सोमवार, 23 अगस्त 2010

व्हिसल ब्लोअर की सफाई ?

चिन्मय मिश्र 

ये  किस तरह का समय है, जब पेड़ों के बारे में बात करना लगभग अपराध है।

मध्यप्रदेश में चल रही जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल की आड़ में डॉ. आनंद राय की बर्खास्तगी उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए चेतावनी है, जो प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। डॉ. राय ने इंदौर के महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय व महाराजा यशवन्त राव अस्पताल में बिना अनुमति के बहुराष्ट्रीय दवाई कंपनियों के लिए किए जा रहे 'ड्रग ट्रायलÓ का पर्दाफाश किया था। उनकी बर्खास्तगी के आदेश को मीडिया के लिए भी एक चेतावनी माना जा सकता है। क्योंकि डॉ. राय द्वारा किए गए रहस्योद्घाटन को अंतत: मीडिया ने ही व्यापक समाज तक पहुंचाया था। इसलिए यह आदेश मीडिया को भी उसकी हैसियत बताने का तरीका है कि वे भले ही समाज हित के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दें, लेकिन प्रशासन वही करेगा जो कि उसके स्वयं के हित में है।

इस आदेश का अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि हड़ताल की वजह से जहां अन्य जूनियर डॉक्टर्स को 15 दिनों के लिए निलंबित किया गया है, वहीं डॉ. राय के अनुसार उन्होंने हड़ताल की अवधि में भी ओपीडी और इमरजेंसी विभाग में अपनी सेवाएं दी थी। इसके बावजूद सूत्रों का कहना है कि उन्हें 'बेहतरीÓ के लिए बर्खास्त किया गया है। सवाल उठता है कि यह किसकी बेहतरी के लिए किया गया है? हड़ताल के दौरान भी अपना काम करना क्या 'बेहतरीÓ की श्रेणी में नहीं आता? दरअसल बात बहुत दूर तक जा रही है। एक ओर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली तो चर्चा में थी ही, वहीं दूसरी ओर मई में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा चार बहुराष्ट्रीय दवाई कंपनियों  नोवारिटस, बीएमएस, इलिलिली और फाइजर के सर्वोच्च अधिकारियों के साथ बैठक में भारतीय दवाई निर्माताओं का मानना है कि देश में निर्मित 'जेनेरिकÓ दवाइयों के कारण भारत व तीसरी दुनिया के देशों और कुछ हद तक विकसित देशों में भी दवाई की कीमतें काबू में रहती हैं। यदि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बात मान ली जाती है, तो आम आदमी को जीवनरक्षक दवाइयों के लिए काफी अधिक मूल्य देना होगा।

इसी दौरान मंदसौर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के लिए सरकारी तौर पर चंदा इक_ा करना भी गंभीर मामला है। कहा जा रहा है कि पिछले वर्ष तत्कालीन कलेक्टर ने 'मनोकामना अभिषेक योजनाÓ के माध्यम से 4.5 करोड़ रुपये इक_े किए थे और इस बार तो जिलेभर में 'मनोकामना अभिषेक वर्ष 2010Ó समारोहित कर पांच करोड़ रुपये इक_े करने की योजना है। इस हेतु सरकारी अधिकारियों को नोडल ऑफिसर नियुक्त कर दिया गया है और रसीद कट्टे छपवाकर 'टारगेटÓ तय कर वितरित कर दिए गए हैं।

सरसरी तौर पर देखने में उक्त दोनों मामलों में कोई समानता नजर नहीं आएगी, परन्तु गहराई से देखने पर समझ में आता है कि दोनों मामलों में शासन-प्रशासन अपनी तरह से मूल्य व मानक तय कर रहा है। 'व्हिसल ब्लोअरÓ बिल को अभी कैबिनेट से ही सहमति मिली है, अतएव प्रशासन में रहकर भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की अभी खैर नहीं है। इस अधिनियम के अभाव में सूचना का अधिकार कानून को लेकर अमित जेठवा जैसे भ्रष्टाचार उजागर करने वालों का हश्र हम देख चुके हैं।

सरकारें भी चाहती हैं कि व्हिसल ब्लोअर अधिनियम पारित होने से पहले जितनी 'सफाईÓ संभव हो कर ली जाए परन्तु यह विध्वंसकारी परिपाटी है जिससे सार्वजनिक क्षेत्र को बचाया जाना चाहिए। दहशत फैलाने की कोशिशों के समक्ष चुप बैठना भी समझदारी नहीं है।


चिन्मय मिश्र  सामाजिक कार्यकर्ता  हैं.
पत्रिका : २३ अगस्त २०१०

अफसर की सनक

भुवनेश जैन

मध्यप्रदेश के मंदसौर शहर में एक अजीब खेल चल रहा है। यहां सरकारी अफसर बाकायदा 'लक्ष्यÓ तय कर एक मंदिर के लिए चंदा उगाही कर रहे हैं। सरकार के किसी भी दफ्तर में कलेक्टर कार्यालय से लेकर ग्राम पंचायत में किसी को कोई भी काम करवाना हो तो पहले चंदे की रसीद कटवाए, फिर फाइल आगे चलेगी। हर सरकारी दफ्तर को उसके स्तर के अनुरूप लक्ष्य दिए गए हैं।
यूं तो पूरे देश में समाजकंटक चंदे के नाम पर अवैध उगाही करते मिल जाएंगे, पर मध्यप्रदेश इस बीमारी से ज्यादा ही ग्रस्त है। कभी कलश यात्रा के नाम पर, कभी भंडारे के नाम पर तो कभी भजन-कीर्तन के नाम पर आए दिन चंदेबाजों के गिरोह रसीदें लेकर वसूली के लिए पहुंच जाते हैं, लेकिन जब सरकारी अफसर चंदा वसूली में जुट जाएं तो औरों को कौन रोकेगा?

मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर के कलेक्टर प्रशासक हैं और एसडीएम सचिव। मंदिर में मनोकामना अभिषेक के नाम पर चंदा उगाही हो रही है। बाकायदा ११०० व २१०० रुपए की रसीदें छपवाई गई हैं। हद तो यह है कि पांच करोड़ रुपए इकटï्ठा करने का लक्ष्य पूरा हो, इसके लिए चार विकासखंडों में नोडल अफसर बनाए गए हैं। एक तरह से उन्हें यह भी सुनिश्चित करना है कि कहीं किसी का काम बिना चंदा दिए न हो जाए। सवाल यह उठता है कि अगर सरकारी अफसर मंदिर के नवनिर्माण के लिए चंदा उगाह रहे हैं तो क्या उन्होंने राज्य सरकार को प्रस्ताव भेज इसकी अनुमति ली है? पूरे प्रदेश में यदि इसी तरह अफसरों को चंदा वसूली की छूट दे दी गई तो कैसी अराजकता होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। सरकारी दफ्तरों में तो आदमी अपनी तकलीफें लेकर ही जाता है, चाहे वह ब्लॉक का ऑफिस हो या कलेक्टर का। ऐसे पीडि़त से जबरन चंदा वसूली करना अमानवीय ही है।

धर्मस्थलों के निर्माण के लिए श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से योगदान देते हैं। जबरन वसूली जहां होती है, वहां श्रद्धा तो हो ही नहीं सकती। यह तो धर्मस्थल है, यदि किसी अधिकारी को सनक चढ़े कि वह शहर में होटल या मॉल बनवाने के लिए चंदा उगाहेगा, तो क्या उसे छूट दी जाएगी। इस चंदा वसूली में एक तरफ जनता की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ उस पर जबरन ऐसे 'करÓ का भार डाल दिया गया है, जिसका एक धेला भी सरकारी खजाने में जमा नहीं होगा।

आश्चर्य की बात यह है कि इस चंदा वसूली को लेकर जनप्रतिनिधि भी मौन हैं। अब तक ढाई करोड़ रुपए इकट्ठा किए जा चुके हैं। क्या जनता की नब्ज पर हाथ रखने वालों को उसकी चीख नहीं सुनाई देती? तो क्या फिर यह माना जाए कि इस चंदा वसूली के पीछे उनके भी स्वार्थ हैं। भ्रष्टाचार का यह एक अनूठा उदाहरण है, जिसमें सरकारी अफसरों की छत्रछाया में जनता से ऐसी वसूली की जा रही है, जिसका हिसाब पूछने वाला कोई नहीं है। अवैध वसूली में राजनीतिज्ञों और अफसरों के गठजोड़ का यह नया उदाहरण है। राज्य सरकार भी चुप है तो यह या तो उसके सूचना तंत्र की कमजोरी है या उसकी मौन स्वीकृति से यह उगाही हो रही है।




भुवनेशजी जैन पत्रिका के समूह संपादक हैं.
पत्रिका : २३ अगस्त २०१०

कैलाश को धूल चटाई

ज्योतिरादित्य सिंधिया
कैलाश विजयवर्गीय
क्रिकेट का क,ख,ग भी नहीं जानने वाले मप्र के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को केंद्रीय उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद के सीधे मुकाबले में करारी शिकस्त देते हुए लगभग धूल चटा दी। सिंधिया को 142 वोट मिले, जबकि शुरू दिन से 'अहंकारÓ में डूबे कैलाश को 70 से ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस और भाजपा के लिए भी यह चुनाव बेहद प्रतिष्ठा का बन चुका था। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक घोटालों के आरोपों से घिरे कैलाश के लिए यह हार बहुत बड़ा अवरोध साबित होगी।

सिंधिया ने मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के कप्तान (अध्यक्ष) बनकर लंबी पारी के इरादे से मैदान में जम गए हैं। इसी चुनावी मैच को लेकर रविवार सुबह से ही इंदौर समेत पूरे राज्य और देशभर के नेता और क्रिकेटर निगाहें जमाए थे। इंदौर के उषाराजे स्टेडियम में प्रात: 10.30 बजे मैनेजिंग कमेटी की बैठक हुई और 12.30 बजे साधारण सभा की बैठक। सभा में सिंधिया ने समझौते के लिए डाली गई कैलाश समर्थकों की गेंद को वाइड करार देते हुए कहा चुनाव होकर रहेंगे। मैं वॉकओवर देने के मूड में नहीं हूं। ïदोपहर 2.45 बजे चुनावी मैच शुरू हुआ, जो रात 12.30 बजे तक चला। पूरे समय सिंधिया हावी रहे और एक बार तो ऐसी नौबत भी आ गई कि कैलाश को 'बॉल टेम्परिंगÓ जैसी बचकानी हरकत के लिए माफी तक मांगना पड़ी। मैच शुरू होने के पहले सिंधिया ने अपनी टीम के सबसे मजबूत खिलाड़ी (सचिव) संजय जगदाले को बाहर कर लिया क्योंकि उनके आसानी से आउट होने की प्रबल संभावना बन चुकी थी। मैच एंपायर (चुनाव अधिकारी) दिलीप चुडकर को घोषित किया गया था। देर रात घोषित किया गया कि सिंधिया मैन ऑफ द डे, मैच एंड एमपीसीए हैं। 217 में से उन्हें 142 सदस्यों ने समर्थन दिया है और कैलाश टीम 'क्लीन बोल्डÓ हो चुकी है।

