शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

एकता का दुरुपयोग


इंदौर के सरकारी मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर राह भटक गए हैं। अनजाने में ये डॉक्टर 'एकता में ताकत होती है' सूत्र वाक्य के अर्थ बदल रहे हैं। करीब ढाई सौ डॉक्टरों का यह समूह इस बार एक अनुचित बात के लिए संगठित हो गया है। इनके एक साथी ने कॉलेज से जुड़े एमवाय अस्पताल में काम करने वाले एक अदने कर्मचारी के साथ मारपीट की, केस दर्ज हुआ और गिरफ्तारी हो गई। हड़ताल के शौकीन कुछ डॉक्टरों के समूह को यह बात नागवार गुजरी। आव देखा न ताव, स्टेथेस्कोप और एप्रेन उतार कर काम बंद करने का ऐलान कर दिया। यह भी नहीं सोचा कि किसी के साथ मारपीट करना कानून का उल्लंघन है। इन डॉक्टरों को लगता है कि एकता की ताकत के आगे कानून को भी झुका लेंगे, अनैतिक मांग भी मान ली जाएगी। इनकी इस सोच के पीछे सरकार के वे कदम हो सकते हैं, जो पिछली हड़तालों को खत्म करने के लिए उठाए गए। सभी जानते हैं, सही-गलत सारी बातों को मानकर सरकार हमेशा इन डॉक्टरों को काम पर बुलाती रही है।
जिन डॉक्टरों का कानून में भरोसा नहीं, जिन डॉक्टरों को इस बात की परवाह नहीं कि उनके नहीं होने से सैंकड़ों  रोगियों की जान आफत में आ जाएगी, जिन डॉक्टरों को अपने हित के अलावा कोई दूसरा हित न दिखता हो, उन्हें क्या कहेंगे? आम तौर पर ऐसा करने वालों को दंभी, घमंडी और मतलबी कहा जाता है। इन डॉक्टरों को अपनी एकता पर इतना ही गरूर है तो एक होकर उन रोगियों की मदद के लिए आगे क्यों नहीं आते जो उपचार के लिए एमवाय अस्पताल तक भी नहीं पहुंच पाते? उन रोगियों को क्यों नहीं संभालते जो एमवायएच की दहलीज पर ही पड़े रहकर तड़पते रहते हैं? शहर की उन गंदी या तंग बस्तियों में जाकर लोगों की सेहत क्यों नहीं जांचते? देशभर में जारी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में कूद कर दवा कंपनियों के साथ 'पेशेवर' डॉक्टरों की सांठगांठ उजागर क्यों नहीं करते? डॉक्टरों को खयाल रखना चाहिए कि हड़ताल करके अपनी बात पर सरकार की हां भरवाने के बाद क्या उन्हें वे रोगी माफ कर देंगे जो  इस दौरान इलाज को तरसते रहे और दर्द से तड़पते रहे? गरीबों की उखड़ती सांसें क्या इन्हें बददुआएं नहीं देंगी? डॉक्टरों से आम जनता की सहानुभूति घटती जा रही है, ऐसे में इस पेशे की नई पौध को संभलकर चलने की जरूरत है। हां, जरा सेवा और समर्पण की अपनी उस शपथ और संकल्प को भी याद करें जो डॉक्टर का तमगा लेते वक्त ली गई थी। 
 
पत्रिका ३००९२०११ 

शनिवार, 3 सितंबर 2011

सर्कस का मैदान

बंगाली चौराहा से बायपास जाने वाली सड़क है यह... इसे पार करना तो आपको सर्कस आना जरूरी है...

