बुधवार, 10 मार्च 2010

शीशे की गिरफ्त

शीशा यानी हुक्के का नया धंधा इंदौर में खुल्लम-खुल्ला चल रहा है। स्कूली बच्चे इस जहर की चपेट में है। संभवत: हफ्ता तय हो जाने के कारण पुलिस-प्रशासन अश्लीलता के अड्डों के तौर पर फल-फूल रहे इन शीशा लाउंज पर मेहराबानी बनाए हुए हैं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज की एक  ताजा स्टडी में भी इस नशे को समाज व युवाओं के लिए भयंकर खतरा बताया है। अनाधिकृत तौर पर शहर में 144 शीशा लाउंज चल रहे हैं।

प्रमुख शीशा लाउंज

एबी रोड : स्पाइडर (एलआईजी), लॉ-कैफे (उत्तमभोग के बगल में), द शीशा लॉन्ज (मंगल सिटी)
बॉम्बे हॉस्पिटल के पास : बॉट्म्स स्वीप (ऑर्बिट मॉल) ब्ल्यू रॉक्स कैफे (बीसीएम), प्योरिटी शीशा (मंगल रिजेंसी), ग्योरिटी बार एंड शीशा (मंगल रिजेंसी), न्यू स्पाइडर (रॉयल प्लेटिनम)
वेलोसिटी टॉकिज : ऑन द रॉक्स
आनंद बाजार : फ्लूम्स शीशा और बाउंस कैफे
एमजी रोड : मिस्टर बिन्स, फ्लेवर्स,  जूम कैफे
रसोमा चौराहा : ऑलिव गार्डन
खंडवा रोड : रिच गार्डन, क्लोरोफिल


अश्लीलता के अवैध अड्डे
अमेरिका, यूएई, दुबई और फ्रांस जैसे देशों में प्रतिबंधित हो चुके शीशा यानी हुक्का इंदौर में भयंकर तरह से चलन में आ चुका है। यह हुक्का आलीशान ठिकानों पर बगैर लाइसेंस खुलेआम परोसा जा रहा है। हुक्का निशाना स्कूली छात्र-छात्राएं हैं, जो स्कूल से तड़ी मारकर न सिर्फ ïधुएं के छल्ले उड़ा रहे हैं, बल्कि अश्लील हरकतों में भी रम जाते हैं। चांदी काटने का इस धंधे से पुलिस-प्रशासन बेखबर है। आबकारी विभाग व नगरनिगम ने भी नशे के इन ठिकानों को लाइसेंस जारी नहीं किया है।

मोटा मुनाफा
शीशा के एक फ्लेवर पेक की कीमत 25 से 65 रुपए होती है। इससे कम से कम पांच हुक्के तैयार होते हैं और हर एक की कीमत 200 से 700 रुपए तक होती है। साफ है लाउंज मालिक एक फ्लेवर पैकेट से ही एक से साढ़े तीन हजार रुपए की कमाई करते हैं।

विदेशों में बेन 
विदेशों में इस नशे को बेन किया गया है। वहां एंटी ड्रग्स कानून के तहत कार्रवाई की जाती है। वैसे तो भारत में तंबाकू नियंत्रण के लिए कई कानून बन चुके हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं होती।

तंबाकूयुक्त है शीशा
मैलेशिश (शीरा) के साथ टेबोनल या मसाल या जर्क के साथ गर्म होने पर शीशा तैयार होता है। टेबोनल, जर्क और मसाल निकोटीन व तंबाकुयुक्त पदार्थ हैं।


सीन 1
बाहों में बाहें डालकर हुक्केबाजी

बॉम्बे हॉस्पिटल के सामने होटल मंगल रिजेंसी का प्योरिटी शीशा लाउंज। सीढिय़ों पर ही तीन लड़कियां खड़ी थीं। अंदर पहुंचे तो पूरा अंधेरा था। बड़ी स्क्रीन पर अश्लील गाने चल रहे हैं। सामने दो लड़के हुक्का गुडग़ुड़ा रहे थे। दाईं ओर के कमरेनुमा केबिन में एक युगल था। दूसरे केबिन में तीन लड़कियां और दो लड़के थे। सभी बाहों में बाहें डालकर हुक्का खींच रहे थे। लांच कर्मचारी उन्हें कभी नाश्ते की प्लेट देता तो कभी उनके हुक्के में कोयला डालता। यहां शीशा पीना अनिवार्य है। किसी कारण से आप शीशा नहीं पीते तो एक घंटे में कम से कम दो सौ रुपए की बिलिंग जरूरी है। शीशा पीने से इन्कार किया तो उन्होंने नाश्ता दे दिया। नाश्ते का बिल डेढ़ सौ रुपए था, लेकिन जोड़ा गया 200 रुपए।  

