शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

मनोकामना के लिए सरकारी चंदाखोरी

- मंदसौर जिले के हर सरकारी दफ्तर में काटी जा रही चंदे की रसीदें
- आस्था और श्रद्धा के नाम पर प्रशासनिक जबरदस्ती


एक नजर
सोसाइटी : श्री पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी, मंदसौर
पदाधिकारी : कलेक्टर (अध्यक्ष) और एसडीएम मंदसौर (सचिव)
इतने की रसीद : 1100 और 2100 रुपए
इस नाम पर : मंदिर में मनोकामना अभिषेक (25 जुलाई से 27 अगस्त तक)
यह है लक्ष्य : पांच करोड़ रुपए
चंदे का उद्देश्य: पशुपतिनाथ मंदिर के मास्टर प्लॉन को पूरा करना।
यहां से : भानपुरा, गरोठ, शामगढ़, सुवासरा, सीतामऊ, मल्हारगढ़ और मंदसौर के गांव-गांव से।
चंदे का जरिया:  सभी सरकारी दफ्तरों और सरपंच।
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मंदसौर जिले में इन दिनों सरकारी चंदे का धंधा जोरों पर हैं। चंदा धर्म के नाम पर किया जा रहा है और जुटाने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन ने ही ले रखी है। चंदे के लिए जिले के हर सरकारी दफ्तर में 'पूरी उगाहीÓ की हिदायत के साथ रसीद कट्टे पहुंचाए गए हैं। सावन मास की समाप्ति तक का लक्ष्य पांच करोड़ है और अब तक सवा दो करोड़ रुपए एकत्रित भी हो चुके हैं। चंदा देने वालों में ज्यादातर वे लोग शामिल हैं, जिन्हें बीते एक महीने में किसी काम के सिलसिले में सरकारी दफ्तर जाना पड़ा। चंदा दिए बगैर फिलहाल कोई भी सरकारी काम अघोषित रूप से 'असंभवÓ है।

चंदा जुटाने का काम मंदसौर की श्री पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी कर रही है। इसके अध्यक्ष जिला कलेक्टर और सचिव मंदसौर के अनुविभागीय अधिकारी हैं। सोसाइटी ने मंदिर का नया मास्टर प्लॉन बनाया है, जिसके लिए करोड़ों रुपए की जरूरत है। चूंकि हिंदु धर्मावलंबी सावन माह में  पशुपतिनाथ की भक्ति को मनोकामना पूरी करने का जरिया मानते हैं, इसलिए सोसाइटी ने भी इसका फायदा उठाने का 'षडय़ंत्रÓ रचा। ïजून-जुलाई से ही चंदे की रूपरेखा तैयार हो गई। रसीद कट्टे छापकर तैयार किए गए। कम से कम 1100 और अधिकतम 2100 रुपए का दाम रखा गया और पूरे जिले में 'मनोकामना अभिषेक वर्ष 2010Ó का ऐलान कर दिया गया। कट्टे सरकारी दफ्तरों से लेकर ग्राम पंचायतों तक में भेज दिए गए और शुरू हो गया 'सरकारी चंदाÓ। 

प्रशासन और धर्म से बंधे लोग
चंदा देने वाले मौन हैं, क्योंकि मुंह पर प्रशासन के डर का ताला डला है। कुछ लोग धर्म से जुड़ा मसला होने के कारण भी चुप हैं। सीतामऊ तहसील के एक सरपंच ने बताया मुझे 20 हजार रुपए इकठ्ठे करके देना है और मैं विरोध करूंगा तो मेरे सारे सरकारी काम रोक दिए जाएंगे। गरोठ तहसील की खजूरी पंचायत के एक पंच ने बताया दो रसीदें कटवाई हैं, लेकिन कुछ बोल नहीं सकता हूं। ऐसा किया तो गांव के लोग मेरे खिलाफ होकर कहेंगे, धर्म के काम में रोढ़ा बन रहे हो। 

पूर्व कलेक्टर ने जुटाए थे साढ़े चार करोड़
मनोकामना अभिषेक की योजना पूर्व कलेक्टर डॉ. जीके सारस्वत ने तैयार की थी। उनके कार्यकाल में पिछले वर्ष मनोकामना अभिषेक के नाम से साढ़े चार करोड़ रुपए जुटाए गए थे। सूत्रों का कहना है, इसी आंकड़े को पीछे छोडऩे के लिए इस वर्ष पांच करोड़ रुपए का लक्ष्य तय किया गया।

तहसील कार्यालयों पर लगती बसें
मनोकामना अभिषेक करवाने वालों को मंदसौर लाने- ले जाने के लिए भानपुरा, गरोठ, सीतामऊ और मल्हारगढ़ तहसील मुख्यालयों पर एक-दो दिन के अंतराल से बसें लगती हैं। इनका प्रबंध भी सरकारी महकमों द्वारा ही किया जाता है।



हम तो बस प्रेरित कर रहे हैं
देखिए यह धर्म का काम है और हम लोग केवल प्रेरक का काम कर रहे हैं। कोई विरोध करता है, तो उसकी रसीद नहीं काटी जाती है। विरोध होना था, तो हो जाता। अब तक 11 हजार जोड़े मनोकामना अभिषेक करने आ चुके हैं। वैसे भी यह मामला जिले के पूरे मीडिया और जनप्रतिनिधियों की जानकारी में है।
- एके रावल, सचिव, श्रीपशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी एवं एसडीएम मंदसौर

रसीद कट्टे आए हैं। यह सब श्रद्धा का मामला है। कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की जा रही ह। वैसे भी इस रुपए से पशुपतिनाथ मंदिर का नवनिर्माण किया जाना है। अधिकारी, कर्मचारी, जनप्रतिनिधि, व्यापारी सभी से रुपए लिए जा रहे हैं।
- अभयसिंह ओहरिया, एसडीएम, गरोठ

सावन साल में एक बार आता है और इस दौरान राशि जुटाई जा रही है। यह स्वेच्छा का काम है। पूरे जिले से ही रसीदें काटी जा रही हैं। रुपए आएंगे, तभी तो पशुपतिनाथ मंदिर का मास्टर प्लॉन पूरा हो सकेगा। ज्यादा जानकारी के लिए कलेक्टर से बात कर लें।
- एलपी बौरासी, एसडीएम, सीतामऊ

समिति के लोगों ने रसीद कट्टे भेजे हैं और यहां के लोग भी मनोकामना अभिषेक करने जा रहे हैं। रसीद कटवाने का किसी पर कोई दबाव नहीं डाला जा रहा है।
- एनएस राजावत, एसडीएम, मल्हारगढ़ 


'सभी की सहमति से शुरू कियाÓ
मुझे तो यहां आए अभी चार महीने ही हुए हैं। पूर्व कलेक्टर ने यह काम शुरू किया था। इसके लिए मैंने भी कुछ बैठकें बुलाई और सोसाइटी के सभी सदस्यों ने जब मंजूरी दी तो मनोकामना अभिषेक की रसीदों का कार्य शुरू किया गया। जो रुपया आएगा, उसे मंदिर में लगाया जाएगा और इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। सभी लोगों से कहा गया है कि वे किसी पर किसी किस्म का दबाव न डाले। मर्जी से जो देना चाहे, उसी से लें।
- महेंद्र ज्ञानी, अध्यक्ष, श्रीपशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी एवं कलेक्टर मंदसौर


ये कैसे हो रहा है?
मुझे इस मसले की फिलहाल जानकारी नहीं है। दिखवाता हूं कि सरकारी दफ्तरों में यह काम कैसे चल रहा है। ऐसा होना नहीं चाहिए।
- टी. धर्माराव, संभागायुक्त, उज्जैन 


