गुरुवार, 30 सितंबर 2010

पीथमपुर नहीं आएगा कचरा

सूचना के अधिकार की जीत
जनता और जनवादियों के समर्थन से चली पत्रिका की मुहिम रंग लाई
 

भोपाल में दफन 27 हजार 600 टन कचरे से पीथमपुर से यूकॉ के कचरे की विदाई के फैसले का उन जनवादियों ने खुलकर स्वागत किया है, जो कचरे के खिलाफ तन-मन-धन से मैदान में डटे थे। दरअसल, यह लड़ाई सूचना का अधिकार कानून की नींव पर बुलंद हुई है। लोगों ने इस कानून को धन्यवाद देते हुए सरकार की संवेदनशीलता को भी सलाम किया है।

पीथमपुर में बने रामकी इनवायो कंपनी के सयंत्र मप्र वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट की खामियों को उजागर करने के साथ इस अहम लड़ाई की शुरुआत हुई। इसके लिए पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी द्वारा सूचना का अधिकार में जुटाए गए दस्तावेजों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही। लगातार छह महीने से उन्होंने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मप्र पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड के यहां अर्जियां लगाई और जानकारियों का पुलिंदा तैयार किया।

'पत्रिकाÓ के आगे आते ही बन गया कारंवा

मामले में 'पत्रिकाÓ ने 15 जून से तथ्यपरक और विश्लेषणात्मक खबरें प्रकाशित करना शुरू किया। इससे पूरे मसले पर लड़ाई शुरू कर चुके लोगों को नई ताकत मिली और उन्होंने पूरे जोर-शोर से मैदान संभाल लिया। 28 जून को 'पत्रिकाÓ के दफ्तर में किए गए टॉक शो में तो विभिन्न संगठनों के लोगों ने घोषणा ही कर दी कि 'पीथमपुर में कचरा नहीं आने देंगे... भले इसके लिए जान चली जाएÓ। लोग अपनी इस घोषणा पर कायम भी रहे और आखिर में केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश को पीथमपुर आना पड़ा। उनके आने से ही संकेत मिल गए थे कि कचरा पीथमपुर में नहीं आएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी जयराम की यात्रा को देखते हुए एक दिन पहले ही घोषणा कर दी थी इंदौर के लोगों की राय जाने बगैर कचरा यहां नहीं लाया जाएगा।

सियासती फैसला, पर दूर रहे इंदौरी नेता
यह मामला सीधे-सीधे इंदौर से जुड़ा था, लेकिन इंदौर के नेता इससे दूर ही रहे। जब भी मीडिया ने उनसे राय मांगी वे कचरे के खिलाफ बयान देते रहे, परंतु जमीन पर उतरकर लडऩे का जिम्मा लोकमैत्री संगठन और आजादी बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने ही किया। राज्यसभा सांसद विक्रम वर्मा और धार विधायक नीना वर्मा, धार के सांसद गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी जरूर इस मसले को आगे बढ़ाते दिखे। जयराम के दौरे के बाद कांग्रेस के अभय दुबे भी थोड़े सक्रिय हुए।

दफन हो चुका है 40 टन कचरा
रामकी प्लांट में यूका का 40 टन कचरा दफन हो चुका है। यह कचरा गुपचुप तरीके से 27 जून 2008 को लाया गया था। लगातार मांग उठ  रही है कि इस कचरे को भी निकाला जाए। हालांकि, जयराम के दौरे के समय घोषणा हो गई थी कि जो दफन हो गया है, उसके बारे में विचार करने की जरूरत नहीं है। बस उसके प्रभाव को समय समय पर जांच लिया जाए।

रामकी में आता रहे औद्योगिक कचरा
रामकी प्लांट में औद्योगिक कचरा अभी भी आता रहेगा, क्योंकि केंद्र ने केवल यूका के कचरे को लेकर फैसला किया है। रामकी में पूरे राज्य का औद्योगिक कचरे पर प्रतिबंध नहीं लगा है। जन आंदोलन करने वालों में इसको लेकर भी आक्रोश है। सूत्रों का कहना है कि सरकार रामकी प्लांट के स्थान को बदलने का निर्णय भी कर सकती है।



इन लोगों को जाता श्रेय
- डॉ. आरडी प्रसाद, लोकमैत्री
- डॉ. गौतम कोठारी, पीथमपुर औद्योगिक संगठन
- डॉ. भरत छपरवाल, लोकमैत्री
- तपन भट्टाचार्य, आजादी बचाओ आंदोलन 
- चिन्मय मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता
- अनिल भंडारी, सीईपीआरडी
- नरेंद्र सुराणा, सीईपीआरडी
- विक्रम वर्मा, राज्यसभा सांसद
- गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी, सांसद, धार