सीन 2
बंदूकधारी गार्ड तैनात

मंगल सिटी का द शीशा लïाउंज। दरवाजे पर बंदूकधारी सुरक्षाकर्मी। अंदर शीशा लगाते दो कर्मचारी। सामने के सोफे पर तीन लड़के बैठे थे। उनके बगल वाले केबिन में दो लड़कियां और एक लड़का बैठे थे। चौकड़ी टी-शर्ट वाली लड़की को छोड़कर दोनों आमने-सामने बैठकर लंबे कश के साथ हुक्के का धुआं उड़ा रहे थे। बीच-बीच में लड़का चौकड़ी वाली लड़की के मुंह पर धुआं उड़ा रहा था। सामने वाली लड़की आदतन नशेडिय़ों की तरह धुएं के छल्ले बना रही थी। तीनों दो घंटे तक हुक्का गुडग़ुड़ाते रहे। लड़का-लड़की के बीच इस दौरान अंतरंग प्रेमी-प्रेमिका की तरह की हरकतें भी होती हैं।

सीन 3
नाम कैफे, कॉफी नहीं मिलती

बीसीएम हाईट्स में ब्लू रॉक्स कैफे लाउंज। अंदर पहुंचे तो देखा बीच में तीन लड़के हवा में धुआं छोड़ रहा है। लांज का नाम कैफे है, परंतु यहां कॉफी नहीं मिलती। नाश्ते का पूछा तो बोले जनाब यहां सिर्फ शीशा चलता है। शीशा ही पीना पड़ा। इसी दौरान कुछ और लड़के-लडि़कयां आए। इनके साथ स्कूल बैग भी थे।  

सीन 4
कम नहीं पड़ी लड़की

आनंद बाजार स्थित फ्यूम्स शीशा में शुक्रवार रात 9.10 बजे कोने वाले केबिन में एक लड़की अपने ब्वाय फ्रेंड के साथ थी। पूरे हाल में धुआं हो रहा था। लड़की लड़के को फोर्स कर रही थी कि खींचो ना। लड़की भी लंबे कश मार रही थी। 

सीन 5 
सुलग रहे थे कोयले

आनंद बाजार में बाउंस लाउंज में अंदर पहुंचते ही चार-पांच लड़कें धूआं उड़ाते नजर आ रहे थे। आसपास के कैबिन खाली थे। लॉन्ज कर्मचारी लड़कों के हुक्के में कभी फ्लेवर डाल रहा था तो कभी कोयला।


सामान्य लाइसेंस से धंधा
युवाओं को आकर्षित करने वाले शीशे का धंधा नगर निगम के सामान्य गुमाश्ता लाइसेंस के आधार पर चल रहा है। शासन और प्रशासन के पास न तो इस धंधे के संबंध में ïकोई गाइड लाइन तय है और न ही इसकी निगरानी का इंतजाम।


लड़कियों को भांग-शराब का चस्का
लाउंज में आने वाली लड़कियों को रोज मिंट, कच्ची केरी, आरपीएम (रॉयल पान मसाला), स्ट्रॉबेरी फ्लेवर ज्यादा पसंद आते हैं। कुछ रम, विस्की और डबल एप्पल फ्लेवर भी पसंद करती हैं। कई बार बेस में पानी की जगह शराब और शीशा फ्लेवर में भांग की गोलियां डलवाती हैं। 

दो दर्जन से ज्यादा फ्लेवर
नाश, वनीला, नारियल, गुलाब, जैसमीन, शहद, आम, स्ट्रॉबेरी, तरबूज, पुदीना, मिंट, चेरी, नारंगी, रसभरी, सेब, एप्रीकोट, चॉकलेट, मुलेठी, कॉफी, अंगुर, पीच, कोला, बबलगम, पाइनापल, बनारसी पान, पान सालसा, पान रसना, पान मघई, कोला, रूहाबजा, अनार, जेस्मीन, नींबू और सेक्सी सुपारी जैसे दो दर्जन से अधिक फ्लेवर का हुक्का लाउंज पर मिलता है।