ऑफिस-ऑफिस चंदे की कहानी

दृश्य एक : रजिस्ट्रार ऑफिस
किसान: साहब, जमीन की रजिस्ट्री के ये कागज हैं, कृपा करें।
डिप्टी रजिस्ट्रार: सब काम हो जाएगा, पहले 2100 रुपए जमा करके रसीद लो।
किसान: यह किस बात की रसीद है, साहब। 
डिप्टी रजिस्ट्रार: पशुपतिनाथ मंदिर में मनोकामना अभिषेक की। यह जरूरी है।

दृश्य दो  : ग्राम पंचायत
ग्रामीण : सरपंच साहब, कूपन बना दो, ताकि परिवार को गेहूं, शक्कर आदि मिल सके।
सरपंच: वो, तो अभी बना देंगे। सचिव को कहने भर की देर है। परंतु, इसके बदले में पहले मनोकामना अभिषेक की रसीद कटवाना होगी।
ग्रामीण: मुझे मालूम था कि यह जरूरी है, इसलिए रुपए साथ में लेकर आया था।

दृश्य तीन : शिक्षा विभाग
शिक्षक: मेरा मेडिकल बिल अटका है, कृपया मंजूर कर दें। तीन बार अर्जी दे चुका हूं।
बीईओ: सही समय पर आए हो। अभी हो जाएगा। अकेले अर्जी से काम नहीं चलेगा। पहले 'मनोकामनाÓ तो पूरी कर लो।
शिक्षक: वह कैसे होगी?
बीईओ: बहुत आसान है। कलेक्टर साहब के यहां से यह रसीद कट्टा आया है। पशुपतिनाथ मंदिर में मनोकामना पूरी करने के लिए 2100 रुपए लगेंगे।
शिक्षक: यह तो बहुत ज्यादा है, करीब इतना ही तो मेरा बिल है।
बीईओ: ठीक है, 1100 रुपए वाली कटवा लो।

(सभी के नाम गोपनीय रखे हैं, ताकि उन पर प्रशासनिक दबाव न आए।) 

पत्रिका : २० अगस्त २०१०

सुरेश सेठ ने कहा - सीबीआई से करा लो जांच

- सुगनीदेवी जमीन मामले में हाईकोर्ट में उठी मांग
- मेंदोला, संघवी की याचिका पर पूरे दिन चली बहस, फैसला सुरक्षित



परदेशीपुरा चौराहा के पास स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ मूल्य की तीन एकड़ जमीन मामले में लोकायुक्त जांच को चुनौती देने से जुड़ी दो याचिकाओं पर गुरुवार को इंदौर हाईकोर्ट में पूरे दिन (प्रात: 10.40 से शाम 4.20 बजे तक) बहस चली। याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलों पर शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने कोर्ट के समक्ष एक नई मांग रख दी कि इस केस की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से करवा ली जाए, क्योंकि लोकायुक्त पुलिस के पास भ्रष्टाचार से जुड़े ऐसे कई प्रकरण लंबित हैं, जिनकी जांच आठ-आठ वर्ष से चल रही है। सेठ ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के मामले उठाने वाले व्यक्ति को हतोत्साहित करने के लिए ये याचिकाएं दायर की गई हैं। मामले में कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। 

विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने 6 अप्रैल 2010 को लोकायुक्त पुलिस को मामले में जांच के आदेश दिए थे। नंदानगर साख संस्था के अध्यक्ष व विधायक रमेश मेंदोला और धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी ने दो अलग-अलग याचिकाओं में इस आदेश को चुनौती दी थी। जस्टिस एसएल कोचर और जस्टिस शुभधा वाघमारे की युगलपीठ ने इन्हीं पर सुनवाई की। याचिकाओं में मूल शिकायतकर्ता सुरेश सेठ समेत लोकायुक्त, लोकायुक्त एसपी, पुलिस महानिरीक्षक को प्रतिवादी बनाया गया है। ज्ञात रहे मामले में 5 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस ने मेंदोला व संघवी समेत 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस दर्ज किया है। तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका की जांच अभी जारी है। 21 सितंबर को विशेष न्यायालय में अंतिम जांच प्रतिवेदन पेश होगा।

284 पेज में 21 न्यायिक दृष्टांत
सेठ ने कोर्ट में 284 पेज का एक जवाब प्रस्तुत किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के 21 न्यायिक दृष्टांत पेश किए गए हैं। ये सभी दृष्टांत मेंदोला और संघवी की याचिकाओं के तर्कों को चुनौती देते हैं।

 अपराध को खत्म तो नहीं किया जा सकता
बहस के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि अपराध तो हुआ है और केवल प्रक्रिया का हवाला देकर अपराध को खत्म तो नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने जीरो कायमी का हवाला देते हुए कहा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत कोई भी व्यक्ति थाने में जाकर एफआईआर दर्ज कर सकता है। पहले वह जीरो नंबर पर कायम होती है और बाद में जिस क्षेत्र से संबंध होती है, वहां उसे भेजा जा सकता है। इस केस में लोकायुक्त पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। अब उसे शिफ्ट किया जा सकता है, खत्म तो नहीं किया जा सकता। 


मैं तो हर दर पर गया था,
किसी ने सुना ही नहीं
- सुगनीदेवी कॉलेज परिसर मामले में हाईकोर्ट के समक्ष सुरेश सेठ ने रखा तर्क
- मेंदोला और संघवी की वकीलों ने भी पूरी तैयारी के साथ रखा पक्ष



जमीन के इस मामले में मैंने तो हर दर पर शिकायत करके न्याय मांगा था, लेकिन किसी ने सुना ही नहीं। यहां तक कि मुख्यमंत्री तक के यहां से आज तक जवाब नहीं आया। वर्ष 2007 से मैं जिम्मेदार अफसरों और जनप्रतिनिधियों को पत्र लिख रहा हूं। सरकार से तीन वर्ष से लड़ रहा हूं। कहां जाऊं... क्या मैं गटर में चला जाऊं। जो वकील यहां पैरवी कर रहे हैं, वे बताएं कि जो जमीन का मालिक ही नहीं था, उसने जमीन कैसे बेच दी। ये लोग तभी हाईकोर्ट के सामने आए, जब इन्हें पता चल गया कि अब लोकायुक्त जांच से बच नहीं सकते। मुझे तो ऐसा लग रहा है, जैसे आजादी की लड़ाई चल रही हो। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्यक्ति की आवाज दबाने की कोशिश हो रही है। ऐसा ही चलता रहा तो मेरे मरने के बाद तक इस मामले में कोई निर्णय नहीं होगा।

यह बात कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने गुरुवार को हाईकोर्ट में जस्टिस एसएल कोचर और जस्टिस शुभदा वाघमाले की युगलपीठ के समक्ष कही। वे परदेशीपुरा चौराहा के पास स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ मूल्य की तीन एकड़ जमीन मामले में लोकायुक्त जांच को चुनौती देने से जुड़ी दो याचिकाओं पर जारी बहस में हिस्सा ले रहे थे। नंदानगर साख संस्था के अध्यक्ष व विधायक रमेश मेंदोला और धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी ने ये याचिकाएं लगाई हैं। मेंदोला की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट एके सेठी और एडवोकेट राहुल सेठी ने जबकि संघवी की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट रमेश आर्या और एडवोकेट अमित अग्रवाल ने पैरवी की। लोकायुक्त की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट एलएन सोनी ने पक्ष रखा।

एडवोकेट देसाई को बनाया एमिकस क्यूरी
बहस के दौरान ही कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीश देसाई को एमिकस क्यूरी (केस में कोर्ट के सलाहकार) घोषित किया। कोर्ट ने करीब एक घंटे तक उनसे विभिन्न पहलूओं पर विमर्श किया।

खचाखचा भरी रही कोर्ट 
उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला के कारण बहुचर्चित हुए इस मामले को सुनने के लिए हाईकोर्ट के रूम नंबर 09 में पूरे दिन वकीलों की भीड़ जुटी रही। कई वरिष्ठ से लेकर कनिष्ठ एडवोकेट्स तक बहस को सुनने के लिए मौजूद थे। लोकायुक्त जांच की सीमाएं, विशेष न्यायाधीश के आदेश और भ्रष्टाचार से जुड़े मसलों पर जांच एजेंसियों के लिए तय मापदंडों से जुड़े विभिन्न कानूनी पहलू बहस के दौरान उजागर भी हुए।

टीआई से सीएम तक की सेठ ने शिकायत

17 मई 2007         : इंदौर निगमायुक्त
1 मई 2008           : इंदौर निगमायुक्त
6 अक्टूबर 2008     : इंदौर निगमायुक्त
12 फरवरी 2009     : इंदौर निगमायुक्त
27 फरवरी 2009     : आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)
2 मार्च 2009           : मुख्य सचिव मप्र, गृह सचिव, आईजी पुलिस, आईजी ईओडब्ल्यू, डीआईजी इंदौर, एसपी इंदौर, कलेक्टर इंदौर, एसपी ईओडब्ल्यू और टीआई परदेशीपुरा।
17 जून 2009          : मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान
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कोर्ट में कानूनी तर्कों की नींव

विधायक रमेश मेंदोला की याचिका के आधार

1. दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 153(3) की शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट कर सकता है, विशेष न्यायाधीश नहीं।
2. विशेष न्यायाधीश मप्र विशेष पुलिस स्थापना (एसपीई) कानून 1947 एवं मप्र लोकायुक्त कानून के अधीन है। वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1947, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत मजिस्ट्रेट नहीं है।
3. विशेष न्यायाधीश द्वारा सीआरपीसी की धारा 190 के तहत कार्रवाई नहीं की।
4. मप्र विशेष पुलिस स्थापना कानून की धारा 4 के तहत कोई भी अनुसंधान कार्य पर सुपरइनटेंडेंस लोकायुक्त की रहती है, न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
5. शिकायतकर्ता ने कभी भी लोकायुक्त अथवा एसपीई लेाकायुक्त को शिकायत दर्ज नहीं करवाई, इसलिए विशेष न्यायाधीश द्वारा धारा 153(3) के तहत जांच के आदेश देना त्रूटिपूर्ण है।
6. विशेष न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 200 के तहत निजी फौजदारी परिवाद के तहत परिवादी के बयान दर्ज नहीं किए और न ही धारा 202 के तहत कोई कार्रवाई की।
7. आरोपी की सुनवाई का अवसर दिए बगैर सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
8. सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत आदेश पुलिस स्टेशन के ऑफिसर इंनचार्ज को ही दिया जा सकता है। एसपीई लोकायुक्त इंदौर इस श्रेणी में नहीं आते।
9. सीआरपीसी की धारा 153(3) की शक्तियों का उपयोग तभी किया जा सकता है, जबकि संबंधित मामले में एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दिया गया हो।
10. विशेष न्यायाधीश का आदेश मप्र विशेष पुलिस स्थापना कानून के प्रावधानों के विपरीत है, क्योंकि इस अधिनियम में राज्य सरकार की पूर्व अनुमति जरूरी है।


मनीष संघवी की याचिका के आधार
1. याचिकाकर्ता लोक सेवक नहीं है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत एसपीई लोकायुक्त को जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।
2. मप्र लोकायुक्त और उपलोकायुक्त नियम 1981 की धारा 8 (सी) के तहत पांच वर्ष से पुराने मामलों पर जांच का प्रतिबंध लगाया गया है।
3. विशेष न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 153(3) के तहत याचिकाकर्ता को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया।
4. विशेष न्यायाधीश का आदेश मप्र लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम 1981 की धारा 7 के प्रावधानों का उल्लंघन है।


