वरिष्ठ कांग्रेस नेता और नेहरू-गांधी परिवार के वफादार रहे अर्जुनसिंह ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा है 'राजीवजी की हत्या योजनाबद्ध ढंग से की गई थी। यह हो सकता है कि हत्या की प्लानिंग में राव (पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव) का कोई हाथ न हो, लेकिन उन्हें पूर्व जानकारी जरूर थी और वे इन जानकारियों को सबके सामने प्रकट नहीं होने देना चाहते थे, इसलिए कुछ चीजों को लेकर संदेह होना स्वाभाविक है। Ó
अर्जुनसिंह का यह खुलासा वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी द्वारा उन पर लिखी जीवनी 'अर्जुनसिंह: एक सहयात्री इतिहास काÓ में हुआ है। इंदौर से प्रकाशित राष्टïरीय हिंदी मैग्जीन 'हैलो हिंदुस्तानÓ ने पुस्तक के अंशों को विस्तार से प्रस्तुत किया है। जोशी की पुस्तक में कहा गया है कि अर्जुनसिंह ने राव से राजीव गांधी की हत्या की वास्तविकता का पता लगाने के लिए कई बार कहा। सिंह का तर्क था कि राजीव की हत्या से किसी को तो लाभ पहुंचा होगा। पुस्तक के मुताबिक अर्जुनसिंह ने राजीव हत्याकांड की जांच कर रहे जस्टिस जैन से अच्छे संबंध बना लिए थे। अर्जुनसिंह कहते हैं 'जस्टिस जैन मुझ पर काफी विश्वास करते थे। पहली बात को उसकी पहचान करनी थी कि यह राजनीतिक हत्या किसे सूट करती थी? इसके पीछे किसका मोटिवेशन हो सकता है? जो लड़की मानव-बम बनी थी, वह तो माध्यम भर थी...किन कारणों से आईबी के तत्कालीन निदेशक नारायणन ने जैन आयोग के समक्ष गवाही के दौरान चुप्पी साध ली। नारायणन, राजीव गांधी की सुरक्षा से संतुष्ट नहीं थे और वे सुरक्षा को लेकर आशंकित भी थे। फिर किसके कहने पर वे चुप रहने का मजबूर हुए?Ó
पुस्तक में यूं जाहिर होता है राज
एक
कांग्रेस की सरकार बनने के बाद अर्जुन चाहते थे कि प्रधानमंत्री राव इस हत्याकांड की तह तक पहुंचने में निजी दिलचस्पी दिखाएं, परंतु ऐसा हुआ नहीं। राव ने कभी भी राजीव गांधी के असली हत्यारों का पता लगाने और पकडऩे में अपेक्षित ईमानदारी व गंभीरता का परिचय नहीं दिया।
दो
हत्याकांड की जांच प्रक्रिया से सोनिया गांधी पूरी तरह संतुष्ट नहीं रही। सोनिया ने स्वयं को बाहरी दुनिया से लगभग काट लिया था। आशंकाओं की दीवार उनके और बाहरी लोगों के बीच खड़ी हो गई थी। राव ने इस दीवार को तोडऩे की अपनी ओर से कभी कोशिश नहीं की। इससे जांच पद्धति और प्रक्रिया पर शंकाओं का कोहरा छाया रहा।
अर्जुन के गोपनीय पत्र आधार
जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी के जनसंचार विभाग में निदेशक रामशरण जोशी ने 'पत्रिकाÓ से चर्चा में बताया करीब 35 वर्ष से मैं अर्जुनसिंह को बेहद करीब से देख रहा हूं। उनके द्वारा नरसिंहराव को लिखे गोपनीय पत्रों और उनसे मेरी लंबी व्यक्तिगत बातचीत पुस्तक के मुख्य आधार हैं। पुस्तक के सभी तथ्य प्रामाणिक हैं।
एक कथन तक ही चर्चित थी पुस्तक
