सोमवार, 23 अगस्त 2010

इंदौर के मास्टर प्लान पर नवंबर में होगी सुनवाई

- सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद सरकार ने तय की रणनीति
- शहर के विकास में असमंजस्य के हालात


एक जनवरी 2008 को लागू हुई इंदौर विकास योजना 2021 (मास्टर प्लान) पर आई करीब 800 आपत्तियों पर नवंबर में सुनवाई होगी। यह काम इंदौर कलेक्टर की अगुवाई वाली करीब 85 सदस्यों की कमेटी द्वारा किया जाएगा। कमेटी की सिफारिशों पर आवास एवं पर्यावरण विभाग अंतिम निर्णय लेगा और फिर से मास्टर प्लान का गजट नोटिफिकेशन होगा। 

मास्टर प्लान पर मप्र हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज होने के बाद राज्य सरकार के आवास एवं पर्यावरण विभाग ने यह सैद्धांतिक फैसला कर लिया है। विभाग शीघ्र ही नई कमेटी की घोषणा भी करेगा। विभाग के मंत्री जयंत मलैय्या ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक ही अगली कार्रवाई करने के निर्णय की पुष्टि की है।

2000 एकड़ जमीन पर ही असर
विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने 'पत्रिकाÓ को बताया जो अनुमतियां दी जा चुकी हैं, वे रद्द नहीं होंगी। मोटे तौर पर करीब एक लाख एकड़ निवेश क्षेत्र पर मास्टर प्लॉन लागू किया गया है और जो आपत्तियां हैं, वे 2000 एकड़ पर ही हैं, यानी महज दो फीसदी क्षेत्र में। 



शहर के विकास में पांच अड़चनें

अड़चन एक : हरियाली
ज्यादातर आपत्तियों आमोद प्रमोद क्षेत्र (ग्रीन बेल्ट) को लेकर है। आपत्तिकर्ता चाहते हैं कि जमीनों को आवासीय या वाणिज्यिक कर दिया जाए। ऐसा होता है तो शहर के पर्यावरण की संतुलन बिगड़ेगा।

अड़चन दो : आईडीए की योजनाएं 
मास्टर प्लान के हिसाब से आईडीए के मेडिकल हब, ट्रांसपोर्ट हब, स्कीम-168, सुपर कॉरिडोर के आसपास लगने वाली स्कीम 169-ए पर भी प्रभाव पर पड़ सकता है। 

अड़चन तीन : जोनल प्लान
 नगर निगम ने जोन प्लान का मसौदा तैयार कर लिया है। 12 यूनिट को लेकर कुछ निजी कंपनियों से करार भी कर लिया है। अब जोन प्लान पर भी रोक लग जाएगी। मास्टर प्लान में संशोधन होते हैं तो  मसौदों में बदलाव करना पड़ेगा।

अड़चन चार: हाईराइज इमारतें
 प्लान लागू हुए ढाई वर्ष हो चुके हैं। इस दौरान नगर निगम और टीएंडसीपी से हाईराइज इमारतें और टाउनशिप के नक्शे पास हुए हैं। उन पर भी असर पड़ सकता है। फिर से सुनवाई होने की दशा में भू-उपयोग बदल सकता है। ऐसे में कुछ प्रोजेक्ट अटक सकते हैं। 

अड़चन पांच : विकास प्रोजेक्ट
विभिन्न योजनाओं के तहत शासकीय निर्माण एजेंसियों ने जो प्रस्ताव राज्य व केंद्र सरकार से स्वीकृत कराए या भेजे हैं उन पर पुनर्विचार हो सकता है।


'सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी खारिज होने और हाईकोर्ट की युगलपीठ का फैसला देखने के बाद ही तय होगा कि निगम के किन कामों पर असर पड़ेगा।Ó
- सीबी सिंह, निगमायुक्त इंदौर 
'मास्टर प्लान के लैंडयूज के हिसाब से ही हम योजनाएं घोषित करते हैं। सुनवाई के बाद भू उपयोग बदला तो योजना बदल देंगे, लेकिन फिलहाल ऐसा कोई आसार नजर नहीं आ रहा।Ó
- चंद्रमौली शुक्ला, सीईओ, आईडीए

' सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिरोधार्य है। उसके मुताबिक ही सरकार आगे की कार्रवाई करेगी।Ó
- जयंत मल्लैया, मंत्री, आवास एवं पर्यावरण विभाग


अफसरों गलतियों का खामियाजा भुगतेगा शहर
- प्रशासनिक अनदेखी के कारण ढाई वर्ष पहले लागू मास्टर प्लान के कुछ हिस्से पर फिर से होगी सुनवाई


