गुरुवार, 30 सितंबर 2010

अंधों का हाथी हो गया हमारा ट्रैफिक

- 'ट्रैफिक प्रबंधन और आधारभूत विकास पर टॉक शो में उभरी व्यथा
- राजनैतिक हस्तक्षेप हटेगा, तभी सुधरेगा यातायात का हाल
- पत्रिका स्थापना दिवस विशेष



बेहद तेजी से फैल रहे इंदौर की बदहाल होती यातायात व्यवस्था को शहर के विशेषज्ञ, प्रबुद्ध विशेषज्ञ और ट्रैफिक टेक्नोक्रेट 'अंधों का हाथीÓ की तरह देख रहे हैं। 'अंधों का हाथीÓ ख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी का नाटक है, जिसमें लोकतंत्र पर सटीक प्रहार किया गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अब इस हाथी को पहचाना ही होगा, वरना ट्रैफिक के दबाव से शहर का दम निकल जाएगा। ट्रैफिक को राजनैतिक फैसलों के बजाए ट्रैफिक इंजीनियरिंग के जरिए सुधारना चाहिए। इसके लिए उ'च स्तर पर नीतिगत फैसले करना होंगे। महज जेएनएनयूआरएम के बजट से कुछ प्रोजेक्ट हाथ में लेना पर्याप्त नहीं है।

यह 'पत्रिकाÓ के स्थापना दिवस के मौके पर 'पत्रिकाÓ कार्यालय में बुधवार को 'ट्रैफिक प्रबंधन और आधारभूत विकासÓ विषय पर आयोजित टॉक शो का सार है। विशेषज्ञ इस बात बेहद चकित हैं कि इंदौर में न तो कोई ट्रैफिक इंजीनियर पदस्थ है और न ही ओरिजिन डेस्टिनेशन सर्वे (ओडीएस) ही हुआ है। सर्वे नहीं होने से किसी को यह अंदाजा भी नहीं है कि कितने लोग किस दिशा में कब सफर करते हैं और कब-कब किन-किन स्थानों पर वाहनों का कितना दबाव रहता है। ट्रैफिक सुधारने के लिए बार-बार बैठकें, कार्यशाला और विश्लेषण चर्चाएं होती हैं, लेकिन सब सिर्फ बीआरटीएस के इर्दगिर्द ही घुमते रहते हैं। इससे ऊपर उठने की जरूरत है। टॉक शो के अंत में अ'छे नागरिक बनने की शपथ भी ली गई।

अफसरों की विदेश यात्रा पर सवाल
किशोर कोडवानी ने सवाल उठाया कि जब योजनाकार इंदौर आते हैं, तो उनसे मिलकर बात करना कोई जरूरी नहीं समझता। बाद में लंदन, चीन की यात्राएं करते हैं। यह आम आदमी के पैसे का दुरुपयोग है। नरेंद्र सुराणा ने कहा योजनाओं में विशेषज्ञों की राय ले ली जाती है, लेकिन बाद में उसे बगैर चर्चा के खारिज कर दिया जाता है। राय पर मंथन किया जा सकता है, किंतु उसे नकारना अनुचित है। सीएस डगांवकर ने बताया विशेषज्ञों की राय को महत्व देना जरूरी है।

कोयम्बटूर मॉडल क्यों नहीं अपना सकते

कोयम्बटूर शहर में कुल 1100 बसें है, यहां कोई स्कूल बस नहीं चलती। बसों का टाईम-टेबल और प्रबंधन इतना बेहतर है कि स्कूली विद्यार्थी इन्हीं बसों से सुबह स्कूल, दोपहर में कोचिंग और शाम को हॉबी क्लास जाते हैं। सौ रुपए के मासिक पास में उनका सारा आवागमन हो जाता है। हमारे यहां केवल स्कूल बसों की संख्या 2200 है। उसके बावजूद स्कूली छात्र दुपहिया वाहनों की मांग करते हैं। बस की फीस और वाहन के किश्त उनके पालक भुगतते हैं। बहस में इस प्रस्ताव पर भी चर्चा हुई।

कॉलोनियों के ग्रीन बेल्ट हटाएं
जवाहर मंगवानी ने बताया कि कॉलोनियों में सड़क की जमीन पर बगीचा बनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इन्हें हटाने के लिए संकल्प पारित कर लिया गया है। यह बड़ा काम है और इसमें विरोध भी झेलना पड़ सकता है। सभी लोगों ने कहा निगम को तत्काल इसे शुरू कर देना चाहिए, सभी समर्थन करेंगे।

रोटरी या सिग्नल ?
देश दुनिया में रोटरी को खत्म किया जा रहा है, लेकिन इंदौर में रोटरी को लेकर सीधा फंडा है कि इससे खूबसूरती आती है। अतुल सेठ ने कहा रोटरी को हटाना चाहिए। आरएस राणावत ने बताया रोटरी में ही सिग्नल लगाए जा रहे हैं। यह क्या मजाक है? जगतनारायण जोशी ने बताया रोटरी कहां हो, कहां नहीं इसके लिए ट्रैफिक इंजीनियरिंग में पर्याप्त इंतजाम किया गया है। सीएस डगांवकर ने बताया रोटरी हटाने और सिग्नल लगाने का फैसला वैज्ञानिक आधार पर लिया जाना चाहिए, न कि भावनात्मक आधार पर।

...और हवाई सफर का प्रस्ताव भी
नारायण प्रसाद शुक्ला ने हवाई सफर का प्रस्ताव भी रखा। उन्होंने बताया इसी तरह से दबाव बनता रहा तो एक समय ऐसा आएगा कि विजयनगर से अन्नपूर्णा तक के लिए हवाई सफर लेना पड़ेगा। मंथन में मोनो रेल और मेट्रो ट्रेन की चर्चा भी हुई।




  •  चर्चा में उभरे दस मुद्दे
  • छोटे-छोटे बायपास बनाकर मुख्य सड़कों तक पहुंचने की राह आसान हो।
  • पैदल यात्रियों के लिए भूमिगत सब-वे बनाए जाएं।
  • बॉटल नेक (दोनों और चौड़ा, बीच में संकरा) चिह्नित हों, उन्हें सुधारा जाए।
  • निगम, आईडीए, टीएंडसीपी खरीदे सैटेलाइट इमेज सॉफ्टवेयर।
  • उज्जैन, देवास, महू, पीथमपुर को यातायात की दृष्टि से विकसित करें।
  • मौजूदा पार्किंग स्थलों का सही उपयोग हो।
  • ट्रैफिक मोबेलाइजेशन प्लान समय सीमा में बन जाए।
  • नेबरहूड स्कूलिंग पर ध्यान दें, ताकि बसों की संख्या घटे।
  • मुख्य बाजारों से दूर पार्किंग बनाई जाए, ताकि ग्राहकों को सुविधा रहे।
  • पूर्व-पश्चिम के साथ ही उत्तर-दक्षिण को जोडऩे वाले रास्तों पर ध्यान दिया जाए।




राजनैतिक हस्तक्षेप जिम्मेदार
व्यवस्थाओं और राजनीति से ऊपर उठकर बात करना होगी। शहर में सामूहिक चरित्र बनाने की जरूरत है। ऐसा करके ही हम समस्याओं को सुलझा सकेंगे। शहर बहुत अधिक विकास कर सकता था, लेकिन राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण कई बातें पीछे छूट गईं। किसी वातानुकूलित कमरे में दावत के साथ की गई चर्चा से यातायात को सुधारा नहीं जा सकता है। ऐसे रास्तों की सूची बनाई जाना चाहिए, जो बॉटल नेक की तरह हैं।
- नारायण प्रसाद शुक्ल, पूर्व मंत्री व महापौर

छोटे बायपास पर ध्यान दें
  छोटे-छोटे बायपास बनाकर मुख्य सड़कों तक पहुंचा जा सकता है। नारायण कोठी से अटल द्वार, ïहाथीपाला से जबरन कॉलोनी जैसी करीब 30 छोटी सड़कें हैं, जिनसे व्यवस्थाएं सुधर सकती हैं। कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां एक खंभा या एक चेम्बर बाधा बना हुआ है। जो गड़बड़ी करे, उसे बड़ा से बड़ा दंड दिया जाए। छोटे फ्लïाय ओवर भी मदद कर सकते हैं। बीआरटीएस पूरा होने पर एकदम सुधार नजर आएगा। 
- मधु वर्मा, पूर्व अध्यक्ष, आईडीए

कहां है सैटेलाइट इमेज का सॉफ्टवेयर
20 लाख का आंकड़ा पार करते ही ओरिजिन डेस्टिनेशन सर्वे करवाया जाना चाहिए, ताकि यात्रियों की संख्या और दबाव का सही अनुमान सामने आए। किसी भी विभाग के पास सैटेलाइट इमेज का सॉफ्टवेयर तक नहीं है। इसके बगैर समस्याओं को आधुनिकतम तरीकों के पिन पाइंटेड कैसे किया जा सकेगा? मजाक तो यह है कि पहले प्रस्ताव तैयार होता है और बाद में उसकी जरूरत सिद्ध करना होती है।
- नरेंद्र सुराणा, सेवानिवृत्त इंजीनियर

50 बसों के लिए 900 करोड़ !

चार वर्ष पहले ट्रैफिक इंजीनियरिंग सेल का गठन किया गया, लेकिन उसकी बैठक ही नहीं हुई। इस शहर को नेता और अफसर अपनी मर्जी से चलाना चाहते हैं, जबकि यहां बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है। एक अफसर की जिद पर 900 करोड़ का बीआरटीएस बनाया जा रहा है। इस पर महज 50 सिटी बसें चलेगी। जब लोग इंदौर में आकर अफसरों से चर्चा करना चाहते हैं, तो वे सुनते-समझते नहीं और बाद में विदेश यात्रा करते हैं। 
-किशोर कोडवानी, कार्यकर्ता, विकास मित्र दृष्टि

नेताजी के कारण नहीं हटी रोटरी

 उज्जैन, देवास, महू, पीथमपुर को ट्रैफिक की दृष्टि से उन्नत बनाएंगे, तो इंदौर में सुधार हो जाएगा। ïमोनो ट्रेन सस्ती और सुलभ सेवा हो सकती है। जहां डिवाइडर नहीं होना चाहिए, वहां आज भी डिवाइडर बने हुए हैं। बंगाली चौराहा और ग्रेटर कैलाश रोड इसके उदाहरण है। जानकारी ली तो पता लगा, एक क्षेत्रीय नेता की मर्जी के खिलाफ बंगाली चौराहा की रोटरी हटाना संभव नहीं हो पा रहा है। राह में ऐसे रोड़े आएंगे, तो भला कैसे हालत सुधरेंगे।
-आरएस राणावत, पूर्व ट्रैफिक डीएसपी

ट्रैफिक इंजीनियर को दूसरे काम में झोंका

यह गोलाकार शहर है, जबकि मुंबई लंबाई पर बसा है। वहां ट्रेन चलाई जा सकती है, यहां नहीं। इन मौलिक बातों को समझने की जरूरत है। जिन विभागों के पास ट्रैफिक की जिम्मेदारी है वहां ट्रैफिक के विशेषज्ञ इंजीनियर नहीं है। आईडीए में ट्रैफिक विषय में एमई किया हुआ इंजीनियर है तो उसे ट्रैफिक से दूर रखा गया है। बीतें सालों में नगर-निगम से लेकर भारत सरकार ने 5-6 सर्वे करवाए। इन पर बहुत राशि खर्च हुई, लेकिन इसकी रिपोर्ट को किसी ने तवज्जो ही नहीं दी। 
-अतुल सेठ, स्ट्रक्चर इंजीनियर

ïहोलकर काल के योजनाकारों से सीखें

हम जब भी ट्रैफिक से संबंधित किसी बैठक में भाग लेते हैं, वहां इंजीनियरिंग के महत्व पर चर्चा होती है। अब हमें इस सवाल पर गौर करना होगा कि क्यों सही इंजीनियरिंग लागू नहीं हो पाती। हम सारे स्कूल पूर्वी क्षेत्र में खोलते हैं फिर पश्चिम के रहवासी इलाकों से बस में बैठकर हजारों ब"ो स्कूल आते-जाते हैं। यही हालत बाजारों की भी हैं, बरसों पहले राजाओं ने कितना सोच-समझ सारा होलसेल मार्केट साथ में और सारा रिटेल मार्केट साथ में बनाया। कोई भी आदमी पैदल चलकर पूरा बाजार घूम सकता है। वैसी दूरदर्शिता की आज भी दरकार है।
-अशोक कोठारी, अभ्यास मंडल

नेबरहूड स्कूल अपनाते तो कम होती बसें

शहर में पूर्व से पश्चिम की ओर जाने के लिए तीन प्रमुख मार्ग हैं, जबकि उत्तर से दक्षिण की ओर जाने के लिए एक भी मार्ग नहीं है। मास ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में बहुत काम करने की जरुरत है। इंदौर और महू के बीच मीटरगेज रेललाईन है, हमें इसे न केवल जीवित रखना होगा बल्कि रेलमार्ग से यातायात को बढ़ावा भी देना होगा। नेबरहुड स्कूलिंग (पड़ोस में स्कूल) को अपनाया होता तो ट्रैफिक की समस्या से बच जाते। 
-नूर मोहम्मद कुरैशी, कार्यकर्ता, विकास दृष्टि मित्र

ट्रैफिक मोबेलाइजेशन प्लान शीघ्र बने

मध्यप्रदेश में इंदौर को छोड़कर सभी शहरों के पास उनका ट्रैफिक मोबाईलेशन प्लान है। इंदौर का प्लान जल्द से जल्द बनकर तैयार होना चाहिए। दूसरी बात विशेषज्ञों की राय और उनके ज्ञान को तवज्जो मिलनी चाहिए। यदि कोई विशेषज्ञ कहता है कि फलां स्थान पर रोटरी बनाना ठीक नहीं है, दूसरी ओर कोई नेता वहीं पर रोटरी बनाना चाहता है। ऐसे में विशेषज्ञ की राय पर नेताजी का दबाव भारी पड़ता है। यह प्रवृत्ति बदलना बेहद आवश्यक है। 
-चंद्रशेखर डगांवकर, मास्टर प्लान विशेषज्ञ 

एक वर्ष में बन जाएगा टीएमपी

हम 60 लाख के खर्च से शहर का ट्रैफिक मोबेलिटी प्लान बनवा रहे हैं। दिल्ली की राईट्स इंडिया संस्था के साथ हमारे विशेषज्ञ मिलकर इस प्लान को तैयार करेंगे। उनकी विशेषज्ञता को हम अपने अनुभवों और जरूरतों की कसौटी पर परखने के बाद ही उपयोग में लाएंगे। ना केवल प्लान जल्द से जल्द बनवाने की कोशिश की जाएगी बल्कि उसका क्रियान्वयन भी शीघ्रता से किया जाएगा।
-जवाहर मंगवानी, प्रभारी, जनकार्य समिति प्रभारी

मौजूदा पार्किंग पर ही ध्यान नहीं

मौजूदा पार्किंग 12 सालों तक हमें मुख्य क्षेत्रों में नए पार्किंग्स बनाने की जरुरत नहीं रहेगी। नंदलालपुरा के पार्किंग में गंदगी पड़ी है और उस क्षेत्र में जाने-आने वाले लोग पार्किंग होने के बावजूद उसका इस्तेमाल नहीं करते। पालिका प्लाजा फेज टू के पार्किंग का तो शटर ही नहीं खोला गया है। रोड मार्किंग तीन दिन से ज्यादा नहीं टिक पाती क्यों? समय सीमा में प्रोजेक्ट पूरे नहीं होने से लागत बढ़ रही है, इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है।
-प्रफुल्ल जोशी, ट्रैफिक विशेषज्ञ

लायसेंस या मौत का लायसेंस?

आरटीओ में जाकर कोई भी व्यक्ति हजार रुपए की रिश्वत देकर लायसेंस बनवा लेता है। यह गाड़ी चलाने का लायसेंस नहीं है, यह मौत का लायसेंस है। चालान इस समस्या का हल नहीं है। लोग पैसा देकर भूल जाते हैं, उन्हें सबक सीखाने के लिए चार दिन उनकी गाड़ी बंद करवानी पड़ेगी। बाजार की सड़क का इस्तेमाल दुकानदार सामान डिस्प्ले करने में करते हैं, तो राहगीरों और वाहनचालकों के लिए सड़क संकरी हो जाती है।
-जगत नारायण जोशी, यातायात विशेषज्ञ

एक खंभा हटाने में आता पसीना

मैंने अनुभव किया है कि एक खंभा हटाने में पूरी व्यवस्था को पसीना आ जाता है। बजट बनता है, फाइल चलती है और फिर मंजूली मिलती है। चार अफसरों को एक साथ बैठाकर बात करना मुश्किल है, तो समग्र सोच विकसित कैसे होगा? लोगों को समझना होगा कि वे पार्किंग का सही तरीके से इस्तेमाल करें। सुभाष चौक पार्किंग में लोग गाड़ी ही खड़ी नहीं करते हैं।
- डॉ. उमा शशि शर्मा, पूर्व महापौर


 पत्रिका : ३० सितम्बर २०१०

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