मंगलवार, 28 सितंबर 2010

झूठ की बुनियाद पर हुआ पीथमपुर में कचरे का फैसला

- गुजरात सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में रामकी कंपनी ने दी गलत जानकारी

भोपाल में रखे यूनियन कार्बाइड के कचरे को गुजरात के अंकलेश्वर के बजाए मध्यप्रदेश के पीथमपुर में लाए जाने के फैसले की बुनियाद झूठी है। सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने जो हलफनामा पेश किया था, उसमें रामकी इनवारो इंजीनियर्स का एक पत्र लगाकर कर दावा किया गया था कि पीथमपुर में स्थापित प्लांट में कचरा भस्म करने की तमाम तकनीकी सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन असल में ऐसा नहीं था। उस वक्त न तो प्लांट शुरू हुआ था और न ही होने की तैयारी ही थी।

गुजरात सरकार की ओर से गुजरात प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारी आरसी तंबोली ने 13 अप्रैल 2009 को सुप्रीम कोर्ट हलफनामा पेश किया था। इसमें 15 जनवरी 2009 को गुजरात सरकार को रामकी इनवायरो द्वारा लिखा पत्र भी दिया गया। रामकी के वाइस प्रेसीडेंट डॉ. के. श्रीनिवास ने इसमें लिखा था कि पीथमपुर में लगे कंपनी का प्लांट फरवरी के दूसरे सप्ताह में पूरी तरह से शुरू हो जाएगा और हम गुजरात सरकार से हर महीने 300 मेट्रिक टन औद्योगिक कचरा लेकर उसे भस्म करना शुरू कर देंगे। असलियत यह है कि वर्तमान में भी यह प्लांट शुरू नहीं हुआ है, जबकि इसी को एक आधार बनाकर गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने हक में करवा लिया।


पीथमपुर में यूका कचरा जलाए जाने के विरोध की अगुवाई करने वाले संगठन लोकमैत्री का कहना है गुजरात सरकार ने बेहद चतुराई से यह फैसला करवाया है। वहां की सरकार ने अंकलेश्वर के भस्मक को कमजोर बताते हुए कहा है कि इसमें लीकेज है। यदि ऐसा है, तो वहां की सरकार उसे बंद क्यों नहीं कर रही है। साफ दिखता है कि यूका का कचरा टालने के लिए ही हलफनामा तैयार किया गया।

रामकी कंपनी का पत्र नहीं जाता, तो पीथमपुर में कचरा भस्म करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट फैसला ही नहीं सुनाता। 
- डॉ. गौतम कोठारी, लोकमैत्री संगठन

 पत्र डॉ. के. श्रीनिवास ने लिखा था और वे अब हमारी कंपनी में नहीं हैं। उन्होंने यह पत्र क्यों और किन परिस्थितियों में गुजरात सरकार को भेजा, यह तो वे ही जानते होंगे।
 अमित चौधरी, प्रभारी, रामकी सयंत्र, पीथमपुर


भस्मक बंद, कचरा भी नहीं
रामकी सयंत्र पर लगा भस्मक फिलहाल बंद है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ट्रायल रन के लिए कंपनी को अनुमति दी थी। दस दिन पहले ही ट्रायल रन समाप्त हुआ। इसके बाद प्लांट को फिर से शुरू करने के लिए बोर्ड से अनुमति की जरूरत है। भस्मक प्रबंधन ने बताया मई से अब तक 1700 मेट्रिक टन कचरा जलाया जा चुका है और फिलहाल कचरा भी मौजूद नहीं है।

ढाई महीने का ठंडा बस्ता
पीथमपुर में कचरा लाने का विरोध जब चरम पर पहुंचा तो 9 अगस्त को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने जारी किया था कि इंदौर के लोगों की सहमति के बगैर कचरा पीथमपुर में नहीं लाया जाएगा। उधर, 10 अगस्त को केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश ने पीथमपुर पहुंचकर लोगों से वादा किया था कि एक उ'च स्तरीय कमेटी बनेगी, जो अंतिम फैसला करेगी। न तो मुख्यमंत्री ने अब तक इंदौर के लोगों से चर्चा की है और न ही जयराम ने कमेटी की घोषणा।




 पत्रिका : २४ सितम्बर २०१०

दिलीप पाटीदार केस में फैसला सुरक्षित

- बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में उठी थी सीबीआई जांच की मांग 
- मालेगांव ब्लॉस्ट


मालेगांव ब्लॉस्ट मामले में करीब पौने दो वर्ष से रहस्यमय तरीके से लापता दिलीप पाटीदार को लेकर चल रही बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। याचिका में मांग की गई है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से केस की जांच करवाई जाए।

11 नवंबर 2008 को मुंबई एटीएस का दल खजराना क्षेत्र की शांतिविहार कॉलोनी से दिलीप पाटीदार को मालेगांव ब्लास्ट मामले में ले गया था। एटीएस का कहना है कि पाटीदार को 18 नवंबर को छोड़ दिया गया, लेकिन इसके बाद से वह आज तक लापता है। दिलीप के भाई रामस्वरूप ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई, जिस पर सुनवाई चल रही थी। पाटीदार की एडवोकेट रितु भार्गव और भुवन देशमुख और एटीएस एडवोकेट वी. वगाड़े गुरुवार को जस्टिस शांतनु केमकर और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ के समक्ष उपस्थित हुए।

एडवोकेट रितु भार्गव ने बताया कोर्ट से सीबीआई जांच की मांग की गई थी, क्योंकि रा'य सरकार और मुंबई एटीएस इस मामले में अब तक कोई परिणाम नहीं दे सकी है। इसी पर कोर्ट ने सहायक सोलिसिटर जनरल विवेक शरण के जरिए केस की फाइल सीबीआई को भेजी थी। पिछली सुनवाई पर सीबीआई ने इस मामले में जांच करने से अनि'छा जाहिर की थी। 

पत्रिका : २४ सितम्बर २०१०

विनय नगर की सड़क को तीन महीने में खाली करें

- मप्र हाईकोर्ट ने नगरनिगम को दिए आदेश
- 40 फीट चौड़ी सड़क पर पास कर दिए थे नक्शे
 

विनय नगर के पार्क के पास की 40 फीट चौड़ी सड़क पर निर्माणाधीन दो मकानों को ढांचे को तोडऩे के आदेश हाईकोर्ट इंदौर के जस्टिस एससी शर्मा ने दिए हैं। कोर्ट ने माना है कि हितेश पटेल और हर्षा वाधवानी ने गलत तरीके का इस्तेमाल करके टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से नक्शे पास करवा लिए थे।

