बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

स'चाई छुप नहीं सकती बनावट के असूलों से

 सुगनीदेवी जमीन मामले में लोकायुक्त पुलिस के तर्कों की सुरेश सेठ ने उड़ाई धज्जियां
 विशेष न्यायालय ने सुरक्षित रखा फैसला
  कैलाश को  समय कवच  मिलेगा या नहीं, 20 अक्टूबर को होगा फैसला



सुगनीदेवी जमीन घोटाले की शिकायत के आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के बारे में लोकायुक्त पुलिस द्वारा कोई टिप्पणी नहीं किए जाने का मामला बुधवार को विशेष न्यायालय में गूंजा। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पुलिस के सभी तर्कों की सिलसिलेवार धज्जियां उड़ाते हुए कोर्ट को बताया विजयवर्गीय को बचाने के लिए ही कोर्ट में अर्जी दी गई है कि जांच की समय सीमा तय नहीं की जाए। कोर्ट ने बेहद गंभीरता से करीब पौन घंटे तक सेठ की बात सुनी और मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। अब 20 अक्टूबर को पता चलेगा कि लोकायुक्त पुलिस को जांच की समय सीमा में बांधना विशेष न्यायालय के दायरे में आता है या नहीं। सेठ ने मीडिया से चर्चा में कहा बनावट के असूलों से स'चाई को छुपाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन वह छुप नहीं सकती है।

केस की पिछली सुनवाई (21 सितंबर) पर लोकायुक्त पुलिस को कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश करना थी। परंतु ïकोर्ट को बताया था कि मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और चालान पेश करने का लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है। इस तर्क पर ही बुधवार को विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी की कोर्ट में बहस हुई। लोकायुक्त की ओर से विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने अपनी बात दोहराई। सुरेश सेठ ने कहा अभी तो एफआईआर ही अधूरी है क्योंकि आरोपी क्रमांक दो के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है। छह अगस्त को लोकायुक्त पुलिस भी मान चुकी है कि अभी एफआईआर में और नाम जोड़े जा सकते हैं, फिर समय सीमा का बंधन क्यों नहीं लगाया जाए। दोनों पक्षों की राय सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया, जो 20 अक्टूबर को जारी होगा। बहस के दौरान कोर्ट ने सेठ को कहा आपको मेरा फैसला मंजूर न हो, तो आप हाईकोर्ट भी जा सकते हैं।

'हमने कैलाश को नहीं छोड़ा
कदम ने कोर्ट को बताया लोकायुक्त पुलिस ने अभी विजयवर्गीय को छोड़ा नहीं है। जांच जारी है और अंतिम जांच प्रतिवेदन में सबको पता चल जाएगा कि किसने भ्रष्टाचार किया है और किसने आपराधिक षडयंत्र। सेठ ने जब जोर देकर पूछा कि जांच में कितना समय लगेगा, तो कदम बोले कम से कम एक साल तो लग ही जाएगा।


 हाईकोर्ट ने भी तो तय की समय सीमा     
'पत्रिकाÓ के 5 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित खबर 'हाईकोर्ट ने तय की लोकायुक्त जांच की अवधिÓ का हवाला देते हुए सेठ ने कोर्ट को बताया अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक आरएन सक्सेना के खिलाफ हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को छह माह में जांच करने के निर्देश दिए हैं। उस केस में और मेरे केस में कोई मौलिक अंतर नहीं है। वहां याचिकाककर्ता ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी, यहां विशेष न्यायालय में लगाई गई।                                                                                                                                                                              


 लोकायुक्त पुलिस की भूमिका संदिग्ध
- सुगनीदेवी जमीन केस में विशेष न्यायालय के समक्ष सुरेश सेठ का लिखित बयान

कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने कोर्ट को लिखित में दिया है कि मप्र के मंत्री (कैलाश विजयवर्गीय) के दबाव में आकर लोकायुक्त पुलिस संदिग्ध भूमिका निभा रही है। सुगनीदेवी जमीन मामले में विजयवर्गीय न केवल संलिप्त हैं, बल्कि सार्वजनिक घोषणाओं में भी वे खुद को इसमें शामिल होने की मंजूरी दे चुके हैं। पद का दुरुपयोग करते हुए विजयवर्गीय ने 28 अगस्त 2010 को नंदानगर साख संस्था की विशेष साधारण सभा में विवादित जमीन पर कॉलेज बनाने की घोषणा भी कर दी है।


जनता के सामने खड़े हो गए कई सवाल : सुरेश सेठ

सुरेश सेठ ने कोर्ट में प्रस्तुत जवाब में कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि लोकायुक्त पुलिस के वकील के तर्कों से जनता के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं, न्यायहित में इनका समाधान बेहद आवश्यक है। उन्होंने लिखा है-

1. प्रथम दृष्टया दोषी होने के बावजूद कैलाश के खिलाफ पहली एफआईआर में नाम नहीं जोड़ा जाना कितना न्यायसंगत है?
2. क्या लोक अभियोजक ने 6 अगस्त की पेशी पर जो जवाब पेश किया, वह राज्य सरकार के दबाव में आकर दिया गया है?
3. क्या विशेष लोक अभियोजक दुर्भावनापूर्ण तरीके से विजयवर्गीय के राजनैतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
4. हाईकोर्ट में 19 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेठ ने लोकायुक्त संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तब लोकायुक्त के वकील ने कोई कोई आपत्ति नहीं ली थी, इसका अर्थ क्या है?
5. क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस केस में विशेष लोक अभियोजक को बतौर लोकस स्टेंडी (पक्ष रखने का अधिकार) प्राप्त है?
6. मामले से परिवादी को दूर करने की कोशिश क्या यह साबित नहीं करती कि विशेष लोक अभियोजक अपने पद का दुरुपयोग करके आरोपी नेताओं, सरकार और अपने वरिष्ठ अधिकारियों की तरफदारी कर रहे हैं?
7. अनुसंधान के नाम पर एक बार मामले को टाल देने से अंतिम जांच प्रतिवेदन पेश करने की तारीख 5-10 वर्ष खींच जाएगी। तब अभियोग पत्र प्रस्तुत करना गैर प्रासंगित हो जाएगा?
 

लोकायुक्त पुलिस के छहों न्यायिक दृष्टांतों को चुनौती
सेठ ने कोर्ट में करीब 300 पेज का जो जवाब पेश किया है, उसमें लोकायुक्त पुलिस के तर्कों को एक सिरे से खारिज किया गया है। लोकायुक्त पुलिस ने छह न्यायिक दृष्टांतों के आधार पर कोर्ट को बताया था कि इस कोर्ट को जांच की समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं है। सेठ ने इन दृष्टांतों को तार्किक तरीके से खारिज किया।

एक-
निर्मलजीतसिंह हून बनाम पश्चिम बंगला सरकार केस में कोर्ट ने अनुसंधान अधिकारी को अनुसंधान की दिशा या सीमाओं के संबंध में कोई दिशा नहीं दी थी।
दो-
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा केस में फैसला आरोपी के संबंध में विचार तय करने से जुड़ा है, जबकि मौजूदा केस में विशेष न्यायालय ने कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कोई विचार धारणा प्रकट नहीं की है।
तीन-
पश्चिम बंगाल बनाम एसएन बासक केस में कोर्ट के दिशा निर्देश अंतिम जांच प्रतिवेदन के संबंध में है, जबकि सुगनीदेवी केस में अब तक लोकायुक्त पुलिस ने अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया है।
चार -
बिहार बनाम जेएसी सल्धाना केस भी समर्थन नहीं करता है, क्योंकि विशेष कोर्ट द्वारा अंतिम जांच रिपोर्ट के लिए तारीख तय करना अनुसंधान कार्य में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।
पांच -
टीटी ऐथोनी बनाम केरल केस सक्सेसिव एफआईआर से जुड़ा है, इसलिए यहां प्रासंगिक नहीं है।
छह -
एसएन शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी, मेसर्स जयंत विटामिन्स बनाम चैतन्य कुमार एंड अदर्स, हरियाणा बनाम भजनलाल केस में एफआईआर और उसके बाद अनुसंधान की स्थिति की व्याख्या की गई है।
 

पत्रिका : ०७ अक्टूबर २०१०

भारत में रोक, इंदौर में चालू

- चाचा नेहरू अस्पताल में स्वस्थ युवतियों पर ग्रीवा कैंसर टीके के ट्रायल पर उठा सवाल
- आंध्रप्रदेश-गुजरात में जा चुकी जानें, फिर भी नहीं जाग रहा मध्यप्रदेश


जिस टीके के कारण आंध्रप्रदेश में चार स्वस्थ युवतियों की जान चली गई, जिस टीके के प्रयोग पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया, जिस टीके के भरोसेमंद होने की गारंटी नहीं है और जो टीका शुरू दिन से ही विवाद में है... उस टीके का एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में प्रयोग हो रहा है। प्रयोग में कई जरूरी मापदंडों को भी ताक में रखा गया है।

'पत्रिकाÓ के पास उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक शिशु रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. हेमंत जैन की अगुवाई में मल्टीवेलेंट एचपीवी टीके का ट्रायल जारी है। कथित तौर पर यह टीका महिलाओं को बुढ़ापे में विकसित होने वाले ग्रीवा कैंसर को रोकता है। करीब एक वर्ष पहले आंध्रप्रदेश के खम्मम में चार और गुजरात के बढ़ौदा में दो  युवतियों की मौत के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलामनबी आजाद ने इस टीके के ट्रायल पर प्रतिबंध लगा दिया था।

आंध्रप्रदेश में टीके को लेकर उठी बहस में अग्रणी रही कल्पना मेहता मंगलवार को इंदौर में थीं। 'पत्रिकाÓ ने जब उन्हें इंदौर में जारी ट्रायल के बारे में बताया तो चकित होते हुए उन्होंने बताया यह टीका कितना कारगर है, यह अभी किसी को पता नहीं। अमेरिकन, ब्रिटिश और आस्ट्रेलियन दवा कंपनियों ने ग्रीवा कैंसर का खौफ फैलाकर यह टीका बाजार में उतार दिया है। इस टीके के प्रयोग में स्वस्थ युवतियों की जरूरत होती है। आंध्रप्रदेश व गुजरात में तो डॉक्टरों ने गल्र्स होस्टल में रहने वाली युवतियों को सब्जेक्ट बनाया था, यहां क्या हो रहा है, यह कोई नहीं जानता।


 आईसीएमआर, डीसीजीआई रोके 
केंद्र सरकार ने इस टीके के ट्रायल पर रोक लगाई है, फिर भी यहां क्यों हो रहा?
यह ट्रायल इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की अनुमति से चल रहा है। वे रोकेंगे, तो बंद कर देंगे।
आपके अस्पताल में तो रोगी आते हैं, जबकि इसमें स्वस्थ युवतियों की जरूरत होती है?
हमारे क्लिनिक में जो लोग आते हैं, उनसे पूछताछ करके हम युवतियों का चयन करते हैं।
आप ब'चों के डॉक्टर हैं, जबकि टीका युवतियों को लगता है?
हमने ट्रायल में एक महिला रोग विशेषज्ञ को भी जोड़ रखा है।
यह ट्रायल आखिर क्यों जरूरी है?
दुनियाभर में 2.75 लाख महिलाओं की हर वर्ष ग्रीवा कैंसर से मौत हो जाती है। यह टीका लगेगा, तो कैंसर नहीं होगा।
ट्रायल से गुजरात-आंध्र में मौतें हो चुकी है, यहां ऐसा केस तो नहीं आया?
वहां हुई मौत के कारण अभी साफ नहीं है। मेरी जानकारी में एक युवती की बुखार से और एक की आत्महत्या के कारण मृत्यु हुई। इंदौर में 39 युवतियों पर ट्रायल हुआ, सभी स्थिति ठीक है। वैसे भी यह फेज फोर का ट्रायल है, यानि टीका बाजार में उपलब्ध है।
आप तीन डोज देते हैं, बूस्टर डोज के बारे में क्या नीति है?
यह तो शून्य, एक व छह महीने के क्रम में लगता है। बूस्टर डोज की जरूरत ही नहीं है।
(डॉ. हेमंत जैन से चर्चा)

सच नहीं बोल रहे हैं डॉ. जैन
- वे जो ट्रायल कर रहे हैं, वह फेज फोर नहीं, थ्री का ट्रायल है।
- बाजार में गार्डेसिल (वी-501) उपलब्ध है, जबकि ट्रायल मल्टीवेलेंट (वी-503) का हो रहा है।
- विधानसभा में भेजी जानकारी से स्पष्ट है कि ट्रायल में कोई महिला रोग विशेषज्ञ शामिल नहीं है।
- बूस्टर डोज के बगैर यह टीका पूरा नहीं हो सकता। दुनियाभर में इसे लेकर बहस जारी है।
- आईसीएमआर का मानता है कि टीके की सफलता संदिग्ध है।
जानलेवा टीका
- एचपीवी टीके के तीन डोज 10 से 12 हजार रुपए के आते हैं।
- सितंबर 2009 में ब्रिटेन के कोवेंट्री में एक स्कूली छात्रा के रूप में पहली मौत रिपोर्ट की गई।
- टीके के कारण अमेरिका में 15 हजार लड़कियों पर दुष्प्रभाव और 61 की मौत रिपोर्ट हो चुकी है।
- जर्मनी एवं आस्ट्रेलिया में भी एक-एक लड़की की मौत हो चुकी है।



पत्रिका : ०७ अक्टूबर २०१०

लोकायुक्त को मिलेगा 300 पेज का जवाब

- कैलाश को  समय कवच  से सुरक्षित रखने के कदम पर सुरेश सेठ की पुख्ता तैयारी
- सुगनीदेवी केस पर अधूरी एफआईआर पर विशेष न्यायालय में बहस आज


सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन में हुए 100 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच कर रही लोकायुक्त पुलिस के लिए कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने 300 पेज का जवाब तैयार कर लिया है। यह जवाब बुधवार को विशेष न्यायालय में पेश किया जाएगा। उधर, लोकायुक्त पुलिस का जोर मामले में दर्ज अपनी अधूरी एफआईआर को अंतिम साबित करने पर रहेगा।

केस में पिछली सुनवाई 21 सितंबर को हुई थी, तब लोकायुक्त पुलिस को मूल शिकायत के आरोपी क्रमांक दो (तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय) के भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश करना थी। परंतु लोकायुक्त के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने कोर्ट को बताया था कि मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और चालान पेश करने का लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है। इस तर्क पर बहस के लिए कोर्ट ने 6 अक्टूबर मुकर्रर किया था।

