शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

वीडियो बयान से ड्रग ट्रायल की घेराबंदी

- ईओडब्ल्यू ने 50 से अधिक डॉक्टरों और रोगियों से की गहन पूछताछ 

बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर परीक्षण यानी ड्रग ट्रायल से जुड़े मामले की जांच कर रहे आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने वीडियो बयान लेने का काम शुरू कर दिया है। आरोपी छह डॉक्टरों के साथ ही एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन और 50 से अधिक मरीजों से पूछताछ कर ली गई है।
पत्रिका में प्रकाशित खबरों के आधार पर स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति संगठन ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में ट्रायल करने वाले छह डॉक्टरों के खिलाफ ईओडब्ल्यू भोपाल में शिकायत दर्ज की थी। इसकी पड़ताल भोपाल पदस्थ एआईजी प्रियंका मिश्रा कर रही हैं। वे इंदौर में लगातार दौरे कर वीडियोग्राफी कर रही हैं।

वीडियाग्राफी क्यों?
क्योंकि मामला बेहद पेचिदा और संवेदनशील है। साथ ही नामचीन और प्रभावशाली डॉक्टरों के नाम जुड़े हैं। आशंका यह भी है कि एक बार बयान देने के बाद लोग बदल जाएंगें।

तीन चरण में हुए बयान
पहला
शिकायतकर्ता डॉ. आनंद राजे और आरोपी डॉ. अपूर्व पुराणिक, डॉ. अनिल भराणी, डॉ. पुष्पा वर्मा, डॉ. हेमंत जैन, डॉ. सलिल भार्गव और डॉ. अशोक वाजपेयी।
दूसरा
एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत एवं कॉलेज की एथिकल कमेटी के कुछ सदस्य।
तीसरा
वे मरीज जिन पर प्रयोग किए गए। यह पूछा गया कि क्या आपको ट्रायल की जानकारी दी गई है।

 
इंदौर में होगी सुझावों की छंटनी

ड्रग ट्रायल को लेकर शनिवार को हुई जनसुनवाई में आए सुझावों की छंटनी एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन करेंगें। कमेटी के अध्यक्ष और चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी ने यह फैसला किया है। वे सभी 168 सुझावों को यहीं छोड़कर भोपाल रवाना हुए। जाने से पहले दाणी ने पांचों मेडिकल कालेजों के डीन की बैठक भी ली। सभी से नियमों को खंगालने के लिए कहा गया है। सूत्रों का कहना है कि जनसुनवाई के दौरान कई सरकारी कर्मचारियों ने भी ड्रग ट्रायल को लेकर सुझाव रखे हैं। विश्लेषण किया जा रहा है कि ये सुझाव सरकार की मंशा के विपरीत तो नहीं। 


Patrika 1 Nov 2010

शंकर को सुप्रीम कोर्ट में भी राहत नहीं

- गुल्टू हत्याकांड के आरोप में बीते 100 दिन से फरार
  गुल्टू हत्याकांड में फरार नगरनिगम के पूर्व सभापति शंकर यादव को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली। जिला कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए यादव की ओर से सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एचएस बैदी और चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की युगल पीठ के समक्ष सुनवाई पर आई। कोर्ट ने याचिका को अपरिपक्व मानते हुए खारिज कर दिया।
इसके साथ ही यादव का अंतिम प्रयास भी असफल साबित हो गया। वह 100 दिन से फरार चल रहा है। चंदननगर थाना क्षेत्र की ऋषि पैलेस कॉलोनी में पिछले साल 27 अगस्त को गुल्टू उर्फ विकास पिता रामकिशोर वर्मा की हत्या की गई थी। मृतक की मां बसंतीबाई के आवेदन पर सेशन कोर्ट ने शंकर यादव व उसके दोनों भाइयों राजू व दीपक को धारा 319 के तहत आरोपी मानकर 19 जुलाई को गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। इसके बाद से सेशन कोर्ट छह बार वारंट जारी कर चुका है लेकिन पुलिस के हाथ नहीं आया।

हर तरफ हार
वारंट के खिलाफ पहले हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट में यादव ने मुंह की खाई। उसकी संपत्ति कुर्की की कार्रवाई भी शुरू हो गई है। पुलिस ने उस पर इनाम भी घोषित कर रखा है। 
पुलिस पर सवाल
यादव की गिरफ्तारी नहीं होने से पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़ा हो गया। चौथी बार वारंट जारी करते हुए एडीजे दीपक अग्रवाल ने वारंट तामिल नहीं होने की स्थिति में एसएसपी को स्वयं कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया था।  

Patrika 31 oct 2010

ड्रग ट्रायल की निगरानी जरूरी

- ड्रग ट्रायल पर सुनवाई का एक स्वर

बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाओं के मरीजों पर प्रयोग यानी ड्रग ट्रायल को काबू करने के लिए रा'य में निगरानी तंत्र की जरूरत पर शनिवार को इंदौर में एक स्वर से आवाज उठी। डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधियों, मीडियाकर्मियों और मेडिकल छात्रों की राय है कि रा'य में ऐसा कानून बने जिससे की रोगियों की जिंदगी महफूज रहे। हर ड्रग ट्रायल को पारदर्शी बनाया जाए और नियम तोडऩे वालों को दंडित करने का प्रावधान हो। 
ड्रग ट्रायल पर राज्य में कानून बनाने के संबंध में सिफारिश करने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी की अगुवाई में बनी कमेटी ने शनिवार को एमजीएम मेडिकल कॉलेज सभागृह में करीब तीन घंटे तक जनसुनवाई की।  इसमें 168 जागरूक लोगों ने लिखित और मौखिक सुझाव और आपत्तियां दर्ज करवाईं।

ट्रायल की जरूरत पर तीन राय
पहली: जारी रहें क्योंकि इसके बगैर चिकित्सा विज्ञान की प्रगति संभव नहीं।
दूसरी: बंद हों क्योंकि दवा कंपनियां से मिलने वाले धन के चक्कर में रोगियों की जान जोखिम में डाली जाती है।
तीसरी: आईसीएमआर और डब्ल्यूएचओ द्वारा फंडेड ट्रायल हों क्योंकि वे सीधे तौर पर मानवहित से जुड़े होते हैं। 

कमेटी को मिले दस अहम सुझाव

एक:
डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर की गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र बोर्ड बने।
दो:
सरकारी और निजी संस्थानों की एथिकल कमेटियां सरकार के नियंत्रण में रहें।
तीन: 
रोगी का नुकसान पहुंचने पर निर्धारित बीमा राशि दी जाए।
चार:
नियम तोडऩे वाले डॉक्टरों को दस वर्ष तक के दंड का प्रावधान हो।
पांच :
रा'य में सिर्फ चौथे चरण (दवा को बाजार में बेचने की अनुमति के बाद) के ट्रायल की अनुमति दी जाए।
छह :
ड्रग ट्रायल के लिए आने वाली राशि सरकारी संस्थानों के खाते में जमा हो।
सात :
प्लेसिबो ट्रायल (नकली दवा से उपचार) पर पाबंदी रहे।
आठ: 
बीस वर्ष का चिकित्सकीय अनुभव रखने वाले डॉक्टर ही ट्रायल करने के पात्र माने जाएं।
नौ:
अशिक्षित और बीपीएल श्रेणी रोगियों को ट्रायल का हिस्सा नहीं बनाया जाए।
दस :
नर्सिंगहोम एक्ट में संशोधन कर निजी और सरकारी अस्पतालों के लिए ट्रायल की संपूर्ण जानकारी स्वास्थ्य विभाग को देना जरूरी हो।

मेरे लाड़ले को बीमारी दे दी
जब सुझाव समिति से ही पीडि़त ने मांगा सुझाव 
जनसुनवाई के दौरान कुछ समय के लिए गमगीन माहौल हो गया। जब 6 माह के शिशु यथार्थ के पिता अजय नाईक फूट-फूटकर रोने लगे। अजय के बेटे का जन्म ८ माह पहले ८ मार्च को हुआ। वेलोसिटी टॉकिज के नजदीक धीरज नगर में रहने वाले अजय ने बताया कि यथार्थ को ट्रायल का पहला टीका शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमंत जैन ने लगाया। वे मुझे हर बार आने-जाने के 50 रुपए भी देते थे। इसी क्रम में दूसरा टीका अगले माह लगाया गया। जिसके कुछ दिनों बाद ही बेटे को सफेद दाग उठने लगे। डॉ. जैन को दिखाया तो उन्होंने साबुन, क्रीम, पावडर बदलने को कहा। दाग और बढऩे लगे तो फिर डॉ. जैन को दिखाया, उन्होंने इस बार क्रीम लिखकर दिया और लगाने को कहा। स्थिति फिर भी नहीं संभली तो डॉ. जैन ने मुझे त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. एचके नारंग के पास भेजा, कुछ दिन उन्होंने उपचार किया और बीमारी कम नहीं होने पर मुझे होम्योपैथ चिकित्सक के पास जाने की सलाह दी। वहीं डॉ. जैन ने यथार्थ को टीके लगाना बंद कर दिए हैं और मुझसे कहा है कि मैं आंगनवाड़ी केंद्र पर जाके बाकी टीके लगवाता रहूं। समिति के चेअरमेन दाणी द्वारा टोके जाने पर अजय ने उनसे ही सवाल किया कि आप ही मुझे सुझाव दें कि अब मैं कहां जाउं, किससे शिकायत करूं। मेरे इकलौते बेटे को उन्होंने जो स्थायी बीमारी दी है इसके लिए किसे जिम्मेदार मानूं। 



ड्रग ट्रायल जनसुनवाई

'ठीक होने तक क्यों नहीं मिलती दवा '
- ड्रग ट्रायल पर जनसुनवाई में ट्रायल पीडि़त ने बयां की दास्तां 
- तीन घंटे तक आते रहे सुझाव


मैं पार्किंसन रोग से ग्रसित हूं। २००८ में डॉ. अपूर्व पुराणिक ने मुझे ट्रायल में शामिल किया। उससे मुझे लाभ भी मिला। शुरू में कहा था कि ठीक होने में एक साल का वक्त लगेगा। एक साल बाद कहा उपचार लंबे समय तक चलेगा, लेकिन ट्रायल अवधि समाप्त होने के बाद उन्हें ट्रायल की दवा बंद कर दी। मैं पिछले एक साल से दवा के बगैर जी रहा हूं और पूर्वावस्था में लौट रहा हूं। मैं सेवानिवृत्त हूं और दवा के नाम पर 6 हजार रु हर माह खर्च होते हैं। ऐसा नियम बनाए कि जब तक मरीज ठीक न हो जाए ट्रायल के दौरान दी जाने वाली दवाएं उपलब्ध कराई जाना चाहिए।
यह ड्रग ट्रायल से पीडि़त एमकेएस गौतम ने का कहना है। शनिवार को वे ड्रग ट्रायल पर कानून बनाने के संबंध में गठित कमेटी द्वारा एमजीएम मेडिकल कॉलेज सभागृह में जारी जनसुनवाई में मौजूद थे। चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव आईएस दाणी, डीएमई डॉ. वीके सैनी, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, पूर्व कुलपति डॉ. भरत छपरवाल, ड्रग कंट्रोलर राकेश श्रीवास्तव, संभागीय संयुक्त संचालक स्वास्थ्य डॉ. शरद पंडित, एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत समेत प्रदेश के पांचों मेडिकल कॉलेज के डीन ने उनकी बात सुनी।

बंद कमरे में जनसुनवाई देख भड़के लोग
निर्धारित समय से तीन घंटे देरी से बंद कमरे में शुरू हुई जनसुनवाई को देख ्रसुझाव देने पहुंचे लोग भड़क गए। सामाजिक कार्यकर्ता क ल्पना मेहता, चिन्मय मिश्र, राकेश चांदौरे, किशोर कोडवानी, गौतम कोठारी, राजेंद्र के. गुप्ता, रामगोपाल शर्मा आदि ने नारेबाजी की। बाद में सरदारपुर विधायक प्रताप ग्रेवाल ने धरने पर बैठने की धमकी दी तो कमेटी बाहर आ गई। जनसुनवाई दोपहर एक बजे शुरू हुई और चार बजे तक चली। १६८ सुझावकर्ताओं में से ३८ ने मौखिक बात भी रखी, शेष ने लिखित आवेदन दिए।

आठ संगठनों की एक बात
मानसी स्वास्थ्य संस्थान, मप्र महिला मंच, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन, झुग्गी बस्ती संघर्ष मोर्चा, दीनबंधु सामाजिक संस्था, शिल्पी केंद्र, इंदौर समर्थक समूह और संदर्भ दस्तावेजीकरण केंद्र की ओर से कल्पना मेहता ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों में ट्रायल की निगरानी का सख्त और सक्षम तंत्र विकसित किया जाए। ट्रायल के पांच वर्ष बाद तक रोगी को उपचार सेवा दी जाए।

बाहर के विधायक पहुंचे, इंदौर के नदारद
जन मुद्दों के प्रति इंदौर के नेताओं की संवेदनशीलता की एक बार फिर पोल खुल गई। ड्रग ट्रायल पर जनसुनवाई में सरदारपुर विधायक प्रताप ग्रेवाल और रतलाम विधायक पारस सकलेचा पहुंचे लेकिन इंदौर की सांसद और विधायकों में से कोई नहीं पहुंचा। किसी दल का प्रतिनिधित्व भी नहीं आया।



ट्रायल के पहले मरीज और उसके रिश्तेदारों को शिक्षित किया जाए।
- मनोरमा मेनन, सामाजिक कार्यकर्ता

ट्रायल की आड़ में हो रही गड़बड़ी को जांचा जाना चाहिए। 
- डॉ. अरविंद दुबे, होम्योपैथिक चिकित्सक

आयुर्वेद, होम्योपैथ और अन्य चिकित्सा पद्धतियों को ट्रायल में शामिल किया। 
- डॉ. आशीष पटेल, सहायक प्राध्यापक, मेडिसिन

निजी संस्थानों में को मिलने वाली राशि टैक्स के दायरे में आए। जो राजस्व मिले उससे ग्रामीण इलाकों की सेवाओं में सुधार किया जाए।
- डॉ. आनंद राजे, अध्यक्ष, स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति

ड्रग ट्रायल को लेकर पहले से ही सख्त नियम बने हुए हैं। इन नियमों का पालन तटस्थता के साथ किया जाना सुनिश्चित हों। ट्रायल से भविष्य में होने वाले उपचार में मदद होती है। 
- डॉ. अनिल बंडी, अध्यक्ष, आईएमए इंदौर

नियम ऐसे बनें कि कोई भी अस्पताल आसानी से ट्रायल कर सके। ट्रायल प्रोटोकॉल के अनुसार होना चाहिए। रा'यस्तरीय कमेटी बने जो पूरी देखभाल करे।
- डॉ. सविता इनामदार, वरिष्ठ चिकित्सक

गैर जिम्मेदार डॉक्टर आर्थिक हितों के चलते गलत कदम उठा रहे हैं उनकी निगरानी हो।
- डॉ. उ''वल सरदेसाई, मनोचिकित्सक, एमवायएच

एथिकल कमेटी के अधिकारों को बढ़ाया जाए। यह एक जिम्मेदार कमेटी होती है, जिस पर मरीजों और दवा कंपनियों की जानकारी को गोपनीय रखने की जिम्मेदारी होती है। 
- डॉ. केडी भार्गव, चेअरमैन, एथिकल कमेटी, एमजीएम कॉलेज

ड्रग ट्रायल को लेकर नियम-कायदे अभी केंद्र सरकार और राष्ट्रीय एजेंसियों के हाथ में हैं, इसमें रा'य सरकार की भूमिका भी स्पष्ट हो। ट्रायल में शामिल मरीज को कम से कम 5 वर्ष तक निगरानी में रखा जाना चाहिए। नवजात और ब"ाों पर होने वाले ट्रायल को प्रतिबंधित हों। 
- डॉ. गौतम कोठारी, अध्यक्ष, पीथमपुर औद्योगिक संगठन

निजी संस्थानों में होने वाले ट्रायल को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। वे केवल आर्थिक हितों को साधने के लिए लोगों की जान से खिलवाड़ करते हैं। ट्रायल से गुजर रहे व्यक्ति को यदि लाभ मिलता है तो उसके पूर्णत: स्वस्थ होने तक वही दवा उपलब्ध होना चाहिए। 
- किशोर कोडवानी, सामाजिक कार्यकर्ता

नियम बनाते समय प्रशासकीय नियमों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। प्रदेश में बनने जा रहे नियमों को अन्य रा'यों की तरह ही बनाया जाए। ट्रायल कर रहे डॉक्टरों के आर्थिक हितों का ध्यान रखा जाए।
डॉ. अपूर्व पुराणिक, न्यूरोफिजिशियन, एमवायएच