याचिककर्ता महेश नारंग, अशोक कुकरेजा एवं अन्य की याचिका पर हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया। उनके एडवोकेट एके सेठी और राहुल सेठी ने बताया दोनों कब्जेदारों ने क्रमश: 30 अगस्त 2007 एवं 25 जनवरी 2008 को मकान निर्माण का नक्शा पास करवा लिया था, जबकि मूल नक्शे में वहां सड़क होना थी। यह कॉलोनी विनयनगर गृह निर्माण संस्था द्वारा काटी गई थी। नगरनिगम की ओर से आनंद अग्रवाल ने पैरवी की।

पत्रिका : २४ सितम्बर २०१०

कुपोषित ब'चों को अंडे नहीं परोसेगी सरकार

कुपोषित ब'चों को अंडे नहीं परोसेगी सरकार
- शाकाहार को बढ़ावा देने के खातिर उठाया कदम
 


शाकाहार को बढ़ावा देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने फैसला किया है कि कुपोषित ब'चों को तंदुरस्त करने के लिए उन्हें अंडे नहीं परोसे जाएंगे। दूध, आलू, केले, सोया दूध जैसे खाने से ही उन्हें सेहतमंद बनाया जाएगा। महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा तैयार अटल बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन की मेनू लिस्ट में इस संबंध में संशोधन किया जाएगा।

यह जानकारी स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने गोयल नगर दिगंबर जैन समाज के क्षमावाणी समारोह में दी। हार्डिया कुछ दिन पहले मंदिर में दर्शन करने आए थे, तब समाज की ओर से दिलीप पाटनी और ब्रह्मचारी सनत भैया ने अंडा परोसने वाली इस योजना की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया था। गुरुवार को हार्डिया ने बताया मुख्यमंत्री से इस संबंध में चर्चा हो चुकी है और पोषण सूची से अंडे का हटाने का निर्णय हो चुका है। 

जैन समाज से फूटा था विरोध
अंडा परोसने को लेकर प्रदेशभर के जैन समाज से भी विरोध के स्वर उठे थे। बुदेंलखंड के जैन धर्मालंबियों ने इसे ब'चों को मांसाहार के लिए प्रेरित करने का कदम बताया था।


हाईरिस्क क्षेत्रों के लिए थी योजना
2 अक्टूबर से पूरे राज्य में शुरू होने वाले अटल बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन शुरू होगा। इसमें 142 विकासखंडों को हाईरिस्क क्षेत्र माना गया है। इनके लिए विशेष पैकेज घोषित किया गया है। यहां के ब'चों को तीन वक्त का भोजन दिया जाना प्रस्तावित है। इसी में तीसरे भोजन के मेनू में अंडे का जिक्र किया गया था।



मध्यप्रदेश पर कुपोषण के दाग
- एक हजार में से 70 शिशुओं की मौत होती है।
- इनमें से 45 नवजात होते हैं।
- पांच वर्ष तक के ब'चों में से 60 फीसदी का वजन औसत से कम है।
- तीन से छह महीने तक ब'चों में से 40 फीसदी का ही टीकाकरण हो पाता है।
- सबसे अधिक कुपोषण आदिवासियों और दलित ब'चों में पाया गया है।
- कुपोषण में मध्यप्रदेश का देश में दूसरा स्थान है।
(नेशनल फेमेली हेल्थ सर्वे -3 के मुताबिक)

पत्रिका :  २४ सितम्बर २०१० 

हुकुमचंद मिल पर अब 27 अक्टूबर को सुनवाई

हुकुमचंद मिल के मजदूरों से जुड़ी याचिका पर अब 27 अक्टूबर को सुनवाई होगी। बुधवार को इस याचिका पर राज्य सरकार को जवाब पेश करना था। एडवोकेट गिरीश पटवद्र्धन ने बताया सरकार की ओर से जवाब नहीं आने के कारण अगली तारीख लगाई गई है।


पत्रिका : २३ सितम्बर २०१०

सरकार ने रोडवेज का क्या विकल्प तैयार किया?

- एमपीएसआरटीसी बंद करने के फैसले के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट से नोटिस जारी
- सरकार-निगम को पांच दिन में देना होगा जवाब

मध्यप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (एमपीएसआरटीसी) को 30 सितंबर से पूरी तरह बंद करने के राज्य सरकार के फैसले के विरूद्ध हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में बुधवार को एक जनहित याचिका मंजूर कर ली गई। जस्टिस शांतनु केमकर और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ ने सरकार और निगम से पूछा है कि बसें बंद करने के विकल्प में क्या इंतजाम किए गए हैं? सरकार को पांच दिन में जवाब देना होगा।

धार जिले के कुक्षी के निवासी नारायण भायल ने यह याचिका दायर की। उनकी पैरवी करते हुए वरिष्ठ एडवोकेट चंपालाल यादव ने कोर्ट को बताया खंडवा, खरगोन, बड़वानी से हजारों लोग हर दिन गुजरात के दाहोद, गोदरा जाते-आते हैं। एमपीएसआरटीएस के बंद होने के बाद गुजरात व मध्यप्रदेश सरकार के बीच के अनुबंध के चलते वहां मध्यप्रदेश की बसों का प्रवेश बंद हो जाएगा। लोक परिवहन उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन इस फैसले से जनता का यह मौलिक अधिकार छिन रहा है। सरकार के फैसले से चिकित्सा, व्यापार, मजदूरी और पारिवारिक कार्यों के लिए गुजरात जाने वाले लोगों के रास्ते रूक जाएंगे। कोर्ट ने इन तर्कों के आधार पर अतिरिक्त महाधिवक्ता एलएन सोनी और एडवोकेट गिरीश पटवर्धन को क्रमश: राज्य सरकार और एमपीएसआरटीएस को आदेश दिया कि 27 सितंबर तक जवाब पेश करें। 


 पत्रिका : २३ सितम्बर २०१०

फिर से भेजो ड्रग ट्रायल के दस्तावेज

- यूएसएफडीए के संज्ञान के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग का मेडिकल कॉलेज को फरमान

यूनाइटेड स्टेट्स के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा मध्यप्रदेश में हुए ड्रग ट्रायल पर संज्ञान लिए जाने के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग ने नए सिरे से पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है। विभाग ने सभी मेडिकल कॉलेजों से फिर से वे दस्तावेज भोपाल बुलवाए हैं, जिनमें ड्रग ट्रायल की जानकारी छुपी है। कॉलेज में इसको लेकर भारी गहमागहमी बनी हुई है।

बहुराष्टï्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) पर यूएसएफडीए ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा है। विभागीय सूत्रों का कहना है पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी कर ली गई थी, परंतु अब दृश्य बदल गया है। विभाग ने विधानसभा सवालों के जवाब के लिए तैयार दस्तावेजों को एक बार फिर से खंगालना शुरू किया है।

