बुधवार, 11 अगस्त 2010

नरसिंहराव का पता थी राजीव गांधी की हत्या की योजना

 पुस्तक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुनसिंह का सनसनीखेज रहस्योद्घाटन


वरिष्ठ कांग्रेस नेता और नेहरू-गांधी परिवार के वफादार रहे अर्जुनसिंह ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा है 'राजीवजी की हत्या योजनाबद्ध ढंग से की गई थी। यह हो सकता है कि हत्या की प्लानिंग में राव (पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव) का कोई हाथ न हो, लेकिन उन्हें पूर्व जानकारी जरूर थी और वे इन जानकारियों को सबके सामने प्रकट नहीं होने देना चाहते थे, इसलिए कुछ चीजों को लेकर संदेह होना स्वाभाविक है। Ó

अर्जुनसिंह का यह खुलासा वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी द्वारा उन पर लिखी जीवनी 'अर्जुनसिंह: एक सहयात्री इतिहास काÓ में हुआ है। इंदौर से प्रकाशित राष्टïरीय हिंदी मैग्जीन 'हैलो हिंदुस्तानÓ ने पुस्तक के अंशों को विस्तार से प्रस्तुत किया है। जोशी की पुस्तक में कहा गया है कि अर्जुनसिंह ने राव से राजीव गांधी की हत्या की वास्तविकता का पता लगाने के लिए कई बार कहा। सिंह का तर्क था कि राजीव की हत्या से किसी को तो लाभ पहुंचा होगा। पुस्तक के मुताबिक अर्जुनसिंह ने राजीव हत्याकांड की जांच कर रहे जस्टिस जैन से अच्छे संबंध बना लिए थे। अर्जुनसिंह कहते हैं 'जस्टिस जैन मुझ पर काफी विश्वास करते थे। पहली बात को उसकी पहचान करनी थी कि यह राजनीतिक हत्या किसे सूट करती थी? इसके पीछे किसका मोटिवेशन हो सकता है? जो लड़की मानव-बम बनी थी, वह तो माध्यम भर थी...किन कारणों से आईबी के तत्कालीन निदेशक नारायणन ने जैन आयोग के समक्ष गवाही के दौरान चुप्पी साध ली। नारायणन, राजीव गांधी की सुरक्षा से संतुष्ट नहीं थे और वे सुरक्षा को लेकर आशंकित भी थे। फिर किसके कहने पर वे चुप रहने का मजबूर हुए?Ó

पुस्तक में यूं जाहिर होता है राज
एक
कांग्रेस की सरकार बनने के बाद अर्जुन चाहते थे कि प्रधानमंत्री राव इस हत्याकांड की तह तक पहुंचने में निजी दिलचस्पी दिखाएं, परंतु ऐसा हुआ नहीं। राव ने कभी भी राजीव गांधी के असली हत्यारों का पता लगाने और पकडऩे में अपेक्षित ईमानदारी व गंभीरता का परिचय नहीं दिया।
दो
हत्याकांड की जांच प्रक्रिया से सोनिया गांधी पूरी तरह संतुष्ट नहीं रही। सोनिया ने स्वयं को बाहरी दुनिया से लगभग काट लिया था। आशंकाओं की दीवार उनके और बाहरी लोगों के बीच खड़ी हो गई थी। राव ने इस दीवार को तोडऩे की अपनी ओर से कभी कोशिश नहीं की। इससे जांच पद्धति और प्रक्रिया पर शंकाओं का कोहरा छाया रहा।

अर्जुन के गोपनीय पत्र आधार
जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी के जनसंचार विभाग में निदेशक रामशरण जोशी ने 'पत्रिकाÓ से चर्चा में बताया करीब 35 वर्ष से मैं अर्जुनसिंह को बेहद करीब से देख रहा हूं। उनके द्वारा नरसिंहराव को लिखे गोपनीय पत्रों और उनसे मेरी लंबी व्यक्तिगत बातचीत पुस्तक के मुख्य आधार हैं। पुस्तक के सभी तथ्य प्रामाणिक हैं।

एक कथन तक ही चर्चित थी पुस्तक
पुस्तक करीब एक वर्ष पहले राजकमल प्रकाशन के जरिए बाजार में आई थी। तब इसका वह हिस्सा बेहद चर्चित हुआ जिसमें अर्जुनसिंह की पत्नी सरोजसिंह ने राष्टï्रपति पद की दावेदारी के लिए अर्जुनसिंह का नाम प्रस्तावित नहीं किए जाने पर टिप्पणी की है। सरोजसिंह ने कहा था 'एक आदमी (अर्जुनसिंह) जो इस परिवार (नेहरू-गांधी परिवार) को वर्षों से अपना सर्वस्व दे रहा है, यदि उसे प्रेसीडेंट बना दिया जाता तो इस मैडम (सोनिया गांधी) का क्या बिगड़ जाता?Ó ï

पुस्तक के बाद ही बढ़ी नाराजगी
कांग्रेस सूत्रों का कहना है इस पुस्तक के बाजार में आने के बाद ही नेहरू-गांधी परिवार की अर्जुनसिंह से दूरियां बढ़ी। न तो उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल सकी और न ही उनकी बेटी वीना सिंह को सीधी से लोकसभा का टिकट। 

आत्मकथा लिख रहे अर्जुन
यूनियन कार्बाइड कांड में वारेन एंडरसन को मौखिक आदेश पर रिहा करने के रहस्य को दिल में दबाए बैठे अर्जुनसिंह इन दिनों अपनी आत्मकथा लिखने में व्यस्त हैं। उनकी आत्मकथा कितनी विस्फोटक होगी, इसका अंदाज उन पर लिखी जीवनी से ही लगाया जा सकता है। 


राव के साथ अर्जुन के तीन प्रसंग

प्रसंग एक:
हैलो, मिस्टर प्राइममिनिस्टर!
छह दिंसबर की घटना के पहले प्रधानमंत्री राव की इच्छा के विपरीत अर्जुनसिंह लखनऊ मेल से लखनऊ, फैजाबाद और अयोध्या जा रहे थे। उन्हें अयोध्या की अनहोनी का अंदेशा था। जब अर्जुनसिंह लखनऊ मेल के प्रथम श्रेणी के कूपे में बैठे थे तभी एक पुलिस अधिकारी ने उन्हें कहा सर, पीएम साहब आपसे बात करना चाहते हैं। उन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करते थे। सिंह ने अधिकारी से कहा स्टेशन मास्टर के कमरे में बात करने जाएंगे तो गाड़ी चली जाएगी। कैसे संभव होगा। तीन-चार बार अनुरोध करके अधिकारी लौट गया। थोड़ी देर बाद फिर वही अधिकारी आया और बोला सर, प्लेटफार्म पर लगे पब्लिक टेलीफोन बूथ पर पीएम साहब से बातचीत का इंतजाम कर दिया गया है। जब तक बात नहीं हो जाती, ट्रेन नहीं जाएगी। इस पर अर्जुनसिंह चर्चा करने गए। वहां मौजूद लोग बस यह ही सुन सके कि 'हैलो, मिस्टर प्राइममिनिस्टर!Ó अर्जुनसिंह ने ट्रेन में लौटकर जोशी को बताया 'राव साहब, दिल्ली में ही रूकने के लिए कह रहे थे। उन्हें लग रहा है कि मेरे जाने से कहीं लखनऊ, अयोध्या में अशांति न फैल जाए। मैंने उन्हें विश्वासपूर्वक कहा है कि ऐसा कुछ नहीं होगा।Ó

