- अंतिम चालान के लिए विशेष कोर्ट ने तय की चार महीने की सीमा
- लोकायुक्त के सारे दावे सिरे से खारिज
लोकायुक्त पुलिस 100 करोड के सुगनीदेवी जमीन घोटाले में आरोपी क्रमांक दो यानी कैलाश विजयवर्गीय को समय कवच पहनाने में नाकामयाब हो गई है। विशेष कोर्ट ने लोकायुक्त पुलिस के उस दावे को खारिज कर दिया है जिसमें जांच के लिए समय सीमा की आड़ ली गई थी। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया है कि सुगनीदेवी जमीन मामले में अंतिम चालान 21 फरवरी 2011 तक कोर्ट में पेश किया जाए।
विशेष न्यायाधीश एसके रघवुंशी बुधवार को एक अहम फैसले में कहा कि लोकायुक्त पुलिस को एक नियत समय सीमा में काम करने का आदेश देना कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में है। सीकरी वासु विरुद्ध उप्र सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2008 में दिए फैसले का दृष्टांत देते हुए कोर्ट ने लिखा है कि यदि पुलिस ठीक ढंग से जांच नहीं करे तो समय सीमा तय करने के साथ ही कोर्ट जांच की निगरानी भी कर सकता है।
मामले में लोकायुक्त के विशेष अभियोजक एलएस कदम ने 21 सितंबर को तर्क दिया था कि जांच की समय सीमा तय करना विशेष न्यायाधीश के अधिकार में नहीं आता है। इसी पर परिवादी सुरेश सेठ ने 6 अक्टूबर को करीब 300 पेज का जवाब कोर्ट के पटल पर रखा था। उन्होंने लोकायुक्त पुलिस की अर्जी के छहों न्यायिक दृष्टांतों की भी तार्किक तरीके से धज्जियां उड़ाई थीं।
सुरेश सेठ को न्यायिक कवच
विशेष कोर्ट ने बुधवार को फैसले में यह भी स्पष्ट कर दिया कि एफआईआर दर्ज होने और चालान पेश होने के बीच फरियादी सुरेश सेठ को अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है। लोकायुक्त पुलिस ने कहा था कि एफआईआर के बाद मामला जांच एजेंसी व कोर्ट के बीच सिमट जाता है इसलिए फरियादी को कोर्ट में आने का अधिकार नहीं है।
जांच एजेंसियों के लिए ऐतिहासिक सबक
कानूनी जानकारों का मानना है कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की पड़ताल करने वाली ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, सीआईडी जैसी जांच एजेंसियों के लिए विशेष कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक सबक जैसा है। अब तक जांच एजेंसियां एफआईआर दर्ज करके मामले को ठंडे बस्ते में डालने की आदी रही है। यही वजह है कि कई केस 15-15 सालों तक चालान के मुकाम तक नहीं पहुंच सके। हर बार जांच एजेंसियां यही तर्क देती है कि अनुसंधान की समय सीमा तय करने का कोर्ट को कोई अधिकार नहीं है। यही वजह है कि जांच एजेंसि
'नहीं बचेगा कैलाश'
फैसले पर सुरेश सेठ ने प्रतिक्रिया दी है कि अब लोकायुक्त पुलिस मामले में तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय को नहीं बचा सकती। अंतिम चालान में कैलाश का नाम नहीं आया तो कोर्ट स्वयं भी नाम सम्मिलित करवा सकती है।
मेंदोला सहित फंस चुके सत्रह
इस केस में लोकायुक्त पुलिस 5 अगस्त को 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और अपराधिक षड्यंत्र रचने का केस दर्ज कर चुकी है। इसमें कैलाश विजयवर्गीय के अतिरिक्त तीनों आरोपियों (विधायक रमेश मेंदोला, व्यवसायी मनीष संघवी व विजय कोठारी) की घेराबंदी की गई है। इसमें निगम अफसर सहित 14 अन्य आरोपी हैं।
हाईकोर्ट में भी मुंह की खाई
विशेष कोर्ट द्वारा लोकायुक्त पुलिस को जांच के निर्देश को विधायक रमेश मेंदोला और व्यवसायी मनीष संघवी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस एसएल कोचर व शुभदा वाघमारे ने दोनों की याचिकाओं को सिरे से खारिज कर दिया था।
पांच पेज के फैसले के निहितार्थ
1. लोकायुक्त पुलिस ठीक से नहीं कर रही है जांच
(पेज 4 पर लिखा गया जांच एजेंसी अनावश्यक रूप से जांच में विलंब न करें)
2. सुरेश सेठ से बचना चाहती है लोकायुक्त पुलिस।
(पेज 4 व 5 पर लिखा गया है परिवादी सुरेश सेठ को कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है)
3. कोर्ट को मंजूर नहीं राजनीतिक हस्तक्षेप
(फैसले के पेज 2 पर सुरेश सेठ के तर्क को प्रमुखता देते हुए लिखा है कि प्रभावशील राजनीतिक व्यक्ति के हितों को बचाने के लिए जांच में देरी हो रही है)
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यूं निकाली लोकायुक्त पुलिस की हवा
सेठ ने कोर्ट में करीब 300 पेज का जो जवाब पेश किया है, उसमें उन छहों न्यायिक दृष्टांतों को खारिज किया गया है, जो लोकायुक्त पुलिस ने दिए थे।
एक-
निर्मलजीतसिंह हून बनाम पश्चिम बंगला सरकार केस में कोर्ट ने अनुसंधान अधिकारी को अनुसंधान की दिशा या सीमाओं के संबंध में कोई दिशा नहीं दी थी।
दो-
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा केस में फैसला आरोपी के संबंध में विचार तय करने से जुड़ा है, जबकि मौजूदा केस में विशेष न्यायालय ने कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कोई विचार धारणा प्रकट नहीं की है।
तीन-
पश्चिम बंगाल बनाम एसएन बासक केस में कोर्ट के दिशा निर्देश अंतिम जांच प्रतिवेदन के संबंध में है, जबकि सुगनीदेवी केस में अब तक लोकायुक्त पुलिस ने अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया है।
चार -
बिहार बनाम जेएसी सल्धाना केस भी समर्थन नहीं करता है, क्योंकि विशेष कोर्ट द्वारा अंतिम जांच रिपोर्ट के लिए तारीख तय करना अनुसंधान कार्य में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।
पांच -
टीटी ऐथोनी बनाम केरल केस सक्सेसिव एफआईआर से जुड़ा है, इसलिए यहां प्रासंगिक नहीं है।
छह -
एसएन शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी, मेसर्स जयंत विटामिन्स बनाम चैतन्य कुमार एंड अदर्स, हरियाणा बनाम भजनलाल केस में एफआईआर और उसके बाद अनुसंधान की स्थिति की व्याख्या की गई है।
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जनता के सामने खड़े कई सवाल
सुरेश सेठ ने कोर्ट में प्रस्तुत जवाब में कई सवाल उठाए थे। उन्होंने कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त पुलिस के वकील के तर्कों से जनता के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं, न्यायहित में इनका समाधान बेहद आवश्यक है। उन्होंने लिखा था -
1. प्रथम दृष्टया दोषी होने के बावजूद कैलाश के खिलाफ पहली एफआईआर में नाम नहीं जोड़ा जाना कितना न्यायसंगत है?
2. क्या लोक अभियोजक ने 6 अगस्त की पेशी पर जो जवाब पेश किया, वह राज्य सरकार के दबाव में आकर दिया गया है?
3. क्या विशेष लोक अभियोजक दुर्भावनापूर्ण तरीके से विजयवर्गीय के राजनैतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
4. हाईकोर्ट में 19 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेठ ने लोकायुक्त संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तब लोकायुक्त के वकील ने कोई कोई आपत्ति नहीं ली थी, इसका अर्थ क्या है?
5. क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस केस में विशेष लोक अभियोजक को बतौर लोकस स्टेंडी (पक्ष रखने का अधिकार) प्राप्त है?
पत्रिका २० अक्टूबर २०१०
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