मंगलवार, 7 सितंबर 2010

चुनाव याचिका में शपथ पत्र पर बयान मंजूर नहीं

- पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी के कथन को हाईकोर्ट में चुनौती
- अगली सुनवाई के बाद ही होंगे बयान 


पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी द्वारा रतलाम विधायक पारस सकलेचा के विरूद्ध दायर चुनाव याचिका पर मंगलवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें मुद्दा उठा कि चुनाव याचिका में शपथ पत्र पर बयान मंजूर नहीं किया जा सकता है। व्यक्तिगत रूप से ही संबंधित व्यक्ति को अपनी बात कहना चाहिए।

कोठारी ने अपनी याचिका के पक्ष में जस्टिस आईए श्रीवास्तव की कोर्ट में शपथ पत्र के जरिए बयान पेश किए थे। सकलेचा की ओर से पैरवी करने वाले वरिष्ठ एडवोकेट चंपालाल यादव ने तर्क दिया कि यह याचिका जिस कानून के तहत दायर की गई है उसमें लिखित बयान की अनुमति नहीं है। कोठारी के एडवोकेट सुबोध अभ्यंकर और वीरकुमार जैन ने इस पर बहस के लिए समय मांगा। अब 14 सितंबर को इस मसले पर सुनवाई होगी और 23 सितंबर को बयान।

भ्रष्टाचार के आरोप पर लगी है याचिका
यह चुनाव याचिका 7 जनवरी 2009 को दायर की गई थी। चुनाव आयोग से प्राप्त सीडी के आधार पर हिम्मत कोठारी ने इस याचिका में कहा है कि विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान सकलेचा ने उन पर भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगाए और इसी के चलते वे चुनाव हार गए। कोठारी ने बताया भाषणों में सकलेचा ने उनपर लाठी खरीदी में 32 करोड़, दानापानी में 25 करोड़, बंदूक 14 करोड़ के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। साथ ही यह भी कहा था कि मेरी बैंग्लूर में होटल है और मुंबई में कॉलोनी काटने वाला हूं। ये सभी आरोप मिथ्या थे क्योंकि अब तक इनके पक्ष में कोई बात कोर्ट में नहीं की गई है। 


पत्रिका : ०८ सितम्बर २०१०

पीके शुक्ला को विनय झेलावत की चुनौती

- हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव में जमा रंग

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव में मौजूदा अध्यक्ष पीके शुक्ला को वरिष्ठ एडवोकेट विनय झेलावत ने चुनौती दी है। मंगलवार को दोनों ने ही दावेदारी जताते हुए नामांकन दाखिल कर दिया। उधर, सचिव पद के लिए भी अब तक चार उम्मीदवार सामने आ गए हैं। शुक्रवार शाम छह बजे तक सभी पदों के दावेदारों की स्थिति  स्पष्ट हो जाएगी।

मंगलवार को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में नामाकंन प्रस्तुत होना शुरू हुए। निर्वाचन अधिकारी टीएन सिंह, सहायक निर्वाचन अधिकारी मुकेश परवाल व सुनील जैन ने बताया नौ पदों के लिए अब तक 20 उम्मीदवार सामने आए हैं। बुधवार शाम 4 से 5.30 बजे तक भी फार्म जमा किए जा सकेंगे। जांच गुरुवार को होगी और शुक्रवार नामवापसी का दिन है। मतदान के समय में फेरबदल किया गया है। साधारण सभा पहले 3.30 बजे होना थी, अब वह 2 बजे शुरू हो जाएगी। मतदान 3.30 बजे से 6.30 बजे तक होगा।

जमानत जब्त करने का प्रावधान
चुनाव की आचार संहिता भी घोषित कर दी गई है। पहली बार जमानत जब्त होने का प्रावधान शामिल किया गया है। चुनाव अधिकारी परवाल ने बताया कुल वैध मतदान का 10 प्रतिशत वोट हासिल नहीं करने वाले उम्मीदवार की 500 रुपए सुरक्षा निधि जब्त कर ली जाएगी। घर जाकर प्रचार करने की शिकायत सही पाए जाने पर उम्मीदवारी समाप्त करने के साथ ही उन्हें अगले वर्ष होने वाले चुनाव के लिए भी अयोग्य घोषित किया जाएगा।

इन्होंने जताई दावेदारी
अध्यक्ष : पीके शुक्ला, विनय झेलावत
उपाध्यक्ष: आशुतोष नीमगांवकर, साधना पाठक,
सचिव: अमिताभ उपाध्याय, आनंद पाठक, पवन जोशी, रविंद्रसिंह छाबड़ा
सहसचिव: गोपाल कचोलिया, पीयूष श्रीवास्तव, रितेश इनानी
कार्यकारिणी (पांच) : गिरीश उखाले, सत्यनारायण शर्मा, विजय दुबे, अनिल रामकर, सुभाष निगम, जीपी सिंह, रघुवीरसिंह, सपनेश जैन, शैलेंद्र दीक्षित.

 पत्रिका : ०८ सितम्बर २०१०

इंदौर के मास्टर प्लान पर अवमानना याचिका

- जवाब देने के लिए सरकार ने हाईकोर्ट से मांगा दो सप्ताह का समय
- विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति भी पेश


इंदौर हाईकोर्ट, जबलपुर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और फिर से इंदौर हाईकोर्ट। इंदौर विकास योजना 2021 यानी इंदौर मास्टर प्लान का सफर फिलहाल तो ऐसा ही है। सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका खारिज होने के साथ ही मप्र हाईकोर्ट के फैसले पर अमल नहीं करने के लिए इंदौर हाईकोर्ट में दायर अवमानना याचिका प्रभाव में आ गई। मंगलवार को इस पर सुनवाई हुई और सरकार को जवाब देने के लिए एक बार फिर से समय मांगना पड़ा। 

याचिकाकर्ता घनश्यामदास की ओर से दायर अवमानना याचिका में तर्क दिया गया है कि जबलपुर हाईकोर्ट की युगलपीठ ने 10 फरवरी 2010 को आवास एवं पर्यावरण विभाग को निर्देश दिए थे कि 90 दिन में आपत्तियों पर सुनवाई कर ली जाए, किंतु अब तक यह कार्य नहीं किया गया। जस्टिस शांतनु केमकर और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ में यह मामला रखा गया। याचिकाकर्ता के एडवोकेट अमित उपाध्याय ने 'पत्रिकाÓ को बताया आवास एवं पर्यावरण विभाग प्रमुख सचिव आलोक श्रीवास्तव, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की तत्कालीन निदेशक दिपाली रस्तोगी और इंदौर टीएनसीपी संयुक्त संचालक विजय सावलकर को परिवादी बनाया गया है।


सरकार को नहीं मिला, पर हाईकोर्ट में पेश हो गया आदेश
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसएलपी खारिज किए जाने सूचना भले ही सरकार को नहीं मिली हो, लेकिन इंदौर हाईकोर्ट के पटल पर यह प्रस्तुत कर दिया गया है। याचिका में सरकार की ओर से सबसे पहले तर्क दिया गया था कि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाई गई है। इस सुनवाई पर बताया गया कि अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति प्राप्त नहीं हुई है।

मास्टर प्लान का अदालती सफर

इंदौर हाईकोर्ट 
1 जनवरी 2008 को लागू मास्टर प्लान को 16 भूस्वामियों ने याचिका दायर करके चुनौती दी। जस्टिस विनय मित्तल ने 17 जून 2008 को फैसला दिया प्राकृतिक न्याय को ध्यान में रखकर याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों पर टीएंडसीपी सुनवाई करे।

जबलपुर हाईकोर्ट 
मप्र सरकार ने एकल बैंच फैसले को चुनौती देकर 11 भूस्वामियों को पार्टी बनाकर याचिका लगाई। जस्टिस अरुण मिश्रा और एससी सिन्हो की युगल पीठ ने 10 फरवरी 2010 ने जस्टिस विनय मित्तल के फैसले को यथावत रखते हुए 90 दिन में सुनवाई के आदेश दिए।

सुप्रीम कोर्ट 
मप्र सरकार ने ïसुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की और सरदारनी कमलजीत कौर को परिवादी बनाया। जस्टिस जेएम पांचाल आरै चंद्रमौलि प्रसाद की युगल पीठ ने 20 अगस्त को याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि जस्टिस विनय मित्तल की बैंच का फैसला सरकार की सहमति से आया था।

इंदौर हाईकोर्ट 
जबलपुर हाईकोर्ट के 10 फरवरी 2010 को आए फैसले का पालन नहीं होने पर 16 अगस्त 2010 को घनश्यामदास, सुधीरकुमार व अशोककुमार ने इंदौर हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। जस्टिस शांतनु केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव की युगल पीठ में सुनवाई जारी है।




सरकार की चार चूक

एक : धारा 19(2) का पालन नहीं किया
 मप्र ग्राम एवं नगर निवेश अधिनियम की धारा 19(2) के तहत शासन द्वारा सुनवाई के उपरांत ही मास्टर प्लान की अधिनियम की धारा 19(5) के तहत अंतिम रूप से मंजूर किया जा सकता है। इसके बाद मास्टर प्लान के प्रावधानानुसार विकास अनुज्ञा जारी होती है। इस प्रक्रिया का पालन नहीं करने के कारण ही यह स्थिति निर्मित हुई है। 

 दो : कोर्ट के सामने कमजोर साबित
जो आपत्तियां लगी हैं, उन्होंने उस ड्राफ्ट को आधार बनाया है, जो महज प्रस्ताव ही था। इसमें 1991 में के प्लान के कुछ आमोद-प्रमोद के स्थानों ग्रीन लैंड को आवासीय दर्शाया गया। सुनवाई प्रक्रिया के बाद इन भू उपयोगों को पुन: आमोद प्रमोद कर दिया गया, क्योंकि पुराने प्लान में इनमें फेरबदल नहीं किया जा सकता था। वैसे भी इनके उपयोग पर 1975 के पहले ही सुनवाई प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ऐसे में आपत्तियों का आधार ही गलत है। सरकार की ओर से यह बात कोर्ट में रखी जाती है, तो संभवत: स्थिति कुछ और बनती।  

 तीन : हाईकोर्ट में दी सुनवाई पर सहमति

20 याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सरकारी वकील ने जवाब दिया कि सुनवाई की जाएगी। इस पर 17 जून 2008 को जस्टिस विनय मित्तल की एकल पीठ ने अधिनियम की धारा 19(2) में सुनवाई करने को कहा था। आपत्तियां दर्ज कराने का अंतिम दिन 4 जुलाई 2008 तय किया गया था और 30 सितंबर तक इस पर सुनवाई होना थी। सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए युगल पीठ में 11 अपीलें दर्ज की। वहां सरकारी वकील ने कहा दिया धारा 18(2) में सुनवाई करेंगे। दोनों बार सरकार ने सुनवाई को मंजूरी दी, इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने केस खारिज कर दिया।

 चार: तीन सदस्यी कमेटी का गठन
मास्टर प्लान पर सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने की तारीख 5 फरवरी 2007 की समय सीमा के बाद कई लोगों ने सरकार को शिकायत की। इस पर सरकार ने 24 मई 2007 को अपर संचालक डीके शर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यी कमेटी का गठन किया। याचिकाकर्ताओं ने इस कमेटी को आधार बनाकर ही कोर्ट में मास्टर प्लान को चुनौती दी। तर्क था कि 7 जुलाई 2007 को प्रस्तावित और 01 जनवरी 2008 को जारी किए गए मास्टर प्लान में उन स्थानों के भू उपयोग बदल दिए गए, जिनको लेकर आपत्ति दर्ज ही नहीं की गई।








पत्रिका : ०८ सितम्बर २०१०

पहले अफसर को सुनाएंगे, फिर करेंगे ममता से बात

इंदौर-दाहोद और छोटा उदयपुर-धार रेल परियोजना में बढ़े बजट पर सांसद की राय


पश्चिम मप्र की दो महत्वाकांक्षी रेल परियोजनाओं इंदौर-दाहोद आर छोटा उदयपुर-धार की अनुमानित लागत में आधिकारिक रूप से 482 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी होने की खबर से जनता और नेता दोनों ही अचंभित हैं। इंदौर की सांसद ने तो कहा है कि पहले से जारी रुपए का इस्तेमाल भी अफसरों ने ठीक तरीके से नहीं किया, इसलिए ही बजट में परेशानी आ रही है। रेलवे बोर्ड के अफसरों से चर्चा करने के बाद ही रेल मंत्री ममता बेनर्जी से बात करेंगे।

'पत्रिकाÓ ने रविवार के अंक में जानकारी दी थी कि रेल मंत्री ममता बेनर्जी ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह को पत्र लिखकर जानकारी दी है कि योजना आयोग के बंधन के कारण दोनों परियोजनाओं के लिए धन राशि की कमी आ रही है। इससे 1518 करोड़ की ये परियोजनाएं बढ़कर 2000 करोड़ की हो गई हैं। दोनों परियोजनाओं का शिलान्यास प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ही किया था।

सांसद सुमित्रा महाजन ने 'पत्रिकाÓ को बताया योजनाएं की देरी का कारण रेलवे बोर्ड के अधिकारियों की लेतलाली भी है। पिछले बजट में इंदौर-दाहोद के लिए 40 करोड़ रुपए  आवंटित हुए थे, लेकिन 6.29 करोड़ ही खर्च किए गए। इस बार भी बजट में इसके लिए 75 करोड़ जारी हुए हैं। इस राशि का चरणबद्ध तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया तो एक बार फिर बजट लेप्स हो जाएगा।

