बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट ने दिया जांच का आदेश
मालेगांव ब्लॉस्ट मामले में 11 नवंबर 2008 से रहस्यमय तरीके से लापता दिलीप पाटीदार को खोजने की जिम्मेदारी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को दी गई है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सीबीआई को इस आदेश दिया है कि दो महीने बाद इस बारे में रिपोर्ट कोर्ट के पटल पर रखे। पाटीदार के परिवार ने ही सीबीआई जांच की मांग की थी क्योंकि मुबंई एटीएस और मप्र पुलिस उसे खोजने में असमर्थ रही थी।
दिलीप के भाई रामस्वरूप पाटीदार ने हाईकोर्ट में 24 नवंबर 2008 को इंदौर हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। जस्टिस शांतनु केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव युगलपीठ ने शुक्रवार को इस पर अंतरिम आदेश जारी किया। पाटीदार की वकील रितु भार्गव ने 'पत्रिकाÓ को बताया हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच की अर्जी मंजूर करते हुए मप्र पुलिस, महाराष्टï्र पुलिस और मुंबई एटीएस को सहयोग करने को कहा है। ज्ञात रहे केस की एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों पक्षों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा था कि इस तरह की याचिकाओं पर अधिकतम छह महीने में निर्णय हो जाना चाहिए, परंतु पक्ष अड़ंगा डालते रहे और तारीखें बढ़ती गईं।
रामजी का किराएदार था दिलीप
दिलीप पाटीदार मूलत: शाजापुर जिले के दुपाड़ा का निवासी है और इंदौर में इलेक्ट्रिशियन का कार्य करता था। 2008 में शांतिविहार कॉलोनी के शिवनारायण कलसांगरा और रामजी कलसांगरा के मकान में किराए से पत्नी और एक ब'चे के साथ रहता था। मालेगांव ब्लास्ट में शिवनारायण मुंबई एटीएस की गिरफ्त में है, जबकि हैदराबाद की मक्का मस्जिद में 18 मई 2007 को हुए ब्लॉस्ट के आरोपी रामजी पर सीबीआई ने दस लाख का इनाम घोषित किया है। लापता होने के कुछ दिन पहले ही दिलीप ने खजराना थाने में रिपोर्ट लिखवाई थी कि मुंबई एटीएस का एक दल चोरी से शिवनारायण के घर में घुसा और वहां रखे हथियार व अन्य सामान अपने साथ ले गया। इसके बाद ही मुबंई एटीएस ने 10-11 नवंबर 2008 की रात में दिलीप को उठाया था। एटीएस का कहना है कि दिलीप मालेगांव ब्लॉस्ट का अहम गवाह है। दिलीप की पत्नी और ब'चा फिलहाल दुपाड़ा में रहता है।
एटीएस पर गंभीर आरोप
दिलीप के भाई रामस्वरूप का आरोप है एटीएस ने पूछताछ के दौरान दिलीप की हत्या कर दी। उधर, एटीएस का मानना है कि परिजन ने ही उसे छुपा रखा है।
केस से जुड़ी अहम तारीखें
11 नवंबर 2008
मुंबई एटीएस पूछताछ के लिए दिलीप पाटीदार को मुंबई ले गई।
24 नवंबर 2008
दिलीप के नहीं लौटने पर उनके भाई रामस्वरूप ने एडवोकेट दीपक रावल के जरिए बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की।
1 दिसंबर 2008
कोर्ट ने मामले में मुंबई एटीएस और स्थानीय पुलिस को नोटिस जारी किए।
2 अप्रैल 2009
जस्टिस एएम सप्रे व प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने इंदौर एसपी को एक महीने में मामले में रिपोर्ट पेश करने को कहा।
17 सितंबर 2009
कोर्ट ने कहा मुंबई एटीएस और इंदौर पुलिस मिलकर नहीं ढूंढ पाए तो एटीएस कमिश्नर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में आना होगा।
5 नवंबर 2009
जस्टिस सप्रे और एसके सेठ की पीठ ने एटीएस और मप्र पुलिस की संयुक्त कमेटी गठित की, ताकि दिलीप को ढूंढा जा सके।
10 दिसंबर 2009
जस्टिस एसएल कोचर और सेठ की पीठ के समक्ष एटीएस ने रिपोर्ट पेश की कि दिलीप की सिम से बात की गई है और वह जिंदा है। कोर्ट ने कहा दो महीने में अंतिम रिपोर्ट दी जाए।
29 जुलाई 2010
एडवोकेट रितु भार्गव ने जस्टिस कोचर व शुभदा वाघमारे की पीठ के समक्ष सीबीआई जांच की मांग रखी। कोर्ट ने नाराजगी जताई कि दोनों पक्षों की अड़चनों के कारण फैसला नहीं हो पा रहा, जबकि छह महीने में यह केस निपट जाना था।
17 अगस्त 2010
जस्टिस केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने सहायक सोलिसिटर जनरल विवेक शरण के जरिए सीबीआई को नोटिस देकर पूछा कि क्या वह इस केस की जांच कर सकती है?
9 सितंबर 2010
सीबीआई ने कोर्ट को बताया हम भ्रष्टाचार के केस हाथ में लेते हैं, जबकि यह क्रिमिनल केस है। यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के आदेश पर हम केस में जांच करते हैं।
23 सितंबर 2010
सभी पक्षों की राय सुनने के बाद केस में फैसला सुरक्षित रखा गया।
1 अक्टूबर 2010
कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश जारी किए।
पत्रिका : ०२ अक्टूबर २०१०
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