विशेष न्यायालय ने सुरक्षित रखा फैसला
कैलाश को समय कवच मिलेगा या नहीं, 20 अक्टूबर को होगा फैसला
सुगनीदेवी जमीन घोटाले की शिकायत के आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के बारे में लोकायुक्त पुलिस द्वारा कोई टिप्पणी नहीं किए जाने का मामला बुधवार को विशेष न्यायालय में गूंजा। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पुलिस के सभी तर्कों की सिलसिलेवार धज्जियां उड़ाते हुए कोर्ट को बताया विजयवर्गीय को बचाने के लिए ही कोर्ट में अर्जी दी गई है कि जांच की समय सीमा तय नहीं की जाए। कोर्ट ने बेहद गंभीरता से करीब पौन घंटे तक सेठ की बात सुनी और मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। अब 20 अक्टूबर को पता चलेगा कि लोकायुक्त पुलिस को जांच की समय सीमा में बांधना विशेष न्यायालय के दायरे में आता है या नहीं। सेठ ने मीडिया से चर्चा में कहा बनावट के असूलों से स'चाई को छुपाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन वह छुप नहीं सकती है।
केस की पिछली सुनवाई (21 सितंबर) पर लोकायुक्त पुलिस को कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश करना थी। परंतु ïकोर्ट को बताया था कि मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और चालान पेश करने का लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है। इस तर्क पर ही बुधवार को विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी की कोर्ट में बहस हुई। लोकायुक्त की ओर से विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने अपनी बात दोहराई। सुरेश सेठ ने कहा अभी तो एफआईआर ही अधूरी है क्योंकि आरोपी क्रमांक दो के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है। छह अगस्त को लोकायुक्त पुलिस भी मान चुकी है कि अभी एफआईआर में और नाम जोड़े जा सकते हैं, फिर समय सीमा का बंधन क्यों नहीं लगाया जाए। दोनों पक्षों की राय सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया, जो 20 अक्टूबर को जारी होगा। बहस के दौरान कोर्ट ने सेठ को कहा आपको मेरा फैसला मंजूर न हो, तो आप हाईकोर्ट भी जा सकते हैं।
'हमने कैलाश को नहीं छोड़ा
कदम ने कोर्ट को बताया लोकायुक्त पुलिस ने अभी विजयवर्गीय को छोड़ा नहीं है। जांच जारी है और अंतिम जांच प्रतिवेदन में सबको पता चल जाएगा कि किसने भ्रष्टाचार किया है और किसने आपराधिक षडयंत्र। सेठ ने जब जोर देकर पूछा कि जांच में कितना समय लगेगा, तो कदम बोले कम से कम एक साल तो लग ही जाएगा।
हाईकोर्ट ने भी तो तय की समय सीमा
'पत्रिकाÓ के 5 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित खबर 'हाईकोर्ट ने तय की लोकायुक्त जांच की अवधिÓ का हवाला देते हुए सेठ ने कोर्ट को बताया अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक आरएन सक्सेना के खिलाफ हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को छह माह में जांच करने के निर्देश दिए हैं। उस केस में और मेरे केस में कोई मौलिक अंतर नहीं है। वहां याचिकाककर्ता ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी, यहां विशेष न्यायालय में लगाई गई।
लोकायुक्त पुलिस की भूमिका संदिग्ध
- सुगनीदेवी जमीन केस में विशेष न्यायालय के समक्ष सुरेश सेठ का लिखित बयान
कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने कोर्ट को लिखित में दिया है कि मप्र के मंत्री (कैलाश विजयवर्गीय) के दबाव में आकर लोकायुक्त पुलिस संदिग्ध भूमिका निभा रही है। सुगनीदेवी जमीन मामले में विजयवर्गीय न केवल संलिप्त हैं, बल्कि सार्वजनिक घोषणाओं में भी वे खुद को इसमें शामिल होने की मंजूरी दे चुके हैं। पद का दुरुपयोग करते हुए विजयवर्गीय ने 28 अगस्त 2010 को नंदानगर साख संस्था की विशेष साधारण सभा में विवादित जमीन पर कॉलेज बनाने की घोषणा भी कर दी है।
जनता के सामने खड़े हो गए कई सवाल : सुरेश सेठ
सुरेश सेठ ने कोर्ट में प्रस्तुत जवाब में कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि लोकायुक्त पुलिस के वकील के तर्कों से जनता के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं, न्यायहित में इनका समाधान बेहद आवश्यक है। उन्होंने लिखा है-
1. प्रथम दृष्टया दोषी होने के बावजूद कैलाश के खिलाफ पहली एफआईआर में नाम नहीं जोड़ा जाना कितना न्यायसंगत है?