जीत-हार के राजनैतिक मायने 
सिंधिया की जीत और कैलाश की हार के गहरे राजनैतिक मायने भी हैं। कैलाश 100 करोड़ रुपए के सुगनीदेवी जमीन घोटाले में जांच से गुजर रहे हैं और चाहते थे कि इस चुनाव के जरिए ताकत दिखाकर 'बचÓ जाएं। हार से उनके धुर विरोधियों को ताकत मिलेगी। कैलाश की यह पहली हार है। उधर, सिंधिया की जीत से इंदौर में कांग्रेस के 'ध्रुवीकरणÓ का दौर शुरू होने की संभावना है।

कार्यकारिणी, संस्थाओं पर सिंधिया का कब्जा

पद/संस्था                          जीते                                   हारे
अध्यक्ष                           ज्योतिरादित्य सिंधिया (१४३)    कैलाश विजयवर्गीय (७२)
चेयरमैन                          एमके भार्गव (१४१)                  अशोक जगदाले (७०)
उपाध्यक्ष एक                    विजय नायडू (१२९)                रमेश भाटिया (५९)   
उपाध्यक्ष दो                      भगवानदास सुतार (१४७)       विजय बडज़ात्या (५३)
उपाध्यक्ष तीन                  श्रवण गुप्ता (११९)                    अनुराग सुरेका (६१)
सचिव                            नरेंद्र मेनन (१३३)                    अमिताभ विजयवर्गीय (६१)
कोषाध्यक्ष                      वासु गंगवानी (१४९)                चंद्रशेखर भाटी (३१)
सहसचिव एक                 अल्पेश शाह (१२४)                  अमरदीप पठानिया (५३)
सहसचिव दो                   नरेंद्र दुआ (१३७)                     संजय लुणावत (४०)
मैनेजिंग कमेटी एक        गुलरेज अली (151)                  गोपालदास मोहता (66)
मैनेजिंग कमेटी दो          भोलू मेहता (158)                    डॉ. अपूर्व वोरा (67)
मैनेजिंग कमेटी तीन       मिलिंद कनमड़ीकर (144)         मानवेंद्रसिंह बैस (55)
मैनेजिंग कमेटी चार        अनिल जोशी (129)                  ————-
क्लब संस्था एक             स्टार क्लब (121)                   वैष्णव हायर सेकंडरी (53)
क्लब संस्था दो               सीसीआई (147)                     डीएवीवी (50)
क्लब संस्था तीन            वायएमसीए (140)                 एसजीएसआईटीएस (35)
क्लब संस्था चार            सिंधिया स्कूल (151)              जहांगीराबाद क्लब जब. (28)
(कोष्टक में वोट संख्या। कुल वोट 215। तृतीय मोर्चे के कुछ को नाममात्र वोट)


साधारण सभा में कैलाश को मांगना पड़ी माफी
- सिंधिया के भाषण में रुकावट डालने का भुगता खामियाजा

मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) की वार्षिक साधारण सभा में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को खुद के बरताव के कारण शर्मिंदा होना पड़ा। वे एमपीसीए अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाषण में व्यवधान पैदा कर रहे थे। बाद में कैलाश को गलती का अहसास हो गया और उन्होंने माफी भी मांगी।

दरअसल, साधारण सभा में रीवा डिवीजन की क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव कमल श्रीवास्तव अंतरराष्टï्रीय मैच में टैक्स से जुड़े एक मुद्दे पर कुछ प्रश्न पूछ रहे थे। सिंधिया ने उन्हें यह कहते हुए समझाइश दी कि अभी बात पूरी हो जाने दीजिए। इस पर कैलाश अचानक खड़े हो गए। उन्होंने कहा यह अलोकतांत्रिक है, सभी को बोलने का मौका दिया जाना चाहिए। शुरू से अंग्रेजी में भाषण दे रहे सिंधिया ने इस पर हिंदी में कहा कैलाशजी, यह इंदौर डिवीजन क्रिकेट एसोसिएशन (आईडीसीए) नहीं है, एमपीसीए है। यहां कुछ नियम कायदे हैं, उन्हीं के तहत मैं बात कर रहा हूं। जब आपका मौका आएगा, तब बोलिएगा। गरिमा बनाकर रखें। इस पर कैलाश मौन हो गए। कुछ ही देर में उन्हें गलती का अहसास भी हो गया और 'समझदारीÓ दिखाते हुए उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने व्यवहार पर माफी मांगी।

'लोकतंत्र के लिए किया यह सबकुछÓ
बाहर आने के बाद माफी मांगने के सवाल पर कैलाश ने मीडिया को बताया पहली बार एमपीसीए की साधारण सभा लोकतांत्रिक तरीके से हुई। मैंने इसी के लिए प्रयास किया और मैं उसमें कामयाब भी रहा।

सिंधिया को देखने उमड़े कांग्रेसियों पर बरसी लाठियां
करीब 9.30 बजे सिंधिया बाहर आए और कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंचे। उन्होंने पुलिस के एक वाहन पर खड़े होकर सभी का अभिवादन किया। कार्यकर्ता उन्हें देखने उमड़े, जिससे अनियंत्रण की स्थिति बनी। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, नहीं माने तो लाठियां बरसाई। बाद में कांग्रेस नेताओं ने कार्यकर्ताओं को काबू किया। सिंधिया के साथ सांसद सज्जन वर्मा और विधायक अश्विन जोशीï, तुलसी सिलावट, सत्यनारायरण पटेल भी मौजूद थे।