हम नहीं देते लाइसेंस
हमने इंदौर में एक भी शीशा लॉन्ज का लाइसेंस जारी नहीं किया है। हो सकता है नगर निगम ने किए हों।
विनोद रघुवंशी, आबकारी अधिकारी
शीशा लाउंज को नगरनिगम की ओर से कोई विशेष लाइसेंस जारी नहीं किया है।
एमपीएस अरोरा, मार्केट अधिकारी, नगरनिगम
इनके लाइसेंस की स्थिति देखना पड़ेगी। सूची तैयार करवाकर कार्रवाई शुरू करेंगे।
डी. श्रीनिवास राव, एसएसपी, इंदौर
शीशा लाउंज के कानूनी पहलूओं का राज्य स्तर पर अध्ययन किया जा रहा है। शीघ्र ही इनके विरूद्ध कार्रवाई करने की व्यापक रणनीति बनाई जाएगी।
डॉ. बीएम श्रीवास्तव, स्टेट नोडल अधिकारी, तंबाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ
(स्पॉट रिपोर्ट विनोद की कलम से)


कहीं आपका बच्चा भी हुक्केबाज तो नहीं
 एमजीएम मेडिकल कॉलेज की स्टडी में चौंकाने वाले तथ्य
नशे के शौकीनों में 73 फीसदी लड़के हैं, जबकि 27 फीसदी लड़कियां।
तनाव मिटाने के लिए 62 फीसदी बच्चे लाउंज में जाते हैं। 
 हुक्केबाजों में से 72 फीसदी मानते हैं कि समय के साथ उनके शौक में बढ़ोतरी हो रही है।
 धूम्रपान के विकल्प के रुप में 52 फीसदी ने हुक्के के शौक को गले लगाया।

इंदौर के शीशा लाउंज में जो पीढ़ी हुक्केबाजों में तबदील हो रही है, उससे हर उस शहरी को सचेत हो जाना चाहिए जिसका बच्चा, बच्ची या रिश्तेदार स्कूल या कॉलेज में पढ़ता है। दरअसल, हुक्का पीनेवालों में से 85 प्रतिशत 15 से 18 की उम्र के, 11 प्रतिशत 19 से 22 की उम्र के और चार प्रतिशत 22 से अधिक की उम्र के लड़के-लड़कियां हैं।
ये आंकड़े हवा हवाई नहीं है। ये एमजीएम मेडिकल कॉलेज की रिसर्च टीम के नतीजे हैं। कॉलेज के कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग की डॉ. वीना येसिकर, डॉ. सैफुद्दीन सैफी और डॉ. राहुल रोकड़े के गाइडेंस में एमबीबीएस प्री-फाइनल के सामी अनवर खान, संदीप कुमार और रूचि जोशी ने तीन महीने तक शहरके पांच शीशा लाउंज में गहन अध्ययन किया। उन्होंने लाउंच में जाने वाले 240 बच्चों के लंबे इंटरव्यू किए। इसमें कई चौंकाने वाले तथ्य मिले, जिसकी रिसर्च टीम ने भी कल्पना नहीं की थी।

45 प्रतिशत पैरेंट्स का करतूत की जानकारी
हुक्का पीनेवालों में 54 फीसदी माता-पिता के साथ रहते हैं। होस्टल में रहने वाले 18 फीसदी, पेइंग गेस्ट चार फीसदी और फ्लेट्स में रहने वाले 24 फीसदी बच्चे हैं। आश्चर्यजनक तरीके से 45 फीसदी बच्चों ने यह बात स्वीकारी कि उनके माता-पिता को उनके हुक्का लाउंज जाने की जानकारी है।

उच्च मध्यम वर्ग के ज्यादा
जिन्हें हुक्के का महंगा शौक है, उनमें 74 फीसदी उच्च-मध्यम वर्ग के परिवारों से हैं। उच्च वर्ग के 14, निम्न मध्यम वर्ग के दो और उच्च निम्न वर्ग के 10 फीसदी ही बच्चे हैं। निम्न वर्ग का एक भी बच्चा इस लत में शामिल नहीं है।

दोस्ती के खातिर पहला सफर
शीशा लाउंज तक का पहला सफर इन बच्चों ने दोस्त की बातों में आकर किया है। 38 फीसदी ऐसे ही हैं। जिज्ञासावश 28, स्टेटस सिंबल के  खातिर 18 और विज्ञापनों के जरिए 16 प्रतिशत बच्चों ने लाउंज में कदम रखा है। एक सप्ताह में चार से अधिक बार लाउंज जाने वालों का प्रतिशत 38 है। सप्ताह में एक या दो बार वाले 46 फीसदी जबकि तीन से चार बार वाले 16 फीसदी बच्चे हैं। आधे बच्चे ऐसे होते हैं जो लाउंज में तीन या इससे ज्यादा घंटे तक हुक्का खींचते हैं।

