गुरुवार, 30 सितंबर 2010

अंधों का हाथी हो गया हमारा ट्रैफिक

- 'ट्रैफिक प्रबंधन और आधारभूत विकास पर टॉक शो में उभरी व्यथा
- राजनैतिक हस्तक्षेप हटेगा, तभी सुधरेगा यातायात का हाल
- पत्रिका स्थापना दिवस विशेष



बेहद तेजी से फैल रहे इंदौर की बदहाल होती यातायात व्यवस्था को शहर के विशेषज्ञ, प्रबुद्ध विशेषज्ञ और ट्रैफिक टेक्नोक्रेट 'अंधों का हाथीÓ की तरह देख रहे हैं। 'अंधों का हाथीÓ ख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी का नाटक है, जिसमें लोकतंत्र पर सटीक प्रहार किया गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अब इस हाथी को पहचाना ही होगा, वरना ट्रैफिक के दबाव से शहर का दम निकल जाएगा। ट्रैफिक को राजनैतिक फैसलों के बजाए ट्रैफिक इंजीनियरिंग के जरिए सुधारना चाहिए। इसके लिए उ'च स्तर पर नीतिगत फैसले करना होंगे। महज जेएनएनयूआरएम के बजट से कुछ प्रोजेक्ट हाथ में लेना पर्याप्त नहीं है।

यह 'पत्रिकाÓ के स्थापना दिवस के मौके पर 'पत्रिकाÓ कार्यालय में बुधवार को 'ट्रैफिक प्रबंधन और आधारभूत विकासÓ विषय पर आयोजित टॉक शो का सार है। विशेषज्ञ इस बात बेहद चकित हैं कि इंदौर में न तो कोई ट्रैफिक इंजीनियर पदस्थ है और न ही ओरिजिन डेस्टिनेशन सर्वे (ओडीएस) ही हुआ है। सर्वे नहीं होने से किसी को यह अंदाजा भी नहीं है कि कितने लोग किस दिशा में कब सफर करते हैं और कब-कब किन-किन स्थानों पर वाहनों का कितना दबाव रहता है। ट्रैफिक सुधारने के लिए बार-बार बैठकें, कार्यशाला और विश्लेषण चर्चाएं होती हैं, लेकिन सब सिर्फ बीआरटीएस के इर्दगिर्द ही घुमते रहते हैं। इससे ऊपर उठने की जरूरत है। टॉक शो के अंत में अ'छे नागरिक बनने की शपथ भी ली गई।

अफसरों की विदेश यात्रा पर सवाल
किशोर कोडवानी ने सवाल उठाया कि जब योजनाकार इंदौर आते हैं, तो उनसे मिलकर बात करना कोई जरूरी नहीं समझता। बाद में लंदन, चीन की यात्राएं करते हैं। यह आम आदमी के पैसे का दुरुपयोग है। नरेंद्र सुराणा ने कहा योजनाओं में विशेषज्ञों की राय ले ली जाती है, लेकिन बाद में उसे बगैर चर्चा के खारिज कर दिया जाता है। राय पर मंथन किया जा सकता है, किंतु उसे नकारना अनुचित है। सीएस डगांवकर ने बताया विशेषज्ञों की राय को महत्व देना जरूरी है।

कोयम्बटूर मॉडल क्यों नहीं अपना सकते

कोयम्बटूर शहर में कुल 1100 बसें है, यहां कोई स्कूल बस नहीं चलती। बसों का टाईम-टेबल और प्रबंधन इतना बेहतर है कि स्कूली विद्यार्थी इन्हीं बसों से सुबह स्कूल, दोपहर में कोचिंग और शाम को हॉबी क्लास जाते हैं। सौ रुपए के मासिक पास में उनका सारा आवागमन हो जाता है। हमारे यहां केवल स्कूल बसों की संख्या 2200 है। उसके बावजूद स्कूली छात्र दुपहिया वाहनों की मांग करते हैं। बस की फीस और वाहन के किश्त उनके पालक भुगतते हैं। बहस में इस प्रस्ताव पर भी चर्चा हुई।

कॉलोनियों के ग्रीन बेल्ट हटाएं
जवाहर मंगवानी ने बताया कि कॉलोनियों में सड़क की जमीन पर बगीचा बनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इन्हें हटाने के लिए संकल्प पारित कर लिया गया है। यह बड़ा काम है और इसमें विरोध भी झेलना पड़ सकता है। सभी लोगों ने कहा निगम को तत्काल इसे शुरू कर देना चाहिए, सभी समर्थन करेंगे।

रोटरी या सिग्नल ?
देश दुनिया में रोटरी को खत्म किया जा रहा है, लेकिन इंदौर में रोटरी को लेकर सीधा फंडा है कि इससे खूबसूरती आती है। अतुल सेठ ने कहा रोटरी को हटाना चाहिए। आरएस राणावत ने बताया रोटरी में ही सिग्नल लगाए जा रहे हैं। यह क्या मजाक है? जगतनारायण जोशी ने बताया रोटरी कहां हो, कहां नहीं इसके लिए ट्रैफिक इंजीनियरिंग में पर्याप्त इंतजाम किया गया है। सीएस डगांवकर ने बताया रोटरी हटाने और सिग्नल लगाने का फैसला वैज्ञानिक आधार पर लिया जाना चाहिए, न कि भावनात्मक आधार पर।

...और हवाई सफर का प्रस्ताव भी
नारायण प्रसाद शुक्ला ने हवाई सफर का प्रस्ताव भी रखा। उन्होंने बताया इसी तरह से दबाव बनता रहा तो एक समय ऐसा आएगा कि विजयनगर से अन्नपूर्णा तक के लिए हवाई सफर लेना पड़ेगा। मंथन में मोनो रेल और मेट्रो ट्रेन की चर्चा भी हुई।




  •  चर्चा में उभरे दस मुद्दे
  • छोटे-छोटे बायपास बनाकर मुख्य सड़कों तक पहुंचने की राह आसान हो।
  • पैदल यात्रियों के लिए भूमिगत सब-वे बनाए जाएं।
  • बॉटल नेक (दोनों और चौड़ा, बीच में संकरा) चिह्नित हों, उन्हें सुधारा जाए।
  • निगम, आईडीए, टीएंडसीपी खरीदे सैटेलाइट इमेज सॉफ्टवेयर।
  • उज्जैन, देवास, महू, पीथमपुर को यातायात की दृष्टि से विकसित करें।
  • मौजूदा पार्किंग स्थलों का सही उपयोग हो।
  • ट्रैफिक मोबेलाइजेशन प्लान समय सीमा में बन जाए।
  • नेबरहूड स्कूलिंग पर ध्यान दें, ताकि बसों की संख्या घटे।
  • मुख्य बाजारों से दूर पार्किंग बनाई जाए, ताकि ग्राहकों को सुविधा रहे।
  • पूर्व-पश्चिम के साथ ही उत्तर-दक्षिण को जोडऩे वाले रास्तों पर ध्यान दिया जाए।




राजनैतिक हस्तक्षेप जिम्मेदार
व्यवस्थाओं और राजनीति से ऊपर उठकर बात करना होगी। शहर में सामूहिक चरित्र बनाने की जरूरत है। ऐसा करके ही हम समस्याओं को सुलझा सकेंगे। शहर बहुत अधिक विकास कर सकता था, लेकिन राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण कई बातें पीछे छूट गईं। किसी वातानुकूलित कमरे में दावत के साथ की गई चर्चा से यातायात को सुधारा नहीं जा सकता है। ऐसे रास्तों की सूची बनाई जाना चाहिए, जो बॉटल नेक की तरह हैं।
- नारायण प्रसाद शुक्ल, पूर्व मंत्री व महापौर

छोटे बायपास पर ध्यान दें
  छोटे-छोटे बायपास बनाकर मुख्य सड़कों तक पहुंचा जा सकता है। नारायण कोठी से अटल द्वार, ïहाथीपाला से जबरन कॉलोनी जैसी करीब 30 छोटी सड़कें हैं, जिनसे व्यवस्थाएं सुधर सकती हैं। कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां एक खंभा या एक चेम्बर बाधा बना हुआ है। जो गड़बड़ी करे, उसे बड़ा से बड़ा दंड दिया जाए। छोटे फ्लïाय ओवर भी मदद कर सकते हैं। बीआरटीएस पूरा होने पर एकदम सुधार नजर आएगा। 
- मधु वर्मा, पूर्व अध्यक्ष, आईडीए

कहां है सैटेलाइट इमेज का सॉफ्टवेयर
20 लाख का आंकड़ा पार करते ही ओरिजिन डेस्टिनेशन सर्वे करवाया जाना चाहिए, ताकि यात्रियों की संख्या और दबाव का सही अनुमान सामने आए। किसी भी विभाग के पास सैटेलाइट इमेज का सॉफ्टवेयर तक नहीं है। इसके बगैर समस्याओं को आधुनिकतम तरीकों के पिन पाइंटेड कैसे किया जा सकेगा? मजाक तो यह है कि पहले प्रस्ताव तैयार होता है और बाद में उसकी जरूरत सिद्ध करना होती है।
- नरेंद्र सुराणा, सेवानिवृत्त इंजीनियर

50 बसों के लिए 900 करोड़ !

चार वर्ष पहले ट्रैफिक इंजीनियरिंग सेल का गठन किया गया, लेकिन उसकी बैठक ही नहीं हुई। इस शहर को नेता और अफसर अपनी मर्जी से चलाना चाहते हैं, जबकि यहां बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है। एक अफसर की जिद पर 900 करोड़ का बीआरटीएस बनाया जा रहा है। इस पर महज 50 सिटी बसें चलेगी। जब लोग इंदौर में आकर अफसरों से चर्चा करना चाहते हैं, तो वे सुनते-समझते नहीं और बाद में विदेश यात्रा करते हैं। 
-किशोर कोडवानी, कार्यकर्ता, विकास मित्र दृष्टि

नेताजी के कारण नहीं हटी रोटरी

 उज्जैन, देवास, महू, पीथमपुर को ट्रैफिक की दृष्टि से उन्नत बनाएंगे, तो इंदौर में सुधार हो जाएगा। ïमोनो ट्रेन सस्ती और सुलभ सेवा हो सकती है। जहां डिवाइडर नहीं होना चाहिए, वहां आज भी डिवाइडर बने हुए हैं। बंगाली चौराहा और ग्रेटर कैलाश रोड इसके उदाहरण है। जानकारी ली तो पता लगा, एक क्षेत्रीय नेता की मर्जी के खिलाफ बंगाली चौराहा की रोटरी हटाना संभव नहीं हो पा रहा है। राह में ऐसे रोड़े आएंगे, तो भला कैसे हालत सुधरेंगे।
-आरएस राणावत, पूर्व ट्रैफिक डीएसपी

ट्रैफिक इंजीनियर को दूसरे काम में झोंका

यह गोलाकार शहर है, जबकि मुंबई लंबाई पर बसा है। वहां ट्रेन चलाई जा सकती है, यहां नहीं। इन मौलिक बातों को समझने की जरूरत है। जिन विभागों के पास ट्रैफिक की जिम्मेदारी है वहां ट्रैफिक के विशेषज्ञ इंजीनियर नहीं है। आईडीए में ट्रैफिक विषय में एमई किया हुआ इंजीनियर है तो उसे ट्रैफिक से दूर रखा गया है। बीतें सालों में नगर-निगम से लेकर भारत सरकार ने 5-6 सर्वे करवाए। इन पर बहुत राशि खर्च हुई, लेकिन इसकी रिपोर्ट को किसी ने तवज्जो ही नहीं दी। 
-अतुल सेठ, स्ट्रक्चर इंजीनियर

ïहोलकर काल के योजनाकारों से सीखें

हम जब भी ट्रैफिक से संबंधित किसी बैठक में भाग लेते हैं, वहां इंजीनियरिंग के महत्व पर चर्चा होती है। अब हमें इस सवाल पर गौर करना होगा कि क्यों सही इंजीनियरिंग लागू नहीं हो पाती। हम सारे स्कूल पूर्वी क्षेत्र में खोलते हैं फिर पश्चिम के रहवासी इलाकों से बस में बैठकर हजारों ब"ो स्कूल आते-जाते हैं। यही हालत बाजारों की भी हैं, बरसों पहले राजाओं ने कितना सोच-समझ सारा होलसेल मार्केट साथ में और सारा रिटेल मार्केट साथ में बनाया। कोई भी आदमी पैदल चलकर पूरा बाजार घूम सकता है। वैसी दूरदर्शिता की आज भी दरकार है।
-अशोक कोठारी, अभ्यास मंडल

नेबरहूड स्कूल अपनाते तो कम होती बसें

शहर में पूर्व से पश्चिम की ओर जाने के लिए तीन प्रमुख मार्ग हैं, जबकि उत्तर से दक्षिण की ओर जाने के लिए एक भी मार्ग नहीं है। मास ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में बहुत काम करने की जरुरत है। इंदौर और महू के बीच मीटरगेज रेललाईन है, हमें इसे न केवल जीवित रखना होगा बल्कि रेलमार्ग से यातायात को बढ़ावा भी देना होगा। नेबरहुड स्कूलिंग (पड़ोस में स्कूल) को अपनाया होता तो ट्रैफिक की समस्या से बच जाते। 
-नूर मोहम्मद कुरैशी, कार्यकर्ता, विकास दृष्टि मित्र

ट्रैफिक मोबेलाइजेशन प्लान शीघ्र बने

मध्यप्रदेश में इंदौर को छोड़कर सभी शहरों के पास उनका ट्रैफिक मोबाईलेशन प्लान है। इंदौर का प्लान जल्द से जल्द बनकर तैयार होना चाहिए। दूसरी बात विशेषज्ञों की राय और उनके ज्ञान को तवज्जो मिलनी चाहिए। यदि कोई विशेषज्ञ कहता है कि फलां स्थान पर रोटरी बनाना ठीक नहीं है, दूसरी ओर कोई नेता वहीं पर रोटरी बनाना चाहता है। ऐसे में विशेषज्ञ की राय पर नेताजी का दबाव भारी पड़ता है। यह प्रवृत्ति बदलना बेहद आवश्यक है। 
-चंद्रशेखर डगांवकर, मास्टर प्लान विशेषज्ञ 

एक वर्ष में बन जाएगा टीएमपी

हम 60 लाख के खर्च से शहर का ट्रैफिक मोबेलिटी प्लान बनवा रहे हैं। दिल्ली की राईट्स इंडिया संस्था के साथ हमारे विशेषज्ञ मिलकर इस प्लान को तैयार करेंगे। उनकी विशेषज्ञता को हम अपने अनुभवों और जरूरतों की कसौटी पर परखने के बाद ही उपयोग में लाएंगे। ना केवल प्लान जल्द से जल्द बनवाने की कोशिश की जाएगी बल्कि उसका क्रियान्वयन भी शीघ्रता से किया जाएगा।
-जवाहर मंगवानी, प्रभारी, जनकार्य समिति प्रभारी

मौजूदा पार्किंग पर ही ध्यान नहीं

मौजूदा पार्किंग 12 सालों तक हमें मुख्य क्षेत्रों में नए पार्किंग्स बनाने की जरुरत नहीं रहेगी। नंदलालपुरा के पार्किंग में गंदगी पड़ी है और उस क्षेत्र में जाने-आने वाले लोग पार्किंग होने के बावजूद उसका इस्तेमाल नहीं करते। पालिका प्लाजा फेज टू के पार्किंग का तो शटर ही नहीं खोला गया है। रोड मार्किंग तीन दिन से ज्यादा नहीं टिक पाती क्यों? समय सीमा में प्रोजेक्ट पूरे नहीं होने से लागत बढ़ रही है, इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है।
-प्रफुल्ल जोशी, ट्रैफिक विशेषज्ञ

लायसेंस या मौत का लायसेंस?

