बुधवार, 6 अक्टूबर 2010

लोकायुक्त को मिलेगा 300 पेज का जवाब

- कैलाश को  समय कवच  से सुरक्षित रखने के कदम पर सुरेश सेठ की पुख्ता तैयारी
- सुगनीदेवी केस पर अधूरी एफआईआर पर विशेष न्यायालय में बहस आज


सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन में हुए 100 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच कर रही लोकायुक्त पुलिस के लिए कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने 300 पेज का जवाब तैयार कर लिया है। यह जवाब बुधवार को विशेष न्यायालय में पेश किया जाएगा। उधर, लोकायुक्त पुलिस का जोर मामले में दर्ज अपनी अधूरी एफआईआर को अंतिम साबित करने पर रहेगा।

केस में पिछली सुनवाई 21 सितंबर को हुई थी, तब लोकायुक्त पुलिस को मूल शिकायत के आरोपी क्रमांक दो (तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय) के भूमिका को लेकर अंतिम रिपोर्ट पेश करना थी। परंतु लोकायुक्त के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने कोर्ट को बताया था कि मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और चालान पेश करने का लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है। इस तर्क पर बहस के लिए कोर्ट ने 6 अक्टूबर मुकर्रर किया था।

 सुप्रीम कोर्ट भी चाहता है, समय सीमा तय हो

सुरेश सेठ ने 'पत्रिकाÓ को बताया मैंने जवाब में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के करीब एक दर्जन न्यायिक दृष्टांत दिए हैं। सभी कोर्टें चाहती हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में समय सीमा में जांच पूरी हो जाए। सोमवार को मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एसआर आलम एवं ïआलोक अराधे की युगलपीठ ने अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (एपीसीसीएफ) आरएन सक्सेना पर भ्रष्टाचार के आरोप से जुड़े केस में लोकायुक्त पुलिस छह महीने में जांच पूरी करने के निर्देश दिए हैं। 

मेंदोला-संघवी की याचिका में छुपा संदेश
सेठ ने बताया इंदौर हाईकोर्ट में जिस तरह से मामले में फंस चुके रमेश मेंदोला और मनीष संघवी की याचिका खारिज की है, उसका संदेश साफ है कि जांच प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है। लोकायुक्त समय पर जांच पूरी नहीं कर पाए तो उसे साफ इंकार कर देना चाहिए। मैंने तो हाईकोर्ट में भी सीबीआई जांच की मांग उठाई थी।

'मुझे दूर करना संभव नहींÓ
पिछली सुनवाई में लोकायुक्त पुलिस ने तर्क दिया था कि एफआईआर रजिस्टर होने के बाद जब तक अंतिम जांच रिपोर्ट पेश नहीं हो जाती, तब तक केस कोर्ट व पुलिस के बीच ही रहता है। परिवादी इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले सकता है। परिवादी सेठ को कोर्ट के समक्ष उपस्थिति होने का अधिकार भी नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए सेठ कहते हैं जांच प्रक्रिया से शिकायतकर्ता को दूर करने की कोशिश शंका को जन्म देती है। 

हकीकत की कसौटी पर कितने खरे लोकायुक्त पुलिस के तर्क ?


तर्क एक
घटना अवधि 20 वर्ष की है और इसके लिए विभिन्न विभागों से दस्तावेज जुटाए जाना है। इसमें वक्त लगेगा।
कसौटी
5 अगस्त को दर्ज एफआईआर के पेज चार के मुताबिक सभी संबंधित विभागों से दस्तावेज जुटाए जा चुके हैं। यहीं सवाल उठता है कि फिर लोकायुक्त पुलिस और कौन से कागज चाहती है?

तर्क दो
विभिन्न साक्षियों के विस्तृत कथन लिपिबद्ध किए जाना है। इसमें अधिक समय लगना स्वाभाविक है।
कसौटी
एफआईआर के पेज पांच के मुताबिक मौजूदा और पूर्व निगमायुक्त से लेकर सभी प्रमुख संबंधित अफसरों और लोगों से बयान लिए जा चुके हैं। यहीं सवाल उठता है ऐसे कौन लोग शेष हैं, जिनसे लोकायुक्त पुलिस बात करना चाहती है?

तर्क तीन
दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान की समय सीमा तय करने का जिक्र नहीं किया गया है।
कसौटी
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने अंतिम जांच रिपोर्ट करने के लिए स्वयं कोर्ट से चार महीने का समय मांगा था। परिवादी सुरेश सेठ की आपत्ति पर डेढ़ महीने की समयसीमा तय हुई थी। अब सवाल है कि उस दिन ïदंड प्रक्रिया संहिता क्यों याद नहीं आई?

तर्क चार
एफआईआर दर्ज होने के बाद अनुसंधान की प्रक्रिया में परिवादी हिस्सा नहीं ले सकता है।
कसौटी
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि जो एफआईआर दर्ज की गई है, वह अधूरी है। आरोपी क्रमांक दो (कैलाश विजयवर्गीय) की भूमिका की पड़ताल के लिए अगली तारीख नियत कर दी जाए। अब सवाल है कि प्रारंभिक जांच में जब एक आरोपी की भूमिका को लेकर पड़ताल ही नहीं की गई तो परिवादी को प्रक्रिया से दूर कैसे किया जा सकता है?

पत्रिका : ०६ अक्टूबर २०१०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें