सोमवार, 27 दिसंबर 2010

कैलाश पर फैसला आज

- सुगनीदेवी जमीन मामले में विशेष न्यायालय देगा 'समय कवच' पर निर्णय


100 करोड के सुगनीदेवी जमीन घोटाले की शिकायत के आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की जांच की समय सीमा पर विशेष न्यायालय बुधवार को फैसला सुनाएगा। लोकायुक्त पुलिस का तर्क है कोर्ट को समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं, जबकि फरियादी सुरेश सेठ ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक दृष्टांतों के आधार पर साबित किया है कि लोकायुक्त जैसी जांच संस्थाओं के लिए भी समय की बाध्यता होती है। 

केस में पिछली सुनवाई 6 अक्टूबर को हुई थी। तब विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने दोनों पक्षों के तर्क सुनकर फैसला 20 अक्टूबर तक के लिए सुरक्षित रखा था। पिछली सुनवाई में शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पुलिस के तर्कों की सिलसिलेवार धज्जियां उड़ाते हुए कोर्ट को बताया विजयवर्गीय को बचाने के लिए ही लोकायुक्त पुलिस ने 21 सितंबर को कोर्ट में अर्जी दी थी कि जांच की समय सीमा तय नहीं की जाए। वैसे 21 सितंबर को लोकायुक्त पुलिस को कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश करना थी। परंतु ïविशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने कोर्ट को बताया था कि मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और चालान पेश करने का लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है। 

'लोकायुक्त पुलिस की भूमिका संदिग्ध'
सुरेश सेठ ने कोर्ट को लिखित में दिया है लोकायुक्त पुलिस मप्र के मंत्री (कैलाश विजयवर्गीय) के दबाव में आकर संदिग्ध भूमिका निभा रही है। विजयवर्गीय इस प्रकरण में न केवल संलिप्त हैं, बल्कि सार्वजनिक घोषणाओं में भी वे यह मंजूर कर चुके हैं। पद का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने 28 अगस्त 2010 को नंदानगर साख संस्था की विशेष साधारण सभा में विवादित जमीन पर कॉलेज बनाने की घोषणा भी कर दी है।

'हाईकोर्ट ने भी तो तय की समय सीमा'   
सेठ ने बताया अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक आरएन सक्सेना के खिलाफ हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को छह माह में जांच करने के निर्देश दिए हैं। उस केस में और मेरे केस में कोई मौलिक अंतर नहीं है। वहां याचिकाककर्ता ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी, यहां विशेष न्यायालय में लगाई गई।                                                   
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यूं निकाली लोकायुक्त पुलिस की हवा
सेठ ने कोर्ट में करीब 300 पेज का जो जवाब पेश किया है, उसमें उन छहों न्यायिक दृष्टांतों को खारिज किया गया है, जो लोकायुक्त पुलिस ने दिए थे।
एक-
निर्मलजीतसिंह हून बनाम पश्चिम बंगला सरकार केस में कोर्ट ने अनुसंधान अधिकारी को अनुसंधान की दिशा या सीमाओं के संबंध में कोई दिशा नहीं दी थी।
दो-
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश पी. हिंदुजा केस में फैसला आरोपी के संबंध में विचार तय करने से जुड़ा है, जबकि मौजूदा केस में विशेष न्यायालय ने कैलाश विजयवर्गीय के बारे में कोई विचार धारणा प्रकट नहीं की है।
तीन-
पश्चिम बंगाल बनाम एसएन बासक केस में कोर्ट के दिशा निर्देश अंतिम जांच प्रतिवेदन के संबंध में है, जबकि सुगनीदेवी केस में अब तक लोकायुक्त पुलिस ने अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया है।
चार -
बिहार बनाम जेएसी सल्धाना केस भी समर्थन नहीं करता है, क्योंकि विशेष कोर्ट द्वारा अंतिम जांच रिपोर्ट के लिए तारीख तय करना अनुसंधान कार्य में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।
पांच -
टीटी ऐथोनी बनाम केरल केस सक्सेसिव एफआईआर से जुड़ा है, इसलिए यहां प्रासंगिक नहीं है।
छह -
एसएन शर्मा बनाम बिपिन कुमार तिवारी, मेसर्स जयंत विटामिन्स बनाम चैतन्य कुमार एंड अदर्स, हरियाणा बनाम भजनलाल केस में एफआईआर और उसके बाद अनुसंधान की स्थिति की व्याख्या की गई है।
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जनता के सामने खड़े कई सवाल

सुरेश सेठ ने कोर्ट में प्रस्तुत जवाब में कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि लोकायुक्त पुलिस के वकील के तर्कों से जनता के सामने कई सवाल खड़े हो गए हैं, न्यायहित में इनका समाधान बेहद आवश्यक है। उन्होंने लिखा है-
1. प्रथम दृष्टया दोषी होने के बावजूद कैलाश के खिलाफ पहली एफआईआर में नाम नहीं जोड़ा जाना कितना न्यायसंगत है?
2. क्या लोक अभियोजक ने 6 अगस्त की पेशी पर जो जवाब पेश किया, वह राज्य सरकार के दबाव में आकर दिया गया है?
3. क्या विशेष लोक अभियोजक दुर्भावनापूर्ण तरीके से विजयवर्गीय के राजनैतिक हितों को साधने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?
4. हाईकोर्ट में 19 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेठ ने लोकायुक्त संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तब लोकायुक्त के वकील ने कोई कोई आपत्ति नहीं ली थी, इसका अर्थ क्या है?
5. क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस केस में विशेष लोक अभियोजक को बतौर लोकस स्टेंडी (पक्ष रखने का अधिकार) प्राप्त है?

पत्रिका १९ अक्टूबर २०१०

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