आरटीओ में जाकर कोई भी व्यक्ति हजार रुपए की रिश्वत देकर लायसेंस बनवा लेता है। यह गाड़ी चलाने का लायसेंस नहीं है, यह मौत का लायसेंस है। चालान इस समस्या का हल नहीं है। लोग पैसा देकर भूल जाते हैं, उन्हें सबक सीखाने के लिए चार दिन उनकी गाड़ी बंद करवानी पड़ेगी। बाजार की सड़क का इस्तेमाल दुकानदार सामान डिस्प्ले करने में करते हैं, तो राहगीरों और वाहनचालकों के लिए सड़क संकरी हो जाती है।
-जगत नारायण जोशी, यातायात विशेषज्ञ

एक खंभा हटाने में आता पसीना

मैंने अनुभव किया है कि एक खंभा हटाने में पूरी व्यवस्था को पसीना आ जाता है। बजट बनता है, फाइल चलती है और फिर मंजूली मिलती है। चार अफसरों को एक साथ बैठाकर बात करना मुश्किल है, तो समग्र सोच विकसित कैसे होगा? लोगों को समझना होगा कि वे पार्किंग का सही तरीके से इस्तेमाल करें। सुभाष चौक पार्किंग में लोग गाड़ी ही खड़ी नहीं करते हैं।
- डॉ. उमा शशि शर्मा, पूर्व महापौर


 पत्रिका : ३० सितम्बर २०१०

हमने कोर्ट के आदेश पर ही की कार्रवाई

- मनी सेंटर मामले में हाईकोर्ट में आईडीए का जवाब पेश

भूमाफिया बॉबी छाबड़ा के विवादित मनी सेंटर की लीज निरस्ती के मामले में आईडीए ने हाईकोर्ट में जवाब पेश कर दिया है। आईडीए ने कहा है कि कोर्ट के आदेश के अनुसार ही पूरी कार्रवाई की गई है। लीज शर्तों का उल्लंघन करने के कारण ही लीज निरस्त करके मनी सेंटर पर कब्जा लेने का फैसला किया गया है। इस जवाब पर 11 अक्टूबर को सुनवाई होगी।

मनी सेंटर के दुकान मालिक मंजुलता गर्ग और विनय जैन ने याचिका में तर्क दिया है कि लीज शर्तों के आधार पर तय तमाम औपचारिकताएं पूरी देखकर ही डॉ. सजनी बजाज से दुकानें खरीदी गई हैं। भले ही लीज निरस्त हो जाए, लेकिन कानूनन उन्हें हटाया नहीं जा सकता है। कोर्ट में आईडीए ने इसी पर जवाब पेश करके बताया चूंकि हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि दुकान मालिकों की सुनवाई करके ही फैसला करें, इसलिए सुनवाई पूरी कर ली गई है। इसके बाद ही लीज निरस्त का कदम उठाया गया है। याचिकाकर्ताओं की ओर सिनीयर एडवोकेट एके सेठी ने आईडीए के जवाब पर तर्क प्रस्तुत करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। इसी पर जस्टिस एससी शर्मा की कोर्ट ने अगली तारीख तय की। आईडीए की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट अशोक कुटंबले और डॉ. सजनी बजाज की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट जीएम चाफेकर ने पैरवी की।
पत्रिका : २९ सितम्बर २०१०

बीआरटीएस पर लगी पांच याचिकाओं का निपटारा

- एक खारिज, तीन वापस और एक निगम के हवाले

बीआरटीएस के कारण जमीन अधिग्रहण को लेकर लगाई गई पांच याचिकाओं का मंगलवार को हाईकोर्ट में निपटारा हो गया। तीन ने अपनी याचिकाएं वापस ले ली, जबकि एक को कोर्ट ने खारिज कर दिया। एक अन्य के लिए नगरनिगम को सुनवाई का अधिकार सौंपा गया है।

जस्टिस एससी शर्मा की एकल पीठ में लगी याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि जमीन निजी है, इसलिए इसके एवज में मुआवजा दिया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान विजय हालान, जसवंत डोसी और मोहम्मद अकरम की ओर से बताया गया कि उन्होंने सड़क के लिए जमीन नगरनिगम को सौंप दी है, इसलिए याचिकाएं वापस लेना चाहते हैं। एक अन्य याचिकाकर्ता रवि वाघमारे के मुआवजे के तर्क को निगम के प्रतिउत्तर ने खारिज कर दिया। निगम ने कहा जमीन सेटबेक की है और उस पर निगम का अधिकार है। कोर्ट ने याचिका को निरस्त कर दिया। भंडारी कोठी से जुड़ी याचिका पर कोर्ट ने नगरनिगम को आदेश दिया है कि भुवन कुमारी की 19 अक्टूबर तक सुनवाई करके फैसला करें। याचिकाओं में निगम की ओर से एडवोकेट आनंद अग्रवाल ने पैरवी की।



पत्रिका : २९ सितम्बर २०१०

ट्रांसपोर्ट कमिश्नर हाईकोर्ट में तलब

- सपनि बंद करने के विरोध में लगी दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई
- वैकल्पिक व्यवस्था पर सरकार के जवाब से अदालत असंतुष्ट 

मध्यप्रदेश सड़क परिवहन निगम बंद होने के साथ ही अंतर प्रांतीय, खासतौर से गुजरात से बसों का परिवहन बंद हो जाएगा। सरकार ने इसके विकल्प के तौर पर पर कोई इंतजाम नहीं किया है। इस पर मप्र हाई कोर्ट ने नाराजगी जताई है। कोर्ट ने डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को हाजिर होकर जवाब देने के आदेश दिए हैं।

सोमवार को दो जनहित याचिकाओं पर जस्टिस शांतनु केमकर एवं एसके सेठ की युगलपीठ में सुनवाई हुई। इसमें शासन की ओर से जवाब पेश किया गया। इसमें केवल स्टेटस रिपोर्ट बता दी कि वर्तमान में सपनि की क्या स्थिति है और कितनी बसें चल रही है। शासन के जवाब से कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा ट्रांसपोर्ट कमिश्नर यहां आकर जवाब दें। कोर्ट को बताया गया कि वे इसी संबंध में जबलपुर में लगी याचिका की सुनवाई में व्यस्त हैं। इस पर कोर्ट ने कहा 29 सितंबर को डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को खुद आकर जवाब देने के आदेश दिए।

पांच दिन पहले लगी थी पीआईएल
सपनि बसें बंद होने से धार, झाबुआ, खंडवा, खरगोन सहित आदिवासी अंचल का गुजरात से संबंध ही समाप्त हो जाएगा। इसे लेकर पांच दिन पहले नारायण भायल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता चंपालाल यादव एवं मोहन कर्पे की ओर से अधिवक्ता अशोक कुटुंबले द्वारा दायर जनहित याचिका लगाई गई थी। याचिकाओं पर कोर्ट ने रा'य शासन एवं सपनि को 27 सितंबर को जवाब पेश करने के आदेश दिए थे। 


पत्रिका : २८ सितम्बर २०१०

पीथमपुर नहीं आएगा कचरा

सूचना के अधिकार की जीत
जनता और जनवादियों के समर्थन से चली पत्रिका की मुहिम रंग लाई
 

भोपाल में दफन 27 हजार 600 टन कचरे से पीथमपुर से यूकॉ के कचरे की विदाई के फैसले का उन जनवादियों ने खुलकर स्वागत किया है, जो कचरे के खिलाफ तन-मन-धन से मैदान में डटे थे। दरअसल, यह लड़ाई सूचना का अधिकार कानून की नींव पर बुलंद हुई है। लोगों ने इस कानून को धन्यवाद देते हुए सरकार की संवेदनशीलता को भी सलाम किया है।

पीथमपुर में बने रामकी इनवायो कंपनी के सयंत्र मप्र वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट की खामियों को उजागर करने के साथ इस अहम लड़ाई की शुरुआत हुई। इसके लिए पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी द्वारा सूचना का अधिकार में जुटाए गए दस्तावेजों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही। लगातार छह महीने से उन्होंने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मप्र पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड के यहां अर्जियां लगाई और जानकारियों का पुलिंदा तैयार किया।

'पत्रिकाÓ के आगे आते ही बन गया कारंवा

मामले में 'पत्रिकाÓ ने 15 जून से तथ्यपरक और विश्लेषणात्मक खबरें प्रकाशित करना शुरू किया। इससे पूरे मसले पर लड़ाई शुरू कर चुके लोगों को नई ताकत मिली और उन्होंने पूरे जोर-शोर से मैदान संभाल लिया। 28 जून को 'पत्रिकाÓ के दफ्तर में किए गए टॉक शो में तो विभिन्न संगठनों के लोगों ने घोषणा ही कर दी कि 'पीथमपुर में कचरा नहीं आने देंगे... भले इसके लिए जान चली जाएÓ। लोग अपनी इस घोषणा पर कायम भी रहे और आखिर में केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश को पीथमपुर आना पड़ा। उनके आने से ही संकेत मिल गए थे कि कचरा पीथमपुर में नहीं आएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी जयराम की यात्रा को देखते हुए एक दिन पहले ही घोषणा कर दी थी इंदौर के लोगों की राय जाने बगैर कचरा यहां नहीं लाया जाएगा।

सियासती फैसला, पर दूर रहे इंदौरी नेता
यह मामला सीधे-सीधे इंदौर से जुड़ा था, लेकिन इंदौर के नेता इससे दूर ही रहे। जब भी मीडिया ने उनसे राय मांगी वे कचरे के खिलाफ बयान देते रहे, परंतु जमीन पर उतरकर लडऩे का जिम्मा लोकमैत्री संगठन और आजादी बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने ही किया। राज्यसभा सांसद विक्रम वर्मा और धार विधायक नीना वर्मा, धार के सांसद गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी जरूर इस मसले को आगे बढ़ाते दिखे। जयराम के दौरे के बाद कांग्रेस के अभय दुबे भी थोड़े सक्रिय हुए।

दफन हो चुका है 40 टन कचरा
रामकी प्लांट में यूका का 40 टन कचरा दफन हो चुका है। यह कचरा गुपचुप तरीके से 27 जून 2008 को लाया गया था। लगातार मांग उठ  रही है कि इस कचरे को भी निकाला जाए। हालांकि, जयराम के दौरे के समय घोषणा हो गई थी कि जो दफन हो गया है, उसके बारे में विचार करने की जरूरत नहीं है। बस उसके प्रभाव को समय समय पर जांच लिया जाए।

रामकी में आता रहे औद्योगिक कचरा
रामकी प्लांट में औद्योगिक कचरा अभी भी आता रहेगा, क्योंकि केंद्र ने केवल यूका के कचरे को लेकर फैसला किया है। रामकी में पूरे राज्य का औद्योगिक कचरे पर प्रतिबंध नहीं लगा है। जन आंदोलन करने वालों में इसको लेकर भी आक्रोश है। सूत्रों का कहना है कि सरकार रामकी प्लांट के स्थान को बदलने का निर्णय भी कर सकती है।



इन लोगों को जाता श्रेय
- डॉ. आरडी प्रसाद, लोकमैत्री
- डॉ. गौतम कोठारी, पीथमपुर औद्योगिक संगठन
- डॉ. भरत छपरवाल, लोकमैत्री
- तपन भट्टाचार्य, आजादी बचाओ आंदोलन 
- चिन्मय मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता
- अनिल भंडारी, सीईपीआरडी
- नरेंद्र सुराणा, सीईपीआरडी
- विक्रम वर्मा, राज्यसभा सांसद
- गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी, सांसद, धार



देर आए, दुरस्त आए

'यह कचरा डाऊ कंपनी की जिम्मेदारी है, उसे ही इसके निपटान का इंतजाम करना चाहिए। हम यह नहीं चाहते हैं कि कचरा भोपाल में ही रखा रहे।
- डॉ. आरडी प्रसाद, समाजशास्त्री 

'यह सूचना के अधिकार और मीडिया की जीत है। दरअसल, अब भी फिर वक्त आ गया है कि सरकार तक लोगों की भावनाएं पहुंचाने के लिए जनआंदोलन की राह अपनाई जाए।
- डॉ. गौतम कोठारी, अध्यक्ष, पीथमपुर औद्योगिक संगठन

'यह सूझबूझ भरा फैसला है, परंतु कचरे को दफनाने का फैसला शीघ्र कर लेना चाहिए। सीमेंट फैक्टरियों में कचरा जलाने के प्रस्ताव पर भी गंभीरता से विचार किया जाए तो आसानी से रास्ता निकल सकता है।
- चिन्मय मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता

 'सरकार गुपचुप तरीके से सबकुछ निपटा देना चाहती थी, लेकिन लोगों ने अपने दम पर लड़ाई लड़कर सबको सीख दे दी है। यह लोकशक्ति की जीत है।
- तपन भट्टाचार्य, संयोजक, आजादी बचाओ आंदोलन

'यह गांधीवादी तरीके से लड़ी गई लड़ाई का नतीजा है कि राज्य व केंद्र सरकार दोनों को झुकना पड़ा। अभी भी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
- डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व कुलपति

'इस फैसले से गंभीर नदी को प्रदूषण से बचाया जा सकेगा। रामकी प्लांट की साइट को भी बदलने की जरूरत है, क्योंकि वहां तो अभी भी औद्योगिक कचरा जलेगा ही।
- अभय दुबे, महामंत्री, कांग्रेस

'सरकार फैसला नहीं करती तो हम तो कोर्ट जाते। इसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी। हम बस मंत्री समूह की बैठक का इंतजार ही कर रहे थे।
- अनिल भंडारी, उपाध्यक्ष, सीईपीआरडी

'अब भोपाल को बचाने की जरूरत है। सरकार को इस पर तत्काल फैसला कर लेना चाहिए ताकि वहां प्रदूषण नहीं फैले। इसको लेकर भी बात करूंगा।
- विक्रम वर्मा, राज्य सभा सांसद

 'वर्तमान में सबसे आधुनिक तरीका प्लॉज्मा तकनीक से कचरा भस्म करने की है। सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए, ताकि कचरे को मुकाम मिले।
- शिवाकांत वाजपेयी, सदस्य, भारतीय विकिरण संरक्षण परिषद

'सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र और राज्य सरकार की दो-दो करोड़ की मदद से रामकी का प्लांट स्थापित हुआ था। इस पर पुनर्विचार करना होगा।
- वीके जैन, पूर्व निदेशक, मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

 

तारपुरावासियों ने मनाई खुशियां
युका के कचरे को लेकर चले आ रहे विरोध पर उस समय विराम लग गया जब दिल्ली से पीथमपुर वासियों के हक में फैसला आया। फैसले की खबर जैसे ही ग्रामवासियों को पता चली, मानों उनकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा हो। रात करीब 8  बजे काफी संख्या में जमा हुए युवाओं ने गांव की चौपाल पर नाच-गाकर जश्न मनाया। यहां मौजूद युवाओं में जादू नंदराम, बबलू प्रजापत, मनोज मांगीलाल, विनोद रामचंद्र, नवीन गुप्ता, संजय चौहान, महेश कछवारे, जितेंद्र काशीराम, मनासिंह मांगीलाल, जितेंद्र कालूसिंह आदि ने कहा कि लंबे समय से चली आ रही इस लड़ाई में उन्हें इंसाफ मिला हैं। उन्होंने पत्रिका को बताया कि क्षेत्र में प्रभावितों के हक में आए इस फैसले ने कई क्षेत्रवासियों की जान बचाई हैं। साथ ही यहां फैल रहे प्रदूषण से अब लोगों को निजात मिलेगी।


कचरे में थे दस जानलेवा रसासन
पर्यावरणविद् सुनिता नारायण की अगुवाई वाले वैज्ञानिक शोध संस्थान सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) के मुताबिक भोपाल में यूनियन कार्बाइड के ठिकाने में रखे २७ हजार ६00 टन कचरे में दस किस्म के जानलेवा और विषैले रसायन मिले हैं। इन रसायनों से घातक बीमारियां होती हैं, रोक प्रतिरोधक और प्रजनन क्षमता भी कम या खत्म हो सकती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने भी इस रिपोर्ट से सहमति जताई है।  कचरे में ड्रायक्लोरोबेंजीन, ट्रायक्लोरोबेंजीन, हेक्साक्लोरोबेंजीन, हेक्साक्लोरोसाइक्लोहेक्सेन, कॉरबैरिल, एल्डीकार्ब, पारा, संखिया, सीसा और क्रोमियम की मात्रा मिली है।

ये थी पांच चिंताएं
एक- जमीनी पानी में जहर

वर्ष 2007 से कचरा संयंत्र पर उद्योगों का अपशिष्टï इक_ा किया जा रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के आंकड़े गवाह हैं कि इन तीन वर्र्षों में कचरा संयंत्र के आसपास का भूजल दूषित हुआ है। गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के जिस कुएं का पानी लोग पीते थे उसे हाथ लगाते ही अब खुजली और जलन होने लगती है। साइट के समीप तारपुरा गांव के बोरिंग का पानी चाय बनाने लायक भी नहीं रहा। 

दो- हवा में जहर
कचरा संयंत्र में जब औद्योगिक कचरा जलाया जा रहा था, तभी यूनियन कार्बाइड  है, लेकिन जब यूनियन कार्बाइड का कचरा जलेगा तब क्या होगा। हवा के जरिए यह जहर दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुंचकर लोगों को बीमारियां बांटेगा। कंपनी ने कचरा जलाने के दौरान निकले लीचेड को सुखाने के लिए मल्टीइफेक्ट इवेपोरेटर भी नहीं लगाया है और न ही ड्रायर का इस्तेमाल किया जा रहा है। लीचेड सीधे जमीन पर बहाया जा रहा है।

तीन- मापदंडों का उल्लंघन
औद्योगिक अपशिष्टï प्रबंधन अधिनियम के मुताबिक कचरे का निपटान करने के लिए जिस जगह संयंत्र लगाया जाता है उससे 500 मीटर के दायरे में कोई रहवासी क्षेत्र नहीं होना चाहिए, लेकिन रामकी ने इस नियम को ताक पर रख दिया। साइट से मात्र 100 से 200 मीटर के दायरे में तारपुरा गांव हैं। गांववाले बताते हैं कि जब से इंसीनरेटर चालू हुआ है, बदबू के मारे उनका सांस लेना मुश्किल हो गया है।