रेगुलेटरी बोर्ड का गठन किया जाए। दवा कंपनी-मरीज और डॉक्टर के बीच अनुबंध हो। आदिवासी अंचलों से आने वाले मरीजों को एमवायएच के डॉक्टर डब्ल्यूएचओ के नाम पर मिलने वाली मदद के बहाने आश्वस्त करते हैं। खुलकर ट्रायल के जानकारी नहीं देते। अस्पतालों में जानकारी सार्वजनिक की जाए कि कौन-कौन डॉक्टर ट्रायल कर रहे हैं, ट्रायल से होने वाले प्रभाव और दुष्प्रभाव की जानकारी दी जाए। ट्रायल कर रहे डॉक्टर के बाहरी कमरे में काउंसलर की भी व्यवस्था की जाए, जो मरीज को सही-सही जानकारी दे। 
- प्रताप गे्रवाल, विधायक सरदारपुर।

ट्रायल के दौरान मरीज को होने वाले नुकसान के लिए डॉक्टर पर कानूनी शिकंजा कसा जाए। १० वर्ष की सजा का प्रावधान भी रखा जा सकता है। प्रदेश में केवल फेज फोर ट्रायल की अनुमति दी जाए। जिस भी मरीज का चयन किया जाए उसका शिक्षित होना अनिवार्य हो। ट्रायल के बाद मरीज को कम मूल्य पर दवा की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। विशेषज्ञ के रूप में डॉक्टर को कम से कम २० वर्ष का अनुभव हो साथ ही ट्रायल में पांच अन्य विशेषज्ञ भी शामिल किए जाएं। 
- पारस सखलेचा, विधायक, रतलाम

ट्रायल के लिए मरीज चयन में पारदर्शिता रखी जाए। ट्रायल अवधि अथवा ट्रायल समाप्त होने के बाद एक निश्चित अवधि में मरीज को परेशानी हो तो उसके उपचार और इंश्योरेंस की उचित व्यवस्था की जाए। प्लेसिबो ट्रायल ऐसी बीमारी में किया जाए जिसका उपचार मौजूद नहीं हो। ट्रायल से होने वाले रिसर्च को जरनल में प्रकाशित किया जाए। शोध से सामने आने वाली जानकारियां राष्ट्र की संपत्ति हो न कि दवा कंपनियों की। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में ड्रग ट्रायल एडवाइजरी बोर्ड का गठन किया जाए। जिसके पास प्रदेश में ड्रग ट्रायल के नियमन संबंधी सभी अधिकार हों।
डॉ. आनंद राय, सदस्य, स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति

तीन फार्मा कंपनियों ने भी दर्ज की उपस्थिति -
सरकार जो पैसा दस सालों में नहीं दे सकती वो निजी कंपनियां एक साल में ही दे देती हैं। नियमों का निर्धारण सरकार करे।
नीरज शर्मा, प्रतिनिधि, फार्मा कंपनी।
प्रदेश स्तरीय समिति बनाई जाना चाहिए जो मेडिको लीगल प्रकरणों पर तो ध्यान दे ही, उद्योगों के पक्ष को भी समझे और अपने विचार दे।  
संजय मेहता, प्रतिनिधि, फार्मा कंपनी।
फार्मा कंपनियों द्वारा दी जाने वाली राशि का सही संयोजन होना चाहिए। ड्रग ट्रायल पूरी तरह से कानूनन है, पूरा मामला पैसोंं की अव्यवस्था को लेकर उठता दिख रहा है। 
समीर गोखले, प्रतिनिधि, फार्मा कंपनी।

इन्होंने भी दिए सुझाव 
 प्रभु जोशी, राजेंद्र के. गुप्ता, डॉ. विजय भाईसारे, डॉ. देव पाटौदी, डॉ. माधव हासानी, डॉ. श्रुती मूथा, डॉ. गोपाल शर्मा, डॉ.  नम्रता गायकवाड़, डॉ. दीपक मूलचंदानी, डॉ. अभय ठाकुर, डॉ. जनक पलटा,डॉ. सुरेश वर्मा, नागेश व्यास, जेके व्यास, डॉ. नीरजा पौराणिक, विनय बाकलीवाल, आशुतोष महाजन।  

।।।।।।।।।।।।।।।।।
एक माह में सुझाव देगी कमेटी
ड्रग ट्रायल को लेकर कानून बनाने के संबंध में कमेटी से सुझाव मांगे गए हैं और हम वही कर रहे हैं। संभवत: मप्र देश का पहला राज्य होगा, जहां इस तरह का कदम उठाया जा रहा है। कमेटी के सुझाव एक माह में सरकार को दे दिए जाएंगें। नियमों को अंतिम रूप दिए जाने तक नए ड्रग ट्रायल प्रतिबंधित रहेंगे। ड्रग ट्रायल के आरोपों से घिरे किसी भी डॉक्टर के खिलाफ फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की है। 
- आईएस दाणी, प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग 

Patrtika 31 Oct 2010 

नए ड्रग ट्रायल पर रोक

सरकारी और निजी अस्पतालों में अब मरीज नहीं बनेंगे चूहे

बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग यानी ड्रग ट्रायल को आखिर रा'य सरकार ने गलत मान ही लिया। सरकार ने आदेश दिया है किअब सरकारी और निजी अस्पतालों में कोई ट्रायल नहीं कि या जाएगा। साफ है कि अब इलाज के लिए जाने वाले रोगी पर चूहा समझकर प्रयोग नहीं किया जा सकेगा। हांलाकि, दवा कंपनियों के साथ हो चुके अनुबंधों के चलते पहले से जारी ट्रायल को फिलहाल नहीं रोका गया है। 
ड्रग ट्रायल के संबंध में कानून बनाने के लिए चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव आईएस दाणी की अध्यक्षता में गठित रा'य स्तरीय कमेटी ने ड्रग ट्रायल पर रोक लगाने की सिफारिश की थी। शुक्रवार को सरकार ने इसे मंजूर कर लिया। अब सरकारी, निजी मेडिकल कॉलेजों, डेंटल कॉलेजों, स्वास्थ्य विभाग के तहत आने वाले सभी अस्पतालों और भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के अधीनस्थ सरकारी अस्पतालों में ट्रायल नहीं किए जाएंगें।

पत्रिका खुलासे के पहले सरकार भी नहीं जानती थी ट्रायल  (ईपीएस के साथ जाएगा यह बॉक्स)
ड्रग ट्रायल के गोरखधंधे का पहला खुलासा पत्रिका ने 14 जुलाई को कि या था। इसके पहले सरकार को भी पता नहीं था कि दवा कंपनियों से फायदा कमाने के लिए रा'य के सरकारी और निजी अस्पतालों के कुछ डॉक्टर रोगियों को चूहे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। पत्रिका ने तथ्यात्मक खुलासा करते हुए अब तक पचास से अधिक खबरें प्रकाशित की हैं। इसी का असर है कि सरकार ने पहले कानून बनाने के लिए कमर कसी और अब ट्रायल पर रोक लगा दी।

कमेटी को आज दें सुझाव
ड्रग ट्रायल के लिए गठित कमेटी शनिवार प्रात: 10 से दोप. 2 बजे तक एमजीएम मेडिकल कॉलेज में माजनसुनवाई करेगी। चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव दाणी, विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव कमेटी में शामिल हैं। कमेटी के सामने कोई भी नागरिक निजी या सरकारी अस्पताल में हुए ट्रायल की जानकारी दे सकता है। अपने साथ हुए धोखे की कहानी के साथ ही नियमों की सख्ती के बारे में भी अपनी बात रखी जा सकती है।
दो की मौत, 51 पर दुष्प्रभाव
ड्रग ट्रायल से सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 51 रोगियों पर साइड इफेक्ट हुए हैं। जबलपुर में एक कैंसर पीडि़ता और इंदौर में अल्जाइमर पीडि़ता की मौत का कारण ट्रायल रहा है। रा'य में पांच वर्ष में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ। इसमें 1644 ब'चे और 721 वयस्क हैं। जिन मरीजों पर दुष्प्रभाव हुए हैं, उनके नाम जाहिर नहीं किए गए हैं। 

दोषियों पर कार्रवाई हो
सरकार का कदम स्वागत योग्य है लेकिन रोगियों की जान जोखिम में डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की होना चाहिए।
- डॉ. आनंद राय, सदस्य, स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति
(ट्रायल करने वाले डॉक्टरों की शिकायत करने के कारण डॉ, राय को षड्यंत्रपूर्वक तरीके से एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने सीनियर रेसीडेंट पद से हटा दिया गया था। )



ड्रग ट्रायल को काबू करना बेहद आसान
- सरकार ठान ले तो महफूज हो जाएं रोगी


ड्रग ट्रायल पर कानून बनाने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी की अगुवाई में बनाई कमेटी शनिवार को आम लोगों के सुझाव जानेगी। विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव भी कमेटी के सदस्य हैं। विशेषज्ञों से राय शुमारी में साफ हुआ है कि सरकार चाहे तो बेहद आसानी से ड्रग ट्रायल को काबू किया जा सकता है। जानें कैसे-
एक-
सरकारी और निजी संस्थानों की एथिकल कमेटियां सरकार के नियंत्रण में ले ली जाएं।
दो-
नर्सिंगहोम एक्ट में संशोधन करके निजी और सरकारी अस्पतालों के लिए ट्रायल की संपूर्ण जानकारी स्वास्थ्य विभाग को देना जरूरी किया जाए।
तीन-
रोगी का नुकसान पहुंचने पर निर्धारित बीमा राशि दी जाए। नियम तोडऩे वाले डॉक्टरों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हो।
चार-
ड्रग ट्रायल के लिए आने वाली राशि सरकारी संस्थानों के खाते में जमा की जाए, ताकि कोई भी डॉक्टर रूपए के लालच में रोगी की जान से खिलवाड़ न कर सके।
पांच-
निजी संस्थानों में को मिलने वाली राशि टैक्स के दायरे में लें। जो राजस्व मिले उससे ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया जाए।
छह- 
अस्पतालोंं में ट्रायल का पूरा ब्यौरा देने वाले साइनबोर्ड लगाएं जाएं। इसमें शिकायत करने के लिए नाम, पता और नंबर भी हो।
सात-
नियम तोडऩे वाले डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन स्टेट मेडिकल काउंसिल द्वारा रद्द किया जाए।


Patrika 30 Oct 2010

ड्रग ट्रायल की विदेश यात्राओं में घालमेल

- सरकार की अनुमति के बगैर कंपनियों के खर्च से भर ली उड़ान
- लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू को शिकायत


एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में आने वाले रोगियों पर ड्रग ट्रायल करने वाले डॉक्टरों की विदेश यात्राओं में घालमेल सामने आया है। डॉक्टरों ने बीते छह वर्र्षों में एक दर्जन से अधिक विदेश यात्राएं की, लेकिन ज्यादातर में इन्होंने सरकार से अनुमति नहीं ली। एक ने बैंकांक और टर्की की अपनी यात्राओं की जानकारी छुपाने की कोशिश भी की है।

सूचना का अधिकार में प्राप्त दस्तावेज में खुलासा हुआ है कि छह डॉक्टर 14 बार विदेश गए। जाने से पहले इन्होंने अर्जित अवकाश लिया और सरकार से अनुमति के इंतजार में विदेश घुम आए। सरकार से आज तक अनुमति नहीं मिली है। स्वास्थ्य समपर्ण सेवा संस्था ने इसकी शिकायत ईओडब्ल्यू में और एक सामाजिक कार्यकर्ता ने लोकायुक्त में की है।

विधानसभा में जानकारी बताकर फंस गए
मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. अनिल भराणी विदेश जाने की एक जानकारी में फंस गए हैं। विधानसभा प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया था कि ट्रायल के सिलसिले में वे 8 से 10 दिसंबर 2006 तक बैंकाक और मार्च 2009 में टर्की गए थे। दोनों ही यात्राएं दवा कंपनियों द्वारा प्रायोजित थी। अब डॉ. भराणी ये दोनों यात्राएं छुपा रहे हैं। सूचना का अधिकार में उन्होंने इन यात्राओं की जानकारी नहीं दी हैं। एक विधायक ने इस तथ्य की शिकायत चिकित्सा शिक्षा विभाग को की है।

बगैर अनुमति कौन कब कहां गया

क्रं.    कौन                            कहां            कब                       
1.    डॉ. अपूर्व पुराणिक        बोस्टन        25 अप्रैल से 5 मई 2007     
2.    डॉ. हेमंत जैन                फ्रांस            17 से 18 अप्रैल 2007
3.    डॉ. हेमंत जैन               जिनेवा         21 से 24 अक्टूबर 2009
4.    डॉ. अशोक वाजपेयी      यूएसए        16 जुलाई से 13 अगस्त 2005
5.    डॉ. अशोक वाजपेयी      यूएसए        14 मई से 12 जून 2007
6.  डॉ. पुष्पा वर्मा                 हांगकांग        28 जून से 2 जुलाई 2008
7.    डॉ. सलिल भार्गव          हांगकांग        11 से 14 जनवरी 2009
8.    डॉ. सलिल भार्गव          मेड्रिड            25 फरवरी से 3 मार्च 2009
9.    डॉ. सलिल भार्गव          लंदन            14 से 17 अप्रैल 2009
10. डॉ. अनिल भराणी          आरलियंस    1 से 6 मार्च 2004
11. डॉ. अनिल भराणी        पोर्टलैंड        1 से 30 जून 2004
12. डॉ. अनिल भराणी        अटलांटा        9 से 22 मार्च 2006
13. डॉ. अनिल भराणी        मलेशिया,कनाड़ा    26 मार्च से 10 अप्रैल 2008   
14. डॉ. अनिल भराणी        अटलांटा        14 से 20 मार्च 2010   ्र


ड्रग ट्रायल पर 30 को जनसुनवाई
 ड्रग ट्रायल  के संबंध में कानून बनाने के लिए शासन द्वारा गठित कमेटी ३० अक्टूबर को प्रात: १0 से २ बजे के बीच एमजीएम मेडिकल कॉलेज में जनसुनवाई करेगी। कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत ने बताया कमेटी में चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी, विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव शामिल हैं।

Patrika 29 Oct 2010

केटीएस तुलसी ने की बॉबी की पैरवी

- जमानत याचिका पर इंदौर हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित

भू माफिया बॉबी छाबड़ा की पैरवी करने के लिए ख्यात लॉयर केटीएस तुलसी बुधवार को दिल्ली से इंदौर हाईकोर्ट आए। जस्टिस पीके जायसवाल की कोर्ट में उन्होंने बॉबी को जमानत दिए जाने के पक्ष में तर्क रखे। कोर्ट ने फिलहाल फैसला सुरक्षित रखा है। बॉबी के एडवोकेट एपी पोलेकर ने बताया एमआईजी थाने में दर्ज केस के सिलसिले में एडवोकेट तुलसी वकीलों के अपने दल के साथ इंदौर आए थे। सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीश देसाई ने पैरवी की।

11 बंगला केस में 31 मई को गिरफ्तार
तुलसी ने जिस केस में जमानत के लिए पैरवी की है, उसमें एमआईजी पुलिस ने बॉबी को 31 मई को गिरफ्तार किया था। आरोप है कि सविता गृहनिर्माण संस्था की आड़ में बॉबी ने 11 बंगले के बगीचे की जमीन बेच दी और सहकारिता विभाग से तथ्य छुपाए। मामले में संचखंड और शिवाशीष गृहनिर्माण संस्था की मिलीभगत का खुलासा भी कागजात से हो चुका है। इस केस में चरणजीतसिंह सैनी और नितिन रामचंद्र को भी आरोपी बनाया गया है।

Patrika 28 oct 2010

दवा कंपनियों को भी चपत

- ड्रग ट्रायल करने वाले डॉक्टरों से स्पांसर नाराज
- रिजल्ट पर आशंका जताते हुए भेजा ई-मेल


बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) पर अब वे कंपनियां भी ऐतराज जता रही हैं जिन्होंने डॉक्टर के साथ आर्थिक समझौते किए। एक स्पांसर कंपनी ने इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज में हुए ट्रायल के रिजल्ट पर आशंका जताते हुए प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर को पत्र लिखा है। अनुमान है कि अब यह कंपनी इंदौर के डॉक्टरों को अब ट्रायल का काम नहीं सौंपेगी।

ड्रग ट्रायल पर 30 को जनसुनवाई
इंदौर, सिटी रिपोर्टर। बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवाइयों के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) के संबंध में कानून बनाने के लिए शासन द्वारा गठित कमेटी ३० अक्टूबर को दोपहर १२ से २ बजे के बीच एमजीएम मेडिकल कॉलेज में जनसुनवाई करेगी। कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत ने बताया कमेटी में चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएस दाणी, विधि सचिव पीके वर्मा, एमसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व डीएमई डॉ. एनआर भंडारी, डीएमई डॉ. वीके सेनी और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के संयुक्त नियंत्रक डॉ. एनएम श्रीवास्तव शामिल हैं। कमेटी के सामने कोई भी नागरिक व्यक्तिगत रूप से अपनी बात लिखित या मौखिक में दर्ज करा सकता है।

Patrika  27 Oct 2010

क्यों छुपाई ड्रग ट्रायल की बातें?

- आरटीआई केस में मेडिकल कॉलेज डीन चेंबर में हुई सुनवाई
- अहम सवालों पर अंदाज के तीर चलाते रहे एमवायएच अधीक्षक


ड्रग ट्रायल का ब्यौरा जब आर्थोपेडिक्स विभाग दे सकता है तो शिशु रोग, मेडिसिन विभाग क्यों नहींï? डॉक्टर और स्पांसर कंपनी के बीच होने वाले क्लिनिकल ट्रायल एग्रीमेंट (सीटीए) को क्या भारत सरकार ने गोपनीय दस्तावेज माना है? विधानसभा को भेजी गई जानकारी और इंदौर में दी गई जानकारी में अंतर क्यों है?
 मंगलवार को ये सवाल एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत के चेंबर में गूंजे। मौका सूचना का अधिकार में स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के डॉ. आनंद राय को जानकारी नहीं देने की अपील की सुनवाई का था। जवाब एमवायएच अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव को देना थे। तथ्यात्मक बात रखने के बजाए अनुमान के आधार पर तर्क रखते हुए उन्होंने उत्तर दिए जो नामंजूर हो गए। शिशु, नेत्र और मेडिसिन विभाग ने वह जानकारी क्यों नहीं दी जो विधानसभा में भेजी गई, के जवाब में डॉ. भार्गव संतुष्टï नहीं कर पाए। अपीलकर्ता ने तत्काल नि:शुल्क जानकारी देने और दोषियों पर अर्थ दंड करने की मांग की। कॉलेज डीन ने फिलहाल फैसला नहीं दिया है।

'कालिख पोतने की आदत'
अपीलकर्ता ने डीन को बताया एमवायएच प्रबंधन और कुछ विभागाध्यक्षों को काले कारनामों पर कालिख पोतने की आदत है। मेडिसिन विभाग ने ट्रायल से जुड़ी एक सूचना में सीटीए के उस अंश पर कालिख पोत दी थी जिसमें कंपनी से आने वाली राशि की जानकारी थी।

Patrika 26 Oct 2010

उड़ते वीवीआईपी की जान जोखिम में

- चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर एमपी फ्लाइंग क्लब में भी दे रहे सेवा
- केंद्रीय नागर विमानन विभाग ने मप्र सरकार को दिए जांच के आदेश



राज्य के उन वीवीआईपी की जान जोखिम में है जो सरकारी उड़ान सेवा से यात्राएं करते रहते हैं। उनके विमानों को हवा से बातें करने की जिम्मेदार संभालने वाले चीफ ऑपरेटिंग अधिकारी मप्र फ्लाइंग क्लब में भी सेवाएं दे रहे हैं। केंद्रीय नागर विमानन विभाग ने इसे गंभीर त्रूटि मानते हुए राज्य सरकार को जांच के आदेश दिए हैं।
केंद्रीय नागर विमानन विभाग के सीनियर उडऩयोग्यता अधिकारी आरबी सोनी ने एक जांच में पाया कि मप्र के चीफ ऑपरेटिंग अधिकारी एसएम अख्तर सरकारी सेवा में होने के साथ ही मप्र फ्लाइंग क्लब में बतौर चीफ फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर भोपाल काम कर रहे हैं। इससे वीवीआईपी की उड़ान सुरक्षा में भारी चूक की आशंका है। सोनी ने मप्र नागर विमानन संचालक अरुण कोचर को इस मामले की विस्तार से पड़ताल करने के आदेश दिए हैं।

लाखों का भुगतान
सूत्रों के मुताबिक सीएफआई सेवा के लिए एमपी फ्लाइंग क्लब ने एसएम अख्तर को 35 लाख से अधिक का भुगतान किया है। ज्ञात रहे फ्लाइंग क्लब के सचिव मिलिंद महाजन हैं। उनके भाई मंदार महाजन इंदौर में सीएफआई हैं।

तीन बिंदुओं पर होगी जांच
एक: राज्य ने किस नियम के तहत अख्तर को फ्लाइंग क्लब में सीएफआई बनने की अनुमति दी?
दो: एक ही समय में वीआईपी एयरक्राफ्ट का पायलट, एमपी फ्लाइंग क्लब का सीएफआई कैसे रहाï?
तीन: वीआईपी सुरक्षा के लिए राज्य सरकार ने क्या कदम उठाए? 

Patrika 27 Oct 2010

चूना था, तो जनता को क्यों नहीं दे दिया?

- यूका कचरे पर भोपाल गैस त्रासदी आयोग का रामकी प्रबंधन से सवाल
- कचरे को पीथमपुर में दफन करने की संभावना तलाशने पहुंचे जस्टिस कोचर


भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ मसलों पर जस्टिस एसएल कोचर की अध्यक्षता में गठित एक सदस्यी जांच आयोग शनिवार को पीथमपुर स्थित रामकी संयंत्र में था। आयोग ने संयंत्र का दौरा कर यूनियन कार्बाइड का कचरा यहां दफन करने की संभावना तलाशी। रामकी प्रबंधन ने बताया भोपाल से यहां लाए गए 33 टन कचरे में कोई विषैली सामग्री नहीं थी, वह तो महज चूना था। इस पर जस्टिस कोचर ने सवाल किया चूना था तो यहां क्यों लाए, आम लोगों को क्यों नहीं दे दिया गया। रामकी के पास इसका कोई जवाब नहीं था। लोकमैत्री संगठन व आजादी बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने भी आयोग से मुलाकात कर रामकी की खामियों की जानकारी दी। आयोग ने उनसे मय दस्तावेज सारे तथ्य मांगे हैं। संयंत्र के अधिकारी अमित चौधरी ने औद्योगिक कचरे को नष्टï करने की विधि का प्रेजेंटेशन दिया।

चकित रह गए आपत्तिकर्ता
आयोग के समक्ष बात रखने आए तपन भट्टाचार्य से जब पूछा गया आप कहां तक पढ़े हैं और क्या करते हैं? तो वे चकित रह गए क्योंकि आयोग का इस बात से सीधे तौर पर कोई ताल्लुक नहीं है। हांलाकि, उन्होंने बताया मैं पूर्ण रूप से सामाजिक कार्य में जुटा हूं और मेरे परिवार का खर्च मेरी पत्नी की तनख्वाह से चलता है। शिक्षा का ब्यौरा भी दिया।

भूसे में से गेंहू निकालना मेरा काम
प्रो. प्रसाद ने जब बातें विस्तार से रखना शुरू की तो आयोग ने बीच में ही टोक दिया। प्रोफेसर ने बताया मैं तो अखबार में आयोग की सूचना पढ़कर आया हूं, आप नहीं सुनना चाहें तो आपकी मर्जी। इस पर जस्टिस कोचर बोले मैं आपकी बात सुन रहा हूं, बस मैं कुछ बातें जानना चाहता हूं इसलिए रोक रहा हूं। मेरा काम ही भूसे से गेंहू निकालना है।


नकार चुके केंद्र-राज्य
रामकी सयंत्र की खामियों और आम जनता के विरोध को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार यूका कचरे को यहां लाने की मनाही कर चुके हैं। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने 9 जुलाई को और केंद्र सरकार के मंत्री समूह ने 27 सितंबर को इस संबंध में घोषणा की थी।
 उजागर करने के साथ इस अहम लड़ाई की शुरुआत हुई। इसके लिए पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी द्वारा सूचना का अधिकार में जुटाए गए दस्तावेजों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही। लगातार छह महीने से उन्होंने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मप्र पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड के यहां अर्जियां लगाई और जानकारियों का पुलिंदा तैयार किया।


टॉस्क फोर्स ने मान चुकी है यूका कचरा विषैला है इसीलिए आयोग को रामकी पर विचार नहीं करना चाहिए। वैसे भी रामकी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार मल्टी इफेक्ट इवेपोरेटर अब तक नहीं लगाया है। हम जो भी कह रहे हैं उसके प्रमाण मौजूद हैं।
- प्रो. आरडी प्रसाद, लोकमैत्री संगठन

रामकी के स्थान का चयन गलत है। संयंत्र की बाउंड्री पर ही तारपुरा गांव है। वहां के लोगों को बीमारियां भी होने लगी है। यहां के पानी का बहाव इंदौर के यशवंत सागर तक जाता है, जो कि पेयजल का स्त्रोत है। आयोग को रामकी का स्थान बदलने की सिफारिश करना चाहिए।
- तपन भट्टाचार्य, आजादी बचाओ आंदोलन

आयोग सात बिंदुओं पर जांच कर रहा है। अब तक भोपाल में दो बैठकें हो चुकी हैं। यूका कचरा निपटान के बारे में भी आयोग को ही फैसला करना है। यह पहला दौरा था। लोगों को बात रखने का पूरा मौका दिया जाएगा। जिसे जो भी कहना है, तथ्य सहित बताना होगा।
- जस्टिस एसएल कोचर, अध्यक्ष, भोपाल गैस त्रासदी जांच आयोग



Patrika 23 oct 2010

ड्रग ट्रायल पर चौंका यूएन का दल

- शुरू होगी अंतरराष्टरीय बहस


मप्र में हो रहे ड्रग ट्रायल की अनियमितताओं पर संयुक्त राष्टï्रसंघ के एशियन लिगल रिसोर्स सेंटर की टीम को भी चौंका दिया है। हांगकांग की टीम ने शुक्रवार को इंदौर में कुछ लोगों से मुलाकात करके जानकारी जुटाई। टीम लौटकर इस मसले पर अंतरराष्ट्रीय बहस शुरू करेगी।
एशियन लिगल रिसोर्स सेंटर के प्रोग्राम ऑफिसर बिजो फ्रांसिस एक अन्य सहयोगी के साथ मप्र के दौरे पर है। स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के सदस्य डॉ. आनंद राय ने उनसे मुलाकात करके बताया कि विदेशी कंपनियों के धन के लालच में मप्र के कुछ डॉक्टरों ने डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर के मापदंडों को ताक में रखकर रोगियों की जान जोखिम में डाली। जिन लोगों ने अनियमितताओं का खुलासा किया, उनके प्रति सरकार का रवैय्या भी ठीक नहीं है। ज्ञात रहे ट्रायल करने वालों की शिकायत करने के लिए डॉ. राय पर हड़ताल करवाने का आरोप मढ़कर एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने उन्हें  सिनीयर रेसीडेंट के पद से हटा दिया था। यूएन के दल ने इसे विहसल ब्लोअर पर आक्रमण माना है।

भोजन के अधिकार पर चर्चा
बिजो फ्रांसिस ने तीन दिन तक धार रोड़ स्थित प्रेरणा सेवा समिति भवन में रहकर प्रदेश में भोजन का अधिकार पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं और संस्थाओं की बैठक ली। दस जिलों में राईट टू फुड पर काम कर रहे 25 कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। किस तरह एशिया को भूखमरी और कुपोषण से मुक्त बनाया जाए। कृषिप्रधान देश के रूप में भारत की इसमें क्या भूमिका हो सकती है? भारत में व्यास्त विसंगतियों को दूर करने में संस्थाओं और कार्यकर्ताओं की भूमिका क्या और कैसी होनी चाहिए? सवालों पर लंबी बहस भी यहां हुई।  


Patrika 22 Oct 2010

जांच आयोग आज रामकी में

 भोपाल गैस त्रासदी 1984 से संबंधित अहम मसलों पर प्रदेश सरकार द्वारा जस्टिस एसएल कोचर की अध्यक्षता में गठित एक सदस्यी जांच आयोग शनिवार दोपहर तीन से चार बजे तक पीथमपुर में रहेगा। वहां रामकी इनवायरो कंपनी का निरीक्षण किया जाएगा। आयोग के निजी सचिव वर्गीस मैथ्यू ने बताया दौरे के दौरान कोई भी व्यक्ति अपनी बात मौखिक या लिखित में स्वयं उपस्थित होकर दर्ज कर सकता है।

patrika 22 oct 2010

छह माह में पूरी हो आठ डॉक्टरों की जांच

- एमसीआई ने मप्र मेडिकल काउंसिल को भेजा आदेश
- मामला एनपीए लेकर प्रायवेट प्रेक्टिस करने का

नॉन प्रेक्टिस एलाउंस लेकर प्रायवेट प्रेक्टिस करने के आरोप से घिरे एमजीएम मेडिकल कॉलेज के आठ डॉक्टरों की जांच प्रक्रिया तेज हो गई है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने मप्र मेडिकल काउंसिल को पत्र लिखकर कहा है कि इन डॉक्टरों की जांच छह महीने में पूरी कर ली जाए।
आरोप है कि मेडिकल कॉलेज के डॉ. अपूर्व पुराणिक, पुष्पा वर्मा, हेमंत जैन, जीबी रामटेके, रामगुलाम राजदान, सलिल भार्गव, वीएस पाल एवं अरविंद घनघोरिया एनपीए लेने के साथ प्रायवेट प्रेक्टिस भी करते हैं। इससे शासन को दोहरी मार पड़ रही है। साथ ही एमवाय अस्पताल में आने वाले मरीजों को उपचार मिलने परेशानी होती है। राजेंद्र के. गुप्ता की शिकायत पर एमसीआई की डिप्टी सेक्रेटरी डॉ. रीना नैय्यर ने मप्र मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार को तत्काल जांच शुरू करने के निर्देश जारी किए हैं।

patrika 21 oct 2010

सोमवार, 27 दिसंबर 2010

गुजरात-राजस्थान से बेकार मप्र के फोरलेन

- जनहित याचिका पर हाईकोर्ट की कमेटी की राय

इंदौर हाईकोर्ट की एक कमेटी ने खुलासा किया है कि मध्यप्रदेश के फोरलेन रोड गुजरात और राजस्थान से बेकार हैं। मध्यप्रदेश से गुजरने वाले एबी रोड के करीब 180 किमी हिस्से का मुआयना करने पर कमेटी को पता चला कि इंदौर से ग्वालियर तक का हिस्सा पूरी तरह खराब है। इसी प्रकार इंदौर से अहमदाबाद और बैतूल की सड़कें भी बदहाल हैं। इंदौर-अहमदाबाद राष्टï्रीय राजमार्ग के बीस किमी के एक हिस्से को पार करने में कई घंटे लगते हैं।

सेंधवा के बीएल जैन की जनहित याचिका पर इंदौर हाईकोर्ट की फुल बेंच जस्टिस एसएन कोचर, शांतनु केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव ने 8 अक्टूबर को वरिष्ठ अधिवक्ता चंपालाल यादव, एडवोकेट रमेश छाजेड़ एवं अब्दुल सलीम की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी को राष्टरीय राजमार्ग क्रमांक-3 के इंदौर से खलघाट एवं खलघाट से बिजासन घाट तक का निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करना था। बुधवार को कमेटी ने 19 फोटोग्राफ एवं 9 पेज की रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी। शुक्रवार को इस पर बहस होगी।

राजमार्ग कहने में शर्म
कमेटी ने राजमार्र्गों की हालत पर टिप्पणी की है कि इन्हें राष्टï्रीय राजमार्ग कहना शर्म की बात है। क्योंकि कई स्थानों पर सामान्य सड़क भी नहीं मिली। इंदौर से कन्नौद की ऐसी ही स्थिति है।

पेचवर्क कर भर दिए गड्ढे

कमेटी का मानना है कि कोर्ट के आदेश के तत्काल बाद संबंधित सड़क के गड्ढों को पेचवर्क करके भर दिया गया है। अपने तर्क को आधार देने के लिए कमेटी ने कुछ ऐसे फोटो पेश किए हैं जिनमें ताजा डामर स्पष्टï दिखाई देता है।

हाईकोर्ट से संज्ञान की अपील
कमेटी ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया है कि इंदौर से ग्वालियर, अहमदाबाद और बैतूल तक के राष्टï्रीय राजमार्र्गों की बदहाली पर जरूरी निर्देश जारी किए जाएं। यदि कोर्ट इस पर संज्ञान लेती है तो जनहित में यह एक बड़ा कार्य होगा।

लोक परिवहन का इंतजाम नहीं

सेंधवा में सवारी जीप एवं ट्राले की टक्कर में 21 लोगों की मौत पर कमेटी ने टिप्पणी करते हुए लिखा है कि मध्य प्रदेश में लोक परिवहन की उचित व्यवस्था नहीं है। इस कारण अवैध परिवहन होता है और मुसाफिरों की जान हमेशा जोखिम में रहती है। प्रदेश सरकार को चाहिए कि तत्काल लोक परिवहन का इंतजाम हो।

रोड पर पत्थरों का खतरा
मानपुर से बीकानेर घाट के दोनों ओर पक्की नालियों की कोई व्यवस्था नहीं है। घाट क्षेत्र में समय-समय पर पहाड़ से पत्थर गिरते रहते हैं। पत्थरों को रोकने का इंतजाम नहीं किया गया तो कभी भी गंभीर दुर्घटना हो सकती है।

ये खामियां भी मिलीं

- राजमार्ग के दोनों ओर सर्विस रोड पूरी नहीं बनाई गई है।
- रास्ते में अ'छे यात्री प्रतीक्षालय और चौराहों की कमी है।
- डिवाइडर पर गाजर घास उगी है जबकि वहां सुंदर पौधे होना चाहिए।
- इंदौर से सेंधवा के बीच नर्मदा पुल की हालत नहीं सुधारी तो दुर्घटना का खतरा है।
- खलघाट से सेंधवा के रास्ते पर डेब नदी पुल पर रेलिंग नहीं है।
- जिन किसानों से राजमार्ग के लिए जमीन ली गई उन्हें अब तक मुआवजा नहीं मिला।

पत्रिका २७ अक्टूबर २०१० 
सड़क 

कैलाश को नहीं मिला कवच

- सुगनीदेवी मामले में लोकायुक्त पुलिस की कोशिश नाकाम
- अंतिम चालान के लिए विशेष कोर्ट ने तय की चार महीने की सीमा
- लोकायुक्त के सारे दावे सिरे से खारिज


लोकायुक्त पुलिस 100 करोड के सुगनीदेवी जमीन घोटाले में आरोपी क्रमांक दो यानी कैलाश विजयवर्गीय को समय कवच पहनाने में नाकामयाब हो गई है। विशेष कोर्ट ने लोकायुक्त पुलिस के उस दावे को खारिज कर दिया है जिसमें जांच के लिए समय सीमा की आड़ ली गई थी। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया है कि सुगनीदेवी जमीन मामले में अंतिम चालान 21 फरवरी 2011 तक कोर्ट में पेश किया जाए।
विशेष न्यायाधीश एसके रघवुंशी बुधवार को एक अहम फैसले में कहा कि लोकायुक्त पुलिस को एक नियत समय सीमा में काम करने का आदेश देना कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में है। सीकरी वासु विरुद्ध उप्र सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2008 में दिए फैसले का दृष्टांत देते हुए कोर्ट ने लिखा है कि यदि पुलिस ठीक ढंग से जांच नहीं करे तो समय सीमा तय करने के साथ ही कोर्ट जांच की निगरानी भी कर सकता है।

मामले में लोकायुक्त के विशेष अभियोजक एलएस कदम ने 21 सितंबर को तर्क दिया था कि जांच की समय सीमा तय करना विशेष न्यायाधीश के अधिकार में नहीं आता है। इसी पर परिवादी सुरेश सेठ ने 6 अक्टूबर को करीब 300 पेज का जवाब कोर्ट के पटल पर रखा था। उन्होंने लोकायुक्त पुलिस की अर्जी के छहों न्यायिक दृष्टांतों की भी तार्किक तरीके से धज्जियां उड़ाई थीं।

सुरेश सेठ को न्यायिक कवच

विशेष कोर्ट ने बुधवार को फैसले में यह भी स्पष्ट कर दिया कि एफआईआर दर्ज होने और चालान पेश होने के बीच फरियादी सुरेश सेठ को अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है। लोकायुक्त पुलिस ने कहा था कि एफआईआर के बाद मामला जांच एजेंसी व कोर्ट के बीच सिमट जाता है इसलिए फरियादी को कोर्ट में आने का अधिकार नहीं है।

जांच एजेंसियों के लिए ऐतिहासिक सबक
कानूनी जानकारों का मानना है कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की पड़ताल करने वाली ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, सीआईडी जैसी जांच एजेंसियों के लिए विशेष कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक सबक जैसा है। अब तक जांच एजेंसियां एफआईआर दर्ज करके मामले को ठंडे बस्ते में डालने की आदी रही है। यही वजह है कि कई केस 15-15 सालों तक चालान के मुकाम तक नहीं पहुंच सके। हर बार जांच एजेंसियां यही तर्क देती है कि अनुसंधान की समय सीमा तय करने का कोर्ट को कोई अधिकार नहीं है। यही वजह है कि जांच एजेंसि

'नहीं बचेगा कैलाश' 
फैसले पर सुरेश सेठ ने प्रतिक्रिया दी है कि अब लोकायुक्त पुलिस मामले में तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय को नहीं बचा सकती। अंतिम चालान में कैलाश का नाम नहीं आया तो कोर्ट स्वयं भी नाम सम्मिलित करवा सकती है।

मेंदोला सहित फंस चुके सत्रह
इस केस में लोकायुक्त पुलिस 5 अगस्त को 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और अपराधिक षड्यंत्र रचने का केस दर्ज कर चुकी है। इसमें कैलाश विजयवर्गीय के अतिरिक्त तीनों आरोपियों (विधायक रमेश मेंदोला, व्यवसायी मनीष संघवी व विजय कोठारी) की घेराबंदी की गई है। इसमें निगम अफसर सहित 14 अन्य आरोपी हैं।

हाईकोर्ट में भी मुंह की खाई
विशेष कोर्ट द्वारा लोकायुक्त पुलिस को जांच के निर्देश को विधायक रमेश मेंदोला और व्यवसायी मनीष संघवी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस एसएल कोचर व शुभदा वाघमारे ने दोनों की याचिकाओं को सिरे से खारिज कर दिया था।

पांच पेज के फैसले के निहितार्थ
1. लोकायुक्त पुलिस ठीक से नहीं कर रही है जांच
(पेज 4 पर लिखा गया जांच एजेंसी अनावश्यक रूप से जांच में विलंब न करें)
2. सुरेश सेठ से बचना चाहती है लोकायुक्त पुलिस।
(पेज 4 व 5 पर लिखा गया है परिवादी सुरेश सेठ को कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है)
3. कोर्ट को मंजूर नहीं राजनीतिक हस्तक्षेप
(फैसले के पेज 2 पर सुरेश सेठ के तर्क को प्रमुखता देते हुए लिखा है कि प्रभावशील राजनीतिक व्यक्ति के हितों को बचाने के लिए जांच में देरी हो रही है)
                                          
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यूं निकाली लोकायुक्त पुलिस की हवा
सेठ ने कोर्ट में करीब 300 पेज का जो जवाब पेश किया है, उसमें उन छहों न्यायिक दृष्टांतों को खारिज किया गया है, जो लोकायुक्त पुलिस ने दिए थे।
एक-
निर्मलजीतसिंह हून बनाम पश्चिम बंगला सरकार केस में कोर्ट ने अनुसंधान अधिकारी को अनुसंधान की दिशा या सीमाओं के संबंध में कोई दिशा नहीं दी थी।
दो-
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा केस में फैसला आरोपी के संबंध में विचार तय करने से जुड़ा है, जबकि मौजूदा केस में विशेष न्यायालय ने कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कोई विचार धारणा प्रकट नहीं की है।
तीन-
पश्चिम बंगाल बनाम एसएन बासक केस में कोर्ट के दिशा निर्देश अंतिम जांच प्रतिवेदन के संबंध में है, जबकि सुगनीदेवी केस में अब तक लोकायुक्त पुलिस ने अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया है।
चार -
बिहार बनाम जेएसी सल्धाना केस भी समर्थन नहीं करता है, क्योंकि विशेष कोर्ट द्वारा अंतिम जांच रिपोर्ट के लिए तारीख तय करना अनुसंधान कार्य में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।
पांच -
टीटी ऐथोनी बनाम केरल केस सक्सेसिव एफआईआर से जुड़ा है, इसलिए यहां प्रासंगिक नहीं है।
छह -
एसएन शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी, मेसर्स जयंत विटामिन्स बनाम चैतन्य कुमार एंड अदर्स, हरियाणा बनाम भजनलाल केस में एफआईआर और उसके बाद अनुसंधान की स्थिति की व्याख्या की गई है।
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जनता के सामने खड़े कई सवाल

सुरेश सेठ ने कोर्ट में प्रस्तुत जवाब में कई सवाल उठाए थे। उन्होंने कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त पुलिस के वकील के तर्कों से जनता के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं, न्यायहित में इनका समाधान बेहद आवश्यक है। उन्होंने लिखा था -
1. प्रथम दृष्टया दोषी होने के बावजूद कैलाश के खिलाफ पहली एफआईआर में नाम नहीं जोड़ा जाना कितना न्यायसंगत है?
2. क्या लोक अभियोजक ने 6 अगस्त की पेशी पर जो जवाब पेश किया, वह राज्य सरकार के दबाव में आकर दिया गया है?
3. क्या विशेष लोक अभियोजक दुर्भावनापूर्ण तरीके से विजयवर्गीय के राजनैतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
4. हाईकोर्ट में 19 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेठ ने लोकायुक्त संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तब लोकायुक्त के वकील ने कोई कोई आपत्ति नहीं ली थी, इसका अर्थ क्या है?
5. क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस केस में विशेष लोक अभियोजक को बतौर लोकस स्टेंडी (पक्ष रखने का अधिकार) प्राप्त है? 

पत्रिका २० अक्टूबर २०१०

कैलाश पर फैसला आज

- सुगनीदेवी जमीन मामले में विशेष न्यायालय देगा 'समय कवच' पर निर्णय


100 करोड के सुगनीदेवी जमीन घोटाले की शिकायत के आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की जांच की समय सीमा पर विशेष न्यायालय बुधवार को फैसला सुनाएगा। लोकायुक्त पुलिस का तर्क है कोर्ट को समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं, जबकि फरियादी सुरेश सेठ ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक दृष्टांतों के आधार पर साबित किया है कि लोकायुक्त जैसी जांच संस्थाओं के लिए भी समय की बाध्यता होती है। 

केस में पिछली सुनवाई 6 अक्टूबर को हुई थी। तब विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने दोनों पक्षों के तर्क सुनकर फैसला 20 अक्टूबर तक के लिए सुरक्षित रखा था। पिछली सुनवाई में शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पुलिस के तर्कों की सिलसिलेवार धज्जियां उड़ाते हुए कोर्ट को बताया विजयवर्गीय को बचाने के लिए ही लोकायुक्त पुलिस ने 21 सितंबर को कोर्ट में अर्जी दी थी कि जांच की समय सीमा तय नहीं की जाए। वैसे 21 सितंबर को लोकायुक्त पुलिस को कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश करना थी। परंतु ïविशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने कोर्ट को बताया था कि मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और चालान पेश करने का लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है। 

'लोकायुक्त पुलिस की भूमिका संदिग्ध'
सुरेश सेठ ने कोर्ट को लिखित में दिया है लोकायुक्त पुलिस मप्र के मंत्री (कैलाश विजयवर्गीय) के दबाव में आकर संदिग्ध भूमिका निभा रही है। विजयवर्गीय इस प्रकरण में न केवल संलिप्त हैं, बल्कि सार्वजनिक घोषणाओं में भी वे यह मंजूर कर चुके हैं। पद का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने 28 अगस्त 2010 को नंदानगर साख संस्था की विशेष साधारण सभा में विवादित जमीन पर कॉलेज बनाने की घोषणा भी कर दी है।

'हाईकोर्ट ने भी तो तय की समय सीमा'   
सेठ ने बताया अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक आरएन सक्सेना के खिलाफ हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को छह माह में जांच करने के निर्देश दिए हैं। उस केस में और मेरे केस में कोई मौलिक अंतर नहीं है। वहां याचिकाककर्ता ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी, यहां विशेष न्यायालय में लगाई गई।                                                   
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यूं निकाली लोकायुक्त पुलिस की हवा
सेठ ने कोर्ट में करीब 300 पेज का जो जवाब पेश किया है, उसमें उन छहों न्यायिक दृष्टांतों को खारिज किया गया है, जो लोकायुक्त पुलिस ने दिए थे।
एक-
निर्मलजीतसिंह हून बनाम पश्चिम बंगला सरकार केस में कोर्ट ने अनुसंधान अधिकारी को अनुसंधान की दिशा या सीमाओं के संबंध में कोई दिशा नहीं दी थी।
दो-
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा केस में फैसला आरोपी के संबंध में विचार तय करने से जुड़ा है, जबकि मौजूदा केस में विशेष न्यायालय ने कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कोई विचार धारणा प्रकट नहीं की है।
तीन-
पश्चिम बंगाल बनाम एसएन बासक केस में कोर्ट के दिशा निर्देश अंतिम जांच प्रतिवेदन के संबंध में है, जबकि सुगनीदेवी केस में अब तक लोकायुक्त पुलिस ने अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया है।
चार -
बिहार बनाम जेएसी सल्धाना केस भी समर्थन नहीं करता है, क्योंकि विशेष कोर्ट द्वारा अंतिम जांच रिपोर्ट के लिए तारीख तय करना अनुसंधान कार्य में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।
पांच -
टीटी ऐथोनी बनाम केरल केस सक्सेसिव एफआईआर से जुड़ा है, इसलिए यहां प्रासंगिक नहीं है।
छह -
एसएन शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी, मेसर्स जयंत विटामिन्स बनाम चैतन्य कुमार एंड अदर्स, हरियाणा बनाम भजनलाल केस में एफआईआर और उसके बाद अनुसंधान की स्थिति की व्याख्या की गई है।
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जनता के सामने खड़े कई सवाल

सुरेश सेठ ने कोर्ट में प्रस्तुत जवाब में कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि लोकायुक्त पुलिस के वकील के तर्कों से जनता के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं, न्यायहित में इनका समाधान बेहद आवश्यक है। उन्होंने लिखा है-
1. प्रथम दृष्टया दोषी होने के बावजूद कैलाश के खिलाफ पहली एफआईआर में नाम नहीं जोड़ा जाना कितना न्यायसंगत है?
2. क्या लोक अभियोजक ने 6 अगस्त की पेशी पर जो जवाब पेश किया, वह राज्य सरकार के दबाव में आकर दिया गया है?
3. क्या विशेष लोक अभियोजक दुर्भावनापूर्ण तरीके से विजयवर्गीय के राजनैतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
4. हाईकोर्ट में 19 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेठ ने लोकायुक्त संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तब लोकायुक्त के वकील ने कोई कोई आपत्ति नहीं ली थी, इसका अर्थ क्या है?
5. क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस केस में विशेष लोक अभियोजक को बतौर लोकस स्टेंडी (पक्ष रखने का अधिकार) प्राप्त है?

पत्रिका १९ अक्टूबर २०१०

पेनजॉन ने मुबंई को दी तीन करोड़ की कड़वी दवा

- वसूली के लिए मनोज-अंजु कोठरी को खोज रही ग्लोबल ट्रेड फाईनेंस कंपनी
- इंदौर के निवेशकों से साढ़े तीन करोड़ लेकर फरार है दोनों


धोखे का धंधा

इंदौर पुलिस को लगातार चकमा देने में कामयाब रहे पेनजॉन फार्मा के संचालक मनोज नगीन कोठारी और अंजु मनोज कोठारी ने मुंबई की ग्लोबल ट्रेड फाईनेंस कंपनी को 2.90 करोड़ रुपए की चपत लगा दी है। कोठारी दंपत्ति से वसूली के लिए कंपनी ने मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।

पेनजॉन फार्मा ने व्यापार के लिए ग्लोबल ट्रेड  फाईनेंस से कर्जा लिया था। जब चुकाने की बारी आई तो कोठारी दंपत्ति गायब हो गए। कंपनी ने अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हाल ही में मुंबई हाईकोर्ट ने समन्स जारी किए हैं।

पते पर ताला
कोठारी दंपत्ति ने कर्जा लेते वक्त जो पता दर्ज किया था, फिलहाल वे वहां नहीं रहते। प्राप्त जानकारी के मुताबिक पेनजॉन ने स्कीम नं. 54 स्थित मान हाउस का पता दिया था। पेनजॉन ने यह ऑफिस किराए पर लिया था। फिलहाल वहां ताला लगा है।

प्रशासन का संरक्षण 
पेनजॉन के खिलाफ इंदौर के 500 से अधिक निवेशकों की लड़ाई जारी है। इन निवेशकों के साढ़े तीन करोड़ रुपए लेकर गायब है। पुलिस ने मनोज-अंजु कोठारी और कीर्तिकुमार शाह पर पांच-पांच हजार रुपए का ईनाम घोषित किया है। निवेशकों का मानना है कि पेनजॉन कंपनी संचालकों को जिला और पुलिस प्रशासन की सुस्ती का फायदा मिल रहा है, अन्यथा कोठारी दंपत्ति को पकडऩा मुश्किल काम नहीं है।

मुंबई में ही कट रही फरारी
सूत्रों के मुताबिक कोठारी दंपत्ति की फरारी मुंबई में ही कट रही है। वहीं रहकर मनोज कोठारी न्यूट्रीचार्ज नाम की दवा का कारोबार कर रहा है। इंदौर में भाजपा नेता अशोक डागा की भतीजी प्राची डागा पेनजॉन फार्मा की सुपर स्टाकिस्ट है।

पत्रिका १७ oct २०१०

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

सफेद हाथी

- एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रोफेसर ने पांच साल से नहीं ली क्लास
- लीगल सेल, गार्डन प्रभारी बन पा रहे 77 हजार रुपए महीना


एमजीएम मेडिकल कॉलेज के सांख्यिकी प्रोफेसर एलके माथुर ने पांच वर्ष से एक भी क्लास नहीं ली है। उन्हें 77 हजार 208 रुपए महीना वेतन मिलता है। फिलहाल वे कॉलेज के लीगल सेल और गार्डन प्रभारी हैं। प्रो. माथुर की ड्ïयूटी का अधिकांश समय कॉलेज डीन के चेंबर में गुजरता है।
सूचना का अधिकार में जारी एक दस्तावेज में कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन विभागाध्क्ष डॉ. संजय दीक्षित ने माना कि प्रोफेसर माथुर ने पांच वर्ष में अंडर ग्रे'युएट एवं पोस्ट ग्रे'युएट कोर्स में शिक्षण कार्य नहीं किया है।

प्रो. माथुर के वेतन का ब्यौरा
बेसिक पे                         51700  रु
ग्रेड पे                                 8700 रु
डीए                                  16308 रु
अकादमिय भत्ता                    500 रु
मकान भत्ता                            -
कुल                                   77208 रु


 वे मेरे भरोसेमंद हैं

प्रो. एलके माथुर का क्या दायित्व है?
वे सांख्यिकी के  प्रोफेसर हैं और उन्हें क्लासेस लेकर छात्रों को डॉटा संयोजन और विश्लेषण पढ़ाना चाहिए।
किंतु वे तो पांच वर्ष से क्लास ही नहीं ले रहे हैं?
मैं कम्युनिटी मेडिसिन विभाग से पता करता हंू।
प्रो. माथुर तो आपके चेंबर में ही बैठे रहते हैं। क्या इसीलिए उन्हें कोई कुछ नहीं कहता?
वे यहां बैठकर लीगल सेल और गार्डन का कार्य करते हैं। वे मेरे  नजदीकी और भरोसेमंद हैं लेकिन उन्हें मैंने कोई शरण नहीं दे रखी है।
(कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत से चर्चा)

 पांच वर्ष पहले तो क्लास लेता था

आप क्लास क्यों नहीं लेते हैं?
टाइम टेबल में किसी ने मेरी क्लास ही नहीं लगाई। पांच वर्ष पहले क्लास लेता था। आप उसके बारे में क्यों नहीं जानना चाहते।
बताईए तब आप क्या करते थे?
मैं क्लास लेता था। बाद में मैं एमवायएच में सहायक अधीक्षक भी रहा। अभी भी फिजियोथेरेपी की क्लास लेता हूं, जिसका मुझे अतिरिक्त रुपया मिलता है।
पांच वर्ष से आपने क्लास मांगना जरूरी क्यों नहीं समझा?
सबको मालूम है कि मैं सांख्यिकी का प्रोफेसर हूं। उन्हें मेरी ड्यूटी लगाना चाहिए। वैसे मार्च 2008 से जनवरी 2010 तक मैं भोपाल में पदस्थ था।
क्या आप भोपाल में क्लास लेते थे?
नहीं, क्योंकि वहां तो दूसरे कामों से ही फुर्सत नहीं मिलती थी।
फिलहाल कॉलेज में आप करते क्या हैं?
मैं सबसे जटिल लीगल सेल देखता हूं। साथ ही उन पीजी छात्रों की थिसीस के डॉटा विश्लेषित करता हूं जो मेरे पास आते हैं।
आप बैठते कहां हैं?
कभी डीन चेंबर और कभी लीगल सेल में। मुझे तो स्थाई जगह भी नहीं दी गई है।
(प्रो. एलके माथुर से चर्चा)


उठते सवाल
- मेडिकल के छात्रों को सांख्यिकी कौन पढ़ा रहा है?
- ऊंची तनख्वाह पाने वालों के कामकाज की निगरानी क्यों नहीं की जा रही है?
- क्या प्रो. माथुर जैसे लोगों के विरू द्ध सरकारी धन का अपव्यय करने का प्रकरण नहीं बनाया जाना चाहिए? 
पत्रिका: १८ अक्टूबर २०१०

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

कैसे कर लें ऐसी न्यायपालिका पर भरोसा

- आठ पूर्व सीजेआई पर भ्रष्टाचार का आरोप लगने पर इंदौर से उठी आवाज
- सत्यपाल आनंद ने सुप्रीम कोर्ट में फाइल की जनहित याचिका


पूर्व केंद्रीय विधि मंत्री शांति भूषण द्वारा भारत के आठ पूर्व मुख्य न्यायमूर्तियों (सीजेआई) पर भ्रष्टाचार का आरोप लगने के आधार पर इंदौर के आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की है। आंनद का तर्क है कि इस घटनाक्रम से देशवासियों का न्यायपालिका से भरोसा उठ गया है। अब न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को स्थिति स्पष्ट करना चाहिए। साथ ही नौ जजों के उस कोलेजियम को भी तत्काल भंग किया जाना चाहिए, जो जजों का चयन करता है।

सैंकड़ों जनहित याचिकाएं दायर करके कई न्यायिक बहसें उपजा चुके आनंद ने मंगलवार को ईमेल के जरिए सुप्रीम कोर्ट में अपनी 32 पेज की याचिका दाखिल की। पत्रकारों से चर्चा में उन्होंने बताया याचिका में मौजूदा सीजेआई एसएच कपाडिय़ा, पूर्व सीजेआई रंगनाथ मिश्रा, केएन सिंह, एएम अहमदी, एनएम मुंशी, एएस आनंद, वायके सबरवाल, प्रधानमंत्री, केंद्रीय विधि मंत्री, नेता प्रतिपक्ष, पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, मप्र के मुख्यमंत्री और विधि आयोग के चेयरमैन को प्रतिवादी बनाया गया है। उनके साथ धरमदास मोहनलाल और रामकिशन भी याचिकाकर्ता हैं। आनंद ने अहम संवैधानिक सवाल उठाते हुए याचिका में लिखा है कि भारत का संविधान भ्रष्टाचार को रोकने में सफल नहीं हो रहा है, तो क्यों नहीं एक नई संवैधानिक सभा का गठन किया जाए और संविधान को फिर से लिखा जाए। वैसे भी स्वयं डॉ. भीमराव आंबेडकर देश को बता चुके थे कि मैं इस संविधान से संतुष्ट नहीं हूं।

सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग हो
आनंद ने बताया इस याचिका के कारण मुझ पर अवमानना का केस चलाया जा सकता है और मुझे जेल भी भेजा जा सकता है, परंतु मुझे इसकी चिंता नहीं है। याचिका में मांग की है कि इसकी सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाए, ताकि जनता भी उसे देख सके। यह मसला कुछ जजों का नहीं, पूरी न्याय प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। भ्रष्टाचार का पौधा ऊपर से नीचे चलता है, इसका उपचार होना ही चाहिए।

मानवाधिकार आयोग तो बुलबुल को किशमिश
मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का पद पूर्व सीजेआई को ही देने को आनंद ने एक किस्म की सरकारी रिश्वत बताया है। उन्होंने लिखा है यह बुलबुल को किशमिश का लालच है। इसी कारण सीजेआई सरकारों के खिलाफ फैसले नहीं देते। सभी को रिटायर होने के बाद आयोगों में अध्यक्ष बनने का लालच सताता है। इस व्यवस्था तत्काल बदला जाना चाहिए।

याचिका में उठे मुद्दे
- न्यायपालिका पर से लोगों का भरोसा टूट गया है, इसलिए सभी को मिलकर इस सफाई देना चाहिए।
- विधि आयोग ने कोलेजियम को भंग करने की सिफारिश की गई थी, फिर भी ऐसा क्यों नहीं किया गया?
- कोलेजियम को भंग करके हाईपॉवर राष्टï्रीय न्यायिक आयोग की स्थापना की जाए। इसमें किसी जज को न रखें।
- क्या देश की प्रगति में न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका, प्रेस ने मिलकर रुकावट पैदा नहीं की है?
- दस वर्ष तक के लिए आरक्षण प्रस्ताव रखा गया था, फिर भी अब तक उसे खत्म क्यों नहीं किया गया?
- संविधान में दस वर्ष में सभी ब'चों को अनिवार्य शिक्षा का वादा था, परंतु ऐसा नहीं हुआ। क्या इसके लिए न्यायपालिका जिम्मेदार नहीं है।
- गांवों को लूटकर शहरों को बढ़ावा देने की प्रथा देश में क्यों चल रही है? क्या इससे गरीब-अमीर की खाई गहरी नहीं हो रही ?
- सरकारें लगातार संविधान का उल्लंघन करती गई, फिर भी नेता प्रतिपक्ष चुप क्यों रहे? लोकतंत्र में आखिर क्या जरूरत है?

पत्रिका : ७ अक्टूबर २०१० 

बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

स'चाई छुप नहीं सकती बनावट के असूलों से

 सुगनीदेवी जमीन मामले में लोकायुक्त पुलिस के तर्कों की सुरेश सेठ ने उड़ाई धज्जियां
 विशेष न्यायालय ने सुरक्षित रखा फैसला
  कैलाश को  समय कवच  मिलेगा या नहीं, 20 अक्टूबर को होगा फैसला



सुगनीदेवी जमीन घोटाले की शिकायत के आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के बारे में लोकायुक्त पुलिस द्वारा कोई टिप्पणी नहीं किए जाने का मामला बुधवार को विशेष न्यायालय में गूंजा। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पुलिस के सभी तर्कों की सिलसिलेवार धज्जियां उड़ाते हुए कोर्ट को बताया विजयवर्गीय को बचाने के लिए ही कोर्ट में अर्जी दी गई है कि जांच की समय सीमा तय नहीं की जाए। कोर्ट ने बेहद गंभीरता से करीब पौन घंटे तक सेठ की बात सुनी और मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। अब 20 अक्टूबर को पता चलेगा कि लोकायुक्त पुलिस को जांच की समय सीमा में बांधना विशेष न्यायालय के दायरे में आता है या नहीं। सेठ ने मीडिया से चर्चा में कहा बनावट के असूलों से स'चाई को छुपाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन वह छुप नहीं सकती है।

केस की पिछली सुनवाई (21 सितंबर) पर लोकायुक्त पुलिस को कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश करना थी। परंतु ïकोर्ट को बताया था कि मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और चालान पेश करने का लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है। इस तर्क पर ही बुधवार को विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी की कोर्ट में बहस हुई। लोकायुक्त की ओर से विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने अपनी बात दोहराई। सुरेश सेठ ने कहा अभी तो एफआईआर ही अधूरी है क्योंकि आरोपी क्रमांक दो के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है। छह अगस्त को लोकायुक्त पुलिस भी मान चुकी है कि अभी एफआईआर में और नाम जोड़े जा सकते हैं, फिर समय सीमा का बंधन क्यों नहीं लगाया जाए। दोनों पक्षों की राय सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया, जो 20 अक्टूबर को जारी होगा। बहस के दौरान कोर्ट ने सेठ को कहा आपको मेरा फैसला मंजूर न हो, तो आप हाईकोर्ट भी जा सकते हैं।

'हमने कैलाश को नहीं छोड़ा
कदम ने कोर्ट को बताया लोकायुक्त पुलिस ने अभी विजयवर्गीय को छोड़ा नहीं है। जांच जारी है और अंतिम जांच प्रतिवेदन में सबको पता चल जाएगा कि किसने भ्रष्टाचार किया है और किसने आपराधिक षडयंत्र। सेठ ने जब जोर देकर पूछा कि जांच में कितना समय लगेगा, तो कदम बोले कम से कम एक साल तो लग ही जाएगा।


 हाईकोर्ट ने भी तो तय की समय सीमा     
'पत्रिकाÓ के 5 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित खबर 'हाईकोर्ट ने तय की लोकायुक्त जांच की अवधिÓ का हवाला देते हुए सेठ ने कोर्ट को बताया अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक आरएन सक्सेना के खिलाफ हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को छह माह में जांच करने के निर्देश दिए हैं। उस केस में और मेरे केस में कोई मौलिक अंतर नहीं है। वहां याचिकाककर्ता ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी, यहां विशेष न्यायालय में लगाई गई।                                                                                                                                                                              


 लोकायुक्त पुलिस की भूमिका संदिग्ध
- सुगनीदेवी जमीन केस में विशेष न्यायालय के समक्ष सुरेश सेठ का लिखित बयान

कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने कोर्ट को लिखित में दिया है कि मप्र के मंत्री (कैलाश विजयवर्गीय) के दबाव में आकर लोकायुक्त पुलिस संदिग्ध भूमिका निभा रही है। सुगनीदेवी जमीन मामले में विजयवर्गीय न केवल संलिप्त हैं, बल्कि सार्वजनिक घोषणाओं में भी वे खुद को इसमें शामिल होने की मंजूरी दे चुके हैं। पद का दुरुपयोग करते हुए विजयवर्गीय ने 28 अगस्त 2010 को नंदानगर साख संस्था की विशेष साधारण सभा में विवादित जमीन पर कॉलेज बनाने की घोषणा भी कर दी है।


जनता के सामने खड़े हो गए कई सवाल : सुरेश सेठ

सुरेश सेठ ने कोर्ट में प्रस्तुत जवाब में कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि लोकायुक्त पुलिस के वकील के तर्कों से जनता के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं, न्यायहित में इनका समाधान बेहद आवश्यक है। उन्होंने लिखा है-

1. प्रथम दृष्टया दोषी होने के बावजूद कैलाश के खिलाफ पहली एफआईआर में नाम नहीं जोड़ा जाना कितना न्यायसंगत है?
2. क्या लोक अभियोजक ने 6 अगस्त की पेशी पर जो जवाब पेश किया, वह राज्य सरकार के दबाव में आकर दिया गया है?
3. क्या विशेष लोक अभियोजक दुर्भावनापूर्ण तरीके से विजयवर्गीय के राजनैतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
4. हाईकोर्ट में 19 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेठ ने लोकायुक्त संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तब लोकायुक्त के वकील ने कोई कोई आपत्ति नहीं ली थी, इसका अर्थ क्या है?
5. क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस केस में विशेष लोक अभियोजक को बतौर लोकस स्टेंडी (पक्ष रखने का अधिकार) प्राप्त है?
6. मामले से परिवादी को दूर करने की कोशिश क्या यह साबित नहीं करती कि विशेष लोक अभियोजक अपने पद का दुरुपयोग करके आरोपी नेताओं, सरकार और अपने वरिष्ठ अधिकारियों की तरफदारी कर रहे हैं?
7. अनुसंधान के नाम पर एक बार मामले को टाल देने से अंतिम जांच प्रतिवेदन पेश करने की तारीख 5-10 वर्ष खींच जाएगी। तब अभियोग पत्र प्रस्तुत करना गैर प्रासंगित हो जाएगा?
 

लोकायुक्त पुलिस के छहों न्यायिक दृष्टांतों को चुनौती
सेठ ने कोर्ट में करीब 300 पेज का जो जवाब पेश किया है, उसमें लोकायुक्त पुलिस के तर्कों को एक सिरे से खारिज किया गया है। लोकायुक्त पुलिस ने छह न्यायिक दृष्टांतों के आधार पर कोर्ट को बताया था कि इस कोर्ट को जांच की समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं है। सेठ ने इन दृष्टांतों को तार्किक तरीके से खारिज किया।

एक-
निर्मलजीतसिंह हून बनाम पश्चिम बंगला सरकार केस में कोर्ट ने अनुसंधान अधिकारी को अनुसंधान की दिशा या सीमाओं के संबंध में कोई दिशा नहीं दी थी।
दो-
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा केस में फैसला आरोपी के संबंध में विचार तय करने से जुड़ा है, जबकि मौजूदा केस में विशेष न्यायालय ने कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कोई विचार धारणा प्रकट नहीं की है।
तीन-
पश्चिम बंगाल बनाम एसएन बासक केस में कोर्ट के दिशा निर्देश अंतिम जांच प्रतिवेदन के संबंध में है, जबकि सुगनीदेवी केस में अब तक लोकायुक्त पुलिस ने अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया है।
चार -
बिहार बनाम जेएसी सल्धाना केस भी समर्थन नहीं करता है, क्योंकि विशेष कोर्ट द्वारा अंतिम जांच रिपोर्ट के लिए तारीख तय करना अनुसंधान कार्य में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।
पांच -
टीटी ऐथोनी बनाम केरल केस सक्सेसिव एफआईआर से जुड़ा है, इसलिए यहां प्रासंगिक नहीं है।
छह -
एसएन शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी, मेसर्स जयंत विटामिन्स बनाम चैतन्य कुमार एंड अदर्स, हरियाणा बनाम भजनलाल केस में एफआईआर और उसके बाद अनुसंधान की स्थिति की व्याख्या की गई है।
 

पत्रिका : ०७ अक्टूबर २०१०

भारत में रोक, इंदौर में चालू

- चाचा नेहरू अस्पताल में स्वस्थ युवतियों पर ग्रीवा कैंसर टीके के ट्रायल पर उठा सवाल
- आंध्रप्रदेश-गुजरात में जा चुकी जानें, फिर भी नहीं जाग रहा मध्यप्रदेश


जिस टीके के कारण आंध्रप्रदेश में चार स्वस्थ युवतियों की जान चली गई, जिस टीके के प्रयोग पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया, जिस टीके के भरोसेमंद होने की गारंटी नहीं है और जो टीका शुरू दिन से ही विवाद में है... उस टीके का एमजीएम मेडिकल कॉलेज से जुड़े चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में प्रयोग हो रहा है। प्रयोग में कई जरूरी मापदंडों को भी ताक में रखा गया है।

'पत्रिकाÓ के पास उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक शिशु रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. हेमंत जैन की अगुवाई में मल्टीवेलेंट एचपीवी टीके का ट्रायल जारी है। कथित तौर पर यह टीका महिलाओं को बुढ़ापे में विकसित होने वाले ग्रीवा कैंसर को रोकता है। करीब एक वर्ष पहले आंध्रप्रदेश के खम्मम में चार और गुजरात के बढ़ौदा में दो  युवतियों की मौत के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलामनबी आजाद ने इस टीके के ट्रायल पर प्रतिबंध लगा दिया था।

आंध्रप्रदेश में टीके को लेकर उठी बहस में अग्रणी रही कल्पना मेहता मंगलवार को इंदौर में थीं। 'पत्रिकाÓ ने जब उन्हें इंदौर में जारी ट्रायल के बारे में बताया तो चकित होते हुए उन्होंने बताया यह टीका कितना कारगर है, यह अभी किसी को पता नहीं। अमेरिकन, ब्रिटिश और आस्ट्रेलियन दवा कंपनियों ने ग्रीवा कैंसर का खौफ फैलाकर यह टीका बाजार में उतार दिया है। इस टीके के प्रयोग में स्वस्थ युवतियों की जरूरत होती है। आंध्रप्रदेश व गुजरात में तो डॉक्टरों ने गल्र्स होस्टल में रहने वाली युवतियों को सब्जेक्ट बनाया था, यहां क्या हो रहा है, यह कोई नहीं जानता।


 आईसीएमआर, डीसीजीआई रोके 
केंद्र सरकार ने इस टीके के ट्रायल पर रोक लगाई है, फिर भी यहां क्यों हो रहा?
यह ट्रायल इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की अनुमति से चल रहा है। वे रोकेंगे, तो बंद कर देंगे।
आपके अस्पताल में तो रोगी आते हैं, जबकि इसमें स्वस्थ युवतियों की जरूरत होती है?
हमारे क्लिनिक में जो लोग आते हैं, उनसे पूछताछ करके हम युवतियों का चयन करते हैं।
आप ब'चों के डॉक्टर हैं, जबकि टीका युवतियों को लगता है?
हमने ट्रायल में एक महिला रोग विशेषज्ञ को भी जोड़ रखा है।
यह ट्रायल आखिर क्यों जरूरी है?
दुनियाभर में 2.75 लाख महिलाओं की हर वर्ष ग्रीवा कैंसर से मौत हो जाती है। यह टीका लगेगा, तो कैंसर नहीं होगा।
ट्रायल से गुजरात-आंध्र में मौतें हो चुकी है, यहां ऐसा केस तो नहीं आया?
वहां हुई मौत के कारण अभी साफ नहीं है। मेरी जानकारी में एक युवती की बुखार से और एक की आत्महत्या के कारण मृत्यु हुई। इंदौर में 39 युवतियों पर ट्रायल हुआ, सभी स्थिति ठीक है। वैसे भी यह फेज फोर का ट्रायल है, यानि टीका बाजार में उपलब्ध है।
आप तीन डोज देते हैं, बूस्टर डोज के बारे में क्या नीति है?
यह तो शून्य, एक व छह महीने के क्रम में लगता है। बूस्टर डोज की जरूरत ही नहीं है।
(डॉ. हेमंत जैन से चर्चा)

सच नहीं बोल रहे हैं डॉ. जैन
- वे जो ट्रायल कर रहे हैं, वह फेज फोर नहीं, थ्री का ट्रायल है।
- बाजार में गार्डेसिल (वी-501) उपलब्ध है, जबकि ट्रायल मल्टीवेलेंट (वी-503) का हो रहा है।
- विधानसभा में भेजी जानकारी से स्पष्ट है कि ट्रायल में कोई महिला रोग विशेषज्ञ शामिल नहीं है।
- बूस्टर डोज के बगैर यह टीका पूरा नहीं हो सकता। दुनियाभर में इसे लेकर बहस जारी है।
- आईसीएमआर का मानता है कि टीके की सफलता संदिग्ध है।
जानलेवा टीका
- एचपीवी टीके के तीन डोज 10 से 12 हजार रुपए के आते हैं।
- सितंबर 2009 में ब्रिटेन के कोवेंट्री में एक स्कूली छात्रा के रूप में पहली मौत रिपोर्ट की गई।
- टीके के कारण अमेरिका में 15 हजार लड़कियों पर दुष्प्रभाव और 61 की मौत रिपोर्ट हो चुकी है।
- जर्मनी एवं आस्ट्रेलिया में भी एक-एक लड़की की मौत हो चुकी है।



पत्रिका : ०७ अक्टूबर २०१०

लोकायुक्त को मिलेगा 300 पेज का जवाब

- कैलाश को  समय कवच  से सुरक्षित रखने के कदम पर सुरेश सेठ की पुख्ता तैयारी
- सुगनीदेवी केस पर अधूरी एफआईआर पर विशेष न्यायालय में बहस आज


सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन में हुए 100 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच कर रही लोकायुक्त पुलिस के लिए कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने 300 पेज का जवाब तैयार कर लिया है। यह जवाब बुधवार को विशेष न्यायालय में पेश किया जाएगा। उधर, लोकायुक्त पुलिस का जोर मामले में दर्ज अपनी अधूरी एफआईआर को अंतिम साबित करने पर रहेगा।

केस में पिछली सुनवाई 21 सितंबर को हुई थी, तब लोकायुक्त पुलिस को मूल शिकायत के आरोपी क्रमांक दो (तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय) के भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश करना थी। परंतु लोकायुक्त के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने कोर्ट को बताया था कि मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और चालान पेश करने का लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है। इस तर्क पर बहस के लिए कोर्ट ने 6 अक्टूबर मुकर्रर किया था।

 सुप्रीम कोर्ट भी चाहता है, समय सीमा तय हो

सुरेश सेठ ने 'पत्रिकाÓ को बताया मैंने जवाब में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के करीब एक दर्जन न्यायिक दृष्टांत दिए हैं। सभी कोर्टें चाहती हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में समय सीमा में जांच पूरी हो जाए। सोमवार को मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एसआर आलम एवं ïआलोक अराधे की युगलपीठ ने अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (एपीसीसीएफ) आरएन सक्सेना पर भ्रष्टाचार के आरोप से जुड़े केस में लोकायुक्त पुलिस छह महीने में जांच पूरी करने के निर्देश दिए हैं। 

मेंदोला-संघवी की याचिका में छुपा संदेश
सेठ ने बताया इंदौर हाईकोर्ट में जिस तरह से मामले में फंस चुके रमेश मेंदोला और मनीष संघवी की याचिका खारिज की है, उसका संदेश साफ है कि जांच प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है। लोकायुक्त समय पर जांच पूरी नहीं कर पाए तो उसे साफ इंकार कर देना चाहिए। मैंने तो हाईकोर्ट में भी सीबीआई जांच की मांग उठाई थी।

'मुझे दूर करना संभव नहींÓ
पिछली सुनवाई में लोकायुक्त पुलिस ने तर्क दिया था कि एफआईआर रजिस्टर होने के बाद जब तक अंतिम जांच रिपोर्ट पेश नहीं हो जाती, तब तक केस कोर्ट व पुलिस के बीच ही रहता है। परिवादी इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले सकता है। परिवादी सेठ को कोर्ट के समक्ष उपस्थिति होने का अधिकार भी नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए सेठ कहते हैं जांच प्रक्रिया से शिकायतकर्ता को दूर करने की कोशिश शंका को जन्म देती है। 

हकीकत की कसौटी पर कितने खरे लोकायुक्त पुलिस के तर्क ?


तर्क एक
घटना अवधि 20 वर्ष की है और इसके लिए विभिन्न विभागों से दस्तावेज जुटाए जाना है। इसमें वक्त लगेगा।
कसौटी
5 अगस्त को दर्ज एफआईआर के पेज चार के मुताबिक सभी संबंधित विभागों से दस्तावेज जुटाए जा चुके हैं। यहीं सवाल उठता है कि फिर लोकायुक्त पुलिस और कौन से कागज चाहती है?

तर्क दो
विभिन्न साक्षियों के विस्तृत कथन लिपिबद्ध किए जाना है। इसमें अधिक समय लगना स्वाभाविक है।
कसौटी
एफआईआर के पेज पांच के मुताबिक मौजूदा और पूर्व निगमायुक्त से लेकर सभी प्रमुख संबंधित अफसरों और लोगों से बयान लिए जा चुके हैं। यहीं सवाल उठता है ऐसे कौन लोग शेष हैं, जिनसे लोकायुक्त पुलिस बात करना चाहती है?

तर्क तीन
दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान की समय सीमा तय करने का जिक्र नहीं किया गया है।
कसौटी
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने अंतिम जांच रिपोर्ट करने के लिए स्वयं कोर्ट से चार महीने का समय मांगा था। परिवादी सुरेश सेठ की आपत्ति पर डेढ़ महीने की समयसीमा तय हुई थी। अब सवाल है कि उस दिन ïदंड प्रक्रिया संहिता क्यों याद नहीं आई?

तर्क चार
एफआईआर दर्ज होने के बाद अनुसंधान की प्रक्रिया में परिवादी हिस्सा नहीं ले सकता है।
कसौटी
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि जो एफआईआर दर्ज की गई है, वह अधूरी है। आरोपी क्रमांक दो (कैलाश विजयवर्गीय) की भूमिका की पड़ताल के लिए अगली तारीख नियत कर दी जाए। अब सवाल है कि प्रारंभिक जांच में जब एक आरोपी की भूमिका को लेकर पड़ताल ही नहीं की गई तो परिवादी को प्रक्रिया से दूर कैसे किया जा सकता है?

पत्रिका : ०६ अक्टूबर २०१०

नकली दवा से इलाज तो नहीं

 ड्रग ट्रायल में महिला की मौत के मामले में उठा नया सवाल

अल्जाइमर रोग के पीडि़त खंडवा की शीला गीते की मौत का कारण कहीं नकली दवा से उनका उपचार तो नहीं? अब यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। दरअसल, वे जिस ड्रग ट्रायल में शामिल थीं, वह प्लेसिबो ट्रायल था। इस ट्रायल में कुछ मरीजों को नकली दवा दी जाती है, जो दिखती तो दवा जैसी है किंतु उसमें दवा के बजाए स्टार्च या ग्लूकोज होता है।

'पत्रिकाÓ ने सोमवार के अंक में खुलासा किया था कि शीला गीते के पति शरद गीते ने स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया को पत्र लिखकर शिकायत की है कि उनकी पत्नी की मौत के बावजूद उन्हें बीमे के राशि नहीं दी गई है। 'पत्रिकाÓ के पास उपलब्ध दस्तावेजों से पता चलता है कि शीला गीते पर जो ट्रायल हो रहा था, वह प्लेसिबो ट्रायल था। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अपूर्व पुराणिक ने उनसे जिस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए थे, उस पर साफ-साफ लिखा है कि आपको सिक्का उछालने वाले खेल की तरह एक अध्ययन में शामिल किया जा रहा है। हो सकता है आपको जो दवा दी जाए, वह नकली हो।

तीन में से दो को नकली दवा
डोनेपेजिल दवा के ट्रायल में हर तीन में से दो मरीजों को नकली दवा मिलता तय था। यह बात डॉक्टर भी जानते हैं। बावजूद इसके मरीज की जान जोखिम में डाली गई।


 जिसे असली दवा मिलती, उसे होता लाभ
डॉ. अपूर्व पुराणिक ने 'न्यूरो-प्रतिध्वनिÓ नाम के अपने ब्लॉग पर लिखा है कि ट्रायल के शुरू में ही हम मरीज को बता देते हैं कि उसे जो दवा दी जाती है, वह असली है या नकलीï, यह हमें पता नहीं रहता। ट्रायल समाप्त होने के बाद ही अंतिम परिणाम का पता चलता है। जिसे असली दवा मिलती है, उसे लाभ होता है।

 प्लेसिबो ट्रायल सबसे खतरनाक
स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के डॉ. आनंद राय कहते हैं प्लेसिबो ट्रायल सबसे खतरनाक होता है। अंतरराष्टï्रीय स्तर पर इसे न्यूनतम करने के निर्देश जारी हो चुके हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में हो रहे ज्यादातर ट्रायल प्लेसिबो हैं। इसमें मरीज को पहले से मिल रहा उपचार भी बंद हो जाता है और नतीजतन उसकी तबीयत सुधरने के बजाए बिगडऩे लगती है।


अभी बता पाना मुश्किल

क्या शीला गीते पर प्लेसिबो ट्रायल हो रहा था?
हां, यह प्लेसिबो ट्रायल ही था।
क्या उन्हें नकली दवा दी गई थी?
अभी यह पता नहीं चल सकता है। कंपनी के पास इसकी जानकारी रहती है। डाटा एनालिसिस के बाद ही इसका पता चलेगा।
प्लेसिबो ट्रायल से होने वाले दुष्परिणाम का जिम्मेदार कौन है?
हम पूरी देखरेख करते हैं और तबीयत बिगडऩे पर ट्रायल से हटा भी लेते हैं।
शीला गीते के केस में ऐसा क्यों नहीं हुआ?
वे हमसे संतुष्ट थे और यही वजह कि वे जनवरी तक उपचार लेती रहीं।
क्या गीते परिवार को बीमे का लाभ नहीं मिलना चाहिए?
मुझे फिलहाल बीमे की जानकारी नहीं है। कागज देखकर ही बता पाऊंगा।
(डॉ. पुराणिक से चर्चा)


सरकार ने मांगी मरीजों की सूची
- एमजीएम मेडिकल कॉलेज में हड़कंप


चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सभी मेडिकल कॉलेजों से उन मरीजों की सूची तलब की है, जिन पर ड्रग ट्रायल किया गया। इससे एमजीएम मेडिकल कॉलेज में हड़कंप मच गया है। माना जा रहा है कि विधानसभा के पटल पर स्वास्थ्य मंत्री महेंद्र हार्डिया के उस बयान को पूरा करने के लिए यह कवायद की जा रही है, जिसमें उन्होंने विधानसभा के सभी सदस्यों को मरीजों की सूची उपलब्ध कराने का  वादा किया था।
ज्ञात रहे कि पिछले पांच वर्ष में राज्य में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ है। इनमें से 1644 ब'चे हैं। मरीजों में से 51 पर ट्रायल के दुष्परिणाम भी हुए हैं।


पत्रिका : ०५ अक्टूबर २०१०

हाईकोर्ट ने मेंदोला को नहीं मिली राहत

- सुगनीदेवी केस की जांच प्रक्रिया को सही ठहराया 
- मनीष संघवी, रमेश ने दी थी विशेष न्यायाधीश के आदेश को चुनौती


परदेशीपुरा चौराहा के पास स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ मूल्य की तीन एकड़ जमीन मामले में लोकायुक्त जांच को चुनौती देने से जुड़ी दो याचिकाओं को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार को खारिज कर दिया। नंदानगर साख संस्था अध्यक्ष रमेश मेंदोला और धनलक्ष्मी केमिकल्स संचालक मनीष संघवी ने ये याचिकाएं दायर की थीं। हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश के उस कदम को न्यायिक तौर पर सही माना जिसमें कांग्रेस नेता सुरेश सेठ की शिकायत पर लोकायुक्त पुलिस को जांच के आदेश दिए गए थे।

इंदौर बैंच के जस्टिस एसएल कोचर और शुभदा वाघमारे की युगलपीठ ने दोनों याचिकाएं खारिज करते हुए टिप्पणी की है विशेष न्यायाधीश को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 153(3) की शक्तियों का इस्तेमाल करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है और इसी के आधार पर जांच शुरू की गई है। कोर्ट उन सभी न्यायिक दृष्टांतों का भी खारिज कर दिया जिनके आधार पर विशेष न्यायाधीश की शक्तियों को कटघरे में खड़ा किया गया था। मेंदोला के पैरवीकर्ता वरिष्ठ अधिवक्ता एके सेठी और राहुल सेठी ने फैसले की पुष्टि की है। संघवी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रोहित आर्या और अमित अग्रवाल ने जबकि लोकायुक्त की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता एलएन सोनी ने पैरवी की थी।

एमिकस क्यूरी की अहम रिपोर्ट

इस केस में कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीश देसाई को एमिकस क्यूरी (केस में कोर्ट के सलाहकार) घोषित किया था। उनकी रिपोर्ट में निचली अदालत की कार्रवाई को सही ठहराया गया था।

उठी थी सीबीआई जांच की मांग
केस पर 19 अगस्त को अंतिम बहस हुई थी। तब सुरेश सेठ ने तर्क दिया था कि लोकायुक्त पुलिस की जांच प्रक्रिया बेहद धीमी है इसलिए जांच का कार्य सीबीआई को सौंप दी जाए। सुनवाई के दौरान ही हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अपराध तो हुआ है और केवल प्रक्रिया का हवाला देकर अपराध को खत्म तो नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने जीरो कायमी जिक्र करते हुए कहा था सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत कोई भी व्यक्ति थाने में जाकर एफआईआर दर्ज कर सकता है। पहले वह जीरो नंबर पर कायम होती है और बाद में जिस क्षेत्र से संबंध होती है, वहां उसे भेजा जा सकता है। इस केस में लोकायुक्त पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। अब उसे शिफ्ट किया जा सकता है, खत्म तो नहीं किया जा सकता।


मेंदोला-संघवी समेत 17 आरोपी
लोकायुक्त पुलिस ने 5 अगस्त को मेंदोला और संघवी समेत 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक षडयंत्र का केस दर्ज किया है। इसकी अगली पड़ताल सोमवार को ही विधिवत शुरू हुई। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पुलिस को मय दस्तावेज बयाद दिए हैं। सभी 17 पर आरोप है कि इन्होंने षडय़ंत्र करके निगम से लीज पर ली गई जमीन को धनलक्ष्मी केमिकल्स से नंदानगर साख संस्था को बिकवाया और इससे शासन को करीब पौने तीन करोड़ के राजस्व की चपत लगी।

कल विशेष अदालत में सुनवाई
सुगनीदेवी केस में 6 अक्टूबर को विशेष न्यायालय में सुनवाई होना है। पिछली सुनवाई में लोकायुक्त पुलिस को अंतिम जांच रिपोर्ट पेश करना थी, किंतु उसने तर्क दिया कि हमारे लिए जांच की समय सीमा तय नहीं की जा सकी है। सेठ की आपत्ति पर अब इस पर बहस होना है। ज्ञात रहे मूल शिकायत के आरोपी क्रमांक दो (तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय) को लेकर अब तक लोकायुक्त पुलिस ने कोई टिप्पणी नहीं की है।



मेंदोला-संघवी के सारे तर्क नामंजूर
- सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक दृष्टांतों का आधार लेना गलत
- सुगनीदेवी केस पर हाईकोर्ट में खारिज हुई याचिकाएं


सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ मूल्य की तीन एकड़ जमीन मामले में विशेष न्यायाधीश द्वारा लोकायुक्त पुलिस को जांच के आदेश देने को चुनौती देने के लिए लगाई याचिकाओं के तर्कों को हाईकोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं रमेश मेंदोला और मनीष संघवी की ओर से सुप्रीम कोर्ट के जिन न्यायिक दृष्टांतों का हवाला दिया गया था, हाईकोर्ट ने उन्हें इस केस से संबद्ध नहीं माना।
 मेंदोला व संघवी की ओर से कई न्यायिक दृष्टांत दिए गए थे, किंतु कोर्ट ने उन्हें वाजिब नहीं माना। उधर, सुरेश सेठ ने 284 पेज का एक जवाब पेश किया था। उनके जवाब में सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के 21 न्यायिक दृष्टांत थे। ये सभी दृष्टांत मेंदोला और संघवी की याचिकाओं के तर्कों को चुनौती देते थे। कोर्ट द्वारा मेंदोला-संघवी की याचिकाएं खारिज करने से साफ है कि सेठ के तर्कों से कोर्ट सहमत हुई।

 विधायक रमेश मेंदोला की याचिका के आधार

1. दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 153(3) की शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट कर सकता है, विशेष न्यायाधीश नहीं।
2. विशेष न्यायाधीश मप्र विशेष पुलिस स्थापना (एसपीई) कानून 1947 एवं मप्र लोकायुक्त कानून के अधीन है। वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1947, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत मजिस्ट्रेट नहीं है।
3. विशेष न्यायाधीश द्वारा सीआरपीसी की धारा 190 के तहत कार्रवाई नहीं की।
4. मप्र विशेष पुलिस स्थापना कानून की धारा 4 के तहत कोई भी अनुसंधान कार्य पर सुपरइनटेंडेंस लोकायुक्त की रहती है, न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
5. शिकायतकर्ता ने कभी भी लोकायुक्त अथवा एसपीई लेाकायुक्त को शिकायत दर्ज नहीं करवाई, इसलिए विशेष न्यायाधीश द्वारा धारा 153(3) के तहत जांच के आदेश देना त्रूटिपूर्ण है।
6. विशेष न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 200 के तहत निजी फौजदारी परिवाद के तहत परिवादी के बयान दर्ज नहीं किए और न ही धारा 202 के तहत कोई कार्रवाई की।
7. आरोपी की सुनवाई का अवसर दिए बगैर सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
8. सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत आदेश पुलिस स्टेशन के ऑफिसर इंनचार्ज को ही दिया जा सकता है। एसपीई लोकायुक्त इंदौर इस श्रेणी में नहीं आते।
9. सीआरपीसी की धारा 153(3) की शक्तियों का उपयोग तभी किया जा सकता है, जबकि संबंधित मामले में एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दिया गया हो।
10. विशेष न्यायाधीश का आदेश मप्र विशेष पुलिस स्थापना कानून के प्रावधानों के विपरीत है, क्योंकि इस अधिनियम में रा'य सरकार की पूर्व अनुमति जरूरी है। 


मनीष संघवी की याचिका के आधार
1. याचिकाकर्ता लोक सेवक नहीं है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत एसपीई लोकायुक्त को जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
2. मप्र लोकायुक्त और उपलोकायुक्त नियम 1981 की धारा 8 (सी) के तहत पांच वर्ष से पुराने मामलों पर जांच का प्रतिबंध लगाया गया है।
3. विशेष न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत याचिकाकर्ता को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया।
4. विशेष न्यायाधीश का आदेश मप्र लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम 1981 की धारा 7 के प्रावधानों का उल्लंघन है।


सुरेश सेठ के जवाब
1. तत्कालीन एमआईसी सदस्य रमेश मेंदोला ने महापौर कैलाश विजयवर्गीय की मौन सहमति के साथ पद का दुरुपयोग करते हुए धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी व विजय कोठारी से आपराधिक षडय़ंत्र रचकर सरकारी जमीन की खरीदी-बिक्री की। इससे निगम और सरकार को करोड़ों की राजस्व हानि हुई।
2. वर्तमान में पुलिस अनुसंधान जारी है, इसलिए दोनों याचिकाएं अपरिपक्व हैं।
3. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (ई) के तहत एसपी स्तर के अधिकारी को जांच का आदेश देने का अधिकार है।
4. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश को संज्ञान लेने का पूर्ण अधिकार है और इससे सेशन न्यायालय के साथ मजिस्ट्रेट की शक्तियों का समावेश हो गया है।
5. सीआरपीसी की धारा 153 (3) के तहत जांच के आदेश जारी करने से पहले अभियुक्त को सुनवाई को अवसर देने का कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है।
पत्रिका : ०५ अक्टूबर २०१०

मंत्रीजी, घुट-घुटकर मर गई मेरी पत्नी

- ड्रग ट्रायल मामले में मरीज के परिजन की पहली लिखित शिकायत
- चिकित्सा शिक्षा मंत्री महेंद्र हार्डिया से की जांच करवाने की मांग
- एमवाय अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग में चल रहा था उपचार



 अल्जाइमर रोग से पीडि़त मेरी पत्नी को मैं 29 मार्च 2006 को उपचार के लिए एमवाय अस्पताल लेकर आया था। इलाज के दौरान न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. अपूर्व पुराणिक ने 27 जून 2008 को मेरी पत्नी को एक अध्ययन में शामिल करके उपचार शुरू किया और डोनेपोझिल के हेवी डोज उसे दिए जाने लगे। पहले वह मुझे और मेरी परिवार को पहचानती थी। धीरे-धीरे उसे स्मृति भ्रम होने लगा और बाद में तो वह सबकुछ भूल गई। आखिर में घुट-घुटकर 8 अगस्त को उसकी मौत हो गई। अब मुझे पता चला है कि वह अध्ययन एक ड्रग ट्रायल था। मेरी पत्नी की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी। ट्रायल के हेवी डोज से उसकी मृत्यु हुई है।

खंडवा निवासी शीला के पति शरद गीते (76) यह कहते-कहते रूंआसे हो जाते हैं। शरद गीते ने अपने साथ हुए धोखे की दास्तां 'पत्रिकाÓ को बताई। साथ ही उन्होंने स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया को एक शिकायती पत्र लिखकर इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग भी की है। गीते सेवानिवृत्त सहायक पंजीयक हैं और शनिवार को इंदौर में थे। ड्रग ट्रायल का मसला उजागर होने के बाद से मंत्री और सरकारी अधिकारी लगातार कह रहे हैं कि उन्हें अब तक किसी मरीज ने शिकायत नहीं की है। गीते ने बताते हैं 'पत्रिकाÓ में प्रकाशित खबरों के बाद ही पता चला कि हम ट्रायल के शिकार हैं।

क्यों नहीं दिया जीवन बीमा?
गीते ने बताया पत्नी को जब इलाज करवाने ले जाता था, तो मुझे आने-जाने का खर्च दिया जाता था। बाद में यह भी बंद कर दिया गया। इलाज शुरू करने के पहले डॉ. पुराणिक ने एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए थे। इस पर लिखा था कि आपका जीवन बीमा करवा गया है, परंतु आज तक हमें यह नहीं दिया गया।

पांच वर्ष बाद तक क्लेम का हक

ड्रग ट्रायल के लिए बीमा कंपनियों ने क्लिनिकल ट्रायल लाइबिलीटी इन्श्योरेंस (सीटीएलआई) का प्रबंध किया है। इसके तहत ट्रायल के बाद के पांच वर्ष तक का जीवन बीमा रहता है।

हालत बिगड़ती गई, पर नहीं हुई सुनवाई
गीते के पुत्र शिताम्शु ने बताया उपचार डॉ. कुंदन खामकर, आरती वासकले और रिचासिंह करती थीं। इलाज शुरू हुआ तब पत्नी सारे रिश्तेदारों को पहचान लिया करती थी। स्थिति बिगड़ती गई और हम डॉक्टरों को शिकायत करते रहे, परंतु किसी ने सुनवाई नहीं की।

कहीं उपचार बंद तो नहीं था उपचार
यह ट्रायल प्लेसिबो था, जिसमें एक नकली (डमी) दवा दी जाती है। यह दिखती तो दवाई जैसी है, किंतु इसमें दवा के बजाए स्टार्च या ग्लूकोज होता है। शीला गीते भी प्लेसिबो ट्रायल में शामिल थीं। डब्ल्यूएचओ ने प्लेसिबो को खतरनाक माना है, क्योंकि इसमें मरीज की तबीयत बहुत तेजी से बिगड़ सकती है।

2008 से चल रही 5.34 लाख की ट्रायल
दवा                                         : डोनेपेजिल एसआर 23 एमजी व डोनेपेजिल आईआर 10 एमजी
कब से                                     : वर्ष 2008 से
डॉक्टर                                     : मुख्य- अपूर्व पुराणिक, सहायक- कुंदन खामकर
डॉक्टरों को मिली राशि             : 5 लाख 34 हजार 241 रुपए
इतनी दवाइयां       : 18.16 लाख प्लेसिबो केप्सूल, 1008 दवा के केप्सूल व 24.19  हजार गोलियां।
स्पांसर कंपनी       : क्विंटल्स
दवा कंपनी            : ईसाई ग्लोबल क्लीनिकल डेवलपमेंट, लंदन
ट्रायल का चरण     : तृतीय


लिखित में पूछेंगे, तभी कुछ बताऊंगा

मैं आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकता हूं। आप मुझसे लिखित में पूछेंगे, तभी आपको कुछ बता पाऊंगा। वैसे, भी मैं अभी इंदौर में नहीं हूं।
- डॉ. अपूर्व पुराणिक, न्यूरोलॉजिस्ट, एमवाय अस्पताल

(पत्रिका ने डॉ. पुराणिक को ईमेल और फैक्स का विकल्प भी सुझाया, परंतु उन्होंने इंकार कर दिया। वैसे, पत्रिका अगस्त में सूचना का अधिकार में ड्रग ट्रायल की जानकारी मांग चुका है। तब डॉ. पुराणिक के विभाग ने 'जानकारी देना जरूरी नहींÓ कहकर इंकार किया था।)


भूलने का रोग अल्जाइमर
अल्जाइमर को विस्मृति रोग कहते हैं। आमतौर पर यह वृद्धावस्था में होता है। जर्मन डॉ. ओलोए अल्जीमीर ने 1906 में एक महिला के मस्तिष्क के परीक्षण में पाया कि उसमें कुछ गांठे पड़ गई हैं, जिन्हें चिकित्सा विज्ञान में प्लेट कहा जाता है। गांठे पडऩा ही रोग है। डॉ. अल्जीमीर के नाम पर अल्जाइमर नाम प्रचलित हुआ।

पत्रिका : ०४ अक्टूबर  २०१० 

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

तिलकनगर मेनरोड की दो बाधाएं खत्म

तिलकनगर मेनरोड में बाधक बन रहे दो मकानों के हिस्सों को तोडऩे के आदेश भी कोर्ट ने दिए हैं। जस्टिस शांतनु केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ ने रविकुमार जैन और दिनेश त्रिपाठी की दोनों की अपील याचिकाओं को खारिज कर दिया। दोनों का कहना था कि उनकी जमीन निजी है और उसे सेटबेक में नहीं लिया जा सकता। नगरनिगम के तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने माना कि जमीन सेटबेक की है और निगम को इसे लेने का अधिकार प्राप्त है। कोर्ट के इस फैसले से सड़क का शेष कार्य पूरा होने की राह खुल गई है।


पत्रिका : ०३ अक्टूबर २०१०

पूर्व गृहमंत्री को देना होंगे मौखिक बयान

चुनाव याचिका में शपथ पत्र पर बयान हाईकोर्ट ने किए नामंजूर

पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी द्वारा रतलाम विधायक पारस सकलेचा के विरूद्ध दायर चुनाव याचिका पर शुक्रवार को हाईकोर्ट में निर्देश दिए कि शपथ पत्र पर बयान मंजूर नहीं किए जा सकते। व्यक्तिगत रूप से ही संबंधित को अपनी बात कोर्ट के समक्ष कहना होगी।

कोठारी ने अपनी याचिका के पक्ष में जस्टिस आईए श्रीवास्तव की कोर्ट में शपथ पत्र के जरिए बयान पेश किए थे। सकलेचा के पैरवीकर्ता वरिष्ठ एडवोकेट चंपालाल यादव ने 'पत्रिकाÓ को बताया कोर्ट ने मौखिक बयान की सुनवाई की तारीख 25 अक्टूबर तय की है।

भ्रष्टाचार के आरोप पर लगी है याचिका
यह चुनाव याचिका 7 जनवरी 2009 को दायर की गई थी। चुनाव आयोग से प्राप्त सीडी के आधार पर हिम्मत कोठारी ने इस याचिका में कहा है कि विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान सकलेचा ने उन पर भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगाए और इसी के चलते वे चुनाव हार गए। 

पत्रिका : ०२ अक्टूबर २०१०

युगलपीठ में वाघमारे की अपील खारिज

- बीआरटीएस में आ रही जमीन का मामला


एबी रोड पर निर्माणाधीन बीआरटीएस में जमीन अधिग्रहण के मसले पर दायर एक रिट अपील हाईकोर्ट जस्टिस शांतनु केमकर और एसके सेठ की युगलपीठ ने खारिज कर दी। यह अपील रविंद्र रामचंद्र वाघमारे ने दायर की थी। मंगलवार को जस्टिस एससी शर्मा की एकल पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने एकलपीठ के निर्णय को सही माना।

ïमूल याचिका में तर्क दिया गया था कि नगरनिगम जमीन अधिग्रहण कर रहा है, लेकिन मुआवजा नहीं दे रहा। चूंकि जमीन निजी है, इसलिए मुआवजा याचिकाकर्ता का हक है। एकल पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया था क्योंकि निगम के मुताबिक यह जमीन सेटबैक की है और कानूनन इसे निगम अधिग्रहित कर सकता है।

फिलहाल कोई केस नहीं
सूत्रों के मुताबिक बीआरटीएस को लेकर अब कोई मसला लंबित नहीं है। मंगलवार को ही पांच याचिकाएं हाईकोर्ट में लगी थी, इनमें से विजय हालान, जसवंत डोसी और मोहम्मद अकरम ने यह कहकर याचिका वापस ले ली थी कि उन्होंने जमीन निगम को दे दी है। वाघमारे की याचिका को खारिज कर दिया गया था, जबकि भंडारी कोठी से संबंधित भुवन कुमारी केस में निगम को सुनवाई के आदेश हुए थे।

 
पत्रिका : ०२ अक्टूबर २०१०

दिलीप पाटीदार को ढूंढने का जिम्मा सीबीआई को

मालेगांव ब्लॉस्ट केस में एटीएस 688 दिन पहले ले गई थी मुंबई
बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट ने दिया जांच का आदेश




मालेगांव ब्लॉस्ट मामले में 11 नवंबर 2008 से रहस्यमय तरीके से लापता दिलीप पाटीदार को खोजने की जिम्मेदारी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को दी गई है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सीबीआई को इस आदेश दिया है कि दो महीने बाद इस बारे में रिपोर्ट कोर्ट के पटल पर रखे। पाटीदार के परिवार ने ही सीबीआई जांच की मांग की थी क्योंकि मुबंई एटीएस और मप्र पुलिस उसे खोजने में असमर्थ रही थी।

दिलीप के भाई रामस्वरूप पाटीदार ने हाईकोर्ट में 24 नवंबर 2008 को इंदौर हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। जस्टिस शांतनु केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव युगलपीठ ने शुक्रवार को इस पर अंतरिम आदेश जारी किया। पाटीदार की वकील रितु भार्गव ने 'पत्रिकाÓ को बताया हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच की अर्जी मंजूर करते हुए मप्र पुलिस, महाराष्टï्र पुलिस और मुंबई एटीएस को सहयोग करने को कहा है। ज्ञात रहे केस की एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों पक्षों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा था कि इस तरह की याचिकाओं पर अधिकतम छह महीने में निर्णय हो जाना चाहिए, परंतु पक्ष अड़ंगा डालते रहे और तारीखें बढ़ती गईं।

रामजी का किराएदार था दिलीप
दिलीप पाटीदार मूलत: शाजापुर जिले के दुपाड़ा का निवासी है और इंदौर में इलेक्ट्रिशियन का कार्य करता था। 2008 में शांतिविहार कॉलोनी के शिवनारायण कलसांगरा और रामजी कलसांगरा के मकान में किराए से पत्नी और एक ब'चे के साथ रहता था। मालेगांव ब्लास्ट में शिवनारायण मुंबई एटीएस की गिरफ्त में है, जबकि हैदराबाद की मक्का मस्जिद में 18 मई 2007 को हुए ब्लॉस्ट के आरोपी रामजी पर सीबीआई ने दस लाख का इनाम घोषित किया है। लापता होने के कुछ दिन पहले ही दिलीप ने खजराना थाने में रिपोर्ट लिखवाई थी कि मुंबई एटीएस का एक दल चोरी से शिवनारायण के घर में घुसा और वहां रखे हथियार व अन्य सामान अपने साथ ले गया। इसके बाद ही मुबंई एटीएस ने 10-11 नवंबर 2008 की रात में दिलीप को उठाया था। एटीएस का कहना है कि दिलीप मालेगांव ब्लॉस्ट का अहम गवाह है। दिलीप की पत्नी और ब'चा फिलहाल दुपाड़ा में रहता है।

एटीएस पर गंभीर आरोप
दिलीप के भाई रामस्वरूप का आरोप है एटीएस ने पूछताछ के दौरान दिलीप की हत्या कर दी। उधर, एटीएस का मानना है कि परिजन ने ही उसे छुपा रखा है।


केस से जुड़ी अहम तारीखें

11 नवंबर 2008
मुंबई एटीएस पूछताछ के लिए दिलीप पाटीदार को मुंबई ले गई।
24 नवंबर 2008
दिलीप के नहीं लौटने पर उनके भाई रामस्वरूप ने एडवोकेट दीपक रावल के जरिए बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की।
1 दिसंबर 2008
कोर्ट ने मामले में मुंबई एटीएस और स्थानीय पुलिस को नोटिस जारी किए।
2 अप्रैल 2009
जस्टिस एएम सप्रे व प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने इंदौर एसपी को एक महीने में मामले में रिपोर्ट पेश करने को कहा।
17 सितंबर 2009
कोर्ट ने कहा मुंबई एटीएस और इंदौर पुलिस मिलकर नहीं ढूंढ पाए तो एटीएस कमिश्नर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में आना होगा।
5 नवंबर 2009
जस्टिस सप्रे और एसके सेठ की पीठ ने एटीएस और मप्र पुलिस की संयुक्त कमेटी गठित की, ताकि दिलीप को ढूंढा जा सके।
10 दिसंबर 2009
जस्टिस एसएल कोचर और सेठ की पीठ के समक्ष एटीएस ने रिपोर्ट पेश की कि दिलीप की सिम से बात की गई है और वह जिंदा है। कोर्ट ने कहा दो महीने में अंतिम रिपोर्ट दी जाए।
29 जुलाई 2010
एडवोकेट रितु भार्गव ने जस्टिस कोचर व शुभदा वाघमारे की पीठ के समक्ष सीबीआई जांच की मांग रखी। कोर्ट ने नाराजगी जताई कि दोनों पक्षों की अड़चनों के कारण फैसला नहीं हो पा रहा, जबकि छह महीने में यह केस निपट जाना था।
17 अगस्त 2010
जस्टिस केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने सहायक सोलिसिटर जनरल विवेक शरण के जरिए सीबीआई को नोटिस देकर पूछा कि क्या वह इस केस की जांच कर सकती है?
9 सितंबर 2010
सीबीआई ने कोर्ट को बताया हम भ्रष्टाचार के केस हाथ में लेते हैं, जबकि यह क्रिमिनल केस है। यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के आदेश पर हम केस में जांच करते हैं।
23 सितंबर 2010
सभी पक्षों की राय सुनने के बाद केस में फैसला सुरक्षित रखा गया।
1 अक्टूबर 2010
कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश जारी किए। 

 पत्रिका : ०२ अक्टूबर २०१०

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

इंदौर का अंशुल भारतीय शर्लक होम्स

- 42 जटिल  अंतर्राष्ट्रीय क्राइम फाइल्स निपटाकर दुनियाभर कर दिया अचंभित
- अमेरिकन क्राइम इन्वेस्टिगेशन सेल ने किया नामित 



यह स्कॉटिश लेखक आर्थर डॉयल के काल्पनिक जासूसी पात्र शर्लक होम्स की कहानी नहीं है, जो अपने तौर तरीकों के जरिए अपराधियों को गिरफ्त में ले लिया करता था। यह इंदौर के 23 वर्षीय एक नौजवान की हकीकत है। वह जेनेटिक साइंस का छात्र है और भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उसे ओजोन मैन ऑफ द वर्ल्ड  घोषित किया है। उसने भारत में ही रहकर कुछ ही दिनों में 42 अनसुलझे अंतरराष्टरीय अपराधों को सुलझा दिया है। ये अपराध बरसों पुराने थे और कई ख्यात अपराध विशेषज्ञ, पुलिस अधिकारी और फोरेंसिक मेडिसिन के वैज्ञानिक भी इनके आगे हार गए थे। उसकी अविश्वसनीय बुद्धि से अचंभित होकर दुनियाभर से भारत की राष्टï्रपति को बधाई पत्र मिले हैं। इतना ही नहीं उसे अमेरिका ने तो अपनी फोरेंसिक रिसर्च काउंसिल के क्राइम इन्वेस्टिगेशन सेल में नामित तक कर लिया है। 

बात इंदौर के अंशुल जैन की है। कहने को तो वे डब्ल्यूएचओ के डीओई में बतौर जूनियर साइंटिस्ट कार्य कर रहे हैं, लेकिन जेनेटिक साइंस के क्षेत्र में उनकी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया के जेनेटिक साइंटिस्ट मान चुके हैं। हाल ही में भारत की राष्टï्रपति प्रतिभादेवी सिंह पाटिल ने अंशुल की उपलब्धियों से अभिभूत होकर एक बधाई पत्र भेजा है। मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम ने भी एक व्यक्तिगत पत्र लिखकर अंशुल की इस उपलब्धि को  उत्कृष्ट  बताया है। सुरक्षा के मद्देनजर स्थान की गोपनीयता की शर्त पर अंशुल से 'पत्रिका  से विशेष चर्चा की। उन्होंने बताया कुछ नया करने की मेरी सोच ने ही इस मुकाम तक पहुंचाया है।

यूं सुलझाई क्राइम फाइल्स
अंशुल जेनेटिक साइंटिस्ट हैं और उनका नाता मानव रक्त में मौजूद गुणसूत्रों व डीएनए से है। उन्होंने रक्त और जीन्स के नमूनों के आधार पर ही अपराधियों को बेनकाब किया है। वे बताते हैं यह बहुत ही जटिल प्रक्रिया है और इसमें कई बार कई-कई दिन लग जाते हैं।

हर रात दो घंटे की मशक्कत से मिला मुकाम
अंशुल इंदौर के गुजराती साइंस स्कूल के छात्र रहे हैं। 12 वीं के बाद वर्ष 2006 में उन्होंने मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए 15 परीक्षाएं दी और 12 की मेरिट में स्थान बनाया। वे बताते हैं मैं डॉक्टर बनकर पहले ही खोजी जा चुकी दवाइयों के आधार पर इलाज करके रोजी-रोटी नहीं कमाना चाहता था, इसलिए इस चयन से संतुष्ट नहीं हुआ और इंटरनेट पर शोध की दुनिया को खंगालने लगा। इंटरनेट सर्फिंग के दौरान ही मेरा जैनेटिक साइंस की ओर झुकाव बढ़ा। हर रात दो घंटे में इस विषय पर इंटरनेट पर जाता था और एक दिन ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी की ऑन लाइन सेवा में चला गया। वहां जैनेटिक्स से जुड़ी पहेली थी। उसे हल किया तो मुझे ऑन लाइन परीक्षा के लिए आमंत्रित किया गया। पौन घंटे बाद परीक्षा हुई और मैं चयनित हो गया। बस तभी से जैनेटिक्स मेरी दुनिया बन गया है।

परिवार की अहम भूमिका
अंशुल बताते हैं मेरे ताऊजी डॉ. सुरेंद्र जैन ही मेरे प्रेरणा स्त्रोत रहे हैं। बाद में पूर्व राष्टï्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कमाल ने मुझे प्रेरित किया। मेरी मां कल्पना जैन, पिता डी. जैन, बड़े भाई डॉ. अंकुर जैन ने भी हरकदम पर मेरी हौंसला अफजाई की है, यही वजह है कि मैं आगे बढ़ रहा हूं।
 
'अंशुल, भारत और दुनिया के दूसरे देशों की ओर से मैं आपका शुक्रिया अदा करना चाहती हूं। मेरी इच्छा है कि मैं आपसे मुलाकात करूं।
- प्रतिभा देवीसिंह पाटिल,
राष्ट्रपति (अंशुल को लिखे पत्र से)

'अंशुल, आपकी उपलब्धि न केवल बधाई के योग्य है, बल्कि यह अविश्वसनीय है। इससे भारत के इतिहास में आपका नाम दर्ज हो गया है।
- एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व राष्ट्रपति (अंशुल को लिखे पत्र से)

'भारत में शोध को बढ़ावा नहीं दिया जाता, इसीलिए यहां वैज्ञानिकों की पूछ परख नहीं है। सरकार को इस दिशा में ध्यान देना चाहिए। - अंशुल जैन, साइंटिस्ट, जैनेटिक साइंस




 पूरी दुनिया को बदल डालेगा जेनेटिक साइंस
- जेनेटिक साइंटिस्ट अंशुल जैन से विशेष भेंट

चॉकलेटी हीरो जैसे नैन-नक्श वाले 23 वर्षीय अंशुल को देखकर कोई नहीं कह सकता कि उनकी अद्भुत बुद्धिमत्ता के कायल होकर चार वर्ष पहले ही भारत के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें 'ओजोन मैन ऑफ द वर्ल्ड घोषित कर दिया था। तब से आज तक वे जैनेटिक साइंस के क्षेत्र में शोधरत हैं। 'पत्रिका  से विशेष भेंट में उन्होंने बताया जेनेटिक साइंस ऐसा क्षेत्र है, जो कुछ ही वर्षों में पूरी दुनिया को बदल देगा। अभी तो इस विधा में कुछ हुआ ही नहीं है।

प्र- आपको अमेरिका के फोरेंसिक रिसर्च काउंसिल के क्राइम इन्वेस्टिगेशन सेल में नामित क्यों किया गया है?
उ-  जैनेटिक साइंस के क्षेत्र में शोधरत होने के कारण मेरे पास 42 पुराने अपराध सुलझाने के लिए रक्त के नमूने आए थे। मैंने वैज्ञानिक तौर-तरीकों का इस्तेमाल करके इन्हें निपटाया। इसी को देखते हुए अमेरिकन फोरेंसिक रिसर्च काउंसिल ने यह कदम उठाया।

प्र- आपकी सफलता का क्या राज है?
उ- बचपन से ही कुछ नया करने का सोच था। 12 वीं के बाद मैंने चिकित्सा के क्षेत्र में जाने के लिए 15 प्रवेश परीक्षाएं दी थीं और इनमें से 12 में मुझे मेरिट में स्थान मिला था, लेकिन मैं नहीं चाहता था कि डॉक्टर बनकर पूर्व में की गई खोजों के आधार पर लोगों का उपचार करूं। बस मुझे जुनून सवार था कि शोध करना है और मैं आगे बढ़ता चला गया।

प्र- आपके प्रेरणास्त्रोत कौन हैं? 
उ- मेरे ताऊजी डॉ. सुरेंद्र जैन। उन्हें देखकर ही मुझे राह मिली। बाद में मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कमाल ने मुझे राह दिखाई। मां कल्पना जैन, पिता डी. जैन, बड़े भाई डॉ. अंकुर जैन ने भी हरकदम पर मेरी हौंसला अफजाई की।

प्र- जैनेटिक साइंस की ओर कैसे मुड़े?
उ- मैंने इंदौर के गुजराती साइंस कॉलेज से 12 वीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद इंटरनेट सर्फिंग के दौरान ही जैनेटिक साइंस की ओर झुकाव बढ़ा। हर रात दो घंटे में इस विषय पर नेट पर जाता था और एक दिन ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी की ऑन लाइन सेवा में चला गया। वहां जैनेटिक्स से जुड़ी पहेली थी। उसे हल किया तो मुझे ऑन लाइन परीक्षा के लिए आमंत्रित किया गया। पौन घंटे बाद परीक्षा हुई और मैं चयनित हो गया। बस तभी से जैनेटिक्स मेरी दुनिया बन गया है।


प्र- जैनेटिक साइंस के क्षेत्र में अभी आप क्या काम रहे हैं?
उ- यह एक गोपनीय मसला है, परंतु इतना जरूर है कि इस क्षेत्र में अभी तो कुछ हुआ ही नहीं है। मनुष्य के बारे में जो भी आप सोच सकते हैं, उसे जैनेटिक्स से हासिल किया जा सकता है। कुछ ही वर्षों में इससे पूरी दुनिया में तब्दीली हो जाएगी।

प्र- इस दिशा में भारत सरकार के प्रयासों के बारे में बताएं?
उ- सबसे बड़ा प्रयास यह है कि मुझे देश में ही रहकर काम करने का मौका मिल गया। वैसे, भारत में शोध को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है, यही वजह है कि छात्र इससे दूर होते जा रहे हैं। यहां लोग उन बातों को शोध बता रहे हैं, जो पहले ही खोजा जा चुका है।

प्र- भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारें में आपकी क्या राय है?
उ- जब तक इसे पूरी तरह बदला नहीं जाएगा, तब तक हम दुनिया के साथ खड़े नहीं हो सकेंगे। वर्तमान में स्कूल-कॉलेज व्यापार का केंद्र बने हुए हैं। जहां से ज्ञान गंगा बहना चाहिए, वहां से गंदे नाले बह रहे हैं।

प्र- भारतीय राजनैतिक व्यवस्था पर आपकी क्या राय है?
उ- कानून बनाने में नेताओं को मास्टर्स डिग्री हासिल है और कानून तोडऩे में पीएचडी। फौरी तौर पर कहूं तो नेताओं को देश की चिंता ही नहीं है। वे न तो यह समझने को तैयार है कि दुनिया बदल रही है और न ही यह कि देश की प्रतिभाएं बोथरी हो रही हैं। इससे अधिक तो क्या कहूं?

प्र- आपको अत्यधिक सुरक्षा प्राप्त है, क्या इससे असहज महसूस नहीं करते हैं?
उ- जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मैं सुरक्षा को लेकर चिंतित नहीं हूं। मैं अपने और अपने पारिवारिक लोगों के बीच में हमेशा खुश रहता हूं।

प्र- अभी दिन में आप कितने घंटे काम करते हैं?
उ- उसकी कोई सीमा नहीं है। कई बार तो लगातार दो-दो रात काम होता है और कई बार कोई काम नहीं। दरअसल, यह क्षेत्र जुनून से भरा हुआ है और मुझे तो इसी में डूबे रहने में मजा भी आता है।

प्र- आपका सपना?
उ- दुनिया के लोगों को बीमारियों से बचाना। कई नई-नई बीमारियों आ रही हैं और इनसे लडऩे के तरीके भी नए ढूंढना होंगे। हम लोग इन्हीं पर काम कर रहे हैं। मानवता को महफूज रखना ही जीवन का उद्देश्य है। एक खास बात मैं जैन हूं और जैन धर्म के सिद्धांतों की कसौटी पर ही दुनिया की वैज्ञानिक प्रगति को देख रहा हूं। 
 
(नोट: अंशुल को  अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा हासिल है और इसी के मद्देनजर उनके मौजूदा पते और शहर की जानकारी को छुपाया जा रहा है। जो क्राइम फाइल्स उन्होंने सुलझाई हैं, उनके बारे में भी जिक्र नहीं किया गया है।) 

पत्रिका : २-३ अक्टूबर २०१०