- कैलाश विजयवर्गीय को बचाने की कोशिश में लोकायुक्त पुलिस ने किए तीन गोलमाल
सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रुपए की तीन एकड़ जमीन घोटाले में विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति और 13 अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर की भाषा से साफ है कि तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय और तत्कालीन निगमायुक्त को बचाने के लिए भरसक कोशिश की गई। अदालत में पेश की गई 29 पेज की एफआईआर को 'पत्रिकाÓ ने विधि विशेषज्ञों को दिखाया, तो वे चौंक गए। इस रिपोर्ट में तीन स्थानों पर स्पष्टï रूप से गोलमाल किया गया है।
जिन तर्कों के आधार पर मेंदोला समेत 17 लोगों को आरोपी बनाया गया है उनसे विजयवर्गीय की ईमानदारी पर सवाल खड़ा हो गया है। विधि विशेषज्ञ कहते हैं कि विजयवर्गीय ईमानदार थे, तो उन्होंने अफसरों के वे गड़बड़ फैसले पलट क्यों नहीं दिए जिनके आधार पर धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज की जमीन नंदानगर साख संस्था को दी गई। ऐसा भी नहीं है कि अफसरों के हस्ताक्षर से आए सभी प्रस्तावों को मंजूर कर लिया जाता हो। अफसरों की सकारात्मक टिप्पणियों के साथ दर्जनों गड़बड़ प्रस्ताव एमआईसी के सामने आते हैं, जिन्हें खारिज करके एमआईसी व महापौर न्याय करते हैं।
एफआईआर में तीन गोलमाल
गोलमाल एक
पेज छह के दूसरे पैरा में लिखा गया है कि तत्कालीन भवन अधिकारी, नगर शिल्पज्ञ और संबंधित अन्य अफसरों व कर्मचारियों ने नियम विरूद्ध मनमाने ढंग से लीज राशि की गणना की, जिसके आधार पर विजयवर्गीय की अध्यक्षता वाली एमआईसी ने नंदानगर संस्था को जमीन सौंपने का संकल्प 286 और प्रस्ताव 58 पास कर दिया।
उठता सवाल
अफसरों की गलती को महापौर, एमआईसी और निगमायुक्त ने हूबहू मान क्यों लिया? क्या महापौर जैसे जिम्मेदार पद पर आसिन होने के नाते उनका दायित्व नहीं था कि संकल्प व प्रस्ताव को नामंजूर कर दें?
गोलमाल दो
पेज आठ के तीसरे पैरा में लिखा कि नगर शिल्पज्ञ जगदीश डगांवकर ने 19 अप्रैल 2004 को एक ऑफिस नोट पर हस्ताक्षर किए। इसके आधार पर कैलाश की अध्यक्षता में एमआईसी ने 22 सितंबर 2004 को संकल्प क्रमांक 759 पास किया। इसी के जरिए जमीन अगले तीस वर्ष के लिए नंदानगर संस्था को दी गई।
उठता सवाल
डगांवकर के ऑफिस नोट और संकल्प प्रस्ताव के बीच में पांच माह का अंतराल था। इतने समय में भी इस प्रस्ताव के दोषों की विजयवर्गीय ने अनदेखी क्यों की?
गोलमाल तीन
पेज नौ के पैरा दो में लिखा है कि धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार और पार्षद रमेश मेंदोला ने अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडय़ंत्र में संगमत होकर पद का दुरुपयोग किया और सरकार को 2.70 करोड़ रुपए की आर्थिक हानि पहुंचाई। पार्षद मेंदोला को इतनही राशि का अवैध आर्थिक लाभ हुआ।
उठता सवाल
क्या एक अकेला पार्षद अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडय़ंत्र में संगमत होकर इतना फायदा उठा सकता है? अपराध वर्ष 2000 से 04 के बीच हुआ है, क्या महापौर के सर्वाधिक नजदीकी पार्षद मेंदोला लगातार चार वर्ष तक अकेले ऐसा षडय़ंत्र रच सकता है? यदि ऐसा हुआ है तो विजयवर्गीय व एमआईसी ने अपनी अहम जिम्मेदारी को नहीं निभाया है। क्या यह पद के दुरुपयोग की श्रेणी में नहीं आता है?
लोकायुक्त पुलिस को क्यों नहीं दिखे कैलाश-रमेश के ताल्लुकात
- कोर्ट ने जिन बिंदुओं पर सौंपी थी जांच, वे भी नहीं खंगाले
- ऐसी विशेष जांच एजेंसी का क्या औचित्य
सीबीआई, सीआईडी, ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त जैसी विशेष जांच एजेंसियों के गठन के पीछे मंशा होती है कि भ्रष्टाचार या अपराध के किसी भी मामले से जुड़े सूक्ष्मतम पहलू की भी जांच हो जाए और बड़े से बड़े आरोपी को खींचकर अदालत के सामने पेश कर दिया जाए। सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 एकड़ रुपए की तीन एकड़ जमीन मामले में अब तक तो ऐसा नहीं हो सका। विशेष न्यायालय द्वारा चार माह पूर्व (6 अप्रैल को) लोकायुक्त पुलिस को सौंपे गए इस केस में जिन 46 बिदुओं पर जांच सौंपी थी, उनमें से कई की पड़ताल ही नहीं की गई। खासकर वे बिंदु पूरी तरह अछूते रहे जिनके आधार पर तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती थी।
यहां तक कि लोकायुक्त पुलिस ने फरियादी सुरेश सेठ के उस आरोप की भी पूरी तरह अनदेखी की जिसमें उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला के व्यक्तिगत ताल्लुकातों का जिक्र था। दोनों के जगजाहिर संबंधों के आधार पर ही संभवत: अदालत ने भी लोकायुक्त पुलिस को दोनों की भूमिका की जांच सौंपी थी। ज्ञात रहे लोकायुक्त पुलिस ने शुक्रवार को अदालत में 29 पेज की एफआईआर पेश करके जांच से पीछा छुड़ाने की कोशिश की थी। फरियादी ने जब चार में से एक आरोपी (कैलाश) को छोडऩे की बात उठाई, तब लोकायुक्त के वकील बोले जांच अभी जारी है और आरोपी क्रमांक दो यानी कैलाश विजयवर्गीय को भी आरोपी बनाया जा सकता है।
बड़ा सवाल
कैलाश ने पलट क्यों नहीं दी अफसरों की राय?
विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति और 13 अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में नेताओं के बजाए अफसरों को अधिक दोषी बताया गया है। पेज छह के दूसरे पैरा में लिखा गया है कि तत्कालीन भवन अधिकारी, नगर शिल्पज्ञ और संबंधित अन्य अफसरों व कर्मचारियों ने नियम विरूद्ध मनमाने ढंग से लीज राशि की गणना की, जिसके आधार पर विजयवर्गीय की अध्यक्षता वाली एमआईसी ने नंदानगर संस्था को जमीन सौंपने का प्रस्ताव पास कर दिया। बड़ा सवाल यह है कि अफसरों की गलती को महापौर और एमआईसी ने हूबहू मान क्यों लिया? क्या जनप्रतिनिधि होने के नाते उनका दायित्व नहीं था कि संकल्प को पारित न करें? ऐसा भी नहीं है कि अफसरों के हस्ताक्षर से आए सभी प्रस्तावों को मंजूर कर लिया जाता हो। दर्जनों प्रस्ताव ऐसे होते हैं, जिन्हें दोषपूर्ण जानकर महापौर व एमआईसी द्वारा खारिज कर दिया जाता है। इस साधारण किंतु बेहद महत्वपूर्ण तथ्य पर लोकायुक्त पुलिस ने आखिर क्यों ध्यान नहीं दिया?
क्या कर रहा 209 लोगों का लवाजमा
मप्र में लोकायुक्त संगठन की स्थापना विशेष पुलिस स्थापना के अंतर्गत की गई है। लोकायुक्त समेत इसमें 209 अधिकारी-कर्मचारी का अमला सरकार ने लगाया है। अमले में महानिदेशक, इंस्पेक्टर जनरल, एसपी से लेकर कानूनी सलाहकार तक शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि इस लवाजमे के पास एकमात्र यही केस जांच के लिए था, लेकिन सवाल यही है कि बहुचर्चित मामले में भी इस अमले ने अदालत की फिक्र नहीं की।
ऐसा काम तो सामान्य पुलिस भी कर ले
इस बहुचर्चित मामले में अब तक के घटनाक्रम पर कानूनी जानकारों का कहना है जिस तरह से लोकायुक्त पुलिस ने जांच कार्य किया है, वह तो सामान्य पुलिस भी कर सकती थी। कानूनन विशेष पुलिस स्थापना को कई विशेष अधिकार दिए गए हैं, लेकिन इस मामले में उनका इस्तेमाल नहीं किया गया।
कैलाश की भूमिका को साबित करने वाले तथ्य
बिंदु एक
कैलाश विजयवर्गीय के नेतृत्व में रमेश मेंदोला ने 1999 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में क्रमश: महापौर और पार्षद का चुनाव साथ-साथ लड़ा। विजयवर्गीय के नेतृत्व वाली एमआईसी में रमेश मेंदोला स्वास्थ्य प्रभारी के पद पर जनवरी 2000 से जनवरी 2005 तक आसीन रहे। दोनों ही समान राजनैतिक पृष्ठभूमि के होकर एक साथ राजनैतिक कार्य करते हैं।
बिंदु दो
कैलाश ने अपने राजनैतिक प्रभाव का दुरुपयोग करके रमेश मेंदोला की अध्यक्षता वाली नंदानगर साख संस्था को खुद के महापौर रहते जमीन हस्तांतरित करवाई। इस संस्था में विजयवर्गीय की पत्नी आशा विजयवर्गीय भी संचालक हैं।
बिंदु तीन
कैलाश-रमेश ने वर्ष 2000 में पद संभालते ही आपराधिक षडय़ंत्र की शुरुआत कर दी थी। यही वजह है कि धनलक्ष्मी केमिकल्स कंपनी को इस भूमि पर बगैर भूमि उपयोग में बदलाव के 18 जून 2000 को मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाने की अनुमति दे दी गई।
बिंदु चार
घोटाले के दौरान कैलाश महापौर के साथ ही उसी क्षेत्र के विधायक भी थे, जहां घोटाला हुआ। लोकसेवक होने के नाते कैलाश व रमेश भलीभांति जानते थे कि मप्र शासन की अनुमति के बगैर न तो भूमि बेची जा सकती थी और न हस्तांतरित।
बिंदु पांच
कैलाश ने एमआईसी अध्यक्ष के नाते 3 जून 2002 को उस संकल्प क्रमांक 289 की अनुशंसा कर दी जिसमें सुगनीदेवी जमीन को नंदानगर साख संस्था को देने का जिक्र था।
बिंदु छह
कैलाश-रमेश की मौन सहमति से धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार विजय कोठारी एवं मनीष संघवी को अनुचित लाभ देते हुए 10 हजार वर्गफीट जमीन उन्हें दे दी गई। शेष जमीन ही नंदानगर संस्था अध्यक्ष को दी गई।
बिंदु सात
कैलाश के प्रति रमेश की राजनैतिक निष्ठा समाज में स्थापित है। रमेश कैलाश को अपना राजनैतिक गुरू भी मानते हैं।
News in Patrika on 8th August 2010
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें