रविवार, 5 सितंबर 2010

अफसरों को याद आए दफन आदेश

- सवा सौ करोड़ की जमीन पर अब लिया कब्जा
- एक वर्ष पहले हाईकोर्ट जस्टिस एएम सप्रे दिया था निगम और पीडब्ल्यूडी के पक्ष में फैसला
- बॉबी के मनी सेंटर की लीज निरस्ती और आईडीए के दो अफसरों की गिरफ्तारी के बदला दृश्य


भूमाफिया बॉबी छाबड़ा के मनी सेंटर की लीज निरस्ती होने और दो गार्डनों की जमीनों में घालमेल करने के आरोप में आईडीए के दो अफसरों की गिरफ्तारी के बाद नगरनिगम, आईडीए, पीडब्ल्यूडी और जिला प्रशासन की फाइलों में दफन हाईकोर्ट के आदेश बाहर आने लगे हैं। निगम, पीडब्ल्यूडी और नजूल विभाग ने ऐसे ही एक आदेश की धूल फटकारकर शनिवार को करीब 125 करोड़ रुपए की एक जमीन पर अपना मालिकाना हक जताया और पार्किंग विकसित करने की योजना भी घोषित कर दी।

जमीन ग्रेटर कैलाश अस्पताल रोड पर स्थित चर्च के बगल में स्थित है। इसका आकार 14 हजार वर्ग फीट है। जस्टिस एएम सप्रे ने 25 अगस्त 2009 को दिए फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि पलासिया हाना के सर्वे क्रमांक 274-275/2 की जमीन पीडब्ल्यूडी और नगरनिगम की है। जमीन पर अनिल पिता परसराम गायकवाड़ ने मालिकाना हक जमाकर हाईकोर्ट में सेकंड अपील दायर की थी। निगम, नजूल और पीडब्ल्यूडी ने इस फैसले को तवज्जो ही नहीं दी।


दो बार बेच दी जमीन
एडीजे कोर्ट ने वर्ष 1992 में अनिल गायकवाड़ के पक्ष में जमीन की डिक्री कर दी थी। इसी आधार पर उन्होंने दो बार जमीन को बेच दिया, जबकि 1994 में ही एडीजे कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी थी। हाल ही में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी ने नामांतरण के लिए निगम में आवेदन लगाया था, जिसे खारिज कर दिया गया। शुक्रवार को कब्जा लेने पहुंची निगम की टीम के सामने कोई जमीन मालिक नहीं आया।


अतिक्रमण हटाया, बोर्ड ताना
इस जमीन के सामने कुछ पक्का अतिक्रमण भी हो गया था। कब्जा लेने पहुंचे अफसरों ने इसे हटवाया और पीडब्ल्यूडी और निगम के संयुक्त कब्जे का बोर्ड तान दिया।


निगम की पार्किंग या मेडिकल कॉलेज का अस्पताल ?
जमीन के पास ही कल्याणमल नर्सिंगहोम मौजूद है, जो कि एमजीएम मेडिकल कॉलेज की संपत्ति है। सूत्रों का कहना है कि इस जमीन में जो हिस्सा पीडब्ल्यूडी का है, वह कॉलेज की संपत्ति है। कॉलेज ने करीब एक वर्ष पहले कब्जे की कवायद शुरू की थी, परंतु कमजोर प्रशासनिक कदमों के कारण कामयाबी नहीं मिल सकी। अब कॉलेज अपना हिस्सा पाने में सफल हुआ तो वहां अस्पताल बनाने का रास्ता साफ होगा। निगम के हिस्से में मल्टीलेवल पार्किंग बनाई जा सकती है, क्योंकि ग्रेटर कैलाश रोड पर सार्वजनिक पार्किंग का इंतजाम नहीं है।


बॉबी और आईडीए अफसरों के हश्र ने बढ़ाई चिंता
बॉबी छाबड़ा के मनी सेंटर की लीज निरस्ती को लेकर हाईकोर्ट ने तीन वर्ष पहले फैसला सुना दिया था, लेकिन आईडीए के कुछ अफसर उसे दबाकर बैठ गए थे। हाल ही में हाईकोर्ट ने इस मामले में आईडीए को फटकार लगाकर संभागायुक्त को आदेश दिए थे कि उन व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, जिन्होंने फैसला रोका। इसे देखते हुए ही शुक्रवार को मनी सेंटर की लीज निरस्त कर दी गई। उधर, बॉबी को फायदा पहुंचाने के आरोप में गुरुवार को आईडीए के अधिकारी अशोक जैन व सुरेश भंवर को तुकोगंज पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इन्हीं दो घटनाओं के कारण अफसरों को चिंता सताने लगी और यह पुराना आदेश बाहर आया है।


फैसला करीब एक वर्ष पुराना है। कार्रवाई लंबित थी, जो शनिवार को कर दी। फिलहाल जमीन पर किसी अन्य ने मालिकाना हक नहीं जमाया है। निगम की योजना जमीन पर पार्किंग विकसित करने की रहेगी, क्योंकि इस क्षेत्र में पार्किंग की समस्या है।
- केदारसिंह, उपायुक्त, नगरनिगम

 
पत्रिका : ०५ सितम्बर २०१०

शिक्षक किशोर तिवारी को कब मिलेगा न्याय

शिक्षा इंतजामों से तंग आकर चार वर्ष पहले दे दी थी जान



मैं अनुदान दि निमाड़ एजुकेशनल सोसाइटी द्वारा संचालित सुभाष हायर सेकंडरी स्कूल प्राप्त शिक्षण संस्था में कार्यरत शिक्षक हूं। सरकार के आदेश के बावजूद सोसाइटी द्वारा शेष जमा राशि नहीं दी जा रही है। मेरे आत्मघात के लिए सोसाइटी अध्यक्ष दुर्गाशंकर गुप्ता, संयोजक डीपी जायसवाल और कोषाध्यक्ष नवलकिशोर अग्रवाल जिम्मेदार हैं। ये घोर वित्तीय अनियमितता कर रहे हैं। शासन के आदेश से शिक्षण शुल्क तो वसूल रहे हैं, लेकिन उसे न तो संस्थागत निधि में जमा कर रहे हैं और न ही शिक्षकों को भुगतान। गरीब मास्टरों पर ये व्यापारी मजदूरों से भी बदतर व्यवहार कर रहे हैं। समाज में किसी को हम पर तरस नहीं आ रहा है और न ही किसी ने व्यवहारिक स्तर पर हमारी मदद ही की है, इसलिए इस नरक को छोडऩा ही बेहतर है। मेरे ब'चों मुझे माफ करना। मैं डरपोक नहीं हूं और न ही जिम्मेदारियों से भाग रहा हूं, लेकिन अब मेरे पास आत्मघात के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं। मुझे परिस्थितियों ने मार डाला है।

यह एक शिक्षक के सुसाइड नोट के संपादित अंश है। शिक्षक का नाम किशोरकुमार तिवारी था। निजी शिक्षण व्यवस्थाओं से तंग आकर उन्होंने एक जून 2006 को खंडवा में सल्फास की गोलियां निगलकर जीवन चक्र समाप्त किया। उनकी पत्नी, बेटा और बेटियां अब इंदौर में है, लेकिन उन्हें आज भी न्याय की तलाश है। उनकी बेटी श्वेता शर्मा कहती हैं जिन लोगों के कारण मेरे पिता की जान चली गई, उनका आज तक कोई बाल भी बांका नहीं कर पाया। निजी शिक्षण संस्थाओं में आज भी मनमानी जारी है। 

प्रायवेट केस लगाना पड़ा
श्वेता ने बताया घटना के  समय हम तीन बहनें इंदौर में नौकरी करती थीं और छोटा भाई रिषभ आठवीं में पढ़ता था। चूंकि खंडवा में पापा बहुत तंगी में जी रहे थे, इसलिए दादी भी हमारे साथ इंदौर में ही रहती थीं। घटना के बाद हमने कोर्ट में प्रायवेट केस दायर किया। दो वर्ष पहले एक बार तारीख लगी थी, इसके बाद आज तक न तो समन आया और न ही सूचना।

