गुरुवार, 30 सितंबर 2010

अंधों का हाथी हो गया हमारा ट्रैफिक

- 'ट्रैफिक प्रबंधन और आधारभूत विकास पर टॉक शो में उभरी व्यथा
- राजनैतिक हस्तक्षेप हटेगा, तभी सुधरेगा यातायात का हाल
- पत्रिका स्थापना दिवस विशेष



बेहद तेजी से फैल रहे इंदौर की बदहाल होती यातायात व्यवस्था को शहर के विशेषज्ञ, प्रबुद्ध विशेषज्ञ और ट्रैफिक टेक्नोक्रेट 'अंधों का हाथीÓ की तरह देख रहे हैं। 'अंधों का हाथीÓ ख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी का नाटक है, जिसमें लोकतंत्र पर सटीक प्रहार किया गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अब इस हाथी को पहचाना ही होगा, वरना ट्रैफिक के दबाव से शहर का दम निकल जाएगा। ट्रैफिक को राजनैतिक फैसलों के बजाए ट्रैफिक इंजीनियरिंग के जरिए सुधारना चाहिए। इसके लिए उ'च स्तर पर नीतिगत फैसले करना होंगे। महज जेएनएनयूआरएम के बजट से कुछ प्रोजेक्ट हाथ में लेना पर्याप्त नहीं है।

यह 'पत्रिकाÓ के स्थापना दिवस के मौके पर 'पत्रिकाÓ कार्यालय में बुधवार को 'ट्रैफिक प्रबंधन और आधारभूत विकासÓ विषय पर आयोजित टॉक शो का सार है। विशेषज्ञ इस बात बेहद चकित हैं कि इंदौर में न तो कोई ट्रैफिक इंजीनियर पदस्थ है और न ही ओरिजिन डेस्टिनेशन सर्वे (ओडीएस) ही हुआ है। सर्वे नहीं होने से किसी को यह अंदाजा भी नहीं है कि कितने लोग किस दिशा में कब सफर करते हैं और कब-कब किन-किन स्थानों पर वाहनों का कितना दबाव रहता है। ट्रैफिक सुधारने के लिए बार-बार बैठकें, कार्यशाला और विश्लेषण चर्चाएं होती हैं, लेकिन सब सिर्फ बीआरटीएस के इर्दगिर्द ही घुमते रहते हैं। इससे ऊपर उठने की जरूरत है। टॉक शो के अंत में अ'छे नागरिक बनने की शपथ भी ली गई।

अफसरों की विदेश यात्रा पर सवाल
किशोर कोडवानी ने सवाल उठाया कि जब योजनाकार इंदौर आते हैं, तो उनसे मिलकर बात करना कोई जरूरी नहीं समझता। बाद में लंदन, चीन की यात्राएं करते हैं। यह आम आदमी के पैसे का दुरुपयोग है। नरेंद्र सुराणा ने कहा योजनाओं में विशेषज्ञों की राय ले ली जाती है, लेकिन बाद में उसे बगैर चर्चा के खारिज कर दिया जाता है। राय पर मंथन किया जा सकता है, किंतु उसे नकारना अनुचित है। सीएस डगांवकर ने बताया विशेषज्ञों की राय को महत्व देना जरूरी है।

कोयम्बटूर मॉडल क्यों नहीं अपना सकते

कोयम्बटूर शहर में कुल 1100 बसें है, यहां कोई स्कूल बस नहीं चलती। बसों का टाईम-टेबल और प्रबंधन इतना बेहतर है कि स्कूली विद्यार्थी इन्हीं बसों से सुबह स्कूल, दोपहर में कोचिंग और शाम को हॉबी क्लास जाते हैं। सौ रुपए के मासिक पास में उनका सारा आवागमन हो जाता है। हमारे यहां केवल स्कूल बसों की संख्या 2200 है। उसके बावजूद स्कूली छात्र दुपहिया वाहनों की मांग करते हैं। बस की फीस और वाहन के किश्त उनके पालक भुगतते हैं। बहस में इस प्रस्ताव पर भी चर्चा हुई।

कॉलोनियों के ग्रीन बेल्ट हटाएं
जवाहर मंगवानी ने बताया कि कॉलोनियों में सड़क की जमीन पर बगीचा बनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इन्हें हटाने के लिए संकल्प पारित कर लिया गया है। यह बड़ा काम है और इसमें विरोध भी झेलना पड़ सकता है। सभी लोगों ने कहा निगम को तत्काल इसे शुरू कर देना चाहिए, सभी समर्थन करेंगे।

रोटरी या सिग्नल ?
देश दुनिया में रोटरी को खत्म किया जा रहा है, लेकिन इंदौर में रोटरी को लेकर सीधा फंडा है कि इससे खूबसूरती आती है। अतुल सेठ ने कहा रोटरी को हटाना चाहिए। आरएस राणावत ने बताया रोटरी में ही सिग्नल लगाए जा रहे हैं। यह क्या मजाक है? जगतनारायण जोशी ने बताया रोटरी कहां हो, कहां नहीं इसके लिए ट्रैफिक इंजीनियरिंग में पर्याप्त इंतजाम किया गया है। सीएस डगांवकर ने बताया रोटरी हटाने और सिग्नल लगाने का फैसला वैज्ञानिक आधार पर लिया जाना चाहिए, न कि भावनात्मक आधार पर।

...और हवाई सफर का प्रस्ताव भी
नारायण प्रसाद शुक्ला ने हवाई सफर का प्रस्ताव भी रखा। उन्होंने बताया इसी तरह से दबाव बनता रहा तो एक समय ऐसा आएगा कि विजयनगर से अन्नपूर्णा तक के लिए हवाई सफर लेना पड़ेगा। मंथन में मोनो रेल और मेट्रो ट्रेन की चर्चा भी हुई।




  •  चर्चा में उभरे दस मुद्दे
  • छोटे-छोटे बायपास बनाकर मुख्य सड़कों तक पहुंचने की राह आसान हो।
  • पैदल यात्रियों के लिए भूमिगत सब-वे बनाए जाएं।
  • बॉटल नेक (दोनों और चौड़ा, बीच में संकरा) चिह्नित हों, उन्हें सुधारा जाए।
  • निगम, आईडीए, टीएंडसीपी खरीदे सैटेलाइट इमेज सॉफ्टवेयर।
  • उज्जैन, देवास, महू, पीथमपुर को यातायात की दृष्टि से विकसित करें।
  • मौजूदा पार्किंग स्थलों का सही उपयोग हो।
  • ट्रैफिक मोबेलाइजेशन प्लान समय सीमा में बन जाए।
  • नेबरहूड स्कूलिंग पर ध्यान दें, ताकि बसों की संख्या घटे।
  • मुख्य बाजारों से दूर पार्किंग बनाई जाए, ताकि ग्राहकों को सुविधा रहे।
  • पूर्व-पश्चिम के साथ ही उत्तर-दक्षिण को जोडऩे वाले रास्तों पर ध्यान दिया जाए।




राजनैतिक हस्तक्षेप जिम्मेदार
व्यवस्थाओं और राजनीति से ऊपर उठकर बात करना होगी। शहर में सामूहिक चरित्र बनाने की जरूरत है। ऐसा करके ही हम समस्याओं को सुलझा सकेंगे। शहर बहुत अधिक विकास कर सकता था, लेकिन राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण कई बातें पीछे छूट गईं। किसी वातानुकूलित कमरे में दावत के साथ की गई चर्चा से यातायात को सुधारा नहीं जा सकता है। ऐसे रास्तों की सूची बनाई जाना चाहिए, जो बॉटल नेक की तरह हैं।
- नारायण प्रसाद शुक्ल, पूर्व मंत्री व महापौर

