मंगलवार, 31 अगस्त 2010

निजी कंपनियों को जमीन देने की साजिश

- भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन प्रस्ताव पर मेधा पाटकर का आरोप
- कहा बिल पास होने से कंपनियों को जमीन देने बन जाएगा किसानों की मजबूरी

मेधा पाटकर 


रेल लाइन बिछाने, सड़कें बनाने, सरकारी इमारतें खड़ी करने के लिए अंग्रेजों ने 1884 में जो भूमि अधिग्रहण कानून बनाया था, उसमें केंद्र सरकार द्वारा की जा रही संशोधन की बात एक साजिश है। संशोधन के मुताबिक किसी भी निजी कंपनी या सरकारी प्रोजेक्ट को जमीन तभी मुहय्या करवाई जाएगी, जबकि वह 70 फीसदी खरीद लेगा। कुछ राजनेता मानते हैं कि इससे किसानों की बार्गेनिंग पॉवर (मोलभाव की शक्ति) बढ़ेगी, परंतु वास्तव में ऐसी स्थिति नहीं बनेगी। दरअसल, कंपनी जमीन मालिक पर उसकी शर्तों पर जमीन देने का दबाव डालेगी और कहेगी कि जमीन दे दो नहीं, तो सरकार जबरदस्ती अधिग्रहित करके हमें सौंप देगी।

भूअधिकार, पुनर्वास और विकास के मौजूदा ढांचे पर लंबे अरसे से जमीनी लड़ाई लड़ रही मेधा पाटकर यह कहते हुए उस प्रारूप पर केंद्रित हो जाती हैं, जो राष्टï्रीय सलाहकार समिति ने वर्ष 2006 में मंजूर किया था। तब समिति की अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं। मेधा ने पत्रकारों को बताया उस प्रारूप में व्यापक विकास नियोजन की नीति थी, जिसे  देश के जनआंदोलनों ने मिलकर तैयार किया था। भूअधिग्रहण कानून में संशोधन के बजाए सरकार को चाहिए कि उस प्रारूप को नीति का रूप दें। इससे देशभर में जारी अंधाधुंध विकास पर नियंत्रण होगा और गांव-शहर में सामंजस्य बना रहेगा। इससे खेत और किसान दोनों ही महफूज रहेंगे।

पैसा फेंको, तमाशा देखो

मेधा के मुताबिक कानून से सिर्फ पूंजीपतियों को फायदा होगा। वे पैसा फेंकेंगे और जमीनें खरीद लेंगे। कुछ राजनेता कानून को लागू करवाने की जल्दी में हैं, ताकि ताबड़तोड़ उन्हें 'राजनैतिक फायदाÓ मिल सके। जनआंदोलन चाहते हैं कि इस विषय पर राष्टï्रीय बहस हो। 

60 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि समाप्त

मेधा का कहना है कि यह मसला सिर्फ जमीन देने-लेने का ही नहीं है। इसका खाद्य सुरक्षा से भी नाता है। वर्ष 1990 से 2005 तक देशभर में 60 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को अधिग्रहित किया गया और इतनी जमीन पर खेती बंद हो गई।

अधिग्रहण करके पटक देते हैं जमीन
अधिग्रहण के नाम पर धोखे भी बहुत होते हैं। विकास योजनाओं के नाम पर जमीन ली जाती है और बाद में योजनाएं ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। मेधा का कहना है इंदौर, भोपाल जैसे शहरों में भी यह हो रहा है। कई बार जिस कार्य के लिए जमीन ली जाती है, वह उस पर किया ही नहीं जाता। 

राहुल गांधी के बयान के बाद चर्चा में आया मुद्दा

  • अंग्रेजों ने 1884 में बनाया था भूमि अधिग्रहण कानून। वर्ष 1994 में इस कानून में संशोधन किया गया, लेकिन खामियों के चलते अधिग्रहण में मनमानी जारी रही।
  • सिंगूर और नंदीग्राम में हिंसक टकराव के बाद भूमि अधिग्रहण कानून (संशोधन) विधेयक 2007 तैयार किया लेकिन खासतौर पर ममता बनर्जी के विरोध की वजह से यह रखा ही रह गया।
  • वर्तमान में उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के कारण यह विषय देश के सामने आया।
  • बुधवार को कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा 'भूमि अधिग्रहण एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। अलीगढ़ में जो हुआ वह अनुचित था। हमें उस पर गौर करने की जरूरत है।Ó
  • राहुल के बयान के बाद ही इस मुद्दे को व्यापक रूप से देखा गया और प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने कहा कि अगले सत्र में कानून में संशोधन विधेयक रखा जाएगा।  
  • विधेयक में जन उद्देश्य की रक्षा, बुनियादी संरचना या आम जनता के लिये उपयोगी किसी परियोजना के लिए अधिग्रहित होने वाली भूमि के रूप में पुनर्परिभाषित करने का प्रस्ताव है। विधेयक कहता है कि जिस अधिग्रहण में व्यापक पैमाने पर विस्थापन होने वाला हो, ऐसे मामले में उसके सामाजिक प्रभाव का आकलन किया जाना चाहिए।

