शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

एकता का दुरुपयोग


इंदौर के सरकारी मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर राह भटक गए हैं। अनजाने में ये डॉक्टर 'एकता में ताकत होती है' सूत्र वाक्य के अर्थ बदल रहे हैं। करीब ढाई सौ डॉक्टरों का यह समूह इस बार एक अनुचित बात के लिए संगठित हो गया है। इनके एक साथी ने कॉलेज से जुड़े एमवाय अस्पताल में काम करने वाले एक अदने कर्मचारी के साथ मारपीट की, केस दर्ज हुआ और गिरफ्तारी हो गई। हड़ताल के शौकीन कुछ डॉक्टरों के समूह को यह बात नागवार गुजरी। आव देखा न ताव, स्टेथेस्कोप और एप्रेन उतार कर काम बंद करने का ऐलान कर दिया। यह भी नहीं सोचा कि किसी के साथ मारपीट करना कानून का उल्लंघन है। इन डॉक्टरों को लगता है कि एकता की ताकत के आगे कानून को भी झुका लेंगे, अनैतिक मांग भी मान ली जाएगी। इनकी इस सोच के पीछे सरकार के वे कदम हो सकते हैं, जो पिछली हड़तालों को खत्म करने के लिए उठाए गए। सभी जानते हैं, सही-गलत सारी बातों को मानकर सरकार हमेशा इन डॉक्टरों को काम पर बुलाती रही है।
जिन डॉक्टरों का कानून में भरोसा नहीं, जिन डॉक्टरों को इस बात की परवाह नहीं कि उनके नहीं होने से सैंकड़ों  रोगियों की जान आफत में आ जाएगी, जिन डॉक्टरों को अपने हित के अलावा कोई दूसरा हित न दिखता हो, उन्हें क्या कहेंगे? आम तौर पर ऐसा करने वालों को दंभी, घमंडी और मतलबी कहा जाता है। इन डॉक्टरों को अपनी एकता पर इतना ही गरूर है तो एक होकर उन रोगियों की मदद के लिए आगे क्यों नहीं आते जो उपचार के लिए एमवाय अस्पताल तक भी नहीं पहुंच पाते? उन रोगियों को क्यों नहीं संभालते जो एमवायएच की दहलीज पर ही पड़े रहकर तड़पते रहते हैं? शहर की उन गंदी या तंग बस्तियों में जाकर लोगों की सेहत क्यों नहीं जांचते? देशभर में जारी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में कूद कर दवा कंपनियों के साथ 'पेशेवर' डॉक्टरों की सांठगांठ उजागर क्यों नहीं करते? डॉक्टरों को खयाल रखना चाहिए कि हड़ताल करके अपनी बात पर सरकार की हां भरवाने के बाद क्या उन्हें वे रोगी माफ कर देंगे जो  इस दौरान इलाज को तरसते रहे और दर्द से तड़पते रहे? गरीबों की उखड़ती सांसें क्या इन्हें बददुआएं नहीं देंगी? डॉक्टरों से आम जनता की सहानुभूति घटती जा रही है, ऐसे में इस पेशे की नई पौध को संभलकर चलने की जरूरत है। हां, जरा सेवा और समर्पण की अपनी उस शपथ और संकल्प को भी याद करें जो डॉक्टर का तमगा लेते वक्त ली गई थी। 
 
पत्रिका ३००९२०११ 

2 टिप्‍पणियां:

  1. एकता मे शक्ती ये इस देश मे अधिकतर अभिशाप के रूप मे ही काम आता है. लोग धर्म, भाषा, समूह, जाती इत्यादी मे तो एकता की बात करते है और मर मिटणे को तैयार राहते है. परंतु जहा देश से संबंधित बात होती है वाह ये एकता का मंत्र गायब हो जाता है. ये देश का दुर्भाग्य काहे या नियती का खेल की दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता आपने आचरण से ही खुद को बरबाद कारे जा रही है. कन्या भ्रुण हत्या जैसा महा पाप करने वाला ये समाज निर्लज्जता से एकता जैसे महा मंत्र को आपने स्वार्थ के लिये भ्र्हमास्त्र की तरह प्रयोग करने से बाज नाही आता. जैसा स्वार्थी समाज वैसे ही समाज से निकले हुये ये स्वार्थी चिकित्सक. जाब समाज को आपने पेट मे पाल रही बच्चीयो को मारने मी शरम नाही, छोटे छोटे बच्चो को बन्धुआ मजदूर बना कर काम कारवाने से शरम नाही, जहा के नेता नैतिकता छोड भ्रस्टाचार के नित नये कीर्तिमान बनाने मी शरम नाही करते तो फिर इन चीकीत्साको से क्या अपेक्षा कारे? प्रभू कृपा करे - विशाल कुलकर्णी

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  2. डॉक्टर रोगीयों की सेवा भावना को भूल गए है। अब तो लगता है कि हर वो व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी भूल गया है जो किसी ऐसे पद पर विराज मान है जो आम जनता की सेवा लिए हो डॉक्टर को तो गरीब जनता अपना भगवान मानती है। लेकिन यह कलयुगी भगवान अपने भक्तो को यू ही तडपा-तडपा के मार रहे है। भगवान न करे किसी ऐसी दहलीज पर इन सब डॉक्टरों को आना पडे जंहा पर इनको भी एक हडताल का सामना करना पडे और यह यू ही तडप-तडप कर मर जाए। आपका भाई विजय गुंजाल एक आम नागरिक

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