प्रसंग दो :
इस परिवार का मोह छोडि़ए
राव ने गांधी परिवार का लाग आलाप रहे अर्जुनसिंह को अपने साथ जोडऩे के इरादे से एक बार कहा था 'अब आप इस परिवार का मोह छोडि़ए, आपमें राजनीतिक प्रतिभा और तीव्रता है। अब देश को नई राजनीति की जरूरत है। आगे बढि़ए।Ó

प्रसंग तीन:
अब लड़ाई खत्म करें
पुस्तक के आखिर में जोशी ने अर्जुन-राव के मार्मिक प्रसंग का जिक्र किया है। राव अस्पताल में भर्ती थे और अर्जुनसिंह उनसे मिलने गए। राव ने सिंह को कहा अब लड़ाई खत्म करें। मुझे आपके घर आना है। ठीक होते ही आऊंगा। इस मुलाकात के अगले ही दिन राव का देहांत हो गया।  


News in Patrika on 11th August 2010

क्यों नहीं लिए केके गोयल के बयान

- कैलाश को क्यों बख्शा : लोकायुक्त पुलिस की एफआईआर पर सवाल
- भ्रष्टाचार साबित करने वाले लीज सौदे के गवाह होने के बाद भी लोकायुक्त पुलिस ने नहीं की पूछताछ
- निगम उपयंत्री सुरेश चौहान हैं दूसरे गवाह


सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रुपए की तीन एकड़ जमीन के घोटाले में विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति और 13 अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर की खामियां एक-एक कर सामने आ रही हैं। जांच अफसरों ने धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार विजय कोठारी और मनीष संघवी के दोस्त मनीष तांबी के लिखित बयान लिए परंतु उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय व विधायक रमेश मेंदोला के मित्र केके गोयल और इंदौर नगर निगम के उपयंत्री सुरेश चौहान से भी कोई पूछताछ नहीं की गई। गोयल व चौहान धनलक्ष्मी केमिकल्स और नंदानगर साख संस्था के बीच हुए जमीन सौदे के गवाह हैं। इस सौदे के कारण ही मेंदोला, कोठारी, संघवी समेत 17 लोगों पर भ्रष्टाचार और आपराधिक षडयंत्र रचने का केस दर्ज किया गया है।


लोकायुक्त पुलिस के दो चेहरे

पहला चेहरा
जांच के दौरान लोकायुक्त पुलिस ने 15 लोगों के बयान लिए। इसमें एक नाम मनीष तांबी का भी है। लोकायुक्त पुलिस ने तांबी को बयान लेने का कारण एक नक्शे को बताया है। सूत्रों के मुताबिक चर्चित जमीन पर धनलक्ष्मी केमि. ने आवासीय ईकाइयों जो नक्शा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से पास करवाया था, उस पर तांबी ने बतौर गवाह हस्ताक्षर किए थे।

दूसरा चेहरा
फरियादी सुरेश सेठ की शिकायत में नत्थी किए गए दस्तावेजों में लीज अधिकारों का विक्रय पत्र भी मौजूद था।  इस पर मेंदोला, कोठारी और संघवी के साथ ही केके गोयल और सुरेश चौहान के हस्ताक्षर भी हैं। चूंकि इसी सौदे के आधार पर भ्रष्टाचार साबित हुआ है, इसलिए इन लोगों से बयान लेना लोकायुक्त पुलिस की जिम्मेदारी था।

कैलाश-मेंदोला के मित्र हैं गोयल 
 
केके गोयल विजयवर्गीय और मेंदोला के मित्र हैं। वे विकास अपार्टमेंट हाउसिंग सोसाइटी के भंग संचालक मंडल में मेंदोला के साथ ही सदस्य भी हैं। इस दागी सोसाइटी की जांच चल रही है। आरोप है कि संचालकों ने सदस्यों के उपयोग की 9 एकड़ जमीन भवन्स प्रोविनेंट स्कूल को लीज पर दी है। अवैध मल्टियों के कारण विवादित हुए आलोक नगर की जमीन भी इसी सोसाइटी की है।

News in Patrika on 9th August 2010

ईमानदार थे, तो क्यों नहीं बदली अफसरों की राय

- सुगनीदेवी कॉलेज जमीन घोटाले मामले की एफआईआर से उपजा सवाल
- कैलाश विजयवर्गीय को बचाने की कोशिश में लोकायुक्त पुलिस ने किए तीन गोलमाल


सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रुपए की तीन एकड़ जमीन घोटाले में विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति और 13 अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर की भाषा से साफ है कि तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय और तत्कालीन निगमायुक्त को बचाने के लिए भरसक कोशिश की गई। अदालत में पेश की गई 29 पेज की एफआईआर को 'पत्रिकाÓ ने विधि विशेषज्ञों को दिखाया, तो वे चौंक गए। इस रिपोर्ट में तीन स्थानों पर स्पष्टï रूप से गोलमाल किया गया है।
जिन तर्कों के आधार पर मेंदोला समेत 17 लोगों को आरोपी बनाया गया है उनसे विजयवर्गीय की ईमानदारी पर सवाल खड़ा हो गया है। विधि विशेषज्ञ कहते हैं कि विजयवर्गीय ईमानदार थे, तो उन्होंने अफसरों के वे गड़बड़ फैसले पलट क्यों नहीं दिए जिनके आधार पर धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज की जमीन नंदानगर साख संस्था को दी गई। ऐसा भी नहीं है कि अफसरों के हस्ताक्षर से आए सभी प्रस्तावों को मंजूर कर लिया जाता हो। अफसरों की सकारात्मक टिप्पणियों के साथ दर्जनों गड़बड़ प्रस्ताव एमआईसी के सामने आते हैं, जिन्हें खारिज करके एमआईसी व महापौर न्याय करते हैं। 

एफआईआर में तीन गोलमाल

गोलमाल एक
पेज छह के दूसरे पैरा में लिखा गया है कि तत्कालीन भवन अधिकारी, नगर शिल्पज्ञ और संबंधित अन्य अफसरों व कर्मचारियों ने नियम विरूद्ध मनमाने ढंग से लीज राशि की गणना की, जिसके आधार पर विजयवर्गीय की अध्यक्षता वाली एमआईसी ने नंदानगर संस्था को जमीन सौंपने का संकल्प 286 और प्रस्ताव 58 पास कर दिया।
उठता सवाल
अफसरों की गलती को महापौर, एमआईसी और निगमायुक्त ने हूबहू मान क्यों लिया? क्या महापौर जैसे जिम्मेदार पद पर आसिन होने के नाते उनका दायित्व नहीं था कि संकल्प व प्रस्ताव को नामंजूर कर दें?

गोलमाल दो
पेज आठ के तीसरे पैरा में लिखा कि नगर शिल्पज्ञ जगदीश डगांवकर ने 19 अप्रैल 2004 को एक ऑफिस नोट पर हस्ताक्षर किए। इसके आधार पर कैलाश की अध्यक्षता में एमआईसी ने 22 सितंबर 2004 को संकल्प क्रमांक 759 पास किया। इसी के जरिए जमीन अगले तीस वर्ष के लिए नंदानगर संस्था को दी गई।
उठता सवाल
डगांवकर के ऑफिस नोट और संकल्प प्रस्ताव के बीच में पांच माह का अंतराल था। इतने समय में भी इस प्रस्ताव के दोषों की विजयवर्गीय ने अनदेखी क्यों की?

गोलमाल तीन
पेज नौ के पैरा दो में लिखा है कि धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार और पार्षद रमेश मेंदोला ने अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडय़ंत्र में संगमत होकर पद का दुरुपयोग किया और सरकार को 2.70 करोड़ रुपए की आर्थिक हानि पहुंचाई। पार्षद मेंदोला को इतनही राशि का अवैध आर्थिक लाभ हुआ।
उठता सवाल 
क्या एक अकेला पार्षद अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडय़ंत्र में संगमत होकर इतना फायदा उठा सकता है? अपराध वर्ष 2000 से 04 के बीच हुआ है, क्या महापौर के सर्वाधिक नजदीकी पार्षद मेंदोला लगातार चार वर्ष तक अकेले ऐसा षडय़ंत्र रच सकता है? यदि ऐसा हुआ है तो विजयवर्गीय व एमआईसी ने अपनी अहम जिम्मेदारी को नहीं निभाया है। क्या यह पद के दुरुपयोग की श्रेणी में नहीं आता है? 

लोकायुक्त पुलिस को क्यों नहीं दिखे कैलाश-रमेश के ताल्लुकात

- कोर्ट ने जिन बिंदुओं पर सौंपी थी जांच, वे भी नहीं खंगाले
- ऐसी विशेष जांच एजेंसी का क्या औचित्य


सीबीआई, सीआईडी, ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त जैसी विशेष जांच एजेंसियों के गठन के पीछे मंशा होती है कि भ्रष्टाचार या अपराध के किसी भी मामले से जुड़े सूक्ष्मतम पहलू की भी जांच हो जाए और बड़े से बड़े आरोपी को खींचकर अदालत के सामने पेश कर दिया जाए। सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 एकड़ रुपए की तीन एकड़ जमीन मामले में अब तक तो ऐसा नहीं हो सका। विशेष न्यायालय द्वारा चार माह पूर्व (6 अप्रैल को) लोकायुक्त पुलिस को सौंपे गए इस केस में जिन 46 बिदुओं पर जांच सौंपी थी, उनमें से कई की पड़ताल ही नहीं की गई। खासकर वे बिंदु पूरी तरह अछूते रहे जिनके आधार पर तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती थी।

यहां तक कि लोकायुक्त पुलिस ने फरियादी सुरेश सेठ के उस आरोप की भी पूरी तरह अनदेखी की जिसमें उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला के व्यक्तिगत ताल्लुकातों का जिक्र था। दोनों के जगजाहिर संबंधों के आधार पर ही संभवत: अदालत ने भी लोकायुक्त पुलिस को दोनों की भूमिका की जांच सौंपी थी। ज्ञात रहे लोकायुक्त पुलिस ने शुक्रवार को अदालत में 29 पेज की एफआईआर पेश करके जांच से पीछा छुड़ाने की कोशिश की थी। फरियादी ने जब चार में से एक आरोपी (कैलाश) को छोडऩे की बात उठाई, तब लोकायुक्त के वकील बोले जांच अभी जारी है और आरोपी क्रमांक दो यानी कैलाश विजयवर्गीय को भी आरोपी बनाया जा सकता है।

बड़ा सवाल
कैलाश ने पलट क्यों नहीं दी अफसरों की राय?
विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति और 13 अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में नेताओं के बजाए अफसरों को अधिक दोषी बताया गया है। पेज छह के दूसरे पैरा में लिखा गया है कि तत्कालीन भवन अधिकारी, नगर शिल्पज्ञ और संबंधित अन्य अफसरों व कर्मचारियों ने नियम विरूद्ध मनमाने ढंग से लीज राशि की गणना की, जिसके आधार पर विजयवर्गीय की अध्यक्षता वाली एमआईसी ने नंदानगर संस्था को जमीन सौंपने का प्रस्ताव पास कर दिया। बड़ा सवाल यह है कि अफसरों की गलती को महापौर और एमआईसी ने हूबहू मान क्यों लिया? क्या जनप्रतिनिधि होने के नाते उनका दायित्व नहीं था कि संकल्प को पारित न करें? ऐसा भी नहीं है कि अफसरों के हस्ताक्षर से आए सभी प्रस्तावों को मंजूर कर लिया जाता हो। दर्जनों प्रस्ताव ऐसे होते हैं, जिन्हें दोषपूर्ण जानकर महापौर व एमआईसी द्वारा खारिज कर दिया जाता है। इस साधारण किंतु बेहद महत्वपूर्ण तथ्य पर लोकायुक्त पुलिस ने आखिर क्यों ध्यान नहीं दिया?


क्या कर रहा 209 लोगों का लवाजमा
मप्र में लोकायुक्त संगठन की स्थापना विशेष पुलिस स्थापना के अंतर्गत की गई है। लोकायुक्त समेत इसमें 209 अधिकारी-कर्मचारी का अमला सरकार ने लगाया है। अमले में महानिदेशक, इंस्पेक्टर जनरल, एसपी से लेकर कानूनी सलाहकार तक शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि इस लवाजमे के पास एकमात्र यही केस जांच के लिए था, लेकिन सवाल यही है कि बहुचर्चित मामले में भी इस अमले ने अदालत की फिक्र नहीं की।

ऐसा काम तो सामान्य पुलिस भी कर ले
इस बहुचर्चित मामले में अब तक के घटनाक्रम पर कानूनी जानकारों का कहना है जिस तरह से लोकायुक्त पुलिस ने जांच कार्य किया है, वह तो सामान्य पुलिस भी कर सकती थी। कानूनन विशेष पुलिस स्थापना को कई विशेष अधिकार दिए गए हैं, लेकिन इस मामले में उनका इस्तेमाल नहीं किया गया।

