- हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में डॉक्टरों की लापरवाही से गर्भस्थ शिशु मौत का मामला
14 महीने पहले हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले में कोर्ट ने तीन डॉक्टरों समेत नौ लोगों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज करने के आदेश दिए हैं। यह आदेश शिशु की मां द्वारा कोर्ट में लगाई निजी शिकायत पर किया गया है।
प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी आरती शर्मा की कोर्ट ने माना कि 17 जून की रात 9.30 बजे से 18 जून 2009 की प्रात: 11.30 बजे तक तीन लेडी डॉक्टरों समेत नौ कर्मचारियों ने गर्भवती प्रभावति गिरधारीलाल प्रजापति के इलाज में लापरवाही बरती और इससे गर्भस्थ शिशु की मौत हो गई। लिहाजा यह गैरइरादतन हत्या का मामला है। कोर्ट ने 8 सितंबर को सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं।
इनके खिलाफ हुआ केस
डॉ. कीर्ति चतुर्वेदी, डॉ. मुक्ता जैन, डॉ. कुसुम मारू, नर्स किरण नाइक, शैफाली चौहान, तिलोत्मा सिंह, जया पांडे, स्वीपर हेमलता और आया हेमलता।
ऐसी लापरवाही
- 17 जून की रात में डॉ. कीर्ति चतुर्वेदी, नर्स शैफाली, किरण, शारदा, जया, मनोरमा व हेमलता ड्यूटी पर थीं, लेकिन सभी ने गर्भवती की उपेक्षा की।
- 18 जून की प्रात: डॉ. मुक्ता जैन व डॉ. कुसुम मारू अस्पताल पहुंची, लेकिन इलाज के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया। यहां तक कि मेडिकल रिकॉर्ड में भी गर्भवती के बारे में सही जानकारी नहीं लिखी।
पुलिस पर सांठ-गांठ का आरोप
परिवादी के एडवोकेट बीएन राजपूत ने बताया केस की जांच तत्कालीन अपर कलेक्टर रेणु पंत ने करके स्वास्थ्य विभाग को नौ लोगों के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का केस दर्ज करने के निर्देश दिए थे। विभाग ने पुलिस को ऐसा करने के लिए कहा भी था, लेकिन सांठ-गांठ के चलते केस दर्ज नहीं हो सका। यही वजह है कि निजी शिकायत दर्ज करना पड़ी।
ऐसे किया स्वास्थ्य विभाग ने न्याय ?
स्वास्थ्य विभाग ने भी तीनों डॉक्टरों को दोषी माना था, लेकिन सजा महज दो-दो वेतनवृद्धि रोकने की दी थी। यह भी केवल दो वर्ष तक के लिए यानी इसके बाद उन्हें वेतनवृद्धि का फायदा मिलने लगेगा। इतना ही नहीं, जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट को कमजोर करने के लिए तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा ने तो डॉक्टरों को बचाने के लिए एक पत्र जारी कर दिया था। उन्होंने लिखा था डॉक्टरों पर केस करने से विभाग की बदनामी होगी।
'पेट दबा-दबाकर मेरे बच्चे को मार डालाÓ
दर्द शुरू होने के बाद मुझे मकान मालकिन ललिता कश्यप 17 जून को हुकमचंद पॉलीक्लिनिक ले गई। वहां भर्ती कर दिया। रात 11 बजे जब दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ तो मकान मालकिन ने मौजूद नर्स किरण नाइक से देखने को कहा। उसने यह कहकर भगा दिया कि सोने दो। रात दो बजे फिर उससे कहा तो उसने पेट दबा दिया। फिर 2000 रुपए ले लिए और कहा सुबह ऑपरेशन करेंगे। सुबह सात बजे फिर उससे देखने को कहा तो वह सात से आठ बजे तक पेट दबाती रही। आठ बजे यह कहकर चली गई कि मेरी डयूटी पूरी हो गई। सुबह 10.30 बजे डॉ. कुसुम मारू आई तो उन्होंने ऑपरेशन किया। इन लोगों ने मेरे बच्चे को दबा-दबा कर मार डाला।
(गर्भवती प्रभावती द्वारा घटना के संबंध में जिला प्रशासन को दिया गया बयान)
पत्रिका : १९ अगस्त २०१०
30 जुलाई को प्रकाशित खबर नवजात की मौत पर दो वेतनवृद्धि रोकने की सजा
- स्वास्थ्य विभाग का न्याय (?), जिला प्रशासन ने माना था गैरइरादतन हत्या का मामला
- हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में तीन महिला डॉक्टरों की लापरवाही से गई थी जान
गर्भस्थ शिशु की मौत के जिस मामले पर इंदौर जिला प्रशासन ने गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज करने की सिफारिश की थी, उसमें स्वास्थ्य विभाग ने आरोपी डॉक्टरों की दो-दो वेतनवृद्धि रोकने के आदेश जारी किए हैं। विभाग ने घटना के दौरान हुकुमचंद पॉलिक्लिनिक में पदस्थ रही डॉ. कुसुमलता मारू, डॉ. मुक्ता जैन और डॉ. कीर्ति चतुर्वेदी को यह सजा सुनाई है। यह सजा भी दो वर्ष में समाप्त हो जाएगी, यानी इसके बाद उन्हें वेतनवृद्धि का फायदा मिलने लगेगा।
स्वास्थ्य विभाग के आदेश की पुष्टि करते हुए सीएमएचओ डॉ. शरद पंडित ने बताया जिला प्रशासन की सिफारिश पर विभागीय जांच की गई थी। इसमें तीनों डॉक्टरों पर आरोप सिद्ध हुआ है। शेष सात कर्मचारियों पर पहले ही कार्रवाई की जा चुकी है। विभाग में इसे बड़ा आर्थिक दंड माना जाता है। जिला प्रशासन के कहने पर सभी आरोपियों के खिलाफ सेंट्रल कोतवाली थाने पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करने की अर्जी दी थी, लेकिन पुलिस ने ऐसा किया ही नहीं।
अपर कलेक्टर रेणु पंत ने की थी जांच
तत्कालीन अपर कलेक्टर रेणु पंत ने इस मामले की जांच करके 100 से अधिक पेज की रिपोर्ट बनाई थी। इसी के आधार पर मामला पुलिस में गया था। बाद तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा ने एक पत्र जारी करके डॉक्टरों को लगभग बचा लिया था। उन्होंने लिखा था डॉक्टरों पर केस करने से विभाग की बदनाम
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