 पत्रिका : २८ अगस्त २०१०

स्वाइन फ्लू संदिग्ध दो महिलाओं की मौत

- एक राजगढ़ निवासी, दूसरी इंदौर
- अधिकृत तौर पर हो चुकी सात मौतें 
 

स्वाइन फ्लू (एच-1 एन-1) के लक्षणों से पीडि़त दो महिलाओं की रविवार को मौत हो गई। दोनों के नाक के द्रव (स्वाब) के नमूने जांच के लिए जबलपुर भेजे गए हैं और रिपोर्ट आना शेष है। मृतक जमीला (30) इंदौर की निवासी है, जबकि कौशल्या बाई (35) रागगढ़ की। दोनों क्रमश: एमवाय अस्पताल और बांबे अस्पताल में भर्ती थीं। एमवायएच में ही भर्ती इंदौर के एक अन्य युवक में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। अगस्त में अब तक इंदौर में 17 रोगियों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई व इनमें से सात की मृत्यु हो गई।

मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. शरद पंडित ने बताया जिन महिलाओं की मौत हुई है, उनमें स्वाइन फ्लू के लक्षण थे। शनिवार को भेजे चार नमूनों में से एक की पॉजिटिव रिपोर्ट आई है, शेष तीन की रिपोर्ट अभी बाकी है। दो नए रोगियों के सेंपल भी जांच के लिए भेजे गए हैं। सूत्रों ने बताया जमीला को रविवार दोपहर ही एमवायएच में भर्ती किया गया था और शाम को उसकी मृत्यु हो गई।

आज से एमवायएच में ओपीडी
सोमवार से एमवायएच के केज्यूलिटी भवन में स्वाइन फ्लू के लिए प्रात: 8 से दोपहर 3 बजे तक विशेष ओपीडी शुरू हो जाएगी। मेडिसिन विभाग के डॉ. धमेंद्र झंवर ने बताया वर्तमान में मेडिसिन के रोगियों के साथ ही फ्लू के संदिग्ध मरीजों को देखा जा रहा है। फिलहाल अस्पताल की पांचवी मंजिल के वार्ड 26 में दो संदिग्ध मरीजों का उपचार जारी है।



 पत्रिका : ३० अगस्त २०१०

दायर बढ़ा रहा स्वाइन फ्लू
- सावधानी ही बचने का सबसे आसान रास्ता
- 29 दिन में मप्र में 18 मौतें
- चार महीने में देशभर में गईं 2024 जानें


हवा के जरिए फैलने वाले एच-1 एन-1 वायरस से होने वाले फ्लू (स्वाइन फ्लू) का दायरा पूरे देश में बहुत तेजी से बढ़ रहा है। चार महीने में देश में इससे 2024 लोगों की मौत हो चुकी है। अगस्त में मप्र में भी इसने पांव पसारे और 29 दिन में ही 18 रोगियों की मृत्यु का कारण बना। मोटे तौर पर रोगियों में से पांच फीसदी की मौत हो रही है।

 चौंकाते आंकड़े
- मई से 22 अगस्त तक देशभर में स्वाइन फ्लू के 38 हजार 730 मरीज सामने आए। इनमें से 2024 की मौत हो गई।
- सबसे अधिक 717 मौतें महाराष्टï्र में हुई। 340 मौतों के कारण गुजरात दूसरे क्रम पर है। मप्र में 45 मौतें हुईं।

अगस्त में मप्र के हाल
जिला             पॉजिटिव       मौत    भर्ती          गंभीर
इंदौर                      17            07        10            04
भोपाल                   21            05        23            15
जबलपुर                 29            05        13            00
रतलाम                   00            00        01            00
उज्जैन                    03            00        02            00ï
ग्वालियर                 01            01        01            00
दमोह                      01            00        01            00
कुल                        72            18        51            19
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डरने से नहीं सावधानी से चलेगी जिंदगी

डॉक्टरों का कहना है फ्लू का वायरस हवा में है और इससे डरने के बजाए सावधानी बरतने की आवश्यकता है। बाजार में कुछ टीके आए हैं, लेकिन हर व्यक्ति के लिए इन्हें लगा पाना संभव नहीं है।

सामान्य सर्दी-खाँसी एवं फ्लू में फक्र
सामान्यत: प्रतिवर्ष ठंड के मौसम में या उसके आसपास फ्लू होता है। सामान्य सर्दी-खाँसी के अलावा फ्लू में बुखार, हाथ-पैरों कमर में दर्द, सिर दर्द, थकावट आदि तेज लक्षण साथ में होते हैं। लक्षणों के आधार पर दोनों में अंतर करना संभव नहीं है, लेकिन स्वाइन फ्लू से पीडि़त व्यक्ति के संपर्क में आने से आशंका बढ़ जाती है।

सूअर (स्वाइन) से नहीं ताल्लुक
वायरस के संक्रमण के शुरुआती दौर से ही यह भ्रम है कि यह वही फ्लू है जो सूअरों में होता है। लेकिन असल में यह नया वायरस है। अत: सूअर के संपर्क में आने से या उसका मांस खाने से यह नहीं फैलता है।

ऐसे फैलता है स्वाइन फ्लू
1. संक्रमित व्यक्ति के खाँसने या छींकने से।
2. उन वस्तुओं को हाथ लगाने से जिसे संक्रमित व्यक्ति ने छुआ हो। संक्रमित व्यक्ति स्वयं के लक्षण आने के एक दिन पहले से सात दिन बाद तक इसे फैला सकता है।

खुद को बचाने के दस तरीके

1. जितना संभव हो हाथ साबुन से धोएँ।
2. यदि साबुन उपलब्ध न हो तो अल्कोहल आधारित क्लिनर से हाथ धोएँ।
3. संक्रमित व्यक्ति या ऐसा व्यक्ति जिसे स्वाइन फ्लू की आशंका हो, उससे दूरी रखें (कम से कम 6 फुट)।
4. यदि आपको स्वयं को स्वाइन फ्लू जैसे लक्षण हैं, तो घर में रहिए।
5. यदि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना भी पड़ता है, तो फेस मास्क या रेस्पिरेटर पहनें।
6. स्तनपान कराने वाली माताएँ स्वयं के संक्रमित होने पर ब'चे को दूध न पिलाएँ।
7. खाँसी या छींक आने पर टिशु पेपर का इस्तेमाल करें एवं उसे तुरंत डस्टबीन में फेंकें।
8. भीड़ वाली जगह पर न जाएँ।
9. पानी अधिक मात्रा में पिएँ।
10. भरपूर नींद लें, इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

स्वाइन फ्लू से एक और मौत

- शाजापुर से इलाज के लिए दो दिन पहले आए थे इंदौर
- मौत का आंकड़ा हो गया सात


स्वाइन फ्लू (एच1 एन1) से शनिवार को 35 वर्षीय एक युवक की मौत हो गई। वे शाजापुर निवासी थे और दो दिन पहले उन्हें इंदौर के बांबे अस्पताल में भर्ती हुए थे। इस मौत के बाद स्वाइन फ्लू से इंदौर में मृतकों की संख्या बढ़कर सात हो गई है। उधर, इसी रोग के पीडि़त चार नए लोग सामने आए हैं। विभिन्न अस्पतालों में उपचार जारी है।  

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. शरद पंडित ने बताया शाजापुर के सत्येंद्र को दो दिन पहले बांबे अस्पताल में भर्ती किया गया था। शनिवार को उनकी मौत हो गई। इसी अस्पताल में स्वाइन फ्लू के लक्षणों वाले तीन नए मरीज आए हैं। उनके नाम के द्रव (स्वाब) के सेंपल जबलपुर भेजे गए हैं। संदिग्धों में दो महिलाएं हैं। एक राजगढ़ की हैं, जिनकी उम्र 35 है, जबकि दूसरी 24 वर्षीय हैं व धार जिले से हैं। एक अन्य युवक की उम्र 30 है और वे इंदौर के सुखलिया में रहते हैं। अस्पताल प्रबंधक राहुल पाराशर ने बताया सत्येंद्र के शव को शाजापुर भेज दिया गया है। दूसरे मरीजों का ïतय प्रोटोकॉल के अनुसार उपचार जारी है।

अब तक 16 पॉजिटिव
शनिवार को आई रिपोर्ट के बाद स्वाइन फ्लू के रोगियों की अधिकृत संख्या 16 हो गई है। स्वास्थ्य विभाग अब तक 25 मरीजों के नाक से द्रव (स्वाब) के नमूने जबलपुर की लेब में भेज चुका है। पॉजिटिव मरीजों में से सात की मौत हुई है। इनमें से एक इंदौर, जबकि शेष आसपास के जिलों से है।

एमवायएच में सोमवार से ओपीडी 
स्वाइन फ्लू के बढ़ते मरीजों को देखते हुए एमवाय अस्पताल में स्वाइन फ्लू की स्क्रीनिंग के लिए सोमवार से ओपीडी शुरू होगी। अगर किसी को स्वाइन फ्लू की जरा भी आशंका हो तो वह एमवायएच में जांच करवा सकता है। सूत्रों का कहना है कि ड्यूटी के लिए पैरामेडिकल स्टाफ का बंदोबस्त नहीं हो सका है। 


 
पत्रिका : २९ अगस्त २०१०

निगम सभापति शंकर यादव केस में 6 सितंबर को सुनवाई

गुल्टू हत्याकांड में नगर निगम सभापति शंकर यादव व उनके दोनों भाइयों राजू व दीपक को आरोपी बनाए जाने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट इंदौर में अब 6 सितंबर को सुनवाई होगी। जस्टिस पीके जायसवाल की एकल पीठ के समक्ष शुक्रवार को परिवादी ने कुछ समय मांगा था।
 यादव की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट आनंद मोहन माथुर व अभिनव धानोदकर उपस्थित हुए, जबकि परिवादी मृतक की मां बसंतीबाई की ओर से एडवोकेट एम. सक्सेना मौजूद थे। उल्लेखनीय है कि गुल्टू हत्याकांड में बसंतीबाई के आवेदन पर सेशन कोर्ट ने शंकर यादव सहित तीनों भाइयों को आरोपी बनाते हुए दो बार गिरफ्तारी वारंट जारी किए किंतु पुलिस उन्हें ढूंढ नहीं सकी। अदालत ने तीसरी बार वारंट जारी करते हुए एक सितंबर तक पेश करने के आदेश दिए हैं।

उधर हाईकोर्ट के फैसले पर ही सभापति का भविष्य निर्भर है। महापौर कृष्णमुरारी मोघे के साथ ही भाजपा को भी इस फैसले का बेसब्री से इंतजार है। फैसला के आधार पर यादव को लेकर पार्टी अगली कार्रवाई करेगी। हालांकि पार्टी के यादातर नेता उन्हें हटाए जाने के पक्ष में है। 


मोघे के चुनाव का मामला हाईकोर्ट पहुंचा

महापौर कृष्णमुरारी मोघे के चुनाव को चुनौती देने का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। हाईकोर्ट ने जिला निर्वाचन अधिकारी और सेशन कोर्ट में केस दायर करने वाले अजय सेंगर को नोटिस जारी किया है। सेंगर ने सेशन कोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी थी और वहां उनकी अर्जी ग्राह्य हो गई थी। हाईकोर्ट में मोघे की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट शेखर भार्गव और एडवोकेट अमित उपाध्याय ने पैरवी की। एडवोकेट उपाध्याय ने बताया मूल अर्जी के बाद कुछ ओर बातें जोड़ दी गई, इसी को लेकर याचिका दायर की गई है। सेंगर के मुताबिक मतपत्रों की गणना में गड़बड़ी हुई, इसलिए मोघे निर्वाचित हुए।

पत्रिका: २८ अगस्त २०१० 

राजस्थान के फैसले से मध्यप्रदेश को रोजगार

 - वहां लगा प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध, यहां उपजा कागज की थैलियों का धंधा
- राजस्थान से उठी मांग, जितना माल तैयार हो, सब भेज दो



राजस्थान के एक फैसले से मध्यप्रदेश के हजारों हाथों को काम मिल गया। हाथों से कागज की थैली बनाने में माहिर मप्र के बाशिंदों के पास इन दिनों फुर्सत नहीं है, क्योंकि उन्हें कई सौ क्विंटल माल बनाकर पड़ोसी राज्य को भेजना है। वहां इसी महीने की पहली तारीख से प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगा दी गई है।

राजस्थान के फैसले से मप्र की औद्योगिक नगरी इंदौर में मृत हो चुके कागज की थैली के कारोबार को एक तरह से नई जान मिल गई है। आजाद नगर निवासी मुमताज बी कहती हैं करीब 15 बरस पहले थैलियां बनाते थे, तब हमें एक या डेढ़ रुपए मिलता था, अब पांच से सात रुपए किलो मिल रहा है। मांग का इतना दबाव है कि फुर्सत ही नहीं मिल रही है।

एक ही मशीन, कितना लोड सहे 
इंदौर में थैलियां बनाने की एक ही मशीन है। यह इन्वोफ्रेंडली पेपर बैग कंपनी में लगी है। इसके सुपरवाइजर सीएच विश्वकर्मा ने बताया उदयपुर, चित्तौढ़, कोटा, बांसवाड़ा सारे शहरों से खाकी थैलियों की इतनी मांग आ रही है कि काम करने वाले कम पड़ रहे हैं। करीब 20 टन का आर्डर पेंडिंग है। मशीन एक ही है और इसकी भी सीमित क्षमता है। फिलहाल करीब तीन क्विंटल थैलियां रोज बना रहे हैं। उन्होंने बताया मशीन पर केवल कागज रोल से ही थैलियां बन सकती हैं।

घर ही नहीं दुकानों पर शुरू हो गया निर्माण 
आमतौर पर थैलियां महिलाओं और ब'चों द्वारा घरों पर बनाई जाती हैं, लेकिन मांग को देखते हुए रद्दी के कुछ व्यापारियों यह काम दुकानों पर ही शुरू कर दिया है। सिंधी कॉलोनी के अग्रसेन वेस्ट पेपर के संचालक अशोक अग्रवाल ने बताया नब्बे के दशक में भी मैं थैलियां बनाया करता था। मैग्जीन, शेयर पेपर और चिकने कागजों की थैलियों की विशेष मांग है। एक व्यक्ति एक दिन में 10 से 12 किलो थैलियां बना लेता है। 






घोषणा तो यहां भी हुई, पर अमल नहीं
नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने पिछले दिनों इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में प्लास्टिक की थैलियों के पूर्ण प्रतिबंध की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक इसे अमल में नहीं लाया जा सका है।


दुकानदारों के लिए फायदेमंद हैं ये थैलियां


प्लास्टिक की थैलियां सामान के साथ तोलने में चली जाती हैं, लेकिन उसका वजन नाममात्र का ही रहता है। कागज की थैली में सामान देने पर दुकानदार को फायदा होता है, क्योंकि जिस भाव में थैली मिलती है उससे ज्यादा में वह तुल जाती है।
- नारायण कालरा, संचालक, जेके वेस्ट पेपर

मप्र में तो कागज की थैलियों मांग नहीं है। यहां तो सूखी चाय और कचोरी समोसे वाले ही इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि इंदौर में खाकी कागज की थैली बनाने वाली एकमात्र यूनिट भी ऑक्सीजन पर थी। अब उसे ताकत मिलेगी।
- अशोक गोयल, संचालक, अशोक ट्रेडर्स

कागज की थैली का काम शुरू करने वाले लोग डावांडोल हैं। उन्हें डर है कि कहीं राजस्थान सरकार फैसला वापस न ले ले। ऐसा हुआ तो वे बेरोजगार हो जाएंगे।
- राजेश इरानी, मैनेजर, न्यू गुरुनानक ट्रेडर्स 


पुराने कारोबार का नया उदय
'जबरदस्त मांग के कारण भावों में पांच रुपए तक बढ़ोतरी हो गई है। अखबार की रद्दी के दाम भी बढ़ा दिए हैं। दरअसल, राजस्थान में थैली का उद्योग नहीं है, इसलिए यहां से माल जा रहा है। भीलवाड़ा, चित्तौढ़, उदयपुर, कोटा, बांसवाड़ा, जयपुर तक से थैलियों के लिए फोन आ रहे हैं। वहां की सरकार के निर्णय से मप्र में बंद हो चुके कारोबार का नए सिरे से उदय हो रहा है। इससे हजारों लोगों का रोजगार का अवसर मिल गया है।Ó
- प्रवीण पाटनी, अध्यक्ष, इंदौर प्लास्टिक पैकिंग मटेरियल निर्माता एवं विक्रेता संघ