आईटी ने अटकाया आईटी पार्क का काम

- सॉफ्टवेयर में आई खराबी, टेंडर प्रक्रिया रूकी, आगे बढ़ेंगी तारीखें
- छह महीने में विकास कार्य पूरा करने का लक्ष्य, एक माह तो बीत गया


पांच साल से बनकर तैयार क्रिस्टल आईटी पार्क के विकास में सूचना प्रौद्योगिकी ही परेशानी बन गया। इसके अटके कामों को शुरू करने का पहला चरण शुक्रवार को शुरू होना था, परंतु ई-टेंडरिंग के सॉफ्टवेयर में आई खरीबी के कारण काम अटक गया। वे टेंडर अपलोड ही नहीं हो सके, जिनके आधार पर टेंडर पूर्व की कार्रवाई पूरी होना थी। इससे टेंडर की पूरी प्रक्रिया की नई तारीखें घोषित की जाएंगी।

औद्योगिक विकास केंद्र निगम इंदौर ने जुलाई में ही आईटी पार्क के शेष कामों को पूरा करने का जिम्मा मप्र सड़क विकास निगम (एमपीआरडीसी) को सौंपा है। उसने 23 करोड़ रुपए के टेंडर बुलाए थे। शुक्रवार को भोपाल में टेंडर की प्री-बिड (बोली के पहले) बैठक होना थी। सभी बड़ी निर्माण कंपनियों के नुमाइंदे इसमें मौजूद थे, लेकिन सरकार के आईटी विभाग की वह वेबसाइट ही नहीं खुली जिसके जरिए ई-टेंडर की प्रक्रिया पूरी की जाती है।

आईटी विभाग के पास टेंडर का लोड अधिक हो जाने के कारण 7 सितंबर तक ई-टेंडरिंग की साइट को बंद किया है। इसी कारण प्री-बिड बैठक नहीं हो सकी। नई तारीखें जल्द घोषित कर दी जाएगीं। पहले टेंडर प्रक्रिया 23 सितंबर तक पूरी होना थी, उसमें भी अब बदलाव करना होगा।
- पीयूष चतुर्वेदी, उप महाप्रबंधक, एमपीआरडीसी


एसईजेड का सीमित समय
केंद्र सरकार ने दो साल बाद जुलाई में ही एक साल के लिए आईटी पार्क को एसईजेड (स्पेशल इकॉनॉमिक जोन) का दर्जा दिया है। इस बीच में ही इसकी बिक्री की प्रक्रिया पूरी होने की अधिक संभावना है। इसमें निर्माण कार्य में देरी होने से मामला खींच सकता है। 
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नई दरों का पेंच
एमपीआरडीसी ने वही टेंडर फिर से निकाला है, जो काम नागार्जुन कंस्ट्रक्शन कंपनी ने अधूरा छोड़ दिया था। इसी कारण काम की दर 23 करोड़ आंकी गई हैं। यह वर्ष 2003 की निर्माण लागत है। वर्तमान लागत करीब 60 करोड़ होती है। विभागीय सूत्र बताते हैं, इस राशि के लिए एकेवीएन के तैयार होने में संदेह है क्योंकि नागार्जुन कंपनी ने एकेवीएन के खिलाफ केस दायर कर रखा है। कंपनी ने एकेवीएन से करोड़ों का हर्जाना मांगा है।
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कई बाधाओं का पार्क
2003 : निर्माण शुरू हुआ, तब आस बंधी थी कि इंदौर आईटी सिटी के रूप में विकसित होगी।
2006 : आईटी पार्क बनकर तैयार होना था, लेकिन नागार्जुन कंपनी के साथ करार टूट गया।
2009 : केंद्र सरकार ने एसईजेड का दर्जा देकर रखा, फिर भी सरकार इसमें किसी कंपनी को लाने में सफल नहीं हुई। 
2010:  केंद्र ने एसईजेड का दर्जा छीना, इससे आईटी सेक्टर को मिलने वाली रियायतें कम हो गई और संभावना टूटी। अक्टूबर में खजुराहो इन्वेस्टर्स समिट में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया के साथ एकेवीएन ने करार किया।
2011 : जनवरी में एसईजेड का दर्जा दिलवाने और रुके काम पूरे करने की प्रक्रिया शुरू करने का काम तेज हुआ। जुलाई में केंद्र ने एसईजेड का दर्जा दिया। इसी महीने में एकेवीएन एमडी राघवेंद्र सिंह ने निर्माण कार्य पूरे करने की पहल करते हुए एमपीआरडीसी को जिम्मा सौंपा।
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पत्रिका, 3 September 2011 

