड पता करने की कोशिश की गई, लेकिन वहां के साहब मिलते ही नहीं। काम करने वाली बाई से जब भी पूछने जाओ तब बताया गया टाइम कीपर राजेंद्र तिवारी अभी गए हैं, आते ही होंगे। यही हाल सब इंजीनियर पीके तिवारी का भी था। वे न तो किला मैदान और न ही बड़ा गणपति स्थित शारदा कन्या स्कूल के ऑफिस में मिले।

लापरवाही की आग

निरीक्षण करने वाले अफसरों को क्यों नहीं दिखता खतरा ?
इंदौर के पास के औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर स्थित नियोसेक पॉली बैग कंपनी में शनिवार को लगी भीषण आग ने एक बार फिर उद्योगों में सुरक्षा इंतजामों की खामी समाने ला दी है। आग की भयावहता इतनी थी कि दोहजार टैंकर भी कम पड़ गए और 3 फीट चौड़ी व 25 फीट लंबी लोहे की गर्डर पानी तरह पिघल गईं। आग से 100 करोड़ की संपत्ति के नुकसान की आशंका है। जब आग लगी तब 800 मजदूर काम कर रहे थे। सभी ने भागकर जान बचाई। दरअसल, फैक्ट्री में आग पर काबू पाने के फायर इंतजाम दुरस्त नहीं थे और आग बढ़ती ही चली गई। तथ्य यह भी है कि राज्य में छोटे-बड़ी 30 लाख औद्योगिक इकाइयां बगैर फायर एनओसी के चल रही हैं। इन कारखानों में लाखों लोग काम करते हैं और अरबों रुपए का निवेश किया गया है। वैसे तो राज्य में सुरक्षा अधिनियम बना हुआ, परंतु क्या अधिकारी इस अधिनियम को लागू करवा पा रहे हैं? इतनी जिंदगी और इतने उद्योगों को जोखिम में झोंकने का मतलब क्या है? बगैर फायर इंतजाम के ये कारखाने कैसे चल रहे हैं? क्या इसके पीछे अधिकारियों और कारखाना मालिकों की मिलीभगत है?  जिन अधिकारियों पर इन उद्योगों के सतत निरीक्षण करने की जिम्मेदारी होती है, वे किस तरह की नजर डालकर लौट आते हैं? इन सवालों के रटे रटाए जवाब अधिकारियों के पास हो सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने काम करने के तौर-तरीकों से यह बताना होगा कि अनचाही आग से लडऩे के लिए वे संजीदा हैं। वैसे, उम्मीद की किरण भी दिख रही है। पांच राज्यों के सर्वे के आधार पर अग्निशमन अधिनियम का एक मसौदा सरकार के पास विचाराधीन है। संभावना है कि उसे शीघ्र ही विधानसभा की मंजूरी मिलेगी। संभवत: उसके बाद उद्योग अग्नि सुरक्षा का कवच पहनने को मजबूर होंगे और लापरवाही की आग काबू में रहेगी।