पत्रिका : २२ सितम्बर २०१०

लोकायुक्त पुलिस ने ओढ़ा समयसीमा का कवच

- सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ की जमीन के घोटाले का केस 
- कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर विशेष न्यायालय में पेश नहीं की अंतिम रिपोर्ट
- शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लगाया लोकायुक्त-कैलाश की मिलीभगत का आरोप


परदेशीपुरा चौराहा स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन में हुए 100 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच कर रही लोकायुक्त पुलिस ने 'समयसीमाÓ का कवच धारण कर लिया है। इस बहुचर्चित मामले में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को लेकर मंगलवार को अंतिम जांच रिपोर्ट पेश करने के बजाए लोकायुक्त पुलिस ने विशेष न्यायाधीश के आदेश को ही चुनौती दे डाली। पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के आठ न्यायिक दृष्टांतों का जिक्र करते हुए कहा कि इस कोर्ट को जांच की समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं है। हम जब तक चाहेंगे, जांच करेंगे। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने इसे लोकायुक्त व कैलाश की मिलीभगत बताया। लोकायुक्त पुलिस के तर्क पर बहस के लिए कोर्ट ने 6 अक्टूबर की तारीख तय की। ï

इस केस में पुलिस ने 5 अगस्त को मेंदोला समेत 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक षडय़ंत्र का केस दर्ज किया था। विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने 6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया था कि 21 सितंबर तक अंतिम जांच रिपोर्ट पेश कर बताएं कि क्या आरोपी क्रमांक दो (तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय) की इस मामले में क्या भूमिका है। मंगलवार प्रात: 11.20 बजे लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने कोर्ट के समक्ष चार पेज का एक जवाब पेश किया। इसमें कहा गया कि घटना अवधि 20 वर्ष की है और केस की विवेचना के लिए विभिन्न विभागों से मूल दस्तावेज जब्त या प्राप्त किए जाना है। इसमें अधिक समय लगेगा। दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। इस पर कोर्ट में करीब एक घंटेतक कदम और सेठ के बीच जिरह हुई।
सुरेश सेठ को नहीं सुना जाए
जवाब से यह भी स्पष्ट होता है कि लोकायुक्त पुलिस शिकायतकर्ता सुरेश सेठ के तर्कों के आगे निरुत्तर हो रही है। जवाब के पेज चार पर लिखा गया है एफआईआर रजिस्टर होने के बाद जब तक अंतिम जांच रिपोर्ट पेश नहीं हो जाती, तब तक केस कोर्ट व पुलिस के बीच ही रहता है। परिवादी इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले सकता है। परिवादी सेठ को कोर्ट के समक्ष उपस्थिति होने का अधिकार भी नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने इस जवाब को तवज्जो नहीं देते हुए परिवादी सुरेश सेठ के आग्रह को मंजूर किया और 15 दिन बाद सुनवाई की तारीख नियत कर दी। 

जानें...कितने सटीक हैं लोकायुक्त पुलिस के तर्क

पत्रिका पड़ताल

तर्क एक
घटना अवधि 20 वर्ष की है और इसके लिए विभिन्न विभागों से दस्तावेज जुटाए जाना है। इसमें वक्त लगेगा।
वास्तविकता
5 अगस्त को दर्ज एफआईआर के पेज चार पर लोकायुक्त एसपी वीरेंद्रसिंह ने लिखा है मेरे द्वारा नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग मंत्रालय भोपाल से तीन एकड़ जमीन से जुड़ी पत्रावली, नोटशीट की प्रमाणित जानकारी, नगरनिगम इंदौर से भूमि की लीज डीड की मूल नस्ती, भूल लीज डीड, परिवाद से जुड़े एमआईसी संकल्प, प्रस्तावों की प्रमाणित जानकारी, संबंधित नोटशीट्स एवं पत्रावली की जानकारी जुटाई जा चुकी है। एसपी ने रजिस्ट्रार इंदौर, सहकारिता विभाग इंदौर, नंदानगर साख संस्था इंदौर से दस्तावेज जुटाने का जिक्र भी किया है।
उठता सवाल
यदि ये दस्तावेज जुटा लिए गए हैं, तो फिर लोकायुक्त पुलिस और क्या कागज लेना चाहती है?

तर्क दो
विभिन्न साक्षियों के विस्तृत कथन लिपिबद्ध किए जाना है। इसमें अधिक समय लगना स्वाभाविक है।
वास्तविकता
5 अगस्त को दर्ज एफआईआर के पेज पांच पर लोकायुक्त एसपी वीरेंद्रसिंह ने लिखा है शिकायतकर्ता सुरेश सेठ, तत्कालीन निगमायुक्त संजय शुक्ल, विनोद शर्मा, आकाश त्रिपाठी, निगमायुक्त सीबी सिंह, तत्कालीन भवन अधिकारी ज्ञानेंद्रसिंह जादौन, तत्कालीन निगम सचिव बंशीलाल जोशी, जिला पंजीयक मोहनलाल श्रीवास्तव, भू-अभिलेख अधीक्षक शिवप्रसाद मंडरा, टीएंडसीपी विजय सावलकर,  नंदानगर साख संस्था मैनेजर प्रवीण कंपलीकर, सहकारिता उपायुक्त महेंद्र दीक्षित, उप सचिव मप्र शासन नरेश पाल, निगम सचिव रणबीरकुमार और धनलक्ष्मी केमिकल्स के नाम पर नक्शा पास करवाने वाले मनीष तांबी के बयान लिपिबद्ध किए जा चुके हैं।
उठता सवाल
वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर धनलक्ष्मी केमिकल्स व नंदानगर साख संस्था से जुड़े लोगों तक बयान लिए जा चुके हैं, तो फिर ऐसे कौन लोग शेष रह गए हैं, जिनसे लोकायुक्त पुलिस बात करना चाहती है?

तर्क तीन
दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान की समय सीमा तय करने का जिक्र नहीं किया गया है।
वास्तविकता
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने अंतिम जांच रिपोर्ट करने के लिए स्वयं कोर्ट से चार महीने का समय मांगा था। इस पर परिवादी सुरेश सेठ ने यह कहकर आपत्ति उठाई थी कि तब तक तो विशेष न्यायाधीश का तबादला करवा दिया जाएगा। इतना अधिक समय देने की आवश्यकता नहीं है। बाद में कदम ने ही कोर्ट में मंजूर कर लिया था कि डेढ़ महीने में हम अंतिम रिपोर्ट सौंप देंगे। कदम के साथ उस दिन लोकायुक्त डीएसपी अशोक सोलंकी भी कोर्ट में मौजूद थे।
उठता सवाल
क्या विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम को उस दिन यह बात ध्यान में नहीं आई कि दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान की समय सीमा तय करने जिक्र नहीं किया गया है?

