मंगलवार, 28 सितंबर 2010

लोकायुक्त पुलिस ने ओढ़ा समयसीमा का कवच

- सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की 100 करोड़ की जमीन के घोटाले का केस 
- कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका को लेकर विशेष न्यायालय में पेश नहीं की अंतिम रिपोर्ट
- शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने लगाया लोकायुक्त-कैलाश की मिलीभगत का आरोप


परदेशीपुरा चौराहा स्थित सुगनीदेवी कॉलेज परिसर की तीन एकड़ जमीन में हुए 100 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच कर रही लोकायुक्त पुलिस ने 'समयसीमाÓ का कवच धारण कर लिया है। इस बहुचर्चित मामले में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को लेकर मंगलवार को अंतिम जांच रिपोर्ट पेश करने के बजाए लोकायुक्त पुलिस ने विशेष न्यायाधीश के आदेश को ही चुनौती दे डाली। पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के आठ न्यायिक दृष्टांतों का जिक्र करते हुए कहा कि इस कोर्ट को जांच की समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं है। हम जब तक चाहेंगे, जांच करेंगे। शिकायतकर्ता सुरेश सेठ ने इसे लोकायुक्त व कैलाश की मिलीभगत बताया। लोकायुक्त पुलिस के तर्क पर बहस के लिए कोर्ट ने 6 अक्टूबर की तारीख तय की। ï

इस केस में पुलिस ने 5 अगस्त को मेंदोला समेत 17 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक षडय़ंत्र का केस दर्ज किया था। विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी ने 6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया था कि 21 सितंबर तक अंतिम जांच रिपोर्ट पेश कर बताएं कि क्या आरोपी क्रमांक दो (तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय) की इस मामले में क्या भूमिका है। मंगलवार प्रात: 11.20 बजे लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने कोर्ट के समक्ष चार पेज का एक जवाब पेश किया। इसमें कहा गया कि घटना अवधि 20 वर्ष की है और केस की विवेचना के लिए विभिन्न विभागों से मूल दस्तावेज जब्त या प्राप्त किए जाना है। इसमें अधिक समय लगेगा। दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। इस पर कोर्ट में करीब एक घंटेतक कदम और सेठ के बीच जिरह हुई।
सुरेश सेठ को नहीं सुना जाए
जवाब से यह भी स्पष्ट होता है कि लोकायुक्त पुलिस शिकायतकर्ता सुरेश सेठ के तर्कों के आगे निरुत्तर हो रही है। जवाब के पेज चार पर लिखा गया है एफआईआर रजिस्टर होने के बाद जब तक अंतिम जांच रिपोर्ट पेश नहीं हो जाती, तब तक केस कोर्ट व पुलिस के बीच ही रहता है। परिवादी इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले सकता है। परिवादी सेठ को कोर्ट के समक्ष उपस्थिति होने का अधिकार भी नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने इस जवाब को तवज्जो नहीं देते हुए परिवादी सुरेश सेठ के आग्रह को मंजूर किया और 15 दिन बाद सुनवाई की तारीख नियत कर दी। 

जानें...कितने सटीक हैं लोकायुक्त पुलिस के तर्क

पत्रिका पड़ताल

तर्क एक
घटना अवधि 20 वर्ष की है और इसके लिए विभिन्न विभागों से दस्तावेज जुटाए जाना है। इसमें वक्त लगेगा।
वास्तविकता
5 अगस्त को दर्ज एफआईआर के पेज चार पर लोकायुक्त एसपी वीरेंद्रसिंह ने लिखा है मेरे द्वारा नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग मंत्रालय भोपाल से तीन एकड़ जमीन से जुड़ी पत्रावली, नोटशीट की प्रमाणित जानकारी, नगरनिगम इंदौर से भूमि की लीज डीड की मूल नस्ती, भूल लीज डीड, परिवाद से जुड़े एमआईसी संकल्प, प्रस्तावों की प्रमाणित जानकारी, संबंधित नोटशीट्स एवं पत्रावली की जानकारी जुटाई जा चुकी है। एसपी ने रजिस्ट्रार इंदौर, सहकारिता विभाग इंदौर, नंदानगर साख संस्था इंदौर से दस्तावेज जुटाने का जिक्र भी किया है।
उठता सवाल
यदि ये दस्तावेज जुटा लिए गए हैं, तो फिर लोकायुक्त पुलिस और क्या कागज लेना चाहती है?

