मंगलवार, 28 सितंबर 2010

कम नहीं होते 45 दिन

सुगनीदेवी जमीन घोटाला
- 100 करोड़ के जमीन घोटाले पर विधि विशेषज्ञों की राय
- विशेष न्यायाल में कल पेश होना है लोकायुक्त पुलिस की जांच रिपोर्ट



सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ रुपए की तीन एकड़ जमीन घोटाले में 43 दिन पहले यानी 6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस को विशेष न्यायालय ने आदेश दिया था कि 45 दिन में मामले की अंतिम जांच रिपोर्ट सौंप दे। वह दिन कल है। विधि विशेषज्ञों से रायशुमारी में साफ होता है कि इस मामले में मौजूद दस्तावेज और 17 लोगों के खिलाफ की गई एफआईआर को देखकर लगता है कि धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज और नंदानगर साख संस्था के बीच हुए सौदे में आरोपी क्रमांक दो यानी तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। साथ ही, 'दूध का दूधÓ साबित करने के लिए लोकायुक्त जैसी सशक्त जांच एजेंसी को दी गई 45 दिन की समय सीमा पर्याप्त हैं।

पिछली सुनवाई को लोकायुक्त पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि मामले में विधायक रमेश मेंदोला, तीन उद्योगपति (नगीनचंद्र कोठारी, विजय कोठारी और मनीष संघवी) और 13 अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार एवं आपराधिक षडयंत्र का केस दर्ज कर लिया गया है। नेता, अफसर और उद्योगपतियों के गठजोड़ से सरकार को 2 करोड़ 70 लाख रुपए की चपत लगी है। कोर्ट में 29 पेज की एफआईआर भी पेश की गई थी। तब परिवादी सुरेश सेठ ने सवाल उठाया था कि आरोपी क्रमांक दो यानी विजयवर्गीय के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की गई। इस पर कोर्ट ने 45 दिन का समय दिया था। 'पत्रिकाÓ ने पूरे मामले को विधि विशेषज्ञों के समक्ष रखा।


मूल शिकायत में कैलाश की भूमिका को साबित करने वाले तथ्य

तथ्य एक
कैलाश विजयवर्गीय के नेतृत्व में रमेश मेंदोला ने 1999 में भाजपा प्रत्याशी के रुप में क्रमश: महापौर और पार्षद का चुनाव साथ-साथ लड़ा। विजयवर्गीय के नेतृत्व वाली एमआईसी में रमेश मेंदोला स्वास्थ्य प्रभारी के पद पर जनवरी 2000 से जनवरी 2005 तक आसीन रहे। दोनों ही समान राजनैतिक पृष्ठभूमि के होकर एक साथ राजनैतिक कार्य करते हैं। 

तथ्य दो
 कैलाश ने अपने राजनैतिक प्रभाव का दुरुपयोग करके रमेश मेंदोला की अध्यक्षता वाली नंदानगर साख संस्था को खुद के महापौर रहते जमीन हस्तांतरित करवाई। इस संस्था में विजयवर्गीय की पत्नी आशा विजयवर्गीय भी संचालक हैं।

तथ्य तीन
 कैलाश-रमेश ने वर्ष 2000 में पद संभालते ही आपराधिक षडयंत्र की शुरुआत कर दी थी। यही वजह है कि धनलक्ष्मी केमिकल्स कंपनी को इस भूमि पर बगैर भूमि उपयोग में बदलाव के 18 जून 2000 को मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाने की अनुमति दे दी गई।

तथ्य चार
घोटाले के दौरान कैलाश महापौर के साथ ही उसी क्षेत्र के विधायक भी थे, जहां घोटाला हुआ। लोकसेवक होने के नाते कैलाश व रमेश भलीभांति जानते थे कि मप्र शासन की अनुमति के बगैर न तो भूमि बेची जा सकती थी और न हस्तांतरित।

तथ्य पांच
 कैलाश ने एमआईसी अध्यक्ष के नाते 3 जून 2002 को उस संकल्प क्रमांक 289 की अनुशंसा कर दी जिसमें सुगनीदेवी जमीन को नंदानगर साख संस्था को देने का जिक्र था।

तथ्य छह
कैलाश-रमेश की मौन सहमति से धनलक्ष्मी केमिकल्स इंडस्ट्रीज के भागीदार विजय कोठारी एवं मनीष संघवी को अनुचित लाभ देते हुए 10 हजार वर्गफीट जमीन उन्हें दे दी गई। शेष जमीन ही नंदानगर संस्था अध्यक्ष को दी गई।



एफआईआर में ही छुपे हैं कैलाश की भूमिका के आधार

  • पेज छह के दूसरे पैरा में लिखा गया है कि तत्कालीन भवन अधिकारी, नगर शिल्पज्ञ और संबंधित अन्य अफसरों व कर्मचारियों ने नियम विरूद्ध मनमाने ढंग से लीज राशि की गणना की, जिसके आधार पर विजयवर्गीय की अध्यक्षता वाली एमआईसी ने नंदानगर संस्था को जमीन सौंपने का संकल्प 286 और प्रस्ताव 58 पास कर दिया। विसंगति यह है कि अफसरों की गलती को महापौर, एमआईसी और निगमायुक्त ने हूबहू मान क्यों लिया? क्या महापौर जैसे जिम्मेदार पद पर आसिन होने के नाते उनका दायित्व नहीं था कि संकल्प व प्रस्ताव को नामंजूर कर दें? 
  • पेज आठ के तीसरे पैरा में लिखा कि नगर शिल्पज्ञ जगदीश डगांवकर ने 19 अप्रैल 2004 को एक ऑफिस नोट पर हस्ताक्षर किए। इसके आधार पर कैलाश की अध्यक्षता में एमआईसी ने 22 सितंबर 2004 को संकल्प क्रमांक 759 पास किया। इसी के जरिए जमीन अगले तीस वर्ष के लिए नंदानगर संस्था को दी गई। सवाल उठता है डगांवकर के ऑफिस नोट और संकल्प प्रस्ताव के बीच में पांच माह का अंतराल था। इतने समय में भी इस प्रस्ताव के दोषों की विजयवर्गीय ने अनदेखी क्यों की?
  • पेज नौ के पैरा दो में लिखा है कि धनलक्ष्मी केमिकल इंडस्ट्रीज के भागीदार और पार्षद रमेश मेंदोला ने अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडयंत्र में संगमत होकर पद का दुरुपयोग किया और सरकार को 2.70 करोड़ रुपए की आर्थिक हानि पहुंचाई। पार्षद मेंदोला को इतनी ही राशि का अवैध आर्थिक लाभ हुआ। इसी से सवाल उपजता है क्या एक अकेला पार्षद अफसरों व कर्मचारियों के साथ आपराधिक षडयंत्र में संगमत होकर इतना फायदा उठा सकता है? अपराध वर्ष 2000 से 04 के बीच हुआ है, क्या महापौर के सर्वाधिक नजदीकी पार्षद मेंदोला लगातार चार वर्ष तक अकेले ऐसा षडयंत्र रच सकता है? यदि ऐसा हुआ है तो विजयवर्गीय व एमआईसी ने अपनी अहम जिम्मेदारी को नहीं निभाया है। क्या यह पद के दुरुपयोग की श्रेणी में नहीं आता है?  

पत्रिका : २० सितम्बर २०१० 

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