बुधवार, 11 अगस्त 2010

मुझे मालूम ही नहीं और मेरी जमीन बेच दी

- बुजुर्ग आदिवासी को नौजवान बताकर किसी ओर ने नाम कर दी रजिस्ट्री
- फर्जी रजिस्ट्री मामले में जस्टिस झा आयोग की सुनवाई जारी



साहब, मेरे पास चार बीघा जमीन थी, जिस पर किसी ओर ने कब्जा कर लिया है। वह कहता है जमीन की रजिस्ट्री मेरे नाम है। मुझे तो मालूम ही नहीं कि मैंने कब जमीन बेची। उसने खरीद भी ली।

देवास जिले की बागली तहसील के कंडिया गांव में मजदूरी करके जीवन यापन कर रहे बुजुर्ग आदिवासी भोला आला चारण बेबसी के साथ यह बात बताते हैं। गुरुवार वे मप्र सरकार द्वारा सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों को दिए गए पुनर्वास पैकेज में हुए कथित भ्रष्टाचार और फर्जी रजिस्ट्री मामले के लिए गठित जस्टिस (सेवानिवृत्त) एसएस झा आयोग के समक्ष उपस्थित होने आए थे। एक कटी-फटी पोलिथिन की थैली में वे कूपन, पावती जैसे दस्तावेज लेकर आए थे, ताकि खुद को भोला चारण साबित कर सके। आयोग ने उन्हें जमीन बेचने वाला मानकर बुलाया। सुनवाई के दौरान खुलासा हुआ कि रजिस्ट्री रिकार्ड में यह खुलासा हुआ कि बुजुर्ग भोला की जगह किसी नौजवान का फोटो लगा है, यानी फर्जी व्यक्ति ने जमीन बेच दी। भोला की तरह ही करीब दो दर्जन आदिवासी यहां आए थे। फर्जी रजिस्ट्री के जरिए इनके साथ जमीन का खेल कर दिया गया। आयोग 11 अगस्त तक सुनवाई करेगा।

पंचायत से रिकार्ड गायब : मेधा पाटकर


नर्मदा बताओ आंदोलन की मेधा पाटकर सुनवाई के तीसरे दिन आयोग के समक्ष मौजूद थीं। उन्होंने 'पत्रिकाÓ को बताया कई मामलों में जमीन के रिकॉर्ड ही उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। पंचायतों से नामांतरण पंजी ही गायब हैं। चूंकि यह भ्रष्टाचार सरकारी मशीनरी के साथ मिलकर हुआ है, इसलिए दस्तावेजों को छुपाया भी जा रहा होगा। 2500 से अधिक फर्जी रजिस्ट्रियां हुईं, जिस पर करीब 300 करोड़ शासन की तिजोरी से व्यर्थ गए। दलालों और अफसरों ने जमीन हड़पकर विस्थापितों को भूमिहीन कर छोड़ा। मप्र सरकार भी मान चुकी है कि 750 से अधिक रजिस्ट्रियां फर्जी हैं। हर मामले में सरकार की ओर से साढ़े पांच लाख रुपए का भुगतान किया गया है। 


News in Patrika on 6th August 2010

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