कैलाश की भूमिका को साबित करने वाले तथ्य
बिंदु एक
कैलाश विजयवर्गीय के नेतृत्व में रमेश मेंदोला ने 1999 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में क्रमश: महापौर और पार्षद का चुनाव साथ-साथ लड़ा। विजयवर्गीय के नेतृत्व वाली एमआईसी में रमेश मेंदोला स्वास्थ्य प्रभारी के पद पर जनवरी 2000 से जनवरी 2005 तक आसीन रहे। दोनों ही समान राजनैतिक पृष्ठभूमि के होकर एक साथ राजनैतिक कार्य करते हैं।
बिंदु दो
 कैलाश ने अपने राजनैतिक प्रभाव का दुरुपयोग करके रमेश मेंदोला की अध्यक्षता वाली नंदानगर साख संस्था को खुद के महापौर रहते जमीन हस्तांतरित करवाई। इस संस्था में विजयवर्गीय की पत्नी आशा विजयवर्गीय भी संचालक हैं।
बिंदु तीन
 कैलाश-रमेश ने वर्ष 2000 में पद संभालते ही आपराधिक षडय़ंत्र की शुरुआत कर दी थी। यही वजह है कि धनलक्ष्मी केमिकल्स कंपनी को इस भूमि पर बगैर भूमि उपयोग में बदलाव के 18 जून 2000 को मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाने की अनुमति दे दी गई। 
बिंदु चार
घोटाले के दौरान कैलाश महापौर के साथ ही उसी क्षेत्र के विधायक भी थे, जहां घोटाला हुआ। लोकसेवक होने के नाते कैलाश व रमेश भलीभांति जानते थे कि मप्र शासन की अनुमति के बगैर न तो भूमि बेची जा सकती थी और न हस्तांतरित।
बिंदु पांच
 कैलाश ने एमआईसी अध्यक्ष के नाते 3 जून 2002 को उस संकल्प क्रमांक 289 की अनुशंसा कर दी जिसमें सुगनीदेवी जमीन को नंदानगर साख संस्था को देने का जिक्र था।
बिंदु छह
कैलाश-रमेश की मौन सहमति से धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार विजय कोठारी एवं मनीष संघवी को अनुचित लाभ देते हुए 10 हजार वर्गफीट जमीन उन्हें दे दी गई। शेष जमीन ही नंदानगर संस्था अध्यक्ष को दी गई।
बिंदु सात
कैलाश के प्रति रमेश की राजनैतिक निष्ठा समाज में स्थापित है। रमेश कैलाश को अपना राजनैतिक गुरू भी मानते हैं। 





 News in Patrika on 8th August 2010

इनके एसपी में दम नहीं जो यहां आ जाए

 - सुरेश सेठ ने लोकायुक्त के वकील को कोर्ट में दी चुनौती
- तमतमाए वकील ने कहा मुझसे ऐसी बातें न कहें
- कोर्ट ने भी पूछा क्यों नहीं आए आपके एसपी

उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय अंौर विधायक रमेश मेंदोला से जुड़े 100 करोड़ की जमीन घोटाले के मामले की सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पुलिस के वकील को कोर्ट में ही खुली चुनौती दे दी। कोर्ट ने जब वकील से पूछा आपके एसपी क्यों नहीं आए, तो सेठ तपाक से बोले इनके एसपी में दम नहीं जो यहां आ जाए। बाद में कोर्ट ने एसपी को बुलाने को कहा, लेकिन वे नहीं आए।

विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी की कोर्ट में दोपहर 12 बजे लोकायुक्त डीएसपी अशोक सोलंकी और विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम घुसे। जैसे ही उन्होंने कोर्ट को बताया हमने 17 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी है, वैसे ही सेठ ने बोले मुझे तो इसकी कॉपी ही नहीं दी गई। कोर्ट तत्काल आदेश दिया कि एक कॉपी इन्हें दे दी जाए। जिरह शुरू होने के कुछ ही मिनट बाद सोलंकी रिपोर्ट लेने के बहाने बाहर चले गए और आखिर तक नहीं लौटे। तब सेठ के सवालों का सामना कदम को ही करना पड़ा। इसी दौरान कोर्ट ने पूछा एसपी वीरेंद्रसिंह कहां हैं? 

इतना दबाव है, तो नौकरी क्यों कर रहे
सेठ ने कहा लोकायुक्त के अफसरों पर कैलाश विजयवर्गीय का भारी दबाव है इसी कारण रिपोर्ट में उसका नाम तक नहीं है। अगर दबाव में ही काम करता है तो इन लोगों को नौकरी करने की जरूरत ही क्या है? इस पर कदम थोड़ा तेश में आ गए, उन्होंने कहा मैं तो वकील हूं और मुझे किसी के दबाव में आने की जरूरत नहीं है। सेठ ने उन्हें संभालते हुए कहा मैं आपको बेईमान नहीं कह रहा हूं, आप तो ईमानदार हैं। कदम ने कहा ईमानदारी के लिए मुझे आपके प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है।  

'कह दो ना, वह ईमानदार हैंÓ
कोर्ट में हुई जिरह के दौरान सेठ लोकायुक्त पुलिस के अफसरों से कहा भाई, या तो कह दो कि कैलाश बेईमान है या कह दो नहीं है। यह यह ही

'वह डॉन है, इसलिए गुर्गों को फंसा दियाÓ
कोर्ट के बाहर आते ही सेठ ने विजयवर्गीय पर आरोपों की झड़ी लगा दी। उन्होंने कहा वह दाऊद जैसा डॉन है, इसलिए सब डरते हैं। जिन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है, उनमें से अधिकांश उसके गुर्गें हैं। डॉन तो ऐसा ही करता है, गुर्गों को फंसा देता है। जब सरकार डरती है, तो लोकायुक्त क्यों नहीं डरेंगे।

'दो-दो करोड़ में विधायकों को खरीदने की ताकतÓ
सेठ ने मीडिया को यह भी कहा कि विजयवर्गीय मप्र का मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहा है। 

गुर्गों ने खींचे पत्रकारों के फोटो 
सुनवाई के दौरान कैलाश-मेंदोला के गुर्गे भी कोर्ट में मौजूद थे। केस का मीडिया कवरेज कर रहे पत्रकारों पर उनकी नजर थी। कोर्ट के बाहर उन्होंने पत्रकारों के फोटो भी अपने मोबाइल में ले लिए। 

अदालत ने लोकायुक्त पुलिस से पूछा- कैलाश को क्यों छोड़ा?

Lokayukta Officers

- सुगनीदेवी कॉलेज परिसर से जुड़ी 100 करोड़ की तीन एकड़ जमीन में घोटाले की हो गई पुष्टि
- भाजपा विधायक रमेश मेंदोला और 13 अफसरों समेत 17 के खिलाफ मिले भ्रष्टाचार के सबूत, सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज
- नेता, अफसर और उद्योगपतियों ने आपराधिक षडयंत्र रचकर सरकार को लगाई 2.70 करोड़ की चपत

Suresh Seth


परदेशीपुरा चौराहा स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन मामले में आखिरकार घोटाले की पुष्टि हो ही गई। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला के कारण बहुचॢचत हुए १०० करोड़ रुपए के इस मामले में 17 लोगों को भ्रष्टाचार करने का दोषी मानकर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है। नेता, अफसर और उद्योगपतियों के इस गठजोड़ से सरकार को 2 करोड़ 70 लाख रुपए की चपत लगी है। मामले में कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ फिलहाल एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। ऐसा क्यों किया गया, इसका जवाब भी लोकायुक्त पुलिस के पास नहीं है। इसी के चलते कोर्ट में लोकायुक्त पुलिस से पूछा गया कि किस आधार पर आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय को छोड़ा गया। लोकायुक्त पुलिस को इसका जवाब 21 सितंबर तक कोर्ट में देना होगा। हालांकि, लोकायुक्त के वकील ने कोर्ट को बताया है कि फिलहाल जांच जारी है और विजयवर्गीय के साथ ही अन्य लोग भी आरोपी बनाए जा सकते हैं। 

भारी गहमागहमी के बीच शुक्रवार दोपहर 12 बजे को लोकायुक्त पुलिस ने विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी की कोर्ट में जांच रिपोर्ट पेश की। एफआईआर की शक्ल में पेश इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भाजपा विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति और 13 अफसरों ने षडय़ंत्र रचकर भ्रष्टाचार किया। इसी कारण इनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज कर ली गई है। 

लोकायुक्त की इस रिपोर्ट पर शिकायतकर्ता व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश सेठ ने भारी आपत्ति जताते हुए कोर्ट को बताया मैंने चार आरोपी बताए थे। इनमें से तीन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई, जबकि तत्कालीन महापौर कैलाश विजयगर्वीय को लोकायुक्त ने छोड़ दिया, ऐसा आखिर क्यों किया गया। इस पर कोर्ट ने भी लोकायुक्त पुलिस के वकील से पूछा बताइए ऐसा क्यों हुआ? 