तर्क दो
विभिन्न साक्षियों के विस्तृत कथन लिपिबद्ध किए जाना है। इसमें अधिक समय लगना स्वाभाविक है।
वास्तविकता
5 अगस्त को दर्ज एफआईआर के पेज पांच पर लोकायुक्त एसपी वीरेंद्रसिंह ने लिखा है शिकायतकर्ता सुरेश सेठ, तत्कालीन निगमायुक्त संजय शुक्ल, विनोद शर्मा, आकाश त्रिपाठी, निगमायुक्त सीबी सिंह, तत्कालीन भवन अधिकारी ज्ञानेंद्रसिंह जादौन, तत्कालीन निगम सचिव बंशीलाल जोशी, जिला पंजीयक मोहनलाल श्रीवास्तव, भू-अभिलेख अधीक्षक शिवप्रसाद मंडरा, टीएंडसीपी विजय सावलकर,  नंदानगर साख संस्था मैनेजर प्रवीण कंपलीकर, सहकारिता उपायुक्त महेंद्र दीक्षित, उप सचिव मप्र शासन नरेश पाल, निगम सचिव रणबीरकुमार और धनलक्ष्मी केमिकल्स के नाम पर नक्शा पास करवाने वाले मनीष तांबी के बयान लिपिबद्ध किए जा चुके हैं।
उठता सवाल
वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर धनलक्ष्मी केमिकल्स व नंदानगर साख संस्था से जुड़े लोगों तक बयान लिए जा चुके हैं, तो फिर ऐसे कौन लोग शेष रह गए हैं, जिनसे लोकायुक्त पुलिस बात करना चाहती है?

तर्क तीन
दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान की समय सीमा तय करने का जिक्र नहीं किया गया है।
वास्तविकता
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम ने अंतिम जांच रिपोर्ट करने के लिए स्वयं कोर्ट से चार महीने का समय मांगा था। इस पर परिवादी सुरेश सेठ ने यह कहकर आपत्ति उठाई थी कि तब तक तो विशेष न्यायाधीश का तबादला करवा दिया जाएगा। इतना अधिक समय देने की आवश्यकता नहीं है। बाद में कदम ने ही कोर्ट में मंजूर कर लिया था कि डेढ़ महीने में हम अंतिम रिपोर्ट सौंप देंगे। कदम के साथ उस दिन लोकायुक्त डीएसपी अशोक सोलंकी भी कोर्ट में मौजूद थे।
उठता सवाल
क्या विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम को उस दिन यह बात ध्यान में नहीं आई कि दंड प्रक्रिया संहिता में अनुसंधान की समय सीमा तय करने जिक्र नहीं किया गया है?

तर्क चार
एफआईआर दर्ज होने के बाद अनुसंधान की प्रक्रिया में परिवादी हिस्सा नहीं ले सकता है।
वास्तविकता
6 अगस्त को लोकायुक्त पुलिस के विशेष लोक अभियोजक एलएस कदम और डीएसपी अशोक सोलंकी ने कोर्ट को बताया था कि जो एफआईआर दर्ज की गई है, वह अधूरी है। आरोपी क्रमांक दो (कैलाश विजयवर्गीय) की भूमिका की पड़ताल के लिए अगली तारीख नियत कर दी जाए।
उठता सवाल 
प्रारंभिक जांच में जब एक आरोपी की भूमिका को लेकर पड़ताल ही नहीं की गई तो परिवादी को प्रक्रिया से दूर करने की कोशिश करना कितना न्यायोचित है?

