Lokayukta Officers |
- सुगनीदेवी कॉलेज परिसर से जुड़ी 100 करोड़ की तीन एकड़ जमीन में घोटाले की हो गई पुष्टि
- भाजपा विधायक रमेश मेंदोला और 13 अफसरों समेत 17 के खिलाफ मिले भ्रष्टाचार के सबूत, सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज
- नेता, अफसर और उद्योगपतियों ने आपराधिक षडयंत्र रचकर सरकार को लगाई 2.70 करोड़ की चपत
Suresh Seth |
परदेशीपुरा चौराहा स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन मामले में आखिरकार घोटाले की पुष्टि हो ही गई। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला के कारण बहुचॢचत हुए १०० करोड़ रुपए के इस मामले में 17 लोगों को भ्रष्टाचार करने का दोषी मानकर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है। नेता, अफसर और उद्योगपतियों के इस गठजोड़ से सरकार को 2 करोड़ 70 लाख रुपए की चपत लगी है। मामले में कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ फिलहाल एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। ऐसा क्यों किया गया, इसका जवाब भी लोकायुक्त पुलिस के पास नहीं है। इसी के चलते कोर्ट में लोकायुक्त पुलिस से पूछा गया कि किस आधार पर आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय को छोड़ा गया। लोकायुक्त पुलिस को इसका जवाब 21 सितंबर तक कोर्ट में देना होगा। हालांकि, लोकायुक्त के वकील ने कोर्ट को बताया है कि फिलहाल जांच जारी है और विजयवर्गीय के साथ ही अन्य लोग भी आरोपी बनाए जा सकते हैं।
भारी गहमागहमी के बीच शुक्रवार दोपहर 12 बजे को लोकायुक्त पुलिस ने विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी की कोर्ट में जांच रिपोर्ट पेश की। एफआईआर की शक्ल में पेश इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भाजपा विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति और 13 अफसरों ने षडय़ंत्र रचकर भ्रष्टाचार किया। इसी कारण इनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज कर ली गई है।
लोकायुक्त की इस रिपोर्ट पर शिकायतकर्ता व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश सेठ ने भारी आपत्ति जताते हुए कोर्ट को बताया मैंने चार आरोपी बताए थे। इनमें से तीन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई, जबकि तत्कालीन महापौर कैलाश विजयगर्वीय को लोकायुक्त ने छोड़ दिया, ऐसा आखिर क्यों किया गया। इस पर कोर्ट ने भी लोकायुक्त पुलिस के वकील से पूछा बताइए ऐसा क्यों हुआ?
लोकायुक्त की ओर से हाजिर हुए विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने बताया अभी विजयवर्गीय को क्लीन चीट नहीं दी गई है। मामले में जांच जारी है और विजयवर्गीय समेत अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया जा सकता है। करीब 20 मिनिट तक बहस चली। दोपहर बाद विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिए कि मामले में अंतिम जांच प्रतिवेदन 21 सितंबर तक पेश कर दिया जाए।
कैलाश को नहीं दी क्लीन चीट
विशेष कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विशेष पुलिस स्थापना द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में कैलाश विजयवर्गीय का नाम नहीं होने से यह नहीं माना जाए कि उनके खिलाफ केस समाप्त हो गया है। यह जरूरी नहीं है कि एफआईआर में नाम नहीं होने से कैलाश विजयवर्गीय के विरूद्ध मामला समाप्त हो गया। जांच के आधार पर उन्हें आरोपी बनाया जा सकता है।
'लोकायुक्त-कैलाश के बेटे बिजनेस पार्टनरÓ
शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लोकायुक्त पीपी नावलेकर और उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के परिवारोंं के आपसी ताल्लुकतों का हवाला देते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं। सेठ ने मीडिया से चर्चा में कहा दोनों के बेटे बिजनेस पार्टनर हैं, इसी कारण कैलाश को बचाया गया, अन्यथा उन्हें छोडऩे की कोई वजह मौजूद ही नहीं है।
अब चालान पेश होगा
जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है, उनके खिलाफ विस्तृत जांच होगी। इसके बाद कोर्ट में चालान पेश होगा और गिरफ्तारी होगी। कैलाश विजयवर्गीय और एमआईसी की भूमिका की जांच भी साथ-साथ चलेगी। चालान पेश होने में कितना समय लगेगा, फिलहाल तय नहीं है।
इन धाराओं में केस
एक- भष्ट्राचार निवारण अधिनियम १९८८ की धारा 13(1) डी और धारा 13 (2) अर्थात भ्रष्टाचार।
दो- भारतीय दंड विधान की धारा १२० बी अर्थात आपराधिक षडय़ंत्र।
लो, कैलाश के दस्तखत वाला सबूत
-सुरेश सेठ का कहना है कि घोटाले के सूत्रधार और तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ उन्होंने लोकायुक्त को पुख्ता सबूत सौंपे हैं। ये सभी सरकारी दस्तावेज प्रमाणित हैं। कैलाश के खिलाफ सबसे पुख्ता सबूत है, खुद उनकी ही अध्यक्षता में तीन जून 2002 को पारित एमआईसी का संकल्प, जिसमें जमीन की गाइडलाइन दर 35 रुपए प्रति दस वर्गमीटर बताकर सरकार को लाखों रुपए का नुकसान पहुंचाया गया। मेंदोला के खिलाफ एफआईआर में इसको आधार बनाया गया है लेकिन विजयवर्गीय को बख्श दिया गया।
अफसरों ने किसके लिए किया
निगम के अफसरों ने दबी जुबान अपनी पीड़ा जताई कि उस कार्यकाल में तो आंख दिखाकर काम कराए जाते थे, ये किससे छिपा है। उन्होंने कहा कि कराने वाला कौन था, सबको मालूम है।
'या तो बेईमान कहो या ईमानदारÓ
कोर्ट में हुई जिरह के दौरान सेठ ने लोकायुक्त ïके वकील से कहा भाई, या तो कह दो कि कैलाश बेईमान है या कह दो नहीं है। चाहे तो यह भी कह सकते हैं कि वह ईमानदार है। इस पर कोर्ट में हंसी का ठहाका लग गया।
इनके खिलाफ भ्रष्टाचार की एफआईआर
1. रमेश मेंदोला, तत्कालीन पार्षद एवं अध्यक्ष नंदानगर साख संस्था
2. विजय नगीन कोठारी, भागीदार, धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज
3. मनीष रमणीकलाल संघवी, भागीदार, धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज
4. नगीनचंद्र कोठारी, भागीदार, धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज
5. हंसकुमार जैन, नगर शिल्पज्ञ, नगरनिगम
6. राकेश शर्मा, भवन अधिकारी, नगरनिगम
7. दिवाकर गाढ़े, सहायक यंत्री, नगरनिगम
8. दिनेश शर्मा, उपयंत्री, नगरनिगम
9. श्याम शर्मा, उपयंत्री, नगरनिगम
10. राकेश मिश्रा, उपयंत्री, नगरनिगम
11. एसके जैन, तत्कालीन सहायक शिल्पज्ञ, नगरनिगम
12. अशोक बैजल, रिटायर्ड भवन अधिकारी, नगरनिगम
13. एनके सुराणा, रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री, नगरनिगम
14. जगदीश डगांवकर, रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री, नगरनिगम
15. नित्यानंद जोशी, रिटायर्ड सहायक यंत्री, नगरनिगम
16. विमल कुमार जैन, रिटायर्ड सहायक शिल्पज्ञ, नगरनिगम
17. स्व. केआर मंडोवरा, तत्कालीन उपयंत्री, नगरनिगम
ये गड़बडिय़ां मिलीं
- रमेश मेंदोला पार्षद और एमआईसी सदस्य होने के साथ ही नंदानगर साख संस्था के अध्यक्ष थे, उन्होंने अफसरों के साथ मिलकर आर्थिक लाभ उठाया। जगदीश डगांवकर, हंसकुमार जैन, राकेश शर्मा, दिवाकर गाढ़े, श्याम शर्मा ने विजय कोठारी और मनीष संघवी के साथ मिलकर यह षडय़ंत्र रचा।
- 23 फरवरी 2004 को नंदानगर संस्था ने लीज नामांतरण का आवेदन दिया। 28 फरवरी 2004 को लीज अधिकार बेचने के लिए धनलक्ष्मी केमिकल्स ने निगमायुक्त को पत्र लिखा। नगर शिल्पज्ञ ने 25 मार्च 2004 को लीज बेचने की एनओसी जारी किया। दोनों पक्षों के बीच लेनदेन 8 सितंबर 2004 को हुआ। लीज नामांतरण के आवेदन के एक महीने पहले ही सौदा हो गया।
- नगर शिल्पज्ञ जगदीश डगांवकर के हस्ताक्षर से 19 अप्रैल 2004 को जारी पत्र के आधार पर महापौर कैलाश विजयवर्गीय की अध्यक्षता वाली एमआईसी ने 22 सितंबर 2004 को जमीन धनलक्ष्मी केमि. से नंदानगर संस्था को 30 वर्ष के लिए दे दी। इसी संकल्प के आधार पर 6 अक्टूबर 2004 को नंदानगर संस्था ने निगम से नामांतरण की मंजूरी ली। 15 अप्रैल 2005 को नगरीय प्रशासन व विकास विभाग भोपाल को सौदे की मंजूरी के लिए निगम ने पत्र भेजा। इस पर आज तक मंजूरी नहीं आई।
- वर्ष 2002 में जमीन के उपयोग में परिवर्तन के लिए भवन अधिकारी और नगर निल्पज्ञ ने अन्य अफसरों के साथ मिलकर मनमाने ढंग से लीज की गणना करके 1 लाख 19 हजार 20 रुपए से लिए।
- 1990-91 की गाइडलाइन (40 रुपए वर्ग फीट) के हिसाब से 13 वर्ष का लीज रेंट 13 लाख 68 हजार 640 रुपए बनता था। अफसरों ने निगम को 12 लाख 49 हजार 620 रुपए की चपत लगाई।
- कलेक्टर गाइडलाइन 2002-03 में बदलकर 40 रुपए से बढ़कर 4000 रुपए वर्गफीट हो गई। इसके मुताबिक लीज रेंट 1.27 करोड़ रुपए बनता था। जगदीश डगांवकर, अशोक बैजल, एसके जैन, दिनेश शर्मा ने पद का दुरूपयोग करके विजय कोठारी और मनीष संघवी को 1 करोड़ 25 लाख 95 हजार 637 रुपए का फायदा पहुंचाया।
- औद्योगिक उपयोग की जमीन पर निगम ने आवासीय नक्क्षे पास किए।
- जमीन का डायवर्शन नहीं किया गया और इससे सरकार को 6 लाख 50 हजार 327 रुपए की हानि हुई।
- नित्यानंद जोशी, केआर मंडोवरा, राकेश शर्मा और नगीन कोठारी ने मिलकर आपराधिक षडयंत्र रचा और धनलक्ष्मी केमिकल्स को अवैध लाभ पहुंचाया।
- लीज डीड की शर्तों के विपरीत जमीन बेचने की एनओसी निगम के अफसरों ने जारी की।
- एनओसी के आधार पर ही गलत तरीके से जमीन नंदानगर साख संस्था को 1.38 करोड़ रुपए में बेच दी।
- नियमानुसार 1.38 करोड़ रुपए निगम के खाते में आने थे, लेकिन ये विजय कोठारी व मनीष संघवी को मिले।
- नंदानगर संस्था को यह जमीन 1.38 करोड़ की मामूली कीमत मिली, जो कि आर्थिक फायदा पहुंचाने का मामला है।
कैलाश-मेंदोला के नहीं लिए बयान
लोकायुक्त जांच के दौरान जिन 15 लोगों के बयान लिए गए, उनमें कैलाश-मेंदाला के नाम शामिल नहीं है। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ के साथ ही निगमायुक्त सीबी सिंह, तत्कालीन भवन अधिकारी ज्ञानेंद्रसिंह जादौन, जिला पंजीयक मोहनलाल श्रीवास्तव, भू अभिलेख अधीक्षक शिवप्रसाद मंडरा, टीएंडसीपी संयुक्त संचालक विजय सावलकर, तत्कालीन निगमायुक्त संजय शुक्ल, नंदानगर साख संस्था मैनेजर प्रवीण कंपलीकर, सहकारिता उपायुक्त महेंद्र दीक्षित, उप सचिव मप्र शासन नरेश पाल, तत्कालीन निगमायुक्त विनोद शर्मा, तत्कालीन निगमायुक्त आकाश त्रिपाठी, तत्कालीन सचिव निगम बंशीलाल जोशी, सचिव निगम रणबीरकुमार के साथ ही विजय कोठारी व मनीष संघवी के मित्र मनीष तांबी के बयान भी लोकायुक्त पुलिस ने लिए हैं।
News in Patrika 7th August 2010
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