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

बीस मिनट में तीन किलोमीटर

- राजीव गांधी प्रतिमा से राजेंद्र नगर थाने तक की  सड़क
- महाराष्ट्र के मुसाफिर बोले, हमारे यहां ऐसी सड़क हो तो लोग आग लगा दें


आईए, आपको इंदौर की एक  ऐसी सड़क की सैर कराते हैं, जिसकी लंबाई तीन किमी है और इसे पार करने में वक्त लगता है बीस मिनट। इस बीच में आपकी गाड़ी फंस जाए, तो पता नहीं कितने घंटों बाद आपको राहत मिल सकेगी।
सड़क राजीव गांधी प्रतिमा चौराहा (चौइथराम मंडी चौराहा) से शुरू होती है। शुरू होते ही आपकी परीक्षा शुरू हो जाती है। करीब दो-दो फीट गहरे गड्ढे हैं ओर इनमें पानी भरा हुआ है। जरा सी गफलत हुई और गाड़ी पलट जाएगी। परसों ही गेहूं से भरा ट्रक फंस गया था। उसके एक दिन पहले लकड़ी से लदा ट्राला अड़ गया था। जेसीबी के जोर से गाडिय़ां बाहर आ सकीं। थोड़ा आगे चलते हैं तो गायत्री कुंज और मां विहार कॉलोनी के गेट आते हैं। इनके सामने सड़क टीलों में तब्दील हो चुकी है। थोड़ा आगे जाने पर इंडियन आइल पेट्रोल पंप आता है। यहां जमीन और गड्ढे ही बचे हैं, सड़क लुप्त हो गई है। सरकारी फलबाग के सामने दो गहरे-गहरे ज्वालामुखी के मुंह जैसी आकृतियां जमीन में उकर आई हैं। इनसे बचकर आगे चलें तो राजेंद्रनगर थाने वाले तिराहा है। यहां एक चौथाई मार्ग बचा है।

ट्रक के साथ नापा समय
एमपी-09-एचजी-3788 नंबर के ट्रक में माल लाद कर इंदौर आ रहे नंदू गेहलोत की गाड़ी के साथ पत्रिका टीम ने रास्ता पार करने में खर्च होने वाला समय  नापा। बीस मिनट से अधिक खर्च होने के बाद नंदू अपनी गाड़ी को राजीव गांधी प्रतिमा के सामने लाकर खड़ा कर सका।

रांग साइड घुस रहे लोग
राह इतनी मुश्किल है कि वाहन चालकों को रांग साइड मेें भी घुसना पड़ रहा है। रुट नंबर 2 के सिटी बस चालक ने बताया, ऐसा नहीं करेंगे तो गाड़ी फंस जाएगी। कभी पलट गई तो पता नहीं क्या होगा?

'हमारे यहां इन्हें कुआं कहते हैं
महाराष्ट्र से कारोबार के सिलसिले में इंदौर आए होलाराम ने बताया, इस सड़क पर आकर तो मैं चौंक गया। हमारे यहां इस तरह की सड़क को कुआं कहते हैं। मुझे पहले पता होता कि ऐसे हाल हैं तो इस रुट से कभी नहीं आता।

'रोज महिला-बच्चे फंसते हैं यहां 
गड्ढों के पास रहने वाली सुशीला नागर कहती हैं, हम रोज लोगों को यहां गिरते देखते हैैं। महिलाएं बच्चों को स्कूल छोडऩे जाती हैं। उन्हें देखकर डर लगता है। कई बार फंस जाते हैं, तो हम जाक र मदद करते हैं।

तीन किमी के सफर में छह रुकावटें
(राजीव गांधी प्रतिमा से राजेंद्र नगर थाने तक)

पहली (100 मीटर पर)
चोइथराम मंडी से निकलते ही
दूसरी (500 मीटर पर)
गायत्रीकुंज कॉलोनी के बाहर
तीसरी (1.5 किमी पर)
पुलिया पार करके आया तोलकांटा
चौथी (1.7 किमी पर)
इंडियन आइल पेट्रोल पंप के सामने
पांचवी (2.2 किमी पर)
फलबाग के सामने
छठी (3 किमी पर)
राजेंद्रनगर थाना तिराहे पर

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बंगाली चौराहा से बायपास का बुरा हाल
यही हाल माधवरास सिंधिया प्रतिमा चौराहा (बंगाली चौराहा)से बायपास जाने वाली सड़क का भी है। यहां भी हम आपको बता रहे हैं, बाधाएं। इन्हें पार किए बगैर आप बायपास नहीं पहुंच सकते हैं।

तीन किमी के सफर में पांच रुकावटें
(बंगाली चौराहा से बायपास तक)

पहली (शून्य किमी पर)
चौराहे पर ही सड़क उखड़ी हुई है।
दूसरी (आधे किमी पर)
शहनाई रेसीडेंसी सेकंड के पास, पानी बह रहा है। पैदल चलना सर्कस में करतब दिखाने जैसा है।
तीसरा (पौन किमी पर)
एसआर पेट्रोल पंप के सामने । गिट्टी से सामना होगा।
चौथा (1.25 किमी पर)
शगुन रेसीडेंसी और संचार नगर बस स्टॉप पर।
पांचवा (2 किमी पर)
भारत पेट्रोल पंप के सामने दो गड्ढे जो अचानक सामने आ जाते हैं।
छठा (तीन किमी पर)
शराब की दुकाने के ठीक पहले सड़क के किनारे ध्वस्त हो चुके हैं।
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बारिश के बाद सुधरेंगे हाल
प्र- चोइथराम मंडी से राजेंद्रनगर थाने तक और बंगाली चौराहा से बायपास तक की सड़कें टूट चुकी है?
उ- जी हां, हालात तो उसकी खराब है ही।
प्र- कब बनेगी यह सड़क ?
उ- टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई है। संभवत: बारिश के बाद ही शुरुआत होगी।
प्र- इस बीच में क्या करेंगे?
उ- अभी तो कुछ भी करने का कोई अर्थ नहीं है। गिट्टी डालेंगे तो वह भी टूट जाएगी।
(पीडब्ल्यूडी चीफ इंजीनियर आरके काला से सीधी बात)

पत्रिका  ०२ सितम्बर २०११ 

दिल्ली ने मांगी इंदौर के टोल की रिपोर्ट

इंदौर-देवास फोरलेन और इंदौर बायपास पर टोल शुरू करने से उपजे विरोध को देखते हुए दिल्ली के अफसरों ने इंदौर से रिपोर्ट तलब की है। इंदौर के अफसरों ने गुरुवार शाम को ही रिपोर्ट भेज भी दी है। हालांकि, टोल के टलने की संभावनाएं कम ही हैं।

हमने इंदौर में हुए विरोध की रिपोर्ट मांगी है। सभी संभावनाओं पर विचार किया जाएगा। वैसे, देशभर में इस तरह के टोल जब भी शुरू होते हैं, विरोध होते हैं। जो कंपनी टोल लगा रही है,  उससे सरकार ने इसके लिए करार किया है। टोल वसूलने के साथ ही कंपनी पर कुछ शर्तें भी लगाई गई हैं। जैसे, मार्ग पर कोई बाधा नहीं आएगी। निर्माण पूरा करने के दौरान वाहनों को परेशानी नहीं आना चाहिए। इन शर्तों का कंपनी पालन नहीं करे, तो  दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
- एके मिश्रा, महाप्रबंधक, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (मप्र-छत्तीसगढ़)