सिंधिया ने ठुकराई समझौते की पेशकश

केंद्रीय उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मप्र के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की दावेदारी के कारण देशभर में चर्चित हो चुके मप्र क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के चुनाव की प्रक्रिया रविवार को इंदौर के उषाराजे स्टेडियम में शुरू हुई। साधारण सभा के दौरान चुनाव टालने के लिए सिंधिया से कई सदस्यों ने आग्रह किया, लेकिन उन्होंने समझौते की पेशकश को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने साफ कहा, चुनाव लड़कर ही अध्यक्ष बनूंगा। किसी से किसी पद के लिए कोई समझौता नहीं होगा। उधर, एमपीसीए की साधारण सभा के दौरान कैलाश को अपने ही व्यवहार के कारण माफी मांगना पड़ी।

स्टेडियम में प्रात: 10.30 बजे एमपीसीए की मैनेजिंग कमेटी की बैठक होना थी, लेकिन 8 बजे से ही यहां गहमागहमी शुरू हो गई थी। सिंधिया के समर्थन में वरिष्ठ कांग्रेस नेता महेश जोशी की अगुवाई में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता जुट गए थे। विजयवर्गीय समर्थक स्टेडियम के बाहर नहीं फटके। प्रात: 10.45 बजे मैनेजिंग कमेटी की बैठक हुई। इसमें कुछ प्रस्ताव पास किए गए और दोपहर 12.30 बजे साधारण सभा शुरू हो गई। राज परिवार की उषाराजे और संतोष मल्होत्रा समेत कई वरिष्ठ सदस्यों ने एमपीसीए के मौजूदा अध्यक्ष सिंधिया से आग्रह किया कि आज तक कभी एमपीसीए के चुनाव नहीं हुए। इसी परंपरा को आगे भी निभाया जाए। इस दौरान कैलाश के चेहरे के हावभाव बता रहे थे कि वे भी चुनाव के पक्ष में नहीं है। बैठक में हिस्सा लेने जाने के पहले ही कैलाश ने मीडिया को कहा भी था हम शुरू दिन से चुनाव के पक्ष में नहीं हैं। हमने सारे विकल्प खुले रखे हैं। सिंधिया ने परंपरा निभाने के प्रस्ताव को नकारते हुए कहा, पंद्रह दिन से जो बातें हो रही हैं, उसे देखते हुए चुनाव अनिवार्य है और बगैर चुनाव के मैं अध्यक्ष नहीं बनना चाहता। आखिर दोपहर 2.40 बजे चुनाव की घोषणा हो गई। दिलीप चुडकर को रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त कर दिया गया और दोपहर 3.15 बजे तक नामांकन भरने का समय निर्धारित किया गया। 3.45 बजे तक नाम वापसी का समय तय किया गया। शाम 5.45 से मतदान शुरू हुआ।

जगदाले के लिए बदली रणनीति
चुनाव की घोषणा के बाद सिंधिया पैनल ने तत्काल रणनीति बदलते हुए सचिव पद के लिए पहले से घोषित उम्मीदवार संजय जगदाले को हटा लिया। उनके स्थान पर नरेंद्र मेनन को उतारा गया। दरअसल, जगदाले लगातार दो बार से सचिव पद पर पदस्थ हैं और इस बार फिर से सचिव बनने के लिए उन्हें दो तिहाई वोट हासिल करना अनिवार्य है। चुनाव में किसी किस्म का चौखिम मोल नहीं लेने की रणनीति के तहत सिंधिया ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया।

उषाराजे स्टेडियम का नया नाम होल्कर स्टेडियम
करीब पौने दो घंटे चली मैनेजिंग कमेटी की बैठक में तय किया गया कि उषाराजे स्टेडियम का नाम होल्कर स्टेडियम कर दिया जाएगा। पूर्व क्रिकेटर एसपी चतुर्वेदी की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बनाई गई, जो स्टेडियम में मौजूद बॉक्सों के नामकरण के लिए क्रिकेटरों के नाम सुझाएगी। यह भी तय हो गया कि इंदौर और ग्वालियर में स्टेडियम के लिए 25-25 एकड़ जमीन का इंतजाम एमपीसीए द्वारा किया जाएगा। 


वेशभूषा में स्मार्ट दिखे सिंधिया

सिंधिया फारमल पेंट शर्ट के साथ ही गहरे नीले रंग का कोट पहनकर आए थे, जबकि कैलाश पारंपरिक अंदाज में सफेद कुर्ते पायजामे पर केशरिया दुपट्टा डालकर। दोनों की वेशभूषा भी चुनावी चर्चा में शामिल रही। लोगों का कहना था एमपीसीए की गरिमा के अनुसार तो जेंटलमेन और स्मार्ट सिंधिया को ही ज्यादा अंक मिलेंगे।

'चुनाव होना ही चाहिए नहीं तो मैं चलाÓ
खेल प्रशाल और आईडीए बिल्डिंग के मेनगेट पर जैसे ही सिंधिया पहुंचे, महेश जोशी से उनकी मुलाकात हुई। जोशी ने सिंधिया को कहा चुनाव होना ही चाहिए, नहीं तो मैं चला जाऊंगा। किसी भी स्थिति में समझौता नहीं करना है। सिंधिया ने भी उन्हें आश्वस्त किया कि आप जैसा चाहते हैं, वैसा ही होगा।