तर्क पांच
जिन लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है, उनके सुसंगत साक्ष्य का संकलन एवं परीक्षण करने में अधिक समय लगेगा।
वास्तविकता
शासन को करीब पौने तीन करोड़ रुपए की चपत लगाने वाले जिन 17 लोगों के खिलाफ डेढ़ माह पहले एफआईआर दर्ज की थी, उन्हें लोकायुक्त पुलिस ने आज तक नोटिस भी नहीं भेजा है। आरोपी बनाए गए सिटी इंजीनियर हंसकुमार जैन, रिटायर्ड भवन अधिकारी अशोक बैजल और रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री नरेंद्र सुराणा ने 'पत्रिकाÓ को बताया है कि अब तक तो उन्हें यह भी पता नहीं लगा है कि उन पर आरोप क्या है?
उठता सवाल
लोकायुक्त पुलिस ने जांच को आगे ही नहीं बढ़ाया है, तो यह कैसे मान लिया जाए कि इस केस को अंजाम तक पहुंचाने में वह 'ड्यूटीÓ निभा रही है? 

क्या संभागायुक्त-आईजी को नहीं दिखा
सवा करोड़ का खर्चा
कैलाश के कार्यक्रम में मौजूद होने पर सुरेश सेठ ने विशेष न्यायाधीश के सामने उठाया सवाल नंदानगर में ताबड़तोड़ बांट दी गई थीं 20 हजार साडिय़ां

रविवार को गणेशोत्सव के दौरान नंदानगर गोल स्कूल में हुए महाआरती आयोजन में संभागायुक्त बसंतप्रताप सिंह और आईजी संजय राणा की मौजूदगी मंगलवार को सुगनीदेवी कॉलेज परिसर के जमीन घोटाले केस से जुड़ गई। कांग्रेस नेता सुरेश सेठ ने विशेष न्यायाधीश एसके रघुवंशी के समक्ष कहा कि उस आयोजन में सवा करोड़ रुपया खर्च हो रहा है और मंत्री कैलाश विजयवर्गीय व विधायक रमेश मेंदोला की मौजूदगी में ताबड़तोड़ महिलाओं को 20 हजार साडिय़ां बांट दी गई। अवकाश होने के बावजूद रविवार को अचानक ये साडिय़ां कहां से आ गई? क्या दोनों वरिष्ठ अधिकारियों को यह सबकुछ नहीं दिखा? 

सुरेश सेठ ने मीडिया से चर्चा में बताया कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जाहिर किया है। दोनों अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए ही उस कार्यक्रम में बुलाया गया था। दोनों के सामने ही कैलाश-मेंदोला ने कहा यहां इतनी महिलाएं मौजूद हैं, इन्हें खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। सभी को उपहार में साडिय़ां दी जाना चाहिए। इतना कहते ही पता नहीं कहां से साडिय़ों के बक्से आ गए और महिलाओं में इन्हें बांट दिया गया। दरअसल, साडिय़ां पहले से ही वहां मौजूद थीं। इतने वरिष्ठ अधिकारियों को ऐसे कार्यक्रमों से बचना चाहिए क्योंकि इससे आम लोगों का उनपर से भरोसा उठता है। बड़े अफसर भी मूकदर्शक बने रहेंगे तो भ्रष्ट ताकतों के खिलाफ आवाज उठाने वाले मेरे जैसे लोग आखिर कहां जाकर पनाह लेंगे? 

हमारी मौजूदगी में नहीं बंटे उपहार
कार्यक्रम में बुलाया था, इसलिए गए। मैं और आईजी दोनों ही साथ में थे, परंतु कुछ ही देर में वहां से चले आए थे। हमारी मौजूदगी में वहां कोई उपहार नहीं बांटे गए। संभवत: वहां वीडियो शूटिंग भी हुई है। उसके फुटेज भी देखे जा सकते हैं।
- बसंतप्रताप सिंह, संभागायुक्त

रिपोर्टिंग से कोर्ट हैरान
केस की सुनवाई के दौरान विशेष न्यायाधीश ने मीडिया के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया। बाद में जिला कोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष सुरेंद्र वर्मा ने कोर्ट से मीडियाकर्मियों को सुनवाई में मौजूद रहने का आग्रह किया। कोर्ट ने इसे मंजूर करते हुए मीडियाकर्मियों को बताया यहां की न्यायिक प्रक्रिया को एक अखबार ने ('पत्रिकाÓ नहीं) बेहद गलत तरीके से रिपोर्ट किया। यहां तक लिख दिया कि बॉबी छाबड़ा ने कोर्ट में बहस की, जबकि वास्तव में ऐसा हुआ ही नहीं था। इससे जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति भरोसा टूटता है। 

पत्रिका : २२ सितम्बर २०१०

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