शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

बीमारियों की भ्रांतियों में फंसे लोग

स्वाइन फ्लू के टीके और कंजेक्टेवाइटिस के आईड्राप की मांग से दवा व्यापारी भी हैरान
डॉक्टरों की सलाह, बगैर सलाह के दोनों का इस्तेमाल घातक


इन दिनों इंदौर सहित पूरा मालवा निमाड़ अंचल स्वाइन फ्लू और कंजक्टेवाइटिस की चपेट में है। खास बात यह कि बीमारी से ज्यादा उसकी दहशत से लोग परेशान हैं और इनके बारे में लोगों के मन में कई भ्रांतियां बैठी हैं। यही वजह है कि हरारत होते ही लोग मेडिकल स्टोर पर दौड़ लगाकर टीका या दवा लेना चाहते हैं, जबकि असल में इसकी जरूरत ही नहीं है। इन बीमारियों से डरने की नहीं, समझदारी से मुकाबला करने की जरूरत है।

कंजक्टेवाइटिस : तीन धारणाएं, तीन सच
आंखों में आंखें डालने से नहीं फैलता रोग
आंख आते ही (कंजक्टेवाइटिस) काले रंग का चश्मा लगाने की सलाह बेहद आम है, लेकिन नेत्ररोग विशेषज्ञों का कहना है आंखों में आंख डालकर देखने से न तो यह रोग फैलता है और न ही बढ़ता है। ऐसा होता तो, सभी डॉक्टर कंजक्टेवाइटिस से पीडि़त रहते। यह रोग छूने और पीडि़त व्यक्ति के संपर्क में आने से विस्तार पाता है।
हर एंटीबायोटिक ड्राप नहीं फायदेमंद
आंख  आते ही लोग मेडिकल स्टोर से कोई भी एंटीबायोटिक ड्राप खरीद लेते हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राधिका बंडी के मुताबिक ऐसा खतरनाक हो सकता है। बाजार में एंटीबायोटिक और स्टेराइड्स के मिश्रण वाले ड्राप भी मौजूद हैं। इससे कार्निया का अल्सर भी हो सकता है। डॉक्टर की सलाह से ही ड्राप लेना चाहिए।
हर कंजक्टेवाइटिस एक नहीं
माना जाता है कि कंजक्टेवाइटिस एक ही तरह का होता है, लेकिन ऐसा नहीं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में नेत्ररोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. विजय भाईसारे कहते हैं वायरस और बैक्टेरिया दो कारण रोग हो रहा है। वायरस से आंखों में पानी और बैक्टेरिया से कीच आता है। वायरस स्वत: ठीक होता है, जबकि बैक्टेरिया के लिए एंटीबायोटिक की जरूरत होती है।


स्वाइन फ्लू : हर व्यक्ति को नहीं टीके की जरूरत
जल्दबाजी में नहीं उठाए कदम
पांच दवा कंपनियों से स्वाइन फ्लू के टीके बाजार में उतारे और पांचों का दावा है कि इनके इस्तेमाल से एक वर्ष तक फ्लू नहीं होगा। होलसेलर्स के यहां टीकों की पूछताछ और खरीदी जोरों पर है, परंतु विषय विशेषज्ञों का कहना है हर व्यक्ति को टीका लगाना न तो संभव है और न ही इसकी जरूरत है। एमजीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व डीन डॉ. अशोक वाजपेयी की मुताबिक यह बीमारी बेहद नई है और इसका टीका भी अभी बाजार में आया है। टीका कितना असरकारक है, यह कहना अभी जल्दबाजी है।
डॉक्टर में भी अज्ञान की भरमार
फ्लू के बारे में डॉक्टरों में भारी अज्ञान दिखाई दे रहा है। 'पत्रिकाÓ ने तीन वरिष्ठ डॉक्टरों से बात की, उनका कहना है गर्भवतियों को भी टीका लगाया जा सकता है, जबकि दवा कंपनियों की हिदायत है कि गर्भवती को टीका लगाना हानिकारक हो सकता है। डॉक्टरों की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर नाम प्रकाशित नहीं किए जा रहे हैं।

टीके के साहित्य में स्पष्ट नहीं परिणाम
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के कम्यूनिटी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. संजय दीक्षित के मुताबिक टीके बनाने वाली कंपनियों के साहित्य में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि असर का प्रतिशत क्या रहेगा? उधर, नेसोवेक नाम का नेज़ल स्प्रे वाला टीका बनाने वाले सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मनीष कपूर कहते हैं अध्ययन में हमारे टीके की सफलता प्रमाणित हुई है और केंद्र सरकार की जरूरी अनुमति से ही टीके बनाए जा रहे हैं।
फोन अटेंड करके हो गए परेशान
क्वालिटी ड्रग हाउस संचालक मधुर शर्मा का कहना है एक सप्ताह से फोन अटेंड करके परेशान हो गया हूं क्योंकि हर कोई टीके और नेज़ल स्प्रे के बारे में जानना चाहता है। अस्पताल संचालक, लायंस क्लब, स्कूल संचालक समूह में टीका लगाने के लिए खरीदी कर रहे हैं। फिलहाल, मांग पूर्ति से अधिक है।


टाइडफाइड उपचार में हो रही गड़बड़
चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. शरद थोरा ने बताया टाइडफाइड के रोगियों को उचित तरीके से उपचा शुरुआत में ही परेशानी से बचा जा सकता है। यह रोग गंदगी के कारण होता है, इसलिए बचाव के लिए लोगों को सचेत रहना चाहिए।

डेंगू की अनदेखी जानलेवा
शुरुआती दौर में तेज बुखार होता है और जोड़ों के दर्द से शुरू होने वाले डेगूं की अनदेखी खतरनाक हो सकती है। मेडिसिन विभाग के डॉ. प्रमोद झंवर कहते हैं इसमें आंखों के आसपास और सिर में तेज दर्द होता है। स्थिति गंभीर होने पर बुखार के साथ शरीर में लाल दाने निकल आते है। इस अवस्था में तुरंत इलाज लेना चाहिए। यह गंभीर अवस्था है इसमें खून में प्लेटलेट्स की कमी आ जाती है। घाव होने पर खून बहना बंद नहीं होता है। इससे मरीज की मौत भी हो सकती है।

पत्रिका : ०२ सितम्बर २०१०

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