सुबह से चलते रहे बयानों के बाउंसर

प्रात: 10.10 बजे : कैलाश विजयवर्गीय
उपाध्यक्ष पद के दावेदार रमेश भाटिया के साथ गाड़ी से उतरे और बोले हम तो शुरू दिन से ही चुनाव नहीं चाहते हैं। इंदौर को मिला स्टेडियम, एकेडेमी और जिम सबकुछ बीसीसीआई ने दिया है, एमपीसीए ने कुछ नहीं दिया। निर्वाचित होने पर पांच वर्ष में पांच अंतरराष्टï्रीय क्रिकेटर तैयार करूंगा। गरीब खिलाडिय़ों के लिए फंड बनाऊंगा।

प्रात: 10.35 बजे: ज्योतिरादित्य सिंधिया
दूसरे बैरिकेट्स के यहां से पैदल चलकर मेनगेट तक पहुंचे। मीडिया से अनौपचारिक चर्चा में बोले अब तो चुनाव हो ही जाए। कुछ ही घंटों में सबके सामने दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। वे आत्मविश्वास से भरे थे और अपने पीए पाराशर के साथ स्टेडियम में प्रविष्ठ हुए। 

प्रात: 11 बजे: सज्जन वर्मा
देवास क्रिकेट एसोसिएशन की नुमाइंदगी की। पैदल आने का कारण पूछा तो बोले कुछ लोगों को सड़क पर लाना है। कहा यह कांग्रेस-भाजपा की लड़ाई नहीं है, क्रिकेटर और गैर क्रिकेटर की जंग है। विजयवर्गीय बताएं कि डेढ़ वर्ष से इंदौर डिवीजन में होने के बावजूद उन्होंने मैदान के लिए जमीन का इंतजाम क्यों नहीं किया?

प्रात: 11.10 बजे: महेश जोशी
मेनगेट पर करीब तीन घंटे तक तैनात रहे। मीडिया से कहा पहले चूक गया था, तो ओलंपिक संघ में गंदगी घूस गई, अब यहां नहीं घुसने दूंगा। कुछ उठाईगिरे किस्म के लोग क्रिकेट की फिजा बिगाडऩा चाहते हैं, उन्हें कामयाब नहीं होने दिया जाएगा।

प्रात: 11.15 बजे: अशोक जगदाले
कैलाश पैनल से चेयरमैन पद के दावेदार बनकर आए और कहा चुनाव लड़कर ही लौटूंगा। इंदौर के खिलाडिय़ों के साथ भेदभाव हुआ और यह सहन नहीं किया जा सकता।

दोपहर 12 बजे : अश्विन जोशी
वोटर ने नाते भीतर गए। हाथ में 'पत्रिकाÓ अखबार की वे खबरें थी, जिनमें कैलाश के घोटाले प्रकाशित हुए। साफगोई से बोले नेताओं को खेल से दूर हो जाना चाहिए। मैं खुद भी इसके लिए तैयार हूं। सिंधिया जेंटलमेन और क्रिकेटर हैं, इसलिए एमपीसीए का अध्यक्ष पद उनका हक है।

दोपहर 2.45 बजे : श्रवण गुप्ता
एमपीसीए के पूर्व अध्यक्ष ने बताया साधारण सभा सद्भावना पूर्ण तरीके से पूरी हुई। विजयवर्गीय कुछ उखड़े थे, लेकिन बाद में गलती मानकर शांत हो गए। 85 प्रतिशत वोटर आ चुके हैं।  


कांग्रेस एकजुट, कैलाश के कारण बिखरी भाजपा
गुटों में बंटी कांग्रेस को भी चुनाव के नाम एकजुटता दिखाने का मौका मिल गया। दिग्गी, पचौरी गुट ने सिंधिया से साथ कंधे से कंधा मिलाकर मैदान संभाला। प्रमोद टंडन, विपीन खुजनेरी, नरेंद्र सलूजा, रघु ठाकुर, संजय शुक्ला, कृपाशंकर शुक्ला, अंतरसिंह दरबार, पंकज संघवी, नरेंद्र सलूजा, अभय दुबे, भल्लू यादव, अभय वर्मा, छोटे यादव के साथ ही विधायक सत्यनारायण पटेल भी मौजूद थे। उधर, भाजपा में बिखराव दिखा। सुमित्रा महाजन, भवंरसिंह शेखावत, सुदर्शन गुप्ता जैसे नेता कैलाश विजयवर्गीय के कारण क्रिकेट के इस मैदान से दूर हो गए। इतना ही नहीं भाजपा ने अंदरूनी तौर पर यह भी तय कर लिया था कि शहर हित में कैलाश को सबक सिखाने का यह सही मौका है।

सिलावट ने संभाली कमान
सिंधिया के कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट ने कमान संभाल रखी थी। वे वोटरों को एक-एक करके बुलाते रहे और उन्हें ससम्मान भीतर भेजते रहे। हालांकि, बीच में उनकी एक-दो बार पुलिस से बहस भी हो गई। उनके गनमैन को जब पुलिस ने बेरिकेट्स के बाहर करना चाहा तो सिलावट ने कहा मेरा गनमेन मेरे साथ नहीं रहेगा, तो कहां जाएगा।

सागर, बदनावर, महिदपुर के विधायक भी पहुंचे
सिंधिया के समर्थन में सागर के विधायक गोविंदसिंह राजपूत, बदनावर धार के राजवद्र्धनसिंह दत्तेगांव और महिदपुर की कल्पना पैरूलकर भी पहुंची। उज्जैन के पूर्व विधायक राजेंद्र भारती भी मौजूद थे।