पहला दिन है, परेशानी तो आएगी ही
प्र- टोल पर पहले ही दिन भारी गड़बड़ी देखी गई, सॉफ्टवेयर तक ठीक से काम नहीं कर रहा था, क्या ट्रायल नहीं लिया गया ?
उ- ट्रायल लिया गया था, लेकिन पहले दिन तो परेशानी होती ही है। एक दो दिन में ठीेक  तरह से काम शुरू हो जाएगा।
प्र- टोल पर हुए विरोध के बारे में उच्च अधिकारियों ने जानकारी मांगी है क्या?
उ- हां, रिपोर्ट मांगी गई है और उन्हें दे भी दी गई है।
प्र- क्या टोल के स्थगित होने की कोई संभावना है ?
उ- देखिए, यह मसला नीति से जुड़ा है। आमतौर पर टोल पर रियायत नहीं दी जाती है।
(एनएचएआई इंदौर के परियोजना निदेशक एस.के. सिंह से चर्चा)


इस टोल से बचने के रास्ते भी मौजूद 
टोल टैक्स लागू जरूर हो गया है लेकिन लोग चाहेंगे तो कुछ वैकल्पिक रास्तों से गुजरकर इंदौर बायपास पर लगने वाले इससे बचा भी जा सकता है। दरअसल, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण  (एनएचएआई) की कुछ शर्तें इसमें मदद करेंगी। 

टैक्स उन्हीं पर लगेगा जो बायपास के मांगलिया जंक्शन पर बने टोल प्लाजा को क्रॉस करेंगे। कार वाले 35 के बजाय 10 रु. देना चाहते हैं तो वे खंडवा रोड, नेमावर रोड, व्हाइट चर्च लिंक रोड, कनाडिय़ा रोड और एमआर-10 जंक्शन से शहर की ओर मुड़कर एबी रोड के शहरी हिस्से से गुजर सकेंगे।  

देवास की ओर से आने वाले कार चालक टैक्स बचाना चाहते हैं तो उन्हें मांगलिया जंक्शन से इंदौर शहर के एबी रोड पर आना पड़ेगा। इससे उन्हें ओल्ड एबी रोड पर बने टोल प्लाजा में सिर्फ 10 रुपए का टैक्स देना होगा और ये एबी रोड होकर एमआर-10 या अन्य वैकल्पिक मार्गो से बायपास तक आ सकेंगे।

शहरी क्षेत्र को फायदा देने के लिए प्रावधान
एनएचएआई के परियोजना निदेशक एसके सिंह ने बताया, बायपास के लीकेजेस से लोग टैक्स बचा सकेंगे। ऐसा एनएचएआई ने शहरी क्षेत्र में आने-जाने वाले लोगों को राहत देने के लिए किया है, इसीलिए एबी रोड पर कम दरों वाला टोल प्लाजा बनाया है। 

भोपाल आना-जाना हुआ और महंगा
फिलहाल इंदौर से भोपाल आने-जाने वाले कारचालकों को देवास बायपास से भोपाल के बीच चार टोल प्लाजा पर करीब 90 रु. देना पड़ते हैं।  ओल्ड एबी रोड और बायपास के टोल प्लाजा शुरू होने से कार चालकों को क्रम से 10 व 35 रु. देना पड़ेंगे। ऐसे में एबी रोड से भोपाल जाने वालों को 100 और बायपास होकर भोपाल जाने वालों को 125 रुपए देना पड़ेंगे। यदि 24 घंटे में आना-जाना हो रहा है और वाहनचालक वापसी का अग्रिम टैक्स देना चाहता है तो उसे वापसी के टैक्स में 50 फीसदी रियायत मिलेगी। 

सरकार ने इसलिए दिया वसूली का अधिकार
केंद्र ने 325 करोड़ रुपए की लागत से इंदौर-देवास फोरलेन और इंदौर बायपास (कुल लंबाई 45 किमी) को फोरलेन से सिक्स लेन में बदलने का प्रोजेक्ट मंजूर किया है। इसके तहत बायपास पर करीब 20 किमी लंबी सर्विस रोड भी बनाई जाना हैं जो अलग-अलग हिस्सों में होगी। इसी काम के ऐवज में कंपनी को पहले ही टैक्स वसूली का अधिकार दिया गया है। 