तीन महीने में बैठक का प्रस्ताव भूले
5 जून को इंदौर में पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक रवींद्रनाथ वर्मा द्वारा बुलाई गई सांसदों की बैठक में सांसदों ने प्रस्ताव रखा था कि इस तरह की बैठक हर तीन महीने में होना चाहिए ताकि रेल परियोजनाओं में हो रही देरी के कारण सबके सामने आ सके, परंतु तीन महीने पूरे होने पर भी इस पर अमल शुरू नहीं हुआ।

सांसदों को साथ लेकर बताएं प्रगति
महाजन का कहना है रेलवे बोर्ड के अधिकारियों को चाहिए कि आदिवासी इलाकों को प्रगति की धारा में लाने वाली दोनों अहम परियोजनाओं के बारे में क्षेत्रीय सांसदों को साथ ले जाकर जमीनी हकीकत दिखाएं। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक रेलमंत्री ममता बेनर्जी से चर्चा का कोई अर्थ नहीं है।


पत्रिका : ०६ सितम्बर २०१०

125 करोड़ की जमीन पर क्यों न बने अस्पताल ?

- एक वर्ष पुराने फैसले के अमल में आते ही उठा सवाल 
- मामला कल्याणमल नर्सिंगहोम के पास की 14 हजार वर्गफीट भूमि का


भूमाफिया के कब्जे वाली 125 करोड़ रुपए मूल्य की जमीन हासिल करने के साथ ही प्रशासन के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि  इस पर मल्टीलेवल पार्किंग तानी जाए या अस्पताल बनाए। अफसरों के लिए होस्टल का प्रस्ताव भी सामने आ गया है।

ग्रेटर कैलाश रोड स्थित कल्याणमल नर्सिंगहोम के पास की 14 हजार वर्गफीट जमीन पर शनिवार को नगरनिगम और पीडब्ल्यूडी ने संयुक्त रूप से कब्जा लिया था। हाईकोर्ट ने एक वर्ष पहले इस भूमि के बारे में फैसला दिया था। अब इस जमीन के लिए तीन प्रस्ताव सामने आए हैं। अस्पताल का प्रस्ताव सबसे मजबूत है, किंतु एमजीएम मेडिकल कॉलेज और एमवाय अस्पताल के लचर प्रबंधन के कारण इसके आगे बढऩे में संशय ही है।

पार्किंग
प्रस्ताव दिया: नगरनिगम ने

आधार:  रोड पर कमर्शियल कॉम्प्लेक्स और अस्पताल के कारण वाहनों की संख्या बहुत अधिक रहती है। फिलहाल करोड़ों रुपए से बनी सड़क पर पार्किंग की जाती है।

अस्पताल
प्रस्ताव दिया : एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने
आधार : पुराने रिकार्ड में कल्याणमल नर्सिंगहोम के कारण इस प्रापर्टी पर कॉलेज का हक है। सरकार को पूर्वी क्षेत्र में एक बड़े अस्पताल के लिए जमीन की दरकार है। इससे इस इलाके के मध्यमवर्गीय व निम्न वर्ग को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकती है।

आफिसर्स होस्टल
प्रस्ताव दिया : पीडब्ल्यूडी ने
आधार : इंदौर में सैकड़ों अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले होते रहते हैं। उनके रहने के लिए रेसीडेंसी कोठी के अतिरिक्त कोई इंतजाम नहीं है। यह स्थान मध्य शहर में है।

किसने दबा के रखा फैसला ?
जमीन के संबंध में जस्टिस एएम सप्रे ने 25 अगस्त 2009 को ही फैसला दे दिया था, फिर इस पर अमल में इतनी देरी क्यों हुई? फैसला किसके पास दबा हुआ था? क्या किसी भूमाफिया को फायदा पहुंचाने के लिए मामला ठंडे बस्ते में पटके रखा? जैसे सवाल भी खड़े हो गए हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया इस बात की जांच की जा रही है कि फैसला नगरनिगम, पीडब्ल्यूडी या सरकारी वकील के पास ही दबा हुआ था?  ज्ञात रहे एडीजे कोर्ट ने वर्ष 1992 में अनिल गायकवाड़ के पक्ष में जमीन की डिक्री कर दी थी। इसी आधार पर उन्होंने दो बार जमीन को बेच दिया, जबकि 1994 में ही एडीजे कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी थी। हाल ही में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी ने नामांतरण के लिए निगम में आवेदन लगाया था, जिसे खारिज कर दिया गया।

पत्रिका : ०६ सितम्बर २०१० 

फासला एक, किराए तीन

- आरटीओ की अनदेखी
- पसोपेश में राऊ, महू और पीथमपुर आने-जाने वाले 25 हजार मुसाफिर 

इंदौर से हर दिन राऊ, महू और पीथमपुर जाने-आने वाले करीब 25 हजार मुसाफिर पसोपेश में हैं। एक ही दूरी, एक जैसी सुविधा और फासला तय करने का एक ही समय होने के बावजूद उनके सामने तीन तरह के किराए मौजूद हैं। इस विसंगति से परिवहन विभाग के अफसर भी अनभिज्ञ हैं।

 राऊ, महू और पीथमपुर इंदौर के उपनगर घोषित किए गए हैं। यही वजह है कि इंदौर से इन्हें जोडऩे के लिए 82 उपनगरीय बसों को परमिट आरटीओ से जारी हैं। इन्हीं मार्गों से दूसरे जिलों को जोडऩे वाली प्राइम रूट की 50 से अधिक बसें भी गुजरती हैं। साथ ही इंदौर सिटी बस ट्रांसपोर्ट की छह बसें इन रास्तों पर दोड़ती हैं। परिवहन विभाग ने सभी के लिए अलग-अलग दरें तय की है।

बस ऑपरेटरों में भी तनातनी
विसंगति पर प्रशासन की नजर नहीं होने के कारण बस ऑपरेटरों में भी रोज तनातनी की स्थिति बनती है। प्रायवेट बस ऑपरेटरों का आरोप है कि सिटी बस पर प्रशासन का प्रबंधन होने के कारण उसे सवारी भरने के लिए खुली छुट दी गई है। परिवहन विभाग भी इन पर कार्रवाई नहीं करता है। 

'हमारी दरें सबसे सस्ती हैं, क्योंकि परिवहन विभाग ने 9 दिसंबर 2004 को लागू पुरानी दरें ही लागू कर रखी हैं। बढ़ती महंगाई के कारण उन दरों में गाडिय़ां चलाना मुश्किल हो रहा है। प्रशासन से हमने नई दरों की मांग की है।Ó
- रफीक खान, सचिव, उपनगरीय बस ऑपरेटर्स एसोसिएशन

'महंगाई को देखते हुए हमने दर बढ़ाने के लिए संभागायुक्त से मांग की थी। वहीं से दरें बढ़ाई गई हैं। हमारी सेवा और दूसरी बसों में शुरू से ही एक रुपए का अंतर है।Ó
- विवेक श्रोत्रिय, सीईओ, अटल इंदौर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमि.

'प्राइम रूट के कारण सरकार को ज्यादा राजस्व देते हैं और यही वजह है कि हमारी दरें सबसे अधिक हैं। किराया में एकरुपता लाने से यात्रियों को नुकसान नहीं होगा।Ó
- गोविंद शर्मा, अध्यक्ष, इंदौर प्रायवेट बस आनर्स एसोसिएशन


आरटीओ बोले - तीन नहीं दो ही हैं किराए


उपनगरीय बसों के तीन किराए हैं, ऐसा क्यों हो रहा है?
- किराए सिर्फ दो हैं, तीन नहीं है। एक उपनगरीय है और दूसरे सिटी रुट। 
इंदौर से महू, राऊ और पीथमपुर में उपनगरीय, सिटी बस और प्राइम रुट की तीन बसें चलती हैं?
- जी नहीं, दो तरह का ही किराया है। आप आएंगे तो मैं तो इस बारे में और विस्तार से बता दूंगा।
क्या उपनगरीय बसों के किराए में बदलाव किया जाना लंबित है?
- वे मांग करेंगे, तो हम विचार करेंगे। वैसे हमें महू रोड पर ज्यादा किराया वसूलने की शिकायतें मिल रही हैं। 
( आरटीओ आरआर त्रिपाठी से चर्चा)


तीन किस्म का किराया

यात्रा                    दूरी               उपनगरीय बस     सिटी बस       प्राइम रुट
इंदौर से राऊ        18 किमी         06 रुपए                 10 रुपए         07 रुपए
इंदौर से महू         23 कि मी        11 रुपए                15 रुपए        22 रुपए
इंदौर से पीथमपुर 35 किमी         15 रुपए                20 रुपए        25 रुपए    
 
 पत्रिका: ०६ सितम्बर २०१०