पत्रिका : ०५ सितम्बर २०१०

प्रधानमंत्री भी नहीं रोक सके 482 करोड़ का भार

- योजना आयोग से जा टकराई पश्चिम मध्यप्रदेश की दो महत्वाकांक्षी रेल परियोजनाएं
- रेल मंत्री ममता बेनर्जी ने मनमोहनसिंह को बताया दुखड़ा
- समय पर पूरी नहीं होगी इंदौर-दाहोद एवं छोटा उदयपुर-धार रेलवे लाइन



दो महत्वाकांक्षी रेल परियोजनाएं इंदौर-दाहोद और छोटा उदयपुर-धार की लागत में 482 करोड़ रुपए का बढ़ोतरी हो गई है। प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को उम्मीद थी 1518 करोड़ रुपए के खर्च के साथ आदिवासी इलाकों को विकास की मुख्य धारा में जोडऩे वाली ये दोनों रेल लाइनें वर्ष 2012 तक पूरी हो जाएगी। परंतु हकीकत में ऐसा होना मुमकिन नहीं है। रेल मंत्री ममता बेनर्जी ने प्रधानमंत्री को कह दिया है कि योजना आयोग के असहयोग के कारण हर वर्ष पर्याप्त राशि जारी करना मुमकिन नहीं है और ऐसे में इन्हें तय समय सीमा में पूरा भी नहीं किया जा सकेगा। अब तो इसकी लागत भी 2000 करोड़ हो गई है।

प्रधानमंत्री ने 8 फरवरी, 2008 को झाबुआ में दोनों परियोजनाओं का शिलान्यास किया था। शुरू से ही इन योजनाओं को पर्याप्त बजट नहीं दिया गया और  काम को गति मंद ही रही। हाल ही में केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री कांतिलाल भूरिया ने लेतलाली के संबंध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। इस पर प्रधानमंत्री ने पूछताछ की, तो ममता बेनर्जी ने बताया योजना आयोग से परियोजनाओं के लिए एक बार में ही बड़ी राशि जारी करवाए तभी सामाजिक उत्थान की दृष्टि से अहम इन प्रोजेक्टों को गति दी जा सके।



 रेल लाइनों का काम संतोषप्रद नहीं है। ऐसा क्यों हो रहा है, इस पर ध्यान दें, ताकि परियोजनाओं का कार्य तेजी से चल सके।
- डॉ. मनमोहनसिंह, प्रधानमंत्री (रेल मंत्री ममता बेनर्जी को लिखे पत्र से)

 दोनों प्रोजेक्ट के लिए हर वर्ष 400 करोड़ की जरूरत है, लेकिन योजना आयोग ने देशभर के प्रोजेक्टों के लिए ढाई-तीन हजार करोड़ की ही अनुमति दी है। ऐसे में समय सीमा में कार्य पूरा होना संभव नहीं है।
- ममता बेनर्जी, रेल मंत्री (प्रधानमंत्री को लिखे पत्र से)

दोनों परियोजनाओं की कार्य प्रगति जांचने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में एक विशेष प्रकोष्ठ गठित करवा दिया है। वहां से निगरानी जारी है। इस बार के बजट में दोनों योजनाओं को जो राशि मिली, वह नाकाफी है। 
- कांतिलाल भूरिया, केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्र


और भी हैं रेड सिग्नल
  • दोनों योजनाओं के लिए अब तक 25 फीसदी जमीन भी नहीं मिली।
  • लाइनें आदिवासी क्षेत्र से गुजरेंगी। नियमानुसार आदिवासी ही आदिवासी व्यक्ति की जमीन खरीद सकता है। सामान्य व्यक्ति जमीन खरीदता है तो उसे सीईओ जनपद पंचायत से ठहराव प्रस्ताव पास कराना होगा। इसके लिए रेलवे को मोटी रकम चुकाना होगी।
  • छोटा उदयपुर-धार लाइन पहाडिय़ों और खाइयों के बीच से गुजरेगी। बड़े पुल-पुलियाएं बनाना होंगे इसलिए समय और धन बहुत अधिक लगेगा।
  • टुकड़ों-टुकड़ों में करीब 10 किलोमीटर लंबी सुरंगें बनना हैं, इसमें भी लंबा वक्त लग सकता है।
  • आलीराजपुर से धार तक जमीन अधिग्रहण नहीं हो रहा है।  