एक्यूट निकोटिन की चपेट में
हुक्केबाज बच्चों को सांसलेने में परेशानी, एलर्जी, सिरदर्द, डिप्रेशन, नींद की कमी, सपनों में खो जाना, अचानक मूड बदलना, पसीना आना, उल्टी होना जैसे लक्षण दिखने लगे हैं। रिसर्च टीम का कहना है यह एक्यूट निकोटिन की चपेट में आने की निशानियां हैं। तीस फीसदी बच्चे उच्च जबकि 70 फीसदी निम्न प्रकार के एक्यूट निकोटिन की गिरफ्त में आ चुके हैं।

सिफारिशें
- शीशा पीने को हतोत्साहित किया जाए।
- मीडिया जागरूकता अभियान चलाए।
- लाउंज के केबिन वेंटीलेटेड रहें।
- 18 वर्ष से कम वालों की एंट्री पूरी तरह बंद हो।
- लाउंच में लिखा जाए कि शीशा पीना शरीर के लिए हानिकारक है।
- शीशा फ्लेवर बनाने वाली कंपनियों पर कड़ी नजर रखी जाए, क्योंकि निकोटिन की जो मात्रा वे बताते हैं, वह गलत है।
- शीशी फ्लेवर बाजार में धड़ल्ले से बिक रहा है, इस पर काबू किया जाए।
- शीशा लाउंज के मोटे मुनाफे को नियंत्रित किया जाए।

'हुक्का एक भयानक सामाजिक बदलाव की तरह आक्रमण कर रहा है।'
डॉ. वीना येसिकर, रिसर्च गाइड
'इस धीमे जहर से समाज को बचाने की जरूरत है।Ó
डॉ. राहुल रोकड़े, रिसर्च गाइड
'कुछ लाउंच मालिकों ने धमकाया भी, क्योंकि हम उनकी राह में रोड़ा थे।Ó
सामी अनवर खान, रिसर्च छात्र


वक्त के साथ हुक्के का रूप बदला
600 एडी - तंबाकू के रूप में निकोटिन
1870 के बाद - पाइप के जरिए तंबाकू
20 वीं सदी में - सिगरेट
21 वीं सदी में- शीशा लाउंज
(मुगल काल में यह शाही शौक के तौर पर प्रचलन में आया। एशिया व मध्य पूर्व के देशों में यह सदियों से उपयोग में आता रहा।)

हुक्का क्या है
हुक्का असल में एक पानी का पाइप है। इसके चार हिस्से होते हैं-
1- स्मोक चेंबर (इसमें पानी भरा रहता है)
2- एक बाउल (कोयला रखने का साधन)
3- पाइप (एक सिरा पानी में व दूसरा बाउल से जुड़ा होता है)
4- होज पाइप (यह पानी में नहीं डूबा होता है, लेकिन हुक्का इसी से गुडग़ुड़ाया जाता है)



सिगरेट से 200 गुना अधिक खतरनाक
डब्ल्यूएचओ सलाहकार समिति के मुताबिक कोई व्यक्ति एक घंटे हुक्का फूंकता हो या इसके धुएं के संपर्क में रहता हो, तो यह एक सिगरेट से 200 गुना अधिक खतरनाक होता है। इसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, टार व हेवी मेट्ल्स होते हैं। हुक्के से धूम्रपान के समान ही मसूड़ों व दांतों की खराबी होती है। चूंकि एक ही पाइप से कई लोग पीते हैं, इसलिए टीबी के साथ ही हरपिज, हेपेटाइटिज जैसी वायरसजनित बीमारियों की आशंका रहती है। इससे मुंह, फेफड़े के कैंसर के साथ ही दिल व सांस की बीमारियों की भी प्रबल आशंका रहती है। बुजुर्ग, महिलाएं व बच्चों पर हुक्का सबसे अधिक प्रभाव डालता है। यह भ्रांति है कि पाइप के कारण हुक्के का असर कम होता है। वास्तव में पानी में होकर धुएं के मुंह तक जाने से वह अधिक खतरनाक हो जाता है।
- डॉ. संजय दीक्षित, प्रोफेसर, कम्यूनिटी मेडिसिन

(पत्रिका नैनो 7 मार्च 2010 में प्रकाशित) 

रविवार, 7 मार्च 2010

पुलिस के क्वार्टर पर किसका कब्जा?

 जेल में बंद गुंडा, 15 वीं बटालियन का जवान या किसी अनजान व्यक्ति के दोस्त
 मामला 15 वीं बटालियन के डी 12/13 क्वार्टर का 
पुलिस महकमे के एक क्वार्टर पर अज्ञात लोगों ने कब्जा कर रखा है। सरकारी रिकॉर्ड में भी इसकी जानकारी नहीं है कि ये क्वार्टर किसके नाम अलॉट है। दरअसल, इस मकान में एक हिस्ट्रीशीटर बदमाश रहता था, जो फिलहाल जेल में है। उसी के खौफ से पुलिस लाचार है।
15 वीं बटालियन परिसर का क्वार्टर नंबर डी-12/13 पर किसका कब्जा है, यह सवाल एक गुत्थी बन गया है। पुलिस और पीडब्ल्यूडी के रिकॉर्ड में इसकी कोई जानकारी नहीं है, परंतु दोनों ही महकमों को पता है कि इसमें एक हिस्ट्रीशीटर गुंडे के साथी रह रहे हैं। वे पुलिस के बटालियन के ही एक जवान का नाम बताकर खुद को उसका रिश्तेदार बताते हैं, जबकि हकीकत यह है कि जिस जवान का नाम बताया जा रहा है, वह इंदौर में नियुक्त है ही नहीं।
पड़ोसियों की शिकायत पर नैनो टीम ने मौका मुआयना किया। दरवाजा खटखटाने पर आशु नाम का एक लड़का बाहर आया। मकान किसका है, पूछने पर वह घबराते हुए बोला शर्माजी का। कौन शर्मा? सतीश शर्मा, 15 वीं बटालियन में ही हैं। आप कौन हैं? मैं तो उनके रिश्तेदार का लड़का हूं। यहीं रहकर पढ़ाई करता हूं। ये पछने पर कि यहां तो कोई गुंडा रहता था उसका कहना था नहीं मैं तो किसी को नहीं जानता। अभी तो मैं ही रहता हूं।
आशु के जवाबों की सच्चाई जानने 15 वीं बटालियन के कार्यालय में तस्दीक करने पर पता चला कि सतीश शर्मा नाम का जवान इंदौर में पोस्टेड नहीं है। बहुत पहले हुआ करता था, उसका तबादला हो गया है।

सरकारी रिकॉर्ड में ट्वन्टी का नाम
मल्हारगंज थाने के रिकॉर्ड में इस क्वार्टर को ट्वन्टी नाम के गुंडे का निवास बताया गया है। फिलहाल वह उज्जैन जेल में बंद है। उसके पिता हरबख्शसिंह 15 वीं बटालियन में पदस्थ थे। करीब चार वर्ष पहले उनके निधन के बाद से ही ट्वन्टी यहां रह रहा था। उसकी गुंडागर्दी की दबिश के चलते किसी का साहस नहीं हुआ कि उसके अवैध कब्जे को हटाया जा सके।

शातिर बदमाश है ट्वन्टी
ट्वन्टी का नाम जयसिंह उर्फ भोला उर्फ विजयसिंह भी है। इंदौर के सात थानों के साथ ही उसके विरूद्ध महिदपुर थाने में 1997 से दो दर्जन से अधिक गंभीर अपराध दर्ज हैं। हत्या और हत्या की साजिश के साथ-साथ एनडीपीएस जैसे केस भी उसके खिलाफ हैं।

ट्वन्टी के मुकदमों की फेहरिस्त
मल्हारगंज थाना        
आम्र्स एक्ट के साथ ही आईपीसी की धारा 323,294, 506, 324, 294, 324, 382, 392, 394, 341, 452, 307 एवं 34 में नौ केस।
सदर बाजार थाना
आईपीसी की धारा 234, 324 एवं 307 में दो केस।
बाणगंगा थाना
आईपीसी की धारा 572, 481, 307, 386, 556, 530 एवं 363 में पांच केस।
जूनी इंदौर थाना
आईपीसी की धारा 477, 365, 366 एवं 120 में एक केस।
हीरानगर थाना
आईपीसी की धारा 153, 324, 284 में एक केस।
एरोड्रम थाना
आईपीसी की धारा 343 के साथ ही रासुका में दो केस।
तुकोगंज थाना
आईपीसी की धारा 427, 452, 394, 428 के साथ ही एनडीपीएस एक्ट के तहत दो केस।
महिदपुर उज्जैन थाना
आईपीसी की धारा 394, 397, 302 एवं 347 में एक केस।

पेशी पर आकर लोगों को धमकाता
ट्वन्टी पर दर्ज कई केस के सिलसिले में उसका इंदौर जिला कोर्ट आने का सिलसिला बना रहता है। हाल ही में पुलिस को एक शिकायत दी गई है, जिसमें इंदौर कोर्ट से दोस्त के मोबाइल से धमकाने का जिक्र है।

हमारे पास मकान का रिकॉर्ड नहीं
मैंने सारा रिकॉर्ड देख लिया है। पूर्व में इसमें हरबक्श सिंह रहते थे। उसके बाद इसे स्पेशल ब्रांच में पदस्थ संजयसिंह के नाम अलॉट किया, जिससे खाली करवाया गया। मकान संभागायुक्त पूल का है और इसके अलॉटमेंट का काम पीडब्ल्यूडी करता है। अब कौन रहता है, पीडब्ल्यूडी ने यह जानकारी नहीं दी है। वहां रहने वालों से परेशानी के संबंध में अब तक किसी पड़ोसी ने लिखित में शिकायत नहीं की है।
आरएस भदौरिया, क्वार्टर मास्टर, 15 वीं बटालियन

मिलते ही नहीं पीडब्ल्यूडी के साहब
संभागायुक्त कार्यालय से क्वार्टर की जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो बताया गया कि किला मैदान पीडब्ल्यूडी ऑफिस में पता चलेगा। करीब एक सप्ताह तक वहां जाकर रिकॉर्ड पता करने की कोशिश की गई, लेकिन वहां के साहब मिलते ही नहीं। काम करने वाली बाई से जब भी पूछने जाओ तब बताया गया टाइम कीपर राजेंद्र तिवारी अभी गए हैं, आते ही होंगे। यही हाल सब इंजीनियर पीके तिवारी का भी था। वे न तो किला मैदान और न ही बड़ा गणपति स्थित शारदा कन्या स्कूल के ऑफिस में मिले।

लापरवाही की आग

निरीक्षण करने वाले अफसरों को क्यों नहीं दिखता खतरा ?
इंदौर के पास के औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर स्थित नियोसेक पॉली बैग कंपनी में शनिवार को लगी भीषण आग ने एक बार फिर उद्योगों में सुरक्षा इंतजामों की खामी समाने ला दी है। आग की भयावहता इतनी थी कि दोहजार टैंकर भी कम पड़ गए और 3 फीट चौड़ी व 25 फीट लंबी लोहे की गर्डर पानी तरह पिघल गईं। आग से 100 करोड़ की संपत्ति के नुकसान की आशंका है। जब आग लगी तब 800 मजदूर काम कर रहे थे। सभी ने भागकर जान बचाई। दरअसल, फैक्ट्री में आग पर काबू पाने के फायर इंतजाम दुरस्त नहीं थे और आग बढ़ती ही चली गई। तथ्य यह भी है कि राज्य में छोटे-बड़ी 30 लाख औद्योगिक इकाइयां बगैर फायर एनओसी के चल रही हैं। इन कारखानों में लाखों लोग काम करते हैं और अरबों रुपए का निवेश किया गया है। वैसे तो राज्य में सुरक्षा अधिनियम बना हुआ, परंतु क्या अधिकारी इस अधिनियम को लागू करवा पा रहे हैं? इतनी जिंदगी और इतने उद्योगों को जोखिम में झोंकने का मतलब क्या है? बगैर फायर इंतजाम के ये कारखाने कैसे चल रहे हैं? क्या इसके पीछे अधिकारियों और कारखाना मालिकों की मिलीभगत है?  जिन अधिकारियों पर इन उद्योगों के सतत निरीक्षण करने की जिम्मेदारी होती है, वे किस तरह की नजर डालकर लौट आते हैं? इन सवालों के रटे रटाए जवाब अधिकारियों के पास हो सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने काम करने के तौर-तरीकों से यह बताना होगा कि अनचाही आग से लडऩे के लिए वे संजीदा हैं। वैसे, उम्मीद की किरण भी दिख रही है। पांच राज्यों के सर्वे के आधार पर अग्निशमन अधिनियम का एक मसौदा सरकार के पास विचाराधीन है। संभावना है कि उसे शीघ्र ही विधानसभा की मंजूरी मिलेगी। संभवत: उसके बाद उद्योग अग्नि सुरक्षा का कवच पहनने को मजबूर होंगे और लापरवाही की आग काबू में रहेगी।