तर्क चार
एफआईआर दर्ज होने के बाद अनुसंधान की प्रक्रिया में परिवादी हिस्सा नहीं ले सकता है।
वास्तविकता
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम और डीएसपी अशोक सोलंकी ने कोर्ट को बताया था कि जो एफआईआर दर्ज की गई है, वह अधूरी है। आरोपी क्रमांक दो (कैलाश विजयवर्गीय) की भूमिका की पड़ताल के लिए अगली तारीख नियत कर दी जाए।
उठता सवाल 
प्रारंभिक जांच में जब एक आरोपी की भूमिका को लेकर पड़ताल ही नहीं की गई तो परिवादी को प्रक्रिया से दूर करने की कोशिश करना कितना न्यायोचित है?

तर्क पांच
जिन लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है, उनके सुसंगत साक्ष्य का संकलन एवं परीक्षण करने में अधिक समय लगेगा।
वास्तविकता
शासन को करीब पौने तीन करोड़ रुपए की चपत लगाने वाले जिन 17 लोगों के खिलाफ डेढ़ माह पहले एफआईआर दर्ज की थी, उन्हें लोकायुक्त पुलिस ने आज तक नोटिस भी नहीं भेजा है। आरोपी बनाए गए सिटी इंजीनियर हंसकुमार जैन, रिटायर्ड भवन अधिकारी अशोक बैजल और रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री नरेंद्र सुराणा ने 'पत्रिकाÓ को बताया है कि अब तक तो उन्हें यह भी पता नहीं लगा है कि उन पर आरोप क्या है?
उठता सवाल
लोकायुक्त पुलिस ने जांच को आगे ही नहीं बढ़ाया है, तो यह कैसे मान लिया जाए कि इस केस को अंजाम तक पहुंचाने में वह 'ड्यूटीÓ निभा रही है? 

क्या संभागायुक्त-आईजी को नहीं दिखा
सवा करोड़ का खर्चा
कैलाश के कार्यक्रम में मौजूद होने पर सुरेश सेठ ने विशेष न्यायाधीश के सामने उठाया सवाल नंदानगर में ताबड़तोड़ बांट दी गई थीं 20 हजार साडिय़ां

रविवार को गणेशोत्सव के दौरान नंदानगर गोल स्कूल में हुए महाआरती आयोजन में संभागायुक्त बसंतप्रताप सिंह और आईजी संजय राणा की मौजूदगी मंगलवार को सुगनीदेवी कॉलेज परिसर के जमीन घोटाले केस से जुड़ गई। कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी के समक्ष कहा कि उस आयोजन में सवा करोड़ रुपया खर्च हो रहा है और मंत्री कैलाश विजयवर्गीय व विधायक रमेश मेंदोला की मौजूदगी में ताबड़तोड़ महिलाओं को 20 हजार साडिय़ां बांट दी गई। अवकाश होने के बावजूद रविवार को अचानक ये साडिय़ां कहां से आ गई? क्या दोनों वरिष्ठ अधिकारियों को यह सबकुछ नहीं दिखा? 

सुरेश सेठ ने मीडिया से चर्चा में बताया कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जाहिर किया है। दोनों अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए ही उस कार्यक्रम में बुलाया गया था। दोनों के सामने ही कैलाश-मेंदोला ने कहा यहां इतनी महिलाएं मौजूद हैं, इन्हें खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। सभी को उपहार में साडिय़ां दी जाना चाहिए। इतना कहते ही पता नहीं कहां से साडिय़ों के बक्से आ गए और महिलाओं में इन्हें बांट दिया गया। दरअसल, साडिय़ां पहले से ही वहां मौजूद थीं। इतने वरिष्ठ अधिकारियों को ऐसे कार्यक्रमों से बचना चाहिए क्योंकि इससे आम लोगों का उनपर से भरोसा उठता है। बड़े अफसर भी मूकदर्शक बने रहेंगे तो भ्रष्ट ताकतों के खिलाफ आवाज उठाने वाले मेरे जैसे लोग आखिर कहां जाकर पनाह लेंगे? 

हमारी मौजूदगी में नहीं बंटे उपहार
कार्यक्रम में बुलाया था, इसलिए गए। मैं और आईजी दोनों ही साथ में थे, परंतु कुछ ही देर में वहां से चले आए थे। हमारी मौजूदगी में वहां कोई उपहार नहीं बांटे गए। संभवत: वहां वीडियो शूटिंग भी हुई है। उसके फुटेज भी देखे जा सकते हैं।
- बसंतप्रताप सिंह, संभागायुक्त

रिपोर्टिंग से कोर्ट हैरान
केस की सुनवाई के दौरान विशेष न्यायाधीश ने मीडिया के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया। बाद में जिला कोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष सुरेंद्र वर्मा ने कोर्ट से मीडियाकर्मियों को सुनवाई में मौजूद रहने का आग्रह किया। कोर्ट ने इसे मंजूर करते हुए मीडियाकर्मियों को बताया यहां की न्यायिक प्रक्रिया को एक अखबार ने ('पत्रिकाÓ नहीं) बेहद गलत तरीके से रिपोर्ट किया। यहां तक लिख दिया कि बॉबी छाबड़ा ने कोर्ट में बहस की, जबकि वास्तव में ऐसा हुआ ही नहीं था। इससे जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति भरोसा टूटता है। 

पत्रिका : २२ सितम्बर २०१०

100 करोड़ के घोटाले की अंतिम रिपोर्ट आज

कैलाश के खातिर लोकायुक्त पुलिस विशेष न्यायाधीश से मांग सकती है और मोहलत

सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रु. के जमीन घोटाले के मामले में मंगलवार को लोकायुक्त पुलिस द्वारा विशेष न्यायाधीश के समक्ष तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश की जाना है। कोर्ट द्वारा दिए गए 45 दिन के समय में जांच एजेंसी से क्या सबूत जुटाए हैं, इस पर सभी की निगाहें हैं। पांच महीने से चल रहे इस केस में लोकायुक्त पुलिस अब तक पर्याप्त समय मांग चुकी है। खासकर कैलाश के खिलाफ। संकेत है कि इस बार भी लोकायुक्त पुलिस द्वारा जांच और सबूतों के नाम पर समय मांगा जाएगा। 

