- कहा बिल पास होने से कंपनियों को जमीन देने बन जाएगा किसानों की मजबूरी
मेधा पाटकर |
रेल लाइन बिछाने, सड़कें बनाने, सरकारी इमारतें खड़ी करने के लिए अंग्रेजों ने 1884 में जो भूमि अधिग्रहण कानून बनाया था, उसमें केंद्र सरकार द्वारा की जा रही संशोधन की बात एक साजिश है। संशोधन के मुताबिक किसी भी निजी कंपनी या सरकारी प्रोजेक्ट को जमीन तभी मुहय्या करवाई जाएगी, जबकि वह 70 फीसदी खरीद लेगा। कुछ राजनेता मानते हैं कि इससे किसानों की बार्गेनिंग पॉवर (मोलभाव की शक्ति) बढ़ेगी, परंतु वास्तव में ऐसी स्थिति नहीं बनेगी। दरअसल, कंपनी जमीन मालिक पर उसकी शर्तों पर जमीन देने का दबाव डालेगी और कहेगी कि जमीन दे दो नहीं, तो सरकार जबरदस्ती अधिग्रहित करके हमें सौंप देगी।
भूअधिकार, पुनर्वास और विकास के मौजूदा ढांचे पर लंबे अरसे से जमीनी लड़ाई लड़ रही मेधा पाटकर यह कहते हुए उस प्रारूप पर केंद्रित हो जाती हैं, जो राष्टï्रीय सलाहकार समिति ने वर्ष 2006 में मंजूर किया था। तब समिति की अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं। मेधा ने पत्रकारों को बताया उस प्रारूप में व्यापक विकास नियोजन की नीति थी, जिसे देश के जनआंदोलनों ने मिलकर तैयार किया था। भूअधिग्रहण कानून में संशोधन के बजाए सरकार को चाहिए कि उस प्रारूप को नीति का रूप दें। इससे देशभर में जारी अंधाधुंध विकास पर नियंत्रण होगा और गांव-शहर में सामंजस्य बना रहेगा। इससे खेत और किसान दोनों ही महफूज रहेंगे।
पैसा फेंको, तमाशा देखो
मेधा के मुताबिक कानून से सिर्फ पूंजीपतियों को फायदा होगा। वे पैसा फेंकेंगे और जमीनें खरीद लेंगे। कुछ राजनेता कानून को लागू करवाने की जल्दी में हैं, ताकि ताबड़तोड़ उन्हें 'राजनैतिक फायदाÓ मिल सके। जनआंदोलन चाहते हैं कि इस विषय पर राष्टï्रीय बहस हो।
60 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि समाप्त
मेधा का कहना है कि यह मसला सिर्फ जमीन देने-लेने का ही नहीं है। इसका खाद्य सुरक्षा से भी नाता है। वर्ष 1990 से 2005 तक देशभर में 60 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को अधिग्रहित किया गया और इतनी जमीन पर खेती बंद हो गई।
अधिग्रहण करके पटक देते हैं जमीन
अधिग्रहण के नाम पर धोखे भी बहुत होते हैं। विकास योजनाओं के नाम पर जमीन ली जाती है और बाद में योजनाएं ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। मेधा का कहना है इंदौर, भोपाल जैसे शहरों में भी यह हो रहा है। कई बार जिस कार्य के लिए जमीन ली जाती है, वह उस पर किया ही नहीं जाता।
राहुल गांधी के बयान के बाद चर्चा में आया मुद्दा
- अंग्रेजों ने 1884 में बनाया था भूमि अधिग्रहण कानून। वर्ष 1994 में इस कानून में संशोधन किया गया, लेकिन खामियों के चलते अधिग्रहण में मनमानी जारी रही।
- सिंगूर और नंदीग्राम में हिंसक टकराव के बाद भूमि अधिग्रहण कानून (संशोधन) विधेयक 2007 तैयार किया लेकिन खासतौर पर ममता बनर्जी के विरोध की वजह से यह रखा ही रह गया।
- वर्तमान में उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के कारण यह विषय देश के सामने आया।
- बुधवार को कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा 'भूमि अधिग्रहण एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। अलीगढ़ में जो हुआ वह अनुचित था। हमें उस पर गौर करने की जरूरत है।Ó
- राहुल के बयान के बाद ही इस मुद्दे को व्यापक रूप से देखा गया और प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने कहा कि अगले सत्र में कानून में संशोधन विधेयक रखा जाएगा।
- विधेयक में जन उद्देश्य की रक्षा, बुनियादी संरचना या आम जनता के लिये उपयोगी किसी परियोजना के लिए अधिग्रहित होने वाली भूमि के रूप में पुनर्परिभाषित करने का प्रस्ताव है। विधेयक कहता है कि जिस अधिग्रहण में व्यापक पैमाने पर विस्थापन होने वाला हो, ऐसे मामले में उसके सामाजिक प्रभाव का आकलन किया जाना चाहिए।
पत्रिका : २८ अगस्त २०१०
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