शनिवार, 3 सितंबर 2011

आईटी ने अटकाया आईटी पार्क का काम

- सॉफ्टवेयर में आई खराबी, टेंडर प्रक्रिया रूकी, आगे बढ़ेंगी तारीखें
- छह महीने में विकास कार्य पूरा करने का लक्ष्य, एक माह तो बीत गया


पांच साल से बनकर तैयार क्रिस्टल आईटी पार्क के विकास में सूचना प्रौद्योगिकी ही परेशानी बन गया। इसके अटके कामों को शुरू करने का पहला चरण शुक्रवार को शुरू होना था, परंतु ई-टेंडरिंग के सॉफ्टवेयर में आई खरीबी के कारण काम अटक गया। वे टेंडर अपलोड ही नहीं हो सके, जिनके आधार पर टेंडर पूर्व की कार्रवाई पूरी होना थी। इससे टेंडर की पूरी प्रक्रिया की नई तारीखें घोषित की जाएंगी।

औद्योगिक विकास केंद्र निगम इंदौर ने जुलाई में ही आईटी पार्क के शेष कामों को पूरा करने का जिम्मा मप्र सड़क विकास निगम (एमपीआरडीसी) को सौंपा है। उसने 23 करोड़ रुपए के टेंडर बुलाए थे। शुक्रवार को भोपाल में टेंडर की प्री-बिड (बोली के पहले) बैठक होना थी। सभी बड़ी निर्माण कंपनियों के नुमाइंदे इसमें मौजूद थे, लेकिन सरकार के आईटी विभाग की वह वेबसाइट ही नहीं खुली जिसके जरिए ई-टेंडर की प्रक्रिया पूरी की जाती है।

आईटी विभाग के पास टेंडर का लोड अधिक हो जाने के कारण 7 सितंबर तक ई-टेंडरिंग की साइट को बंद किया है। इसी कारण प्री-बिड बैठक नहीं हो सकी। नई तारीखें जल्द घोषित कर दी जाएगीं। पहले टेंडर प्रक्रिया 23 सितंबर तक पूरी होना थी, उसमें भी अब बदलाव करना होगा।
- पीयूष चतुर्वेदी, उप महाप्रबंधक, एमपीआरडीसी


एसईजेड का सीमित समय
केंद्र सरकार ने दो साल बाद जुलाई में ही एक साल के लिए आईटी पार्क को एसईजेड (स्पेशल इकॉनॉमिक जोन) का दर्जा दिया है। इस बीच में ही इसकी बिक्री की प्रक्रिया पूरी होने की अधिक संभावना है। इसमें निर्माण कार्य में देरी होने से मामला खींच सकता है। 
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नई दरों का पेंच
एमपीआरडीसी ने वही टेंडर फिर से निकाला है, जो काम नागार्जुन कंस्ट्रक्शन कंपनी ने अधूरा छोड़ दिया था। इसी कारण काम की दर 23 करोड़ आंकी गई हैं। यह वर्ष 2003 की निर्माण लागत है। वर्तमान लागत करीब 60 करोड़ होती है। विभागीय सूत्र बताते हैं, इस राशि के लिए एकेवीएन के तैयार होने में संदेह है क्योंकि नागार्जुन कंपनी ने एकेवीएन के खिलाफ केस दायर कर रखा है। कंपनी ने एकेवीएन से करोड़ों का हर्जाना मांगा है।
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कई बाधाओं का पार्क
2003 : निर्माण शुरू हुआ, तब आस बंधी थी कि इंदौर आईटी सिटी के रूप में विकसित होगी।
2006 : आईटी पार्क बनकर तैयार होना था, लेकिन नागार्जुन कंपनी के साथ करार टूट गया।
2009 : केंद्र सरकार ने एसईजेड का दर्जा देकर रखा, फिर भी सरकार इसमें किसी कंपनी को लाने में सफल नहीं हुई। 
2010:  केंद्र ने एसईजेड का दर्जा छीना, इससे आईटी सेक्टर को मिलने वाली रियायतें कम हो गई और संभावना टूटी। अक्टूबर में खजुराहो इन्वेस्टर्स समिट में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया के साथ एकेवीएन ने करार किया।
2011 : जनवरी में एसईजेड का दर्जा दिलवाने और रुके काम पूरे करने की प्रक्रिया शुरू करने का काम तेज हुआ। जुलाई में केंद्र ने एसईजेड का दर्जा दिया। इसी महीने में एकेवीएन एमडी राघवेंद्र सिंह ने निर्माण कार्य पूरे करने की पहल करते हुए एमपीआरडीसी को जिम्मा सौंपा।
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पत्रिका, 3 September 2011 

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