पुस्तक करीब एक वर्ष पहले राजकमल प्रकाशन के जरिए बाजार में आई थी। तब इसका वह हिस्सा बेहद चर्चित हुआ जिसमें अर्जुनसिंह की पत्नी सरोजसिंह ने राष्टï्रपति पद की दावेदारी के लिए अर्जुनसिंह का नाम प्रस्तावित नहीं किए जाने पर टिप्पणी की है। सरोजसिंह ने कहा था 'एक आदमी (अर्जुनसिंह) जो इस परिवार (नेहरू-गांधी परिवार) को वर्षों से अपना सर्वस्व दे रहा है, यदि उसे प्रेसीडेंट बना दिया जाता तो इस मैडम (सोनिया गांधी) का क्या बिगड़ जाता?Ó ï
पुस्तक के बाद ही बढ़ी नाराजगी
कांग्रेस सूत्रों का कहना है इस पुस्तक के बाजार में आने के बाद ही नेहरू-गांधी परिवार की अर्जुनसिंह से दूरियां बढ़ी। न तो उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल सकी और न ही उनकी बेटी वीना सिंह को सीधी से लोकसभा का टिकट।
आत्मकथा लिख रहे अर्जुन
यूनियन कार्बाइड कांड में वारेन एंडरसन को मौखिक आदेश पर रिहा करने के रहस्य को दिल में दबाए बैठे अर्जुनसिंह इन दिनों अपनी आत्मकथा लिखने में व्यस्त हैं। उनकी आत्मकथा कितनी विस्फोटक होगी, इसका अंदाज उन पर लिखी जीवनी से ही लगाया जा सकता है।
राव के साथ अर्जुन के तीन प्रसंग
प्रसंग एक:
हैलो, मिस्टर प्राइममिनिस्टर!
छह दिंसबर की घटना के पहले प्रधानमंत्री राव की इच्छा के विपरीत अर्जुनसिंह लखनऊ मेल से लखनऊ, फैजाबाद और अयोध्या जा रहे थे। उन्हें अयोध्या की अनहोनी का अंदेशा था। जब अर्जुनसिंह लखनऊ मेल के प्रथम श्रेणी के कूपे में बैठे थे तभी एक पुलिस अधिकारी ने उन्हें कहा सर, पीएम साहब आपसे बात करना चाहते हैं। उन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करते थे। सिंह ने अधिकारी से कहा स्टेशन मास्टर के कमरे में बात करने जाएंगे तो गाड़ी चली जाएगी। कैसे संभव होगा। तीन-चार बार अनुरोध करके अधिकारी लौट गया। थोड़ी देर बाद फिर वही अधिकारी आया और बोला सर, प्लेटफार्म पर लगे पब्लिक टेलीफोन बूथ पर पीएम साहब से बातचीत का इंतजाम कर दिया गया है। जब तक बात नहीं हो जाती, ट्रेन नहीं जाएगी। इस पर अर्जुनसिंह चर्चा करने गए। वहां मौजूद लोग बस यह ही सुन सके कि 'हैलो, मिस्टर प्राइममिनिस्टर!Ó अर्जुनसिंह ने ट्रेन में लौटकर जोशी को बताया 'राव साहब, दिल्ली में ही रूकने के लिए कह रहे थे। उन्हें लग रहा है कि मेरे जाने से कहीं लखनऊ, अयोध्या में अशांति न फैल जाए। मैंने उन्हें विश्वासपूर्वक कहा है कि ऐसा कुछ नहीं होगा।Ó
प्रसंग दो :
इस परिवार का मोह छोडि़ए
राव ने गांधी परिवार का लाग आलाप रहे अर्जुनसिंह को अपने साथ जोडऩे के इरादे से एक बार कहा था 'अब आप इस परिवार का मोह छोडि़ए, आपमें राजनीतिक प्रतिभा और तीव्रता है। अब देश को नई राजनीति की जरूरत है। आगे बढि़ए।Ó
प्रसंग तीन:
अब लड़ाई खत्म करें
पुस्तक के आखिर में जोशी ने अर्जुन-राव के मार्मिक प्रसंग का जिक्र किया है। राव अस्पताल में भर्ती थे और अर्जुनसिंह उनसे मिलने गए। राव ने सिंह को कहा अब लड़ाई खत्म करें। मुझे आपके घर आना है। ठीक होते ही आऊंगा। इस मुलाकात के अगले ही दिन राव का देहांत हो गया।
News in Patrika on 11th August 2010