 सुप्रीम कोर्ट भी चाहता है, समय सीमा तय हो

सुरेश सेठ ने 'पत्रिकाÓ को बताया मैंने जवाब में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के करीब एक दर्जन न्यायिक दृष्टांत दिए हैं। सभी कोर्टें चाहती हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में समय सीमा में जांच पूरी हो जाए। सोमवार को मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एसआर आलम एवं ïआलोक अराधे की युगलपीठ ने अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (एपीसीसीएफ) आरएन सक्सेना पर भ्रष्टाचार के आरोप से जुड़े केस में लोकायुक्त पुलिस छह महीने में जांच पूरी करने के निर्देश दिए हैं। 

मेंदोला-संघवी की याचिका में छुपा संदेश
सेठ ने बताया इंदौर हाईकोर्ट में जिस तरह से मामले में फंस चुके रमेश मेंदोला और मनीष संघवी की याचिका खारिज की है, उसका संदेश साफ है कि जांच प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है। लोकायुक्त समय पर जांच पूरी नहीं कर पाए तो उसे साफ इंकार कर देना चाहिए। मैंने तो हाईकोर्ट में भी सीबीआई जांच की मांग उठाई थी।

'मुझे दूर करना संभव नहींÓ
पिछली सुनवाई में लोकायुक्त पुलिस ने तर्क दिया था कि एफआईआर रजिस्टर होने के बाद जब तक अंतिम जांच रिपोर्ट पेश नहीं हो जाती, तब तक केस कोर्ट व पुलिस के बीच ही रहता है। परिवादी इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले सकता है। परिवादी सेठ को कोर्ट के समक्ष उपस्थिति होने का अधिकार भी नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए सेठ कहते हैं जांच प्रक्रिया से शिकायतकर्ता को दूर करने की कोशिश शंका को जन्म देती है। 

हकीकत की कसौटी पर कितने खरे लोकायुक्त पुलिस के तर्क ?


तर्क एक
घटना अवधि 20 वर्ष की है और इसके लिए विभिन्न विभागों से दस्तावेज जुटाए जाना है। इसमें वक्त लगेगा।
कसौटी
5 अगस्त को दर्ज एफआईआर के पेज चार के मुताबिक सभी संबंधित विभागों से दस्तावेज जुटाए जा चुके हैं। यहीं सवाल उठता है कि फिर लोकायुक्त पुलिस और कौन से कागज चाहती है?

तर्क दो
विभिन्न साक्षियों के विस्तृत कथन लिपिबद्ध किए जाना है। इसमें अधिक समय लगना स्वाभाविक है।
कसौटी
एफआईआर के पेज पांच के मुताबिक मौजूदा और पूर्व निगमायुक्त से लेकर सभी प्रमुख संबंधित अफसरों और लोगों से बयान लिए जा चुके हैं। यहीं सवाल उठता है ऐसे कौन लोग शेष हैं, जिनसे लोकायुक्त पुलिस बात करना चाहती है?

तर्क तीन
दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान की समय सीमा तय करने का जिक्र नहीं किया गया है।
कसौटी
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने अंतिम जांच रिपोर्ट करने के लिए स्वयं कोर्ट से चार महीने का समय मांगा था। परिवादी सुरेश सेठ की आपत्ति पर डेढ़ महीने की समयसीमा तय हुई थी। अब सवाल है कि उस दिन ïदंड प्रक्रिया संहिता क्यों याद नहीं आई?

तर्क चार
एफआईआर दर्ज होने के बाद अनुसंधान की प्रक्रिया में परिवादी हिस्सा नहीं ले सकता है।
कसौटी
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि जो एफआईआर दर्ज की गई है, वह अधूरी है। आरोपी क्रमांक दो (कैलाश विजयवर्गीय) की भूमिका की पड़ताल के लिए अगली तारीख नियत कर दी जाए। अब सवाल है कि प्रारंभिक जांच में जब एक आरोपी की भूमिका को लेकर पड़ताल ही नहीं की गई तो परिवादी को प्रक्रिया से दूर कैसे किया जा सकता है?

पत्रिका : ०६ अक्टूबर २०१०

नकली दवा से इलाज तो नहीं

 ड्रग ट्रायल में महिला की मौत के मामले में उठा नया सवाल

अल्जाइमर रोग के पीडि़त खंडवा की शीला गीते की मौत का कारण कहीं नकली दवा से उनका उपचार तो नहीं? अब यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। दरअसल, वे जिस ड्रग ट्रायल में शामिल थीं, वह प्लेसिबो ट्रायल था। इस ट्रायल में कुछ मरीजों को नकली दवा दी जाती है, जो दिखती तो दवा जैसी है किंतु उसमें दवा के बजाए स्टार्च या ग्लूकोज होता है।

