शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

कैसे कर लें ऐसी न्यायपालिका पर भरोसा

- आठ पूर्व सीजेआई पर भ्रष्टाचार का आरोप लगने पर इंदौर से उठी आवाज
- सत्यपाल आनंद ने सुप्रीम कोर्ट में फाइल की जनहित याचिका


पूर्व केंद्रीय विधि मंत्री शांति भूषण द्वारा भारत के आठ पूर्व मुख्य न्यायमूर्तियों (सीजेआई) पर भ्रष्टाचार का आरोप लगने के आधार पर इंदौर के आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की है। आंनद का तर्क है कि इस घटनाक्रम से देशवासियों का न्यायपालिका से भरोसा उठ गया है। अब न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को स्थिति स्पष्ट करना चाहिए। साथ ही नौ जजों के उस कोलेजियम को भी तत्काल भंग किया जाना चाहिए, जो जजों का चयन करता है।

सैंकड़ों जनहित याचिकाएं दायर करके कई न्यायिक बहसें उपजा चुके आनंद ने मंगलवार को ईमेल के जरिए सुप्रीम कोर्ट में अपनी 32 पेज की याचिका दाखिल की। पत्रकारों से चर्चा में उन्होंने बताया याचिका में मौजूदा सीजेआई एसएच कपाडिय़ा, पूर्व सीजेआई रंगनाथ मिश्रा, केएन सिंह, एएम अहमदी, एनएम मुंशी, एएस आनंद, वायके सबरवाल, प्रधानमंत्री, केंद्रीय विधि मंत्री, नेता प्रतिपक्ष, पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, मप्र के मुख्यमंत्री और विधि आयोग के चेयरमैन को प्रतिवादी बनाया गया है। उनके साथ धरमदास मोहनलाल और रामकिशन भी याचिकाकर्ता हैं। आनंद ने अहम संवैधानिक सवाल उठाते हुए याचिका में लिखा है कि भारत का संविधान भ्रष्टाचार को रोकने में सफल नहीं हो रहा है, तो क्यों नहीं एक नई संवैधानिक सभा का गठन किया जाए और संविधान को फिर से लिखा जाए। वैसे भी स्वयं डॉ. भीमराव आंबेडकर देश को बता चुके थे कि मैं इस संविधान से संतुष्ट नहीं हूं।

सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग हो
आनंद ने बताया इस याचिका के कारण मुझ पर अवमानना का केस चलाया जा सकता है और मुझे जेल भी भेजा जा सकता है, परंतु मुझे इसकी चिंता नहीं है। याचिका में मांग की है कि इसकी सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाए, ताकि जनता भी उसे देख सके। यह मसला कुछ जजों का नहीं, पूरी न्याय प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। भ्रष्टाचार का पौधा ऊपर से नीचे चलता है, इसका उपचार होना ही चाहिए।

मानवाधिकार आयोग तो बुलबुल को किशमिश
मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का पद पूर्व सीजेआई को ही देने को आनंद ने एक किस्म की सरकारी रिश्वत बताया है। उन्होंने लिखा है यह बुलबुल को किशमिश का लालच है। इसी कारण सीजेआई सरकारों के खिलाफ फैसले नहीं देते। सभी को रिटायर होने के बाद आयोगों में अध्यक्ष बनने का लालच सताता है। इस व्यवस्था तत्काल बदला जाना चाहिए।

याचिका में उठे मुद्दे
- न्यायपालिका पर से लोगों का भरोसा टूट गया है, इसलिए सभी को मिलकर इस सफाई देना चाहिए।
- विधि आयोग ने कोलेजियम को भंग करने की सिफारिश की गई थी, फिर भी ऐसा क्यों नहीं किया गया?
- कोलेजियम को भंग करके हाईपॉवर राष्टï्रीय न्यायिक आयोग की स्थापना की जाए। इसमें किसी जज को न रखें।
- क्या देश की प्रगति में न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका, प्रेस ने मिलकर रुकावट पैदा नहीं की है?
- दस वर्ष तक के लिए आरक्षण प्रस्ताव रखा गया था, फिर भी अब तक उसे खत्म क्यों नहीं किया गया?
- संविधान में दस वर्ष में सभी ब'चों को अनिवार्य शिक्षा का वादा था, परंतु ऐसा नहीं हुआ। क्या इसके लिए न्यायपालिका जिम्मेदार नहीं है।
- गांवों को लूटकर शहरों को बढ़ावा देने की प्रथा देश में क्यों चल रही है? क्या इससे गरीब-अमीर की खाई गहरी नहीं हो रही ?
- सरकारें लगातार संविधान का उल्लंघन करती गई, फिर भी नेता प्रतिपक्ष चुप क्यों रहे? लोकतंत्र में आखिर क्या जरूरत है?

पत्रिका : ७ अक्टूबर २०१०