मंगलवार, 7 सितंबर 2010

125 करोड़ की जमीन पर क्यों न बने अस्पताल ?

- एक वर्ष पुराने फैसले के अमल में आते ही उठा सवाल 
- मामला कल्याणमल नर्सिंगहोम के पास की 14 हजार वर्गफीट भूमि का


भूमाफिया के कब्जे वाली 125 करोड़ रुपए मूल्य की जमीन हासिल करने के साथ ही प्रशासन के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि  इस पर मल्टीलेवल पार्किंग तानी जाए या अस्पताल बनाए। अफसरों के लिए होस्टल का प्रस्ताव भी सामने आ गया है।

ग्रेटर कैलाश रोड स्थित कल्याणमल नर्सिंगहोम के पास की 14 हजार वर्गफीट जमीन पर शनिवार को नगरनिगम और पीडब्ल्यूडी ने संयुक्त रूप से कब्जा लिया था। हाईकोर्ट ने एक वर्ष पहले इस भूमि के बारे में फैसला दिया था। अब इस जमीन के लिए तीन प्रस्ताव सामने आए हैं। अस्पताल का प्रस्ताव सबसे मजबूत है, किंतु एमजीएम मेडिकल कॉलेज और एमवाय अस्पताल के लचर प्रबंधन के कारण इसके आगे बढऩे में संशय ही है।

पार्किंग
प्रस्ताव दिया: नगरनिगम ने

आधार:  रोड पर कमर्शियल कॉम्प्लेक्स और अस्पताल के कारण वाहनों की संख्या बहुत अधिक रहती है। फिलहाल करोड़ों रुपए से बनी सड़क पर पार्किंग की जाती है।

अस्पताल
प्रस्ताव दिया : एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने
आधार : पुराने रिकार्ड में कल्याणमल नर्सिंगहोम के कारण इस प्रापर्टी पर कॉलेज का हक है। सरकार को पूर्वी क्षेत्र में एक बड़े अस्पताल के लिए जमीन की दरकार है। इससे इस इलाके के मध्यमवर्गीय व निम्न वर्ग को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकती है।

आफिसर्स होस्टल
प्रस्ताव दिया : पीडब्ल्यूडी ने
आधार : इंदौर में सैकड़ों अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले होते रहते हैं। उनके रहने के लिए रेसीडेंसी कोठी के अतिरिक्त कोई इंतजाम नहीं है। यह स्थान मध्य शहर में है।

किसने दबा के रखा फैसला ?
जमीन के संबंध में जस्टिस एएम सप्रे ने 25 अगस्त 2009 को ही फैसला दे दिया था, फिर इस पर अमल में इतनी देरी क्यों हुई? फैसला किसके पास दबा हुआ था? क्या किसी भूमाफिया को फायदा पहुंचाने के लिए मामला ठंडे बस्ते में पटके रखा? जैसे सवाल भी खड़े हो गए हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया इस बात की जांच की जा रही है कि फैसला नगरनिगम, पीडब्ल्यूडी या सरकारी वकील के पास ही दबा हुआ था?  ज्ञात रहे एडीजे कोर्ट ने वर्ष 1992 में अनिल गायकवाड़ के पक्ष में जमीन की डिक्री कर दी थी। इसी आधार पर उन्होंने दो बार जमीन को बेच दिया, जबकि 1994 में ही एडीजे कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी थी। हाल ही में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी ने नामांतरण के लिए निगम में आवेदन लगाया था, जिसे खारिज कर दिया गया।

पत्रिका : ०६ सितम्बर २०१० 

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