शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

ड्रग ट्रायल का एक ओर कागज ईओडब्ल्यू पहुंचा

मेडिसिन प्रोफेसर डॉ. अनिल भराणी और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आशीष पटेल द्वारा एक ड्रग ट्रायल के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज को स्पांसर कंपनी पहुंचाने का दस्तावेज भी ईओडब्ल्यू पहुंच गया है। वहां इसे जांच में भी लिया जा चुका है। सूत्रों के मुताबिक ईओडब्ल्यू इसे गंभीर आर्थिक अपराध मान रहा है, क्योंकि कॉलेज को कंपनी बताने की जानकारी कॉलेज प्रबंधन को नहीं है। 'पत्रिकाÓ ने ही इसका खुलासा किया है।


एसबीआई सुने चार अफसरों का केस
स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के चार अधिकारियों की याचिका का हाईकोर्ट ने निराकरण कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया है कि चूंकि अब इंदौर बैंक का विलय स्टेट ऑफ इंडिया में हो चुका है, इसलिए उनकी बात वहीं सुनी जाना चाहिए। चारों अधिकारियों का इंदौर बैंक ने तबादला कर दिया था। इसे ही चुनौती देने के लिए वे हाईकोर्ट गए थे। सिंगल बैंच ने इसे खारिज कर दिया था और मामला युगलपीठ में लंबित था।



 
पत्रिका : ०३ सितम्बर २०१०

झा आयोग आज से फिर इंदौर में

नर्मदा घाटी में बने सरदार सरोवर बांध के संबंध में मप्र सरकार द्वारा विस्थापितों को दिए गए पुनर्वास पैकेज में हुए कथित भ्रष्टाचार और फर्जी रजिस्ट्री मामले के लिए गठित जस्टिस एसएस झा आयोग शुक्रवार से इंदौर में फिर से सुनवाई शुरू करेगा। एमजीरोड स्थित एलआईसी भवन के बाजू में स्थित आयोग के दफ्तर में जस्टिस झा देवास जिले के पीडि़तों से मिलेंगे। उधर, नर्मदा बचाओ आंदोलन ने जबलपुर में एक अर्जी दाखिल करके मांग की है कि झा आयोग की अंतरिम रिपोर्ट जारी की जाए, ताकि इसके आधार पर नीतिगत फैसले लिए जा सकें।

ज्ञात रहे आंदोलन की याचिका पर ही हाईकोर्ट ने झा आयोग का गठन किया है। आरोप है कि पुनर्वास पैकेज में ढाई हजार से अधिक फर्जी रजिस्ट्रयां की गई और इससे सरकार को 300 करोड़ की चपत लगी। दलालों और अफसरों के गठजोड़ ने विस्थापितों को भूमिहीन कर छोड़ा। मप्र सरकार भी मान चुकी है कि 750 से अधिक रजिस्ट्रियां फर्जी है। हर रजिस्ट्री के लिए सरकार ने साढ़े पांच लाख रुपए का भुगतान किया है।

पत्रिका: ०३ सितम्बर २०१०

हाईकोर्ट में चुनाव लडऩे के पैमाने तय

- अध्यक्ष, सचिव के लिए पांच, तीन वर्ष की सदस्यता अनिवार्य
- हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव



हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव में हिस्सेदारी के लिए गुरुवार को नियम-कायदे तय कर दिए गए। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के लिए पांच जबकि सचिव, सहसचिव पद के लिए एसोसिएशन की तीन वर्ष की सदस्यता अनिवार्य रहेगी। कार्यकारिणी के पांच पदों के लिए दो वर्ष की सदस्यता वाले वकील भी दावेदारी कर सकेंगे।

मुख्य चुनाव अधिकारी टीएन सिंह, सहायक चुनाव अधिकारी मुकेश परवाल व सुनील जैन ने बताया मौजूदा संविधान के मुताबिक ही चुनाव होंगे। सोमवार से हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सभागृह से नामांकन फार्म मिलेंगे। कीमत 100 रुपए तय की गई है। एसोसिएशन में कुल 1510 सदस्य हैं और इनमें से 1435 को मताधिकार प्राप्त है।

यह है पूरा कार्यक्रम
8 व 9 सितंबर      नामांकन पत्र भरना
9 सितंबर            आपत्ति और उनका निराकरण
10 सितंबर         नामांकन वापसी, प्रत्याशियों की अंतिम सूची
15 सितंबर        दोपहर 3 से 6 मतदान, तत्काल बाद मतगणना व घोषणा।

पत्रिका : ०३ सितम्बर २०१० 

दायर बढ़ा रहा स्वाइन फ्लू

- चार माह में देशभर में 1505 मौतें और मप्र में गई 27 जानें

हवा के जरिए फैलने वाले एच-1 एन-1 वायरस से होने वाले फ्लू (स्वाइन फ्लू) का दायरा पूरे देश में बहुत तेजी से बढ़ रहा है। चार महीने में देश में इससे 1505 लोगों की मौत हो चुकी है। अगस्त से मप्र में भी इसने पांव पसारे और अब तक 27 रोगियों की मृत्यु का कारण बना। मोटे तौर पर रोगियों में से पांच फीसदी की मौत हो रही है। 

चौंकाते आंकड़े
  • मई से 29 अगस्त तक देशभर में स्वाइन फ्लू के 31 हजार 795 मरीज सामने आए। इनमें से 1505 की मौत हो गई।
  • सबसे अधिक 450 मौतें महाराष्टर में हुई। 306 मौतों के कारण गुजरात दूसरे क्रम पर है। राजस्थान में 198 और मप्र में 37  मौतें हुईं।

अब तक मप्र का हाल
जिला           पॉजिटिव   मौत     भर्ती          गंभीर
इंदौर            22            12        22            12
भोपाल         28            09        48            39
जबलपुर       35            05        19            02
उज्जैन         05            00        03            03
ग्वालियर     02            01        03            00
कुल            92            27        95            56


डरने से नहीं सावधानी से चलेगी जिंदगी

डॉक्टरों का कहना है फ्लू का वायरस हवा में है और इससे डरने के बजाए सावधानी बरतने की आवश्यकता है। बाजार में कुछ टीके आए हैं, लेकिन हर व्यक्ति के लिए इन्हें लगा पाना संभव नहीं है।

सामान्य सर्दी-खाँसी एवं फ्लू में फक्र
सामान्यत: प्रतिवर्ष ठंड के मौसम में या उसके आसपास फ्लू होता है। सामान्य सर्दी-खाँसी के अलावा फ्लू में बुखार, हाथ-पैरों कमर में दर्द, सिर दर्द, थकावट आदि तेज लक्षण साथ में होते हैं। लक्षणों के आधार पर दोनों में अंतर करना संभव नहीं है, लेकिन स्वाइन फ्लू से पीडि़त व्यक्ति के संपर्क में आने से आशंका बढ़ जाती है।

सूअर (स्वाइन) से नहीं ताल्लुक
वायरस के संक्रमण के शुरुआती दौर से ही यह भ्रम है कि यह वही फ्लू है जो सूअरों में होता है। लेकिन असल में यह नया वायरस है। अत: सूअर के संपर्क में आने से या उसका मांस खाने से यह नहीं फैलता है।

ऐसे फैलता है स्वाइन फ्लू
  1. संक्रमित व्यक्ति के खाँसने या छींकने से।
  2. उन वस्तुओं को हाथ लगाने से जिसे संक्रमित व्यक्ति ने छुआ हो। संक्रमित व्यक्ति स्वयं के लक्षण आने के एक दिन पहले से सात दिन बाद तक इसे फैला सकता है।

खुद को बचाने के दस तरीके

  1. जितना संभव हो हाथ साबुन से धोएँ।
  2. यदि साबुन उपलब्ध न हो तो अल्कोहल आधारित क्लिनर से हाथ धोएँ।
  3. संक्रमित व्यक्ति या ऐसा व्यक्ति जिसे स्वाइन फ्लू की आशंका हो, उससे दूरी रखें (कम से कम 6 फुट)।
  4. यदि आपको स्वयं को स्वाइन फ्लू जैसे लक्षण हैं, तो घर में रहिए।
  5. यदि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना भी पड़ता है, तो फेस मास्क या रेस्पिरेटर पहनें।
  6. स्तनपान कराने वाली माताएँ स्वयं के संक्रमित होने पर ब'चे को दूध न पिलाएँ।
  7. खाँसी या छींक आने पर टिशु पेपर का इस्तेमाल करें एवं उसे तुरंत डस्टबीन में फेंकें।
  8. भीड़ वाली जगह पर न जाएँ।
  9. पानी अधिक मात्रा में पिएँ।
  10. भरपूर नींद लें, इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
 

बाजार में टीके, परंतु गारंटी नहीं
स्वाइन फ्लू से स्वयं को महफूज रखने के लिए बाजार में पांच प्रकार के टीके मौजूद हैं, लेकिन विशेषज्ञ इन्हें किसी की किस्म की गारंटी नहीं मान रहे हैं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व डीन और मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. अशोक वाजपेयी कहते हैं ब'चों, बुजुर्गों, पैरोमेडिकल स्टाफ और कैंसर जैसे गंभीर रोगों के पीडि़तों को टीके लगाए जा सकते हैं। यह अतिरिक्त सावधानी की श्रेणी में रहेगा, लेकिन अभी तक किसी भी टीके के प्रामाणिक परिणाम मौजूद नहीं है। कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. संजय दीक्षित कहते हैं टीके बनाने वाली किसी भी कंपनी ने अपने साहित्य में सफलता का प्रतिशत नहीं लिखा है, जबकि हर टीके में यह अवश्य लिखा जाता है। एक वर्ष पहले आई बीमारी के टीकों की सफलता संदिग्ध ही है, इसलिए इन्हें अंतिम रास्ता नहीं माना जा सकता। उधर, नेसोवेक नाम का नेज़ल स्प्रे वाला टीका बनाने वाले सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मनीष कपूर कहते हैं अध्ययन में हमारे टीके की सफलता प्रमाणित हुई है और केंद्र सरकार की जरूरी अनुमति से ही टीके बनाए जा रहे हैं। टीकों के होलसेलर क्वालिटी ड्रग हाउस संचालक मधुर शर्मा के मुताबिक एक सप्ताह से फोन अटेंड करके परेशान हो गया हूं क्योंकि हर कोई टीके और नेज़ल स्प्रे के बारे में जानना चाहता है। अस्पताल संचालक, लायंस क्लब, स्कूल संचालक समूह में टीका लगाने के लिए खरीदी कर रहे हैं। फिलहाल, मांग पूर्ति से अधिक है।

टीका             कंपनी        यहां बना        एमआरपी             प्रकार   
एग्रीपोल         नोवारटिस    इटली            595 रु (एक डोज)   इंजेक्शन
इन्फ्लूवेक        सोलवेक्स    नीदरलैंड       650 रु (एक डोज)    इंजेक्शन
इन्फ्लूजीया      लूपिन        चीन             650 रु (एक डोज)    इंजेक्शन
फ्लूरिक्स          जीएसई     बेल्जीयम        --      (एक डोज)    इंजेक्शन
नेजोवेक           सिरम         पूणे             790 रु (पांच डोज)     नेजल स्प्रे

पत्रिका : ०३ सितम्बर २०१०

व्हिसल ब्लोअर के पक्ष में उतरे मेडिकल छात्र

जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल उकसाने के आरोप में बर्खास्त किए गए एमजीएम मेडिकल कॉलेज के सीनियर रेसीडेंट डॉ. आनंद राय के पक्ष में 73 मेडिकल छात्र सामने आ गए हैं। ये सभी 2005 से 2007 की एमबीबीएस बेच के छात्र हैं। छात्रों ने डॉ. राय की बर्खास्तगी का कारण उनका व्हिसल ब्लोअर (भ्रष्टाचार सचेतक) होना बताया है।

छात्रों ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन को एक पत्र लिखा है। इसके मुताबिक डॉ. राय पर की गई कार्रवाई पूर्वाग्रह से ग्रसित है। उन्होंने व्यवस्था में रहकर कुछ डॉक्टरों द्वारा ड्रग ट्रायल के जरिए मरीजों के साथ हो रहे धोखे का खुलासा किया है, इसीलिए बाहर किया गया। छात्रों ने यह तथ्य भी उजागर किया है कि कॉलेज काउंसिल की जिस बैठक में डॉ. राय को बाहर करने का निर्णय लिया है, उसमें 38 में से 16 सदस्य ही इसमें शामिल थे, जो कि कोरम का अभाव है। छात्रों ने डॉ. राय का निलंबन समाप्त करने की मांग की है।

हाईकोर्ट ने कॉलेज को दी पोस्ट भरने की छूट
डॉ. आनंद राय द्वारा दायर याचिका पर बुधवार को इंदौर हाईकोर्ट ने मेडिकल कॉलेज को छूट दे दी कि वह नेत्र रोग विभाग में सीनियर रेसीडेंट के रिक्त पद को भर ले। पिछली सुनवाई में जस्टिस एससी शर्मा ने पद भरने पर रोक लगाई थी। शासकीय अधिवक्ता विवेक पटवा ने बताया कोर्ट ने पद भरने का आदेश देते हुए केस में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद रखी है। उधर, मेडिकल कॉलेज प्रबंधन 30 अगस्त को ही पद पर भर्ती के लिए साक्षात्कार ले चुका है। संभावना है कि शुक्रवार को पद भर लिया जाएगा।

पत्रिका : ०२ सितम्बर २०१०

ड्रग ट्रायल में सुस्ती का संक्रमण

- चिकित्सा शिक्षा विभाग ने एक महीने में कमेटी ही बना सका


बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) के मामले में चिकित्सा शिक्षा विभाग ने एक महीने में महज एक कमेटी का गठन ही किया है। न तो इस कमेटी की बैठक हुई है और न ही अब तक किसी दूसरे राज्य के कानूनों का अध्ययन ही किया गया।
चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने 30 जुलाई को विधानसभा में तीन सदस्यों की कमेटी बनाकर राज्य में ड्रटग ट्रायल पर कानूनी बंदिश लगाने की घोषणा की थी। विभाग के प्रमुख सचिव और कमेटी चेयरमैन आईएस दाणी ने बुधवार को बताया कि कमेटी तीन के बजाए पांच सदस्यों की बनाई गई है। इसमें विधि विभाग के प्रमुख सचिव पीसी मीणा के साथ ही संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. वीके सैनी, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. भरत छपरवाल और भोपाल के डॉ. एनआर भंडारी सदस्य हैं।


बंदिश नहीं होने से मरीजों की जान सांसत में
अभी तक राज्य में ड्रग ट्रायल की निगरानी की कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है। यही वजह है कि पिछले पांच वर्षों में बहुराष्टï्रीय कंपनियों ने राज्य के प्रतिष्ठित डॉक्टरों के जरिए मरीजों पर धड़ल्ले से दवाओं के ट्रायल किए। सरकारी के साथ ही निजी क्षेत्रों में अंधाधुंध ट्रायल हो रहे हैं। पांच वर्ष में मप्र के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हुए ट्रायल से ही 51 रोगियों पर दुष्प्रभाव हुआ। इनमें से कुछ की मौत की भी आशंका है। विधायक पारस सकलेचा और प्रताप ग्रेवाल ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया था। स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के अध्यक्ष डॉ. आनंद राजे की शिकायत पर आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) डॉ. अपूर्व पुराणिक, डॉ. अनिल भराणी, डॉ. पुष्पा वर्मा, डॉ. हेमंत जैन, डॉ. सलिल भार्गव और डॉ. अशोक वाजपेयी की जांच कर रहा है।

पत्रिका : 02 सितंबर 2010

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव घोषित

- पीके शुक्ला फिर से अध्यक्ष पद के दावेदार


हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव 15 सितंबर को होंगे। इसमें करीब 1435 अधिवक्ता हिस्सा लेंगे। मौजूदा अध्यक्ष पीके शुक्ला ने एक बार फिर से दावेदार हैं। उनके सामने फिलहाल कोई नाम सामने नहीं आया है।

एसोसिएशन के सचिव घनश्याम यादव ने बताया चुनाव के दिन दोपहर 3.30 बजे साधारण सभा शुरू होगी और इसी में चुनाव होंगे। एसोसिएशन में कुल 1510 सदस्य हैं और इनमें से 1435 को मताधिकार प्राप्त है। वरिष्ठ एडवोकेट टीएन सिंह को निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया गया है। सिंह ने 'पत्रिकाÓ को बताया एडवोकेट सुनील जैन व एडवोकेट मुकेश परवाल को सहायक चुनाव अधिकारी नियुक्त किया गया है। एक-दो दिन में चुनाव कार्यक्रम घोषित हो जाएगा।

वकीलों के सम्मान के लिए किया काम
तीन बार के अध्यक्ष रह चुके पीके शुक्ला ने दावेदारी पर सहमति जताते हुए बताया कि मैंने अपने कार्यकाल में वकीलों के सम्मान के लिए न्यायपालिका के समक्ष प्रस्ताव रखा और इसी आधार पर फिर से दावेदारी कर रहा हूं। अभी पेनल तय नहीं हुई है। शीघ्र ही उसकी घोषणा करेंगे।