'पत्रिकाÓ ने सोमवार के अंक में खुलासा किया था कि शीला गीते के पति शरद गीते ने स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया को पत्र लिखकर शिकायत की है कि उनकी पत्नी की मौत के बावजूद उन्हें बीमे के राशि नहीं दी गई है। 'पत्रिकाÓ के पास उपलब्ध दस्तावेजों से पता चलता है कि शीला गीते पर जो ट्रायल हो रहा था, वह प्लेसिबो ट्रायल था। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अपूर्व पुराणिक ने उनसे जिस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए थे, उस पर साफ-साफ लिखा है कि आपको सिक्का उछालने वाले खेल की तरह एक अध्ययन में शामिल किया जा रहा है। हो सकता है आपको जो दवा दी जाए, वह नकली हो।

तीन में से दो को नकली दवा
डोनेपेजिल दवा के ट्रायल में हर तीन में से दो मरीजों को नकली दवा मिलता तय था। यह बात डॉक्टर भी जानते हैं। बावजूद इसके मरीज की जान जोखिम में डाली गई।


 जिसे असली दवा मिलती, उसे होता लाभ
डॉ. अपूर्व पुराणिक ने 'न्यूरो-प्रतिध्वनिÓ नाम के अपने ब्लॉग पर लिखा है कि ट्रायल के शुरू में ही हम मरीज को बता देते हैं कि उसे जो दवा दी जाती है, वह असली है या नकलीï, यह हमें पता नहीं रहता। ट्रायल समाप्त होने के बाद ही अंतिम परिणाम का पता चलता है। जिसे असली दवा मिलती है, उसे लाभ होता है।

 प्लेसिबो ट्रायल सबसे खतरनाक
स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के डॉ. आनंद राय कहते हैं प्लेसिबो ट्रायल सबसे खतरनाक होता है। अंतरराष्टï्रीय स्तर पर इसे न्यूनतम करने के निर्देश जारी हो चुके हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में हो रहे ज्यादातर ट्रायल प्लेसिबो हैं। इसमें मरीज को पहले से मिल रहा उपचार भी बंद हो जाता है और नतीजतन उसकी तबीयत सुधरने के बजाए बिगडऩे लगती है।


अभी बता पाना मुश्किल

क्या शीला गीते पर प्लेसिबो ट्रायल हो रहा था?
हां, यह प्लेसिबो ट्रायल ही था।
क्या उन्हें नकली दवा दी गई थी?
अभी यह पता नहीं चल सकता है। कंपनी के पास इसकी जानकारी रहती है। डाटा एनालिसिस के बाद ही इसका पता चलेगा।
प्लेसिबो ट्रायल से होने वाले दुष्परिणाम का जिम्मेदार कौन है?
हम पूरी देखरेख करते हैं और तबीयत बिगडऩे पर ट्रायल से हटा भी लेते हैं।
शीला गीते के केस में ऐसा क्यों नहीं हुआ?
वे हमसे संतुष्ट थे और यही वजह कि वे जनवरी तक उपचार लेती रहीं।
क्या गीते परिवार को बीमे का लाभ नहीं मिलना चाहिए?
मुझे फिलहाल बीमे की जानकारी नहीं है। कागज देखकर ही बता पाऊंगा।
(डॉ. पुराणिक से चर्चा)


सरकार ने मांगी मरीजों की सूची
- एमजीएम मेडिकल कॉलेज में हड़कंप


चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सभी मेडिकल कॉलेजों से उन मरीजों की सूची तलब की है, जिन पर ड्रग ट्रायल किया गया। इससे एमजीएम मेडिकल कॉलेज में हड़कंप मच गया है। माना जा रहा है कि विधानसभा के पटल पर स्वास्थ्य मंत्री महेंद्र हार्डिया के उस बयान को पूरा करने के लिए यह कवायद की जा रही है, जिसमें उन्होंने विधानसभा के सभी सदस्यों को मरीजों की सूची उपलब्ध कराने का  वादा किया था।
ज्ञात रहे कि पिछले पांच वर्ष में राज्य में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ है। इनमें से 1644 ब'चे हैं। मरीजों में से 51 पर ट्रायल के दुष्परिणाम भी हुए हैं।


पत्रिका : ०५ अक्टूबर २०१०

हाईकोर्ट ने मेंदोला को नहीं मिली राहत

- सुगनीदेवी केस की जांच प्रक्रिया को सही ठहराया 
- मनीष संघवी, रमेश ने दी थी विशेष न्यायाधीश के आदेश को चुनौती


परदेशीपुरा चौराहा के पास स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ मूल्य की तीन एकड़ जमीन मामले में लोकायुक्त जांच को चुनौती देने से जुड़ी दो याचिकाओं को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार को खारिज कर दिया। नंदानगर साख संस्था अध्यक्ष रमेश मेंदोला और धनलक्ष्मी केमिकल्स संचालक मनीष संघवी ने ये याचिकाएं दायर की थीं। हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश के उस कदम को न्यायिक तौर पर सही माना जिसमें कांग्रेस नेता सुरेश सेठ की शिकायत पर लोकायुक्त पुलिस को जांच के आदेश दिए गए थे।

