- राजस्थान से उठी मांग, जितना माल तैयार हो, सब भेज दो
राजस्थान के एक फैसले से मध्यप्रदेश के हजारों हाथों को काम मिल गया। हाथों से कागज की थैली बनाने में माहिर मप्र के बाशिंदों के पास इन दिनों फुर्सत नहीं है, क्योंकि उन्हें कई सौ क्विंटल माल बनाकर पड़ोसी राज्य को भेजना है। वहां इसी महीने की पहली तारीख से प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगा दी गई है।
राजस्थान के फैसले से मप्र की औद्योगिक नगरी इंदौर में मृत हो चुके कागज की थैली के कारोबार को एक तरह से नई जान मिल गई है। आजाद नगर निवासी मुमताज बी कहती हैं करीब 15 बरस पहले थैलियां बनाते थे, तब हमें एक या डेढ़ रुपए मिलता था, अब पांच से सात रुपए किलो मिल रहा है। मांग का इतना दबाव है कि फुर्सत ही नहीं मिल रही है।
एक ही मशीन, कितना लोड सहे
इंदौर में थैलियां बनाने की एक ही मशीन है। यह इन्वोफ्रेंडली पेपर बैग कंपनी में लगी है। इसके सुपरवाइजर सीएच विश्वकर्मा ने बताया उदयपुर, चित्तौढ़, कोटा, बांसवाड़ा सारे शहरों से खाकी थैलियों की इतनी मांग आ रही है कि काम करने वाले कम पड़ रहे हैं। करीब 20 टन का आर्डर पेंडिंग है। मशीन एक ही है और इसकी भी सीमित क्षमता है। फिलहाल करीब तीन क्विंटल थैलियां रोज बना रहे हैं। उन्होंने बताया मशीन पर केवल कागज रोल से ही थैलियां बन सकती हैं।
घर ही नहीं दुकानों पर शुरू हो गया निर्माण
आमतौर पर थैलियां महिलाओं और ब'चों द्वारा घरों पर बनाई जाती हैं, लेकिन मांग को देखते हुए रद्दी के कुछ व्यापारियों यह काम दुकानों पर ही शुरू कर दिया है। सिंधी कॉलोनी के अग्रसेन वेस्ट पेपर के संचालक अशोक अग्रवाल ने बताया नब्बे के दशक में भी मैं थैलियां बनाया करता था। मैग्जीन, शेयर पेपर और चिकने कागजों की थैलियों की विशेष मांग है। एक व्यक्ति एक दिन में 10 से 12 किलो थैलियां बना लेता है।
घोषणा तो यहां भी हुई, पर अमल नहीं
नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने पिछले दिनों इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में प्लास्टिक की थैलियों के पूर्ण प्रतिबंध की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक इसे अमल में नहीं लाया जा सका है।
दुकानदारों के लिए फायदेमंद हैं ये थैलियां
प्लास्टिक की थैलियां सामान के साथ तोलने में चली जाती हैं, लेकिन उसका वजन नाममात्र का ही रहता है। कागज की थैली में सामान देने पर दुकानदार को फायदा होता है, क्योंकि जिस भाव में थैली मिलती है उससे ज्यादा में वह तुल जाती है।
- नारायण कालरा, संचालक, जेके वेस्ट पेपर
मप्र में तो कागज की थैलियों मांग नहीं है। यहां तो सूखी चाय और कचोरी समोसे वाले ही इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि इंदौर में खाकी कागज की थैली बनाने वाली एकमात्र यूनिट भी ऑक्सीजन पर थी। अब उसे ताकत मिलेगी।
- अशोक गोयल, संचालक, अशोक ट्रेडर्स
कागज की थैली का काम शुरू करने वाले लोग डावांडोल हैं। उन्हें डर है कि कहीं राजस्थान सरकार फैसला वापस न ले ले। ऐसा हुआ तो वे बेरोजगार हो जाएंगे।
- राजेश इरानी, मैनेजर, न्यू गुरुनानक ट्रेडर्स
पुराने कारोबार का नया उदय
'जबरदस्त मांग के कारण भावों में पांच रुपए तक बढ़ोतरी हो गई है। अखबार की रद्दी के दाम भी बढ़ा दिए हैं। दरअसल, राजस्थान में थैली का उद्योग नहीं है, इसलिए यहां से माल जा रहा है। भीलवाड़ा, चित्तौढ़, उदयपुर, कोटा, बांसवाड़ा, जयपुर तक से थैलियों के लिए फोन आ रहे हैं। वहां की सरकार के निर्णय से मप्र में बंद हो चुके कारोबार का नए सिरे से उदय हो रहा है। इससे हजारों लोगों का रोजगार का अवसर मिल गया है।Ó
- प्रवीण पाटनी, अध्यक्ष, इंदौर प्लास्टिक पैकिंग मटेरियल निर्माता एवं विक्रेता संघ
पत्रिका : २८ अगस्त २०१०
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