रविवार, 5 सितंबर 2010

शिक्षक किशोर तिवारी को कब मिलेगा न्याय

शिक्षा इंतजामों से तंग आकर चार वर्ष पहले दे दी थी जान



मैं अनुदान दि निमाड़ एजुकेशनल सोसाइटी द्वारा संचालित सुभाष हायर सेकंडरी स्कूल प्राप्त शिक्षण संस्था में कार्यरत शिक्षक हूं। सरकार के आदेश के बावजूद सोसाइटी द्वारा शेष जमा राशि नहीं दी जा रही है। मेरे आत्मघात के लिए सोसाइटी अध्यक्ष दुर्गाशंकर गुप्ता, संयोजक डीपी जायसवाल और कोषाध्यक्ष नवलकिशोर अग्रवाल जिम्मेदार हैं। ये घोर वित्तीय अनियमितता कर रहे हैं। शासन के आदेश से शिक्षण शुल्क तो वसूल रहे हैं, लेकिन उसे न तो संस्थागत निधि में जमा कर रहे हैं और न ही शिक्षकों को भुगतान। गरीब मास्टरों पर ये व्यापारी मजदूरों से भी बदतर व्यवहार कर रहे हैं। समाज में किसी को हम पर तरस नहीं आ रहा है और न ही किसी ने व्यवहारिक स्तर पर हमारी मदद ही की है, इसलिए इस नरक को छोडऩा ही बेहतर है। मेरे ब'चों मुझे माफ करना। मैं डरपोक नहीं हूं और न ही जिम्मेदारियों से भाग रहा हूं, लेकिन अब मेरे पास आत्मघात के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं। मुझे परिस्थितियों ने मार डाला है।

यह एक शिक्षक के सुसाइड नोट के संपादित अंश है। शिक्षक का नाम किशोरकुमार तिवारी था। निजी शिक्षण व्यवस्थाओं से तंग आकर उन्होंने एक जून 2006 को खंडवा में सल्फास की गोलियां निगलकर जीवन चक्र समाप्त किया। उनकी पत्नी, बेटा और बेटियां अब इंदौर में है, लेकिन उन्हें आज भी न्याय की तलाश है। उनकी बेटी श्वेता शर्मा कहती हैं जिन लोगों के कारण मेरे पिता की जान चली गई, उनका आज तक कोई बाल भी बांका नहीं कर पाया। निजी शिक्षण संस्थाओं में आज भी मनमानी जारी है। 

प्रायवेट केस लगाना पड़ा
श्वेता ने बताया घटना के  समय हम तीन बहनें इंदौर में नौकरी करती थीं और छोटा भाई रिषभ आठवीं में पढ़ता था। चूंकि खंडवा में पापा बहुत तंगी में जी रहे थे, इसलिए दादी भी हमारे साथ इंदौर में ही रहती थीं। घटना के बाद हमने कोर्ट में प्रायवेट केस दायर किया। दो वर्ष पहले एक बार तारीख लगी थी, इसके बाद आज तक न तो समन आया और न ही सूचना।

पत्रिका : ०५ सितम्बर २०१०

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