इंदौर बैंच के जस्टिस एसएल कोचर और शुभदा वाघमारे की युगलपीठ ने दोनों याचिकाएं खारिज करते हुए टिप्पणी की है विशेष न्यायाधीश को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 153(3) की शक्तियों का इस्तेमाल करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है और इसी के आधार पर जांच शुरू की गई है। कोर्ट उन सभी न्यायिक दृष्टांतों का भी खारिज कर दिया जिनके आधार पर विशेष न्यायाधीश की शक्तियों को कटघरे में खड़ा किया गया था। मेंदोला के पैरवीकर्ता वरिष्ठ अधिवक्ता एके सेठी और राहुल सेठी ने फैसले की पुष्टि की है। संघवी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रोहित आर्या और अमित अग्रवाल ने जबकि लोकायुक्त की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता एलएन सोनी ने पैरवी की थी।

एमिकस क्यूरी की अहम रिपोर्ट

इस केस में कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीश देसाई को एमिकस क्यूरी (केस में कोर्ट के सलाहकार) घोषित किया था। उनकी रिपोर्ट में निचली अदालत की कार्रवाई को सही ठहराया गया था।

उठी थी सीबीआई जांच की मांग
केस पर 19 अगस्त को अंतिम बहस हुई थी। तब सुरेश सेठ ने तर्क दिया था कि लोकायुक्त पुलिस की जांच प्रक्रिया बेहद धीमी है इसलिए जांच का कार्य सीबीआई को सौंप दी जाए। सुनवाई के दौरान ही हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अपराध तो हुआ है और केवल प्रक्रिया का हवाला देकर अपराध को खत्म तो नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने जीरो कायमी जिक्र करते हुए कहा था सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत कोई भी व्यक्ति थाने में जाकर एफआईआर दर्ज कर सकता है। पहले वह जीरो नंबर पर कायम होती है और बाद में जिस क्षेत्र से संबंध होती है, वहां उसे भेजा जा सकता है। इस केस में लोकायुक्त पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। अब उसे शिफ्ट किया जा सकता है, खत्म तो नहीं किया जा सकता।


मेंदोला-संघवी समेत 17 आरोपी
लोकायुक्त पुलिस ने 5 अगस्त को मेंदोला और संघवी समेत 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक षडयंत्र का केस दर्ज किया है। इसकी अगली पड़ताल सोमवार को ही विधिवत शुरू हुई। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पुलिस को मय दस्तावेज बयाद दिए हैं। सभी 17 पर आरोप है कि इन्होंने षडय़ंत्र करके निगम से लीज पर ली गई जमीन को धनलक्ष्मी केमिकल्स से नंदानगर साख संस्था को बिकवाया और इससे शासन को करीब पौने तीन करोड़ के राजस्व की चपत लगी।

कल विशेष अदालत में सुनवाई
सुगनीदेवी केस में 6 अक्टूबर को विशेष न्यायालय में सुनवाई होना है। पिछली सुनवाई में लोकायुक्त पुलिस को अंतिम जांच रिपोर्ट पेश करना थी, किंतु उसने तर्क दिया कि हमारे लिए जांच की समय सीमा तय नहीं की जा सकी है। सेठ की आपत्ति पर अब इस पर बहस होना है। ज्ञात रहे मूल शिकायत के आरोपी क्रमांक दो (तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय) को लेकर अब तक लोकायुक्त पुलिस ने कोई टिप्पणी नहीं की है।



मेंदोला-संघवी के सारे तर्क नामंजूर
- सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक दृष्टांतों का आधार लेना गलत
- सुगनीदेवी केस पर हाईकोर्ट में खारिज हुई याचिकाएं


सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ मूल्य की तीन एकड़ जमीन मामले में विशेष न्यायाधीश द्वारा लोकायुक्त पुलिस को जांच के आदेश देने को चुनौती देने के लिए लगाई याचिकाओं के तर्कों को हाईकोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं रमेश मेंदोला और मनीष संघवी की ओर से सुप्रीम कोर्ट के जिन न्यायिक दृष्टांतों का हवाला दिया गया था, हाईकोर्ट ने उन्हें इस केस से संबद्ध नहीं माना।
 मेंदोला व संघवी की ओर से कई न्यायिक दृष्टांत दिए गए थे, किंतु कोर्ट ने उन्हें वाजिब नहीं माना। उधर, सुरेश सेठ ने 284 पेज का एक जवाब पेश किया था। उनके जवाब में सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के 21 न्यायिक दृष्टांत थे। ये सभी दृष्टांत मेंदोला और संघवी की याचिकाओं के तर्कों को चुनौती देते थे। कोर्ट द्वारा मेंदोला-संघवी की याचिकाएं खारिज करने से साफ है कि सेठ के तर्कों से कोर्ट सहमत हुई।

