- आस्था और श्रद्धा के नाम पर प्रशासनिक जबरदस्ती
एक नजर
सोसाइटी : श्री पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी, मंदसौर
पदाधिकारी : कलेक्टर (अध्यक्ष) और एसडीएम मंदसौर (सचिव)
इतने की रसीद : 1100 और 2100 रुपए
इस नाम पर : मंदिर में मनोकामना अभिषेक (25 जुलाई से 27 अगस्त तक)
यह है लक्ष्य : पांच करोड़ रुपए
चंदे का उद्देश्य: पशुपतिनाथ मंदिर के मास्टर प्लॉन को पूरा करना।
यहां से : भानपुरा, गरोठ, शामगढ़, सुवासरा, सीतामऊ, मल्हारगढ़ और मंदसौर के गांव-गांव से।
चंदे का जरिया: सभी सरकारी दफ्तरों और सरपंच।
------------
मंदसौर जिले में इन दिनों सरकारी चंदे का धंधा जोरों पर हैं। चंदा धर्म के नाम पर किया जा रहा है और जुटाने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन ने ही ले रखी है। चंदे के लिए जिले के हर सरकारी दफ्तर में 'पूरी उगाहीÓ की हिदायत के साथ रसीद कट्टे पहुंचाए गए हैं। सावन मास की समाप्ति तक का लक्ष्य पांच करोड़ है और अब तक सवा दो करोड़ रुपए एकत्रित भी हो चुके हैं। चंदा देने वालों में ज्यादातर वे लोग शामिल हैं, जिन्हें बीते एक महीने में किसी काम के सिलसिले में सरकारी दफ्तर जाना पड़ा। चंदा दिए बगैर फिलहाल कोई भी सरकारी काम अघोषित रूप से 'असंभवÓ है।
चंदा जुटाने का काम मंदसौर की श्री पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी कर रही है। इसके अध्यक्ष जिला कलेक्टर और सचिव मंदसौर के अनुविभागीय अधिकारी हैं। सोसाइटी ने मंदिर का नया मास्टर प्लॉन बनाया है, जिसके लिए करोड़ों रुपए की जरूरत है। चूंकि हिंदु धर्मावलंबी सावन माह में पशुपतिनाथ की भक्ति को मनोकामना पूरी करने का जरिया मानते हैं, इसलिए सोसाइटी ने भी इसका फायदा उठाने का 'षडय़ंत्रÓ रचा। ïजून-जुलाई से ही चंदे की रूपरेखा तैयार हो गई। रसीद कट्टे छापकर तैयार किए गए। कम से कम 1100 और अधिकतम 2100 रुपए का दाम रखा गया और पूरे जिले में 'मनोकामना अभिषेक वर्ष 2010Ó का ऐलान कर दिया गया। कट्टे सरकारी दफ्तरों से लेकर ग्राम पंचायतों तक में भेज दिए गए और शुरू हो गया 'सरकारी चंदाÓ।
प्रशासन और धर्म से बंधे लोग
चंदा देने वाले मौन हैं, क्योंकि मुंह पर प्रशासन के डर का ताला डला है। कुछ लोग धर्म से जुड़ा मसला होने के कारण भी चुप हैं। सीतामऊ तहसील के एक सरपंच ने बताया मुझे 20 हजार रुपए इकठ्ठे करके देना है और मैं विरोध करूंगा तो मेरे सारे सरकारी काम रोक दिए जाएंगे। गरोठ तहसील की खजूरी पंचायत के एक पंच ने बताया दो रसीदें कटवाई हैं, लेकिन कुछ बोल नहीं सकता हूं। ऐसा किया तो गांव के लोग मेरे खिलाफ होकर कहेंगे, धर्म के काम में रोढ़ा बन रहे हो।
पूर्व कलेक्टर ने जुटाए थे साढ़े चार करोड़
मनोकामना अभिषेक की योजना पूर्व कलेक्टर डॉ. जीके सारस्वत ने तैयार की थी। उनके कार्यकाल में पिछले वर्ष मनोकामना अभिषेक के नाम से साढ़े चार करोड़ रुपए जुटाए गए थे। सूत्रों का कहना है, इसी आंकड़े को पीछे छोडऩे के लिए इस वर्ष पांच करोड़ रुपए का लक्ष्य तय किया गया।
तहसील कार्यालयों पर लगती बसें
मनोकामना अभिषेक करवाने वालों को मंदसौर लाने- ले जाने के लिए भानपुरा, गरोठ, सीतामऊ और मल्हारगढ़ तहसील मुख्यालयों पर एक-दो दिन के अंतराल से बसें लगती हैं। इनका प्रबंध भी सरकारी महकमों द्वारा ही किया जाता है।
हम तो बस प्रेरित कर रहे हैं