बजट की बेहद धीमी चाल


इंदौर-दाहोद परियोजना

लंबाई- 205 किमी
प्रमुख स्टेशन- इंदौर, राऊ, पीथमपुर, सागोर, धार, सरदारपुर, अमझेरा, झाबुआ, कतवारा, दाहोद।
पिछले वर्ष तक आवंटन- 40 करोड़
इस वर्ष आवंटन- 75 करोड़
कुल जमीन चाहिए- 950 हेक्टेयर

छोटा उदयपुर-धार परियोजना
लंबाई- 157 किमी 
प्रमुख स्टेशन- छोटा उदयपुर, आलीराजपुर, जोबट और धार। 
पिछले वर्ष तक आवंटन- 20 करोड़
इस वर्ष आवंटन - 50 करोड़ 
जमीन चाहिए- करीब 1100 हेक्टेयर  
 

रेलवे ने नहीं रखा सीसीईए का ध्यान : योजना आयोग
योजना आयोग के ट्रांसपोर्ट डिवीजन के एक अधिकारी ने 'पत्रिकाÓ को बताया वित्त मामलों की केबिनेट कमेटी (सीसीईए) की अनुशंसा के मुताबिक ही आयोग बजट की रूपरेखा तैयार करता है। रेलवे ने इन अनुशंसा का ध्यान रखे बगैर पिछड़े इलाकों के उत्थान के उद्देश्य से देशभर में जरूरत से अधिक प्रोजेक्ट शुरू कर दिए। रेलवे को चाहिए कि वह सीसीईए से इस बारे में बात करे।
 

पत्रिका : ०५ सितम्बर २०१०

हाईकोर्ट बार चुनाव में फार्मों की बिक्री शुरू

मप्र हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव के लिए फार्मों की बिक्री शुक्रवार को शुरू हो गई। सचिव पद के लिए  रविंद्रसिंह छाबड़ा, आनंद पाठक, अतुल जायसवाल, पवन जोशी, सहसचिव के लिए रीतेश इनानी, पीयूष श्रीवास्तव, अंशुमन श्रीवास्तव और कार्यकारिणी के लिए सत्यप्रकाश शर्मा, विजय दुबे, हरीश जोशी, जीपी सिंह ने फार्म लिए। यह जानकारी सहायक निर्वाचन अधिकारी मुकेश परवाल ने दी।

पत्रिका : ०४ सितम्बर २०१०

15 वर्ष पहले मृत बुजुर्ग की जमीन नौजवान बनके बेच दी

सरदार सरोवर बांध फर्जी रजिस्ट्री मामला


पंद्रह वर्ष पहले जिस 65 वर्षीय बुजुर्ग की मौत हो चुकी थी, उसकी जमीन एक 25 वर्षीय युवक ने बेच दी। युवक ने खुद को वह बुजुर्ग बताया जिसकी जमीन थी।
दस्तावेजों पर यह बात शुक्रवार को जस्टिस एसएस झा के सामने साबित हुई। जस्टिस झा सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों को दी गई जमीनों में हुई फर्जी रजिस्ट्रियों की जांच करने वाले आयोग के अध्यक्ष हैं। देवास जिले के पोरला गांव के वेरसिंह भाई की मौत करीब 15 वर्ष पहले हो गया था। वर्ष 2006 में उनके नाम से 25 वर्ष के व्यक्ति का फोटो लगाया गया और जमीन बेच दी गई। इसी जमीन पर वेरसिंह का पूरा निर्भर है। ऐसी ही हकीकत प्रेमगढ़ निवासी भंगड़ा पिता सोमला के साथ भी हुई। 
 एमजी रोड स्थित एलआईसी भवन के बाजू में स्थित आयोग के दफ्तर में जस्टिस झा ने देवास जिले के रतनपुर, निमनपुर, पोटला, पुजापुरा जैसे गांव के आदिवासियों, किसानों, बलाई समाज के लोगों की बात सुनी। नर्मदा बचाओ आंदोलन का दावा है कि नर्मदा घाटी के करीब 2000 विस्थापितों की घाटी में फैले दलाल, सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों के गिरोह के जरिए जमीन खरीदी-बेच दी गई। इसमें 300 करोड़ रुपए से अधिक का भ्रष्टाचार हुआ। 

पत्रिका: ०४ सितम्बर २०१०