 विधायक रमेश मेंदोला की याचिका के आधार

1. दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 153(3) की शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट कर सकता है, विशेष न्यायाधीश नहीं।
2. विशेष न्यायाधीश मप्र विशेष पुलिस स्थापना (एसपीई) कानून 1947 एवं मप्र लोकायुक्त कानून के अधीन है। वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1947, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत मजिस्ट्रेट नहीं है।
3. विशेष न्यायाधीश द्वारा सीआरपीसी की धारा 190 के तहत कार्रवाई नहीं की।
4. मप्र विशेष पुलिस स्थापना कानून की धारा 4 के तहत कोई भी अनुसंधान कार्य पर सुपरइनटेंडेंस लोकायुक्त की रहती है, न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
5. शिकायतकर्ता ने कभी भी लोकायुक्त अथवा एसपीई लेाकायुक्त को शिकायत दर्ज नहीं करवाई, इसलिए विशेष न्यायाधीश द्वारा धारा 153(3) के तहत जांच के आदेश देना त्रूटिपूर्ण है।
6. विशेष न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 200 के तहत निजी फौजदारी परिवाद के तहत परिवादी के बयान दर्ज नहीं किए और न ही धारा 202 के तहत कोई कार्रवाई की।
7. आरोपी की सुनवाई का अवसर दिए बगैर सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
8. सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत आदेश पुलिस स्टेशन के ऑफिसर इंनचार्ज को ही दिया जा सकता है। एसपीई लोकायुक्त इंदौर इस श्रेणी में नहीं आते।
9. सीआरपीसी की धारा 153(3) की शक्तियों का उपयोग तभी किया जा सकता है, जबकि संबंधित मामले में एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दिया गया हो।
10. विशेष न्यायाधीश का आदेश मप्र विशेष पुलिस स्थापना कानून के प्रावधानों के विपरीत है, क्योंकि इस अधिनियम में रा'य सरकार की पूर्व अनुमति जरूरी है। 


मनीष संघवी की याचिका के आधार
1. याचिकाकर्ता लोक सेवक नहीं है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत एसपीई लोकायुक्त को जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
2. मप्र लोकायुक्त और उपलोकायुक्त नियम 1981 की धारा 8 (सी) के तहत पांच वर्ष से पुराने मामलों पर जांच का प्रतिबंध लगाया गया है।
3. विशेष न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत याचिकाकर्ता को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया।
4. विशेष न्यायाधीश का आदेश मप्र लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम 1981 की धारा 7 के प्रावधानों का उल्लंघन है।


सुरेश सेठ के जवाब
1. तत्कालीन एमआईसी सदस्य रमेश मेंदोला ने महापौर कैलाश विजयवर्गीय की मौन सहमति के साथ पद का दुरुपयोग करते हुए धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी व विजय कोठारी से आपराधिक षडय़ंत्र रचकर सरकारी जमीन की खरीदी-बिक्री की। इससे निगम और सरकार को करोड़ों की राजस्व हानि हुई।
2. वर्तमान में पुलिस अनुसंधान जारी है, इसलिए दोनों याचिकाएं अपरिपक्व हैं।
3. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (ई) के तहत एसपी स्तर के अधिकारी को जांच का आदेश देने का अधिकार है।
4. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश को संज्ञान लेने का पूर्ण अधिकार है और इससे सेशन न्यायालय के साथ मजिस्ट्रेट की शक्तियों का समावेश हो गया है।
5. सीआरपीसी की धारा 153 (3) के तहत जांच के आदेश जारी करने से पहले अभियुक्त को सुनवाई को अवसर देने का कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है।
पत्रिका : ०५ अक्टूबर २०१०

मंत्रीजी, घुट-घुटकर मर गई मेरी पत्नी

- ड्रग ट्रायल मामले में मरीज के परिजन की पहली लिखित शिकायत
- चिकित्सा शिक्षा मंत्री महेंद्र हार्डिया से की जांच करवाने की मांग
- एमवाय अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग में चल रहा था उपचार



 अल्जाइमर रोग से पीडि़त मेरी पत्नी को मैं 29 मार्च 2006 को उपचार के लिए एमवाय अस्पताल लेकर आया था। इलाज के दौरान न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. अपूर्व पुराणिक ने 27 जून 2008 को मेरी पत्नी को एक अध्ययन में शामिल करके उपचार शुरू किया और डोनेपोझिल के हेवी डोज उसे दिए जाने लगे। पहले वह मुझे और मेरी परिवार को पहचानती थी। धीरे-धीरे उसे स्मृति भ्रम होने लगा और बाद में तो वह सबकुछ भूल गई। आखिर में घुट-घुटकर 8 अगस्त को उसकी मौत हो गई। अब मुझे पता चला है कि वह अध्ययन एक ड्रग ट्रायल था। मेरी पत्नी की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी। ट्रायल के हेवी डोज से उसकी मृत्यु हुई है।