देर आए, दुरस्त आए

'यह कचरा डाऊ कंपनी की जिम्मेदारी है, उसे ही इसके निपटान का इंतजाम करना चाहिए। हम यह नहीं चाहते हैं कि कचरा भोपाल में ही रखा रहे।
- डॉ. आरडी प्रसाद, समाजशास्त्री 

'यह सूचना के अधिकार और मीडिया की जीत है। दरअसल, अब भी फिर वक्त आ गया है कि सरकार तक लोगों की भावनाएं पहुंचाने के लिए जनआंदोलन की राह अपनाई जाए।
- डॉ. गौतम कोठारी, अध्यक्ष, पीथमपुर औद्योगिक संगठन

'यह सूझबूझ भरा फैसला है, परंतु कचरे को दफनाने का फैसला शीघ्र कर लेना चाहिए। सीमेंट फैक्टरियों में कचरा जलाने के प्रस्ताव पर भी गंभीरता से विचार किया जाए तो आसानी से रास्ता निकल सकता है।
- चिन्मय मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता

 'सरकार गुपचुप तरीके से सबकुछ निपटा देना चाहती थी, लेकिन लोगों ने अपने दम पर लड़ाई लड़कर सबको सीख दे दी है। यह लोकशक्ति की जीत है।
- तपन भट्टाचार्य, संयोजक, आजादी बचाओ आंदोलन

'यह गांधीवादी तरीके से लड़ी गई लड़ाई का नतीजा है कि राज्य व केंद्र सरकार दोनों को झुकना पड़ा। अभी भी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
- डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व कुलपति

'इस फैसले से गंभीर नदी को प्रदूषण से बचाया जा सकेगा। रामकी प्लांट की साइट को भी बदलने की जरूरत है, क्योंकि वहां तो अभी भी औद्योगिक कचरा जलेगा ही।
- अभय दुबे, महामंत्री, कांग्रेस

'सरकार फैसला नहीं करती तो हम तो कोर्ट जाते। इसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी। हम बस मंत्री समूह की बैठक का इंतजार ही कर रहे थे।
- अनिल भंडारी, उपाध्यक्ष, सीईपीआरडी

'अब भोपाल को बचाने की जरूरत है। सरकार को इस पर तत्काल फैसला कर लेना चाहिए ताकि वहां प्रदूषण नहीं फैले। इसको लेकर भी बात करूंगा।
- विक्रम वर्मा, राज्य सभा सांसद

 'वर्तमान में सबसे आधुनिक तरीका प्लॉज्मा तकनीक से कचरा भस्म करने की है। सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए, ताकि कचरे को मुकाम मिले।
- शिवाकांत वाजपेयी, सदस्य, भारतीय विकिरण संरक्षण परिषद

'सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र और राज्य सरकार की दो-दो करोड़ की मदद से रामकी का प्लांट स्थापित हुआ था। इस पर पुनर्विचार करना होगा।
- वीके जैन, पूर्व निदेशक, मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

 

तारपुरावासियों ने मनाई खुशियां
युका के कचरे को लेकर चले आ रहे विरोध पर उस समय विराम लग गया जब दिल्ली से पीथमपुर वासियों के हक में फैसला आया। फैसले की खबर जैसे ही ग्रामवासियों को पता चली, मानों उनकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा हो। रात करीब 8  बजे काफी संख्या में जमा हुए युवाओं ने गांव की चौपाल पर नाच-गाकर जश्न मनाया। यहां मौजूद युवाओं में जादू नंदराम, बबलू प्रजापत, मनोज मांगीलाल, विनोद रामचंद्र, नवीन गुप्ता, संजय चौहान, महेश कछवारे, जितेंद्र काशीराम, मनासिंह मांगीलाल, जितेंद्र कालूसिंह आदि ने कहा कि लंबे समय से चली आ रही इस लड़ाई में उन्हें इंसाफ मिला हैं। उन्होंने पत्रिका को बताया कि क्षेत्र में प्रभावितों के हक में आए इस फैसले ने कई क्षेत्रवासियों की जान बचाई हैं। साथ ही यहां फैल रहे प्रदूषण से अब लोगों को निजात मिलेगी।


कचरे में थे दस जानलेवा रसासन
पर्यावरणविद् सुनिता नारायण की अगुवाई वाले वैज्ञानिक शोध संस्थान सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) के मुताबिक भोपाल में यूनियन कार्बाइड के ठिकाने में रखे २७ हजार ६00 टन कचरे में दस किस्म के जानलेवा और विषैले रसायन मिले हैं। इन रसायनों से घातक बीमारियां होती हैं, रोक प्रतिरोधक और प्रजनन क्षमता भी कम या खत्म हो सकती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने भी इस रिपोर्ट से सहमति जताई है।  कचरे में ड्रायक्लोरोबेंजीन, ट्रायक्लोरोबेंजीन, हेक्साक्लोरोबेंजीन, हेक्साक्लोरोसाइक्लोहेक्सेन, कॉरबैरिल, एल्डीकार्ब, पारा, संखिया, सीसा और क्रोमियम की मात्रा मिली है।

ये थी पांच चिंताएं
एक- जमीनी पानी में जहर

वर्ष 2007 से कचरा संयंत्र पर उद्योगों का अपशिष्टï इक_ा किया जा रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के आंकड़े गवाह हैं कि इन तीन वर्र्षों में कचरा संयंत्र के आसपास का भूजल दूषित हुआ है। गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के जिस कुएं का पानी लोग पीते थे उसे हाथ लगाते ही अब खुजली और जलन होने लगती है। साइट के समीप तारपुरा गांव के बोरिंग का पानी चाय बनाने लायक भी नहीं रहा। 

दो- हवा में जहर
कचरा संयंत्र में जब औद्योगिक कचरा जलाया जा रहा था, तभी यूनियन कार्बाइड  है, लेकिन जब यूनियन कार्बाइड का कचरा जलेगा तब क्या होगा। हवा के जरिए यह जहर दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुंचकर लोगों को बीमारियां बांटेगा। कंपनी ने कचरा जलाने के दौरान निकले लीचेड को सुखाने के लिए मल्टीइफेक्ट इवेपोरेटर भी नहीं लगाया है और न ही ड्रायर का इस्तेमाल किया जा रहा है। लीचेड सीधे जमीन पर बहाया जा रहा है।

तीन- मापदंडों का उल्लंघन
औद्योगिक अपशिष्टï प्रबंधन अधिनियम के मुताबिक कचरे का निपटान करने के लिए जिस जगह संयंत्र लगाया जाता है उससे 500 मीटर के दायरे में कोई रहवासी क्षेत्र नहीं होना चाहिए, लेकिन रामकी ने इस नियम को ताक पर रख दिया। साइट से मात्र 100 से 200 मीटर के दायरे में तारपुरा गांव हैं। गांववाले बताते हैं कि जब से इंसीनरेटर चालू हुआ है, बदबू के मारे उनका सांस लेना मुश्किल हो गया है।

चार- बीमारियों का घर 
सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट के मुताबिक कचरे के कारण लीवर सोराइसिस, रक्त कोशिका, फेफड़े, गुर्दे, स्नायु व प्रजनन प्रणाली पर बुरा असर, रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना, स्नायु, प्रजनन व श्वसन प्रणाली का क्षतिग्रस्त होना, लीवर रोग, अल्सर की उत्पत्ति, हड्डियों में खराबी, बाल झडऩा, कैंसर की आशंका, ब'चों का असामान्य विकास, क्रोमोसोम असमानता, स्मरण शक्ति पर कमजोर होना, गर्भस्थ शिशु के लिए घातक, अचानक गर्भपात की संभावना, खून की कमी, स्नायु रोग, त्वचा पर जख्म होना, गुर्दों की खराबी, नाक की झिल्ली में छेत, गले में जलन, दमा व श्वसन रोगों का खतरा बढ़ेगा।

पांच- उद्योगों का पलायन
प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में 500 से अधिक छोटे-बड़े उद्योगों के लिए कचरा संयंत्र एक-न-एक दिन खतरा जरूर बनेगा। यह बात उद्योगपति भी जानते हैं। कई उद्योगपति यह बात कह भी चुके हैं कि यदि यूनियन कार्बाइड का कचरा यहां जलाया जाता है तो कई उद्योगों का यहां से पलायन हो सकता है। नए उद्योग तो यहां आने से ही कतराएंगे। 
 