चार- बीमारियों का घर 
सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट के मुताबिक कचरे के कारण लीवर सोराइसिस, रक्त कोशिका, फेफड़े, गुर्दे, स्नायु व प्रजनन प्रणाली पर बुरा असर, रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना, स्नायु, प्रजनन व श्वसन प्रणाली का क्षतिग्रस्त होना, लीवर रोग, अल्सर की उत्पत्ति, हड्डियों में खराबी, बाल झडऩा, कैंसर की आशंका, ब'चों का असामान्य विकास, क्रोमोसोम असमानता, स्मरण शक्ति पर कमजोर होना, गर्भस्थ शिशु के लिए घातक, अचानक गर्भपात की संभावना, खून की कमी, स्नायु रोग, त्वचा पर जख्म होना, गुर्दों की खराबी, नाक की झिल्ली में छेत, गले में जलन, दमा व श्वसन रोगों का खतरा बढ़ेगा।

पांच- उद्योगों का पलायन
प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में 500 से अधिक छोटे-बड़े उद्योगों के लिए कचरा संयंत्र एक-न-एक दिन खतरा जरूर बनेगा। यह बात उद्योगपति भी जानते हैं। कई उद्योगपति यह बात कह भी चुके हैं कि यदि यूनियन कार्बाइड का कचरा यहां जलाया जाता है तो कई उद्योगों का यहां से पलायन हो सकता है। नए उद्योग तो यहां आने से ही कतराएंगे। 
 
इन आरोपों से घिरा रामकी
  • कायदा कहता है कि कचरा दफन करने के लिए जो गड्ढा (सिक्यूर्ड लैंड फिल) बना है, वह रहवासी बस्ती से 500 मीटर से दूर होना चाहिए, लेकिन गड्ढा तारापुर के पास ही बना दिया गया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मानता है कि गड्ढे की तारापुर से दूरी 100 मीटर से अधिक नहीं है।
  • गड्ढे में मिïट्टी की 1000 एमएम के बजाए 600 एमएम की ही परत बनाई गई। मिट्टी की परत को दबाने के लिए जिस मशीन का प्रयोग किया जाता है, वह बोर्ड को मौके पर नहीं मिली। इस पर कंपनी को नोटिस दिया। कंपनी यह कहकर बच निकली कि दिन में मशीन उपलब्ध नहीं रहती है, इसलिए रात में काम करवाते हैं। अफसरों ने रात में मुआयना करना मुनासिब नहीं समझा। 
  • गड्ढे में सबसे नीचे रेत और बजरी की 30 सेंटीमीटर मोटाई रखी जाना चाहिए लेकिन कंपनी ने मोटाई को 15 सेंमी ही रखा। बोर्ड ने ही इसका खुलासा किया। यह चूक बेहद खतरनाक है, क्योंकि विषैले कचरे से होकर जो पानी जमीन में जाता है, वह कई किमी क्षेत्र के भूजल को प्रदूषित करने की ताकत रखता है। भोपाल में ऐसा ही हुआ और केंद्र सरकार को आखिर में सिफारिश करना पड़ी कि भोपाल के लोग भूजल का प्रयोग न करें।
  • हर दिन कचरा इकठ्ठा करके बाद उस पर मिट्टी की परत जमाना अनिवार्य है, लेकिन खर्च और जगह बचाने के लिए कंपनी ने ऐसा नहीं किया। बीच में परत नहीं होने से प्रदूषण की मात्रा कई गुना बड़ सकती है। 
  •  कचरा निपटान के पहले कंपनी ने नियम विरूद्ध खतरनाक ज्वलनशील कचरे का भंडारण किया। बोर्ड नोटिस देकर चुप बैठ गया, बाद में पुलिस में शिकायत हुई और कंपनी कर्मचारी पार्थ शुक्ला को गिरफ्तार किया गया।
  •  मजदूरों को पर्याप्त सुरक्षा मुहय्या नहीं करवाई जा रही। यही वजह है कि कंपनी में सात मजदूर बीमार हो गए।
  • कंपनी में आपातकालीन सुविधाओं का अभाव है। इसके लिए दो बार औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग नोटिस जारी कर चुका है।


 100 दिन पहले उठी थी आवाज

14 जून
रामकी इंसीनेटर को फायर एनओसी मिलने के साथ ही पत्रिका ने 'इंदौर मांगे इंसाफÓ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी।

19 जून
सांसद विक्रम वर्मा ने कहा यूका का कचरा देश के बाहर ले जाया जाए। लोकमैत्री संगठन की बैठक में रामकी खामियां उजागर की गई।

23 जून
'पत्रिकाÓ ने सवाल उठाया भारी अनियमितताएं मिलने के बाद भी सरकार क्यों रामकी कंपनी को बचाने में लगी है।

26 जून

रामकी इंसीनेटर में काम कर रहे सात मजदूर बीमार हो गए। इससे मजदूरों में दहशत फैल गई।

28 जून

'पत्रिकाÓ में हुए टॉक शो में आंदोलन की रूपरेखा तैयार हुई। लोगों ने कहा भले ही जान देना पड़े, पीथमपुर में कचरा नहीं आने देंगे।

29 जून
रामकी कंपनी ने सरकार पर आरोप लगाया कि हम तो धंधा कर रहे हैं, सरकारी एजेंसियों को ही फिक्र नहीं है कि कहां क्या किया जाना है।

2 जुलाई
'पत्रिकाÓ ने बताया 6 जुलाई 2005 को हुई जनसुनवाई के बाद से ही स्थानीय प्रशासन रामकी पर फिदा है।

3 जुलाई
'पत्रिकाÓ ने खुलासा किया कि रामकी को नोटिस देने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्रवाई नहीं करता है।

7 जुलाई
लोकमैत्री संगठन ने पीथमपुर में रामकी सयंत्र की घेराबंदी की। साथ ही संभागायुक्त को ज्ञापन सौंपा।

8 जुलाई
तारापुर के नागरिकों ने रामकी सयंत्र में कचरा ले जा रहे ट्रकों को रोका क्योंकि उनमें से विषैला बदबूदार कचरा बह रहा था।

9 जुलाई
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इंदौर में कहा यूका कचरे और रामकी सयंत्र के संबंध में इंदौर के लोगों से चर्चा के बाद ही फैसला किया जाएगा।

10 जुलाई
केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश पीथमपुर गए। उन्हें वहां के लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। बस्ती के पास बनाए गए सयंत्र और कुएं के काले पानी को देखकर वे भी अचंभित रह गए। जयराम ने 40 टन कचरा यहां लाने पर माफी भी मांगी।

12 जुलाई
'पत्रिकाÓ ने बताया जयराम ने माफी मांग ली, लेकिन राज्य सरकार की गलतियों के लिए कौन माफी मांगेगा?

18 जुलाई

कांग्रेस ने पीथमपुर में धरना देकर घोषणा की कि रामकी का देशभर में विरोध किया जाएगा।

22 जुलाई
विधानसभा में मामला उठा कि क्या रामकी सयंत्र से इंदौर का पानी दूषित नहीं होगा।

24 सितंबर

'पत्रिकाÓ ने खुलासा किया कि सुप्रीम कोर्ट में रामकी के झूठे बयान के आधार पर गुजरात सरकार ने हलफनामा पेश किया। रामकी के अधिकारियों ने भी माना यह कंपनी के तत्कालीन अधिकारी की गलती थी।


 पत्रिका : २८ सितम्बर २०१०

फोन पर हुई सुनवाई

- इंदौर के आरटीआई कार्यकर्ता से दिल्ली में मौजूद केंद्रीय सूचना आयुक्त ने लिए बयान
- मामला एमसीआई द्वारा जानकारी नहीं उपलब्ध कराने का


सूचना का अधिकार का उल्लंघन करने के एक मामले में दिल्ली स्थित केंद्रीय सूचना आयुक्त ने सोमवार को फोन पर सुनवाई की गई। उन्होंने इंदौर में मौजूद एक सूचना कार्यकर्ता से आपत्तियां सूनी और संबंधित पक्ष को नोटिस जारी कर दिए।
मामला मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) से जुड़ा है। इंदौर के सूचना का अधिकार कार्यकर्ता डॉ. आनंद राय ने 6 अप्रैल को तीन जानकारियां मांगी थी, जिसमें से उन्हें एक का ही जवाब दिया गया। इस पर उन्होंने एमसीआई सचिव कर्नल एआरएन सितलवाड़ को प्रथम अपील की थी, परंतु संतोषजनक जवाब नहीं मिला। आखिर उन्होंने केंद्रीय सूचना आयुक्त को अपील कर दी। इस पर जवाब के लिए डॉ. राय को सोमवार को दिल्ली बुलाया गया था, परंतु अन्य काम होने के कारण उन्होंने असमर्थता जताई। इस पर तय किया गया कि दोपहर तीन से चार बजे के बीच फोन पर ही उनके बयान ले लिए जाएंगे। दोपहर 3.25 बजे उनके मोबाइल पर केंद्रीय सूचना आयुक्त अनुपमा दीक्षित का फोन आया।

एमसीआई को दिया नोटिस

आयोग: आपकी आपत्ति बताएं?
अपीलकर्ता: मुझे तीन में से एक ही जानकारियां दी गई हैं। आपके पास मौजूद मूल अर्जी में जिन दो की जानकारी नहीं दी गई, उनका जिक्र है।
आयोग: और क्या आपत्ति है?
अपीलकर्ता: समय सीमा समाप्त होने के बाद में मुझे आयोग ने जानकारी दी और बदले में 150 रुपए लिए, जबकि कानूनन वे ऐसा नहीं कर सकते हैं।
आयोग: आज एमसीआई की और कोई आया नहीं है। हम उन्हें नोटिस जारी कर रहे हैं। जानकारी नहीं देगे, तो उन्हें सजा दी जाएगी।
अपीलकर्ता: मध्यप्रदेश में सूचना कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होती है, इस पर भी कार्रवाई करें।
आयोग: हम जिस तरह से विभागों पर पैनल्टी लगा रहे हैं, उसी से सरकारों को सबक मिलेगा। आप सूचनाएं मांगते रहें।
(बातचीत की यह जानकारी अपीलकर्ता डॉ. आंनद राय के मुताबिक।)
 
इन प्रश्नों के नहीं मिले जवाब
  • मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में सीनियर रेसीडेंट के 120 पद रिक्त हैं, फिर भी भोपाल, इंदौर जैसे कॉलेजों को एमसीआई ने मान्यता कैसे प्रदान कर दी?
  • एमसीआई टीम के दौरे के ठीक पहले राज्य सरकार ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य विभाग के 28 डॉक्टरों को प्रतिनियुक्ति पर अस्थायी तौर पर भेजा और दौरा होने के बाद उन्हें वापस मूल पद पर बुला लिया। क्या इसकी जानकारी एमसीआई को थी? यदि हां, तो फिर मान्यता को लेकर इतनी औपचारिकताएं करने की जरूरत ही क्या है?


पत्रिका : २८ सितम्बर २०१० 

ड्रग ट्रायल की फाइल पहुंची सोनिया दरबार

- दिल्ली में विधिवत कार्रवाई शुरू
- शिकायतकर्ता ने उठाई सीबीआई जांच की मांग


बहुराष्टï्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) में मध्यप्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बरती गई कौताही की पूरी फाइल संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी तक पहुंच गई है। उन्होंने इस पर विधिवत कार्रवाई भी शुरू कर दी है। शिकायतकर्ता ने मामले में सीबीआई जांच की मांग की है।

स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के अध्यक्ष डॉ. आनंद राजे ने सोनिया गांधी को शिकायत भेज कर तमाम तथ्य उजागर किए थे। उन्हें सोमवार को कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद का एक पत्र मिला है। इसमें लिखा गया है कि मामले को सोनिया गांधी ने अत्यंत गंभीरता से लिया है और उन्होंने संबंधित पक्ष को कार्रवाई करने और इसकी जानकारी देने को कहा है।

दोषियों के बचाव में है राज्य सरकार
डॉ. राजे का आरोप है कि देश-दुनिया में जो मसला उठ चुका है, उसपर ठोस कार्रवाई करने के बजाए राज्य सरकार दोषियों को बचाने में लगी है। करीब दो महीने पूरे हो चुके हैं, लेकिन अभी तक ईओडब्ल्यू ने अंतिम रिपोर्ट तैयार नहीं की है। इतना ही नहीं, विधानसभा में स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने जो कमेटी गठित करने की घोषणा की थी, उसकी अभी तक बैठक भी नहीं हुई है।

अमेरिकन सरकार भी मांग चुकी सफाई
'पत्रिकाÓ ने 14 जुलाई के अंक में 'मरीज को बना दिया चूहाÓ शीर्षक से खबर प्रकाशित कर खुलासा किया था कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में आने वाले गरीब और अनपढ़ मरीजों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसके बाद मामला विधानसभा, ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, आयकर, एमसीआई, आईसीएमआर तक पहुंचा। हाल ही में अमेरिकन सरकार के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन ने भी भारत सरकार को इस संबंध में पत्र लिखकर सफाई मांगी है।

यह किया उल्लंघन
- एमसीआई द्वारा तय की गई डॉक्टरों की 'मर्यादाओंÓ को लांघा।
- आईसीएमआर के मापदंडों का ताक में रखा।
- मरीजों को धोखे में रखकर ट्रायल में झोंका।
पत्रिका : २८ सितम्बर २०१०

विनयनगर के खेल में शालिनी ताई भी छली गई

- बॉबी ने टिका दिया था सड़क का प्लॉट
- हाईकोर्ट के फैसले के बाद खुल रही परतें



झूठ की बुनियाद पर विनय नगर की चालीस फीट चौड़ी सड़क पर मकानों के नक्शे पास करने के केस में हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद परतें खुल रही हैं। गड़बड़ी में निगम के इंजीनियर परिवार के शामिल होने के बाद जानकारी मिली है कि जमीन के इस खेल में ख्यात शिक्षाविद शालिनी ताई मोघे भी ठगी जा चुकी हैं। मामले में भूमाफिया बॉबी छाबड़ा भी अहम किरदार हैं।

'पत्रिकाÓ ने रविवार के अंक में 'बागड़ खा गई खेतÓ शीर्षक से समाचार प्रकाशित करके खुलासा किया था कि निगम के पूर्व इंजीनियर अमृतलाल (अंबू) पटेल और मौजूदा इंजीनियर दीपक पटेल के परिवार ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सड़क के हिस्से को हथिया लिया। इस खेल में सरकारी विभागों ने उनकी हर स्तर पर मदद की। 'पत्रिकाÓ पड़ताल में साफ हुआ है कि सड़क पर काटा गया दूसरा प्लॉट (188-ए) हर्षा सतीश वाधवानी ने शालिनीताई से खरीदा था। ताई को यह प्लॉट बॉबी ने बेचा था। 

बॉबी ने बेहद चतुराई से रिश्तों को भुनाया
 बॉबी ने दस वर्ष पहले शालिनी ताई को उलझा था। बात 2000 की है, तब ताई 2/3 स्नेहलतागंज के स्वयं के मकान में रहती थीं। मकान जर्जर हो रहा था, इसलिए मोघे दंपत्ति (ताई और स्व. मोरेश्वर मोघे) ने उसे बेचने का मन बनाया। किसी परिचित ने बॉबी से मिलवाया। उसने मकान खरीदने के साथ ही वादा किया आपकी जमीन पर एक मल्टी बनाऊंगा और उसमें से एक फ्लैट आपको दूंगा। मल्टी बने तब तक आप मेरे 10, आदर्श नगर की तल मंजिल पर रहें। मोघे परिवार इस पर राजी हो गया। बॉबी ने कब्जा लिया और ताई आदर्श नगर में शिफ्ट हो गईं। बॉबी ने मल्टी बनाने के बजाए स्नेहलतागंज की जमीन नितिन पल्टनवाले को बेच दी, लेकिन ताई से किया वादा पीछे ही रह गया। चूंकि सारे वादे मौखिक थे, इसलिए ताई को फ्लैट नहीं मिल सका। इसी बीच बॉबी ने विनय नगर का उक्त प्लॉट (188-ए) ताई को दे दिया। ताई का परिवार इससे खुश था, लेकिन जब उन्होंने इस प्लॉट को बेचने की कोशिश की तो वह बिक नहीं सका। बाद में 2008 में बॉबी ने ही उसे बिकवाया। जो रुपया आया उसी से ताई ने 3/2 पगनीसपागा स्थित सीएमआर रॉयल रिजेंसी में एक छोटा सा फ्लैट खरीदा। अभी वे वहीं रहती हैं।    

हमारे बीच में ज्यादा बात नहीं होती थी  
फिलहाल ताई खुश हैं और अपने क्षमाशील स्वभाव के मुताबिक कहती हैं बॉबी ने मुझे कोई तकलीफ नहीं दी। मैं उनके घर में रहती जरूर थी, लेकिन उनके परिवार और हमारे बीच में ज्यादा बातचीत नहीं होती थी। हम नीचे रहते थे और उनका परिवार ऊपर। बॉबी के पिता हम लोगों का खासा ध्यान रखते थे। मैं यह कभी नहीं भूल सकती कि मोघेजी (स्व. मोरेश्वर मोघे) की बीमारी में उनके परिवार ने हमारी पूरी मदद की थी। विनयनगर प्लॉट लफड़े के बारे में वे कहती हैं, मुझे इसकी बहुत जानकारी नहीं क्योंकि उस समय मोघेजी जिंदा थे और उन्होंने ही बॉबी से चर्चा की थी। 

