बुधवार, 6 अक्टूबर 2010

मंत्रीजी, घुट-घुटकर मर गई मेरी पत्नी

- ड्रग ट्रायल मामले में मरीज के परिजन की पहली लिखित शिकायत
- चिकित्सा शिक्षा मंत्री महेंद्र हार्डिया से की जांच करवाने की मांग
- एमवाय अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग में चल रहा था उपचार



 अल्जाइमर रोग से पीडि़त मेरी पत्नी को मैं 29 मार्च 2006 को उपचार के लिए एमवाय अस्पताल लेकर आया था। इलाज के दौरान न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. अपूर्व पुराणिक ने 27 जून 2008 को मेरी पत्नी को एक अध्ययन में शामिल करके उपचार शुरू किया और डोनेपोझिल के हेवी डोज उसे दिए जाने लगे। पहले वह मुझे और मेरी परिवार को पहचानती थी। धीरे-धीरे उसे स्मृति भ्रम होने लगा और बाद में तो वह सबकुछ भूल गई। आखिर में घुट-घुटकर 8 अगस्त को उसकी मौत हो गई। अब मुझे पता चला है कि वह अध्ययन एक ड्रग ट्रायल था। मेरी पत्नी की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी। ट्रायल के हेवी डोज से उसकी मृत्यु हुई है।

खंडवा निवासी शीला के पति शरद गीते (76) यह कहते-कहते रूंआसे हो जाते हैं। शरद गीते ने अपने साथ हुए धोखे की दास्तां 'पत्रिकाÓ को बताई। साथ ही उन्होंने स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया को एक शिकायती पत्र लिखकर इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग भी की है। गीते सेवानिवृत्त सहायक पंजीयक हैं और शनिवार को इंदौर में थे। ड्रग ट्रायल का मसला उजागर होने के बाद से मंत्री और सरकारी अधिकारी लगातार कह रहे हैं कि उन्हें अब तक किसी मरीज ने शिकायत नहीं की है। गीते ने बताते हैं 'पत्रिकाÓ में प्रकाशित खबरों के बाद ही पता चला कि हम ट्रायल के शिकार हैं।

क्यों नहीं दिया जीवन बीमा?
गीते ने बताया पत्नी को जब इलाज करवाने ले जाता था, तो मुझे आने-जाने का खर्च दिया जाता था। बाद में यह भी बंद कर दिया गया। इलाज शुरू करने के पहले डॉ. पुराणिक ने एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए थे। इस पर लिखा था कि आपका जीवन बीमा करवा गया है, परंतु आज तक हमें यह नहीं दिया गया।

पांच वर्ष बाद तक क्लेम का हक

ड्रग ट्रायल के लिए बीमा कंपनियों ने क्लिनिकल ट्रायल लाइबिलीटी इन्श्योरेंस (सीटीएलआई) का प्रबंध किया है। इसके तहत ट्रायल के बाद के पांच वर्ष तक का जीवन बीमा रहता है।

हालत बिगड़ती गई, पर नहीं हुई सुनवाई
गीते के पुत्र शिताम्शु ने बताया उपचार डॉ. कुंदन खामकर, आरती वासकले और रिचासिंह करती थीं। इलाज शुरू हुआ तब पत्नी सारे रिश्तेदारों को पहचान लिया करती थी। स्थिति बिगड़ती गई और हम डॉक्टरों को शिकायत करते रहे, परंतु किसी ने सुनवाई नहीं की।

कहीं उपचार बंद तो नहीं था उपचार
यह ट्रायल प्लेसिबो था, जिसमें एक नकली (डमी) दवा दी जाती है। यह दिखती तो दवाई जैसी है, किंतु इसमें दवा के बजाए स्टार्च या ग्लूकोज होता है। शीला गीते भी प्लेसिबो ट्रायल में शामिल थीं। डब्ल्यूएचओ ने प्लेसिबो को खतरनाक माना है, क्योंकि इसमें मरीज की तबीयत बहुत तेजी से बिगड़ सकती है।

2008 से चल रही 5.34 लाख की ट्रायल
दवा                                         : डोनेपेजिल एसआर 23 एमजी व डोनेपेजिल आईआर 10 एमजी
कब से                                     : वर्ष 2008 से
डॉक्टर                                     : मुख्य- अपूर्व पुराणिक, सहायक- कुंदन खामकर
डॉक्टरों को मिली राशि             : 5 लाख 34 हजार 241 रुपए
इतनी दवाइयां       : 18.16 लाख प्लेसिबो केप्सूल, 1008 दवा के केप्सूल व 24.19  हजार गोलियां।
स्पांसर कंपनी       : क्विंटल्स
दवा कंपनी            : ईसाई ग्लोबल क्लीनिकल डेवलपमेंट, लंदन
ट्रायल का चरण     : तृतीय


लिखित में पूछेंगे, तभी कुछ बताऊंगा

मैं आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकता हूं। आप मुझसे लिखित में पूछेंगे, तभी आपको कुछ बता पाऊंगा। वैसे, भी मैं अभी इंदौर में नहीं हूं।
- डॉ. अपूर्व पुराणिक, न्यूरोलॉजिस्ट, एमवाय अस्पताल

(पत्रिका ने डॉ. पुराणिक को ईमेल और फैक्स का विकल्प भी सुझाया, परंतु उन्होंने इंकार कर दिया। वैसे, पत्रिका अगस्त में सूचना का अधिकार में ड्रग ट्रायल की जानकारी मांग चुका है। तब डॉ. पुराणिक के विभाग ने 'जानकारी देना जरूरी नहींÓ कहकर इंकार किया था।)


भूलने का रोग अल्जाइमर
अल्जाइमर को विस्मृति रोग कहते हैं। आमतौर पर यह वृद्धावस्था में होता है। जर्मन डॉ. ओलोए अल्जीमीर ने 1906 में एक महिला के मस्तिष्क के परीक्षण में पाया कि उसमें कुछ गांठे पड़ गई हैं, जिन्हें चिकित्सा विज्ञान में प्लेट कहा जाता है। गांठे पडऩा ही रोग है। डॉ. अल्जीमीर के नाम पर अल्जाइमर नाम प्रचलित हुआ।

पत्रिका : ०४ अक्टूबर  २०१० 

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