 
पत्रिका : २८ अगस्त २०१०

टेलीग्राम को माना जनहित याचिका

- जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के खिलाफ मप्र के चीफ जस्टिस को इंदौर से भेजा था तार

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सयैय्द रफत आलम ने गुरुवार को एक टेलीग्राम को जनहित याचिका माना है। उन्हें यह टेलीग्राम इंदौर के न्यायिक कार्यकर्ता सत्यपाल आनंद ने पूरे राज्य में जारी जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के बारे में भेजा था। आनंद ने कोर्ट से हड़ताली डॉक्टरों के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस दायर करने की मांग की है। टेलीग्राम को याचिका मानने का मध्यप्रदेश में संभवत: यह पहला मामला है।

 बुधवार प्रात: 9.15 बजे आनंद ने चीफ जस्टिस को एक तार भेजा था। इसमें उन्होंने मांग की थी डॉक्टरों की हड़ताल से आम जनता को संविधान में प्रदत्त जीवन सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार खतरे में आ गया है। डॉक्टरों को तत्काल सेवा में बुलाया जाए और अस्पतालों की सेवाएं बहाल की जाए। गुरुवार दोपहर 4 बजे आनंद को हाईकोर्ट से सूचना मिली कि उनके तार को लेटर पीटिशन (पत्र याचिका) माना गया है। इस पर शुक्रवार को जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई होगी।

जा नहीं पाएंगे आंनद
आनंद ने 'पत्रिकाÓ को बताया आंखों की बीमारी के कारण मैं जबलपुर नहीं जा सकूंगा। मैंने कोर्ट से आग्रह किया है मेरी ही जनहित याचिका (8340/09) में 18 नवंबर 2009 को हुए आदेश के मुताबिक राज्य सरकार और डॉक्टर को नोटिस जारी किए जाएं। उन्होंने अगली सुनवाई इंदौर हाईकोर्ट में ही रखने का निवेदन भी कोर्ट से किया है।

लोगों के लिए खुला रास्ता
हाईकोर्ट के इस कदम से लोगों के लिए याचिका दायर करने का एक ओर रास्ता खुल गया है। अखबार, पोस्टकार्ड और किसी पत्र के जरिए तो पहले भी पत्र याचिकाएं मंजूर होती रही हैं। आनंद ने बताया मुझे हाईकोर्ट के इस फैसले की खुशी है, क्योंकि इससे न्यायिक क्षेत्र में एक नई शुरुआत होगी। किसी के मौलिक अधिकार का हनन होता है, तो उसे हाईकोर्ट में टेलीग्राम के जरिए सूचना भेजना चाहिए, ताकि न्यायपालिका उस दिशा में कदम उठा सके।

पत्रिका : २७ अगस्त २०१० 



जूडॉ हड़ताल पर कोर्ट ने सरकार से शपथपत्र पर मांगा जवाब
- टेलीग्राम पर मंजूर हुई जनहित याचिका पर जबलपुर में सुनवाई


सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हुई जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के विरोध में टेलीग्राम के जरिए मंजूर हुई जनहित याचिका पर जबलपुर हाईकोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने हड़ताल पर राज्य सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। सरकार को यह जवाब शपथपत्र पर देना होगा।

हड़ताल से लोगों की जीवन सुरक्षा के अधिकार के खतरे में पडऩे को आधार बनाकर आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने बुधवार को मप्र के चीफ जस्टिस को टेलीग्राम भेजकर सरकार को निर्देश देकर तत्काल डॉक्टरों को बुलाने का आग्रह किया था। टेलीग्राम को गुरुवार को याचिका माना गया और शुक्रवार को चीफ जस्टिस सयैय्द रफत आलम और आलोक अराधे की युगलपीठ में सुनवाई हुई।

केस की जानकारी देरी से मिलने और बीमारी के कारण आनंद केस के दौरान उपस्थित नहीं हो सके। कोर्ट ने भी यह बात रिकॉर्ड पर ली कि आनंद को सूचना देरी से मिली। आनंद ने 'पत्रिकाÓ को बताया उन्हें खुशी है कि हड़ताल समाप्त होने के बाद भी कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की और सरकार को नोटिस दिया। अब सरकार को यह बताना होगा कि किन कारणों से हड़ताल हुई और लोगों के मौलिक अधिकारों का किन परिस्थितियों में उल्लंघन हुआ।

पत्रिका : २८ अगस्त २०१०