लोकायुक्त की ओर से हाजिर हुए विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने बताया अभी विजयवर्गीय को क्लीन चीट नहीं दी गई है। मामले में जांच जारी है और विजयवर्गीय समेत अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया जा सकता है। करीब 20 मिनिट तक बहस चली। दोपहर बाद विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिए कि मामले में अंतिम जांच प्रतिवेदन 21 सितंबर तक पेश कर दिया जाए।

कैलाश को नहीं दी क्लीन चीट
विशेष कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विशेष पुलिस स्थापना द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में कैलाश विजयवर्गीय का नाम नहीं होने से यह नहीं माना जाए कि उनके खिलाफ केस समाप्त हो गया है। यह जरूरी नहीं है कि एफआईआर में नाम नहीं होने से कैलाश विजयवर्गीय के विरूद्ध मामला समाप्त हो गया। जांच के आधार पर उन्हें आरोपी बनाया जा सकता है।



'लोकायुक्त-कैलाश के बेटे बिजनेस पार्टनरÓ
शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पीपी नावलेकर और उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के परिवारोंं के आपसी ताल्लुकतों का हवाला देते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं। सेठ ने मीडिया से चर्चा में कहा दोनों के बेटे बिजनेस पार्टनर हैं, इसी कारण कैलाश को बचाया गया, अन्यथा उन्हें छोडऩे की कोई वजह मौजूद ही नहीं है।

अब चालान पेश होगा
जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है, उनके खिलाफ विस्तृत जांच होगी। इसके बाद कोर्ट में चालान पेश होगा और गिरफ्तारी होगी। कैलाश विजयवर्गीय और एमआईसी की भूमिका की जांच भी साथ-साथ चलेगी। चालान पेश होने में कितना समय लगेगा, फिलहाल तय नहीं है। 

इन धाराओं में केस
एक- भष्ट्राचार निवारण अधिनियम १९८८ की धारा 13(1) डी और धारा 13 (2) अर्थात भ्रष्टाचार।
दो- भारतीय दंड विधान की धारा १२० बी अर्थात आपराधिक षडय़ंत्र।

लो, कैलाश के दस्तखत वाला सबूत
-सुरेश सेठ का कहना है कि घोटाले के सूत्रधार और तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ उन्होंने लोकायुक्त को पुख्ता सबूत सौंपे हैं। ये सभी सरकारी दस्तावेज प्रमाणित हैं। कैलाश के खिलाफ सबसे पुख्ता सबूत है, खुद उनकी ही अध्यक्षता में तीन जून 2002 को पारित एमआईसी का संकल्प, जिसमें जमीन की गाइडलाइन दर 35 रुपए प्रति दस वर्गमीटर बताकर सरकार को लाखों रुपए का नुकसान पहुंचाया गया। मेंदोला के खिलाफ एफआईआर में इसको आधार बनाया गया है लेकिन विजयवर्गीय को बख्श दिया गया।
    
अफसरों ने किसके लिए किया
निगम के अफसरों ने दबी जुबान अपनी पीड़ा जताई कि उस कार्यकाल में तो आंख दिखाकर काम कराए जाते थे, ये किससे छिपा है। उन्होंने कहा कि कराने वाला कौन था, सबको मालूम है।

'या तो बेईमान कहो या ईमानदारÓ
कोर्ट में हुई जिरह के दौरान सेठ ने लोकायुक्त ïके वकील से कहा भाई, या तो कह दो कि कैलाश बेईमान है या कह दो नहीं है। चाहे तो यह भी कह सकते हैं कि वह ईमानदार है। इस पर कोर्ट में हंसी का ठहाका लग गया।

इनके खिलाफ भ्रष्टाचार की एफआईआर
1. रमेश मेंदोला, तत्कालीन पार्षद एवं अध्यक्ष नंदानगर साख संस्था
2. विजय नगीन कोठारी, भागीदार, धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज
3. मनीष रमणीकलाल संघवी, भागीदार, धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज
4. नगीनचंद्र कोठारी, भागीदार, धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज
5. हंसकुमार जैन, नगर शिल्पज्ञ, नगरनिगम
6. राकेश शर्मा, भवन अधिकारी, नगरनिगम
7. दिवाकर गाढ़े, सहायक यंत्री, नगरनिगम
8. दिनेश शर्मा, उपयंत्री, नगरनिगम
9. श्याम शर्मा, उपयंत्री, नगरनिगम
10. राकेश मिश्रा, उपयंत्री, नगरनिगम
11. एसके जैन, तत्कालीन सहायक शिल्पज्ञ, नगरनिगम
12. अशोक बैजल, रिटायर्ड भवन अधिकारी, नगरनिगम
13. एनके सुराणा, रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री, नगरनिगम
14. जगदीश डगांवकर, रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री, नगरनिगम
15. नित्यानंद जोशी, रिटायर्ड सहायक यंत्री, नगरनिगम
16. विमल कुमार जैन, रिटायर्ड सहायक शिल्पज्ञ, नगरनिगम
17. स्व. केआर मंडोवरा, तत्कालीन उपयंत्री, नगरनिगम


ये गड़बडिय़ां मिलीं
- रमेश मेंदोला पार्षद और एमआईसी सदस्य होने के साथ ही नंदानगर साख संस्था के अध्यक्ष थे, उन्होंने अफसरों के साथ मिलकर आर्थिक लाभ उठाया। जगदीश डगांवकर, हंसकुमार जैन, राकेश शर्मा, दिवाकर गाढ़े, श्याम शर्मा ने विजय कोठारी और मनीष संघवी के साथ मिलकर यह षडय़ंत्र रचा।
- 23 फरवरी 2004 को नंदानगर संस्था ने लीज नामांतरण का आवेदन दिया। 28 फरवरी 2004 को लीज अधिकार बेचने के लिए धनलक्ष्मी केमिकल्स ने निगमायुक्त को पत्र लिखा। नगर शिल्पज्ञ ने 25 मार्च 2004 को लीज बेचने की एनओसी जारी किया। दोनों पक्षों के बीच लेनदेन 8 सितंबर 2004 को हुआ। लीज नामांतरण के आवेदन के एक महीने पहले ही सौदा हो गया।
- नगर शिल्पज्ञ जगदीश डगांवकर के हस्ताक्षर से 19 अप्रैल 2004 को जारी पत्र के आधार पर महापौर कैलाश विजयवर्गीय की अध्यक्षता वाली एमआईसी ने 22 सितंबर 2004 को जमीन धनलक्ष्मी केमि. से नंदानगर संस्था को 30 वर्ष के लिए दे दी। इसी संकल्प के आधार पर 6 अक्टूबर 2004 को नंदानगर संस्था ने निगम से नामांतरण की मंजूरी ली। 15 अप्रैल 2005 को नगरीय प्रशासन व विकास विभाग भोपाल को सौदे की मंजूरी के लिए निगम ने पत्र भेजा। इस पर आज तक मंजूरी नहीं आई।
- वर्ष 2002 में जमीन के उपयोग में परिवर्तन के लिए भवन अधिकारी और नगर निल्पज्ञ ने अन्य अफसरों के साथ मिलकर मनमाने ढंग से लीज की गणना करके 1 लाख 19 हजार 20 रुपए से लिए।
- 1990-91 की गाइडलाइन (40 रुपए वर्ग फीट) के हिसाब से 13 वर्ष का लीज रेंट 13 लाख 68 हजार 640 रुपए बनता था। अफसरों ने निगम को 12 लाख 49 हजार 620 रुपए की चपत लगाई।
- कलेक्टर गाइडलाइन 2002-03 में बदलकर 40 रुपए से बढ़कर 4000 रुपए वर्गफीट हो गई। इसके मुताबिक लीज रेंट 1.27 करोड़ रुपए बनता था। जगदीश डगांवकर, अशोक बैजल, एसके जैन, दिनेश शर्मा ने पद का दुरूपयोग करके विजय कोठारी और मनीष संघवी को 1 करोड़ 25 लाख 95 हजार 637 रुपए का फायदा पहुंचाया।
- औद्योगिक उपयोग की जमीन पर निगम ने आवासीय नक्क्षे पास किए।
- जमीन का डायवर्शन नहीं किया गया और इससे सरकार को 6 लाख 50 हजार 327 रुपए की हानि हुई।
- नित्यानंद जोशी, केआर मंडोवरा, राकेश शर्मा और नगीन कोठारी ने मिलकर आपराधिक  षडयंत्र रचा और धनलक्ष्मी केमिकल्स को अवैध लाभ पहुंचाया। 
- लीज डीड की शर्तों के विपरीत जमीन बेचने की एनओसी निगम के अफसरों ने जारी की।
- एनओसी के आधार पर ही गलत तरीके से जमीन नंदानगर साख संस्था को 1.38 करोड़ रुपए में बेच दी।
- नियमानुसार 1.38 करोड़ रुपए निगम के खाते में आने थे, लेकिन ये विजय कोठारी व मनीष संघवी को मिले।
- नंदानगर संस्था को यह जमीन 1.38 करोड़ की मामूली कीमत मिली, जो कि आर्थिक फायदा पहुंचाने का मामला है। 


कैलाश-मेंदोला के नहीं लिए बयान
लोकायुक्त जांच के दौरान जिन 15 लोगों के बयान लिए गए, उनमें कैलाश-मेंदाला के नाम शामिल नहीं है। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ के साथ ही निगमायुक्त सीबी सिंह, तत्कालीन भवन अधिकारी ज्ञानेंद्रसिंह जादौन, जिला पंजीयक मोहनलाल श्रीवास्तव, भू अभिलेख अधीक्षक शिवप्रसाद मंडरा, टीएंडसीपी संयुक्त संचालक विजय सावलकर, तत्कालीन निगमायुक्त संजय शुक्ल, नंदानगर साख संस्था मैनेजर प्रवीण कंपलीकर, सहकारिता उपायुक्त महेंद्र दीक्षित, उप सचिव मप्र शासन नरेश पाल, तत्कालीन निगमायुक्त विनोद शर्मा, तत्कालीन निगमायुक्त आकाश त्रिपाठी, तत्कालीन सचिव निगम बंशीलाल जोशी,  सचिव निगम रणबीरकुमार के साथ ही विजय कोठारी व मनीष संघवी के मित्र मनीष तांबी के बयान भी लोकायुक्त पुलिस ने लिए हैं।
News in Patrika 7th August 2010

मनीष संघवी ने भी लगाई याचिका

सुगनीदेवी कॉलेज परिसर के पास मौजूद तीन एकड़ जमीन मामले में लोकायुक्त जांच से गुजर रहे मनीष संघवी ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर करके पूरी प्रक्रिया को चुनौती दी है। जांच में उलझे विधायक रमेश मेंदोला ने दो दिन पूर्व हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मेंदोला की याचिका में हाईकोर्ट ने 15 दिन बाद सुनवाई के आदेश दिए हैं। संघवी की याचिका में लोकायुक्त कार्यालय और सुरेश सेठ को प्रतिवादी बनाने की सूचना है। याचिकाकर्ता मनीष संघवी ने बताया याचिका के लिए मैंने दिल्ली के एक एडवोकेट से चर्चा की थी। याचिका मंजूर हुई या नहीं, इसकी जानकारी नहीं है।



धनलक्ष्मी केमिकल्स संचालक हैं संघवी
नगरनिगम ने सुगनीदेवी कॉलेज परिसर के पास मौजूद तीन एकड़ जमीन की लीज धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज को दी थी। मनीष संघवी और विजय कोठारी इस कंपनी के संचालक हैं। कांग्रेस नेता सुरेश सेठ का आरोप है कि कंपनी ने नियम विरूद्ध जमीन की लीज नंदानगर साख संस्था को ट्रांसफर कर दी। सेठ के मुताबिक जमीन की कीमत 100 करोड़ रुपए है और तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय और एमआईसी सदस्य रमेश मेंदोला ने जमीन के लेनदेन में भ्रष्टाचार किया है। 




News in Patrika 6th August 2010.

मुझे मालूम ही नहीं और मेरी जमीन बेच दी

- बुजुर्ग आदिवासी को नौजवान बताकर किसी ओर ने नाम कर दी रजिस्ट्री
- फर्जी रजिस्ट्री मामले में जस्टिस झा आयोग की सुनवाई जारी



साहब, मेरे पास चार बीघा जमीन थी, जिस पर किसी ओर ने कब्जा कर लिया है। वह कहता है जमीन की रजिस्ट्री मेरे नाम है। मुझे तो मालूम ही नहीं कि मैंने कब जमीन बेची। उसने खरीद भी ली।

देवास जिले की बागली तहसील के कंडिया गांव में मजदूरी करके जीवन यापन कर रहे बुजुर्ग आदिवासी भोला आला चारण बेबसी के साथ यह बात बताते हैं। गुरुवार वे मप्र सरकार द्वारा सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों को दिए गए पुनर्वास पैकेज में हुए कथित भ्रष्टाचार और फर्जी रजिस्ट्री मामले के लिए गठित जस्टिस (सेवानिवृत्त) एसएस झा आयोग के समक्ष उपस्थित होने आए थे। एक कटी-फटी पोलिथिन की थैली में वे कूपन, पावती जैसे दस्तावेज लेकर आए थे, ताकि खुद को भोला चारण साबित कर सके। आयोग ने उन्हें जमीन बेचने वाला मानकर बुलाया। सुनवाई के दौरान खुलासा हुआ कि रजिस्ट्री रिकार्ड में यह खुलासा हुआ कि बुजुर्ग भोला की जगह किसी नौजवान का फोटो लगा है, यानी फर्जी व्यक्ति ने जमीन बेच दी। भोला की तरह ही करीब दो दर्जन आदिवासी यहां आए थे। फर्जी रजिस्ट्री के जरिए इनके साथ जमीन का खेल कर दिया गया। आयोग 11 अगस्त तक सुनवाई करेगा।