सुरेश सेठ के जवाब
1. तत्कालीन एमआईसी सदस्य रमेश मेंदोला ने महापौर कैलाश विजयवर्गीय की मौन सहमति के साथ पद का दुरुपयोग करते हुए धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी व विजय कोठारी से आपराधिक षडय़ंत्र रचकर सरकारी जमीन की खरीदी-बिक्री की। इससे निगम और सरकार को करोड़ों की राजस्व हानि हुई।
2. वर्तमान में पुलिस अनुसंधान जारी है, इसलिए दोनों याचिकाएं अपरिपक्व हैं।
3. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (ई) के तहत एसपी स्तर के अधिकारी को जांच का आदेश देने का अधिकार है।
4. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश को संज्ञान लेने का पूर्ण अधिकार है और इससे सेशन न्यायालय के साथ मजिस्ट्रेट की शक्तियों का समावेश हो गया है। 
5. सीआरपीसी की धारा 153 (3) के तहत जांच के आदेश जारी करने से पहले अभियुक्त को सुनवाई को अवसर देने का कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है।

पत्रिका : २० अगस्त २०१० 

तीन डॉक्टरों समेत नौ पर गैरइरादतन हत्या का केस

- निजी शिकायत पर कोर्ट का आदेश
- हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में डॉक्टरों की लापरवाही से गर्भस्थ शिशु मौत का मामला


14 महीने पहले हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले में कोर्ट ने तीन डॉक्टरों समेत नौ लोगों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज करने के आदेश दिए हैं। यह आदेश शिशु की मां द्वारा कोर्ट में लगाई निजी शिकायत पर किया गया है। 

प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी आरती शर्मा की कोर्ट ने माना कि 17 जून की रात 9.30 बजे से 18 जून 2009 की प्रात: 11.30 बजे तक तीन लेडी डॉक्टरों समेत नौ कर्मचारियों ने गर्भवती प्रभावति गिरधारीलाल प्रजापति के इलाज में लापरवाही बरती और इससे गर्भस्थ शिशु की मौत हो गई। लिहाजा यह गैरइरादतन हत्या का मामला है। कोर्ट ने 8 सितंबर को सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं।

इनके खिलाफ हुआ केस
डॉ. कीर्ति चतुर्वेदी, डॉ. मुक्ता जैन, डॉ. कुसुम मारू, नर्स किरण नाइक, शैफाली चौहान, तिलोत्मा सिंह, जया पांडे, स्वीपर हेमलता और आया हेमलता।


ऐसी लापरवाही
- 17 जून की रात में डॉ. कीर्ति चतुर्वेदी, नर्स शैफाली, किरण, शारदा, जया, मनोरमा व हेमलता ड्यूटी पर थीं, लेकिन सभी ने गर्भवती की उपेक्षा की।

- 18 जून की प्रात: डॉ. मुक्ता जैन व डॉ. कुसुम मारू अस्पताल पहुंची, लेकिन इलाज के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया। यहां तक कि मेडिकल रिकॉर्ड में भी गर्भवती के बारे में सही जानकारी नहीं लिखी।



पुलिस पर सांठ-गांठ का आरोप
परिवादी के एडवोकेट बीएन राजपूत ने बताया केस की जांच तत्कालीन अपर कलेक्टर रेणु पंत ने करके स्वास्थ्य विभाग को नौ लोगों के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का केस दर्ज करने के निर्देश दिए थे। विभाग ने पुलिस को ऐसा करने के लिए कहा भी था, लेकिन सांठ-गांठ के चलते केस दर्ज नहीं हो सका। यही वजह है कि निजी शिकायत दर्ज करना पड़ी।