देखिए यह धर्म का काम है और हम लोग केवल प्रेरक का काम कर रहे हैं। कोई विरोध करता है, तो उसकी रसीद नहीं काटी जाती है। विरोध होना था, तो हो जाता। अब तक 11 हजार जोड़े मनोकामना अभिषेक करने आ चुके हैं। वैसे भी यह मामला जिले के पूरे मीडिया और जनप्रतिनिधियों की जानकारी में है।
- एके रावल, सचिव, श्रीपशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी एवं एसडीएम मंदसौर
रसीद कट्टे आए हैं। यह सब श्रद्धा का मामला है। कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की जा रही ह। वैसे भी इस रुपए से पशुपतिनाथ मंदिर का नवनिर्माण किया जाना है। अधिकारी, कर्मचारी, जनप्रतिनिधि, व्यापारी सभी से रुपए लिए जा रहे हैं।
- अभयसिंह ओहरिया, एसडीएम, गरोठ
सावन साल में एक बार आता है और इस दौरान राशि जुटाई जा रही है। यह स्वेच्छा का काम है। पूरे जिले से ही रसीदें काटी जा रही हैं। रुपए आएंगे, तभी तो पशुपतिनाथ मंदिर का मास्टर प्लॉन पूरा हो सकेगा। ज्यादा जानकारी के लिए कलेक्टर से बात कर लें।
- एलपी बौरासी, एसडीएम, सीतामऊ
समिति के लोगों ने रसीद कट्टे भेजे हैं और यहां के लोग भी मनोकामना अभिषेक करने जा रहे हैं। रसीद कटवाने का किसी पर कोई दबाव नहीं डाला जा रहा है।
- एनएस राजावत, एसडीएम, मल्हारगढ़
'सभी की सहमति से शुरू कियाÓ
मुझे तो यहां आए अभी चार महीने ही हुए हैं। पूर्व कलेक्टर ने यह काम शुरू किया था। इसके लिए मैंने भी कुछ बैठकें बुलाई और सोसाइटी के सभी सदस्यों ने जब मंजूरी दी तो मनोकामना अभिषेक की रसीदों का कार्य शुरू किया गया। जो रुपया आएगा, उसे मंदिर में लगाया जाएगा और इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। सभी लोगों से कहा गया है कि वे किसी पर किसी किस्म का दबाव न डाले। मर्जी से जो देना चाहे, उसी से लें।
- महेंद्र ज्ञानी, अध्यक्ष, श्रीपशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध सोसाइटी एवं कलेक्टर मंदसौर
ये कैसे हो रहा है?
मुझे इस मसले की फिलहाल जानकारी नहीं है। दिखवाता हूं कि सरकारी दफ्तरों में यह काम कैसे चल रहा है। ऐसा होना नहीं चाहिए।
- टी. धर्माराव, संभागायुक्त, उज्जैन
ऑफिस-ऑफिस चंदे की कहानी
दृश्य एक : रजिस्ट्रार ऑफिस
किसान: साहब, जमीन की रजिस्ट्री के ये कागज हैं, कृपा करें।
डिप्टी रजिस्ट्रार: सब काम हो जाएगा, पहले 2100 रुपए जमा करके रसीद लो।
किसान: यह किस बात की रसीद है, साहब।
डिप्टी रजिस्ट्रार: पशुपतिनाथ मंदिर में मनोकामना अभिषेक की। यह जरूरी है।
दृश्य दो : ग्राम पंचायत
ग्रामीण : सरपंच साहब, कूपन बना दो, ताकि परिवार को गेहूं, शक्कर आदि मिल सके।
सरपंच: वो, तो अभी बना देंगे। सचिव को कहने भर की देर है। परंतु, इसके बदले में पहले मनोकामना अभिषेक की रसीद कटवाना होगी।
ग्रामीण: मुझे मालूम था कि यह जरूरी है, इसलिए रुपए साथ में लेकर आया था।
दृश्य तीन : शिक्षा विभाग
शिक्षक: मेरा मेडिकल बिल अटका है, कृपया मंजूर कर दें। तीन बार अर्जी दे चुका हूं।
बीईओ: सही समय पर आए हो। अभी हो जाएगा। अकेले अर्जी से काम नहीं चलेगा। पहले 'मनोकामनाÓ तो पूरी कर लो।
शिक्षक: वह कैसे होगी?
बीईओ: बहुत आसान है। कलेक्टर साहब के यहां से यह रसीद कट्टा आया है। पशुपतिनाथ मंदिर में मनोकामना पूरी करने के लिए 2100 रुपए लगेंगे।
शिक्षक: यह तो बहुत ज्यादा है, करीब इतना ही तो मेरा बिल है।
बीईओ: ठीक है, 1100 रुपए वाली कटवा लो।
(सभी के नाम गोपनीय रखे हैं, ताकि उन पर प्रशासनिक दबाव न आए।)
पत्रिका : २० अगस्त २०१०