पंचायत से रिकार्ड गायब : मेधा पाटकर


नर्मदा बताओ आंदोलन की मेधा पाटकर सुनवाई के तीसरे दिन आयोग के समक्ष मौजूद थीं। उन्होंने 'पत्रिकाÓ को बताया कई मामलों में जमीन के रिकॉर्ड ही उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। पंचायतों से नामांतरण पंजी ही गायब हैं। चूंकि यह भ्रष्टाचार सरकारी मशीनरी के साथ मिलकर हुआ है, इसलिए दस्तावेजों को छुपाया भी जा रहा होगा। 2500 से अधिक फर्जी रजिस्ट्रियां हुईं, जिस पर करीब 300 करोड़ शासन की तिजोरी से व्यर्थ गए। दलालों और अफसरों ने जमीन हड़पकर विस्थापितों को भूमिहीन कर छोड़ा। मप्र सरकार भी मान चुकी है कि 750 से अधिक रजिस्ट्रियां फर्जी हैं। हर मामले में सरकार की ओर से साढ़े पांच लाख रुपए का भुगतान किया गया है। 


News in Patrika on 6th August 2010

अभिलाषा अपार्टमेंट केस में हाईकोर्ट से स्थगन

छप्पन दुकान के पास मौजूद अभिलाषा अपार्टमेंट केस में गुरुवार को हाईकोर्ट की युगलपीठ ने स्थगन आदेश जारी किया है। एकल पीठ ने नगरनिगम को आदेश दिया था कि पार्किंग के लिए आरक्षित जगह पर बिल्डर ने गोडाउन बना दिया है। उसे 30 दिन में हटाया जाए ताकि रहवासियों को पार्किंग मिल सके। कोर्ट ने यह भी कहा था कि न तो पार्किंग की कंपाउंडिंग क। बिल्डर राजेश गादिया ने इस आदेश के जस्टिस शांतनु केमकर और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ में चुनौती दी। गादिया ने बताया कोर्ट ने फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने का अंतरिम आदेश दिया है।

सामने आईं फर्जी रजिस्ट्रियां

फर्जी रजिस्ट्री कांड पर जस्टिस झा आयोग की सुनवाई शुरू



अलिराजपुर की तरह ही देवास जिले में भी फर्जी रजिस्ट्रियां हुई हैं। इस बात की पुष्टि मंगलवार तक हुई जब नर्मदा घाटी बने सरदार सरोवर बांध के संबंध में मप्र सरकार द्वारा विस्थापितों को दिए गए पुनर्वास पैकेज में हुए कथित भ्रष्टाचार और फर्जी रजिस्ट्री मामले के लिए गठित जस्टिस एसएस झा आयोग की इंदौर में सुनवाई शुरू हुई। देवास जिले के बागली तहसील के शिकायतकर्ताओं ने आयोग के समक्ष बयान दिए। इस मौके पर नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर भी मौजूद थीं। सुनवाई 11 अगस्त तक होगी। 

देवास जिले में 2006 से 08 तक की गई 11 रजिस्ट्रियों की जांच हुई। खातेगांव के विक्रेता रमेश पिता रामरतन व क्रेता सुरेश पिता हरीसिंह (उरदना मनावर) की खरीदी बिक्री में फोटो के साथ कई बातें फर्जी पाईं गईं। एक अन्य मामले में गुराड़दा निवासी शांताबाई मांगीलाल की करीब छह हेक्टेयर जमीन बगैर जानकारी के तीन व्यक्तियों का बाचने की बात समाने आई। आयोग को बताया गया कि शांताबाई की जमीन किसी और महिला का फोटो लगाकर बेच दी गई। अलीराजपुर जिले में भी आयोग को सुनवाई के दौरान ऐसे ही मामले मिले थे। सुनवाई की बहस में एनवीडीए अधिकारी, एसडीएम, रजिस्ट्रार मौजूद थे।

300 करोड़ का है मामला
नर्मदा बचाओ आंदोलन के मुताबिक 2500 से अधिक फर्जी रजिस्ट्रियां हुईं, जिस पर करीब 300 करोड़ शासन की तिजोरी से व्यर्थ गए। दलालों और अफसरों ने जमीन हड़पकर विस्थापितों को भूमिहीन कर छोड़ा। मप्र सरकार भी मान चुकी है कि 750 से अधिक रजिस्ट्रियां फर्जी हैं। हर मामले में सरकार की ओर से साढ़े पांच लाख रुपए का भुगतान किया गया है।


News in Patrika on 4th August 2010

लोकायुक्त जांच के खिलाफ मेंदोला की याचिका



- हाईकोर्ट ने जारी किए नोटिस
- मामला सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन का



सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन मामले में विधायक रमेश मेंदोला ने हाईकोट में एक याचिका दाखिल की है। याचिका में लोकायुक्त जांच को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने लोकायुक्त और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) मप्र समेत चार को मामले में नोटिस जारी किए हैं।

जस्टिस एसएल कोचर और जस्टिस शुभदा वाघमारे की युगलपीठ में मंगलवार को पेश इस याचिका में मेंदोलो की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट एके सेठी और एडवोकेट राहुल सेठी ने जबकि सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता गिरीश देसाई उपस्थित हुए। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 में दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि विशेष न्यायाधीश को लोकायुक्त को जांच के आदेश देने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता ने लोकायुक्त एसपी इंदौर और सुरेश सेठ को भी प्रतिवादी बनाया है। डीजीपी और लोकायुक्त व लोकायुक्त एसपी के नोटिस की एडवांस कॉपी एडवोकेट्स को दे दी गई, जबकि सुरेश सेठ को तीन दिन में नोटिस देने के आदेश दिए गए। नोटिस तामिल होने के 15 दिन बाद कोर्ट में अगली सुनवाई होगी। 



6 अगस्त को पेश होगी जांच रिपोर्ट

इधर, शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी को अर्जी देकर आरोप लगाया था कि जमीन की कीमत 100 करोड़ रुपए है आर इसके लेन-देन में भ्रष्टाचार हुआ है। इसी पर विशेष न्यायाधीश ने 6 अप्रैल 2010 को लोकायुक्त एसपी इंदौर को आदेश दिए थे कि वे तीन माह में मामले में तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय, नंदानगर साख संस्था के अध्यक्ष रमेश मेंदोला और धनलक्ष्मी केमिकल्स के भागीदार विजय कोठारी व मनीष संघवी की भूमिका की जांच करके रिपोर्ट पेश करें। तीन माह बाद 6 जुलाई को विशेष न्यायालय में एसपी वीरेंद्रसिंह उपस्थित हुए और उन्होंने बताया कि नगरीय प्रशासन मंत्रालय समेत संबंधित विभाग जांच से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध नहीं करवा रहे हैं। उन्होंने जांच के लिए कोर्ट से चार महीने का समय मांगा। कोर्ट ने मांग नामंजूर करके एक माह का समय दिया। अब 6 अगस्त को विशेष न्यायाधीश के समक्ष रिपोर्ट पेश हो