खंडवा निवासी शीला के पति शरद गीते (76) यह कहते-कहते रूंआसे हो जाते हैं। शरद गीते ने अपने साथ हुए धोखे की दास्तां 'पत्रिकाÓ को बताई। साथ ही उन्होंने स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया को एक शिकायती पत्र लिखकर इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग भी की है। गीते सेवानिवृत्त सहायक पंजीयक हैं और शनिवार को इंदौर में थे। ड्रग ट्रायल का मसला उजागर होने के बाद से मंत्री और सरकारी अधिकारी लगातार कह रहे हैं कि उन्हें अब तक किसी मरीज ने शिकायत नहीं की है। गीते ने बताते हैं 'पत्रिकाÓ में प्रकाशित खबरों के बाद ही पता चला कि हम ट्रायल के शिकार हैं।

क्यों नहीं दिया जीवन बीमा?
गीते ने बताया पत्नी को जब इलाज करवाने ले जाता था, तो मुझे आने-जाने का खर्च दिया जाता था। बाद में यह भी बंद कर दिया गया। इलाज शुरू करने के पहले डॉ. पुराणिक ने एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए थे। इस पर लिखा था कि आपका जीवन बीमा करवा गया है, परंतु आज तक हमें यह नहीं दिया गया।

पांच वर्ष बाद तक क्लेम का हक

ड्रग ट्रायल के लिए बीमा कंपनियों ने क्लिनिकल ट्रायल लाइबिलीटी इन्श्योरेंस (सीटीएलआई) का प्रबंध किया है। इसके तहत ट्रायल के बाद के पांच वर्ष तक का जीवन बीमा रहता है।

हालत बिगड़ती गई, पर नहीं हुई सुनवाई
गीते के पुत्र शिताम्शु ने बताया उपचार डॉ. कुंदन खामकर, आरती वासकले और रिचासिंह करती थीं। इलाज शुरू हुआ तब पत्नी सारे रिश्तेदारों को पहचान लिया करती थी। स्थिति बिगड़ती गई और हम डॉक्टरों को शिकायत करते रहे, परंतु किसी ने सुनवाई नहीं की।

कहीं उपचार बंद तो नहीं था उपचार
यह ट्रायल प्लेसिबो था, जिसमें एक नकली (डमी) दवा दी जाती है। यह दिखती तो दवाई जैसी है, किंतु इसमें दवा के बजाए स्टार्च या ग्लूकोज होता है। शीला गीते भी प्लेसिबो ट्रायल में शामिल थीं। डब्ल्यूएचओ ने प्लेसिबो को खतरनाक माना है, क्योंकि इसमें मरीज की तबीयत बहुत तेजी से बिगड़ सकती है।

2008 से चल रही 5.34 लाख की ट्रायल
दवा                                         : डोनेपेजिल एसआर 23 एमजी व डोनेपेजिल आईआर 10 एमजी
कब से                                     : वर्ष 2008 से
डॉक्टर                                     : मुख्य- अपूर्व पुराणिक, सहायक- कुंदन खामकर
डॉक्टरों को मिली राशि             : 5 लाख 34 हजार 241 रुपए
इतनी दवाइयां       : 18.16 लाख प्लेसिबो केप्सूल, 1008 दवा के केप्सूल व 24.19  हजार गोलियां।
स्पांसर कंपनी       : क्विंटल्स
दवा कंपनी            : ईसाई ग्लोबल क्लीनिकल डेवलपमेंट, लंदन
ट्रायल का चरण     : तृतीय


लिखित में पूछेंगे, तभी कुछ बताऊंगा

मैं आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकता हूं। आप मुझसे लिखित में पूछेंगे, तभी आपको कुछ बता पाऊंगा। वैसे, भी मैं अभी इंदौर में नहीं हूं।
- डॉ. अपूर्व पुराणिक, न्यूरोलॉजिस्ट, एमवाय अस्पताल

(पत्रिका ने डॉ. पुराणिक को ईमेल और फैक्स का विकल्प भी सुझाया, परंतु उन्होंने इंकार कर दिया। वैसे, पत्रिका अगस्त में सूचना का अधिकार में ड्रग ट्रायल की जानकारी मांग चुका है। तब डॉ. पुराणिक के विभाग ने 'जानकारी देना जरूरी नहींÓ कहकर इंकार किया था।)


भूलने का रोग अल्जाइमर
अल्जाइमर को विस्मृति रोग कहते हैं। आमतौर पर यह वृद्धावस्था में होता है। जर्मन डॉ. ओलोए अल्जीमीर ने 1906 में एक महिला के मस्तिष्क के परीक्षण में पाया कि उसमें कुछ गांठे पड़ गई हैं, जिन्हें चिकित्सा विज्ञान में प्लेट कहा जाता है। गांठे पडऩा ही रोग है। डॉ. अल्जीमीर के नाम पर अल्जाइमर नाम प्रचलित हुआ।

पत्रिका : ०४ अक्टूबर  २०१०