- जवाब देने के लिए सरकार ने हाईकोर्ट से मांगा दो सप्ताह का समय
- विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति भी पेश
इंदौर हाईकोर्ट, जबलपुर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और फिर से इंदौर हाईकोर्ट। इंदौर विकास योजना 2021 यानी इंदौर मास्टर प्लान का सफर फिलहाल तो ऐसा ही है। सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका खारिज होने के साथ ही मप्र हाईकोर्ट के फैसले पर अमल नहीं करने के लिए इंदौर हाईकोर्ट में दायर अवमानना याचिका प्रभाव में आ गई। मंगलवार को इस पर सुनवाई हुई और सरकार को जवाब देने के लिए एक बार फिर से समय मांगना पड़ा।
याचिकाकर्ता घनश्यामदास की ओर से दायर अवमानना याचिका में तर्क दिया गया है कि जबलपुर हाईकोर्ट की युगलपीठ ने 10 फरवरी 2010 को आवास एवं पर्यावरण विभाग को निर्देश दिए थे कि 90 दिन में आपत्तियों पर सुनवाई कर ली जाए, किंतु अब तक यह कार्य नहीं किया गया। जस्टिस शांतनु केमकर और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ में यह मामला रखा गया। याचिकाकर्ता के एडवोकेट अमित उपाध्याय ने 'पत्रिकाÓ को बताया आवास एवं पर्यावरण विभाग प्रमुख सचिव आलोक श्रीवास्तव, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की तत्कालीन निदेशक दिपाली रस्तोगी और इंदौर टीएनसीपी संयुक्त संचालक विजय सावलकर को परिवादी बनाया गया है।
सरकार को नहीं मिला, पर हाईकोर्ट में पेश हो गया आदेश
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसएलपी खारिज किए जाने सूचना भले ही सरकार को नहीं मिली हो, लेकिन इंदौर हाईकोर्ट के पटल पर यह प्रस्तुत कर दिया गया है। याचिका में सरकार की ओर से सबसे पहले तर्क दिया गया था कि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाई गई है। इस सुनवाई पर बताया गया कि अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति प्राप्त नहीं हुई है।
मास्टर प्लान का अदालती सफर
इंदौर हाईकोर्ट
1 जनवरी 2008 को लागू मास्टर प्लान को 16 भूस्वामियों ने याचिका दायर करके चुनौती दी। जस्टिस विनय मित्तल ने 17 जून 2008 को फैसला दिया प्राकृतिक न्याय को ध्यान में रखकर याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों पर टीएंडसीपी सुनवाई करे।
जबलपुर हाईकोर्ट
मप्र सरकार ने एकल बैंच फैसले को चुनौती देकर 11 भूस्वामियों को पार्टी बनाकर याचिका लगाई। जस्टिस अरुण मिश्रा और एससी सिन्हो की युगल पीठ ने 10 फरवरी 2010 ने जस्टिस विनय मित्तल के फैसले को यथावत रखते हुए 90 दिन में सुनवाई के आदेश दिए।
सुप्रीम कोर्ट
मप्र सरकार ने ïसुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की और सरदारनी कमलजीत कौर को परिवादी बनाया। जस्टिस जेएम पांचाल आरै चंद्रमौलि प्रसाद की युगल पीठ ने 20 अगस्त को याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि जस्टिस विनय मित्तल की बैंच का फैसला सरकार की सहमति से आया था।
इंदौर हाईकोर्ट
जबलपुर हाईकोर्ट के 10 फरवरी 2010 को आए फैसले का पालन नहीं होने पर 16 अगस्त 2010 को घनश्यामदास, सुधीरकुमार व अशोककुमार ने इंदौर हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। जस्टिस शांतनु केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव की युगल पीठ में सुनवाई जारी है।
सरकार की चार चूक
एक : धारा 19(2) का पालन नहीं किया
मप्र ग्राम एवं नगर निवेश अधिनियम की धारा 19(2) के तहत शासन द्वारा सुनवाई के उपरांत ही मास्टर प्लान की अधिनियम की धारा 19(5) के तहत अंतिम रूप से मंजूर किया जा सकता है। इसके बाद मास्टर प्लान के प्रावधानानुसार विकास अनुज्ञा जारी होती है। इस प्रक्रिया का पालन नहीं करने के कारण ही यह स्थिति निर्मित हुई है।
दो : कोर्ट के सामने कमजोर साबित
जो आपत्तियां लगी हैं, उन्होंने उस ड्राफ्ट को आधार बनाया है, जो महज प्रस्ताव ही था। इसमें 1991 में के प्लान के कुछ आमोद-प्रमोद के स्थानों ग्रीन लैंड को आवासीय दर्शाया गया। सुनवाई प्रक्रिया के बाद इन भू उपयोगों को पुन: आमोद प्रमोद कर दिया गया, क्योंकि पुराने प्लान में इनमें फेरबदल नहीं किया जा सकता था। वैसे भी इनके उपयोग पर 1975 के पहले ही सुनवाई प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ऐसे में आपत्तियों का आधार ही गलत है। सरकार की ओर से यह बात कोर्ट में रखी जाती है, तो संभवत: स्थिति कुछ और बनती।
तीन : हाईकोर्ट में दी सुनवाई पर सहमति
20 याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सरकारी वकील ने जवाब दिया कि सुनवाई की जाएगी। इस पर 17 जून 2008 को जस्टिस विनय मित्तल की एकल पीठ ने अधिनियम की धारा 19(2) में सुनवाई करने को कहा था। आपत्तियां दर्ज कराने का अंतिम दिन 4 जुलाई 2008 तय किया गया था और 30 सितंबर तक इस पर सुनवाई होना थी। सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए युगल पीठ में 11 अपीलें दर्ज की। वहां सरकारी वकील ने कहा दिया धारा 18(2) में सुनवाई करेंगे। दोनों बार सरकार ने सुनवाई को मंजूरी दी, इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने केस खारिज कर दिया।
चार: तीन सदस्यी कमेटी का गठन
मास्टर प्लान पर सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने की तारीख 5 फरवरी 2007 की समय सीमा के बाद कई लोगों ने सरकार को शिकायत की। इस पर सरकार ने 24 मई 2007 को अपर संचालक डीके शर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यी कमेटी का गठन किया। याचिकाकर्ताओं ने इस कमेटी को आधार बनाकर ही कोर्ट में मास्टर प्लान को चुनौती दी। तर्क था कि 7 जुलाई 2007 को प्रस्तावित और 01 जनवरी 2008 को जारी किए गए मास्टर प्लान में उन स्थानों के भू उपयोग बदल दिए गए, जिनको लेकर आपत्ति दर्ज ही नहीं की गई।
पत्रिका : ०८ सितम्बर २०१०