तीन स्थानों पर पुलिस चेकिंग 
स्टेडियम में जाने वाले हर सदस्य की चेकिंग के लिए तीन चरण तय किए गए थे। एक रेसकोर्ट रोड मुहाने पर, दूसरा खेल प्रशाल के मेनगेट के पास में और तीसरा उषाराजे स्टेडियम का मेनगेट। बगैर पहचान पत्र बताए किसी भी पहले गेट से ही अंदर नहीं जाने दिया गया। मीडिया सदस्यों को दूसरे चरण तक की अनुमति थी, जबकि एमपीसीए के वोटर ही तीसरे चरण के पार जा सके।

बार-बार जाम हुआ ट्रैफिक
रेसकोर्स रोड पर प्रात: 11 बजे से ही ट्रैफिक का हाल बिगडऩे लगा था। पुलिस ने कई बंदोबस्त किए, लेकिन वे भी नाकाफी साबित हुए। दोपहर 12 बजे बाद बैरिकेडिंग की गई और इसके बाद कुछ देर के लिए हालात काबू रहे, किंतु बाद में फिर से स्थिति बिगड़ गई।

बारिश से मची अफरातफरी
दोपहर 2.15 बजे हल्की बारिश शुरू होते ही कुछ देर के लिए अफरातफरी मच गई। कांग्रेसी आसपास के शापिंग कॉम्प्लेक्सों की ओर दौड़े और खुद को भीगने से बचाया। हालांकि, बारिश कुछ मिनिटों में ही बंद हो गई और फिर से लोग सड़के आसपास जुट गए।

95 वर्षीय दुबे भी पहुंचे
टसल में तबदील हो चुनाव में वोट देने के लिए 95 वर्षीय एमएम दुबे भी स्टेडियम पहुंचे। उन्होंने कहा क्रिकेट को जिंदा रखने के लिए मैं यहां आया हूं।


कैलाश बोले, मैं हार-जीत के लिए चुनाव नहीं लड़ा

वोटिंग समाप्त होने के तत्काल बाद कैलाश विजयवर्गीय स्टेडियम से बाहर आए और मीडिया से मुखातिब हुए। पराजित योद्धा की मुद्रा में उन्होंने कहा मैं हार-जीत के लिए चुनाव नहीं लड़ा था। मैं तो उसी दिन जीत गया था, जब सिंधिया जैसे 'महाराजाÓ को सड़क पर उतर कर वोट मांगना पड़े। खुद की मर्जी से नहीं, मैं तो क्रिकेटरों के लिए मैदान में उतरा। साधारण सभा में उनके द्वारा माफी मांगने की घटना पर वे बोले पहली बार साधारण सभा में लोकतांत्रिक तरीके से चर्चा हुई।

कैलाश को नहीं मिला उम्मीदवार
कैलाश पैनल की बुरी हालत का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें मैनेजिंग कमेटी के लिए पूरे चार उम्मीदवार भी नहीं मिले। उन्होंने गोपालदास मेहता, डॉ. अपूर्व वोरा व मानवेंद्रसिंह बैस को ही मैदान में उतारा, जबकि सिंधिया पैनल की ओर से हर पोस्ट के लिए उम्मीदवार मैदान में था।


 
 
 
पत्रिका : २३ अगस्त २०१०
साथ में विकास मिश्रा 

हड़ताली 30 जूनियर डॉक्टर निलंबित

- पांच दिन से कर रखी सेवाएं ठप, सरकार का कड़ा फैसला


पांच दिन से 20 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल कर रहे एमजीएम मेडिकल कॉलेज के 30 जूनियर डॉक्टरों को शनिवार रात सरकार ने निलंबित कर दिया है। ये सभी जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी है। इनसे होस्टल भी खाली करवाए जाएंगे। हड़तालियों को उकसाने का आरोप मढ़ कर सिनीयर रेसीडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष को भी निष्काषित किया गया है।  

हड़ताल के कारण मरीजों की दुर्दशा देखते हुए शासन ने यह कड़ा निर्णय लिया है। एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत ने बताया शासन के निर्देश के आधार पर देर रात कॉलेज काउंसिल की बैठक बुलाई गई। इसमें निलंबन और बर्खास्तगी का फैसला किया गया। ज्ञात रहे शुक्रवार को चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य राज्यमंत्री महेन्द्र हार्डिया चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव आईएस दाणी और स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव एसआर मोहंती के साथ जूडॉ की बैठक बेनतीजा रहने और जूडा के हड़ताल खत्म नहीं करने को शासन ने गंभीर लापरवाही माना है। डीन ने बताया जो जूडॉ काम पर लौटेंगे, उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाएगी। मेडिसिन विभाग में पदस्थ एक लेडी डॉक्टर को भी नोटिस दिया जा रहा है, क्योंकि वे पंद्रह दिन से सेवा पर नहीं आई हैं।


व्हिसल ब्लोअर पर सरकारी तंत्र का हमला  
हड़ताल करने वालों के साथ ही सिनीयर रेसीडेंट एसोसिएशन अध्यक्ष डॉ. आनंद राय को भी बर्खास्त कर दिया गया है। राय पर आरोप है कि उन्होंने हड़तालियों को उकसाया। डॉ. राय व्हिसल ब्लोअर (भ्रष्टाचार सचेतक) हैं, जो सरकारी तंत्र की बुराइयों को उजागर करते रहते हैं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में जारी ड्रग ट्रायल के गोरखधंधे के खुलासे में भी डॉ. राय की अग्रणी भूमिका रही है। विभाग के कई डॉक्टरों ने हड़ताल को एक मौके के रूप में लिया और अनावश्यक आरोप लगाकर बर्खास्त करवा दिया। डॉ. राय ने 'पत्रिकाÓ को बताया हड़ताल के दौरान में मैं लगातार ड्यूटी दे रहा हूं। ओपीडी और इमरजेंसी सेवा दे रहा हूं, फिर भी मुझे बर्खास्त कर दिया।

