रविवार, 7 मार्च 2010

लापरवाही की आग

निरीक्षण करने वाले अफसरों को क्यों नहीं दिखता खतरा ?
इंदौर के पास के औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर स्थित नियोसेक पॉली बैग कंपनी में शनिवार को लगी भीषण आग ने एक बार फिर उद्योगों में सुरक्षा इंतजामों की खामी समाने ला दी है। आग की भयावहता इतनी थी कि दोहजार टैंकर भी कम पड़ गए और 3 फीट चौड़ी व 25 फीट लंबी लोहे की गर्डर पानी तरह पिघल गईं। आग से 100 करोड़ की संपत्ति के नुकसान की आशंका है। जब आग लगी तब 800 मजदूर काम कर रहे थे। सभी ने भागकर जान बचाई। दरअसल, फैक्ट्री में आग पर काबू पाने के फायर इंतजाम दुरस्त नहीं थे और आग बढ़ती ही चली गई। तथ्य यह भी है कि राज्य में छोटे-बड़ी 30 लाख औद्योगिक इकाइयां बगैर फायर एनओसी के चल रही हैं। इन कारखानों में लाखों लोग काम करते हैं और अरबों रुपए का निवेश किया गया है। वैसे तो राज्य में सुरक्षा अधिनियम बना हुआ, परंतु क्या अधिकारी इस अधिनियम को लागू करवा पा रहे हैं? इतनी जिंदगी और इतने उद्योगों को जोखिम में झोंकने का मतलब क्या है? बगैर फायर इंतजाम के ये कारखाने कैसे चल रहे हैं? क्या इसके पीछे अधिकारियों और कारखाना मालिकों की मिलीभगत है?  जिन अधिकारियों पर इन उद्योगों के सतत निरीक्षण करने की जिम्मेदारी होती है, वे किस तरह की नजर डालकर लौट आते हैं? इन सवालों के रटे रटाए जवाब अधिकारियों के पास हो सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने काम करने के तौर-तरीकों से यह बताना होगा कि अनचाही आग से लडऩे के लिए वे संजीदा हैं। वैसे, उम्मीद की किरण भी दिख रही है। पांच राज्यों के सर्वे के आधार पर अग्निशमन अधिनियम का एक मसौदा सरकार के पास विचाराधीन है। संभावना है कि उसे शीघ्र ही विधानसभा की मंजूरी मिलेगी। संभवत: उसके बाद उद्योग अग्नि सुरक्षा का कवच पहनने को मजबूर होंगे और लापरवाही की आग काबू में रहेगी।

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