कांग्रेस नेता सुरेश सेठ की शिकायत पर विशेष न्यायाधीश के आदेश से लोकायुक्त पुलिस ने 6 अप्रैल को मामले की जांच शुरू की थी। लोकायुक्त पुलिस ने 5 अगस्त को नंदानगर साख संस्था अध्यक्ष व विधायक रमेश मेंदोला, धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के नगीनचंद्र कोठारी, विजय कोठारी, मनीष संघवी और 13 अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार व आपराधिक षडय़ंत्र रचने का केस दर्ज किया था। पिछली सुनवाई (6 अगस्त) पर कोर्ट में सेठ ने लोकायुक्त पुलिस पर आरोप लगाया था कि जानबूझकर आरोपी क्रमांक दो (कैलाश विजयवर्गीय) को बचाने की कोशिश हो रही है। इस आरोपी के बारे में स्थिति स्पष्ट की जाना चाहिए। इसी पर कोर्ट ने लोकायुक्त पुलिस को 21 सितंबर तक केस में अंतिम रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था।  

क्या हो सकता है
  • जांच पूरी नहीं हो पाने के कारण लोकायुक्त पुलिस एक बार फिर समय मांग सकती है।
  • अगर जांच पूरी हो गई है तो गोपनीय रिपोर्ट पर निर्भर रहेगा कि कैलाश को दोषी पाकर एफआईआर दर्ज की गई या क्लीनचिट दी गई।
  • हो सकता है इस मामले में लोकायुक्त पुलिस द्वारा नए दिशा-निर्देश मांगे जा सके।


डेढ़ महीने में नोटिस भी नहीं भेजा
- छह अगस्त को एफआईआर दर्ज करके लोकायुक्त पुलिस ने ठंडे बस्ते में डाल दिया केस
सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रु. के जमीन घोटाले के केस में डेढ़ महीने पहले लोकायुक्त पुलिस ने विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपतियों नगीनचंद्र कोठारी, विजय कोठारी व मनीष संघवी तथा 13 अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार व आपाराधिक षडयंत्र रचने की एफआईआर तो दर्ज की थी। परंतु इस पर अगला कदम आज तक नहीं उठाया गया है। किसी भी आरोपी को अब तक न तो नोटिस दिया गया है और न ही कोई पूछताछ ही की गई।

लोकायुक्त पुलिस ने प्रारंभिक जांच में माना है कि तीन एकड़ जमीन के लिए धनलक्ष्मी केमिकल्स और नंदानगर साख संस्था के बीच हुए सौदे में 17 लोगों ने मिलकर षडय़ंत्र किया और इससे सरकार को करीब पौने तीन करोड़ रुपए की चपत लगी। इसी आधार पर 5 अगस्त को एफआईआर दर्ज की गई, परंतु इसके बाद चालान पेश करने को लेकर रवैया ठंडा ही है। अफसर चालान के लिए आरोपियों के खिलाफ जांच, दस्तावेज के नाम लंबी प्रक्रिया बताते हैं। सही मायने में शुरुआत हुई या नहीं। इसे लेकर 'पत्रिकाÓ ने जिन 17 लोगों पर केस दर्ज हुआ उनमें से कुछ से बात की तो पता चला कि इस मामले में अभी कोई गति ही नहीं है। 


मुझे अब तक न तो कोई नोटिस मिला है और न ही एफआईआर की प्रतिलिपि। जो भी मालूम हुआ है, वह अखबारों के जरिए ही पता चला है।
हंसकुमार जैन, सिटी इंजीनियर, निगम

कुछ माह पहले लोकायुक्त पुलिस ने बयान के लिए बुलाया था। केस दर्ज होने के बाद इस संबंध में मुझसे न कोई संपर्क किया और न ही किसी प्रकार का नोटिस मिला। मेरा तो यही सवाल है कि भला बताए कि मेरा दोष क्या है आरोप क्या है?
अशोक बैजल, रिटायर्ड भवन अधिकारी

सुगनीदेवी कॉलेज की जमीन गड़बड़ी में मुझ पर भी लोकायुक्त पुलिस ने केस दर्ज किया। यह मुझे मीडिया के माध्यम से ही पता चला। पूरा मामला क्या है मुझे ही नहीं पता। जो आरोप लगाए गए हैं वे विरोधभासी हैं। केस दर्ज होने के बाद लोकायुक्त पुलिस की ओर से मुझे न नोटिस मिला न संपर्क किया गया।
नरेंद्र सुराणा, रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री  



तारीख -पे- तारीख

अप्रैल
जांच के लिए तीन माह का समय दिया

कोर्ट ने 6 अप्रैल को तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय, नंदानगर साख सहकारी संस्था के अध्यक्ष रमेश मेंदोला, धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी व विजय कोठारी की भूमिका की जांच कर दोषी पाए जाने पर कार्रवाई को लेकर तीन महीने का समय दिया था। इसके लिए 6 जुलाई को रिपोर्ट पेश की जानी थी।
जुलाई
फिर समय मांग लिया

 6 जुलाई को लोकायुक्त पुलिस ने कोर्ट में बताया कि जांच पूरी नहीं हुई है। इसके लिए तीन माह समय मांगा गया। इस पर परिवादी व पूर्व मंत्री सुरेश सेठ ने आपत्ति ली व लोकायुक्त अफसरों पर राजनीतिक दबाव का आरोप लगाया। इसके बाद कोर्ट ने लोकायुक्त पुलिस को फिर एक माह का समय दिया गया।
अगस्त
मुख्य कर्ताधर्ता कैलाश का नाम छोड़ दिया

6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस ने नंदानगर साख सहकारी संस्था के अध्यक्ष व तत्कालीन एमआईसी सदस्य रमेश मेंदोला, धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार मनीष संघवी व विजय कोठारी सहित 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं में केस दर्ज करने के साथ रिपोर्ट विशेष न्यायाधीश के समक्ष पेश की थी। तब परिवादी व पूर्व मंत्री सुरेश सेठ ने तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय का नाम हटाने को लेकर आपत्ति ली थी और आरोप लगाए थे। तब अफसरों ने कहा था कि कैलाश के खिलाफ जांच चल रही है। इसके लिए कोर्ट से चार माह का समय मांगा था जिस पर डेढ़ माह का समय दिया गया था।
...और अब सितंबर
इस तरह करीब साढ़े पांच महीने से जांच चल रही है। कैलाश किन-किन आधारों पर दोषी हो सकते हैं इसे लेकर सेठ प्रमाणित साक्ष्यों का पुलिंदा पेश कर चुके हैं। उधर, लोकायुक्त पुलिस पूर्व में भी कई दस्तावेज जुटा चुकी है। 'पत्रिकाÓ कैलाश के खिलाफ आरोपों के बिंदुओं को सोमवार को उल्लेख कर चुकी है। ऐसे में अब सबकी नजरें कैलाश को लेकर लोकायुक्त की रिपोर्ट पर टिकी है।









पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

अनुमति लिए बगैर निकली जीतू की रैली

- जनहित याचिका की सुनवाई में प्रशासन ने मानी गलती
- गलती क्यों और किससे हुई, पर चार सप्ताह में देना होगा जवाब