इन्हें किया निलंबित
जेडीए अध्यक्ष डॉ. विक्रांत भूरिया, उपाध्यक्ष जितेंद्र चौहान, सचिव मुकेश शर्मा, कोषाध्यक्ष विजय शंकर, अपूर्व गर्ग, सहायक सचिव पल्लवी चौधरी, अक्षय गुप्ता, गिरीश चतुर्वेदी, लक्ष्मण अहिरवार, संयुक्त सचिव अनिता सिंह, संक ल्प जोशी, भूपेंद्र चौहान, अफसर खान, सलाहकार अंकित वर्मा, कीर्तिमानसिंह, हिमांशु अग्रवाल, विनय वर्मा, दीपक कुमार, कमेटी कार्डिनेटर अमित यादव, निकेत राय, शिवानी पांडे, यश श्रीवास्तव, एक्जीक्यूटिव सदस्य गौरी राय, विद्या शर्मा, श्रद्धा दक्षा, विभूति तोमर, किशोर जैशी, दीपक शर्मा, मनोज गुप्ता, मनीष करोठिया।

' जितनी कड़ी कार्रवाई करेंगे, उतनी ही मजबूती से हम लड़ेंगे। हमारी मांगे जायज हैं। दरअसल, सरकार बातचीत से मसलों का हल निकालना नहीं चाहती है। मांगे पूरी नहीं होने तक हड़ताल पूरे राज्य में जारी रहेगी।Ó
- डॉ. विक्रांत भूरिया, प्रदेश अध्यक्ष, जेडीए


 पत्रिका: २२ अगस्त २०१०

इंदौर के मास्टर प्लान पर नवंबर में होगी सुनवाई

- सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद सरकार ने तय की रणनीति
- शहर के विकास में असमंजस्य के हालात


एक जनवरी 2008 को लागू हुई इंदौर विकास योजना 2021 (मास्टर प्लान) पर आई करीब 800 आपत्तियों पर नवंबर में सुनवाई होगी। यह काम इंदौर कलेक्टर की अगुवाई वाली करीब 85 सदस्यों की कमेटी द्वारा किया जाएगा। कमेटी की सिफारिशों पर आवास एवं पर्यावरण विभाग अंतिम निर्णय लेगा और फिर से मास्टर प्लान का गजट नोटिफिकेशन होगा। 

मास्टर प्लान पर मप्र हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज होने के बाद राज्य सरकार के आवास एवं पर्यावरण विभाग ने यह सैद्धांतिक फैसला कर लिया है। विभाग शीघ्र ही नई कमेटी की घोषणा भी करेगा। विभाग के मंत्री जयंत मलैय्या ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक ही अगली कार्रवाई करने के निर्णय की पुष्टि की है।

2000 एकड़ जमीन पर ही असर
विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने 'पत्रिकाÓ को बताया जो अनुमतियां दी जा चुकी हैं, वे रद्द नहीं होंगी। मोटे तौर पर करीब एक लाख एकड़ निवेश क्षेत्र पर मास्टर प्लॉन लागू किया गया है और जो आपत्तियां हैं, वे 2000 एकड़ पर ही हैं, यानी महज दो फीसदी क्षेत्र में। 



शहर के विकास में पांच अड़चनें

अड़चन एक : हरियाली
ज्यादातर आपत्तियों आमोद प्रमोद क्षेत्र (ग्रीन बेल्ट) को लेकर है। आपत्तिकर्ता चाहते हैं कि जमीनों को आवासीय या वाणिज्यिक कर दिया जाए। ऐसा होता है तो शहर के पर्यावरण की संतुलन बिगड़ेगा।

अड़चन दो : आईडीए की योजनाएं 
मास्टर प्लान के हिसाब से आईडीए के मेडिकल हब, ट्रांसपोर्ट हब, स्कीम-168, सुपर कॉरिडोर के आसपास लगने वाली स्कीम 169-ए पर भी प्रभाव पर पड़ सकता है। 

अड़चन तीन : जोनल प्लान
 नगर निगम ने जोन प्लान का मसौदा तैयार कर लिया है। 12 यूनिट को लेकर कुछ निजी कंपनियों से करार भी कर लिया है। अब जोन प्लान पर भी रोक लग जाएगी। मास्टर प्लान में संशोधन होते हैं तो  मसौदों में बदलाव करना पड़ेगा।

अड़चन चार: हाईराइज इमारतें
 प्लान लागू हुए ढाई वर्ष हो चुके हैं। इस दौरान नगर निगम और टीएंडसीपी से हाईराइज इमारतें और टाउनशिप के नक्शे पास हुए हैं। उन पर भी असर पड़ सकता है। फिर से सुनवाई होने की दशा में भू-उपयोग बदल सकता है। ऐसे में कुछ प्रोजेक्ट अटक सकते हैं। 

अड़चन पांच : विकास प्रोजेक्ट
विभिन्न योजनाओं के तहत शासकीय निर्माण एजेंसियों ने जो प्रस्ताव राज्य व केंद्र सरकार से स्वीकृत कराए या भेजे हैं उन पर पुनर्विचार हो सकता है।


'सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी खारिज होने और हाईकोर्ट की युगलपीठ का फैसला देखने के बाद ही तय होगा कि निगम के किन कामों पर असर पड़ेगा।Ó
- सीबी सिंह, निगमायुक्त इंदौर 
'मास्टर प्लान के लैंडयूज के हिसाब से ही हम योजनाएं घोषित करते हैं। सुनवाई के बाद भू उपयोग बदला तो योजना बदल देंगे, लेकिन फिलहाल ऐसा कोई आसार नजर नहीं आ रहा।Ó
- चंद्रमौली शुक्ला, सीईओ, आईडीए

' सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिरोधार्य है। उसके मुताबिक ही सरकार आगे की कार्रवाई करेगी।Ó
- जयंत मल्लैया, मंत्री, आवास एवं पर्यावरण विभाग


अफसरों गलतियों का खामियाजा भुगतेगा शहर
- प्रशासनिक अनदेखी के कारण ढाई वर्ष पहले लागू मास्टर प्लान के कुछ हिस्से पर फिर से होगी सुनवाई


आवास एवं पर्यावरण विभाग के अफसरों की गलतियों का खामियाजा इंदौर को भुगतना पड़ेगा। साढ़े तीन वर्ष से अफसर नियमों की अनदेखी करते रहे और अब मास्टर प्लान की सुनवाई की नौबत आ गई। इससे शहर के विकास कार्यों पर असर होगा और आशंका है कि कुछ कार्य रूक भी जाएंगे।
दरअसल, मास्टर प्लान का प्रारूप तैयार करने वाले अफसरों ने वर्ष 2007 में ही गलती करना शुरू कर दी थी। कुछ जानकार इसे गलती के बजाए 'जमीनों का खेलÓ भी कहते हैं। यह गलती आगे बढ़ती गई। मास्टर प्लान पर जनसुनवाई, आपत्तियां, इसके बाद फिर से कमेटी का गठन, हाईकोर्ट की एकल पीठ में फिर से सुनवाई का सुझाव, युगल पीठ में फिर से नया जवाब जैसे कई चरणों पर गलतियां हुई।

चार चूकों से उलझा मास्टर प्लान

चूक एक : धारा 19(2) का पालन नहीं किया

 टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के रिटायर इंजीनियर जयवंत होलकर ने बताया मप्र ग्राम एवं नगर निवेश अधिनियम की धारा 19(2) के तहत शासन द्वारा सुनवाई के उपरांत ही मास्टर प्लान की अधिनियम की धारा 19(5) के तहत अंतिम रूप से मंजूर किया जा सकता है। इसके बाद मास्टर प्लान के प्रावधानानुसार विकास अनुज्ञा जारी होती है। इस प्रक्रिया का पालन नहीं करने के कारण ही यह स्थिति निर्मित हुई है।

चूक दो : कोर्ट के सामने कमजोर साबित

महानगर विकास परिषद के मानद सचिव राजेश अग्रवाल ने बताया जो आपत्तियां लगी हैं, उन्होंने उस ड्राफ्ट को आधार बनाया है, जो महज प्रस्ताव ही था। इसमें 1991 में के प्लान के कुछ आमोद-प्रमोद के स्थानों ग्रीन लैंड को आवासीय दर्शाया गया। सुनवाई प्रक्रिया के बाद इन भू उपयोगों को पुन: आमोद प्रमोद कर दिया गया, क्योंकि पुराने प्लान में इनमें फेरबदल नहीं किया जा सकता था। वैसे भी इनके उपयोग पर 1975 के पहले ही सुनवाई प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ऐसे में आपत्तियों का आधार ही गलत है। सरकार की ओर से यह बात कोर्ट में रखी जाती है, तो संभवत: स्थिति कुछ और बनती। 

चूक तीन : हाईकोर्ट में दी सुनवाई पर सहमति

वरिष्ठ एडवोकेट मनोहर दलाल बताते हैं 20 याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सरकारी वकील ने जवाब दिया कि सुनवाई की जाएगी। इस पर 17 जून 2008 को जस्टिस विनय मित्तल की एकल पीठ ने अधिनियम की धारा 19(2) में सुनवाई करने को कहा था। आपत्तियां दर्ज कराने का अंतिम दिन 4 जुलाई 2008 तय किया गया था और 30 सितंबर तक इस पर सुनवाई होना थी। सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए युगल पीठ में 11 अपीलें दर्ज की। वहां सरकारी वकील ने कहा दिया धारा 18(2) में सुनवाई करेंगे। दोनों बार सरकार ने सुनवाई को मंजूरी दी, इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने केस खारिज कर दिया।


चूक चार: तीन सदस्यी कमेटी का गठन

एक आपत्तिकर्ता ने बताया मास्टर प्लान पर सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने की तारीख 5 फरवरी 2007 की समय सीमा के बाद कई लोगों ने सरकार को शिकायत की। इस पर सरकार ने 24 मई 2007 को अपर संचालक डीके शर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यी कमेटी का गठन किया। याचिकाकर्ताओं ने इस कमेटी को आधार बनाकर ही कोर्ट में मास्टर प्लान को चुनौती दी। तर्क था कि 7 जुलाई 2007 को प्रस्तावित और 01 जनवरी 2008 को जारी किए गए मास्टर प्लान में उन स्थानों के भू उपयोग बदल दिए गए, जिनको लेकर आपत्ति दर्ज ही नहीं की गई।



 पत्रिका: २२ अगस्त २०१०