मुद्दे तो अभी तय होना बाकी हैं
एडवोकेट अमिताभ उपाध्याय ने सचिव पद के लिए दावेदारी की है। उन्होंने बताया फिलहाल तो मैं वकीलों के हितों के मुद्दे पर सामने आया हूं, लेकिन असली मुद्दे तो चुनाव के पहले तय हो ही जाएंगे। मौजूद सचिव घनश्याम यादव ने बताया फिलहाल मैंने मैदान में आने का मन नहीं बनाया है।

पत्रिका : ०२ सितम्बर २०१०

बीमारियों की भ्रांतियों में फंसे लोग

स्वाइन फ्लू के टीके और कंजेक्टेवाइटिस के आईड्राप की मांग से दवा व्यापारी भी हैरान
डॉक्टरों की सलाह, बगैर सलाह के दोनों का इस्तेमाल घातक


इन दिनों इंदौर सहित पूरा मालवा निमाड़ अंचल स्वाइन फ्लू और कंजक्टेवाइटिस की चपेट में है। खास बात यह कि बीमारी से ज्यादा उसकी दहशत से लोग परेशान हैं और इनके बारे में लोगों के मन में कई भ्रांतियां बैठी हैं। यही वजह है कि हरारत होते ही लोग मेडिकल स्टोर पर दौड़ लगाकर टीका या दवा लेना चाहते हैं, जबकि असल में इसकी जरूरत ही नहीं है। इन बीमारियों से डरने की नहीं, समझदारी से मुकाबला करने की जरूरत है।

कंजक्टेवाइटिस : तीन धारणाएं, तीन सच
आंखों में आंखें डालने से नहीं फैलता रोग
आंख आते ही (कंजक्टेवाइटिस) काले रंग का चश्मा लगाने की सलाह बेहद आम है, लेकिन नेत्ररोग विशेषज्ञों का कहना है आंखों में आंख डालकर देखने से न तो यह रोग फैलता है और न ही बढ़ता है। ऐसा होता तो, सभी डॉक्टर कंजक्टेवाइटिस से पीडि़त रहते। यह रोग छूने और पीडि़त व्यक्ति के संपर्क में आने से विस्तार पाता है।
हर एंटीबायोटिक ड्राप नहीं फायदेमंद
आंख  आते ही लोग मेडिकल स्टोर से कोई भी एंटीबायोटिक ड्राप खरीद लेते हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राधिका बंडी के मुताबिक ऐसा खतरनाक हो सकता है। बाजार में एंटीबायोटिक और स्टेराइड्स के मिश्रण वाले ड्राप भी मौजूद हैं। इससे कार्निया का अल्सर भी हो सकता है। डॉक्टर की सलाह से ही ड्राप लेना चाहिए।
हर कंजक्टेवाइटिस एक नहीं
माना जाता है कि कंजक्टेवाइटिस एक ही तरह का होता है, लेकिन ऐसा नहीं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में नेत्ररोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. विजय भाईसारे कहते हैं वायरस और बैक्टेरिया दो कारण रोग हो रहा है। वायरस से आंखों में पानी और बैक्टेरिया से कीच आता है। वायरस स्वत: ठीक होता है, जबकि बैक्टेरिया के लिए एंटीबायोटिक की जरूरत होती है।


स्वाइन फ्लू : हर व्यक्ति को नहीं टीके की जरूरत
जल्दबाजी में नहीं उठाए कदम
पांच दवा कंपनियों से स्वाइन फ्लू के टीके बाजार में उतारे और पांचों का दावा है कि इनके इस्तेमाल से एक वर्ष तक फ्लू नहीं होगा। होलसेलर्स के यहां टीकों की पूछताछ और खरीदी जोरों पर है, परंतु विषय विशेषज्ञों का कहना है हर व्यक्ति को टीका लगाना न तो संभव है और न ही इसकी जरूरत है। एमजीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व डीन डॉ. अशोक वाजपेयी की मुताबिक यह बीमारी बेहद नई है और इसका टीका भी अभी बाजार में आया है। टीका कितना असरकारक है, यह कहना अभी जल्दबाजी है।
डॉक्टर में भी अज्ञान की भरमार
फ्लू के बारे में डॉक्टरों में भारी अज्ञान दिखाई दे रहा है। 'पत्रिकाÓ ने तीन वरिष्ठ डॉक्टरों से बात की, उनका कहना है गर्भवतियों को भी टीका लगाया जा सकता है, जबकि दवा कंपनियों की हिदायत है कि गर्भवती को टीका लगाना हानिकारक हो सकता है। डॉक्टरों की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर नाम प्रकाशित नहीं किए जा रहे हैं।

टीके के साहित्य में स्पष्ट नहीं परिणाम
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के कम्यूनिटी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. संजय दीक्षित के मुताबिक टीके बनाने वाली कंपनियों के साहित्य में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि असर का प्रतिशत क्या रहेगा? उधर, नेसोवेक नाम का नेज़ल स्प्रे वाला टीका बनाने वाले सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मनीष कपूर कहते हैं अध्ययन में हमारे टीके की सफलता प्रमाणित हुई है और केंद्र सरकार की जरूरी अनुमति से ही टीके बनाए जा रहे हैं।
फोन अटेंड करके हो गए परेशान
क्वालिटी ड्रग हाउस संचालक मधुर शर्मा का कहना है एक सप्ताह से फोन अटेंड करके परेशान हो गया हूं क्योंकि हर कोई टीके और नेज़ल स्प्रे के बारे में जानना चाहता है। अस्पताल संचालक, लायंस क्लब, स्कूल संचालक समूह में टीका लगाने के लिए खरीदी कर रहे हैं। फिलहाल, मांग पूर्ति से अधिक है।


टाइडफाइड उपचार में हो रही गड़बड़
चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. शरद थोरा ने बताया टाइडफाइड के रोगियों को उचित तरीके से उपचा शुरुआत में ही परेशानी से बचा जा सकता है। यह रोग गंदगी के कारण होता है, इसलिए बचाव के लिए लोगों को सचेत रहना चाहिए।

डेंगू की अनदेखी जानलेवा
शुरुआती दौर में तेज बुखार होता है और जोड़ों के दर्द से शुरू होने वाले डेगूं की अनदेखी खतरनाक हो सकती है। मेडिसिन विभाग के डॉ. प्रमोद झंवर कहते हैं इसमें आंखों के आसपास और सिर में तेज दर्द होता है। स्थिति गंभीर होने पर बुखार के साथ शरीर में लाल दाने निकल आते है। इस अवस्था में तुरंत इलाज लेना चाहिए। यह गंभीर अवस्था है इसमें खून में प्लेटलेट्स की कमी आ जाती है। घाव होने पर खून बहना बंद नहीं होता है। इससे मरीज की मौत भी हो सकती है।

पत्रिका : ०२ सितम्बर २०१०

संकट में मालवा-निमाड़ के 66 पेड़-पौधे

 कलिहारी
गरुडफ़ल
केल सागौन
कुंवारिन
सोनपाठा
- बचाया नहीं गया तो बिगड़ जाएगा परिस्थिति तंत्र
- इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंसरवेशन ऑफ नेचर ने चेताया






जंगलों में नैसर्गिक तरीके से पनपने वाले जिन पेड़, पौधों, लता, घास, जडिय़ों से मनुष्य और पशु-पक्षियों का जीवनचक्र बगैर रोकटोक के चलता है, वे खतरे में हैं। मालवा-निमाड़ में ही 66 किस्में ऐसी हैं, जिन्हें सुरक्षित रखने के लिए अंतरराष्टï्रीय संगठन आईयूसीएन ने चेतावनी जारी की है। संगठन का कहना है इन्हें बचाने की हरसंभव कोशिश की जाए, ताकि परिस्थिति तंत्र सुरक्षित रहे। पौध पर्यावरण बचाने में जुटे लोगों की नजर में यह एक गंभीर किस्म का संकट है। राहत इस बात की है कि मालवा-निमाड़ में काम करने वाले वन विभाग ने संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने के लिए कोशिश शुरू कर दी है। 

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंसरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के मुताबिक कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जिनपर अब भी ध्यान दे दिया जाए तो वे बच सकती हैं। आईयूसीएन ने देशभर के सभी राज्यों की अलग-अलग सूचियां तैयार की हैं। मालवा-निमाड़ की सूची के बारे में इंदौर डिवीजन के मुख्य वन संरक्षण पीसी दुबे बताते हैं आईयूसीएन की रिपोर्ट को देखकर ही प्रजातियों को बचाने में लगे हैं। इंदौर के नवरतन बाग स्थित नर्सरी में अमरकंटक, सतना, चित्रकूट, रीवा, कठ्ठिवाड़ा के साथ ही धार-झाबुआ के जंगलों से भी बीज जुटाए हैं। पौधे विकसित हो रहे हैं, इन्हें जंगलों और घरों में लगाया जाएगा। होलकर साइंस कॉलेज के बॉटनी विभागाध्यक्ष डॉ. अरुण खेर कहते हैं जनसंख्या विस्फोट, खेती में बदलाव, खनन, पर्यटन जैसे कारणों के कारण पौधे संकट में आए हैं। केवल पौधे रोपना इसका उपचार नहीं होगा। जागरूकता से ही बचाव संभव है। 

गधापलाश से बंदरलड्डू तक खतरे में
गधापलाश, केल सागौन, मरकाड़ा, मजिष्ठा, खरसिंगा और मोखा ऐसी छह प्रजातियां हैं, जिन्हें बचाना सबसे जरूरी है। दहीमन, सोनपाठा, गरुडफ़ल, कुंवारिन, कलिहारी, खापरीकंद, गलगल, वनसन, कुवारिन, रेडागेड़ी, पर्पट, दूध गोला, घुंघची, विधारा, रजबेला, वन मक्का, सलई, चारोली, तिलपपड़ा, बंदरलड्डू, खमेर, धमन, दूधापान, जंगली केमांच, वृद्धदारू आदि भी संकटग्रस्त हैं।

जज, कमिश्नर, कलेक्टर, आईजी के बंगलों का भरोसा
वन विभाग ने विलुप्त होती प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए हाईकोर्ट जजों, कलेक्टर, कमिश्नर, आईजी, एसएसपी जैसे बड़े अधिकारियों के बंगलों पर भरोसा किया है। विभाग का मानना है कि इन बंगलों के बगीचे सर्वाधिक सुरक्षित रहते हैं, इसलिए प्रजातियों को वहां बोया जा रहा है।


इन जिलों में
इंदौर, धार, झाबुआ, रतलाम, खरगोन, बड़वानी, उज्जैन, अलीराजपुरï।

इतने क्षेत्र में
भौतिक क्षेत्र - 30 हजार 201 वर्ग किमी
जंगल क्षेत्र- 7 हजार 178 वर्ग किमी
रिजर्व फॉरेस्ट- 5 हजार 712 वर्ग किमी

स्थिति                संख्या
पूरी तरह विलुप्त            01
विलुप्त प्राय:                 06       
नाजुक दौर में             13
अतिसंवेदनशील          46 
कुल                          66


पेड़ से झाड़ी तक पर असर
किस्म        संख्या
पेड़                 30
जड़ी/औषधि    18
लता/बेल        13
झाड़ी             03
अन्य             02
कुल               66

खतरे के पांच प्रमुख कारण
- प्रजाति के महत्व का अज्ञान।
- वनों में पर्यटन को बढ़ावा।
- शहरीकरण और अंधाधुंध विकास।
- प्राचीन घास स्थलों पर पशुचारण।
- पारंपरिक खेती में बदलाव। 




'सागवान, पलाश और दूसरे पेड़ों को बचाने में हमारे विभाग के लोग यह भूल ही गए कि दूसरी वनस्पितियां भी बेहद अहम होती है। देखते ही देखते जंगलों में बहुतायात में मिलने वाली वनस्पितियां समाप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। इन्हें बचाने के लिए जमीनी स्तर पर काम चल रहा है।
- पीसी दुबे, मुख्य वन संरक्षक, इंदौर डिवीजन

'जंगलों को देखने का नजरिया बदले बगैर सुधार संभव नहीं है। पर्यावरण में बढ़ रही कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के कारण सबकुछ डांवाडोल हो रहा है। पौधों पर संकट आएगा, तो उन पर पलने वाली तितलियां, मधुमख्यिां, चिडिय़ाएं भी घटेंगी। इससे परागकणों का यातायात बंद हो जाएगा और खाद्य संकट के हालात बनेंगे।Ó
- डॉ. अरुण खेर, विभागाध्यक्ष, बॉटनी, होलकर साइंस कॉलेज

पत्रिका: ०२ सितम्बर २०१०