छोटे बायपास पर ध्यान दें
  छोटे-छोटे बायपास बनाकर मुख्य सड़कों तक पहुंचा जा सकता है। नारायण कोठी से अटल द्वार, ïहाथीपाला से जबरन कॉलोनी जैसी करीब 30 छोटी सड़कें हैं, जिनसे व्यवस्थाएं सुधर सकती हैं। कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां एक खंभा या एक चेम्बर बाधा बना हुआ है। जो गड़बड़ी करे, उसे बड़ा से बड़ा दंड दिया जाए। छोटे फ्लïाय ओवर भी मदद कर सकते हैं। बीआरटीएस पूरा होने पर एकदम सुधार नजर आएगा। 
- मधु वर्मा, पूर्व अध्यक्ष, आईडीए

कहां है सैटेलाइट इमेज का सॉफ्टवेयर
20 लाख का आंकड़ा पार करते ही ओरिजिन डेस्टिनेशन सर्वे करवाया जाना चाहिए, ताकि यात्रियों की संख्या और दबाव का सही अनुमान सामने आए। किसी भी विभाग के पास सैटेलाइट इमेज का सॉफ्टवेयर तक नहीं है। इसके बगैर समस्याओं को आधुनिकतम तरीकों के पिन पाइंटेड कैसे किया जा सकेगा? मजाक तो यह है कि पहले प्रस्ताव तैयार होता है और बाद में उसकी जरूरत सिद्ध करना होती है।
- नरेंद्र सुराणा, सेवानिवृत्त इंजीनियर

50 बसों के लिए 900 करोड़ !

चार वर्ष पहले ट्रैफिक इंजीनियरिंग सेल का गठन किया गया, लेकिन उसकी बैठक ही नहीं हुई। इस शहर को नेता और अफसर अपनी मर्जी से चलाना चाहते हैं, जबकि यहां बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है। एक अफसर की जिद पर 900 करोड़ का बीआरटीएस बनाया जा रहा है। इस पर महज 50 सिटी बसें चलेगी। जब लोग इंदौर में आकर अफसरों से चर्चा करना चाहते हैं, तो वे सुनते-समझते नहीं और बाद में विदेश यात्रा करते हैं। 
-किशोर कोडवानी, कार्यकर्ता, विकास मित्र दृष्टि

नेताजी के कारण नहीं हटी रोटरी

 उज्जैन, देवास, महू, पीथमपुर को ट्रैफिक की दृष्टि से उन्नत बनाएंगे, तो इंदौर में सुधार हो जाएगा। ïमोनो ट्रेन सस्ती और सुलभ सेवा हो सकती है। जहां डिवाइडर नहीं होना चाहिए, वहां आज भी डिवाइडर बने हुए हैं। बंगाली चौराहा और ग्रेटर कैलाश रोड इसके उदाहरण है। जानकारी ली तो पता लगा, एक क्षेत्रीय नेता की मर्जी के खिलाफ बंगाली चौराहा की रोटरी हटाना संभव नहीं हो पा रहा है। राह में ऐसे रोड़े आएंगे, तो भला कैसे हालत सुधरेंगे।
-आरएस राणावत, पूर्व ट्रैफिक डीएसपी

ट्रैफिक इंजीनियर को दूसरे काम में झोंका

यह गोलाकार शहर है, जबकि मुंबई लंबाई पर बसा है। वहां ट्रेन चलाई जा सकती है, यहां नहीं। इन मौलिक बातों को समझने की जरूरत है। जिन विभागों के पास ट्रैफिक की जिम्मेदारी है वहां ट्रैफिक के विशेषज्ञ इंजीनियर नहीं है। आईडीए में ट्रैफिक विषय में एमई किया हुआ इंजीनियर है तो उसे ट्रैफिक से दूर रखा गया है। बीतें सालों में नगर-निगम से लेकर भारत सरकार ने 5-6 सर्वे करवाए। इन पर बहुत राशि खर्च हुई, लेकिन इसकी रिपोर्ट को किसी ने तवज्जो ही नहीं दी। 
-अतुल सेठ, स्ट्रक्चर इंजीनियर

ïहोलकर काल के योजनाकारों से सीखें

हम जब भी ट्रैफिक से संबंधित किसी बैठक में भाग लेते हैं, वहां इंजीनियरिंग के महत्व पर चर्चा होती है। अब हमें इस सवाल पर गौर करना होगा कि क्यों सही इंजीनियरिंग लागू नहीं हो पाती। हम सारे स्कूल पूर्वी क्षेत्र में खोलते हैं फिर पश्चिम के रहवासी इलाकों से बस में बैठकर हजारों ब"ो स्कूल आते-जाते हैं। यही हालत बाजारों की भी हैं, बरसों पहले राजाओं ने कितना सोच-समझ सारा होलसेल मार्केट साथ में और सारा रिटेल मार्केट साथ में बनाया। कोई भी आदमी पैदल चलकर पूरा बाजार घूम सकता है। वैसी दूरदर्शिता की आज भी दरकार है।
-अशोक कोठारी, अभ्यास मंडल

नेबरहूड स्कूल अपनाते तो कम होती बसें

शहर में पूर्व से पश्चिम की ओर जाने के लिए तीन प्रमुख मार्ग हैं, जबकि उत्तर से दक्षिण की ओर जाने के लिए एक भी मार्ग नहीं है। मास ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में बहुत काम करने की जरुरत है। इंदौर और महू के बीच मीटरगेज रेललाईन है, हमें इसे न केवल जीवित रखना होगा बल्कि रेलमार्ग से यातायात को बढ़ावा भी देना होगा। नेबरहुड स्कूलिंग (पड़ोस में स्कूल) को अपनाया होता तो ट्रैफिक की समस्या से बच जाते। 
-नूर मोहम्मद कुरैशी, कार्यकर्ता, विकास दृष्टि मित्र

ट्रैफिक मोबेलाइजेशन प्लान शीघ्र बने

मध्यप्रदेश में इंदौर को छोड़कर सभी शहरों के पास उनका ट्रैफिक मोबाईलेशन प्लान है। इंदौर का प्लान जल्द से जल्द बनकर तैयार होना चाहिए। दूसरी बात विशेषज्ञों की राय और उनके ज्ञान को तवज्जो मिलनी चाहिए। यदि कोई विशेषज्ञ कहता है कि फलां स्थान पर रोटरी बनाना ठीक नहीं है, दूसरी ओर कोई नेता वहीं पर रोटरी बनाना चाहता है। ऐसे में विशेषज्ञ की राय पर नेताजी का दबाव भारी पड़ता है। यह प्रवृत्ति बदलना बेहद आवश्यक है। 
-चंद्रशेखर डगांवकर, मास्टर प्लान विशेषज्ञ 

एक वर्ष में बन जाएगा टीएमपी

हम 60 लाख के खर्च से शहर का ट्रैफिक मोबेलिटी प्लान बनवा रहे हैं। दिल्ली की राईट्स इंडिया संस्था के साथ हमारे विशेषज्ञ मिलकर इस प्लान को तैयार करेंगे। उनकी विशेषज्ञता को हम अपने अनुभवों और जरूरतों की कसौटी पर परखने के बाद ही उपयोग में लाएंगे। ना केवल प्लान जल्द से जल्द बनवाने की कोशिश की जाएगी बल्कि उसका क्रियान्वयन भी शीघ्रता से किया जाएगा।
-जवाहर मंगवानी, प्रभारी, जनकार्य समिति प्रभारी

मौजूदा पार्किंग पर ही ध्यान नहीं

मौजूदा पार्किंग 12 सालों तक हमें मुख्य क्षेत्रों में नए पार्किंग्स बनाने की जरुरत नहीं रहेगी। नंदलालपुरा के पार्किंग में गंदगी पड़ी है और उस क्षेत्र में जाने-आने वाले लोग पार्किंग होने के बावजूद उसका इस्तेमाल नहीं करते। पालिका प्लाजा फेज टू के पार्किंग का तो शटर ही नहीं खोला गया है। रोड मार्किंग तीन दिन से ज्यादा नहीं टिक पाती क्यों? समय सीमा में प्रोजेक्ट पूरे नहीं होने से लागत बढ़ रही है, इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है।
-प्रफुल्ल जोशी, ट्रैफिक विशेषज्ञ

लायसेंस या मौत का लायसेंस?