2. क्या लोक अभियोजक ने 6 अगस्त की पेशी पर जो जवाब पेश किया, वह राज्य सरकार के दबाव में आकर दिया गया है?
3. क्या विशेष लोक अभियोजक दुर्भावनापूर्ण तरीके से विजयवर्गीय के राजनैतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
4. हाईकोर्ट में 19 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेठ ने लोकायुक्त संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तब लोकायुक्त के वकील ने कोई कोई आपत्ति नहीं ली थी, इसका अर्थ क्या है?
5. क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस केस में विशेष लोक अभियोजक को बतौर लोकस स्टेंडी (पक्ष रखने का अधिकार) प्राप्त है?
6. मामले से परिवादी को दूर करने की कोशिश क्या यह साबित नहीं करती कि विशेष लोक अभियोजक अपने पद का दुरुपयोग करके आरोपी नेताओं, सरकार और अपने वरिष्ठ अधिकारियों की तरफदारी कर रहे हैं?
7. अनुसंधान के नाम पर एक बार मामले को टाल देने से अंतिम जांच प्रतिवेदन पेश करने की तारीख 5-10 वर्ष खींच जाएगी। तब अभियोग पत्र प्रस्तुत करना गैर प्रासंगित हो जाएगा?
लोकायुक्त पुलिस के छहों न्यायिक दृष्टांतों को चुनौती
सेठ ने कोर्ट में करीब 300 पेज का जो जवाब पेश किया है, उसमें लोकायुक्त पुलिस के तर्कों को एक सिरे से खारिज किया गया है। लोकायुक्त पुलिस ने छह न्यायिक दृष्टांतों के आधार पर कोर्ट को बताया था कि इस कोर्ट को जांच की समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं है। सेठ ने इन दृष्टांतों को तार्किक तरीके से खारिज किया।
एक-
निर्मलजीतसिंह हून बनाम पश्चिम बंगला सरकार केस में कोर्ट ने अनुसंधान अधिकारी को अनुसंधान की दिशा या सीमाओं के संबंध में कोई दिशा नहीं दी थी।
दो-
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा केस में फैसला आरोपी के संबंध में विचार तय करने से जुड़ा है, जबकि मौजूदा केस में विशेष न्यायालय ने कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कोई विचार धारणा प्रकट नहीं की है।
तीन-
पश्चिम बंगाल बनाम एसएन बासक केस में कोर्ट के दिशा निर्देश अंतिम जांच प्रतिवेदन के संबंध में है, जबकि सुगनीदेवी केस में अब तक लोकायुक्त पुलिस ने अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया है।
चार -
बिहार बनाम जेएसी सल्धाना केस भी समर्थन नहीं करता है, क्योंकि विशेष कोर्ट द्वारा अंतिम जांच रिपोर्ट के लिए तारीख तय करना अनुसंधान कार्य में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।
पांच -
टीटी ऐथोनी बनाम केरल केस सक्सेसिव एफआईआर से जुड़ा है, इसलिए यहां प्रासंगिक नहीं है।
छह -
एसएन शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी, मेसर्स जयंत विटामिन्स बनाम चैतन्य कुमार एंड अदर्स, हरियाणा बनाम भजनलाल केस में एफआईआर और उसके बाद अनुसंधान की स्थिति की व्याख्या की गई है।
पत्रिका : ०७ अक्टूबर २०१०