बुधवार, 6 अक्टूबर 2010

नकली दवा से इलाज तो नहीं

 ड्रग ट्रायल में महिला की मौत के मामले में उठा नया सवाल

अल्जाइमर रोग के पीडि़त खंडवा की शीला गीते की मौत का कारण कहीं नकली दवा से उनका उपचार तो नहीं? अब यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। दरअसल, वे जिस ड्रग ट्रायल में शामिल थीं, वह प्लेसिबो ट्रायल था। इस ट्रायल में कुछ मरीजों को नकली दवा दी जाती है, जो दिखती तो दवा जैसी है किंतु उसमें दवा के बजाए स्टार्च या ग्लूकोज होता है।

'पत्रिकाÓ ने सोमवार के अंक में खुलासा किया था कि शीला गीते के पति शरद गीते ने स्वास्थ्य राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया को पत्र लिखकर शिकायत की है कि उनकी पत्नी की मौत के बावजूद उन्हें बीमे के राशि नहीं दी गई है। 'पत्रिकाÓ के पास उपलब्ध दस्तावेजों से पता चलता है कि शीला गीते पर जो ट्रायल हो रहा था, वह प्लेसिबो ट्रायल था। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अपूर्व पुराणिक ने उनसे जिस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए थे, उस पर साफ-साफ लिखा है कि आपको सिक्का उछालने वाले खेल की तरह एक अध्ययन में शामिल किया जा रहा है। हो सकता है आपको जो दवा दी जाए, वह नकली हो।

तीन में से दो को नकली दवा
डोनेपेजिल दवा के ट्रायल में हर तीन में से दो मरीजों को नकली दवा मिलता तय था। यह बात डॉक्टर भी जानते हैं। बावजूद इसके मरीज की जान जोखिम में डाली गई।


 जिसे असली दवा मिलती, उसे होता लाभ
डॉ. अपूर्व पुराणिक ने 'न्यूरो-प्रतिध्वनिÓ नाम के अपने ब्लॉग पर लिखा है कि ट्रायल के शुरू में ही हम मरीज को बता देते हैं कि उसे जो दवा दी जाती है, वह असली है या नकलीï, यह हमें पता नहीं रहता। ट्रायल समाप्त होने के बाद ही अंतिम परिणाम का पता चलता है। जिसे असली दवा मिलती है, उसे लाभ होता है।

 प्लेसिबो ट्रायल सबसे खतरनाक
स्वास्थ्य समर्पण सेवा समिति के डॉ. आनंद राय कहते हैं प्लेसिबो ट्रायल सबसे खतरनाक होता है। अंतरराष्टï्रीय स्तर पर इसे न्यूनतम करने के निर्देश जारी हो चुके हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में हो रहे ज्यादातर ट्रायल प्लेसिबो हैं। इसमें मरीज को पहले से मिल रहा उपचार भी बंद हो जाता है और नतीजतन उसकी तबीयत सुधरने के बजाए बिगडऩे लगती है।


अभी बता पाना मुश्किल

क्या शीला गीते पर प्लेसिबो ट्रायल हो रहा था?
हां, यह प्लेसिबो ट्रायल ही था।
क्या उन्हें नकली दवा दी गई थी?
अभी यह पता नहीं चल सकता है। कंपनी के पास इसकी जानकारी रहती है। डाटा एनालिसिस के बाद ही इसका पता चलेगा।
प्लेसिबो ट्रायल से होने वाले दुष्परिणाम का जिम्मेदार कौन है?
हम पूरी देखरेख करते हैं और तबीयत बिगडऩे पर ट्रायल से हटा भी लेते हैं।
शीला गीते के केस में ऐसा क्यों नहीं हुआ?
वे हमसे संतुष्ट थे और यही वजह कि वे जनवरी तक उपचार लेती रहीं।
क्या गीते परिवार को बीमे का लाभ नहीं मिलना चाहिए?
मुझे फिलहाल बीमे की जानकारी नहीं है। कागज देखकर ही बता पाऊंगा।
(डॉ. पुराणिक से चर्चा)


सरकार ने मांगी मरीजों की सूची
- एमजीएम मेडिकल कॉलेज में हड़कंप


चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सभी मेडिकल कॉलेजों से उन मरीजों की सूची तलब की है, जिन पर ड्रग ट्रायल किया गया। इससे एमजीएम मेडिकल कॉलेज में हड़कंप मच गया है। माना जा रहा है कि विधानसभा के पटल पर स्वास्थ्य मंत्री महेंद्र हार्डिया के उस बयान को पूरा करने के लिए यह कवायद की जा रही है, जिसमें उन्होंने विधानसभा के सभी सदस्यों को मरीजों की सूची उपलब्ध कराने का  वादा किया था।
ज्ञात रहे कि पिछले पांच वर्ष में राज्य में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ है। इनमें से 1644 ब'चे हैं। मरीजों में से 51 पर ट्रायल के दुष्परिणाम भी हुए हैं।


पत्रिका : ०५ अक्टूबर २०१०

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