आरटीओ में जाकर कोई भी व्यक्ति हजार रुपए की रिश्वत देकर लायसेंस बनवा लेता है। यह गाड़ी चलाने का लायसेंस नहीं है, यह मौत का लायसेंस है। चालान इस समस्या का हल नहीं है। लोग पैसा देकर भूल जाते हैं, उन्हें सबक सीखाने के लिए चार दिन उनकी गाड़ी बंद करवानी पड़ेगी। बाजार की सड़क का इस्तेमाल दुकानदार सामान डिस्प्ले करने में करते हैं, तो राहगीरों और वाहनचालकों के लिए सड़क संकरी हो जाती है।
-जगत नारायण जोशी, यातायात विशेषज्ञ

एक खंभा हटाने में आता पसीना

मैंने अनुभव किया है कि एक खंभा हटाने में पूरी व्यवस्था को पसीना आ जाता है। बजट बनता है, फाइल चलती है और फिर मंजूली मिलती है। चार अफसरों को एक साथ बैठाकर बात करना मुश्किल है, तो समग्र सोच विकसित कैसे होगा? लोगों को समझना होगा कि वे पार्किंग का सही तरीके से इस्तेमाल करें। सुभाष चौक पार्किंग में लोग गाड़ी ही खड़ी नहीं करते हैं।
- डॉ. उमा शशि शर्मा, पूर्व महापौर


 पत्रिका : ३० सितम्बर २०१०

हमने कोर्ट के आदेश पर ही की कार्रवाई

- मनी सेंटर मामले में हाईकोर्ट में आईडीए का जवाब पेश

भूमाफिया बॉबी छाबड़ा के विवादित मनी सेंटर की लीज निरस्ती के मामले में आईडीए ने हाईकोर्ट में जवाब पेश कर दिया है। आईडीए ने कहा है कि कोर्ट के आदेश के अनुसार ही पूरी कार्रवाई की गई है। लीज शर्तों का उल्लंघन करने के कारण ही लीज निरस्त करके मनी सेंटर पर कब्जा लेने का फैसला किया गया है। इस जवाब पर 11 अक्टूबर को सुनवाई होगी।

मनी सेंटर के दुकान मालिक मंजुलता गर्ग और विनय जैन ने याचिका में तर्क दिया है कि लीज शर्तों के आधार पर तय तमाम औपचारिकताएं पूरी देखकर ही डॉ. सजनी बजाज से दुकानें खरीदी गई हैं। भले ही लीज निरस्त हो जाए, लेकिन कानूनन उन्हें हटाया नहीं जा सकता है। कोर्ट में आईडीए ने इसी पर जवाब पेश करके बताया चूंकि हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि दुकान मालिकों की सुनवाई करके ही फैसला करें, इसलिए सुनवाई पूरी कर ली गई है। इसके बाद ही लीज निरस्त का कदम उठाया गया है। याचिकाकर्ताओं की ओर सिनीयर एडवोकेट एके सेठी ने आईडीए के जवाब पर तर्क प्रस्तुत करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। इसी पर जस्टिस एससी शर्मा की कोर्ट ने अगली तारीख तय की। आईडीए की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट अशोक कुटंबले और डॉ. सजनी बजाज की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट जीएम चाफेकर ने पैरवी की।
पत्रिका : २९ सितम्बर २०१०

बीआरटीएस पर लगी पांच याचिकाओं का निपटारा

- एक खारिज, तीन वापस और एक निगम के हवाले

बीआरटीएस के कारण जमीन अधिग्रहण को लेकर लगाई गई पांच याचिकाओं का मंगलवार को हाईकोर्ट में निपटारा हो गया। तीन ने अपनी याचिकाएं वापस ले ली, जबकि एक को कोर्ट ने खारिज कर दिया। एक अन्य के लिए नगरनिगम को सुनवाई का अधिकार सौंपा गया है।

जस्टिस एससी शर्मा की एकल पीठ में लगी याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि जमीन निजी है, इसलिए इसके एवज में मुआवजा दिया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान विजय हालान, जसवंत डोसी और मोहम्मद अकरम की ओर से बताया गया कि उन्होंने सड़क के लिए जमीन नगरनिगम को सौंप दी है, इसलिए याचिकाएं वापस लेना चाहते हैं। एक अन्य याचिकाकर्ता रवि वाघमारे के मुआवजे के तर्क को निगम के प्रतिउत्तर ने खारिज कर दिया। निगम ने कहा जमीन सेटबेक की है और उस पर निगम का अधिकार है। कोर्ट ने याचिका को निरस्त कर दिया। भंडारी कोठी से जुड़ी याचिका पर कोर्ट ने नगरनिगम को आदेश दिया है कि भुवन कुमारी की 19 अक्टूबर तक सुनवाई करके फैसला करें। याचिकाओं में निगम की ओर से एडवोकेट आनंद अग्रवाल ने पैरवी की।



पत्रिका : २९ सितम्बर २०१०

ट्रांसपोर्ट कमिश्नर हाईकोर्ट में तलब

- सपनि बंद करने के विरोध में लगी दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई
- वैकल्पिक व्यवस्था पर सरकार के जवाब से अदालत असंतुष्ट 

मध्यप्रदेश सड़क परिवहन निगम बंद होने के साथ ही अंतर प्रांतीय, खासतौर से गुजरात से बसों का परिवहन बंद हो जाएगा। सरकार ने इसके विकल्प के तौर पर पर कोई इंतजाम नहीं किया है। इस पर मप्र हाई कोर्ट ने नाराजगी जताई है। कोर्ट ने डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को हाजिर होकर जवाब देने के आदेश दिए हैं।

सोमवार को दो जनहित याचिकाओं पर जस्टिस शांतनु केमकर एवं एसके सेठ की युगलपीठ में सुनवाई हुई। इसमें शासन की ओर से जवाब पेश किया गया। इसमें केवल स्टेटस रिपोर्ट बता दी कि वर्तमान में सपनि की क्या स्थिति है और कितनी बसें चल रही है। शासन के जवाब से कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा ट्रांसपोर्ट कमिश्नर यहां आकर जवाब दें। कोर्ट को बताया गया कि वे इसी संबंध में जबलपुर में लगी याचिका की सुनवाई में व्यस्त हैं। इस पर कोर्ट ने कहा 29 सितंबर को डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को खुद आकर जवाब देने के आदेश दिए।

पांच दिन पहले लगी थी पीआईएल
सपनि बसें बंद होने से धार, झाबुआ, खंडवा, खरगोन सहित आदिवासी अंचल का गुजरात से संबंध ही समाप्त हो जाएगा। इसे लेकर पांच दिन पहले नारायण भायल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता चंपालाल यादव एवं मोहन कर्पे की ओर से अधिवक्ता अशोक कुटुंबले द्वारा दायर जनहित याचिका लगाई गई थी। याचिकाओं पर कोर्ट ने रा'य शासन एवं सपनि को 27 सितंबर को जवाब पेश करने के आदेश दिए थे। 


पत्रिका : २८ सितम्बर २०१०

पीथमपुर नहीं आएगा कचरा

सूचना के अधिकार की जीत
जनता और जनवादियों के समर्थन से चली पत्रिका की मुहिम रंग लाई
 

भोपाल में दफन 27 हजार 600 टन कचरे से पीथमपुर से यूकॉ के कचरे की विदाई के फैसले का उन जनवादियों ने खुलकर स्वागत किया है, जो कचरे के खिलाफ तन-मन-धन से मैदान में डटे थे। दरअसल, यह लड़ाई सूचना का अधिकार कानून की नींव पर बुलंद हुई है। लोगों ने इस कानून को धन्यवाद देते हुए सरकार की संवेदनशीलता को भी सलाम किया है।

पीथमपुर में बने रामकी इनवायो कंपनी के सयंत्र मप्र वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट की खामियों को उजागर करने के साथ इस अहम लड़ाई की शुरुआत हुई। इसके लिए पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी द्वारा सूचना का अधिकार में जुटाए गए दस्तावेजों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही। लगातार छह महीने से उन्होंने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मप्र पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड के यहां अर्जियां लगाई और जानकारियों का पुलिंदा तैयार किया।

'पत्रिकाÓ के आगे आते ही बन गया कारंवा

मामले में 'पत्रिकाÓ ने 15 जून से तथ्यपरक और विश्लेषणात्मक खबरें प्रकाशित करना शुरू किया। इससे पूरे मसले पर लड़ाई शुरू कर चुके लोगों को नई ताकत मिली और उन्होंने पूरे जोर-शोर से मैदान संभाल लिया। 28 जून को 'पत्रिकाÓ के दफ्तर में किए गए टॉक शो में तो विभिन्न संगठनों के लोगों ने घोषणा ही कर दी कि 'पीथमपुर में कचरा नहीं आने देंगे... भले इसके लिए जान चली जाएÓ। लोग अपनी इस घोषणा पर कायम भी रहे और आखिर में केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश को पीथमपुर आना पड़ा। उनके आने से ही संकेत मिल गए थे कि कचरा पीथमपुर में नहीं आएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी जयराम की यात्रा को देखते हुए एक दिन पहले ही घोषणा कर दी थी इंदौर के लोगों की राय जाने बगैर कचरा यहां नहीं लाया जाएगा।

सियासती फैसला, पर दूर रहे इंदौरी नेता
यह मामला सीधे-सीधे इंदौर से जुड़ा था, लेकिन इंदौर के नेता इससे दूर ही रहे। जब भी मीडिया ने उनसे राय मांगी वे कचरे के खिलाफ बयान देते रहे, परंतु जमीन पर उतरकर लडऩे का जिम्मा लोकमैत्री संगठन और आजादी बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने ही किया। राज्यसभा सांसद विक्रम वर्मा और धार विधायक नीना वर्मा, धार के सांसद गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी जरूर इस मसले को आगे बढ़ाते दिखे। जयराम के दौरे के बाद कांग्रेस के अभय दुबे भी थोड़े सक्रिय हुए।

दफन हो चुका है 40 टन कचरा
रामकी प्लांट में यूका का 40 टन कचरा दफन हो चुका है। यह कचरा गुपचुप तरीके से 27 जून 2008 को लाया गया था। लगातार मांग उठ  रही है कि इस कचरे को भी निकाला जाए। हालांकि, जयराम के दौरे के समय घोषणा हो गई थी कि जो दफन हो गया है, उसके बारे में विचार करने की जरूरत नहीं है। बस उसके प्रभाव को समय समय पर जांच लिया जाए।

रामकी में आता रहे औद्योगिक कचरा
रामकी प्लांट में औद्योगिक कचरा अभी भी आता रहेगा, क्योंकि केंद्र ने केवल यूका के कचरे को लेकर फैसला किया है। रामकी में पूरे राज्य का औद्योगिक कचरे पर प्रतिबंध नहीं लगा है। जन आंदोलन करने वालों में इसको लेकर भी आक्रोश है। सूत्रों का कहना है कि सरकार रामकी प्लांट के स्थान को बदलने का निर्णय भी कर सकती है।



इन लोगों को जाता श्रेय
- डॉ. आरडी प्रसाद, लोकमैत्री
- डॉ. गौतम कोठारी, पीथमपुर औद्योगिक संगठन
- डॉ. भरत छपरवाल, लोकमैत्री
- तपन भट्टाचार्य, आजादी बचाओ आंदोलन 
- चिन्मय मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता
- अनिल भंडारी, सीईपीआरडी
- नरेंद्र सुराणा, सीईपीआरडी
- विक्रम वर्मा, राज्यसभा सांसद
- गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी, सांसद, धार



देर आए, दुरस्त आए

'यह कचरा डाऊ कंपनी की जिम्मेदारी है, उसे ही इसके निपटान का इंतजाम करना चाहिए। हम यह नहीं चाहते हैं कि कचरा भोपाल में ही रखा रहे।
- डॉ. आरडी प्रसाद, समाजशास्त्री 

'यह सूचना के अधिकार और मीडिया की जीत है। दरअसल, अब भी फिर वक्त आ गया है कि सरकार तक लोगों की भावनाएं पहुंचाने के लिए जनआंदोलन की राह अपनाई जाए।
- डॉ. गौतम कोठारी, अध्यक्ष, पीथमपुर औद्योगिक संगठन

'यह सूझबूझ भरा फैसला है, परंतु कचरे को दफनाने का फैसला शीघ्र कर लेना चाहिए। सीमेंट फैक्टरियों में कचरा जलाने के प्रस्ताव पर भी गंभीरता से विचार किया जाए तो आसानी से रास्ता निकल सकता है।
- चिन्मय मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता

 'सरकार गुपचुप तरीके से सबकुछ निपटा देना चाहती थी, लेकिन लोगों ने अपने दम पर लड़ाई लड़कर सबको सीख दे दी है। यह लोकशक्ति की जीत है।
- तपन भट्टाचार्य, संयोजक, आजादी बचाओ आंदोलन

'यह गांधीवादी तरीके से लड़ी गई लड़ाई का नतीजा है कि राज्य व केंद्र सरकार दोनों को झुकना पड़ा। अभी भी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
- डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व कुलपति

'इस फैसले से गंभीर नदी को प्रदूषण से बचाया जा सकेगा। रामकी प्लांट की साइट को भी बदलने की जरूरत है, क्योंकि वहां तो अभी भी औद्योगिक कचरा जलेगा ही।
- अभय दुबे, महामंत्री, कांग्रेस

'सरकार फैसला नहीं करती तो हम तो कोर्ट जाते। इसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी। हम बस मंत्री समूह की बैठक का इंतजार ही कर रहे थे।
- अनिल भंडारी, उपाध्यक्ष, सीईपीआरडी

'अब भोपाल को बचाने की जरूरत है। सरकार को इस पर तत्काल फैसला कर लेना चाहिए ताकि वहां प्रदूषण नहीं फैले। इसको लेकर भी बात करूंगा।
- विक्रम वर्मा, राज्य सभा सांसद

 'वर्तमान में सबसे आधुनिक तरीका प्लॉज्मा तकनीक से कचरा भस्म करने की है। सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए, ताकि कचरे को मुकाम मिले।
- शिवाकांत वाजपेयी, सदस्य, भारतीय विकिरण संरक्षण परिषद

'सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र और राज्य सरकार की दो-दो करोड़ की मदद से रामकी का प्लांट स्थापित हुआ था। इस पर पुनर्विचार करना होगा।
- वीके जैन, पूर्व निदेशक, मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

 

तारपुरावासियों ने मनाई खुशियां
युका के कचरे को लेकर चले आ रहे विरोध पर उस समय विराम लग गया जब दिल्ली से पीथमपुर वासियों के हक में फैसला आया। फैसले की खबर जैसे ही ग्रामवासियों को पता चली, मानों उनकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा हो। रात करीब 8  बजे काफी संख्या में जमा हुए युवाओं ने गांव की चौपाल पर नाच-गाकर जश्न मनाया। यहां मौजूद युवाओं में जादू नंदराम, बबलू प्रजापत, मनोज मांगीलाल, विनोद रामचंद्र, नवीन गुप्ता, संजय चौहान, महेश कछवारे, जितेंद्र काशीराम, मनासिंह मांगीलाल, जितेंद्र कालूसिंह आदि ने कहा कि लंबे समय से चली आ रही इस लड़ाई में उन्हें इंसाफ मिला हैं। उन्होंने पत्रिका को बताया कि क्षेत्र में प्रभावितों के हक में आए इस फैसले ने कई क्षेत्रवासियों की जान बचाई हैं। साथ ही यहां फैल रहे प्रदूषण से अब लोगों को निजात मिलेगी।


कचरे में थे दस जानलेवा रसासन
पर्यावरणविद् सुनिता नारायण की अगुवाई वाले वैज्ञानिक शोध संस्थान सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) के मुताबिक भोपाल में यूनियन कार्बाइड के ठिकाने में रखे २७ हजार ६00 टन कचरे में दस किस्म के जानलेवा और विषैले रसायन मिले हैं। इन रसायनों से घातक बीमारियां होती हैं, रोक प्रतिरोधक और प्रजनन क्षमता भी कम या खत्म हो सकती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने भी इस रिपोर्ट से सहमति जताई है।  कचरे में ड्रायक्लोरोबेंजीन, ट्रायक्लोरोबेंजीन, हेक्साक्लोरोबेंजीन, हेक्साक्लोरोसाइक्लोहेक्सेन, कॉरबैरिल, एल्डीकार्ब, पारा, संखिया, सीसा और क्रोमियम की मात्रा मिली है।

ये थी पांच चिंताएं
एक- जमीनी पानी में जहर

वर्ष 2007 से कचरा संयंत्र पर उद्योगों का अपशिष्टï इक_ा किया जा रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के आंकड़े गवाह हैं कि इन तीन वर्र्षों में कचरा संयंत्र के आसपास का भूजल दूषित हुआ है। गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के जिस कुएं का पानी लोग पीते थे उसे हाथ लगाते ही अब खुजली और जलन होने लगती है। साइट के समीप तारपुरा गांव के बोरिंग का पानी चाय बनाने लायक भी नहीं रहा। 

दो- हवा में जहर
कचरा संयंत्र में जब औद्योगिक कचरा जलाया जा रहा था, तभी यूनियन कार्बाइड  है, लेकिन जब यूनियन कार्बाइड का कचरा जलेगा तब क्या होगा। हवा के जरिए यह जहर दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुंचकर लोगों को बीमारियां बांटेगा। कंपनी ने कचरा जलाने के दौरान निकले लीचेड को सुखाने के लिए मल्टीइफेक्ट इवेपोरेटर भी नहीं लगाया है और न ही ड्रायर का इस्तेमाल किया जा रहा है। लीचेड सीधे जमीन पर बहाया जा रहा है।

तीन- मापदंडों का उल्लंघन
औद्योगिक अपशिष्टï प्रबंधन अधिनियम के मुताबिक कचरे का निपटान करने के लिए जिस जगह संयंत्र लगाया जाता है उससे 500 मीटर के दायरे में कोई रहवासी क्षेत्र नहीं होना चाहिए, लेकिन रामकी ने इस नियम को ताक पर रख दिया। साइट से मात्र 100 से 200 मीटर के दायरे में तारपुरा गांव हैं। गांववाले बताते हैं कि जब से इंसीनरेटर चालू हुआ है, बदबू के मारे उनका सांस लेना मुश्किल हो गया है।

चार- बीमारियों का घर 
सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट के मुताबिक कचरे के कारण लीवर सोराइसिस, रक्त कोशिका, फेफड़े, गुर्दे, स्नायु व प्रजनन प्रणाली पर बुरा असर, रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना, स्नायु, प्रजनन व श्वसन प्रणाली का क्षतिग्रस्त होना, लीवर रोग, अल्सर की उत्पत्ति, हड्डियों में खराबी, बाल झडऩा, कैंसर की आशंका, ब'चों का असामान्य विकास, क्रोमोसोम असमानता, स्मरण शक्ति पर कमजोर होना, गर्भस्थ शिशु के लिए घातक, अचानक गर्भपात की संभावना, खून की कमी, स्नायु रोग, त्वचा पर जख्म होना, गुर्दों की खराबी, नाक की झिल्ली में छेत, गले में जलन, दमा व श्वसन रोगों का खतरा बढ़ेगा।

पांच- उद्योगों का पलायन
प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में 500 से अधिक छोटे-बड़े उद्योगों के लिए कचरा संयंत्र एक-न-एक दिन खतरा जरूर बनेगा। यह बात उद्योगपति भी जानते हैं। कई उद्योगपति यह बात कह भी चुके हैं कि यदि यूनियन कार्बाइड का कचरा यहां जलाया जाता है तो कई उद्योगों का यहां से पलायन हो सकता है। नए उद्योग तो यहां आने से ही कतराएंगे। 
 
इन आरोपों से घिरा रामकी
  • कायदा कहता है कि कचरा दफन करने के लिए जो गड्ढा (सिक्यूर्ड लैंड फिल) बना है, वह रहवासी बस्ती से 500 मीटर से दूर होना चाहिए, लेकिन गड्ढा तारापुर के पास ही बना दिया गया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मानता है कि गड्ढे की तारापुर से दूरी 100 मीटर से अधिक नहीं है।
  • गड्ढे में मिïट्टी की 1000 एमएम के बजाए 600 एमएम की ही परत बनाई गई। मिट्टी की परत को दबाने के लिए जिस मशीन का प्रयोग किया जाता है, वह बोर्ड को मौके पर नहीं मिली। इस पर कंपनी को नोटिस दिया। कंपनी यह कहकर बच निकली कि दिन में मशीन उपलब्ध नहीं रहती है, इसलिए रात में काम करवाते हैं। अफसरों ने रात में मुआयना करना मुनासिब नहीं समझा। 
  • गड्ढे में सबसे नीचे रेत और बजरी की 30 सेंटीमीटर मोटाई रखी जाना चाहिए लेकिन कंपनी ने मोटाई को 15 सेंमी ही रखा। बोर्ड ने ही इसका खुलासा किया। यह चूक बेहद खतरनाक है, क्योंकि विषैले कचरे से होकर जो पानी जमीन में जाता है, वह कई किमी क्षेत्र के भूजल को प्रदूषित करने की ताकत रखता है। भोपाल में ऐसा ही हुआ और केंद्र सरकार को आखिर में सिफारिश करना पड़ी कि भोपाल के लोग भूजल का प्रयोग न करें।
  • हर दिन कचरा इकठ्ठा करके बाद उस पर मिट्टी की परत जमाना अनिवार्य है, लेकिन खर्च और जगह बचाने के लिए कंपनी ने ऐसा नहीं किया। बीच में परत नहीं होने से प्रदूषण की मात्रा कई गुना बड़ सकती है। 
  •  कचरा निपटान के पहले कंपनी ने नियम विरूद्ध खतरनाक ज्वलनशील कचरे का भंडारण किया। बोर्ड नोटिस देकर चुप बैठ गया, बाद में पुलिस में शिकायत हुई और कंपनी कर्मचारी पार्थ शुक्ला को गिरफ्तार किया गया।
  •  मजदूरों को पर्याप्त सुरक्षा मुहय्या नहीं करवाई जा रही। यही वजह है कि कंपनी में सात मजदूर बीमार हो गए।
  • कंपनी में आपातकालीन सुविधाओं का अभाव है। इसके लिए दो बार औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग नोटिस जारी कर चुका है।


 100 दिन पहले उठी थी आवाज

14 जून
रामकी इंसीनेटर को फायर एनओसी मिलने के साथ ही पत्रिका ने 'इंदौर मांगे इंसाफÓ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी।

19 जून
सांसद विक्रम वर्मा ने कहा यूका का कचरा देश के बाहर ले जाया जाए। लोकमैत्री संगठन की बैठक में रामकी खामियां उजागर की गई।

23 जून
'पत्रिकाÓ ने सवाल उठाया भारी अनियमितताएं मिलने के बाद भी सरकार क्यों रामकी कंपनी को बचाने में लगी है।

26 जून

रामकी इंसीनेटर में काम कर रहे सात मजदूर बीमार हो गए। इससे मजदूरों में दहशत फैल गई।