प्रदेश भाजयुमो अध्यक्ष जीतू जिराती की स्वागत रैली के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सोमवार को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के जस्टिस एसएस केमकर एवं जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ में सुनवाई हुई। कोर्ट के समक्ष प्रशासन ने मंजूर किया है कि यह रैली बगैर अनुमति के निकाली गई। कोर्ट ने राज्य सरकार से इस संबंध में चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

याचिकाकर्ता नंदानगर निवासी संजय मित्तल की ओर से एडवोकेट पीके शुक्ला एवं एमएस चौहान ने पेश की है। चौहान ने 'पत्रिकाÓ को बताया केस में 13 लोगों को प्रतिवादी बनाया गया है। नगरनिगम और जिला प्रशासन के जवाब के आधार पर ही याचिका की अगली दिशा तय होगी।

यह है जनहित
- रैली के कारण सात घंटे तक इंदौर जाम में फंसा रहा।
- रैली में हथियारों का खुलकर उपयोग किया गया, जिससे जनता में दहशत फैली।
- रैली के लिए लगाए गए मंचों की बिजली चुराकर ली गई।
- रैली के लिए रास्ते रोक दिए गए, जिनपर जनता का अधिकार रहता है। 

 पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

काले कारनामों पर पोत दी कालिख

- एमजीएम मेडिकल कॉलेज में सूचना का अधिकार का माखौल
- कालिख पोत को जानकारी देने का संभवत: देश का पहला मामला


एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने सूचना का अधिकार कानून का माखौल उड़ाते हुए एकाउंट से जुड़े एक दस्तावेज पर जानबूझकर कालिख पोत दी। आवेदक को यह जानकारी देते हुए कालिख पोतने का जिक्र भी प्रबंधन ने किया है। सूचना का अधिकार का इस तरह से मजाक बनाने की संभवत: यह देश का पहला मामला है।

मामला बहुराष्टरीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवाओं के मरीज पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) से जुड़ा है। स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के सदस्य डॉ. आनंद राय ने कॉलेज के विभिन्न विभागों को ट्रायल के लिए मिले रुपए की ऑडिट रिपोर्ट मांगी थी। मेडिसिन विभाग ने वर्ष 2010 की ऑडिट रिपोर्ट तो दी लेकिन कई महत्वपूर्ण आंकड़ों पर कालिख पोत दी। ऑडिट रिपोर्ट सरिता मूंदड़ा ने तैयार की है। मूंदड़ा के पते और फोन नंबर पर भी कालिख पोती गई है। साथ ही कवरिंग पत्र में यह भी लिख दिया कि आवेदन द्वारा चाही गई जानकारी से यह संबंधित नहीं है, इसलिए इस पर काले रंग का प्रयोग करके इसे अपठनीय बनाया गया है। उधर, आवेदक का कहना है मैंने संपूर्ण ऑडिट रिपोर्ट मांगी थी, इसलिए उसका सीधा-सीधा मेरे आवेदन से संबंध है। ट्रायल के नाम पर हुए हेरफेर को छुपाने के लिए यह कार्रवाई की है। इसके विरूद्ध मैं संचालक चिकित्सा शिक्षा को अपील कर रहा हूं।

साढ़े 13 लाख का हिसाब छुपाया
ऑडिट रिपोर्ट में स्पष्ट है कि 31 मार्च 2010 तक मेडिसिन विभाग की साइंटिफिक कमेटी के खाते में 13.47 लाख रुपए आए हैं। कालिख से यह छुपा लिया गया है कि यह किन लोगों में बंटा।



जानकारी छुपाने वाले विभाग पर गंभीर आरोप

मेडिसिन विभाग के डॉ. अनिल भराणी, डॉ. आशीष पटेल, पूर्व एचओडी डॉ. अशोक वाजपेयी पर गंभीर आरोप है कि इन्होंने राज्य सरकार को जानकारी दिए बगैर ट्रायल करके अकूत संपत्ति जुटाई है। डॉ. भराणी और डॉ. पटेल ने तो एक ट्रायल के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज को स्पांसर कंपनी बताने तक का खेल कर दिया है।

'संभवत: यह देश का पहला मामला है, जब जानकारी पर कालीख पोती गई है। नि:संदेह जानकारी छुपाने की कोशिश के चलते यह कदम उठाया होगा। वही जानकारी छुपाई जा सकती है, जिससे शांति भंग होने या देश की गोपनीयता को खतरा हो। हम इसे राष्टï्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बनाएंगे।
- रोली शिवहरे, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता

'आवेदक को इसके विरूद्ध अपील करना चाहिए। साथ ही जिस दस्तावेज पर कालिख पोती गई है, उसके लिए फिर से आवेदन लगाना चाहिए।
- गौतम कोठारी, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता

पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

चौतरफा घिरे ड्रग ट्रायल वाले डॉक्टर

- विधानसभा, ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, मानवाधिकार आयोग, एमसीआई, आयकर के साथ ही यूएसएफडीए ने लिया संज्ञान

बहुराष्टरीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा का मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) करने वाले एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर चौतरफा घिर गए हैं। लोकायुक्त, आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो, मानवाधिकार आयोग, आयकर और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ ही यूनाइटेड स्टेट्स के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) ने इसे बेहद गंभीर मानकर जांच शुरू कर दी है। यूएसएफडीए ने इस संबंध में भारत सरकार को पत्र भेजा है। 

'पत्रिकाÓ ने ही ड्रग ट्रायल का खुलासा करके बताया था कि कॉलेज से जुड़े एमवाय अस्पताल और चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में आने वाले रोगियों को अंधेरे में रखकर ट्रायल किए जा रहे हैं। इसके बाद मामला विधानसभा पहुंचा और मध्यप्रदेश सरकार ने कानूनी बंदिश के लिए एक कमेटी का गठन किया। चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुïख सचिव आईएस दाणी की अध्यक्षता में बनी यह कमेटी ट्रायल को नियंत्रित  करने के लिए केंद्र सरकार और दूसरे राज्यों के कानूनी प्रावधानों की पड़ताल कर रही है।

 51 रोगियों पर दुष्प्रभाव
ड्रग ट्रायल से रा'य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 51 रोगियों पर साइड इफेक्ट हुए हैं। ये मरीज पिछले पांच वर्ष में कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में इलाज ले रहे थे। यह जानकारी विधानसभा से जारी एक दस्तावेज में उजागर हुई है। सरकार ने विधानसभा को बताया था कि पांच वर्ष में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ। इसमें 1644 ब'चे और 721 वयस्क हैं। जिन मरीजों पर दुष्प्रभाव हुए हैं, उनके नाम अभी जाहिर नहीं किए गए हैं। आशंका है कि इनमें से कुछ की मौत हो चुकी है।

मरीज की सेहत और डॉक्टर के एकाउंट पर नजर

यूएसएफडीए
'पत्रिकाÓ के खुलासे के बाद रशिया टीवी ने एमवाय अस्पताल में ट्रायल को लेकर एक खबर अंतरराष्टï्रीय स्तर पर प्रसारित की थी। रिपोर्ट में जिक्र था कि अमेरिकन कंपनियों की शह पर यहां गरीब मरीजों पर प्रयोग हो रहे हैं। इसी पर यूएसएफडीए ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मध्यप्रदेश में हुए ट्रायल का विस्तृत ब्यौरा मांगा है।

विधानसभा
विधायक पारस सकलेचा, प्रताप ग्रेवाल और प्रद्युम तोमर ने विधानसभा में पांच सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हो रहे ट्रायल को लेकर जो सवाल पूछे थे। उनके जवाब आज तक  सरकार ने नहीं दिए हैं। मानसून सत्र में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के दौरान चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने कहा था ट्रायल को काबू करने के लिए सरकार कानून बनाना चाहती है।

ईओडब्ल्यू
स्वास्थ्य सेवा समर्पण सेवा समिति अध्यक्ष डॉ. आनंद राजे की शिकायत पर भोपाल ईओडब्ल्यू ने डॉ. अपूर्व पुराणिक, डॉ. अनिल भराणी, डॉ. सलिल भार्गव, डॉ. अशोक वाजपेयी, डॉ. हेमंत जैन और डॉ. पुष्पा वर्मा के खिलाफ जांच शुरू कर रखी है। सभी डॉक्टरों के एकाउंट की जांच जारी है।

लोकायुक्त
ट्रायल करने वाले डॉक्टरों, एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन और एथिकल कमेटी के सदस्यों के खिलाफ लोकायुक्त में भी शिकायत हो चुकी है। आरोप है कि सभी ने मिलकर गरीब और अनपढ़ मरीजों की जान जोखिम में डाली है। लोकायुक्त ने शिकायतकर्ता राजेंद्र के. गुप्ता को 14 अक्टूबर को भोपाल बुलाया है।

मानवाधिकार आयोग
'पत्रिकाÓ में प्रकाशित खबरों पर संज्ञान लेकर  मप्र मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस डीएम धर्माधिकारी, सदस्य जस्टिस एके सक्सेना व जस्टिस वीके शुक्ल ने एमवायएच अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव को नोटिस भेजा है। आयोग जानना चाहता है कि मरीजों के अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा।

आयकर
'पत्रिकाÓ में प्रकाशित खबरों के आधार पर आयकर विभाग ने मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. एमके सारस्वत से उन सभी डॉक्टरों की आय का ब्यौरा मांगा है, जो ट्रायल में लिप्त हैं। विभाग की जिज्ञासा इसमें है कि कहीं डॉक्टरों ने बेनामी संपत्ति तो नहीं जुटा ली। 

एमसीआई

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को जो शिकायत भेजी गई थी, उसी पर मप्र के चिकित्सा शिक्षा संचालक से पूरा ब्यौरा मांगा गया है। सभी मेडिकल कॉलेज इसका जवाब तैयार कर रहे हैं। 'पत्रिकाÓ पूर्व में ही यह जानकारी प्रकाशित कर चुका है।








पत्रिका : २१ सितम्बर २०१०

कम नहीं होते 45 दिन

सुगनीदेवी जमीन घोटाला
- 100 करोड़ के जमीन घोटाले पर विधि विशेषज्ञों की राय
- विशेष न्यायाल में कल पेश होना है लोकायुक्त पुलिस की जांच रिपोर्ट



सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रुपए की तीन एकड़ जमीन घोटाले में 43 दिन पहले यानी 6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस को विशेष न्यायालय ने आदेश दिया था कि 45 दिन में मामले की अंतिम जांच रिपोर्ट सौंप दे। वह दिन कल है। विधि विशेषज्ञों से रायशुमारी में साफ होता है कि इस मामले में मौजूद दस्तावेज और 17 लोगों के खिलाफ की गई एफआईआर को देखकर लगता है कि धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज और नंदानगर साख संस्था के बीच हुए सौदे में आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। साथ ही, 'दूध का दूधÓ साबित करने के लिए लोकायुक्त जैसी सशक्त जांच एजेंसी को दी गई 45 दिन की समय सीमा पर्याप्त हैं।

पिछली सुनवाई को लोकायुक्त पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि मामले में विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति (नगीनचंद्र कोठारी, विजय कोठारी और मनीष संघवी) और 13 अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार एवं आपराधिक षडयंत्र का केस दर्ज कर लिया गया है। नेता, अफसर और उद्योगपतियों के गठजोड़ से सरकार को 2 करोड़ 70 लाख रुपए की चपत लगी है। कोर्ट में 29 पेज की एफआईआर भी पेश की गई थी। तब परिवादी सुरेश सेठ ने सवाल उठाया था कि आरोपी क्रमांक दो यानी विजयवर्गीय के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की गई। इस पर कोर्ट ने 45 दिन का समय दिया था। 'पत्रिकाÓ ने पूरे मामले को विधि विशेषज्ञों के समक्ष रखा।


मूल शिकायत में कैलाश की भूमिका को साबित करने वाले तथ्य

तथ्य एक
कैलाश विजयवर्गीय के नेतृत्व में रमेश मेंदोला ने 1999 में भाजपा प्रत्याशी के रुप में क्रमश: महापौर और पार्षद का चुनाव साथ-साथ लड़ा। विजयवर्गीय के नेतृत्व वाली एमआईसी में रमेश मेंदोला स्वास्थ्य प्रभारी के पद पर जनवरी 2000 से जनवरी 2005 तक आसीन रहे। दोनों ही समान राजनैतिक पृष्ठभूमि के होकर एक साथ राजनैतिक कार्य करते हैं। 

तथ्य दो
 कैलाश ने अपने राजनैतिक प्रभाव का दुरुपयोग करके रमेश मेंदोला की अध्यक्षता वाली नंदानगर साख संस्था को खुद के महापौर रहते जमीन हस्तांतरित करवाई। इस संस्था में विजयवर्गीय की पत्नी आशा विजयवर्गीय भी संचालक हैं।

तथ्य तीन
 कैलाश-रमेश ने वर्ष 2000 में पद संभालते ही आपराधिक षडयंत्र की शुरुआत कर दी थी। यही वजह है कि धनलक्ष्मी केमिकल्स कंपनी को इस भूमि पर बगैर भूमि उपयोग में बदलाव के 18 जून 2000 को मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाने की अनुमति दे दी गई।

तथ्य चार
घोटाले के दौरान कैलाश महापौर के साथ ही उसी क्षेत्र के विधायक भी थे, जहां घोटाला हुआ। लोकसेवक होने के नाते कैलाश व रमेश भलीभांति जानते थे कि मप्र शासन की अनुमति के बगैर न तो भूमि बेची जा सकती थी और न हस्तांतरित।

तथ्य पांच
 कैलाश ने एमआईसी अध्यक्ष के नाते 3 जून 2002 को उस संकल्प क्रमांक 289 की अनुशंसा कर दी जिसमें सुगनीदेवी जमीन को नंदानगर साख संस्था को देने का जिक्र था।

तथ्य छह
कैलाश-रमेश की मौन सहमति से धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार विजय कोठारी एवं मनीष संघवी को अनुचित लाभ देते हुए 10 हजार वर्गफीट जमीन उन्हें दे दी गई। शेष जमीन ही नंदानगर संस्था अध्यक्ष को दी गई।



एफआईआर में ही छुपे हैं कैलाश की भूमिका के आधार

  • पेज छह के दूसरे पैरा में लिखा गया है कि तत्कालीन भवन अधिकारी, नगर शिल्पज्ञ और संबंधित अन्य अफसरों व कर्मचारियों ने नियम विरूद्ध मनमाने ढंग से लीज राशि की गणना की, जिसके आधार पर विजयवर्गीय की अध्यक्षता वाली एमआईसी ने नंदानगर संस्था को जमीन सौंपने का संकल्प 286 और प्रस्ताव 58 पास कर दिया। विसंगति यह है कि अफसरों की गलती को महापौर, एमआईसी और निगमायुक्त ने हूबहू मान क्यों लिया? क्या महापौर जैसे जिम्मेदार पद पर आसिन होने के नाते उनका दायित्व नहीं था कि संकल्प व प्रस्ताव को नामंजूर कर दें? 
  • पेज आठ के तीसरे पैरा में लिखा कि नगर शिल्पज्ञ जगदीश डगांवकर ने 19 अप्रैल 2004 को एक ऑफिस नोट पर हस्ताक्षर किए। इसके आधार पर कैलाश की अध्यक्षता में एमआईसी ने 22 सितंबर 2004 को संकल्प क्रमांक 759 पास किया। इसी के जरिए जमीन अगले तीस वर्ष के लिए नंदानगर संस्था को दी गई। सवाल उठता है डगांवकर के ऑफिस नोट और संकल्प प्रस्ताव के बीच में पांच माह का अंतराल था। इतने समय में भी इस प्रस्ताव के दोषों की विजयवर्गीय ने अनदेखी क्यों की?
  • पेज नौ के पैरा दो में लिखा है कि धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार और पार्षद रमेश मेंदोला ने अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडयंत्र में संगमत होकर पद का दुरुपयोग किया और सरकार को 2.70 करोड़ रुपए की आर्थिक हानि पहुंचाई। पार्षद मेंदोला को इतनी ही राशि का अवैध आर्थिक लाभ हुआ। इसी से सवाल उपजता है क्या एक अकेला पार्षद अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडयंत्र में संगमत होकर इतना फायदा उठा सकता है? अपराध वर्ष 2000 से 04 के बीच हुआ है, क्या महापौर के सर्वाधिक नजदीकी पार्षद मेंदोला लगातार चार वर्ष तक अकेले ऐसा षडयंत्र रच सकता है? यदि ऐसा हुआ है तो विजयवर्गीय व एमआईसी ने अपनी अहम जिम्मेदारी को नहीं निभाया है। क्या यह पद के दुरुपयोग की श्रेणी में नहीं आता है?  

पत्रिका : २० सितम्बर २०१० 

मेंदोला के खिलाफ थाने में एक और शिकायत

- भारतीय साख संस्था के सदस्य को धमकाने का आरोप
- थाने में हुई शिकायत, पर टीआई को जानकारी ही नहीं



विधायक रमेश मेंदोला के खिलाफ संयोगितागंज पुलिस थाने में शिकायत दर्ज हुई है। फरियादी का आरोप है मेंदोला ने पद का दुरुपयोग करते हुए उसे धमकाकर एक ऐसे कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए जिससे उसे पौने सात लाख रुपए का नुकसान हो गया। उधर, पुलिस ने शिकायत की जानकारी नहीं होने की बात कहकर चौंका दिया है। सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ की जमीन के मामले में मेंदोला के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस भ्रष्टाचार का केस दर्ज कर चुकी है।

शिकायतकर्ता उदय जायसवाल भारतीय साख सहकारिता संस्था के सदस्य हैं। उनके मुताबिक ढाई महीने पहले नंदानगर साख सहकारिता संस्था अध्यक्ष रमेश मेंदोला, मैनेजर प्रवीण कंपलीकर, भारतीय साख संस्था अध्यक्ष महेश चौकसे कुछ अन्य लोगों के साथ उनके घर पर आए थे। भारतीय साख संस्था से मेरे 9 लाख रुपए लेना थे, लेकिन सभी ने दबाव बनाकर मुझसे सवा दो लाख रुपए लेने को कहा। इसके लिए उन्होंने मेरे और मेरी पत्नी से हस्ताक्षर भी करवा लिए। जायसवाल के वकील वाजिब खान ने बताया पुलिस को तत्काल मुकदमा दर्ज कर लेना चाहिए। मामले में पद का दुरुपयोग, धमकाने, झगड़ा करने की नीयत से घर पर जाने की धाराएं लगाई जा सकती है।

मुझे फिलहाल कोई जानकारी नहीं
संयोगितागंज टीआई अनिलसिंह राठौर ने बताया पुलिस के पास फिलहाल इस किस्म की कोई शिकायत नहीं आई है। मुझे फिलहाल इस केस की कोई जानकारी नहीं है। देर रात थाने पर फोन किया तो बताया गया यहां अब तक कोई शिकायत नहीं आई है। उधर, जायसवाल के पास थाने की रिसीव्ड कॉपी मौजूद है।

दोनों संस्थाओं को एक करने की कोशिश
भारतीय साख संस्था को नंदानगर खास संस्था खुद में शामिल करना चाहती है। यही वजह है कि दोनों संस्थाओं के संचालक मंडल मिलकर भारतीय संस्था के बकायेदारों से जैसे-तैसे 'निपटनाÓ चाहते हैं। दोनों संस्थाओं की हाल ही में हुई साधारण सभा में मर्जर के प्रस्ताव पास किए जा चुके हैं। हालांकि, सदस्यों की दिली इ'छा नहीं है कि दोनों संस्थाएं एक हो।

पत्रिका : १७ सितम्बर २०१०