सोमवार, 23 अगस्त 2010

अफसर की सनक

भुवनेश जैन

मध्यप्रदेश के मंदसौर शहर में एक अजीब खेल चल रहा है। यहां सरकारी अफसर बाकायदा 'लक्ष्यÓ तय कर एक मंदिर के लिए चंदा उगाही कर रहे हैं। सरकार के किसी भी दफ्तर में कलेक्टर कार्यालय से लेकर ग्राम पंचायत में किसी को कोई भी काम करवाना हो तो पहले चंदे की रसीद कटवाए, फिर फाइल आगे चलेगी। हर सरकारी दफ्तर को उसके स्तर के अनुरूप लक्ष्य दिए गए हैं।
यूं तो पूरे देश में समाजकंटक चंदे के नाम पर अवैध उगाही करते मिल जाएंगे, पर मध्यप्रदेश इस बीमारी से ज्यादा ही ग्रस्त है। कभी कलश यात्रा के नाम पर, कभी भंडारे के नाम पर तो कभी भजन-कीर्तन के नाम पर आए दिन चंदेबाजों के गिरोह रसीदें लेकर वसूली के लिए पहुंच जाते हैं, लेकिन जब सरकारी अफसर चंदा वसूली में जुट जाएं तो औरों को कौन रोकेगा?

मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर के कलेक्टर प्रशासक हैं और एसडीएम सचिव। मंदिर में मनोकामना अभिषेक के नाम पर चंदा उगाही हो रही है। बाकायदा ११०० व २१०० रुपए की रसीदें छपवाई गई हैं। हद तो यह है कि पांच करोड़ रुपए इकटï्ठा करने का लक्ष्य पूरा हो, इसके लिए चार विकासखंडों में नोडल अफसर बनाए गए हैं। एक तरह से उन्हें यह भी सुनिश्चित करना है कि कहीं किसी का काम बिना चंदा दिए न हो जाए। सवाल यह उठता है कि अगर सरकारी अफसर मंदिर के नवनिर्माण के लिए चंदा उगाह रहे हैं तो क्या उन्होंने राज्य सरकार को प्रस्ताव भेज इसकी अनुमति ली है? पूरे प्रदेश में यदि इसी तरह अफसरों को चंदा वसूली की छूट दे दी गई तो कैसी अराजकता होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। सरकारी दफ्तरों में तो आदमी अपनी तकलीफें लेकर ही जाता है, चाहे वह ब्लॉक का ऑफिस हो या कलेक्टर का। ऐसे पीडि़त से जबरन चंदा वसूली करना अमानवीय ही है।

धर्मस्थलों के निर्माण के लिए श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से योगदान देते हैं। जबरन वसूली जहां होती है, वहां श्रद्धा तो हो ही नहीं सकती। यह तो धर्मस्थल है, यदि किसी अधिकारी को सनक चढ़े कि वह शहर में होटल या मॉल बनवाने के लिए चंदा उगाहेगा, तो क्या उसे छूट दी जाएगी। इस चंदा वसूली में एक तरफ जनता की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ उस पर जबरन ऐसे 'करÓ का भार डाल दिया गया है, जिसका एक धेला भी सरकारी खजाने में जमा नहीं होगा।

आश्चर्य की बात यह है कि इस चंदा वसूली को लेकर जनप्रतिनिधि भी मौन हैं। अब तक ढाई करोड़ रुपए इकट्ठा किए जा चुके हैं। क्या जनता की नब्ज पर हाथ रखने वालों को उसकी चीख नहीं सुनाई देती? तो क्या फिर यह माना जाए कि इस चंदा वसूली के पीछे उनके भी स्वार्थ हैं। भ्रष्टाचार का यह एक अनूठा उदाहरण है, जिसमें सरकारी अफसरों की छत्रछाया में जनता से ऐसी वसूली की जा रही है, जिसका हिसाब पूछने वाला कोई नहीं है। अवैध वसूली में राजनीतिज्ञों और अफसरों के गठजोड़ का यह नया उदाहरण है। राज्य सरकार भी चुप है तो यह या तो उसके सूचना तंत्र की कमजोरी है या उसकी मौन स्वीकृति से यह उगाही हो रही है।




भुवनेशजी जैन पत्रिका के समूह संपादक हैं.
पत्रिका : २३ अगस्त २०१०

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