ऐसे किया स्वास्थ्य विभाग ने न्याय ?
स्वास्थ्य विभाग ने भी तीनों डॉक्टरों को दोषी माना था, लेकिन सजा महज दो-दो वेतनवृद्धि रोकने की दी थी। यह भी केवल दो वर्ष तक के लिए यानी इसके बाद उन्हें वेतनवृद्धि का फायदा मिलने लगेगा। इतना ही नहीं, जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट को कमजोर करने के लिए तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा ने तो डॉक्टरों को बचाने के लिए एक पत्र जारी कर दिया था। उन्होंने लिखा था डॉक्टरों पर केस करने से विभाग की बदनामी होगी।


'पेट दबा-दबाकर मेरे बच्चे को मार डालाÓ
दर्द शुरू होने के बाद मुझे मकान मालकिन ललिता कश्यप 17 जून को हुकमचंद पॉलीक्लिनिक ले गई। वहां भर्ती कर दिया। रात 11 बजे जब दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ तो मकान मालकिन ने मौजूद नर्स किरण नाइक से देखने को कहा। उसने यह कहकर भगा दिया कि सोने दो। रात दो बजे फिर उससे कहा तो उसने पेट दबा दिया। फिर 2000 रुपए ले लिए और कहा सुबह ऑपरेशन करेंगे। सुबह सात बजे फिर उससे देखने को कहा तो वह सात से आठ बजे तक पेट दबाती रही। आठ बजे यह कहकर चली गई कि मेरी डयूटी पूरी हो गई। सुबह 10.30 बजे डॉ. कुसुम मारू आई तो उन्होंने ऑपरेशन किया। इन लोगों ने मेरे बच्चे को दबा-दबा कर मार डाला।
(गर्भवती प्रभावती द्वारा घटना के संबंध में जिला प्रशासन को दिया गया बयान)


पत्रिका : १९ अगस्त २०१० 
30 जुलाई को प्रकाशित खबर

नवजात की मौत पर दो वेतनवृद्धि रोकने की सजा
- स्वास्थ्य विभाग का न्याय (?), जिला प्रशासन ने माना था गैरइरादतन हत्या का मामला
- हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में तीन महिला डॉक्टरों की लापरवाही से गई थी जान


गर्भस्थ शिशु की मौत के जिस मामले पर इंदौर जिला प्रशासन ने गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज करने की सिफारिश की थी, उसमें स्वास्थ्य विभाग ने आरोपी डॉक्टरों की दो-दो वेतनवृद्धि रोकने के आदेश जारी किए हैं। विभाग ने घटना के दौरान हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में पदस्थ रही डॉ. कुसुमलता मारू, डॉ. मुक्ता जैन और डॉ. कीर्ति चतुर्वेदी को यह सजा सुनाई है। यह सजा भी दो वर्ष में समाप्त हो जाएगी, यानी इसके बाद उन्हें वेतनवृद्धि का फायदा मिलने लगेगा।

स्वास्थ्य विभाग के आदेश की पुष्टि करते हुए सीएमएचओ डॉ. शरद पंडित ने बताया जिला प्रशासन की सिफारिश पर विभागीय जांच की गई थी। इसमें तीनों डॉक्टरों पर आरोप सिद्ध हुआ है। शेष सात कर्मचारियों पर पहले ही कार्रवाई की जा चुकी है। विभाग में इसे बड़ा आर्थिक दंड माना जाता है। जिला प्रशासन के कहने पर सभी आरोपियों के खिलाफ सेंट्रल कोतवाली थाने पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करने की अर्जी दी थी, लेकिन पुलिस ने ऐसा किया ही नहीं।

अपर कलेक्टर रेणु पंत ने की थी जांच
तत्कालीन अपर कलेक्टर रेणु पंत ने इस मामले की जांच करके 100 से अधिक पेज की रिपोर्ट बनाई थी। इसी के आधार पर मामला पुलिस में गया था। बाद तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा ने एक पत्र जारी करके डॉक्टरों को लगभग बचा लिया था। उन्होंने लिखा था डॉक्टरों पर केस करने से विभाग की बदनाम