पत्रिका : २७ सितम्बर २०१०

बड़े सवालों के जवाब पर मांगी तारीख

शहर विकास के अहम बिंदुओं से जुड़े जनपयोगी मसलों पर मौन

शहर विकास से जुड़े दस अहम सवालों पर इंदौर विकास प्राधिकरण ने शनिवार को हुई जन उपयोगी लोक अदालत में जवाब पेश नहीं किया। जवाब पर साहब के हस्ताक्षर नहीं हुए हैं, कहकर नई तारीख मांगी गई है। सवाल विकास मित्र दृष्टि के किशोर कोडवानी ने उठाए थे।

वे जानना चाहते हैं कि जो नए रहवासी क्षेत्र बसे हैं या बस रहे हैं। उनमें धर्म स्थलों, बिजली ट्रांसफार्मर, कचरा पेटी, हॉकर्स झोन, सब्जी मंडी, पान-चाय-पंचर की दुकानों के लिए क्या प्रावधान किए गए हैं? जन संख्या आधारित पानी की टंकियों, ड्रेनेज पानी निकासी, फिल्टर प्लांट, पंपिंग स्टेशन का क्या इंतजाम किया गया है? पारंपरिक जल स्त्रोतों के संवर्धन की क्या कार्ययोजना है? नर्मदा परियोजना के लिए सामंजस्य की क्या योजना है? कोडवानी ने बताया पिछली सुनवाई में कोर्ट ने आईडीए के साथ बैठक करने का सुझाव दिया था। इसी पर 16 सितंबर को बैठक हो चुकी है, परंतु जवाब पेश ही नहीं किया गया है। आईडीए अधिकारी केपी माहेश्वरी ने बताया जवाब तैयार हो गया है, लेकिन अवकाश के कारण हस्ताक्षर नहीं हो सके। अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी, तब सभी के सिलसिलेवार जवाब दे दिए जाएंगे।

बची हुई टंकियों का परीक्षण कराएं
एक अन्य केस में अदालत ने निगम को आदेश दिया है कि कोडवानी को शीघ्र 30 प्रतिशत टंकियों का निरीक्षण करवाएं और शेष दस्तावेज भी उन्हें उपलब्ध कराएं।

आईडीए के पास 49871 पेड़
आईडीए ने एक केस में जवाब पेश करके कोर्ट को बताया कि उसकी योजनाओं में 49 हजार 871 पेड़ लगे हैं। उधर, निगम पहले ही बता चुका है कि 370 बगीचों में करीब 9800 और सड़कों के किनारे करीब 13 हजार 700 पेड़ लगे हैं।

पत्रिका : २६ सितम्बर २०१०

भारतीय मरीज का डीएनए विदेश किसकी अनुमति से भेजा?

- ड्रग ट्रायल के लिए खून के नमूनों की विदेश यात्रा पर उठा सवाल
- आईसीएमआर ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज को भेजा पत्र



बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज को एक पत्र लिखा है। परिषद जानना चाहती है कि जिन भारतीय रोगियों पर ट्रायल किया गया है, उनके खून के नमूने किसकी इजाजत से विदेश भेजे गए? क्या इसमें नियमों का पालन हुआ है?

कॉलेज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया जिन डॉक्टरों ने ट्रायल किए है, उन्हें आईसीएमआर के पत्र के आधार पर जवाब-तलब किया जा रहा है। यह मसला बायोलॉजिकल प्रोडक्ट कानून से जुड़ा हुआ है। अभी तक इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया था। माना जा रहा है यह कॉलेज प्रबंधन और पूरे विभाग के लिए नई मुसीबत का कारण बनेगा। उधर, ट्रायल में लिप्त एक डॉक्टर ने 'पत्रिकाÓ को बताया जो दवा कंपनी ट्रायल करवाती है, वह अपनी उ'च क्षमता लेबोरेटरी में नमूनों को परखना चाहती है, यही वजह है कि नमूने विदेश भेजे जाते हैं। उन नमूनों का और क्या इस्तेमाल होता होगा, यह किसी को अंदाजा नहीं है।

आरटीआई से जुड़ा मसला
दरअसल, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता रोली शिवहरे ने आईसीएमआर से सवाल पूछा था कि ट्रायल से गुजर रहे मरीजों के खून, मूत्र, स्वाब आदि के नमूने जांच के लिए विदेश भेजे जाते हैं। इसकी अनुमति ली गई है या नहीं? यदि हां, तो किस कानून के तहत? इन सवालों के जवाब जब आईसीएमआर को नहीं मिले, तो उन्होंने मध्यप्रदेश स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभागों को पत्र लिखकर जानकारी चाही है।



पत्रिका : २६ सितम्बर २०१०
 

बागड़ खा गई खेत

विनयनगर में अवैध निर्माण
- निगम इंजीनियर ने सड़क पर पास करवाया मकान का नक्शा
- हाईकोर्ट में उजागर हो गया निगम-टीएंडसीपी का झूठ इंदौर




विनय नगर की 40 फीट चौड़ी सड़क की जमीन पर जिन लोगों ने मकान का नक्शा पास करवा लिया था, उनमें से एक का सीधा ताल्लुक इंदौर नगरनिगम के इंजीनियर से है। सरकारी इंजीनियर को पनाह देने के लिए निगम और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग तक ने गलती पर पर्दा डालने की भरसक कोशिश की, लेकिन हाईकोर्ट की निगाह से वे बच नहीं सके। सरकारी दफ्तरों ने तो 'फाइल गायबÓ तक के तर्क दे दिए थे, परंतु फरियादी के दस्तावेजों ने पोल खोल दी। हाईकोर्ट ने नक्शे को अवैध माना और निर्माण ध्वस्त करने का आदेश दे दिया।

मामला विनय नगर के भीतरी बगीचे के पास की सड़क का है। वहां पहले डामर की सड़क हुआ करती थी। विनयनगर हाउसिंग सोसाइटी ने सड़क के किनारे मौजूद प्लॉट नंबर 173 और 188 के पास में क्रम से 173 (ए) और 188 (ए) नाम से प्लॉट काट दिए। प्लॉट नंबर 173 पर बने मकान में दीपक पटेल रहते हैं, जो निगम में इंजीनियर हैं। उनके पिता अमृतलाल (अंबू) पटेल भी रिटायर्ड निगम इंजीनियर हैं। नया नक्शा दीपक के भाई हितेष पटेल के नाम से है।

निगम की गाड़ी होती है पार्क
पटेल के प्लॉट पर फिलहाल बाउंड्रीवाल बनी है और इसमें एमपी09, एचडी-9058 इंडिका खड़ी रहती है। इस पर 'नगरनिगम सेवाÓ  लिखा गया है। पटेल परिवार की महिलाओं ने बताया यह प्लॉट हमारा हो गया है। हमारे खिलाफ अर्जी लगाने वालों की फाइल एक बार हाईकोर्ट ने फेंक दी थी।

अवैध को ध्वस्त करना ही रास्ता : हाईकोर्ट
विनयनगर निवासी अनिल कुकरेजा और अन्य ने इस मामले को लगातार तीन बार हाईकोर्ट में दायर किया। पूर्व में जस्टिस विनय मित्तल ने निर्माण कार्य पर स्थगन आदेश दिया था और बाद में जस्टिस शांतनु केमकर ने भी निर्माण को अतिक्रमण माना था। 9 सितंबर 2010 को जस्टिस एससी शर्मा ने 21 पृष्ठ का अंतिम फैसला सुनाया। इसमें सुप्रीम कोर्ट एक कुछ फैसलों का जिक्र दर्ज है, जिनमें सड़क या पार्किंग की जमीन पर बने बहुमंजिला भवन, स्कूल या अस्पताल तक को नेस्तनाबूत करने के उदाहरण मौजूद हैं। हाईकोर्ट ने सड़क की जमीन खरीदने वालों को छूट दी है कि वे कानूनी तरीके से अपने रुपए उस व्यक्ति से वसूलें, जिसने गलत नक्शा दिखाकर उन्हें प्लॉट बेच दिया।


अफसरों ने किया अतिक्रमण को मजबूत

नगरनिगम : बगैर रिकॉर्ड देखे दी अनुमति
विनयनगर का मूल नक्शा 16 अगस्त 1985 को पास हुआ, तब 40 फीट की सड़क दर्शाई गई थी। जुलाई 1998 में टीएंडसीपी ने सड़क की चौड़ाई 10 फीट करके पटेल का नक्शा पास कर दिया। इसी के आधार पर 25 जनवरी 2008 को निगम ने निर्माण की अनुमति दे दी।

टीएंडसीपी : गायब कर दिया रिकॉर्ड
टीएंडसीपी के द्वारा पारित नक्शे के आधार पर दोनों प्लॉटों पर निर्माण की राह खुली और टीएंडसीपी ने ही बाद में कहा दिया कि मामले में 1998 के बाद के दस्तावेज उपलब्ध ही नहीं है। रिकॉर्ड गायब होने को हाईकोर्ट ने बेहद गंभीर मानते हुए टिप्पणी की है कि संभवत: जानबूझकर रिकॉर्ड गायब किया गया है।

हाउसिंग सोसाइटी : खाली जगह बेचने का सिलसिला
मीठालाल राका की अध्यक्षता वाली विनयनगर हाउसिंग सोसाइटी ने 1985 में मंजूर हुए नक्शे को बाद में बेचना शुरू कर दिया। मूलत: करीब 20 एकड़ में फैली इस कॉलोनी का वर्तमान में करीब 22 एकड़ पर कब्जा है। नक्शे में पार्क और वाणिज्यिक उपयोग की जमीन को भी मकानों के लिए बेच दिया। हाईकोर्ट में परिवादी बनाने के बावजूद सोसाइटी की ओर से कोई मौजूद नहीं हुआ।


'मैं इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहता हूं। आपका नंबर मेरे मोबाइल पर आ गया है। मैं अपने भाई दीपक और पिता अमृतलाल पटेल से कह दूंगा। वे आपसे बात कर लेंगे।Ó
- हितेष पटेल, सड़क पर नक्शा पास करवाने वाले
(लगातार कोशिश के बावजूद भी तीनों ने बात नहीं की।)

फैसले के पांच सबक
- दस्तावेजों के साथ लड़ाई लड़ी जाए तो सरकारी अफसरों की मिलीभगत भी आखिर में उजागर होती है।
- जब एक ही जमीन के दो नक्शे उपलब्ध हों, तो सबसे पुराने वाले नक्शे को ही सही माना जाए।
- आपकी आंखों के सामने अतिक्रमण हो, तो तत्काल शिकायत करें। ये शिकायतें ही कोर्ट में आधार बनती हैं।
- सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके मूल दस्तावेज जुटा लें।
- फाइल गायब करने के प्रचलित फंडे का इस्तेमाल करने के बाद भी झूठ को छुपाया नहीं जा सकता।


पत्रिका :  २६ सितम्बर २०१०

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

झूठ की बुनियाद पर हुआ पीथमपुर में कचरे का फैसला

- गुजरात सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में रामकी कंपनी ने दी गलत जानकारी

भोपाल में रखे यूनियन कार्बाइड के कचरे को गुजरात के अंकलेश्वर के बजाए मध्यप्रदेश के पीथमपुर में लाए जाने के फैसले की बुनियाद झूठी है। सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने जो हलफनामा पेश किया था, उसमें रामकी इनवारो इंजीनियर्स का एक पत्र लगाकर कर दावा किया गया था कि पीथमपुर में स्थापित प्लांट में कचरा भस्म करने की तमाम तकनीकी सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन असल में ऐसा नहीं था। उस वक्त न तो प्लांट शुरू हुआ था और न ही होने की तैयारी ही थी।

गुजरात सरकार की ओर से गुजरात प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारी आरसी तंबोली ने 13 अप्रैल 2009 को सुप्रीम कोर्ट हलफनामा पेश किया था। इसमें 15 जनवरी 2009 को गुजरात सरकार को रामकी इनवायरो द्वारा लिखा पत्र भी दिया गया। रामकी के वाइस प्रेसीडेंट डॉ. के. श्रीनिवास ने इसमें लिखा था कि पीथमपुर में लगे कंपनी का प्लांट फरवरी के दूसरे सप्ताह में पूरी तरह से शुरू हो जाएगा और हम गुजरात सरकार से हर महीने 300 मेट्रिक टन औद्योगिक कचरा लेकर उसे भस्म करना शुरू कर देंगे। असलियत यह है कि वर्तमान में भी यह प्लांट शुरू नहीं हुआ है, जबकि इसी को एक आधार बनाकर गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने हक में करवा लिया।


पीथमपुर में यूका कचरा जलाए जाने के विरोध की अगुवाई करने वाले संगठन लोकमैत्री का कहना है गुजरात सरकार ने बेहद चतुराई से यह फैसला करवाया है। वहां की सरकार ने अंकलेश्वर के भस्मक को कमजोर बताते हुए कहा है कि इसमें लीकेज है। यदि ऐसा है, तो वहां की सरकार उसे बंद क्यों नहीं कर रही है। साफ दिखता है कि यूका का कचरा टालने के लिए ही हलफनामा तैयार किया गया।

रामकी कंपनी का पत्र नहीं जाता, तो पीथमपुर में कचरा भस्म करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट फैसला ही नहीं सुनाता। 
- डॉ. गौतम कोठारी, लोकमैत्री संगठन

 पत्र डॉ. के. श्रीनिवास ने लिखा था और वे अब हमारी कंपनी में नहीं हैं। उन्होंने यह पत्र क्यों और किन परिस्थितियों में गुजरात सरकार को भेजा, यह तो वे ही जानते होंगे।
 अमित चौधरी, प्रभारी, रामकी सयंत्र, पीथमपुर


भस्मक बंद, कचरा भी नहीं
रामकी सयंत्र पर लगा भस्मक फिलहाल बंद है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ट्रायल रन के लिए कंपनी को अनुमति दी थी। दस दिन पहले ही ट्रायल रन समाप्त हुआ। इसके बाद प्लांट को फिर से शुरू करने के लिए बोर्ड से अनुमति की जरूरत है। भस्मक प्रबंधन ने बताया मई से अब तक 1700 मेट्रिक टन कचरा जलाया जा चुका है और फिलहाल कचरा भी मौजूद नहीं है।

ढाई महीने का ठंडा बस्ता
पीथमपुर में कचरा लाने का विरोध जब चरम पर पहुंचा तो 9 अगस्त को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने जारी किया था कि इंदौर के लोगों की सहमति के बगैर कचरा पीथमपुर में नहीं लाया जाएगा। उधर, 10 अगस्त को केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश ने पीथमपुर पहुंचकर लोगों से वादा किया था कि एक उ'च स्तरीय कमेटी बनेगी, जो अंतिम फैसला करेगी। न तो मुख्यमंत्री ने अब तक इंदौर के लोगों से चर्चा की है और न ही जयराम ने कमेटी की घोषणा।




 पत्रिका : २४ सितम्बर २०१०

दिलीप पाटीदार केस में फैसला सुरक्षित

- बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में उठी थी सीबीआई जांच की मांग 
- मालेगांव ब्लॉस्ट


मालेगांव ब्लॉस्ट मामले में करीब पौने दो वर्ष से रहस्यमय तरीके से लापता दिलीप पाटीदार को लेकर चल रही बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। याचिका में मांग की गई है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से केस की जांच करवाई जाए।

11 नवंबर 2008 को मुंबई एटीएस का दल खजराना क्षेत्र की शांतिविहार कॉलोनी से दिलीप पाटीदार को मालेगांव ब्लास्ट मामले में ले गया था। एटीएस का कहना है कि पाटीदार को 18 नवंबर को छोड़ दिया गया, लेकिन इसके बाद से वह आज तक लापता है। दिलीप के भाई रामस्वरूप ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई, जिस पर सुनवाई चल रही थी। पाटीदार की एडवोकेट रितु भार्गव और भुवन देशमुख और एटीएस एडवोकेट वी. वगाड़े गुरुवार को जस्टिस शांतनु केमकर और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ के समक्ष उपस्थित हुए।

एडवोकेट रितु भार्गव ने बताया कोर्ट से सीबीआई जांच की मांग की गई थी, क्योंकि रा'य सरकार और मुंबई एटीएस इस मामले में अब तक कोई परिणाम नहीं दे सकी है। इसी पर कोर्ट ने सहायक सोलिसिटर जनरल विवेक शरण के जरिए केस की फाइल सीबीआई को भेजी थी। पिछली सुनवाई पर सीबीआई ने इस मामले में जांच करने से अनि'छा जाहिर की थी। 

पत्रिका : २४ सितम्बर २०१०

विनय नगर की सड़क को तीन महीने में खाली करें

- मप्र हाईकोर्ट ने नगरनिगम को दिए आदेश
- 40 फीट चौड़ी सड़क पर पास कर दिए थे नक्शे
 

विनय नगर के पार्क के पास की 40 फीट चौड़ी सड़क पर निर्माणाधीन दो मकानों को ढांचे को तोडऩे के आदेश हाईकोर्ट इंदौर के जस्टिस एससी शर्मा ने दिए हैं। कोर्ट ने माना है कि हितेश पटेल और हर्षा वाधवानी ने गलत तरीके का इस्तेमाल करके टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से नक्शे पास करवा लिए थे।

याचिककर्ता महेश नारंग, अशोक कुकरेजा एवं अन्य की याचिका पर हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया। उनके एडवोकेट एके सेठी और राहुल सेठी ने बताया दोनों कब्जेदारों ने क्रमश: 30 अगस्त 2007 एवं 25 जनवरी 2008 को मकान निर्माण का नक्शा पास करवा लिया था, जबकि मूल नक्शे में वहां सड़क होना थी। यह कॉलोनी विनयनगर गृह निर्माण संस्था द्वारा काटी गई थी। नगरनिगम की ओर से आनंद अग्रवाल ने पैरवी की।

पत्रिका : २४ सितम्बर २०१०

कुपोषित ब'चों को अंडे नहीं परोसेगी सरकार

कुपोषित ब'चों को अंडे नहीं परोसेगी सरकार
- शाकाहार को बढ़ावा देने के खातिर उठाया कदम
 


शाकाहार को बढ़ावा देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने फैसला किया है कि कुपोषित ब'चों को तंदुरस्त करने के लिए उन्हें अंडे नहीं परोसे जाएंगे। दूध, आलू, केले, सोया दूध जैसे खाने से ही उन्हें सेहतमंद बनाया जाएगा। महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा तैयार अटल बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन की मेनू लिस्ट में इस संबंध में संशोधन किया जाएगा।

यह जानकारी स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने गोयल नगर दिगंबर जैन समाज के क्षमावाणी समारोह में दी। हार्डिया कुछ दिन पहले मंदिर में दर्शन करने आए थे, तब समाज की ओर से दिलीप पाटनी और ब्रह्मचारी सनत भैया ने अंडा परोसने वाली इस योजना की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया था। गुरुवार को हार्डिया ने बताया मुख्यमंत्री से इस संबंध में चर्चा हो चुकी है और पोषण सूची से अंडे का हटाने का निर्णय हो चुका है। 

जैन समाज से फूटा था विरोध
अंडा परोसने को लेकर प्रदेशभर के जैन समाज से भी विरोध के स्वर उठे थे। बुदेंलखंड के जैन धर्मालंबियों ने इसे ब'चों को मांसाहार के लिए प्रेरित करने का कदम बताया था।


हाईरिस्क क्षेत्रों के लिए थी योजना
2 अक्टूबर से पूरे राज्य में शुरू होने वाले अटल बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन शुरू होगा। इसमें 142 विकासखंडों को हाईरिस्क क्षेत्र माना गया है। इनके लिए विशेष पैकेज घोषित किया गया है। यहां के ब'चों को तीन वक्त का भोजन दिया जाना प्रस्तावित है। इसी में तीसरे भोजन के मेनू में अंडे का जिक्र किया गया था।



मध्यप्रदेश पर कुपोषण के दाग
- एक हजार में से 70 शिशुओं की मौत होती है।
- इनमें से 45 नवजात होते हैं।
- पांच वर्ष तक के ब'चों में से 60 फीसदी का वजन औसत से कम है।
- तीन से छह महीने तक ब'चों में से 40 फीसदी का ही टीकाकरण हो पाता है।
- सबसे अधिक कुपोषण आदिवासियों और दलित ब'चों में पाया गया है।
- कुपोषण में मध्यप्रदेश का देश में दूसरा स्थान है।
(नेशनल फेमेली हेल्थ सर्वे -3 के मुताबिक)

पत्रिका :  २४ सितम्बर २०१० 

हुकुमचंद मिल पर अब 27 अक्टूबर को सुनवाई

हुकुमचंद मिल के मजदूरों से जुड़ी याचिका पर अब 27 अक्टूबर को सुनवाई होगी। बुधवार को इस याचिका पर राज्य सरकार को जवाब पेश करना था। एडवोकेट गिरीश पटवद्र्धन ने बताया सरकार की ओर से जवाब नहीं आने के कारण अगली तारीख लगाई गई है।


पत्रिका : २३ सितम्बर २०१०

सरकार ने रोडवेज का क्या विकल्प तैयार किया?

- एमपीएसआरटीसी बंद करने के फैसले के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट से नोटिस जारी
- सरकार-निगम को पांच दिन में देना होगा जवाब

मध्यप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (एमपीएसआरटीसी) को 30 सितंबर से पूरी तरह बंद करने के राज्य सरकार के फैसले के विरूद्ध हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में बुधवार को एक जनहित याचिका मंजूर कर ली गई। जस्टिस शांतनु केमकर और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ ने सरकार और निगम से पूछा है कि बसें बंद करने के विकल्प में क्या इंतजाम किए गए हैं? सरकार को पांच दिन में जवाब देना होगा।

धार जिले के कुक्षी के निवासी नारायण भायल ने यह याचिका दायर की। उनकी पैरवी करते हुए वरिष्ठ एडवोकेट चंपालाल यादव ने कोर्ट को बताया खंडवा, खरगोन, बड़वानी से हजारों लोग हर दिन गुजरात के दाहोद, गोदरा जाते-आते हैं। एमपीएसआरटीएस के बंद होने के बाद गुजरात व मध्यप्रदेश सरकार के बीच के अनुबंध के चलते वहां मध्यप्रदेश की बसों का प्रवेश बंद हो जाएगा। लोक परिवहन उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन इस फैसले से जनता का यह मौलिक अधिकार छिन रहा है। सरकार के फैसले से चिकित्सा, व्यापार, मजदूरी और पारिवारिक कार्यों के लिए गुजरात जाने वाले लोगों के रास्ते रूक जाएंगे। कोर्ट ने इन तर्कों के आधार पर अतिरिक्त महाधिवक्ता एलएन सोनी और एडवोकेट गिरीश पटवर्धन को क्रमश: राज्य सरकार और एमपीएसआरटीएस को आदेश दिया कि 27 सितंबर तक जवाब पेश करें। 


 पत्रिका : २३ सितम्बर २०१०

फिर से भेजो ड्रग ट्रायल के दस्तावेज

- यूएसएफडीए के संज्ञान के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग का मेडिकल कॉलेज को फरमान

यूनाइटेड स्टेट्स के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा मध्यप्रदेश में हुए ड्रग ट्रायल पर संज्ञान लिए जाने के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग ने नए सिरे से पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है। विभाग ने सभी मेडिकल कॉलेजों से फिर से वे दस्तावेज भोपाल बुलवाए हैं, जिनमें ड्रग ट्रायल की जानकारी छुपी है। कॉलेज में इसको लेकर भारी गहमागहमी बनी हुई है।

बहुराष्टï्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) पर यूएसएफडीए ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा है। विभागीय सूत्रों का कहना है पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी कर ली गई थी, परंतु अब दृश्य बदल गया है। विभाग ने विधानसभा सवालों के जवाब के लिए तैयार दस्तावेजों को एक बार फिर से खंगालना शुरू किया है।

पत्रिका : २२ सितम्बर २०१०

लोकायुक्त पुलिस ने ओढ़ा समयसीमा का कवच

- सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ की जमीन के घोटाले का केस 
- कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर विशेष न्यायालय में पेश नहीं की अंतिम रिपोर्ट
- शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लगाया लोकायुक्त-कैलाश की मिलीभगत का आरोप


परदेशीपुरा चौराहा स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन में हुए 100 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच कर रही लोकायुक्त पुलिस ने 'समयसीमाÓ का कवच धारण कर लिया है। इस बहुचर्चित मामले में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को लेकर मंगलवार को अंतिम जांच रिपोर्ट पेश करने के बजाए लोकायुक्त पुलिस ने विशेष न्यायाधीश के आदेश को ही चुनौती दे डाली। पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के आठ न्यायिक दृष्टांतों का जिक्र करते हुए कहा कि इस कोर्ट को जांच की समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं है। हम जब तक चाहेंगे, जांच करेंगे। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने इसे लोकायुक्त व कैलाश की मिलीभगत बताया। लोकायुक्त पुलिस के तर्क पर बहस के लिए कोर्ट ने 6 अक्टूबर की तारीख तय की। ï

इस केस में पुलिस ने 5 अगस्त को मेंदोला समेत 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक षडय़ंत्र का केस दर्ज किया था। विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने 6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया था कि 21 सितंबर तक अंतिम जांच रिपोर्ट पेश कर बताएं कि क्या आरोपी क्रमांक दो (तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय) की इस मामले में क्या भूमिका है। मंगलवार प्रात: 11.20 बजे लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने कोर्ट के समक्ष चार पेज का एक जवाब पेश किया। इसमें कहा गया कि घटना अवधि 20 वर्ष की है और केस की विवेचना के लिए विभिन्न विभागों से मूल दस्तावेज जब्त या प्राप्त किए जाना है। इसमें अधिक समय लगेगा। दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। इस पर कोर्ट में करीब एक घंटेतक कदम और सेठ के बीच जिरह हुई।
सुरेश सेठ को नहीं सुना जाए
जवाब से यह भी स्पष्ट होता है कि लोकायुक्त पुलिस शिकायतकर्ता सुरेश सेठ के तर्कों के आगे निरुत्तर हो रही है। जवाब के पेज चार पर लिखा गया है एफआईआर रजिस्टर होने के बाद जब तक अंतिम जांच रिपोर्ट पेश नहीं हो जाती, तब तक केस कोर्ट व पुलिस के बीच ही रहता है। परिवादी इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले सकता है। परिवादी सेठ को कोर्ट के समक्ष उपस्थिति होने का अधिकार भी नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने इस जवाब को तवज्जो नहीं देते हुए परिवादी सुरेश सेठ के आग्रह को मंजूर किया और 15 दिन बाद सुनवाई की तारीख नियत कर दी। 

जानें...कितने सटीक हैं लोकायुक्त पुलिस के तर्क

पत्रिका पड़ताल

तर्क एक
घटना अवधि 20 वर्ष की है और इसके लिए विभिन्न विभागों से दस्तावेज जुटाए जाना है। इसमें वक्त लगेगा।
वास्तविकता
5 अगस्त को दर्ज एफआईआर के पेज चार पर लोकायुक्त एसपी वीरेंद्रसिंह ने लिखा है मेरे द्वारा नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग मंत्रालय भोपाल से तीन एकड़ जमीन से जुड़ी पत्रावली, नोटशीट की प्रमाणित जानकारी, नगरनिगम इंदौर से भूमि की लीज डीड की मूल नस्ती, भूल लीज डीड, परिवाद से जुड़े एमआईसी संकल्प, प्रस्तावों की प्रमाणित जानकारी, संबंधित नोटशीट्स एवं पत्रावली की जानकारी जुटाई जा चुकी है। एसपी ने रजिस्ट्रार इंदौर, सहकारिता विभाग इंदौर, नंदानगर साख संस्था इंदौर से दस्तावेज जुटाने का जिक्र भी किया है।
उठता सवाल
यदि ये दस्तावेज जुटा लिए गए हैं, तो फिर लोकायुक्त पुलिस और क्या कागज लेना चाहती है?

तर्क दो
विभिन्न साक्षियों के विस्तृत कथन लिपिबद्ध किए जाना है। इसमें अधिक समय लगना स्वाभाविक है।
वास्तविकता
5 अगस्त को दर्ज एफआईआर के पेज पांच पर लोकायुक्त एसपी वीरेंद्रसिंह ने लिखा है शिकायतकर्ता सुरेश सेठ, तत्कालीन निगमायुक्त संजय शुक्ल, विनोद शर्मा, आकाश त्रिपाठी, निगमायुक्त सीबी सिंह, तत्कालीन भवन अधिकारी ज्ञानेंद्रसिंह जादौन, तत्कालीन निगम सचिव बंशीलाल जोशी, जिला पंजीयक मोहनलाल श्रीवास्तव, भू-अभिलेख अधीक्षक शिवप्रसाद मंडरा, टीएंडसीपी विजय सावलकर,  नंदानगर साख संस्था मैनेजर प्रवीण कंपलीकर, सहकारिता उपायुक्त महेंद्र दीक्षित, उप सचिव मप्र शासन नरेश पाल, निगम सचिव रणबीरकुमार और धनलक्ष्मी केमिकल्स के नाम पर नक्शा पास करवाने वाले मनीष तांबी के बयान लिपिबद्ध किए जा चुके हैं।
उठता सवाल
वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर धनलक्ष्मी केमिकल्स व नंदानगर साख संस्था से जुड़े लोगों तक बयान लिए जा चुके हैं, तो फिर ऐसे कौन लोग शेष रह गए हैं, जिनसे लोकायुक्त पुलिस बात करना चाहती है?

तर्क तीन
दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान की समय सीमा तय करने का जिक्र नहीं किया गया है।
वास्तविकता
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने अंतिम जांच रिपोर्ट करने के लिए स्वयं कोर्ट से चार महीने का समय मांगा था। इस पर परिवादी सुरेश सेठ ने यह कहकर आपत्ति उठाई थी कि तब तक तो विशेष न्यायाधीश का तबादला करवा दिया जाएगा। इतना अधिक समय देने की आवश्यकता नहीं है। बाद में कदम ने ही कोर्ट में मंजूर कर लिया था कि डेढ़ महीने में हम अंतिम रिपोर्ट सौंप देंगे। कदम के साथ उस दिन लोकायुक्त डीएसपी अशोक सोलंकी भी कोर्ट में मौजूद थे।
उठता सवाल
क्या विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम को उस दिन यह बात ध्यान में नहीं आई कि दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान की समय सीमा तय करने जिक्र नहीं किया गया है?

तर्क चार
एफआईआर दर्ज होने के बाद अनुसंधान की प्रक्रिया में परिवादी हिस्सा नहीं ले सकता है।
वास्तविकता
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम और डीएसपी अशोक सोलंकी ने कोर्ट को बताया था कि जो एफआईआर दर्ज की गई है, वह अधूरी है। आरोपी क्रमांक दो (कैलाश विजयवर्गीय) की भूमिका की पड़ताल के लिए अगली तारीख नियत कर दी जाए।
उठता सवाल 
प्रारंभिक जांच में जब एक आरोपी की भूमिका को लेकर पड़ताल ही नहीं की गई तो परिवादी को प्रक्रिया से दूर करने की कोशिश करना कितना न्यायोचित है?

तर्क पांच
जिन लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है, उनके सुसंगत साक्ष्य का संकलन एवं परीक्षण करने में अधिक समय लगेगा।
वास्तविकता
शासन को करीब पौने तीन करोड़ रुपए की चपत लगाने वाले जिन 17 लोगों के खिलाफ डेढ़ माह पहले एफआईआर दर्ज की थी, उन्हें लोकायुक्त पुलिस ने आज तक नोटिस भी नहीं भेजा है। आरोपी बनाए गए सिटी इंजीनियर हंसकुमार जैन, रिटायर्ड भवन अधिकारी अशोक बैजल और रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री नरेंद्र सुराणा ने 'पत्रिकाÓ को बताया है कि अब तक तो उन्हें यह भी पता नहीं लगा है कि उन पर आरोप क्या है?
उठता सवाल
लोकायुक्त पुलिस ने जांच को आगे ही नहीं बढ़ाया है, तो यह कैसे मान लिया जाए कि इस केस को अंजाम तक पहुंचाने में वह 'ड्यूटीÓ निभा रही है? 

क्या संभागायुक्त-आईजी को नहीं दिखा
सवा करोड़ का खर्चा
कैलाश के कार्यक्रम में मौजूद होने पर सुरेश सेठ ने विशेष न्यायाधीश के सामने उठाया सवाल नंदानगर में ताबड़तोड़ बांट दी गई थीं 20 हजार साडिय़ां

रविवार को गणेशोत्सव के दौरान नंदानगर गोल स्कूल में हुए महाआरती आयोजन में संभागायुक्त बसंतप्रताप सिंह और आईजी संजय राणा की मौजूदगी मंगलवार को सुगनीदेवी कॉलेज परिसर के जमीन घोटाले केस से जुड़ गई। कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी के समक्ष कहा कि उस आयोजन में सवा करोड़ रुपया खर्च हो रहा है और मंत्री कैलाश विजयवर्गीय व विधायक रमेश मेंदोला की मौजूदगी में ताबड़तोड़ महिलाओं को 20 हजार साडिय़ां बांट दी गई। अवकाश होने के बावजूद रविवार को अचानक ये साडिय़ां कहां से आ गई? क्या दोनों वरिष्ठ अधिकारियों को यह सबकुछ नहीं दिखा? 

सुरेश सेठ ने मीडिया से चर्चा में बताया कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जाहिर किया है। दोनों अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए ही उस कार्यक्रम में बुलाया गया था। दोनों के सामने ही कैलाश-मेंदोला ने कहा यहां इतनी महिलाएं मौजूद हैं, इन्हें खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। सभी को उपहार में साडिय़ां दी जाना चाहिए। इतना कहते ही पता नहीं कहां से साडिय़ों के बक्से आ गए और महिलाओं में इन्हें बांट दिया गया। दरअसल, साडिय़ां पहले से ही वहां मौजूद थीं। इतने वरिष्ठ अधिकारियों को ऐसे कार्यक्रमों से बचना चाहिए क्योंकि इससे आम लोगों का उनपर से भरोसा उठता है। बड़े अफसर भी मूकदर्शक बने रहेंगे तो भ्रष्ट ताकतों के खिलाफ आवाज उठाने वाले मेरे जैसे लोग आखिर कहां जाकर पनाह लेंगे? 

हमारी मौजूदगी में नहीं बंटे उपहार
कार्यक्रम में बुलाया था, इसलिए गए। मैं और आईजी दोनों ही साथ में थे, परंतु कुछ ही देर में वहां से चले आए थे। हमारी मौजूदगी में वहां कोई उपहार नहीं बांटे गए। संभवत: वहां वीडियो शूटिंग भी हुई है। उसके फुटेज भी देखे जा सकते हैं।
- बसंतप्रताप सिंह, संभागायुक्त

रिपोर्टिंग से कोर्ट हैरान
केस की सुनवाई के दौरान विशेष न्यायाधीश ने मीडिया के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया। बाद में जिला कोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष सुरेंद्र वर्मा ने कोर्ट से मीडियाकर्मियों को सुनवाई में मौजूद रहने का आग्रह किया। कोर्ट ने इसे मंजूर करते हुए मीडियाकर्मियों को बताया यहां की न्यायिक प्रक्रिया को एक अखबार ने ('पत्रिकाÓ नहीं) बेहद गलत तरीके से रिपोर्ट किया। यहां तक लिख दिया कि बॉबी छाबड़ा ने कोर्ट में बहस की, जबकि वास्तव में ऐसा हुआ ही नहीं था। इससे जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति भरोसा टूटता है। 

पत्रिका : २२ सितम्बर २०१०

100 करोड़ के घोटाले की अंतिम रिपोर्ट आज

कैलाश के खातिर लोकायुक्त पुलिस विशेष न्यायाधीश से मांग सकती है और मोहलत

सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रु. के जमीन घोटाले के मामले में मंगलवार को लोकायुक्त पुलिस द्वारा विशेष न्यायाधीश के समक्ष तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश की जाना है। कोर्ट द्वारा दिए गए 45 दिन के समय में जांच एजेंसी से क्या सबूत जुटाए हैं, इस पर सभी की निगाहें हैं। पांच महीने से चल रहे इस केस में लोकायुक्त पुलिस अब तक पर्याप्त समय मांग चुकी है। खासकर कैलाश के खिलाफ। संकेत है कि इस बार भी लोकायुक्त पुलिस द्वारा जांच और सबूतों के नाम पर समय मांगा जाएगा। 

कांग्रेस नेता सुरेश सेठ की शिकायत पर विशेष न्यायाधीश के आदेश से लोकायुक्त पुलिस ने 6 अप्रैल को मामले की जांच शुरू की थी। लोकायुक्त पुलिस ने 5 अगस्त को नंदानगर साख संस्था अध्यक्ष व विधायक रमेश मेंदोला, धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के नगीनचंद्र कोठारी, विजय कोठारी, मनीष संघवी और 13 अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार व आपराधिक षडय़ंत्र रचने का केस दर्ज किया था। पिछली सुनवाई (6 अगस्त) पर कोर्ट में सेठ ने लोकायुक्त पुलिस पर आरोप लगाया था कि जानबूझकर आरोपी क्रमांक दो (कैलाश विजयवर्गीय) को बचाने की कोशिश हो रही है। इस आरोपी के बारे में स्थिति स्पष्ट की जाना चाहिए। इसी पर कोर्ट ने लोकायुक्त पुलिस को 21 सितंबर तक केस में अंतिम रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था।  

क्या हो सकता है
  • जांच पूरी नहीं हो पाने के कारण लोकायुक्त पुलिस एक बार फिर समय मांग सकती है।
  • अगर जांच पूरी हो गई है तो गोपनीय रिपोर्ट पर निर्भर रहेगा कि कैलाश को दोषी पाकर एफआईआर दर्ज की गई या क्लीनचिट दी गई।
  • हो सकता है इस मामले में लोकायुक्त पुलिस द्वारा नए दिशा-निर्देश मांगे जा सके।


डेढ़ महीने में नोटिस भी नहीं भेजा
- छह अगस्त को एफआईआर दर्ज करके लोकायुक्त पुलिस ने ठंडे बस्ते में डाल दिया केस
सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रु. के जमीन घोटाले के केस में डेढ़ महीने पहले लोकायुक्त पुलिस ने विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपतियों नगीनचंद्र कोठारी, विजय कोठारी व मनीष संघवी तथा 13 अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार व आपाराधिक षडयंत्र रचने की एफआईआर तो दर्ज की थी। परंतु इस पर अगला कदम आज तक नहीं उठाया गया है। किसी भी आरोपी को अब तक न तो नोटिस दिया गया है और न ही कोई पूछताछ ही की गई।

लोकायुक्त पुलिस ने प्रारंभिक जांच में माना है कि तीन एकड़ जमीन के लिए धनलक्ष्मी केमिकल्स और नंदानगर साख संस्था के बीच हुए सौदे में 17 लोगों ने मिलकर षडय़ंत्र किया और इससे सरकार को करीब पौने तीन करोड़ रुपए की चपत लगी। इसी आधार पर 5 अगस्त को एफआईआर दर्ज की गई, परंतु इसके बाद चालान पेश करने को लेकर रवैया ठंडा ही है। अफसर चालान के लिए आरोपियों के खिलाफ जांच, दस्तावेज के नाम लंबी प्रक्रिया बताते हैं। सही मायने में शुरुआत हुई या नहीं। इसे लेकर 'पत्रिकाÓ ने जिन 17 लोगों पर केस दर्ज हुआ उनमें से कुछ से बात की तो पता चला कि इस मामले में अभी कोई गति ही नहीं है। 


मुझे अब तक न तो कोई नोटिस मिला है और न ही एफआईआर की प्रतिलिपि। जो भी मालूम हुआ है, वह अखबारों के जरिए ही पता चला है।
हंसकुमार जैन, सिटी इंजीनियर, निगम

कुछ माह पहले लोकायुक्त पुलिस ने बयान के लिए बुलाया था। केस दर्ज होने के बाद इस संबंध में मुझसे न कोई संपर्क किया और न ही किसी प्रकार का नोटिस मिला। मेरा तो यही सवाल है कि भला बताए कि मेरा दोष क्या है आरोप क्या है?
अशोक बैजल, रिटायर्ड भवन अधिकारी

सुगनीदेवी कॉलेज की जमीन गड़बड़ी में मुझ पर भी लोकायुक्त पुलिस ने केस दर्ज किया। यह मुझे मीडिया के माध्यम से ही पता चला। पूरा मामला क्या है मुझे ही नहीं पता। जो आरोप लगाए गए हैं वे विरोधभासी हैं। केस दर्ज होने के बाद लोकायुक्त पुलिस की ओर से मुझे न नोटिस मिला न संपर्क किया गया।
नरेंद्र सुराणा, रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री  



तारीख -पे- तारीख

अप्रैल
जांच के लिए तीन माह का समय दिया

कोर्ट ने 6 अप्रैल को तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय, नंदानगर साख सहकारी संस्था के अध्यक्ष रमेश मेंदोला, धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी व विजय कोठारी की भूमिका की जांच कर दोषी पाए जाने पर कार्रवाई को लेकर तीन महीने का समय दिया था। इसके लिए 6 जुलाई को रिपोर्ट पेश की जानी थी।
जुलाई
फिर समय मांग लिया

 6 जुलाई को लोकायुक्त पुलिस ने कोर्ट में बताया कि जांच पूरी नहीं हुई है। इसके लिए तीन माह समय मांगा गया। इस पर परिवादी व पूर्व मंत्री सुरेश सेठ ने आपत्ति ली व लोकायुक्त अफसरों पर राजनीतिक दबाव का आरोप लगाया। इसके बाद कोर्ट ने लोकायुक्त पुलिस को फिर एक माह का समय दिया गया।
अगस्त
मुख्य कर्ताधर्ता कैलाश का नाम छोड़ दिया

6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस ने नंदानगर साख सहकारी संस्था के अध्यक्ष व तत्कालीन एमआईसी सदस्य रमेश मेंदोला, धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी व विजय कोठारी सहित 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं में केस दर्ज करने के साथ रिपोर्ट विशेष न्यायाधीश के समक्ष पेश की थी। तब परिवादी व पूर्व मंत्री सुरेश सेठ ने तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय का नाम हटाने को लेकर आपत्ति ली थी और आरोप लगाए थे। तब अफसरों ने कहा था कि कैलाश के खिलाफ जांच चल रही है। इसके लिए कोर्ट से चार माह का समय मांगा था जिस पर डेढ़ माह का समय दिया गया था।
...और अब सितंबर
इस तरह करीब साढ़े पांच महीने से जांच चल रही है। कैलाश किन-किन आधारों पर दोषी हो सकते हैं इसे लेकर सेठ प्रमाणित साक्ष्यों का पुलिंदा पेश कर चुके हैं। उधर, लोकायुक्त पुलिस पूर्व में भी कई दस्तावेज जुटा चुकी है। 'पत्रिकाÓ कैलाश के खिलाफ आरोपों के बिंदुओं को सोमवार को उल्लेख कर चुकी है। ऐसे में अब सबकी नजरें कैलाश को लेकर लोकायुक्त की रिपोर्ट पर टिकी है।









पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

अनुमति लिए बगैर निकली जीतू की रैली

- जनहित याचिका की सुनवाई में प्रशासन ने मानी गलती
- गलती क्यों और किससे हुई, पर चार सप्ताह में देना होगा जवाब



प्रदेश भाजयुमो अध्यक्ष जीतू जिराती की स्वागत रैली के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सोमवार को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के जस्टिस एसएस केमकर एवं जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ में सुनवाई हुई। कोर्ट के समक्ष प्रशासन ने मंजूर किया है कि यह रैली बगैर अनुमति के निकाली गई। कोर्ट ने राज्य सरकार से इस संबंध में चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

याचिकाकर्ता नंदानगर निवासी संजय मित्तल की ओर से एडवोकेट पीके शुक्ला एवं एमएस चौहान ने पेश की है। चौहान ने 'पत्रिकाÓ को बताया केस में 13 लोगों को प्रतिवादी बनाया गया है। नगरनिगम और जिला प्रशासन के जवाब के आधार पर ही याचिका की अगली दिशा तय होगी।

यह है जनहित
- रैली के कारण सात घंटे तक इंदौर जाम में फंसा रहा।
- रैली में हथियारों का खुलकर उपयोग किया गया, जिससे जनता में दहशत फैली।
- रैली के लिए लगाए गए मंचों की बिजली चुराकर ली गई।
- रैली के लिए रास्ते रोक दिए गए, जिनपर जनता का अधिकार रहता है। 

 पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

काले कारनामों पर पोत दी कालिख

- एमजीएम मेडिकल कॉलेज में सूचना का अधिकार का माखौल
- कालिख पोत को जानकारी देने का संभवत: देश का पहला मामला


एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने सूचना का अधिकार कानून का माखौल उड़ाते हुए एकाउंट से जुड़े एक दस्तावेज पर जानबूझकर कालिख पोत दी। आवेदक को यह जानकारी देते हुए कालिख पोतने का जिक्र भी प्रबंधन ने किया है। सूचना का अधिकार का इस तरह से मजाक बनाने की संभवत: यह देश का पहला मामला है।

मामला बहुराष्टरीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाओं के मरीज पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) से जुड़ा है। स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के सदस्य डॉ. आनंद राय ने कॉलेज के विभिन्न विभागों को ट्रायल के लिए मिले रुपए की ऑडिट रिपोर्ट मांगी थी। मेडिसिन विभाग ने वर्ष 2010 की ऑडिट रिपोर्ट तो दी लेकिन कई महत्वपूर्ण आंकड़ों पर कालिख पोत दी। ऑडिट रिपोर्ट सरिता मूंदड़ा ने तैयार की है। मूंदड़ा के पते और फोन नंबर पर भी कालिख पोती गई है। साथ ही कवरिंग पत्र में यह भी लिख दिया कि आवेदन द्वारा चाही गई जानकारी से यह संबंधित नहीं है, इसलिए इस पर काले रंग का प्रयोग करके इसे अपठनीय बनाया गया है। उधर, आवेदक का कहना है मैंने संपूर्ण ऑडिट रिपोर्ट मांगी थी, इसलिए उसका सीधा-सीधा मेरे आवेदन से संबंध है। ट्रायल के नाम पर हुए हेरफेर को छुपाने के लिए यह कार्रवाई की है। इसके विरूद्ध मैं संचालक चिकित्सा शिक्षा को अपील कर रहा हूं।

साढ़े 13 लाख का हिसाब छुपाया
ऑडिट रिपोर्ट में स्पष्ट है कि 31 मार्च 2010 तक मेडिसिन विभाग की साइंटिफिक कमेटी के खाते में 13.47 लाख रुपए आए हैं। कालिख से यह छुपा लिया गया है कि यह किन लोगों में बंटा।



जानकारी छुपाने वाले विभाग पर गंभीर आरोप

मेडिसिन विभाग के डॉ. अनिल भराणी, डॉ. आशीष पटेल, पूर्व एचओडी डॉ. अशोक वाजपेयी पर गंभीर आरोप है कि इन्होंने राज्य सरकार को जानकारी दिए बगैर ट्रायल करके अकूत संपत्ति जुटाई है। डॉ. भराणी और डॉ. पटेल ने तो एक ट्रायल के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज को स्पांसर कंपनी बताने तक का खेल कर दिया है।

'संभवत: यह देश का पहला मामला है, जब जानकारी पर कालीख पोती गई है। नि:संदेह जानकारी छुपाने की कोशिश के चलते यह कदम उठाया होगा। वही जानकारी छुपाई जा सकती है, जिससे शांति भंग होने या देश की गोपनीयता को खतरा हो। हम इसे राष्टï्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बनाएंगे।
- रोली शिवहरे, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता

'आवेदक को इसके विरूद्ध अपील करना चाहिए। साथ ही जिस दस्तावेज पर कालिख पोती गई है, उसके लिए फिर से आवेदन लगाना चाहिए।
- गौतम कोठारी, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता

पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

चौतरफा घिरे ड्रग ट्रायल वाले डॉक्टर

- विधानसभा, ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, मानवाधिकार आयोग, एमसीआई, आयकर के साथ ही यूएसएफडीए ने लिया संज्ञान

बहुराष्टरीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा का मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) करने वाले एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर चौतरफा घिर गए हैं। लोकायुक्त, आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो, मानवाधिकार आयोग, आयकर और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ ही यूनाइटेड स्टेट्स के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) ने इसे बेहद गंभीर मानकर जांच शुरू कर दी है। यूएसएफडीए ने इस संबंध में भारत सरकार को पत्र भेजा है। 

'पत्रिकाÓ ने ही ड्रग ट्रायल का खुलासा करके बताया था कि कॉलेज से जुड़े एमवाय अस्पताल और चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में आने वाले रोगियों को अंधेरे में रखकर ट्रायल किए जा रहे हैं। इसके बाद मामला विधानसभा पहुंचा और मध्यप्रदेश सरकार ने कानूनी बंदिश के लिए एक कमेटी का गठन किया। चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुïख सचिव आईएस दाणी की अध्यक्षता में बनी यह कमेटी ट्रायल को नियंत्रित  करने के लिए केंद्र सरकार और दूसरे राज्यों के कानूनी प्रावधानों की पड़ताल कर रही है।

 51 रोगियों पर दुष्प्रभाव
ड्रग ट्रायल से रा'य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 51 रोगियों पर साइड इफेक्ट हुए हैं। ये मरीज पिछले पांच वर्ष में कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में इलाज ले रहे थे। यह जानकारी विधानसभा से जारी एक दस्तावेज में उजागर हुई है। सरकार ने विधानसभा को बताया था कि पांच वर्ष में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ। इसमें 1644 ब'चे और 721 वयस्क हैं। जिन मरीजों पर दुष्प्रभाव हुए हैं, उनके नाम अभी जाहिर नहीं किए गए हैं। आशंका है कि इनमें से कुछ की मौत हो चुकी है।

मरीज की सेहत और डॉक्टर के एकाउंट पर नजर

यूएसएफडीए
'पत्रिकाÓ के खुलासे के बाद रशिया टीवी ने एमवाय अस्पताल में ट्रायल को लेकर एक खबर अंतरराष्टï्रीय स्तर पर प्रसारित की थी। रिपोर्ट में जिक्र था कि अमेरिकन कंपनियों की शह पर यहां गरीब मरीजों पर प्रयोग हो रहे हैं। इसी पर यूएसएफडीए ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मध्यप्रदेश में हुए ट्रायल का विस्तृत ब्यौरा मांगा है।

विधानसभा
विधायक पारस सकलेचा, प्रताप ग्रेवाल और प्रद्युम तोमर ने विधानसभा में पांच सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हो रहे ट्रायल को लेकर जो सवाल पूछे थे। उनके जवाब आज तक  सरकार ने नहीं दिए हैं। मानसून सत्र में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के दौरान चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने कहा था ट्रायल को काबू करने के लिए सरकार कानून बनाना चाहती है।

ईओडब्ल्यू
स्वास्थ्य सेवा समर्पण सेवा समिति अध्यक्ष डॉ. आनंद राजे की शिकायत पर भोपाल ईओडब्ल्यू ने डॉ. अपूर्व पुराणिक, डॉ. अनिल भराणी, डॉ. सलिल भार्गव, डॉ. अशोक वाजपेयी, डॉ. हेमंत जैन और डॉ. पुष्पा वर्मा के खिलाफ जांच शुरू कर रखी है। सभी डॉक्टरों के एकाउंट की जांच जारी है।

लोकायुक्त
ट्रायल करने वाले डॉक्टरों, एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन और एथिकल कमेटी के सदस्यों के खिलाफ लोकायुक्त में भी शिकायत हो चुकी है। आरोप है कि सभी ने मिलकर गरीब और अनपढ़ मरीजों की जान जोखिम में डाली है। लोकायुक्त ने शिकायतकर्ता राजेंद्र के. गुप्ता को 14 अक्टूबर को भोपाल बुलाया है।

मानवाधिकार आयोग
'पत्रिकाÓ में प्रकाशित खबरों पर संज्ञान लेकर  मप्र मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस डीएम धर्माधिकारी, सदस्य जस्टिस एके सक्सेना व जस्टिस वीके शुक्ल ने एमवायएच अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव को नोटिस भेजा है। आयोग जानना चाहता है कि मरीजों के अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा।

आयकर
'पत्रिकाÓ में प्रकाशित खबरों के आधार पर आयकर विभाग ने मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत से उन सभी डॉक्टरों की आय का ब्यौरा मांगा है, जो ट्रायल में लिप्त हैं। विभाग की जिज्ञासा इसमें है कि कहीं डॉक्टरों ने बेनामी संपत्ति तो नहीं जुटा ली। 

एमसीआई

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को जो शिकायत भेजी गई थी, उसी पर मप्र के चिकित्सा शिक्षा संचालक से पूरा ब्यौरा मांगा गया है। सभी मेडिकल कॉलेज इसका जवाब तैयार कर रहे हैं। 'पत्रिकाÓ पूर्व में ही यह जानकारी प्रकाशित कर चुका है।








पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

कम नहीं होते 45 दिन

सुगनीदेवी जमीन घोटाला
- 100 करोड़ के जमीन घोटाले पर विधि विशेषज्ञों की राय
- विशेष न्यायाल में कल पेश होना है लोकायुक्त पुलिस की जांच रिपोर्ट



सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रुपए की तीन एकड़ जमीन घोटाले में 43 दिन पहले यानी 6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस को विशेष न्यायालय ने आदेश दिया था कि 45 दिन में मामले की अंतिम जांच रिपोर्ट सौंप दे। वह दिन कल है। विधि विशेषज्ञों से रायशुमारी में साफ होता है कि इस मामले में मौजूद दस्तावेज और 17 लोगों के खिलाफ की गई एफआईआर को देखकर लगता है कि धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज और नंदानगर साख संस्था के बीच हुए सौदे में आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। साथ ही, 'दूध का दूधÓ साबित करने के लिए लोकायुक्त जैसी सशक्त जांच एजेंसी को दी गई 45 दिन की समय सीमा पर्याप्त हैं।

पिछली सुनवाई को लोकायुक्त पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि मामले में विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति (नगीनचंद्र कोठारी, विजय कोठारी और मनीष संघवी) और 13 अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार एवं आपराधिक षडयंत्र का केस दर्ज कर लिया गया है। नेता, अफसर और उद्योगपतियों के गठजोड़ से सरकार को 2 करोड़ 70 लाख रुपए की चपत लगी है। कोर्ट में 29 पेज की एफआईआर भी पेश की गई थी। तब परिवादी सुरेश सेठ ने सवाल उठाया था कि आरोपी क्रमांक दो यानी विजयवर्गीय के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की गई। इस पर कोर्ट ने 45 दिन का समय दिया था। 'पत्रिकाÓ ने पूरे मामले को विधि विशेषज्ञों के समक्ष रखा।


मूल शिकायत में कैलाश की भूमिका को साबित करने वाले तथ्य

तथ्य एक
कैलाश विजयवर्गीय के नेतृत्व में रमेश मेंदोला ने 1999 में भाजपा प्रत्याशी के रुप में क्रमश: महापौर और पार्षद का चुनाव साथ-साथ लड़ा। विजयवर्गीय के नेतृत्व वाली एमआईसी में रमेश मेंदोला स्वास्थ्य प्रभारी के पद पर जनवरी 2000 से जनवरी 2005 तक आसीन रहे। दोनों ही समान राजनैतिक पृष्ठभूमि के होकर एक साथ राजनैतिक कार्य करते हैं। 

तथ्य दो
 कैलाश ने अपने राजनैतिक प्रभाव का दुरुपयोग करके रमेश मेंदोला की अध्यक्षता वाली नंदानगर साख संस्था को खुद के महापौर रहते जमीन हस्तांतरित करवाई। इस संस्था में विजयवर्गीय की पत्नी आशा विजयवर्गीय भी संचालक हैं।

तथ्य तीन
 कैलाश-रमेश ने वर्ष 2000 में पद संभालते ही आपराधिक षडयंत्र की शुरुआत कर दी थी। यही वजह है कि धनलक्ष्मी केमिकल्स कंपनी को इस भूमि पर बगैर भूमि उपयोग में बदलाव के 18 जून 2000 को मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाने की अनुमति दे दी गई।

तथ्य चार
घोटाले के दौरान कैलाश महापौर के साथ ही उसी क्षेत्र के विधायक भी थे, जहां घोटाला हुआ। लोकसेवक होने के नाते कैलाश व रमेश भलीभांति जानते थे कि मप्र शासन की अनुमति के बगैर न तो भूमि बेची जा सकती थी और न हस्तांतरित।

तथ्य पांच
 कैलाश ने एमआईसी अध्यक्ष के नाते 3 जून 2002 को उस संकल्प क्रमांक 289 की अनुशंसा कर दी जिसमें सुगनीदेवी जमीन को नंदानगर साख संस्था को देने का जिक्र था।

तथ्य छह
कैलाश-रमेश की मौन सहमति से धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार विजय कोठारी एवं मनीष संघवी को अनुचित लाभ देते हुए 10 हजार वर्गफीट जमीन उन्हें दे दी गई। शेष जमीन ही नंदानगर संस्था अध्यक्ष को दी गई।



एफआईआर में ही छुपे हैं कैलाश की भूमिका के आधार

  • पेज छह के दूसरे पैरा में लिखा गया है कि तत्कालीन भवन अधिकारी, नगर शिल्पज्ञ और संबंधित अन्य अफसरों व कर्मचारियों ने नियम विरूद्ध मनमाने ढंग से लीज राशि की गणना की, जिसके आधार पर विजयवर्गीय की अध्यक्षता वाली एमआईसी ने नंदानगर संस्था को जमीन सौंपने का संकल्प 286 और प्रस्ताव 58 पास कर दिया। विसंगति यह है कि अफसरों की गलती को महापौर, एमआईसी और निगमायुक्त ने हूबहू मान क्यों लिया? क्या महापौर जैसे जिम्मेदार पद पर आसिन होने के नाते उनका दायित्व नहीं था कि संकल्प व प्रस्ताव को नामंजूर कर दें? 
  • पेज आठ के तीसरे पैरा में लिखा कि नगर शिल्पज्ञ जगदीश डगांवकर ने 19 अप्रैल 2004 को एक ऑफिस नोट पर हस्ताक्षर किए। इसके आधार पर कैलाश की अध्यक्षता में एमआईसी ने 22 सितंबर 2004 को संकल्प क्रमांक 759 पास किया। इसी के जरिए जमीन अगले तीस वर्ष के लिए नंदानगर संस्था को दी गई। सवाल उठता है डगांवकर के ऑफिस नोट और संकल्प प्रस्ताव के बीच में पांच माह का अंतराल था। इतने समय में भी इस प्रस्ताव के दोषों की विजयवर्गीय ने अनदेखी क्यों की?
  • पेज नौ के पैरा दो में लिखा है कि धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार और पार्षद रमेश मेंदोला ने अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडयंत्र में संगमत होकर पद का दुरुपयोग किया और सरकार को 2.70 करोड़ रुपए की आर्थिक हानि पहुंचाई। पार्षद मेंदोला को इतनी ही राशि का अवैध आर्थिक लाभ हुआ। इसी से सवाल उपजता है क्या एक अकेला पार्षद अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडयंत्र में संगमत होकर इतना फायदा उठा सकता है? अपराध वर्ष 2000 से 04 के बीच हुआ है, क्या महापौर के सर्वाधिक नजदीकी पार्षद मेंदोला लगातार चार वर्ष तक अकेले ऐसा षडयंत्र रच सकता है? यदि ऐसा हुआ है तो विजयवर्गीय व एमआईसी ने अपनी अहम जिम्मेदारी को नहीं निभाया है। क्या यह पद के दुरुपयोग की श्रेणी में नहीं आता है?  

पत्रिका : २० सितम्बर २०१० 

मेंदोला के खिलाफ थाने में एक और शिकायत

- भारतीय साख संस्था के सदस्य को धमकाने का आरोप
- थाने में हुई शिकायत, पर टीआई को जानकारी ही नहीं



विधायक रमेश मेंदोला के खिलाफ संयोगितागंज पुलिस थाने में शिकायत दर्ज हुई है। फरियादी का आरोप है मेंदोला ने पद का दुरुपयोग करते हुए उसे धमकाकर एक ऐसे कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए जिससे उसे पौने सात लाख रुपए का नुकसान हो गया। उधर, पुलिस ने शिकायत की जानकारी नहीं होने की बात कहकर चौंका दिया है। सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ की जमीन के मामले में मेंदोला के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस भ्रष्टाचार का केस दर्ज कर चुकी है।

शिकायतकर्ता उदय जायसवाल भारतीय साख सहकारिता संस्था के सदस्य हैं। उनके मुताबिक ढाई महीने पहले नंदानगर साख सहकारिता संस्था अध्यक्ष रमेश मेंदोला, मैनेजर प्रवीण कंपलीकर, भारतीय साख संस्था अध्यक्ष महेश चौकसे कुछ अन्य लोगों के साथ उनके घर पर आए थे। भारतीय साख संस्था से मेरे 9 लाख रुपए लेना थे, लेकिन सभी ने दबाव बनाकर मुझसे सवा दो लाख रुपए लेने को कहा। इसके लिए उन्होंने मेरे और मेरी पत्नी से हस्ताक्षर भी करवा लिए। जायसवाल के वकील वाजिब खान ने बताया पुलिस को तत्काल मुकदमा दर्ज कर लेना चाहिए। मामले में पद का दुरुपयोग, धमकाने, झगड़ा करने की नीयत से घर पर जाने की धाराएं लगाई जा सकती है।

मुझे फिलहाल कोई जानकारी नहीं
संयोगितागंज टीआई अनिलसिंह राठौर ने बताया पुलिस के पास फिलहाल इस किस्म की कोई शिकायत नहीं आई है। मुझे फिलहाल इस केस की कोई जानकारी नहीं है। देर रात थाने पर फोन किया तो बताया गया यहां अब तक कोई शिकायत नहीं आई है। उधर, जायसवाल के पास थाने की रिसीव्ड कॉपी मौजूद है।

दोनों संस्थाओं को एक करने की कोशिश
भारतीय साख संस्था को नंदानगर खास संस्था खुद में शामिल करना चाहती है। यही वजह है कि दोनों संस्थाओं के संचालक मंडल मिलकर भारतीय संस्था के बकायेदारों से जैसे-तैसे 'निपटनाÓ चाहते हैं। दोनों संस्थाओं की हाल ही में हुई साधारण सभा में मर्जर के प्रस्ताव पास किए जा चुके हैं। हालांकि, सदस्यों की दिली इ'छा नहीं है कि दोनों संस्थाएं एक हो।

पत्रिका : १७ सितम्बर २०१०

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

चुनाव याचिका में शपथ पत्र पर बयान मंजूर नहीं

- पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी के कथन को हाईकोर्ट में चुनौती
- अगली सुनवाई के बाद ही होंगे बयान 


पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी द्वारा रतलाम विधायक पारस सकलेचा के विरूद्ध दायर चुनाव याचिका पर मंगलवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें मुद्दा उठा कि चुनाव याचिका में शपथ पत्र पर बयान मंजूर नहीं किया जा सकता है। व्यक्तिगत रूप से ही संबंधित व्यक्ति को अपनी बात कहना चाहिए।

कोठारी ने अपनी याचिका के पक्ष में जस्टिस आईए श्रीवास्तव की कोर्ट में शपथ पत्र के जरिए बयान पेश किए थे। सकलेचा की ओर से पैरवी करने वाले वरिष्ठ एडवोकेट चंपालाल यादव ने तर्क दिया कि यह याचिका जिस कानून के तहत दायर की गई है उसमें लिखित बयान की अनुमति नहीं है। कोठारी के एडवोकेट सुबोध अभ्यंकर और वीरकुमार जैन ने इस पर बहस के लिए समय मांगा। अब 14 सितंबर को इस मसले पर सुनवाई होगी और 23 सितंबर को बयान।

भ्रष्टाचार के आरोप पर लगी है याचिका
यह चुनाव याचिका 7 जनवरी 2009 को दायर की गई थी। चुनाव आयोग से प्राप्त सीडी के आधार पर हिम्मत कोठारी ने इस याचिका में कहा है कि विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान सकलेचा ने उन पर भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगाए और इसी के चलते वे चुनाव हार गए। कोठारी ने बताया भाषणों में सकलेचा ने उनपर लाठी खरीदी में 32 करोड़, दानापानी में 25 करोड़, बंदूक 14 करोड़ के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। साथ ही यह भी कहा था कि मेरी बैंग्लूर में होटल है और मुंबई में कॉलोनी काटने वाला हूं। ये सभी आरोप मिथ्या थे क्योंकि अब तक इनके पक्ष में कोई बात कोर्ट में नहीं की गई है। 


पत्रिका : ०८ सितम्बर २०१०

पीके शुक्ला को विनय झेलावत की चुनौती

- हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव में जमा रंग

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव में मौजूदा अध्यक्ष पीके शुक्ला को वरिष्ठ एडवोकेट विनय झेलावत ने चुनौती दी है। मंगलवार को दोनों ने ही दावेदारी जताते हुए नामांकन दाखिल कर दिया। उधर, सचिव पद के लिए भी अब तक चार उम्मीदवार सामने आ गए हैं। शुक्रवार शाम छह बजे तक सभी पदों के दावेदारों की स्थिति  स्पष्ट हो जाएगी।

मंगलवार को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में नामाकंन प्रस्तुत होना शुरू हुए। निर्वाचन अधिकारी टीएन सिंह, सहायक निर्वाचन अधिकारी मुकेश परवाल व सुनील जैन ने बताया नौ पदों के लिए अब तक 20 उम्मीदवार सामने आए हैं। बुधवार शाम 4 से 5.30 बजे तक भी फार्म जमा किए जा सकेंगे। जांच गुरुवार को होगी और शुक्रवार नामवापसी का दिन है। मतदान के समय में फेरबदल किया गया है। साधारण सभा पहले 3.30 बजे होना थी, अब वह 2 बजे शुरू हो जाएगी। मतदान 3.30 बजे से 6.30 बजे तक होगा।

जमानत जब्त करने का प्रावधान
चुनाव की आचार संहिता भी घोषित कर दी गई है। पहली बार जमानत जब्त होने का प्रावधान शामिल किया गया है। चुनाव अधिकारी परवाल ने बताया कुल वैध मतदान का 10 प्रतिशत वोट हासिल नहीं करने वाले उम्मीदवार की 500 रुपए सुरक्षा निधि जब्त कर ली जाएगी। घर जाकर प्रचार करने की शिकायत सही पाए जाने पर उम्मीदवारी समाप्त करने के साथ ही उन्हें अगले वर्ष होने वाले चुनाव के लिए भी अयोग्य घोषित किया जाएगा।

इन्होंने जताई दावेदारी
अध्यक्ष : पीके शुक्ला, विनय झेलावत
उपाध्यक्ष: आशुतोष नीमगांवकर, साधना पाठक,
सचिव: अमिताभ उपाध्याय, आनंद पाठक, पवन जोशी, रविंद्रसिंह छाबड़ा
सहसचिव: गोपाल कचोलिया, पीयूष श्रीवास्तव, रितेश इनानी
कार्यकारिणी (पांच) : गिरीश उखाले, सत्यनारायण शर्मा, विजय दुबे, अनिल रामकर, सुभाष निगम, जीपी सिंह, रघुवीरसिंह, सपनेश जैन, शैलेंद्र दीक्षित.

 पत्रिका : ०८ सितम्बर २०१०

इंदौर के मास्टर प्लान पर अवमानना याचिका

- जवाब देने के लिए सरकार ने हाईकोर्ट से मांगा दो सप्ताह का समय
- विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति भी पेश


इंदौर हाईकोर्ट, जबलपुर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और फिर से इंदौर हाईकोर्ट। इंदौर विकास योजना 2021 यानी इंदौर मास्टर प्लान का सफर फिलहाल तो ऐसा ही है। सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका खारिज होने के साथ ही मप्र हाईकोर्ट के फैसले पर अमल नहीं करने के लिए इंदौर हाईकोर्ट में दायर अवमानना याचिका प्रभाव में आ गई। मंगलवार को इस पर सुनवाई हुई और सरकार को जवाब देने के लिए एक बार फिर से समय मांगना पड़ा। 

याचिकाकर्ता घनश्यामदास की ओर से दायर अवमानना याचिका में तर्क दिया गया है कि जबलपुर हाईकोर्ट की युगलपीठ ने 10 फरवरी 2010 को आवास एवं पर्यावरण विभाग को निर्देश दिए थे कि 90 दिन में आपत्तियों पर सुनवाई कर ली जाए, किंतु अब तक यह कार्य नहीं किया गया। जस्टिस शांतनु केमकर और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ में यह मामला रखा गया। याचिकाकर्ता के एडवोकेट अमित उपाध्याय ने 'पत्रिकाÓ को बताया आवास एवं पर्यावरण विभाग प्रमुख सचिव आलोक श्रीवास्तव, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की तत्कालीन निदेशक दिपाली रस्तोगी और इंदौर टीएनसीपी संयुक्त संचालक विजय सावलकर को परिवादी बनाया गया है।


सरकार को नहीं मिला, पर हाईकोर्ट में पेश हो गया आदेश
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसएलपी खारिज किए जाने सूचना भले ही सरकार को नहीं मिली हो, लेकिन इंदौर हाईकोर्ट के पटल पर यह प्रस्तुत कर दिया गया है। याचिका में सरकार की ओर से सबसे पहले तर्क दिया गया था कि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाई गई है। इस सुनवाई पर बताया गया कि अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति प्राप्त नहीं हुई है।

मास्टर प्लान का अदालती सफर

इंदौर हाईकोर्ट 
1 जनवरी 2008 को लागू मास्टर प्लान को 16 भूस्वामियों ने याचिका दायर करके चुनौती दी। जस्टिस विनय मित्तल ने 17 जून 2008 को फैसला दिया प्राकृतिक न्याय को ध्यान में रखकर याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों पर टीएंडसीपी सुनवाई करे।

जबलपुर हाईकोर्ट 
मप्र सरकार ने एकल बैंच फैसले को चुनौती देकर 11 भूस्वामियों को पार्टी बनाकर याचिका लगाई। जस्टिस अरुण मिश्रा और एससी सिन्हो की युगल पीठ ने 10 फरवरी 2010 ने जस्टिस विनय मित्तल के फैसले को यथावत रखते हुए 90 दिन में सुनवाई के आदेश दिए।

सुप्रीम कोर्ट 
मप्र सरकार ने ïसुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की और सरदारनी कमलजीत कौर को परिवादी बनाया। जस्टिस जेएम पांचाल आरै चंद्रमौलि प्रसाद की युगल पीठ ने 20 अगस्त को याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि जस्टिस विनय मित्तल की बैंच का फैसला सरकार की सहमति से आया था।

इंदौर हाईकोर्ट 
जबलपुर हाईकोर्ट के 10 फरवरी 2010 को आए फैसले का पालन नहीं होने पर 16 अगस्त 2010 को घनश्यामदास, सुधीरकुमार व अशोककुमार ने इंदौर हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। जस्टिस शांतनु केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव की युगल पीठ में सुनवाई जारी है।




सरकार की चार चूक

एक : धारा 19(2) का पालन नहीं किया
 मप्र ग्राम एवं नगर निवेश अधिनियम की धारा 19(2) के तहत शासन द्वारा सुनवाई के उपरांत ही मास्टर प्लान की अधिनियम की धारा 19(5) के तहत अंतिम रूप से मंजूर किया जा सकता है। इसके बाद मास्टर प्लान के प्रावधानानुसार विकास अनुज्ञा जारी होती है। इस प्रक्रिया का पालन नहीं करने के कारण ही यह स्थिति निर्मित हुई है। 

 दो : कोर्ट के सामने कमजोर साबित
जो आपत्तियां लगी हैं, उन्होंने उस ड्राफ्ट को आधार बनाया है, जो महज प्रस्ताव ही था। इसमें 1991 में के प्लान के कुछ आमोद-प्रमोद के स्थानों ग्रीन लैंड को आवासीय दर्शाया गया। सुनवाई प्रक्रिया के बाद इन भू उपयोगों को पुन: आमोद प्रमोद कर दिया गया, क्योंकि पुराने प्लान में इनमें फेरबदल नहीं किया जा सकता था। वैसे भी इनके उपयोग पर 1975 के पहले ही सुनवाई प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ऐसे में आपत्तियों का आधार ही गलत है। सरकार की ओर से यह बात कोर्ट में रखी जाती है, तो संभवत: स्थिति कुछ और बनती।  

 तीन : हाईकोर्ट में दी सुनवाई पर सहमति

20 याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सरकारी वकील ने जवाब दिया कि सुनवाई की जाएगी। इस पर 17 जून 2008 को जस्टिस विनय मित्तल की एकल पीठ ने अधिनियम की धारा 19(2) में सुनवाई करने को कहा था। आपत्तियां दर्ज कराने का अंतिम दिन 4 जुलाई 2008 तय किया गया था और 30 सितंबर तक इस पर सुनवाई होना थी। सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए युगल पीठ में 11 अपीलें दर्ज की। वहां सरकारी वकील ने कहा दिया धारा 18(2) में सुनवाई करेंगे। दोनों बार सरकार ने सुनवाई को मंजूरी दी, इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने केस खारिज कर दिया।

 चार: तीन सदस्यी कमेटी का गठन
मास्टर प्लान पर सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने की तारीख 5 फरवरी 2007 की समय सीमा के बाद कई लोगों ने सरकार को शिकायत की। इस पर सरकार ने 24 मई 2007 को अपर संचालक डीके शर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यी कमेटी का गठन किया। याचिकाकर्ताओं ने इस कमेटी को आधार बनाकर ही कोर्ट में मास्टर प्लान को चुनौती दी। तर्क था कि 7 जुलाई 2007 को प्रस्तावित और 01 जनवरी 2008 को जारी किए गए मास्टर प्लान में उन स्थानों के भू उपयोग बदल दिए गए, जिनको लेकर आपत्ति दर्ज ही नहीं की गई।








पत्रिका : ०८ सितम्बर २०१०

पहले अफसर को सुनाएंगे, फिर करेंगे ममता से बात

इंदौर-दाहोद और छोटा उदयपुर-धार रेल परियोजना में बढ़े बजट पर सांसद की राय


पश्चिम मप्र की दो महत्वाकांक्षी रेल परियोजनाओं इंदौर-दाहोद आर छोटा उदयपुर-धार की अनुमानित लागत में आधिकारिक रूप से 482 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी होने की खबर से जनता और नेता दोनों ही अचंभित हैं। इंदौर की सांसद ने तो कहा है कि पहले से जारी रुपए का इस्तेमाल भी अफसरों ने ठीक तरीके से नहीं किया, इसलिए ही बजट में परेशानी आ रही है। रेलवे बोर्ड के अफसरों से चर्चा करने के बाद ही रेल मंत्री ममता बेनर्जी से बात करेंगे।

'पत्रिकाÓ ने रविवार के अंक में जानकारी दी थी कि रेल मंत्री ममता बेनर्जी ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह को पत्र लिखकर जानकारी दी है कि योजना आयोग के बंधन के कारण दोनों परियोजनाओं के लिए धन राशि की कमी आ रही है। इससे 1518 करोड़ की ये परियोजनाएं बढ़कर 2000 करोड़ की हो गई हैं। दोनों परियोजनाओं का शिलान्यास प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ही किया था।

सांसद सुमित्रा महाजन ने 'पत्रिकाÓ को बताया योजनाएं की देरी का कारण रेलवे बोर्ड के अधिकारियों की लेतलाली भी है। पिछले बजट में इंदौर-दाहोद के लिए 40 करोड़ रुपए  आवंटित हुए थे, लेकिन 6.29 करोड़ ही खर्च किए गए। इस बार भी बजट में इसके लिए 75 करोड़ जारी हुए हैं। इस राशि का चरणबद्ध तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया तो एक बार फिर बजट लेप्स हो जाएगा।

तीन महीने में बैठक का प्रस्ताव भूले
5 जून को इंदौर में पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक रवींद्रनाथ वर्मा द्वारा बुलाई गई सांसदों की बैठक में सांसदों ने प्रस्ताव रखा था कि इस तरह की बैठक हर तीन महीने में होना चाहिए ताकि रेल परियोजनाओं में हो रही देरी के कारण सबके सामने आ सके, परंतु तीन महीने पूरे होने पर भी इस पर अमल शुरू नहीं हुआ।

सांसदों को साथ लेकर बताएं प्रगति
महाजन का कहना है रेलवे बोर्ड के अधिकारियों को चाहिए कि आदिवासी इलाकों को प्रगति की धारा में लाने वाली दोनों अहम परियोजनाओं के बारे में क्षेत्रीय सांसदों को साथ ले जाकर जमीनी हकीकत दिखाएं। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक रेलमंत्री ममता बेनर्जी से चर्चा का कोई अर्थ नहीं है।


पत्रिका : ०६ सितम्बर २०१०

125 करोड़ की जमीन पर क्यों न बने अस्पताल ?

- एक वर्ष पुराने फैसले के अमल में आते ही उठा सवाल 
- मामला कल्याणमल नर्सिंगहोम के पास की 14 हजार वर्गफीट भूमि का


भूमाफिया के कब्जे वाली 125 करोड़ रुपए मूल्य की जमीन हासिल करने के साथ ही प्रशासन के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि  इस पर मल्टीलेवल पार्किंग तानी जाए या अस्पताल बनाए। अफसरों के लिए होस्टल का प्रस्ताव भी सामने आ गया है।

ग्रेटर कैलाश रोड स्थित कल्याणमल नर्सिंगहोम के पास की 14 हजार वर्गफीट जमीन पर शनिवार को नगरनिगम और पीडब्ल्यूडी ने संयुक्त रूप से कब्जा लिया था। हाईकोर्ट ने एक वर्ष पहले इस भूमि के बारे में फैसला दिया था। अब इस जमीन के लिए तीन प्रस्ताव सामने आए हैं। अस्पताल का प्रस्ताव सबसे मजबूत है, किंतु एमजीएम मेडिकल कॉलेज और एमवाय अस्पताल के लचर प्रबंधन के कारण इसके आगे बढऩे में संशय ही है।

पार्किंग
प्रस्ताव दिया: नगरनिगम ने

आधार:  रोड पर कमर्शियल कॉम्प्लेक्स और अस्पताल के कारण वाहनों की संख्या बहुत अधिक रहती है। फिलहाल करोड़ों रुपए से बनी सड़क पर पार्किंग की जाती है।

अस्पताल
प्रस्ताव दिया : एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने
आधार : पुराने रिकार्ड में कल्याणमल नर्सिंगहोम के कारण इस प्रापर्टी पर कॉलेज का हक है। सरकार को पूर्वी क्षेत्र में एक बड़े अस्पताल के लिए जमीन की दरकार है। इससे इस इलाके के मध्यमवर्गीय व निम्न वर्ग को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकती है।

आफिसर्स होस्टल
प्रस्ताव दिया : पीडब्ल्यूडी ने
आधार : इंदौर में सैकड़ों अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले होते रहते हैं। उनके रहने के लिए रेसीडेंसी कोठी के अतिरिक्त कोई इंतजाम नहीं है। यह स्थान मध्य शहर में है।

किसने दबा के रखा फैसला ?
जमीन के संबंध में जस्टिस एएम सप्रे ने 25 अगस्त 2009 को ही फैसला दे दिया था, फिर इस पर अमल में इतनी देरी क्यों हुई? फैसला किसके पास दबा हुआ था? क्या किसी भूमाफिया को फायदा पहुंचाने के लिए मामला ठंडे बस्ते में पटके रखा? जैसे सवाल भी खड़े हो गए हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया इस बात की जांच की जा रही है कि फैसला नगरनिगम, पीडब्ल्यूडी या सरकारी वकील के पास ही दबा हुआ था?  ज्ञात रहे एडीजे कोर्ट ने वर्ष 1992 में अनिल गायकवाड़ के पक्ष में जमीन की डिक्री कर दी थी। इसी आधार पर उन्होंने दो बार जमीन को बेच दिया, जबकि 1994 में ही एडीजे कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी थी। हाल ही में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी ने नामांतरण के लिए निगम में आवेदन लगाया था, जिसे खारिज कर दिया गया।

पत्रिका : ०६ सितम्बर २०१० 

फासला एक, किराए तीन

- आरटीओ की अनदेखी
- पसोपेश में राऊ, महू और पीथमपुर आने-जाने वाले 25 हजार मुसाफिर 

इंदौर से हर दिन राऊ, महू और पीथमपुर जाने-आने वाले करीब 25 हजार मुसाफिर पसोपेश में हैं। एक ही दूरी, एक जैसी सुविधा और फासला तय करने का एक ही समय होने के बावजूद उनके सामने तीन तरह के किराए मौजूद हैं। इस विसंगति से परिवहन विभाग के अफसर भी अनभिज्ञ हैं।

 राऊ, महू और पीथमपुर इंदौर के उपनगर घोषित किए गए हैं। यही वजह है कि इंदौर से इन्हें जोडऩे के लिए 82 उपनगरीय बसों को परमिट आरटीओ से जारी हैं। इन्हीं मार्गों से दूसरे जिलों को जोडऩे वाली प्राइम रूट की 50 से अधिक बसें भी गुजरती हैं। साथ ही इंदौर सिटी बस ट्रांसपोर्ट की छह बसें इन रास्तों पर दोड़ती हैं। परिवहन विभाग ने सभी के लिए अलग-अलग दरें तय की है।

बस ऑपरेटरों में भी तनातनी
विसंगति पर प्रशासन की नजर नहीं होने के कारण बस ऑपरेटरों में भी रोज तनातनी की स्थिति बनती है। प्रायवेट बस ऑपरेटरों का आरोप है कि सिटी बस पर प्रशासन का प्रबंधन होने के कारण उसे सवारी भरने के लिए खुली छुट दी गई है। परिवहन विभाग भी इन पर कार्रवाई नहीं करता है। 

'हमारी दरें सबसे सस्ती हैं, क्योंकि परिवहन विभाग ने 9 दिसंबर 2004 को लागू पुरानी दरें ही लागू कर रखी हैं। बढ़ती महंगाई के कारण उन दरों में गाडिय़ां चलाना मुश्किल हो रहा है। प्रशासन से हमने नई दरों की मांग की है।Ó
- रफीक खान, सचिव, उपनगरीय बस ऑपरेटर्स एसोसिएशन

'महंगाई को देखते हुए हमने दर बढ़ाने के लिए संभागायुक्त से मांग की थी। वहीं से दरें बढ़ाई गई हैं। हमारी सेवा और दूसरी बसों में शुरू से ही एक रुपए का अंतर है।Ó
- विवेक श्रोत्रिय, सीईओ, अटल इंदौर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमि.

'प्राइम रूट के कारण सरकार को ज्यादा राजस्व देते हैं और यही वजह है कि हमारी दरें सबसे अधिक हैं। किराया में एकरुपता लाने से यात्रियों को नुकसान नहीं होगा।Ó
- गोविंद शर्मा, अध्यक्ष, इंदौर प्रायवेट बस आनर्स एसोसिएशन


आरटीओ बोले - तीन नहीं दो ही हैं किराए


उपनगरीय बसों के तीन किराए हैं, ऐसा क्यों हो रहा है?
- किराए सिर्फ दो हैं, तीन नहीं है। एक उपनगरीय है और दूसरे सिटी रुट। 
इंदौर से महू, राऊ और पीथमपुर में उपनगरीय, सिटी बस और प्राइम रुट की तीन बसें चलती हैं?
- जी नहीं, दो तरह का ही किराया है। आप आएंगे तो मैं तो इस बारे में और विस्तार से बता दूंगा।
क्या उपनगरीय बसों के किराए में बदलाव किया जाना लंबित है?
- वे मांग करेंगे, तो हम विचार करेंगे। वैसे हमें महू रोड पर ज्यादा किराया वसूलने की शिकायतें मिल रही हैं। 
( आरटीओ आरआर त्रिपाठी से चर्चा)


तीन किस्म का किराया

यात्रा                    दूरी               उपनगरीय बस     सिटी बस       प्राइम रुट
इंदौर से राऊ        18 किमी         06 रुपए                 10 रुपए         07 रुपए
इंदौर से महू         23 कि मी        11 रुपए                15 रुपए        22 रुपए
इंदौर से पीथमपुर 35 किमी         15 रुपए                20 रुपए        25 रुपए    
 
 पत्रिका: ०६ सितम्बर २०१०