दो साल में पूरा करना होगा काम
एनएचएआई ने टोल वसूली के साथ ही यह शर्त भी लगाई है कि दो वर्ष में सिक्स लेन सड़क पूरी बना ली जाए। ऐसा नहीं करने पर कंपनी पर मोटा दंड लगाया जाएगा।

    पत्रिका, ०२ सितम्बर २०११

सोमवार, 3 जनवरी 2011

पता गलत, रिकॉर्ड चोरी

- विक्रयकर विभागीय अल्पआय वाले चतुर्थ वर्ग श्रेणी कर्मचारी हाउसिंग सोसाइटी में कई घपले


मप्र विक्रयकर विभागीय अल्पआय वाले चतुर्थ वर्ग श्रेणी कर्मचारी हाउसिंग सोसाइटी में एक नहीं कई गड़बडिय़ां हुई है। गड़बडिय़ों के लिए दस लोगों पर आरोप सिद्ध हो चुके हैं। पत्रिका के पास मौजूद दस्तावेजों से साफ होता है कि सोसाइटी के कई वर्षों के दस्तावेज गायब हैं।

प्रबंधक के घर पर ऑफिस
जब सोसाइटी का पंजीयन हुआ था तब पता जेल रोड स्थित मदन कोठी पर था। बाद में दो ऑफिस और खुल गए। एक हरसिद्धी में व दूसरा खजराना में। सोबरन सिंह जब महाप्रबंधक बने तो उन्होंने अपने घर 101 चांदनी अपार्टमेंट, बैंक कॉलोनी पर ऑफिस खोल लिया। नियमानुसार यह गलत है।

आयकर विभाग के पास रिकॉर्ड
1991-92 के पहले तक रिकार्ड तत्कालीन कोषाध्यक्ष नबी मोहम्मद के पास था। 23 मार्च 1998 को खजराना ऑफिस पर चोरी हुई व मूल रिकॉर्ड चोरी हो गया। बाद में एक मामले में मयूरनगर निवासी मुश्ताक पिता इदरिस के यहां डले एक आयकर छापे में सोसाइटी का कुछ रिकॉर्ड जब्त किया गया। यह आज भी आयकर विभाग के पास ही है। 

अपनों को बना दिया सदस्य
सोसाइटी को वर्ष 1996-97 में खजराना की जमीन मिली परंतु इसके पहले ही सदस्य बनाना व निकालना जारी रहा। संचालक मंडल ने पद का दुरुपयोग करते हुए सदस्य बनाए। सहकारिता विभाग ने इसी कारण संचालक मंडल के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज करने की सिफारिश की है।

महाप्रबंधक की गलत नियुक्ति
सोसाइटी अध्यक्ष किरण इंगले ने अप्रैल 1995 को सोबरन सिंह को महाप्रबंधक नियुक्त किया गया। उस वक्त वे सोसाइटी के सदस्य थे। नियमानुसार यह नहीं किया जा सकता है।



ये दस लोग दोषी साबित
सहकारिता विभाग की एक जांच में मौजूदा कर्र्ताधर्ता सोबरनसिंह के साथ ही भूतपूर्व अध्यक्ष किरण इंगले, उपाध्यक्ष रतनलाल राठौर, सचिव प्रदीप दुबे, संचालक रामआसरे मिश्रा, रमेश कुमार महिपाल, पुष्पलता घौसरिया, लियाकत अली, नवी मोहम्मद व शफी मोहम्मद पर पद के दुरुपयोग का आरोप साबित हो चुका है। उधर, एक कोर्ट केस में गुलाम नबी को रिकॉर्ड चोरी का आरोपी साबित किया है।

जांच अभी अधूरी है
सोसाइटी की पूरी जांच नहीं हो सकी है। सहकारी निरीक्षक प्रमोद तोमर व मोनिका सिंह ने तो अंतरिम निरीक्षण रिपोर्ट सौंपी है। इसमें जिन पर आरोप साबित हो चुका है, उन पर कार्रवाई की जाएगी।
- महेंद्र दीक्षित, उपायुक्त, सहकारिता विभाग

जमीन व सोसाइटी मेरे पास
सहकारिता विभाग ने मुझे दोषी बताया है, जो कि गलत है। सोसाइटी का मैं वर्तमान अध्यक्ष हूं। इतना ही नहीं खजराना की पांच एकड़ जमीन भी सरकार ने मेरे नाम की है। चुनाव करवाकर मैं अपने हिसाब से जमीन के प्लॉट वितरित करुंगा।
- सोबरन सिंह, सोसइटी के कर्ताधर्ता



Patrika 03-01-2011

मरीज एमवायएच के, ठिकाना जूनी कसेरा बाखल में

- ड्रग ट्रायल के लिए डॉक्टरों ने बदल दिया पता 


बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विकसित  दवाओं के मरीजों पर प्रयोग यानी ड्रग ट्रायल में लिप्त डॉक्टरों ने एमवाय अस्पताल के मरीजों का गुपचुप तरीके से इस्तेमाल करने के लिए एक नए पते का इस्तेमाल किया। यह पता अस्पताल में ही काम करने वाली एक डॉक्टर का है। कई डॉक्टरों ने इस पते के जरिए दवा कंपनियों से काम हथियाया।

पता है 61, जूनी कसेरा बाखल। राजबाड़ा से सटे क्षेत्र में मौजूद इस पते पर डॉ. पुष्पा वर्मा रहती हैं। पत्रिका के पास मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि ड्रग ट्रायल के तीन मामलों में इस पते का इस्तेमाल किया गया है।

तीन तरह से इस्तेमाल

पहला
दिल की बीमारी एट्रियल फिब्रलेशन के लिए दवा कंपनी डायची संक्यो ने जुलाई 2009 में एमवायएच के डॉ. अनिल भराणी के साथ करार किया। केंद्र सरकार का रिकॉर्ड बताता है कि डॉ. भराणी ने इस ट्रायल का पता जूनी कसेरा बाखल बताया।  

दूसरा
एमवायएच के सात डॉक्टरों ने एक पृथक एथिकल कमेटी का गठन किया। इसका नाम रखा इंडीपेंडेंट एथिक्स कमेटी फॉर कंसल्टेंट्स ऑफ एमजीएम मेडिकल कॉलेज एंड एमवायएच। इसका पता भी यही घर है।

तीसरा
विदेशी बीमा कंपनी एकॉर्ड ने तीन वर्ष पहले एमवायएच के प्रोफेसर डॉ. अशोक वाजपेयी के नाम से लाइबिलिटी इंश्योरेंस का एक करार किया। इसमें भी डॉ. वाजपेयी का पता डॉ. पुष्पा वर्मा का घर ही दिया गया।

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मेरा घर है, इसके अलावा कुछ नहीं बता सकती
जो पता आप बता रहे हैं, वह मेरा घर है। उसका इस्तेमाल किसने कहां किया, इसके बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है।
- डॉ. पुष्पा वर्मा, विभागाध्यक्ष, नेत्र रोग, एमवायएच


अहमदाबाद में हो चुका करार
डॉ. पुष्पा वर्मा ने बैक्टेरियल कंजक्टेवाइटिस के लिए टेक्सास की एल्कोन रिसर्च कंपनी द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर ट्रायल के लिए स्पांसर कंपनी क्विवंट्ल्स रिसर्च इंडिया प्रायवेट लिमिटेड से 25 अप्रैल 2006 को करार किया था। सूचना का अधिकार में प्राप्त दस्तावेज से पता चला कि उन्होंने इस ट्रायल के लिए अहमदाबाद जाकर करार किया। कंपनी की ओर से तुशार तोपर्णी ने हस्ताक्षर किए। करार का नाम क्लिनिकल ट्रायल एग्रीमेंट है। इसमें ट्रायल के लिए आने वाली राशि का जिक्र रहता है। 

Patrika 03-01-2011