इन आरोपों से घिरा रामकी
  • कायदा कहता है कि कचरा दफन करने के लिए जो गड्ढा (सिक्यूर्ड लैंड फिल) बना है, वह रहवासी बस्ती से 500 मीटर से दूर होना चाहिए, लेकिन गड्ढा तारापुर के पास ही बना दिया गया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मानता है कि गड्ढे की तारापुर से दूरी 100 मीटर से अधिक नहीं है।
  • गड्ढे में मिïट्टी की 1000 एमएम के बजाए 600 एमएम की ही परत बनाई गई। मिट्टी की परत को दबाने के लिए जिस मशीन का प्रयोग किया जाता है, वह बोर्ड को मौके पर नहीं मिली। इस पर कंपनी को नोटिस दिया। कंपनी यह कहकर बच निकली कि दिन में मशीन उपलब्ध नहीं रहती है, इसलिए रात में काम करवाते हैं। अफसरों ने रात में मुआयना करना मुनासिब नहीं समझा। 
  • गड्ढे में सबसे नीचे रेत और बजरी की 30 सेंटीमीटर मोटाई रखी जाना चाहिए लेकिन कंपनी ने मोटाई को 15 सेंमी ही रखा। बोर्ड ने ही इसका खुलासा किया। यह चूक बेहद खतरनाक है, क्योंकि विषैले कचरे से होकर जो पानी जमीन में जाता है, वह कई किमी क्षेत्र के भूजल को प्रदूषित करने की ताकत रखता है। भोपाल में ऐसा ही हुआ और केंद्र सरकार को आखिर में सिफारिश करना पड़ी कि भोपाल के लोग भूजल का प्रयोग न करें।
  • हर दिन कचरा इकठ्ठा करके बाद उस पर मिट्टी की परत जमाना अनिवार्य है, लेकिन खर्च और जगह बचाने के लिए कंपनी ने ऐसा नहीं किया। बीच में परत नहीं होने से प्रदूषण की मात्रा कई गुना बड़ सकती है। 
  •  कचरा निपटान के पहले कंपनी ने नियम विरूद्ध खतरनाक ज्वलनशील कचरे का भंडारण किया। बोर्ड नोटिस देकर चुप बैठ गया, बाद में पुलिस में शिकायत हुई और कंपनी कर्मचारी पार्थ शुक्ला को गिरफ्तार किया गया।
  •  मजदूरों को पर्याप्त सुरक्षा मुहय्या नहीं करवाई जा रही। यही वजह है कि कंपनी में सात मजदूर बीमार हो गए।
  • कंपनी में आपातकालीन सुविधाओं का अभाव है। इसके लिए दो बार औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग नोटिस जारी कर चुका है।


 100 दिन पहले उठी थी आवाज

14 जून
रामकी इंसीनेटर को फायर एनओसी मिलने के साथ ही पत्रिका ने 'इंदौर मांगे इंसाफÓ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी।

19 जून
सांसद विक्रम वर्मा ने कहा यूका का कचरा देश के बाहर ले जाया जाए। लोकमैत्री संगठन की बैठक में रामकी खामियां उजागर की गई।

23 जून
'पत्रिकाÓ ने सवाल उठाया भारी अनियमितताएं मिलने के बाद भी सरकार क्यों रामकी कंपनी को बचाने में लगी है।

26 जून

रामकी इंसीनेटर में काम कर रहे सात मजदूर बीमार हो गए। इससे मजदूरों में दहशत फैल गई।

28 जून

'पत्रिकाÓ में हुए टॉक शो में आंदोलन की रूपरेखा तैयार हुई। लोगों ने कहा भले ही जान देना पड़े, पीथमपुर में कचरा नहीं आने देंगे।

29 जून
रामकी कंपनी ने सरकार पर आरोप लगाया कि हम तो धंधा कर रहे हैं, सरकारी एजेंसियों को ही फिक्र नहीं है कि कहां क्या किया जाना है।

2 जुलाई
'पत्रिकाÓ ने बताया 6 जुलाई 2005 को हुई जनसुनवाई के बाद से ही स्थानीय प्रशासन रामकी पर फिदा है।

3 जुलाई
'पत्रिकाÓ ने खुलासा किया कि रामकी को नोटिस देने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्रवाई नहीं करता है।

7 जुलाई
लोकमैत्री संगठन ने पीथमपुर में रामकी सयंत्र की घेराबंदी की। साथ ही संभागायुक्त को ज्ञापन सौंपा।

8 जुलाई
तारापुर के नागरिकों ने रामकी सयंत्र में कचरा ले जा रहे ट्रकों को रोका क्योंकि उनमें से विषैला बदबूदार कचरा बह रहा था।

9 जुलाई
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इंदौर में कहा यूका कचरे और रामकी सयंत्र के संबंध में इंदौर के लोगों से चर्चा के बाद ही फैसला किया जाएगा।

10 जुलाई
केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश पीथमपुर गए। उन्हें वहां के लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। बस्ती के पास बनाए गए सयंत्र और कुएं के काले पानी को देखकर वे भी अचंभित रह गए। जयराम ने 40 टन कचरा यहां लाने पर माफी भी मांगी।

12 जुलाई
'पत्रिकाÓ ने बताया जयराम ने माफी मांग ली, लेकिन राज्य सरकार की गलतियों के लिए कौन माफी मांगेगा?

18 जुलाई

कांग्रेस ने पीथमपुर में धरना देकर घोषणा की कि रामकी का देशभर में विरोध किया जाएगा।

22 जुलाई
विधानसभा में मामला उठा कि क्या रामकी सयंत्र से इंदौर का पानी दूषित नहीं होगा।

24 सितंबर

'पत्रिकाÓ ने खुलासा किया कि सुप्रीम कोर्ट में रामकी के झूठे बयान के आधार पर गुजरात सरकार ने हलफनामा पेश किया। रामकी के अधिकारियों ने भी माना यह कंपनी के तत्कालीन अधिकारी की गलती थी।


 पत्रिका : २८ सितम्बर २०१०

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