News in Patrika on 4th August 2010

पार्किंग की नहीं हो सकती कंपाउंडिंग

- अभिलाषा अपार्टमेंट मामले में हाईकोर्ट का अहम फैसला
- 30 दिन में तोड़कर रहवासियों को राहत देने के आदेश




पार्किंग में अवैध निर्माण को वैध करने के लिए अपनाए जाने वाले कंपाउंडिंग के तरीके को इंदौर हाईकोर्ट ने अवैधानिक माना है। एक बिल्डिंग से जुड़े फैसले में कोर्ट ने कहा है नगरनिगम पार्किंग की जमीन की कंपाउंडिंग नहीं की जा सकती है, क्योंकि पार्किंग रहवासियों का अधिकार है। कोर्ट ने निगम को आदेश दिया है कि वह रहवासियों को 30 दिन में पार्किंग उपलब्ध कराए।

छप्पन दुकान के पास मौजूद अभिलाषा अपार्टमेंट रहवासी संघ की याचिका पर जस्टिस एससी शर्मा ने यह अहम फैसला सुनाया। रहवासी संघ के एडवोकेट सीताराम सराफ ने बताया अभिलाषा अपार्टमेंट की तल मंजिल पर स्वीकृत नक्शे के मुताबिक कल्पतरू बिल्डर को कवर्ड पार्किंग दी जाना थी, परंतु बिल्डर ने वहां गोडाउन बना लिए। इतना ही नहीं 20 हजार रुपए फीस देकर पार्किंग की कंपाउंडिंग भी करवा ली। बाद में जब शिकायत हुई तो बिल्डर ने एमओएस की खुली जमीन पर शेड बनाकर उसे पार्किंग बता दिया। कोर्ट ने माना कि न तो पार्किंग के निर्माण की कंपाउंडिंग की जा सकती है और न ही एमओएस पर शेड बनाया जा सकता है।

3000 वर्ग फीट पर अवैध गोदाम
कोर्ट ने नगरनिगम को आदेश दिया है कि वह 30 दिन में पार्किंग का अवैध हिस्सा तोड़कर रहवासियों को पार्किंग उपलब्ध कराए। बिल्डर ने तीन हजार वर्गफीट जमीन पर गोदाम बना रखा है।

याचिकाकर्ता को लौटाएं 10 हजार रुपए
कोर्ट ने आदेश दिया है कि बिल्डर रहवासी संघ को 10 हजार रुपए लौटाए। ये राशि केस लडऩे पर खर्च हुई है। बिल्डर का नाम राजेश रंजीतमल गादिया और राजकुंवरबाई रंजीतमल गादिया है।

आप भी कर सकते हैं अपील
एडवोकेट विनय सराफ ने बताया हाईकोर्ट का यह फैसला नगरनिगम के लिए आधार बन गया है। निगम चाहे तो इसके आधार पर उन सभी पार्किंग स्थानों को आजाद करवाना जा सकता है, जिनपर कंपाउंडिंग करवाकर वाणिज्यिक उपयोग शुरू हो गया है। जिन रहवासियों की पार्किंग हड़प ली गई है, वे कोर्ट के फैसले के आधार पर अपील भी कर सकते हैं।


फैसले में इन फैसलों का हवाला
- कमिश्नर कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड विरुद्ध सी. मुद्दैह (2007)
- केआर शेनॉय विरूद्ध उडिपी मुनसीपाल्टी (1974)
- महेंद्र बाबुराव महाडिग विरूद्ध सुभाष कृष्ण कानिटकर (2005)
- प्रियंका इस्टेट्स इंटर नेशनल लिमि. विरूद्ध स्टेट ऑफ आसाम (2010)


इनकी हो सकती कंपाउंडिंग
कवरेज- अधिकतम 15 फीसदी
एफएआर- अधिकतम 10 फीसदी
सेटबेक - ढाई फीट तक
ओपन स्पेस- अधिकतम 10 फीसदी
ऊंचाई का - 1.5 प्रतिशत

... और इसकी कभी नहीं
- बिल्डिंग का प्रयोग
- अतिरिक्त फ्लोर
- पार्किंग एरिया
- आम रास्ता


News in Patrika on 4th August 2010

सिरकाट कर लाओगे तो भी कर दूंगा मदद

उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बोल



उद्योग मंत्री कैलाश विजयगर्वीय ने भाजपा कार्यकर्ताओं का संदेश दिया है कि सिर काटकर लाने पर भी वे कार्यकर्ताओं की मदद कर देंगे, परंतु पेड़ काटकर लाए तो सजा मिलेगी। उन्होंने खुद ही अपने इस संदेश को जनता के बीच में हंसते-हंसते सुनाया।

विजयवर्गीय रविवार को महू विधानसभा क्षेत्र के आशापुरा गांव में वन मंत्री सरताज सिंह के साथ पौधारोपण कार्यक्रम में बतौर अतिथि शामिल हुए। उक्त कथन की जानकारी देते हुए उन्होंने मंच से ही कहा यह बात मैंने पिछले दिनों कार्यकर्ताओं की एक बैठक में भी कही थी।

कैमरे बंद करवाए
विजयवर्गीय ने मौजूद मीडियाकर्मियों की ओर इशारा करके कहा, अपने कैमरे बंद कर लो, क्योंकि अब मैं जो बोलूंगा वह छापना या दिखाना नहीं है। वैसे भी मुझे मालूम है महू के पत्रकार काफी समझदार हैं।

खाली जमीन देख मुंह में आता है पानी
जमीन विवादों से घिरे कैलाश ने यह भी कह डाला कि सरकार की खाली पड़ी जमीनों के देखकर हमारे मुंह में पानी आता हैं। बाद में थोड़ा संभलकर बोले खाली पड़ी जमीन पर लोग कब्जा कर लेते है, इससे अच्छा है उन पर पौधारोपण कर दिया जाए।

भाजपा को ये क्या हो गया

नितिन गडकरी, राष्टरीय अध्यक्ष
13 मई - बड़े दहाड़ते थे शेर जैसे, बाद में कुत्तों की तरह सोनिया और कांग्रेस के तलवे चाटने लगे। (मुलायम और लालू यादव के लिए)

4 जुलाई - फांसी का मुद्दा क्यों लटका रखा है, क्या अफजल गुरु कांग्रेस का दामाद है ?

12 जुलाई -दिग्विजय आजमगढ़ क्यों जाते हैं, क्या वे औरंगजेब की औलाद हैं।

प्रभात झा, प्रदेश अध्यक्ष
16 जुलाई-  मुझे चिंता होने लगी है कि कहीं दिग्विजय सिंह नक्सलियों के एजेंट तो नहीं।

29 जुलाई- समाज से कोर्ट चलता है, कोर्ट से समाज नहीं। कल से कोर्ट कह देगा तो क्या दीपावली भी नहीं मनाएंगे? क्या मिठाई नहीं खाएंगे? रोक के बाद पटाखे तो फोड़े जाते हैं। इंदौर में क्या धारा 370 लगी है ...जम्मू-कश्मीर है क्या? 

31 जुलाई - बीएसएफ और सीआरपीएफ, सब डकैत हो गए हैं। ये लोग हथियारों और बंदूकों की तस्करी कर रहे हैं और नक्सलियों को बेच रहे हैं।


पत्रिका में २ अगस्त २०१० को प्रकाशित