28 जून

'पत्रिकाÓ में हुए टॉक शो में आंदोलन की रूपरेखा तैयार हुई। लोगों ने कहा भले ही जान देना पड़े, पीथमपुर में कचरा नहीं आने देंगे।

29 जून
रामकी कंपनी ने सरकार पर आरोप लगाया कि हम तो धंधा कर रहे हैं, सरकारी एजेंसियों को ही फिक्र नहीं है कि कहां क्या किया जाना है।

2 जुलाई
'पत्रिकाÓ ने बताया 6 जुलाई 2005 को हुई जनसुनवाई के बाद से ही स्थानीय प्रशासन रामकी पर फिदा है।

3 जुलाई
'पत्रिकाÓ ने खुलासा किया कि रामकी को नोटिस देने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्रवाई नहीं करता है।

7 जुलाई
लोकमैत्री संगठन ने पीथमपुर में रामकी सयंत्र की घेराबंदी की। साथ ही संभागायुक्त को ज्ञापन सौंपा।

8 जुलाई
तारापुर के नागरिकों ने रामकी सयंत्र में कचरा ले जा रहे ट्रकों को रोका क्योंकि उनमें से विषैला बदबूदार कचरा बह रहा था।

9 जुलाई
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इंदौर में कहा यूका कचरे और रामकी सयंत्र के संबंध में इंदौर के लोगों से चर्चा के बाद ही फैसला किया जाएगा।

10 जुलाई
केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश पीथमपुर गए। उन्हें वहां के लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। बस्ती के पास बनाए गए सयंत्र और कुएं के काले पानी को देखकर वे भी अचंभित रह गए। जयराम ने 40 टन कचरा यहां लाने पर माफी भी मांगी।

12 जुलाई
'पत्रिकाÓ ने बताया जयराम ने माफी मांग ली, लेकिन राज्य सरकार की गलतियों के लिए कौन माफी मांगेगा?

18 जुलाई

कांग्रेस ने पीथमपुर में धरना देकर घोषणा की कि रामकी का देशभर में विरोध किया जाएगा।

22 जुलाई
विधानसभा में मामला उठा कि क्या रामकी सयंत्र से इंदौर का पानी दूषित नहीं होगा।

24 सितंबर

'पत्रिकाÓ ने खुलासा किया कि सुप्रीम कोर्ट में रामकी के झूठे बयान के आधार पर गुजरात सरकार ने हलफनामा पेश किया। रामकी के अधिकारियों ने भी माना यह कंपनी के तत्कालीन अधिकारी की गलती थी।


 पत्रिका : २८ सितम्बर २०१०

फोन पर हुई सुनवाई

- इंदौर के आरटीआई कार्यकर्ता से दिल्ली में मौजूद केंद्रीय सूचना आयुक्त ने लिए बयान
- मामला एमसीआई द्वारा जानकारी नहीं उपलब्ध कराने का


सूचना का अधिकार का उल्लंघन करने के एक मामले में दिल्ली स्थित केंद्रीय सूचना आयुक्त ने सोमवार को फोन पर सुनवाई की गई। उन्होंने इंदौर में मौजूद एक सूचना कार्यकर्ता से आपत्तियां सूनी और संबंधित पक्ष को नोटिस जारी कर दिए।
मामला मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) से जुड़ा है। इंदौर के सूचना का अधिकार कार्यकर्ता डॉ. आनंद राय ने 6 अप्रैल को तीन जानकारियां मांगी थी, जिसमें से उन्हें एक का ही जवाब दिया गया। इस पर उन्होंने एमसीआई सचिव कर्नल एआरएन सितलवाड़ को प्रथम अपील की थी, परंतु संतोषजनक जवाब नहीं मिला। आखिर उन्होंने केंद्रीय सूचना आयुक्त को अपील कर दी। इस पर जवाब के लिए डॉ. राय को सोमवार को दिल्ली बुलाया गया था, परंतु अन्य काम होने के कारण उन्होंने असमर्थता जताई। इस पर तय किया गया कि दोपहर तीन से चार बजे के बीच फोन पर ही उनके बयान ले लिए जाएंगे। दोपहर 3.25 बजे उनके मोबाइल पर केंद्रीय सूचना आयुक्त अनुपमा दीक्षित का फोन आया।

एमसीआई को दिया नोटिस

आयोग: आपकी आपत्ति बताएं?
अपीलकर्ता: मुझे तीन में से एक ही जानकारियां दी गई हैं। आपके पास मौजूद मूल अर्जी में जिन दो की जानकारी नहीं दी गई, उनका जिक्र है।
आयोग: और क्या आपत्ति है?
अपीलकर्ता: समय सीमा समाप्त होने के बाद में मुझे आयोग ने जानकारी दी और बदले में 150 रुपए लिए, जबकि कानूनन वे ऐसा नहीं कर सकते हैं।
आयोग: आज एमसीआई की और कोई आया नहीं है। हम उन्हें नोटिस जारी कर रहे हैं। जानकारी नहीं देगे, तो उन्हें सजा दी जाएगी।
अपीलकर्ता: मध्यप्रदेश में सूचना कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होती है, इस पर भी कार्रवाई करें।
आयोग: हम जिस तरह से विभागों पर पैनल्टी लगा रहे हैं, उसी से सरकारों को सबक मिलेगा। आप सूचनाएं मांगते रहें।
(बातचीत की यह जानकारी अपीलकर्ता डॉ. आंनद राय के मुताबिक।)
 
इन प्रश्नों के नहीं मिले जवाब
  • मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में सीनियर रेसीडेंट के 120 पद रिक्त हैं, फिर भी भोपाल, इंदौर जैसे कॉलेजों को एमसीआई ने मान्यता कैसे प्रदान कर दी?
  • एमसीआई टीम के दौरे के ठीक पहले राज्य सरकार ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य विभाग के 28 डॉक्टरों को प्रतिनियुक्ति पर अस्थायी तौर पर भेजा और दौरा होने के बाद उन्हें वापस मूल पद पर बुला लिया। क्या इसकी जानकारी एमसीआई को थी? यदि हां, तो फिर मान्यता को लेकर इतनी औपचारिकताएं करने की जरूरत ही क्या है?


पत्रिका : २८ सितम्बर २०१० 

ड्रग ट्रायल की फाइल पहुंची सोनिया दरबार

- दिल्ली में विधिवत कार्रवाई शुरू
- शिकायतकर्ता ने उठाई सीबीआई जांच की मांग


बहुराष्टï्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) में मध्यप्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बरती गई कौताही की पूरी फाइल संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी तक पहुंच गई है। उन्होंने इस पर विधिवत कार्रवाई भी शुरू कर दी है। शिकायतकर्ता ने मामले में सीबीआई जांच की मांग की है।

स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के अध्यक्ष डॉ. आनंद राजे ने सोनिया गांधी को शिकायत भेज कर तमाम तथ्य उजागर किए थे। उन्हें सोमवार को कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद का एक पत्र मिला है। इसमें लिखा गया है कि मामले को सोनिया गांधी ने अत्यंत गंभीरता से लिया है और उन्होंने संबंधित पक्ष को कार्रवाई करने और इसकी जानकारी देने को कहा है।

दोषियों के बचाव में है राज्य सरकार
डॉ. राजे का आरोप है कि देश-दुनिया में जो मसला उठ चुका है, उसपर ठोस कार्रवाई करने के बजाए राज्य सरकार दोषियों को बचाने में लगी है। करीब दो महीने पूरे हो चुके हैं, लेकिन अभी तक ईओडब्ल्यू ने अंतिम रिपोर्ट तैयार नहीं की है। इतना ही नहीं, विधानसभा में स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने जो कमेटी गठित करने की घोषणा की थी, उसकी अभी तक बैठक भी नहीं हुई है।

अमेरिकन सरकार भी मांग चुकी सफाई
'पत्रिकाÓ ने 14 जुलाई के अंक में 'मरीज को बना दिया चूहाÓ शीर्षक से खबर प्रकाशित कर खुलासा किया था कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में आने वाले गरीब और अनपढ़ मरीजों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसके बाद मामला विधानसभा, ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, आयकर, एमसीआई, आईसीएमआर तक पहुंचा। हाल ही में अमेरिकन सरकार के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन ने भी भारत सरकार को इस संबंध में पत्र लिखकर सफाई मांगी है।

यह किया उल्लंघन
- एमसीआई द्वारा तय की गई डॉक्टरों की 'मर्यादाओंÓ को लांघा।
- आईसीएमआर के मापदंडों का ताक में रखा।
- मरीजों को धोखे में रखकर ट्रायल में झोंका।
पत्रिका : २८ सितम्बर २०१०

विनयनगर के खेल में शालिनी ताई भी छली गई

- बॉबी ने टिका दिया था सड़क का प्लॉट
- हाईकोर्ट के फैसले के बाद खुल रही परतें



झूठ की बुनियाद पर विनय नगर की चालीस फीट चौड़ी सड़क पर मकानों के नक्शे पास करने के केस में हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद परतें खुल रही हैं। गड़बड़ी में निगम के इंजीनियर परिवार के शामिल होने के बाद जानकारी मिली है कि जमीन के इस खेल में ख्यात शिक्षाविद शालिनी ताई मोघे भी ठगी जा चुकी हैं। मामले में भूमाफिया बॉबी छाबड़ा भी अहम किरदार हैं।

'पत्रिकाÓ ने रविवार के अंक में 'बागड़ खा गई खेतÓ शीर्षक से समाचार प्रकाशित करके खुलासा किया था कि निगम के पूर्व इंजीनियर अमृतलाल (अंबू) पटेल और मौजूदा इंजीनियर दीपक पटेल के परिवार ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सड़क के हिस्से को हथिया लिया। इस खेल में सरकारी विभागों ने उनकी हर स्तर पर मदद की। 'पत्रिकाÓ पड़ताल में साफ हुआ है कि सड़क पर काटा गया दूसरा प्लॉट (188-ए) हर्षा सतीश वाधवानी ने शालिनीताई से खरीदा था। ताई को यह प्लॉट बॉबी ने बेचा था। 

बॉबी ने बेहद चतुराई से रिश्तों को भुनाया
 बॉबी ने दस वर्ष पहले शालिनी ताई को उलझा था। बात 2000 की है, तब ताई 2/3 स्नेहलतागंज के स्वयं के मकान में रहती थीं। मकान जर्जर हो रहा था, इसलिए मोघे दंपत्ति (ताई और स्व. मोरेश्वर मोघे) ने उसे बेचने का मन बनाया। किसी परिचित ने बॉबी से मिलवाया। उसने मकान खरीदने के साथ ही वादा किया आपकी जमीन पर एक मल्टी बनाऊंगा और उसमें से एक फ्लैट आपको दूंगा। मल्टी बने तब तक आप मेरे 10, आदर्श नगर की तल मंजिल पर रहें। मोघे परिवार इस पर राजी हो गया। बॉबी ने कब्जा लिया और ताई आदर्श नगर में शिफ्ट हो गईं। बॉबी ने मल्टी बनाने के बजाए स्नेहलतागंज की जमीन नितिन पल्टनवाले को बेच दी, लेकिन ताई से किया वादा पीछे ही रह गया। चूंकि सारे वादे मौखिक थे, इसलिए ताई को फ्लैट नहीं मिल सका। इसी बीच बॉबी ने विनय नगर का उक्त प्लॉट (188-ए) ताई को दे दिया। ताई का परिवार इससे खुश था, लेकिन जब उन्होंने इस प्लॉट को बेचने की कोशिश की तो वह बिक नहीं सका। बाद में 2008 में बॉबी ने ही उसे बिकवाया। जो रुपया आया उसी से ताई ने 3/2 पगनीसपागा स्थित सीएमआर रॉयल रिजेंसी में एक छोटा सा फ्लैट खरीदा। अभी वे वहीं रहती हैं।    

हमारे बीच में ज्यादा बात नहीं होती थी  
फिलहाल ताई खुश हैं और अपने क्षमाशील स्वभाव के मुताबिक कहती हैं बॉबी ने मुझे कोई तकलीफ नहीं दी। मैं उनके घर में रहती जरूर थी, लेकिन उनके परिवार और हमारे बीच में ज्यादा बातचीत नहीं होती थी। हम नीचे रहते थे और उनका परिवार ऊपर। बॉबी के पिता हम लोगों का खासा ध्यान रखते थे। मैं यह कभी नहीं भूल सकती कि मोघेजी (स्व. मोरेश्वर मोघे) की बीमारी में उनके परिवार ने हमारी पूरी मदद की थी। विनयनगर प्लॉट लफड़े के बारे में वे कहती हैं, मुझे इसकी बहुत जानकारी नहीं क्योंकि उस समय मोघेजी जिंदा थे और उन्होंने ही बॉबी से चर्चा की थी। 

पत्रिका : २७ सितम्बर २०१०

बड़े सवालों के जवाब पर मांगी तारीख

शहर विकास के अहम बिंदुओं से जुड़े जनपयोगी मसलों पर मौन

शहर विकास से जुड़े दस अहम सवालों पर इंदौर विकास प्राधिकरण ने शनिवार को हुई जन उपयोगी लोक अदालत में जवाब पेश नहीं किया। जवाब पर साहब के हस्ताक्षर नहीं हुए हैं, कहकर नई तारीख मांगी गई है। सवाल विकास मित्र दृष्टि के किशोर कोडवानी ने उठाए थे।

वे जानना चाहते हैं कि जो नए रहवासी क्षेत्र बसे हैं या बस रहे हैं। उनमें धर्म स्थलों, बिजली ट्रांसफार्मर, कचरा पेटी, हॉकर्स झोन, सब्जी मंडी, पान-चाय-पंचर की दुकानों के लिए क्या प्रावधान किए गए हैं? जन संख्या आधारित पानी की टंकियों, ड्रेनेज पानी निकासी, फिल्टर प्लांट, पंपिंग स्टेशन का क्या इंतजाम किया गया है? पारंपरिक जल स्त्रोतों के संवर्धन की क्या कार्ययोजना है? नर्मदा परियोजना के लिए सामंजस्य की क्या योजना है? कोडवानी ने बताया पिछली सुनवाई में कोर्ट ने आईडीए के साथ बैठक करने का सुझाव दिया था। इसी पर 16 सितंबर को बैठक हो चुकी है, परंतु जवाब पेश ही नहीं किया गया है। आईडीए अधिकारी केपी माहेश्वरी ने बताया जवाब तैयार हो गया है, लेकिन अवकाश के कारण हस्ताक्षर नहीं हो सके। अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी, तब सभी के सिलसिलेवार जवाब दे दिए जाएंगे।

बची हुई टंकियों का परीक्षण कराएं
एक अन्य केस में अदालत ने निगम को आदेश दिया है कि कोडवानी को शीघ्र 30 प्रतिशत टंकियों का निरीक्षण करवाएं और शेष दस्तावेज भी उन्हें उपलब्ध कराएं।

आईडीए के पास 49871 पेड़
आईडीए ने एक केस में जवाब पेश करके कोर्ट को बताया कि उसकी योजनाओं में 49 हजार 871 पेड़ लगे हैं। उधर, निगम पहले ही बता चुका है कि 370 बगीचों में करीब 9800 और सड़कों के किनारे करीब 13 हजार 700 पेड़ लगे हैं।

पत्रिका : २६ सितम्बर २०१०

भारतीय मरीज का डीएनए विदेश किसकी अनुमति से भेजा?

- ड्रग ट्रायल के लिए खून के नमूनों की विदेश यात्रा पर उठा सवाल
- आईसीएमआर ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज को भेजा पत्र



बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज को एक पत्र लिखा है। परिषद जानना चाहती है कि जिन भारतीय रोगियों पर ट्रायल किया गया है, उनके खून के नमूने किसकी इजाजत से विदेश भेजे गए? क्या इसमें नियमों का पालन हुआ है?

कॉलेज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया जिन डॉक्टरों ने ट्रायल किए है, उन्हें आईसीएमआर के पत्र के आधार पर जवाब-तलब किया जा रहा है। यह मसला बायोलॉजिकल प्रोडक्ट कानून से जुड़ा हुआ है। अभी तक इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया था। माना जा रहा है यह कॉलेज प्रबंधन और पूरे विभाग के लिए नई मुसीबत का कारण बनेगा। उधर, ट्रायल में लिप्त एक डॉक्टर ने 'पत्रिकाÓ को बताया जो दवा कंपनी ट्रायल करवाती है, वह अपनी उ'च क्षमता लेबोरेटरी में नमूनों को परखना चाहती है, यही वजह है कि नमूने विदेश भेजे जाते हैं। उन नमूनों का और क्या इस्तेमाल होता होगा, यह किसी को अंदाजा नहीं है।

आरटीआई से जुड़ा मसला
दरअसल, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता रोली शिवहरे ने आईसीएमआर से सवाल पूछा था कि ट्रायल से गुजर रहे मरीजों के खून, मूत्र, स्वाब आदि के नमूने जांच के लिए विदेश भेजे जाते हैं। इसकी अनुमति ली गई है या नहीं? यदि हां, तो किस कानून के तहत? इन सवालों के जवाब जब आईसीएमआर को नहीं मिले, तो उन्होंने मध्यप्रदेश स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभागों को पत्र लिखकर जानकारी चाही है।



पत्रिका : २६ सितम्बर २०१०
 

बागड़ खा गई खेत

विनयनगर में अवैध निर्माण
- निगम इंजीनियर ने सड़क पर पास करवाया मकान का नक्शा
- हाईकोर्ट में उजागर हो गया निगम-टीएंडसीपी का झूठ इंदौर




विनय नगर की 40 फीट चौड़ी सड़क की जमीन पर जिन लोगों ने मकान का नक्शा पास करवा लिया था, उनमें से एक का सीधा ताल्लुक इंदौर नगरनिगम के इंजीनियर से है। सरकारी इंजीनियर को पनाह देने के लिए निगम और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग तक ने गलती पर पर्दा डालने की भरसक कोशिश की, लेकिन हाईकोर्ट की निगाह से वे बच नहीं सके। सरकारी दफ्तरों ने तो 'फाइल गायबÓ तक के तर्क दे दिए थे, परंतु फरियादी के दस्तावेजों ने पोल खोल दी। हाईकोर्ट ने नक्शे को अवैध माना और निर्माण ध्वस्त करने का आदेश दे दिया।

मामला विनय नगर के भीतरी बगीचे के पास की सड़क का है। वहां पहले डामर की सड़क हुआ करती थी। विनयनगर हाउसिंग सोसाइटी ने सड़क के किनारे मौजूद प्लॉट नंबर 173 और 188 के पास में क्रम से 173 (ए) और 188 (ए) नाम से प्लॉट काट दिए। प्लॉट नंबर 173 पर बने मकान में दीपक पटेल रहते हैं, जो निगम में इंजीनियर हैं। उनके पिता अमृतलाल (अंबू) पटेल भी रिटायर्ड निगम इंजीनियर हैं। नया नक्शा दीपक के भाई हितेष पटेल के नाम से है।

निगम की गाड़ी होती है पार्क
पटेल के प्लॉट पर फिलहाल बाउंड्रीवाल बनी है और इसमें एमपी09, एचडी-9058 इंडिका खड़ी रहती है। इस पर 'नगरनिगम सेवाÓ  लिखा गया है। पटेल परिवार की महिलाओं ने बताया यह प्लॉट हमारा हो गया है। हमारे खिलाफ अर्जी लगाने वालों की फाइल एक बार हाईकोर्ट ने फेंक दी थी।

अवैध को ध्वस्त करना ही रास्ता : हाईकोर्ट
विनयनगर निवासी अनिल कुकरेजा और अन्य ने इस मामले को लगातार तीन बार हाईकोर्ट में दायर किया। पूर्व में जस्टिस विनय मित्तल ने निर्माण कार्य पर स्थगन आदेश दिया था और बाद में जस्टिस शांतनु केमकर ने भी निर्माण को अतिक्रमण माना था। 9 सितंबर 2010 को जस्टिस एससी शर्मा ने 21 पृष्ठ का अंतिम फैसला सुनाया। इसमें सुप्रीम कोर्ट एक कुछ फैसलों का जिक्र दर्ज है, जिनमें सड़क या पार्किंग की जमीन पर बने बहुमंजिला भवन, स्कूल या अस्पताल तक को नेस्तनाबूत करने के उदाहरण मौजूद हैं। हाईकोर्ट ने सड़क की जमीन खरीदने वालों को छूट दी है कि वे कानूनी तरीके से अपने रुपए उस व्यक्ति से वसूलें, जिसने गलत नक्शा दिखाकर उन्हें प्लॉट बेच दिया।


अफसरों ने किया अतिक्रमण को मजबूत

नगरनिगम : बगैर रिकॉर्ड देखे दी अनुमति
विनयनगर का मूल नक्शा 16 अगस्त 1985 को पास हुआ, तब 40 फीट की सड़क दर्शाई गई थी। जुलाई 1998 में टीएंडसीपी ने सड़क की चौड़ाई 10 फीट करके पटेल का नक्शा पास कर दिया। इसी के आधार पर 25 जनवरी 2008 को निगम ने निर्माण की अनुमति दे दी।

टीएंडसीपी : गायब कर दिया रिकॉर्ड
टीएंडसीपी के द्वारा पारित नक्शे के आधार पर दोनों प्लॉटों पर निर्माण की राह खुली और टीएंडसीपी ने ही बाद में कहा दिया कि मामले में 1998 के बाद के दस्तावेज उपलब्ध ही नहीं है। रिकॉर्ड गायब होने को हाईकोर्ट ने बेहद गंभीर मानते हुए टिप्पणी की है कि संभवत: जानबूझकर रिकॉर्ड गायब किया गया है।

हाउसिंग सोसाइटी : खाली जगह बेचने का सिलसिला
मीठालाल राका की अध्यक्षता वाली विनयनगर हाउसिंग सोसाइटी ने 1985 में मंजूर हुए नक्शे को बाद में बेचना शुरू कर दिया। मूलत: करीब 20 एकड़ में फैली इस कॉलोनी का वर्तमान में करीब 22 एकड़ पर कब्जा है। नक्शे में पार्क और वाणिज्यिक उपयोग की जमीन को भी मकानों के लिए बेच दिया। हाईकोर्ट में परिवादी बनाने के बावजूद सोसाइटी की ओर से कोई मौजूद नहीं हुआ।


'मैं इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहता हूं। आपका नंबर मेरे मोबाइल पर आ गया है। मैं अपने भाई दीपक और पिता अमृतलाल पटेल से कह दूंगा। वे आपसे बात कर लेंगे।Ó
- हितेष पटेल, सड़क पर नक्शा पास करवाने वाले
(लगातार कोशिश के बावजूद भी तीनों ने बात नहीं की।)

फैसले के पांच सबक
- दस्तावेजों के साथ लड़ाई लड़ी जाए तो सरकारी अफसरों की मिलीभगत भी आखिर में उजागर होती है।
- जब एक ही जमीन के दो नक्शे उपलब्ध हों, तो सबसे पुराने वाले नक्शे को ही सही माना जाए।
- आपकी आंखों के सामने अतिक्रमण हो, तो तत्काल शिकायत करें। ये शिकायतें ही कोर्ट में आधार बनती हैं।
- सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके मूल दस्तावेज जुटा लें।
- फाइल गायब करने के प्रचलित फंडे का इस्तेमाल करने के बाद भी झूठ को छुपाया नहीं जा सकता।


पत्रिका :  २६ सितम्बर २०१०