आवास एवं पर्यावरण विभाग के अफसरों की गलतियों का खामियाजा इंदौर को भुगतना पड़ेगा। साढ़े तीन वर्ष से अफसर नियमों की अनदेखी करते रहे और अब मास्टर प्लान की सुनवाई की नौबत आ गई। इससे शहर के विकास कार्यों पर असर होगा और आशंका है कि कुछ कार्य रूक भी जाएंगे।
दरअसल, मास्टर प्लान का प्रारूप तैयार करने वाले अफसरों ने वर्ष 2007 में ही गलती करना शुरू कर दी थी। कुछ जानकार इसे गलती के बजाए 'जमीनों का खेलÓ भी कहते हैं। यह गलती आगे बढ़ती गई। मास्टर प्लान पर जनसुनवाई, आपत्तियां, इसके बाद फिर से कमेटी का गठन, हाईकोर्ट की एकल पीठ में फिर से सुनवाई का सुझाव, युगल पीठ में फिर से नया जवाब जैसे कई चरणों पर गलतियां हुई।

चार चूकों से उलझा मास्टर प्लान

चूक एक : धारा 19(2) का पालन नहीं किया

 टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के रिटायर इंजीनियर जयवंत होलकर ने बताया मप्र ग्राम एवं नगर निवेश अधिनियम की धारा 19(2) के तहत शासन द्वारा सुनवाई के उपरांत ही मास्टर प्लान की अधिनियम की धारा 19(5) के तहत अंतिम रूप से मंजूर किया जा सकता है। इसके बाद मास्टर प्लान के प्रावधानानुसार विकास अनुज्ञा जारी होती है। इस प्रक्रिया का पालन नहीं करने के कारण ही यह स्थिति निर्मित हुई है।

चूक दो : कोर्ट के सामने कमजोर साबित

महानगर विकास परिषद के मानद सचिव राजेश अग्रवाल ने बताया जो आपत्तियां लगी हैं, उन्होंने उस ड्राफ्ट को आधार बनाया है, जो महज प्रस्ताव ही था। इसमें 1991 में के प्लान के कुछ आमोद-प्रमोद के स्थानों ग्रीन लैंड को आवासीय दर्शाया गया। सुनवाई प्रक्रिया के बाद इन भू उपयोगों को पुन: आमोद प्रमोद कर दिया गया, क्योंकि पुराने प्लान में इनमें फेरबदल नहीं किया जा सकता था। वैसे भी इनके उपयोग पर 1975 के पहले ही सुनवाई प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ऐसे में आपत्तियों का आधार ही गलत है। सरकार की ओर से यह बात कोर्ट में रखी जाती है, तो संभवत: स्थिति कुछ और बनती। 

चूक तीन : हाईकोर्ट में दी सुनवाई पर सहमति

वरिष्ठ एडवोकेट मनोहर दलाल बताते हैं 20 याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सरकारी वकील ने जवाब दिया कि सुनवाई की जाएगी। इस पर 17 जून 2008 को जस्टिस विनय मित्तल की एकल पीठ ने अधिनियम की धारा 19(2) में सुनवाई करने को कहा था। आपत्तियां दर्ज कराने का अंतिम दिन 4 जुलाई 2008 तय किया गया था और 30 सितंबर तक इस पर सुनवाई होना थी। सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए युगल पीठ में 11 अपीलें दर्ज की। वहां सरकारी वकील ने कहा दिया धारा 18(2) में सुनवाई करेंगे। दोनों बार सरकार ने सुनवाई को मंजूरी दी, इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने केस खारिज कर दिया।


चूक चार: तीन सदस्यी कमेटी का गठन

एक आपत्तिकर्ता ने बताया मास्टर प्लान पर सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने की तारीख 5 फरवरी 2007 की समय सीमा के बाद कई लोगों ने सरकार को शिकायत की। इस पर सरकार ने 24 मई 2007 को अपर संचालक डीके शर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यी कमेटी का गठन किया। याचिकाकर्ताओं ने इस कमेटी को आधार बनाकर ही कोर्ट में मास्टर प्लान को चुनौती दी। तर्क था कि 7 जुलाई 2007 को प्रस्तावित और 01 जनवरी 2008 को जारी किए गए मास्टर प्लान में उन स्थानों के भू उपयोग बदल दिए गए, जिनको लेकर आपत्ति दर्ज ही नहीं की गई।



 पत्रिका: २२ अगस्त २०१०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें